Pyaj ka Bhav: प्याज के दामों में गिरावट का सिलसिला जारी, जानिए किस मंडी में कितना रहा दाम
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सुबह होते ही किसानों को मिली GOOD NEWS, 8000 रुपए के पास पहुँचा कपास का रेट, जानें अन्य फसलों के भाव
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Sarso ki Katai: सरसों कटाई से पहले किसान इन बातों का रखें ध्यान, भूलकर भी ना करें ये काम
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किसानों को बकरी और मेमना खरीदने के लिए मिलेगी 4000 रुपए की सब्सिडी, जानें कैसे करें आवेदन
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भोलेनाथ को खुश करने होली पर अजब परंपरा, युवा भी करते हैं ये काम
ajab gajab holi tradition : बिहार के जो प्रवासी हैं वो दो मौकों पर ही अपने गांव आते हैं. एक छठ और दूसरा होली. होली में लजीज व्यंजन के खान-पान का अपना अलग मजा है. अधिकतर लोग इस दिन मांस-मदिरा खाना-पीना पसंद करते हैं. बिहार में होली के दिन खुद खाने से ज्यादा लोगों को खिलाने में सुकून मिलता है. आज हम आपको बिहार के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां होली के दौरान नॉनवेज खाना या पकाना पूरी तरह से वर्जित है. इस गांव का नाम सोवां है और जिला बक्सर है.
गर्मी के आते ही बढ़ जाती है चीटियों से परेशानी, इन घरेलू नुस्खों से पाए निजात
गर्मी की शुरूआत होते हीगृहणियों को घरों मेंचींटियाँ आने की समस्यासताने लगती है। इनदिनों में घर काशायद ही ऐसा कोईकोना बचता है जहाँइनका आतंक देखनेको नहीं मिलता हो। परेशानी तब खड़ी हो जाती है जब यह रसोई में घुस जाती हैंऔर राशन में लग जाती हैं।.....
ज्योतिष गणना के मुताबिक सूर्य साल में 12 बार राशि परिवर्तन करते हैं। सूर्य के इस राशि परिवर्तन को संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। सूर्य देव जिस भी राशि में गोचर करते हैं, वह नाम के आगे जुड़ जाता है। फाल्गुन महीने में 14 मार्च 2024 को सूर्य देव मीन राशि में प्रवेश कर रहे हैं। ऐसे में सूर्य के इस गोचर को मीन संक्रांति के नाम से जाना जाएगा। बता दें कि सनातन धर्म में मीन संक्रांति का विशेष महत्व माना जाता है। मीन संक्रांति पर पवित्र नदियों में स्नान आदि कर दान व तप करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता के अनुसार, ऐसा करने से जातक को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। तो आइए जानते हैं मीन संक्रांति का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में... इसे भी पढ़ें: Holika Dahan 2024: होलिका दहन पर भद्रा की छाया, मिलेगा सिर्फ एक घंटा 20 मिनट मीन संक्रांति का शुभ मुहूर्त हिंदू पंचांग के मुताबिक 14 मार्च 2024 को सूर्यदेव मीन राशि में प्रवेश कर रहे हैं। इस मौके पर स्नान और दान-पुण्य करना शुभ माना जाता है। बता दें कि दोपहर 12:46 मिनट से मीन संक्रांति की शुरुआत हो रही है। वहीं इस तिथि का शाम 06:29 मिनट पर समापन होगा। इसके अलावा दोपहर 12:46 मिनट से दोपहर 02:46 मिनट तक महापुण्यकाल होगा। दोपहर 12:46 मिनट पर मीन संक्रांति का क्षण होगा। पूजा विधि मीन संक्रांति के मौके पर अगर संभव हो तो पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। फिर सूर्यदेव को अर्घ्य देते हुए पूजा करें। फिर अपनी श्रद्धानुसार गरीबों को दान-पुण्य करें। बताया जाता है कि इस दिन दान-पुण्य करना कल्याणकारी होता है। इन मंत्रो का करें जाप ॐ घृणिं सूर्य्य: आदित्य: ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः। ॐ सूर्याय नम:। ॐ घृणि सूर्याय नम:। ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।। ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।
Holika Dahan 2024: होलिका दहन पर भद्रा की छाया, मिलेगा सिर्फ एक घंटा 20 मिनट
रंगों का त्योहार होली हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि के दिन बाद मनाया जाता है। होली के एक दिन पहले पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन किया जाता है। इस बार होलिका दहन 24 मार्च 2024 को है फिर उसके एक दिन बाद 25 मार्च को होली खेली जाएगी। हिंदू धर्म में होली का त्योहार विशेष महत्व रखता है। होली के एक दिन पहले होलिका दहन होती है। जिसमें लोग बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं। होली के दिन सभी मिलकर एक दूसरे को रंग, अबीर और गुलाल लगाते हैं। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार होलिका दहन के लिए एक घंटा 20 मिनट का ही समय रहेगा। इसकी वजह इस दिन उस दिन भद्रा प्रातः 9:55 से आरंभ होकर मध्य रात्रि 11:13 तक भूमि लोक की रहेगी। जो की सर्वथा त्याज्य है। अतः होलिका दहन भद्रा के पश्चात मध्य रात्रि 11:13 से मध्य रात्रि 12:33 के मध्य होगा। होलिका दहन के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग बन रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 07:34 बजे से अगले दिन सुबह 06:19 बजे तक है। वहीं रवि योग रवि योग सुबह 06:20 बजे से सुबह 07:34 बजे तक है। ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि होली के एक दिन पहले पूर्णिमा की तिथि में होलिका दहन किया जाता है। वहीं पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 24 मार्च सुबह 8:13 मिनट से लेकर अगले दिन 25 मार्च सुबह 11:44 मिनट तक रहने वाली है। दिन भर उदय के कारण 24 मार्च को ही पूर्णिमा तिथि मान्य रहेगी। इस वर्ष होली का त्योहार 25 मार्च को मनाया जाएगा। जबकि इसके एक दिन पहले 24 मार्च को होलिका दहन है। होली उत्सव से आठ दिन पहले होलाष्टक लगेगा। होलाष्टक 17 मार्च से लग जाएगा। इसे भी पढ़ें: Kharmas 2024: 14 मार्च से शुरू हो रहा खरमास, शुभ कार्यों पर लगेगा विराम होलिका दहन पर भद्रा का साया ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि पंचांग के अनुसार 24 मार्च को होलिका दहन के लिए लोगों के पास केवल 1 घंटा 20 मिनट का समय रहेगा। इसकी वजह इस दिन उस दिन भद्रा प्रातः 9:55 से आरंभ होकर मध्य रात्रि 11:13 तक भूमि लोक की रहेगी। जो की सर्वथा त्याज्य है। अतः होलिका दहन भद्रा के पश्चात मध्य रात्रि 11:13 से मध्य रात्रि 12:33 के मध्य होगा। उस दिन भद्रा की पूंछ शाम 06:33 बजे से शाम 07:53 बजे तक है, वहीं भद्रा का मुख शाम 07:53 बजे से रात 10:06 बजे तक है। भद्रा योग रहेगा। भद्रा को अशुभ माना जाता है। यथा भद्रायां हे न कर्तव्ये श्रावणी (रक्षाबंधन) फाल्गुनी (होलिकादहन) तथा। श्रावणी नृपतिं हन्ति ग्राम दहति फाल्गुनी ॥ (मुहर्त्तचिंतामणि) भद्रा समाप्ति के बाद होलिका दहन मुहूर्त साल 2024 में होलिका दहन का शुभ मुहूर्त भद्रा के पश्चात मध्य रात्रि 11:13 से मध्य रात्रि 12:33 तक है। होलिका दहन के लिए 1 घंटा 20 मिनट का शुभ समय प्राप्त होगा। होलिका दहन के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग बन रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 07:34 बजे से अगले दिन सुबह 06:19 बजे तक है। वहीं रवि योग रवि योग सुबह 06:20 बजे से सुबह 07:34 बजे तक है। नहीं होते भद्रा में शुभ कार्य भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि पुराणों के अनुसार भद्रा सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन है। भद्रा क्रोधी स्वभाव की मानी गई हैं। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टिकरण में स्थान दिया है। पंचांग के 5 प्रमुख अंग तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण होते हैं। करण की संख्या 11 होती है। ये चर-अचर में बांटे गए हैं। इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। मान्यता है कि ये तीनों लोक में भ्रमण करती हैं, जब मृत्यु लोक में होती हैं, तो अनिष्ट करती हैं। भद्रा योग कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में चंद्रमा के विचरण पर भद्रा विष्टिकरण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। होलिका दहन विधि भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि होलिका दहन का तैयारी कई दिनों पहले से होने लगती हैं। होलिका दहन वाले स्थान पर लकड़ियां, उपले और अन्य जलाने वाली चीजों को एकत्रित किया जाता है। इसके बाद होलिका दहन के शुभ मुहूर्त पर विधिवत रूप से पूजन करते हुए होलिका में आग लगाई जाती है। फिर होलिका की परिक्रमा करते हुए पूजा सामग्री को होलिका में डाला जाता है। होली की पौराणिक कथा भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि होली का त्योहार मुख्य रूप से विष्णु भक्त प्रह्राद से जुड़ी है। भक्त प्रह्लाद का जन्म राक्षस परिवार में हुआ था, परन्तु वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। उनके पिता हिरण्यकश्यप को उनकी ईश्वर भक्ति अच्छी नहीं लगती थी इसलिए हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अनेकों प्रकार के कष्ट दिए। हिरण्यकश्यप ने कई बार भक्त प्रह्राल को मारने की कोशिश की लेकिन हर बार नकामी ही मिली। तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को भक्त प्रह्राद को मारने की जिम्मा सौपा। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। उनकी बुआ होलिका जिसको ऐसा वस्त्र वरदान में मिला हुआ था जिसको पहनकर आग में बैठने से उसे आग नहीं जला सकती थी। होलिका भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए वह वस्त्र पहनकर उन्हें गोद में लेकर आग में बैठ गई। भक्त प्रह्लाद की विष्णु भक्ति के फलस्वरूप होलिका जल गई लेकिन भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। इसके प्रथा के चलते हर वर्ष होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों की होली खेली जाती है। - डा. अनीष व्यास भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक
Chaita Navratri 2024: जानिए कब से चैत्र नवरात्रि शुरु हो रही है? देखें तारीख और शुभ योग
चैत्र नवरात्रि चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि है। मां दुर्गा को समर्पित नवरात्रि का यह पर्व देशभर में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ स्वरुपों की उपासना की जाती है। वैसे तो साल में 4 बार नवरात्रि है, लेकिन मुख्य रुप से साल की दो नवरात्रि का पर्व आम इंसान के द्वारा मनाया जाता है। वहीं 2 गुप्त नवरात्रि को साधु-संत और तंत्रिक के द्वारा मनाया जाता है। साल की दो नवरात्रि जिन्हें हम मनाते हैं एक तो शारदीय नवरात्रि और दूसरी चैत्र नवरात्रि। अब चैत्र नवरात्रि आने का समय आ गाया है। चैत्र नवरात्रि कब से प्रारंभ है? हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि जो इस बार 8 अप्रैल को देर रात 11 बजकर 50 मिनट पर लगेगी और अगले दिन से यानी 9 अप्रैल को रात के समय 8 बजकर 30 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। वहीं चैत्र नवरात्रि का पहला व्रत 9 अप्रैल को रखा जाएगा। 9 अप्रैल को घटस्थापना का मुहूर्त सुबह 6 बजकर 3 मिनट से 10 बजकर 14 मिनट तक रहेगा। दरअसल, इस बार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत योग का संयोग बन रहा है। ऐसे में इस योग के दौरान की गई पूजा व्यक्ति को सुख और समृद्धि दिलाएगा। चैत्र नवरात्रि की तिथियां - चैत्र नवरात्रि प्रतिपदा तिथि 9 अप्रैल 2024- मां शैलपुत्री की पूजा - चैत्र नवरात्रि द्वितीया तिथि व्रत 10 अप्रैल 2024 - मां ब्रह्मचारिणी की पूजा - चैत्र नवरात्रि तृतीया तिथि व्रत 11 अप्रैल 2024 - मां चंद्रघंटा की पूजा - चैत्र नवरात्रि चतुर्थी तिथि व्रत 12 अप्रैल 2024 - मां कुष्माण्डा की पूजा - चैत्र नवरात्रि पंचमी तिथि व्रत 13 अप्रैल 2024 - मां स्कंदमाता की पूजा - चैत्र नवरात्रि षष्ठी तिथि व्रत 14 अप्रैल 2024 - मां कात्यायनी की पूजा - चैत्र नवरात्रि सप्तमी तिथि व्रत 15 अप्रैल 2024 - मां कालरात्री की पूजा - चैत्र नवरात्रि अष्टमी तिथि व्रत 16 अप्रैल 2024 - मां महागौरी की पूजा, अष्टमी पूजन - चैत्र नवरात्रि नवमी तिथि व्रत 17 अप्रैल 2024 - मां सिद्धिदात्री की पूजा, नवमी पूजन
Phulera Dooj 2024: राधा-कृष्ण को समर्पित है फुलेरा दूज का पर्व, जानिए इसका महत्व और पौराणिक कथा
हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को फुलेरा दूज का पर्व मनाया जाता है। इस साल 12 मार्च 2024 यानी आज फुलेरा दूज का पर्व मनाया जा रहा है। यह पर्व श्रीराधा रानी और श्रीकृष्ण के प्यार का प्रतीक है। फुलेरा दूज के मौके पर भगवान श्रीकृष्ण के मंदिरों में होली का विशेष आयोजन किया जाता है। क्योंकि यह पर्व राधा रानी और श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस दिन फूलों से होली खेली जाती है। कब है फूलेरा दूज फूलेरा दूज- 12 मार्च 2024 दिन मंगलवार फाल्गुन माह द्वितीया तिथि की शुरूआत- 11 मार्च 2024 दिन सोमवार सुबह 10:44 मिनट से शुरू। फाल्गुन माह द्वितीया तिथि समाप्ति- 12 मार्च 2024 दिन मंगलवार सुबह 07:01 मिनट पर समापन। हिंदू पंचांग के मुताबिक इस साल 12 मार्च 2024 को फूलेरा दूज का पर्व मनाया जाएगा। इसे भी पढ़ें: Kharmas 2024: 14 मार्च से शुरू हो रहा खरमास, शुभ कार्यों पर लगेगा विराम फुलेरा दूज की कथा पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण एक बार काफी व्यस्त हो गए, जिसके कारण वह कई दिनों तक राधा रानी से मिल नहीं पा रहे थे। ऐसे में श्रीराधा भगवान श्रीकृष्ण से नाराज हो गईं। ऐसे में राधा रानी के उदास होने पर मथुरा के फूल मुरझा गए और वन सूखने लगे। जब इस बारे में श्रीकृष्ण को पता चला, तो वह श्रीराधा से मिलने वृंदावन पहुंचे। इस तरह से श्रीकृष्ण से मिलकर राधा रानी प्रसन्न हो गईं और मथुरा में चारों ओर हरियाली छा गई। राधा रानी को खुश देखकर उन्हें छेड़ने के लिए श्रीकृष्ण ने खिल रहे फूलों को तोड़कर उनपर फेंका। फिर राधा रानी ने भी श्रीकृष्ण पर पुष्पों की वर्षा की। यह देख राधा-कृष्ण संग मौजूद ग्वाल-बाल और गोपियां भी एक-दूसरे पर पुष्प वर्षा करने लगे। तब से हर साल मथुरा में फूलों की होली खेली जाने लगी। वहीं फुलेरा दूज के इस पावन मौके पर श्रीराधा-कृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। वहीं इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के मंत्रों का जाप करने से व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है। भगवान कृष्ण के मंत्र ॐ कृष्णाय नमः हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। सफलता प्राप्ति मंत्र ॐ श्री कृष्णः शरणं ममः कृष्ण गायत्री मंत्र “ॐ देव्किनन्दनाय विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात”
Kharmas 2024: 14 मार्च से शुरू हो रहा खरमास, शुभ कार्यों पर लगेगा विराम
सूर्य देव के धनु और मीन राशि में प्रवेश करने के दौरान खरमास लगता है। धनु और मीन राशि के स्वामी देवगुरु बृहस्पति हैं। सूर्य के संपर्क में आने के चलते देवगुरु बृहस्पति का शुभ प्रभाव कम या क्षीण हो जाता है। अतः सूर्य देव के धनु और मीन राशि में गोचर करने के दौरान खरमास लगता है। इस दौरान शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पूरे एक वर्ष में दो बार ऐसा मौका आता है। जब खरमास लगता है। एक खरमास मध्य मार्च से मध्य अप्रैल के बीच और दूसरा खरमास मध्य दिसंबर से मध्य जनवरी तक होता है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर-जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि मार्च महीने में 14 मार्च को सूर्य दोपहर 12:34 मिनट पर कुंभ राशि से निकलकर मीन राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य देव के कुंभ राशि से निकलकर मीन राशि में प्रवेश करने के साथ ही खरमास शुरू होगा। इस दौरान सूर्य देव 17 मार्च को उत्तराभाद्रपद और 31 मार्च को रेवती नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। इसके बाद 13 अप्रैल को सूर्य देव मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य देव के मेष राशि में प्रवेश करने के साथ ही खरमास समाप्त हो जाए। ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि खरमास में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि मांगलिक कर्मों के लिए शुभ मुहूर्त नहीं रहते हैं। इन दिनों में मंत्र जप, दान, नदी स्नान और तीर्थ दर्शन करने की परंपरा है। इस परंपरा की वजह से खरमास के दिनों में सभी पवित्र नदियों में स्नान के लिए काफी अधिक लोग पहुंचते हैं। साथ ही पौराणिक महत्व वाले मंदिरों में भक्तों की संख्या बढ़ जाती है। खरमास पूजा-पाठ के नजरिए से बहुत शुभ है, लेकिन इस महीने में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नए काम की शुरुआत जैसे कामों के लिए मुहूर्त नहीं रहते हैं। इस महीने में शास्त्रों का पाठ करने की परंपरा है। धर्म लाभ कमाने के लिए खरमास का हर एक दिन बहुत शुभ है। इस महीने में किए गए पूजन, मंत्र जप और दान-पुण्य का अक्षय पुण्य मिलता है। अक्षय पुण्य यानी ऐसा पुण्य जिसका शुभ असर पूरे जीवन बने रहता है। इसे भी पढ़ें: Tirupati Balaji: ब्रह्मांडीय ऊर्जा से भरपूर हैं भगवान वेंकटेश्वर की आंखें, जानिए तिरुपति बालाजी मंदिर के ये रहस्य साल में दो बार आता है खरमास ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि एक साल में सूर्य एक-एक बार गुरु ग्रह की धनु और मीन राशि में जाता है। इस तरह साल में दो बार खरमास रहता है। सूर्य साल में दो बार बृहस्पति की राशियों में एक-एक महीने के लिए रहता है। इनमें 15 दिसंबर से 15 जनवरी तक धनु और 15 मार्च से 15 अप्रैल तक मीन राशि में। इसलिए इन 2 महीनों में जब सूर्य और बृहस्पति का संयोग बनता है तो किसी भी तरह के मांगलिक काम नहीं किए जाते हैं। सूर्य देव करते हैं अपने गुरु की सेवा भविष्यवक्ता डॉ अनीष व्यास ने बताया कि गुरु ग्रह यानी देवगुरु बृहस्पति धनु और मीन राशि के स्वामी है। सूर्य ग्रह सभी 12 राशियों में भ्रमण करता है और एक राशि में करीब एक माह ठहरता है। इस तरह सूर्य एक साल में सभी 12 राशियों का एक चक्कर पूरा कर लेता है। इस दौरान सूर्य जब धनु और मीन राशि में आता है, तब खरमास शुरू होता है। इसके बाद सूर्य जब इन राशियों से निकलकर आगे बढ़ जाता है तो खरमास खत्म हो जाता है। ज्योतिष की मान्यता है कि खरमास में सूर्य देव अपने गुरु बृहस्पति के घर में रहते हैं और गुरु की सेवा करते हैं। खरमास में क्यों नहीं रहते हैं शुभ मुहूर्त कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि सूर्य एक मात्र प्रत्यक्ष देवता और पंचदेवों में से एक है। किसी भी शुभ काम की शुरुआत में गणेश जी, शिव जी, विष्णु जी, देवी दुर्गा और सूर्यदेव की पूजा की जाती है। जब सूर्य अपने गुरु की सेवा में रहते हैं तो इस ग्रह की शक्ति कम हो जाती है। साथ ही सूर्य की वजह से गुरु ग्रह का बल भी कम होता है। इन दोनों ग्रहों की कमजोर स्थिति की वजह से मांगलिक कर्म न करने की सलाह दी जाती है। विवाह के समय सूर्य और गुरु ग्रह अच्छी स्थिति में होते हैं तो विवाह सफल होने की संभावनाएं काफी अधिक रहती हैं। ज्योतिष ग्रंथ में है खरमास भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि धनु और मीन राशि का स्वामी बृहस्पति होता है। इनमें राशियों में जब सूर्य आता है तो खरमास दोष लगता है। ज्योतिष तत्व विवेक नाम के ग्रंथ में कहा गया है कि सूर्य की राशि में गुरु हो और गुरु की राशि में सूर्य रहता हो तो उस काल को गुर्वादित्य कहा जाता है। जो कि सभी शुभ कामों के लिए वर्जित माना गया है। खरमास में करें भागवत कथा का पाठ भविष्यवक्ता डॉ अनीष व्यास ने बताया कि खरमास में श्रीराम कथा, भागवत कथा, शिव पुराण का पाठ करें। रोज अपने समय के हिसाब से ग्रंथ पाठ करें। कोशिश करें कि इस महीने में कम से कम एक ग्रंथ का पाठ पूरा हो जाए। ऐसे करने से धर्म लाभ के साथ ही सुखी जीवन जीने से सूत्र भी मिलते हैं। ग्रंथों में बताए गए सूत्रों को जीवन में उतारेंगे तो सभी दिक्कतें दूर हो सकती हैं। खरमास में अपने इष्टदेव की विशेष पूजा करनी चाहिए। मंत्र जप करना चाहिए। इनके साथ ही इस महीने में पौराणिक महत्व वाले मंदिरों में दर्शन और पूजन करना चाहिए। तीर्थ यात्रा करनी चाहिए। किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। जो लोग नदी स्नान नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें अपने घर पर गंगा, यमुना, नर्मदा, शिप्रा जैसी पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए स्नान करना चाहिए। पानी में गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं। खरमास में दान का महत्व कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि खरमास में दान करने से तीर्थ स्नान जितना पुण्य फल मिलता है। इस महीने में निष्काम भाव से ईश्वर के नजदीक आने के लिए जो व्रत किए जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है और व्रत करने वाले के सभी दोष खत्म हो जाते हैं। इस दौरान जरूरतमंद लोगों, साधुजनों और दुखियों की सेवा करने का महत्व है। खरमास में दान के साथ ही श्राद्ध और मंत्र जाप का भी विधान है। पूजा-पाठ के साथ ही जरूरतमंद लोगों को धन, अनाज, कपड़े, जूते-चप्पल का दान जरूर करें। किसी गोशाला में हरी घास और गायों की देखभाल के लिए अपने सामर्थ्य के अनुसार दान कर सकते हैं। घर के आसपास किसी मंदिर में पूजन सामग्री भेंट करें। पूजन सामग्री जैसे कुमकुम, घी, तेल, अबीर, गुलाल, हार-फूल, दीपक, धूपबत्ती आदि। करें सूर्य पूजा भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि खरमास में सूर्य ग्रह की पूजा रोज करनी चाहिए। सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद तांबे के लोटे से सूर्य को जल चढ़ाएं। जल में कुमकुम, फूल और चावल भी डाल लेना चाहिए। सूर्य मंत्र ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जप करें। - डा. अनीष व्यास भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक
Before Diwali, the government gave a big gift to farmers, the farm will get a subsidy of Rs 5 lakh for tap wells, so take advantage, 5 lakh subsidy for tap well in the field, so take advantage
दस्तक देने लगी गर्मी, पनपने लगी मच्छरों की समस्या, इन उपायों से पाए निजात
गर्मियों की शुरूआत होते ही कई प्रकार की समस्याएँ सामनेआने लगती हैं। इन समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या मच्छरों के पनपने की होती है। सूरजढलते ही घर मेंमच्छरों का आतंक शुरूहो जाता है। मच्छरघर में घुसकर मलेरिया,डेंगू जैसी बीमारियों कोफैलाने से बाज नहीं.....
Vijaya Ekadashi 2024: विजया एकादशी का व्रत करने से सर्वत्र मिलती है विजय, जानिए पूजन विधि और मुहूर्त
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व माना जाता है। जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित एकादशी का व्रत सर्वश्रेष्ठ माना गया है। बता दें कि हर साल फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी मनाई जाती है। इस साल आज यानी की 06 मार्च को 06:31 मिनट पर विजया एकादशी तिथि शुरू हो रही है। तो अगले दिन 07 मार्च को 04:14 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी। हिंदू पंचांग के मुताबिक 06 मार्च 2024 को विजया एकादशी का व्रत किया जाएगा। जो भी जातक श्रद्धा भाव से इस व्रत को करता है, उसको भगवान श्रीहरि विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। महत्व मान्यता के मुताबिक इस व्रत को करने से जातक को सर्वत्र विजय की प्राप्ति होती है और शुभ कार्य पूरे होते हैं। बताया जाता है कि भगवान श्रीराम ने लंका विजय की कामना से बकदाल्भ्य मुनि के कहने पर विजया एकादशी का व्रत किया था। इस व्रत के प्रभाव से श्रीराम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी। इस व्रत को करने से शत्रुओं की पराजय होती है और सभी कार्य अपने अनुकूल होने लगते हैं। जो भी जातक विजया एकादशी का व्रत करने से करता है, उसको अन्न दान, गौदान, भूमि दान और स्वर्ण दान से भी अधिक पुण्य फल की प्राप्ति होती है। वहीं अंत में जातक मोक्ष को प्राप्त करता है। इस महापुण्यदायक व्रत को करने से जातक को वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पूजाविधि इस दिन सुबह जल्दी स्नान आदि कर व्रत का संकल्प लें और सूर्यदेव को अर्घ्य दें। इसके बाद श्रीहरि की फोटो जिस पर वह शेषनाग की शैया पर विराजमान हों और लक्ष्मी जी उनके चरण दबा रही हों, उसे चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर ईशान कोण में रखें। फिर गंगाजल से भगवान विष्णु को स्नान आदि कराने के बाद फल, फूल, चंदन, धूप, दीप, मिष्ठान आदि अर्पित करें। श्रीहरि विष्णु की पूजा में उनकी प्रिय तुलसीदल जरूर अर्पित करनी चाहिए। फिर पूरे श्रद्धाभाव से एकादशी व्रत कथा और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। साथ ही मां लक्ष्मी की पूजा पूरे विधि-विधान से करनी चाहिए। आखिरी में आरती कर श्रीहरि से आशीर्वाद की कामना करें। एकादशी के दिन तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए और दूसरों की निंदा नहीं करें। एकादशी के मंत्र *ॐ नमोः नारायणाय॥ *ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥ *ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥ *मंगलम भगवान विष्णुः, मंगलम गरुणध्वजः। मंगलम पुण्डरी काक्षः, मंगलाय तनो हरिः॥
Shabari Jayanti: शबरी जयंती है मोक्ष एवं भक्ति का प्रतीक
भगवान राम की परम भक्त माता शबरी की आज जयंती है। हिन्दू धर्म में इसका खास महत्व है, तो हम आपको शबरी जयंती के महत्व के बारे में बताते हैं। शबरी जयंती है खास शबरी जयंती के दिन ही शबरी को उसके भक्ति के परिणामस्वरूप मोक्ष प्राप्त हुआ था। यह पर्व मोक्ष तथा भक्ति का प्रतीक माना जाता है। शबरी जयंती हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को मनाया जाता है। इस साल 2024 में यह जयंती 3 मार्च को पड़ रही है। जाने मां शबरी के बारे में मां शबरी का नाम शबरी न होकर श्रमणा था। वह भील समुदाय की थी और उनके पिता भीलों के राजा थे। शबरी का पालन उनके पिता ने बहुत प्यार से किया था। जब शबरी विवाह योग्य हुईं तो उनके पिता ने उनके लिए सुयोग्य वर खोजा। विवाह के दौरान जानवरों की बलि देने की प्रथा। इसी प्रथा के अनुसार शबरी के पिता विवाह से एक दिन पूर्व सौ भेड़-बकरियां लेकर आए और उनकी बलि की तैयारी करने लगी। शबरी को जब यह पता चला तो वह उन भेड़ बकरियों को बचाने की कोशिश करने लगीं। उन्हें बचाने के लिए शबरी ने सुबह ही सभी जानवरों को छोड़ दिया तथा खुद भी वन में चली गयीं। उसके बाद वह खुद भी घर वापस नहीं आयीं। शबरी भगवान श्रीराम की अनन्य भक्त थीं। उनकी एकनिष्ठ भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीराम ने न केवल उनके जूठे बेर खाएं बल्कि उन्हें मोक्ष भी प्रदान किया। इसे भी पढ़ें: Lord Shiva: शिवजी की कृपा पाने के लिए करें शिवाष्टक, रुद्राष्टक, शिव स्त्रोत, शिव सहस्त्र नामावली का पाठ, प्रसन्न होंगे महादेव जानें शबरी जयंती के बारे में पंडितों के अनुसार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन माह की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती का पर्व मनाया जाता है। माता शबरी भगवान राम की परम भक्त थीं। यह दिन मां शबरी की श्री राम के प्रति निस्वार्थ भक्ति भाव को समर्पित है। इस दिन मां शबरी की लोग पूजा करते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान के सच्चे भक्तों की सेवा-सत्कार करने मात्र से प्रभु प्रसन्न हो जाते हैं। अतः इस मान्यता के आधार पर इस दिन लोग माता शबरी की वंदना करते हैं और भक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। शबरी जयंती का शुभ मुहूर्त फाल्गुन माह की कालाष्टमी 3 मार्च 2024 रविवार को है। हिंदू पंचांग के अनुसार, 3 मार्च को ही उदया तिथि के अनुसार, भानु सप्तमी और शबरी जयंती भी मनाई जाएगी। कालाष्टमी के दिन तांत्रिक, अघोरी गुप्त रूप से काल भैरव की पूजा कर करके अलौकिक सिद्धियां प्राप्त करती है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 3 मार्च 2024 को सुबह 08.44 बजे शुरू होगी और 4 मार्च 2024 को सुबह 08.49 बजे खत्म होगी। मतंग ऋषि ने दिया था आर्शीवाद जानवरों को घर से भगाने के बाद शबरी खुद भी घर नहीं लौटीं। वह जंगलों में भटकती रहीं कोई भी उन्हें आश्रम में शिक्षा देने हेतु तैयार नहीं। सब जगह से उन्हें दुत्कार ही मिली। उसके बाद मतंग ऋषि के आश्रम में शबरी को जगह मिली तथा वहीं उन्हें शिक्षा प्राप्त हुई। मतंग ऋषि शबरी के सेवा भाव तथा गुरु भक्ति से बहुत प्रसन्न थे। मतंग ऋषि अपना शरीर छोड़ने से पहले शबरी को आर्शीवाद दिए भगवान श्रीराम उनसे मिलने स्वयं आएंगे और तभी उनको मोक्ष प्राप्त होगा। शबरी जयंती का महत्व हिन्दू कैलेंडर के अनुसार शबरी जयंती का पर्व हर साल फाल्गुन महीने की सप्तमी तिथि के दिन मनाया जाता है। शबरी जयंती का पर्व मुख्य रूप से गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में मनाया जाता है। शबरी जयंती के दिन तरह तरह के धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते है। दक्षिण भारत के भद्रचल्लम के सीतारामचन्द्रम स्वामी मंदिर में इस दिन को एक बड़े उत्सव के रूप में बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। शबरी जयंती के दिन शबरी माता की पूजा एक देवी के रूप में की जाती है। राम भक्त शबरी की बहुत सारी कथाएं रामायण भागवत रामचरितमानस आदि ग्रंथो में किया गया है। भगवान् श्रीराम ने अपनी सबसे बड़ी भक्त शबरी के जूठे बेरों को ग्रहण किया था। इसी वजह से इस दिन को शबरी माता के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। और उनका पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ पूजन किया जाता है। शबरी से जुड़ी पौराणिक कथा एक पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन शबरी मतंग ऋषि के पास ही एक तालाब में जल लेने गयीं। वहां एक ऋषि साधना कर रहे थे वह उस समय ध्यान में मग्न थे। इसलिए शबरी तालाब से जल लेने। कहा जाता है कि तालाब का जल बहुत पवित्र था उसमें गंगा तथा यमुना का जल मिला हुआ था। शबरी वहां से जल लेने लगीं तभी ऋषि का ध्यान टूटा तथा शबरी के अछूत होने के कारण ऋषि ने पत्थर उठाकर मारा जिससे शबरी को चोट लगी और खून तालाब में गिरने लगी। बहुत दिनों बाद भी शबरी का खून तालाब के पानी में नहीं मिल सका। बहुत दिनों बाद जब श्रीराम तालाब के पास आए तो लोगों ने कहा कि राम जी शबरी के खून को जल में मिला दें। श्रीराम को जब यह पता चला तो उन्होंने कहा कि यह शबरी का रक्त नहीं बल्कि मेरे हृदय का रक्त है कृपया शबरी को बुलाएं। कहा जाता है कि जैसे ही शबरी तालाब के पास आयीं उनके पैरों की धूल से तालाब का खून जल में बदल गया। शबरी जयंती पर ऐसे करें पूजा शबरी जयंती के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए सबरीमाला मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। शबरी ने जिस श्रद्धा और आस्था के साथ श्री राम की भक्ति करके उनको पाया था। उसी भक्ति के साथ इस दिन शबरी और भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। इस दिन शबरी और भगवन विष्णु को बेर का भोग लगाया जाता है। शबरी जयंती के दिन माता शबरी और भगवान् विष्णु को बेर का भोग लगाने के पश्चात पूरा परिवार बेर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करता है। इस दिन भगवान विष्णु या शबरी की पूजा में लाल सिंदूर या कुमकुम का प्रयोग नहीं किया जाता है। शबरी जयंती के दिन सफेद चंदन के प्रयोग से शबरी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसा करने से शबरीमाला की पूजा सफल मानी जाती है। शबरी जयंती पर निकालते हैं जुलूस, होती है पूजा शबरी जयंती के दिन शबरीमाला मंदिर में मां शबरी की पूजा-अर्चना होती है तथा श्रद्धालुओं के लिए विशेष प्रकार का मेला लगता है। शबरी जयंती के दिन मां शबरी की याद में जुलूस निकाले जाते हैं तथा चित्रों के माध्यम से भगवान शबरी द्वारा राम को जूठे बेर खिलाए जाने की कथा का चित्रण प्रस्तुत किया जाता है। साथ ही शबरी जयंती को शबरी मां की देवी के रूप में पूजा की जाती है। इस दिन शबरी की याद में भगवान राम तथा उनके परिवार को बेर चढ़ाएं तथा सफेद चंदन से तिलक लगाया जाता है। - प्रज्ञा पाण्डेय
Hindu Nav Varsh 2024: क्या आपको पता है कब शुरू होगा भारतीय नव वर्ष, इस दिन कैसे करते हैं सेलिब्रेट
कब शुरू होता है हिंदू नव वर्ष हिंदी नव वर्ष जिसे प्रायः हिंदू नव वर्ष या भारतीय नव वर्ष भी कहते हैं, ये प्रायः दो कैलेंडर के रूप में प्रचलित हैं एक शक संवत और दूसरा विक्रमी संवत, हालांकि दोनों के साल की शुरुआत एक ही दिन और महीने से होती है। शक संवत ग्रेगोरियन कैलेंडर से करीब 78 साल नया है और विक्रमी संवत कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर से 57 साल पुराना है। इसलिए अंग्रेजी साल में 57 जोड़कर विक्रमी संवत की संख्या निकालते हैं और 78 घटाकर शक संवत की संख्या निकालते हैं। इसकी शुरुआत हिंदी महीने चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी पहली तिथि से होती है। नए साल 2024 में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा मंगलवार 9 अप्रैल को पड़ रही है। इस दिन हिंदू नए वर्ष यानी नव संवत्सर की शुरुआत होती है। उत्तर भारत में इसी दिन से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है और लोग आदि शक्ति की घटस्थापना कर नौ दिन पूजा अर्चना करते हैं और घर वालों की सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। कब शुरू हो रही है चैत्र शुक्ल प्रतिपदा प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ: 08 अप्रैल 2024 को रात 11:50 बजे प्रतिपदा तिथि संपन्नः 09 अप्रैल 2024 को रात 08:30 बजे क्या है गुड़ी पड़वा का महत्व भारतीय नव वर्ष यानी नव संवत्सर का उत्सव अलग-अलग नाम से देश के विभिन्न हिस्सों में मनाया जाता है। महाराष्ट्र और दक्षिण पश्चिम भारत में गुड़ी पड़वा उत्सव मनाते हैं। मान्यता है कि इस दिन ही सृष्टि की रचना हुई थी। वहीं गुड़ी पड़वा को कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के लोग उगादी उत्सव मनाते हैं। मान्यता है कि हिंदू नव संवत्सर यानी गुड़ी पड़वा संसार का पहला दिन है। इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। इसी दिन संसार में सूर्य देव का उदय हुआ था, गुड़ी पड़वा के दिन ही भगवान राम ने बालि वध किया था। सौर कैलेंडर पर आधारित हिंदू नववर्ष को तमिलनाडु में पुथंडु, असम में बिहू, पंजाब में वैसाखी, उड़ीसा में पना संक्रांति और पश्चिम बंगाल में नबा वर्षा के नाम से जाना जाता है। इन दिनों पूजा-पाठ, व्रत किया जाता है और घरों में पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं। साथ ही पारंपरिक नृत्य, गीत, संगीत आदि के कार्यक्रम होते हैं। ये भी पढ़ेंः मेष से मीन राशि तक के लोगों के लिए कैसा रहेगा साल 2024, पढ़ें आर्थिक स्थिति से करियर तक का हाल ये भी पढ़ेंः हर धर्म में अलग होती है नए साल की तारीख, जानिए सभी की डेट और महत्व कैसे करते हैं सेलिब्रेट नव संवत्सर के दिन घरों में रंगोलियां बनाई जाती हैं। साथ ही कई तरह के पकवान बनते हैं। बहरहाल नव संवत्सर के दिन की शुरुआत अनुष्ठानिक तेल-स्नान और उसके बाद प्रार्थना से होती है। इस दिन तेल स्नान और नीम के पत्ते खाना शास्त्रों द्वारा सुझाए गए आवश्यक अनुष्ठान हैं। उत्तर भारतीय गुड़ी पड़वा नहीं मनाते हैं बल्कि उसी दिन से नौ दिवसीय चैत्र नवरात्रि पूजा शुरू करते हैं और नवरात्रि के पहले दिन मिश्री के साथ नीम भी खाते हैं। हिंदू नव वर्ष की तारीख हिंदू नव वर्ष की तारीख निश्चित न होने का कारण यह है कि यह भारतीय संस्कृति की नक्षत्रों और कालगणना आधारित प्रणाली पर तय होता है। इसका निर्धारण पंचांग गणना प्रणाली यानी तिथियों के आधार पर सूर्य की पहली किरण के उदय के साथ होता है, जो प्रकृति के अनुरूप है। यह पतझड़ की विदाई और नई कोंपलों के आने का समय होता है। इस समय वृक्षों पर फूल नजर आने लगते हैं जैसे प्रकृति किसी बदलाव की खुशी मना रही है। ये भी पढ़ेंः Shukra Gochar: किन राशियों पर शुक्र गोचर का सबसे अधिक असर, जानिए क्या नफा क्या नुकसान राष्ट्रीय पंचांग भारतीय नववर्ष यानी हिंदू नववर्ष, भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या भारत के राष्ट्रीय कैलेंडर का पहला दिन होता है, जो शक संवत पर आधारित है। भारत सरकार ने सिविल कामकाज के लिए इसे ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ-साथ 22 मार्च 1957 (भारांग: 1 चैत्र 1879) को अपनाया था। इसमें चंद्रमा की कला (घटने और बढ़ने) के अनुसार महीने के दिनों की संख्या निर्धारित होती है।
हर धर्म में अलग होती है नए साल की तारीख, जानिए सभी की डेट और महत्व
हिंदू नव वर्ष यानी भारांग (Hindu Nav Varsh) भारत में अंग्रेजी कैलेंडर के साथ एक अन्य कैलेंडर को राष्ट्रीय पंचांग के रूप में अपनाया गया है। इसे भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या भारांग के रूप में जाना जाता है। इसे हिंदू नव वर्ष या भारतीय नववर्ष के रूप में भी जाना जाता है। यह कैलेंडर शक संवत् पर आधारित है और इसका पहला दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को होता है। हालांकि इसका दिन तय नहीं होता है, क्योंकि चंद्रमा की कलाओं और नक्षत्रों की कालगणना प्रणाली के आधार पर तिथि निर्धारण के कारण यह बदलता रहता है। इस साल यह 9 अप्रैल 2024 को पड़ रहा है। भारत में मान्यता है कि इसी दिन सृष्टि की रचना हुई थी। इस दिन देश भर में नवरात्रि और गुड़ी पड़वा उत्सव मनाया जाता है। इस कैलेंडर को भारत में सिविल कामकाज के लिए ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ-साथ 22 मार्च 1957 (भारांग: 1 चैत्र 1879) को अपनाया गया था। इसमें चंद्रमा की कला (घटने और बढ़ने) के अनुसार महीने के दिनों की संख्या निर्धारित होती है। नौरोजः पारसी समुदाय का नववर्ष (Nauroz) नौरोज पारसी समुदाय का नववर्ष है, इसे ईरानी नववर्ष के नाम से भी जानते हैं। यह मूलतः प्रकृति प्रेम का उत्सव है, जो ईरानी कैलेंडर के पहले महीने फारवर्दिन का का पहला दिन है। इसी दिन हिजरी शमसी कैलेंडर की भी शुरुआत होती है। नौरोज की शुरुआत इक्वीनाक्स से होती है यानी इस दिन और रात लगभग बराबर होते हैं। खगोलविदों के अनुसार सूर्य, सीधे भूमध्य रेखा से ऊपर होकर निकलता है। ईसवी कैलेंडर के अनुसार नौरोज हर साल 20, 21 या 22 मार्च से आरंभ होता है। इस दिन लोग एक दूसरे के यहां जाते हैं और नव वर्ष की बधाई देते हैं। दुखी और संकटग्रस्त लोगों से भी मिलने जाते हैं। इस साल 2024 में नौरोज 20 मार्च बुधवार को होगा। ये भी पढ़ेंः यहां सूर्यास्त के बाद नहीं रूकते किन्नर, जानें गर्भवती होने की चमत्कारिक कहानी चीनी नव वर्ष (chinese new year 2024) चीनी कैलेंडर चंद्र सौर चीनी कैलेंडर पर आधारित है। चीनी नव वर्ष के पहले दिन यानी कैलेंडर के पहले दिन से चीन में 15 दिवसीय वसंत उत्सव की शुरुआत होती है। आखिरी दिन लालटेन महोत्सव मनाया जाता है। प्रायः चीनी नव वर्ष 21 जनवरी से 20 फरवरी के बीच दिखाई देने वाले नए चन्द्रमा से शुरू होता है। साल 2024 में यह 12 फरवरी से शुरू होगा। यह नव वर्ष सिंगापुर, ताइवान, म्यांमार आदि देशों में भी मनाया जाता है। नए साल की पूर्व संध्या पर चीनी परिवार वार्षिक पुनर्मिलन समारोह और रात्रिभोज आयोजित करते हैं। साथ ही नव वर्ष पर लाल कागज और कविताओं के साथ खिड़कियों और दरवाजों की सजावट करते हैं। इस्लामी नव वर्ष इस्लामी नव वर्ष को इस्लामी नया साल के नाम से भी जानते हैं। इसे हिजरी नव वर्ष के रूप में भी जाना जाता है। मुहर्रम के पहले महीने के पहले दिन से इस नव वर्ष की शुरुआत होती है। यह कैलेंडर चंद्र गणना पर आधारित है और सूर्यास्त के बाद के समय से दिन की शुरुआत माना जाता है। इस कैलेंडर वर्ष का निर्धारण पैगंबर मुहम्मद और उनके अनुयायियों के मक्का से मदीना प्रवास के वर्ष से किया जाता है। जो ग्रेगोरियन कैलेंडर में 622 सीई के बराबर है। साल 2024 में इस्लामी कैलेंडर के नव वर्ष की शुरुआत यानी मोहर्रम महीने की शुरुआत 17 जुलाई को होने की संभावना है।
तकलीफ देह होती है गले में खराश, जानिये खराश को ठीक करने के घरेलू उपाय
गले में खराश आपकोपरेशान कर सकती है,और यह खुजली औरकभी-कभी खांसी केलक्षण भी पैदा करसकती है। कई बार,गले में खराश होनेके कुछ दिनों बादसर्दी और जुकाम काभी.....
Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2024: पूजा में शामिल करें ये सामग्री, बरसेगी गणपति बप्पा की कृपा
हिंदू धर्म में द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी को बहुत ही शुभ माना जाता है। यह त्योहार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस बार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 28 फरवरी 2024, दिन बुधवार को मनाई जाएगी। इस खास दिन पर भगवान गणेश की पूजा की जाती है। द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की विधिवत पूजा और व्रत रखते है। इस दिन सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक उपवास रखते हैं। आपको बता दें कि, संकष्टी का अर्थ है जीवन के संकटों से मुक्ति। भगवान गणेश बुद्धि के सर्वोच्च स्वामी, सभी कष्टों का निवारण करते हैं। मान्यता है संकष्टी चतुर्थी का व्रत को करने से सभी लोगों बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है। द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पूजा सामग्री लिस्ट -पीला कपड़ा -चौकी -फूल - जनेऊ -लौंग -दीपक -दूध -मोदक -गंगाजल -जल - देसी घी - 11 या 21 तिल के लड्डू - फल -कलश - सुपारी - गणेश जी की प्रतिमा द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का इतना महत्व क्यों है फाल्गुन माह की आने वाली चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस खास मौके पर भक्तजन सच्चे मन से व्रत रखते हैं और भगवान गणेश की पूजा-आराधना करते हैं। माना जाता है कि यह दिन भगवान गणेश जी की कृपा प्राप्त करने के लिए उत्तम माना जाता है। इस दिन भगवान गणेश प्रसन्नचित मुद्रा में होते है जो लोग उनकी पूजा करते हैं गणेश जी सारी इच्छाएं पूरी करते है।
आंदोलन कर रहे किसानों को बस करना होगा 1 दिन का इंतजार; PM मोदी कल करने वाले है ये काम
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आंदोलन कर रहे करोड़ों किसानों को मिलेगा मोटा पैसा, इस दिन जारी होगी PM Kisan की 16वीं किस्त
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बड़े काम की होती है उबली चाय पत्ती, फेंकने से पहले ऐसे करें इसका उपयोग
आम तौर पर यह होता है कि उबली हुई चाय पत्ती को फेंक दिया जाताहै। ऐसा हम अज्ञानतावश करते हैं। उबली चाय पत्ती बहुत काम की होती है। आप इसका दोबारासे कई तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं।.......
किचन को धुआं मुक्त रखने के लिए आवश्यक है चिमनी, चुनाव करते वक्त रखें इन बातों का ध्यान
आजकल फ्लेट में तो यहपरेशानी बहुत ज्यादा है।ऐसे में आपकी मददकरती है चिमनी जोकिचन को धुआं मुक्तरखने में मदद करतीहै। किचन को साफव सुरक्षित बनाने के लिए किचनमें चिमनी लगवाना एक अच्छा विकल्पहै।.....
नदी और जलाशय में लोग सिक्का क्यों फैंकते हैं,क्या यह भी स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है ?
हममें से कई लोगों ने अपने जीवन में कभी न कभी नदी में सिक्का फेंका ही होगा. वर्षों
महिलाओं में स्तन कैंसर से होने वाली मृत्यु दर को कम कर सकती है 'मास्टेक्टॉमी' सर्जरी!
एक शोध से यह बात सामने आई है कि बीआरसीए1 या बीआरसीए2 जेनेटिक वेरिएंट वाली महिलाओं की अगर मास्टेक्टॉमी (एक सर्जिकल प्रक्रिया जिसमें पूरे स्तन या उसके कुछ हिस्से को हटा दिया जाता है) की जाए तो उनकी मृत्यु की संभावना कम हो सकती है।
सिर्फ दाँतों की सफाई नहीं करता है टूथपेस्ट, और चीजों को साफ करने में भी आता है काम
कई बार कॉफी के जिद्दी दाग सफेद चादर या कपड़े पर लग जाते हैं जिसे हटाना नामुमकिन सा हो जाता है। ऐसे में टूथपेस्ट काफी काम की चीज साबित होता है। इसके लिए अगर हम नॉन जेल.....
पोषक तत्वों से भरपूर सोयाबीन के अत्यधिक सेवन से शरीर को होता है नुकसान
आज के समयमें जिम जाने वालेलोगों से लेकर वेगनलोगों के पास सोयाउत्पाद ही उनके कैल्शियमऔर प्रोटीन की जरूरत कोपूरा करने का सबसेबेहतर स्रोत है। इसका सेवनसेहत के लिए अच्छाहै, लेकिन सोयाबीन का ज्यादा सेवन शरीर के लिए खतरापैदा करता है।.....
Mahananda Navami 2024: महानंदा नवमी व्रत से घर में आती है सुख-समृद्धि
आज महानवमी है, हिन्दू धर्म में महानवमी का खास महत्व है। इस दिन कुंवारी कन्याओं का पूजन किया जाता है। इस व्रत से भौतिक सुख और मानसिक शांति प्राप्ति होती है तो आइए हम आपको महानंदा नवमी व्रत की पूजा विधि एवं महत्व के बारे में बताते हैं। महानंदा नवमी के बारे में हिंदू धर्म में महानंदा नवमी के व्रत को काफी शुभ माना जाता है। यह व्रत माघ महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रखा जाता है। पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महानंदा नवमी का व्रत रखा जाता है। गुप्त नवरात्रि के नवमी तिथि को पड़ने के कारण इस दिन का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। इस दिन मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा करने का विधान है। पंडितों का मानना है कि इस दिन के स्नान, दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। बता दें कि महानंदा नवमी को 'ताल नवमी' भी कहा जाता है। जानिए महानंदा नवमी की तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व। इस साल महानंदा नवमी 18 फरवरी को है। महानंदा नवमी 2024 तिथि और शुभ मुहूर्त इस साल महानंदा नवमी व्रत 18 फरवरी 2024 को है। महानंदा नवमी का महत्व शास्त्रों के अनुसार, महानंदा नवमी के साथ मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा और व्रत करने से व्यक्ति के जीवन से हर कष्ट समाप्त हो जाता है। इसके साथ ही धन संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है। महानंदा नवमी के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही व्यक्ति को वर्तमान और पिछले जन्मों के सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसे भी पढ़ें: Ram Mandir Ayodhya: हर साल इस दिन सूर्यदेव खुद करेंगे श्रीराम का अभिषेक, दोपहर को दमकेगा प्रभु का मुख महानंदा नवमी पर मां लक्ष्मी के साथ मां दुर्गा की पूजा का विधान पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक हैं। पंडितों का मानना है कि देवी दुर्गा की पूजा करने से सभी बुरी आत्माओं पर विजय प्राप्त होती है। इसी के कारण उन्हें 'दुर्गतिनाशिनी' भी कहा जाता है जिसका अर्थ है वह जो सभी कष्टों को दूर करती है। इसलिए जो लोग देवी दुर्गा की भक्ति पूर्वक पूजा करते हैं, वे अपने सभी दुखों और शोकों से मुक्ति प्राप्त करते हैं। महानंदा नवमी तिथि को मां दुर्गा के नौ स्वरूपों चंद्रघंटा, शैलपुत्री, कालरात्रि, स्कंद माता, ब्रह्मचारिणी, सिद्धिदायिनी, कुष्मांडा, कात्यायनी और महागौरी की पूजा करने का विधान है। महानंदा नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा श्री महानंदा नवमी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है कि एक साहूकार की बेटी पीपल की पूजा करती थी। उस पीपल में लक्ष्मीजी का वास था। लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से मित्रता कर ली। एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी को अपने घर ले जाकर खूब खिलाया-पिलाया और ढेर सारे उपहार दिए। जब वो लौटने लगी तो लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से पूछा कि तुम मुझे कब बुला रही हो? अनमने भाव से उसने लक्ष्मीजी को अपने घर आने का निमंत्रण तो दे दिया किंतु वह उदास हो गई। साहूकार ने जब पूछा तो बेटी ने कहा कि लक्ष्मीजी की तुलना में हमारे यहां तो कुछ भी नहीं है। मैं उनकी खातिरदारी कैसे करूंगी? साहूकार ने कहा कि हमारे पास जो है, हम उसी से उनकी सेवा करेंगे। फिर बेटी ने चौका लगाया और चौमुख दीपक जलाकर लक्ष्मीजी का नाम लेती हुई बैठ गई। तभी एक चील नौलखा हार लेकर वहां डाल गया। उसे बेचकर बेटी ने सोने का थाल, शाल दुशाला और अनेक प्रकार के व्यंजनों की तैयारी की और लक्ष्मीजी के लिए सोने की चौकी भी लेकर आई। थोड़ी देर के बाद लक्ष्मीजी गणेशजी के साथ पधारीं और उसकी सेवा से प्रसन्न होकर सब प्रकार की समृद्धि प्रदान की। अत: जो मनुष्य महानंदा नवमी के दिन यह व्रत रखकर श्री लक्ष्मी देवी का पूजन-अर्चन करता है उनके घर स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है तथा दरिद्रता से मुक्ति मिलती है तथा दुर्भाग्य दूर होता है। महानवमी पर ऐसे करें पूजा पंडितों के अनुसार महानंदा व्रत के दिन पूजा करने का खास विधान है। महानंदा नवमी से कुछ दिन पहले घर की साफ-सफाई करें। नवमी के दिन पूजाघर के बीच में बड़ा दीपक जलाएं और रात भर जगे रहें। महानंदा नवमी के दिन ऊं हीं महालक्ष्म्यै नमः का जाप करें। रात्रि जागरण कर ऊं ह्रीं महालक्ष्म्यै नमः का जाप करते रहें। जाप के बाद रात में पूजा कर पारण करना चाहिए। साथ ही नवमी के दिन कुंवारी कन्याओं को भोजन करा कुछ दान दें फिर उनसे आर्शीवाद मांगें। आर्शीवाद आपके लिए बहुत शुभ होगा। महानंदा नवमी के दिन करें उपाय महानंदा नवमी के दिन श्री की देवी लक्ष्मी जी की विधि-विधान से व्रत-पूजन तथा मंत्र का जाप करने से दारिद्रय या गरीबी दूर होकर जीवन में संपन्नता आती है। महानंदा व्रत करने से घर सुख-समृद्धि आती है, धन की कमी दूर होती है तथा धीरे-धीरे संकटों से मुक्ति मिलती है। इस दिन कुंवारी या छोटी कन्याओं का पूजन उनके, कन्या भोज के पश्चात उनके चरण छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए, यह बहुत ही शुभ माना गया है। इस दिन अलक्ष्मी का विसर्जन किया जाता है, अर्थात् सुबह जल्दी उठकर घर का कूड़ा-कचरा इकट्ठा करके सूपे में भरकर घर के बाहर करना चाहिए तथा स्नानादि के उपरांत श्री महालक्ष्मी का आवाह्न-पूजन करना चाहिए। नवमी के दिन 'देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥' मंत्र का 108 मखानों द्वारा हवन करने से सुख-सौभाग्य, आरोग्य, सुंदरता तथा चारों दिशाओं से सफलता प्राप्त हती है। एक अच्छी पत्नी की तलाश कर रहे विवाह योग्य जातकों को नवमी के दिन दुर्गा सप्तशती के खास मंत्र- 'पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम् तारिणींदुर्गसं सारसागरस्य कुलोद्भवाम्।।' का जाप 21 बार करना चाहिए। महानंदा नवमी के दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। शत्रु से छुटकारा पाने के लिए, मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।' से धान के लावा यानी धान को भूनकर उससे हवन करें। आर्थिक रूप से संपन्नता पाने के लिए नवमी के दिन सिद्धकुंजिका स्रोत का पाठ करें, कन्या भोज करें तथा कुछ न कुछ भेंट देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें। - प्रज्ञा पाण्डेय
हिंदू पंचांग के मुताबिक हर साल माघ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर ज्ञान, संगीत, विद्या और कला की देवी मां सरस्वती की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक इस दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था। बताया जाता है कि बसंत पंचमी के मौके पर मां सरस्वती हाथ में वीणा, पुस्तक और माला लिए श्वेत कमल के पुष्प पर विराजमान होकर प्रकट हुई थीं। इसलिए इस दिन मां सरस्वती की विशेष तौर पर पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन से ही बसंत ऋतु की शुरूआत होती है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से मां लक्ष्मी और मां काली प्रसन्न होती है। आइए जानते हैं इस दिन यानी की बसंत पंचमी की तिथि, पूजा मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में... बसंत पंचमी की तिथि माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि की शुरूआत 13 फरवरी 2024 को 02:41 मिनट से हो रही है। फिर अगले दिन 14 फरवरी को 12:09 मिनट पर इस तिथि का समापन होगा। उदयातिथि के कारण इस बार 14 फरवरी 2024 को बसंत पंचमी का पर्व मनाया जा रहा है। पूजा का शुभ मुहूर्त इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07:01 मिनट से दोपहर 12:35 मिनट तक रहेगा। इस दौरान पूजा के लिए 5 घंटे 35 मिनट का समय है। पूजन विधि इस दिन सुबह जल्दी स्नान आदि पर पीले या सफेद रंग के वस्त्र धारण करें और फिर मां सरस्वती की पूजा का संकल्प लें। पूजा स्थान पर मां सरस्वती की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद मां सरस्वती को गंगाजल से स्नान करवाकर उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं। फिर मां सरस्वती को अक्षत, फूल, सफेद चंदन, पीली रोली, धूप, दीप और गंध आदि अर्पित करें। इसके बाद पीले रंग की मिठाई अर्पित करें। विधि-विधान से पूजा करने हुए सरस्वती वंदना और मंत्रों का जाप करें। वहीं हवन के दौरान सरस्वती कवच का पाठ करें। 'ओम श्री सरस्वत्यै नमः: स्वहा; मंत्र की एक माला का जाप करते हुए हवन संपन्न करें। आखिरी में मां सरस्वती की आरती करते हुए पूजा में हुई भूलचूक के लिए क्षमायाचना करें।
Basant Panchami 2024: राग रंग और उत्सव का पर्व है बसन्त पंचमी
भारत में पतझड़ ऋतु के बाद बसन्त ऋतु का आगमन होता है। हर तरफ रंग-बिरंगें फूल खिले दिखाई देते हैं। इस समय गेहूं की बालियां भी पक कर लहराने लगती हैं। जिन्हें देखकर किसान हर्षित होते हैं। चारों ओर सुहाना मौसम मन को प्रसन्नता से भर देता है। इसीलिये वसन्त ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा अर्थात ऋतुराज कहा गया है। इस दिन भगवान विष्णु, कामदेव तथा रति की पूजा की जाती है। इस दिन ब्रह्माण्ड के रचयिता ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी की रचना की थी। इसलिए इस दिन देवी सरस्वती की पूजा भी की जाती है। वसंत शब्द का अर्थ है बसंत और पंचमी का पांचवें दिन। इसलिये माघ महीने में जब वसंत ऋतु का आगमन होता है तो इस महीने के पांचवे दिन यानी पंचमी को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। बसन्त उत्तर भारत तथा समीपवर्ती देशों की छह ऋतुओं में से एक ऋतु है। जो फरवरी मार्च और अप्रैल के मध्य इस क्षेत्र में अपना सौंदर्य बिखेरती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सरस्वती जिन्हें विद्या, संगीत और कला की देवी कहा जाता है। है। उनका अवतरण इसी दिन हुआ था और यही कारण है कि भक्त इस शुभ दिन पर ज्ञान प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा करते हैं। साथ ही इसे सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इसे भी पढ़ें: Maa Saraswati Puja: मां सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए इस विधि से करें पूजा, ज्ञान में होगी वृद्धि सभी शुभ कार्यों के लिए बसन्त पंचमी के दिन अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। बसन्त पंचमी को अत्यंत शुभ मुहूर्त मानने के पीछे अनेक कारण हैं। यह पर्व अधिकतर माघ मास में ही पड़ता है। माघ मास का भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस माह में पवित्र तीर्थों में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। दूसरे इस समय सूर्यदेव भी उत्तरायण होते हैं। इसलिए प्राचीन काल से बसन्त पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है अथवा कह सकते हैं कि इस दिन को सरस्वती के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाता है। बसन्त पंचमी का दिन सरस्वती जी की साधना को अर्पित ज्ञान का महापर्व है। शास्त्रों में भगवती सरस्वती की आराधना व्यक्तिगत रूप में करने का विधान है। किंतु आजकल सार्वजनिक पूजा-पाण्डालों में देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर पूजा करने का रिवाज चल पड़ा है। मां सरस्वती का प्रिय रंग पीला है। इसलिए उनकी मूर्तियों को पीले वस्त्र, फूल पहनाए जाते हैं। देश में लोग बसंत पंचमी पर पीले कपड़े पहन कर विद्या की देवी मा सरस्वती कि वंदना मंत्र का उच्चारण कर उनकी पूजा करते हैं। या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता। या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥ या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता। सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥ माना गया है कि माघ महीने की शुक्ल पंचमी से बसन्त ऋतु का आरंभ होता है। फाल्गुन और चैत्र मास बसन्त ऋतु के माने गए हैं। फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला। इस प्रकार हिंदू पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ बसन्त में ही होता है। इस ऋतु के आने पर सर्दी कम हो जाती है। मौसम सुहावना हो जाता है। पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं। सरसों के फूलों से भरे खेत पीले दिखाई देते हैं। अतः राग रंग और उत्सव मनाने के लिए यह ऋतु सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। ग्रंथों के अनुसार देवी सरस्वती विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्विनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघमास की पंचमी तिथि निर्धारित की गयी है। बसन्त पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है। ऋग्वेद में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन है। मां सरस्वती विद्या व ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं। कहते हैं जिनकी जिव्हा पर सरस्वती देवी का वास होता है। वे अत्यंत ही विद्वान व कुशाग्र बुद्धि होते हैं। बसन्त पंचमी का दिन भारतीय मौसम विज्ञान के अनुसार समशीतोष्ण वातावरण के प्रारंभ होने का संकेत है। मकर सक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण प्रस्थान के बाद शरद ऋतु की समाप्ति होती है। हालांकि विश्व में बदलते मौसम ने मौसम चक्र को बिगाड़ दिया है। पर सूर्य के अनुसार होने वाले परिवर्तनों का उस पर कोई प्रभाव नहीं है। हमारी संस्कृति के अनुसार पर्वों का विभाजन मौसम के अनुसार ही होता है। इन पर्वो पर मन में उत्पन्न होने वाला उत्साह स्वप्रेरित होता है। सर्दी के बाद गर्मी और उसके बाद बरसात फिर सर्दी का बदलता क्रम देह में बदलाव के साथ ही प्रसन्नता प्रदान करता है। चूंकि बसन्त पंचमी का पर्व इतने शुभ समय में पड़ता है। अतः इस पर्व का स्वतः ही आध्यात्मिक, धार्मिक, वैदिक आदि सभी दृष्टियों से अति विशिष्ट महत्व परिलक्षित होता है। प्राचीन कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी ने विष्णु जी के कहने पर सृष्टि की रचना की थी। एक दिन वह अपनी बनाई हुई सृष्टि को देखने के लिए धरती पर भ्रमण करने के लिए आए। ब्रह्मा जी को अपनी बनाई सृष्टि में कुछ कमी का अहसास हो रहा था। लेकिन वह समझ नहीं पा रहे थे कि किस बात की कमी है। उन्हें पशु-पक्षी, मनुष्य तथा पेड़-पौधे सभी चुप दिखाई दे रहे थे। तब उन्हें आभास हुआ कि क्या कमी है। वह सोचने लगे कि एसा क्या किया जाए कि सभी बोले और खुशी में झूमे। ऐसा विचार करते हुए ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल से जल लेकर कमल पुष्पों तथा धरती पर छिडका। जल छिडकने के बाद श्वेत वस्त्र धारण किए हुए एक देवी प्रकट हुई। इस देवी के चार हाथ थे। एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में कमल, तीसरे हाथ में माला तथा चतुर्थ हाथ में पुस्तक थी। ब्रह्मा जी ने देवी को वरदान दिया कि तुम सभी प्राणियों के कण्ठ में निवास करोगी। सभी के अंदर चेतना भरोगी, जिस भी प्राणी में तुम्हारा वास होगा वह अपनी विद्वता के बल पर समाज में पूज्यनीय होगा। ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम्हें संसार में देवी सरस्वती के नाम से जाना जाएगा। कडकड़ाती ठंड के बाद बसंत ऋतु में प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। पलाश के लाल फूल, आम के पेड़ों पर आए बौर, हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को सुहाना बना देती है। यह ऋतु सेहत की दृष्टि से भी बहुत अच्छी मानी जाती है। मनुष्यों के साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। देश के कई स्थानो पर पवित्र नदियों के तट और तीर्थ स्थानों पर बसंत मेला भी लगता है। राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में तो बसंत पंचमी के दिन से ही लोग समूह में एकत्रित होकर रात में चंग ढफ बजाकर धमाल गाकर होली के पर्व का शुभारम्भ करते है। बसन्त पंचमी के दिन विद्यालयों में भी देवी सरस्वती की आराधना की जाती है। भारत के पूर्वी प्रांतों में घरों में भी विद्या की देवी सरस्वती की मूर्ति की स्थापना की जाती है और वसन्त पंचमी के दिन उनकी पूजा की जाती है। उसके बाद अगले दिन मूर्ति को नदी, तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। देवी सरस्वती को ज्ञान, कला, बुद्धि, गायन-वादन की अधिष्ठात्री माना जाता है। इसलिए इस दिन विद्यार्थी, लेखक और कलाकार देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। विद्यार्थी अपनी किताबें, लेखक अपनी कलम और कलाकार अपने संगीत उपकरणो और बाकी चीजें मां सरस्वती के सामने रखकर पूजा करते हैं। रमेश सर्राफ धमोरा (लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
कांतारा के फैंस हो जाओ खुश!...दिल्ली में करें पंजुरली देव के दर्शन; जानें कैसे
Kantara Movie: पंजुरली एक देवता हैं, जिनके रूप को कांतारा फिल्म में दिखाया गया है. इस फिल्म में दिखाए गए दैव पंजुरली का असली स्वरूप भगवान विष्णु के श्री वराह अवतार में हैं.
Magh Gupt Navratri 2024: इस साल 10 फरवरी से शुरू हुई माघ गुप्त नवरात्रि, जानिए घटस्थापना का मुहूर्त
हिंदू धर्म में नवरात्रि सबसे पवित्र पर्व माना जाता है। आपको बता दें कि धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक कुल 4 नवरात्रि होती हैं। जिनमें चैत्र नवरात्रि, शारदीय नवरात्रि और दो गुप्त नवरात्रि होती हैं। एक गुप्त नवरात्रि माह महीने में और दूसरी गुप्त नवरात्रि आषाढ़ महीने में पड़ती है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि में धूमधाम से मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। वहीं गुप्त नवरात्रि में मां काली और दस महाविद्याओं की गुप्त रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। माघ प्रतिपता से लेकर नवमी तिथि तक मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। गुप्त नवरात्रि का तंत्र-मंत्र की विद्या और साधना के लिए विशेष महत्व होता है। ऐसे में आज इस अआर्टिकल के जरिए हम आपको माघ गुप्त नवरात्रि के घटस्थापना का शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं। इसे भी पढ़ें: Mauni Amavasya 2024: मौनी अमावस्या पर स्नान-दान का होता है अधिक महत्व, जानिए महत्व और शुभ मुहूर्त माघ नवरात्रि 2024 माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तक गुप्त नवरात्रि होती है। इस दौरान मां दुर्गा के 10 स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। इस बार माघ गुप्त नवरात्रि की शुरूआत 10 फरवरी 2024 से हो रही है। वहीं इसकी समाप्ति 18 फरवरी 2024 को होगी। घटस्थापना मुहूर्त माघ गुप्त नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि की शुरूआत- 10 फरवरी 2024 दिन शनिवार सुबह 04:28 मिनट से 11 फरवरी को रात 12:47 मिनट तक घटस्थापना की शुभ मुहूर्त- 10 फरवरी 2024 दिन शनिवार की सुबह 08:45 मिनट से लेकर 10:10 मिनट तक। इस दौरान घटस्थापना का शुभ मुहूर्त सिर्फ 1 घंटा 25 मिनट है। 10 महाविद्याओं की होती है साधना मां काली मां तारा मां त्रिपुर सुंदरी मां भुवनेश्वरी मां छिन्नमस्ता मां त्रिपुर भैरवी मां धूमावती मां बगलामुखी मां मातंगी मां कमला गुप्त नवरात्रि का महत्व माघ मास की गुप्त नवरात्रि में माता रानी की गुप्त रूप से पूजा की जाती है। बता दें कि सिद्धि पाने के लिए साधक, अघोरी और तांत्रिक आदि तंत्र-मंत्र कर गुप्ता साधना करते हैं। वहीं सामान्य लोग भी मां दुर्गा की गुप्त आराधना कर सारी समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं। बताया जाता है कि गुप्त नवरात्रि में पूजा, अनुष्ठान और व्रत को गुप्त रखना चाहिए। साथ ही जो पूजा-आराधना आप करते हैं, उसको किसी के साथ साझा नहीं करना चाहिए। क्योंकि पूजा जितनी गुप्त होगी, आपकी मनोकामना भी उतनी जल्दी पूरी होगी।
Mauni Amavasya 2024: मौनी अमावस्या पर स्नान-दान का होता है अधिक महत्व, जानिए महत्व और शुभ मुहूर्त
माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी या माघी अमावस्या कहा जाता है। मौनी अमावस्या के दिन लोग पवित्र नदी में स्नान करते हैं। वहीं धार्मिक मान्यता के अनुसार, इन दिन लोग मौन रहकर स्नान-दान करते हैं। साथ ही हिंदू धर्म में मौनी अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। मौनी अमावस्या के मौके पर पवित्र नदीं में स्नान के बाद दान करने से शुभ फल प्राप्त होता है। बता दें कि इस दिन दान-पुण्य करने से व्यक्ति को हजारों गुणा पुण्य प्राप्त होता है। साथ ही दान-पुण्य से ग्रह दोष का प्रभाव भी कम होता है। इसे भी पढ़ें: Til Dwadashi 2024: तिल द्वादशी व्रत से प्राप्त होती है सुख समृद्धि इसके साथ ही इस दिन दूध और तिल से सूर्य देव को अर्घ्य देना विशेष लाभकारी माना जाता है। इस साल 9 फरवरी 2024 को मौनी अमावस्या मनाई जा रहे हैं। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको मौनी अमावस्या के शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं। मौनी अमावस्या हिंदू पंचांग के मुताबिक हर साल माघ माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मौनी अमावस्या मनाई जाती है। इस बार 09 फरवरी 2024 को मौनी अमावस्या मनाई जा रही है। 09 फरवरी को सुबह 08:02 मिनट पर अमावस्या तिथि की शुरूआत हुई और फिर अगले दिन 10 तारीख को सुबह 04:28 मिनट पर यह तिथि समाप्त होगी। ऐसे में 09 फरवरी 2024 को मौनी अमावस्या मनाई जा रही है। मौनी अमावस्या का महत्व मौनी अमावस्या तिथि को सभी अमावस्या तिथियों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। बता दें कि इन दिन मौन रहना काफी शुभ माना जाता है। इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। वहीं अगर आप नदी में स्नान नहीं कर सकते हैं, तो घर में नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। इसके साथ ही इस दिन तिल, तिल का तेल, तिल के लड्डू, वस्त्र और आंवला दान देना शुभ माना जाता है। साथ ही इस दिन पितरों को अर्घ्य देना और पितृ तृर्पण करना भी बेहद शुभ माना जाता है। मौनी अमावस्या पर करें ये उपाय धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक मौनी अमावस्या के दिन 11 लौंग और कपूर से हवन करना चाहिए। इसके बाद कनकधारा स्त्रोत का पाठ कर मां लक्ष्मी की आराधना करें। इससे आर्थिक समस्या दूर होने के साथ उधार दिया पैसा भी जल्द मिल सकता है। वहीं मौनी अमावस्या की रात 5 गुलाब और 5 जलते हुए दीए किसी नदी में प्रवाहित कर सकते हैं। इस उपाय को करने से मां लक्ष्मी आप पर मेहरबान रहेंगी।
Shattila Ekadashi 2024: 06 फरवरी को मनाई जा रही है षटतिला एकादशी, जानिए महत्व और पौराणिक कथा
हिंदू धर्म में माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को हर साल षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक इस साल 6 फरवरी को षटतिला एकादशी का व्रत किया जा रहा है। बता दें कि 05 फरवरी को शाम 05:24 मिनट पर एकादशी तिथि की शुरूआत हुई, तो वहीं 06 फरवरी को शाम 04:07 मिनट पर यह तिथि समाप्त हो जाएगी। वहीं उदयातिथि के मुताबिक 06 फरवरी को षटतिला एकादशी का व्रत किया जा रहा है। मान्यता के मुताबिक षटतिला एकादशी का व्रत करने वाले जातक को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। षटतिला एकादशी का महत्व धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकदशी व्रत का महत्व बताते हुए कहा कि माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को 'षटतिला' या 'पापहारिणी' कहा जाता है। इस एकादशी का व्रत करने से जातक के सभी पापों का नाश हो जाता है। इस दिन तिल से बने व्यंजन या तिल से भरा पात्र दान करने से सभी पापों का नाश होने के साथ ही अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। बताया जाता है कि तिल को बोने से उसमें जितनी शाखाएं पैदा होती हैं, उतने ही हजार वर्षों तक व्यक्ति स्वर्गलोक में स्थान पाता है। षटतिला एकादशी का व्रत करने से जातक आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है और वह सभी तरह के पापों से मुक्त हो जाता है। इस एकादशी पर दान करने से व्यक्ति को कन्यादाव व हजारों वर्षों की तपस्या के जितना फल प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। जानिए पौराणिक कथा प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक विधवा ब्राह्मणी रहा करती थी। विधवा ब्राह्मणी को भगवान श्रीहरि विष्णु पर अटूट श्रद्धा और विश्वास था। वह ब्राह्मणी पूरे भक्तिभाव से भगवान विष्णु के सभी व्रत और पूजा-पाठ किया करती थी। लेकिन उसने कभी किसी को अन्न दान नहीं दिया था। एक दिन श्रीहरि विष्णु ब्राह्मणी के कल्याण के लिए उसकी परीक्षा लेने पृथ्वी पर पहुंचे और उससे भिक्षा मांगने लगे। तब ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु के रूप में आए भिछुक को मिट्टी का एक पिंड उठाकर दे दिया। इस पिंड को उठाकर श्रीहरि अपने धाम बैकुंठ को वापस आ गए। कुछ समय बाद जब विधवा ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई और वह बैकुंठ पहुंची, तो उसको कुटिया में एक आम का पेड़ मिला। इस खाली कुटिया को देख ब्राह्मणी ने श्रीहरि से पूछा कि उसने सारी जिंदगी पूजा-पाठ किया, धर्मपरायणता का पालन किया, तो फिर उसको खाली कुटिया क्यों मिली। तब श्रीहरि विष्णु ने विधवा ब्राह्मणी को जवाब दिया कि उसने अपने पूरे जीवन में कभी अन्नदान नहीं किया। इसलिए बैकुंठ में होते हुए भी उसको खाली कुटिया प्राप्त हुई। भगवान श्रीहरि विष्णु की बात सुन विधवा ब्राह्मणी को अपनी गलती का एहसास हुआ और फिर उसने इसका उपाय पूछा। तब भगवान विष्णु ने बताया कि जब भी देव कन्याएं ब्राह्मणी से मिलने आएं, तो द्वार तभी खोलें जब वह षटतिला एकादशी के व्रत का विधान बताएं। इसके बाद विधवा ब्राह्मणी ने ऐसा ही किया और देव कन्याओं के बताए मुताबिक षटतिला एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से विधवा ब्राह्मणी की खाली कुटिया अन्न और धन से भर गई। इस कारण षटतिला एकादशी के दिन अन्न दान का महत्व माना जाता है।
Magh Gupt Navratri 2024: 10 फरवरी से शुरू होगी माघ गुप्त नवरात्रि
हिंदू धर्म में का विशेष महत्व है। नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में शक्ति की साधना की जाती है। हिंदू धर्म के कैलेंडर के अनुसार साल में चार बार नवरात्रि का पर्व होता है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि पड़ती है। पंचांग के अनुसार पहली गुप्त नवरात्रि माघ मास में और दूसरी आषाढ़ मास में पड़ती है। गुप्त नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों के अलावा मां भगवती दुर्गा के दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा.अनीष व्यास ने बताया कि माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक गुप्त नवरात्रि मनाई जाती है। पंचाग के अनुसार इस साल माघ गुप्त नवरात्रि की शुरुआत शनिवार 10 फरवरी 2024 से हो रही है। वहीं इसका समापन रविवार 18 फरवरी 2024 को होगा। गुप्त नवरात्रि 10 फरवरी से 18 फरवरी तक पूरे 9 दिन रहेगी। गुप्त नवरात्रि माघ महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तक चलती है। मां दुर्गा को उपासक 9 दिन तक गुप्त तरीके से शक्ति साधना व तंत्र सिद्धि करते हैं। गुप्त नवरात्रि को गुप्त साधना और विद्याओं की सिद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। पूरे वर्ष में चार नवरात्रि होती हैं, जिसमें दो गुप्त नवरात्रि और दो प्रकट नवरात्रि होती हैं। माघ और आषाढ़ माह में गुप्त नवरात्रि होती हैं और प्रकट नवरात्रि में चैत्र नवरात्रि तथा आश्विन माह की शारदीय नवरात्रि होती है। देवी भागवत महापुराण में मां दुर्गा की पूजा के लिए इन चार नवरात्रियों का उल्लेख है। माघ गुप्त नवरात्रि प्रारंभ ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक गुप्त नवरात्रि मनाई जाती है। पंचाग के अनुसार इस साल माघ गुप्त नवरात्रि की शुरुआत शनिवार 10 फरवरी 2024 से हो रही है। वहीं इसका समापन रविवार 18 फरवरी 2024 को होगा। गुप्त नवरात्रि 10 फरवरी से 18 फरवरी तक पूरे 9 दिन रहेगी। गुप्त नवरात्रि माघ महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तक चलती है। इसे भी पढ़ें: Pradosh Fast: प्रदोष काल में इस तरह करें भगवान शिव की पूजा, जानिए महत्व और पूजन विधि माघ गुप्त नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त - माघ गुप्त नवरात्रि प्रतिपदा तिथि- 10 फरवरी 2024 की सुबह 04:28 मिनट से 11 फरवरी की रात्रि 12:47 मिनट तक। - घटस्थापना शुभ मुहूर्त- 10 फरवरी 2024 की सुबह 08:45 मिनट से लेकर सुबह 10:10 मिनट तक (कुल अवधि 1 घंटा 25 मिनट)। गुप्त नवरात्रि में साधना कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि प्रत्यक्ष नवरात्रि में मां भगवती की पूजा जहां माता के ममत्व के रूप में की जाती है तो वहीं गुप्त नवरात्रि में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा शक्ति रूप में की जाती है। मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि में देवी साधना किसी को बता कर नहीं की जाती है। इसलिए इन दिनों को नाम ही गुप्त दिया गया है। गुप्त नवरात्रि के दौरान नौ दिनों तक गुप्त अनुष्ठान किये जाते हैं। इन दिनों देवी दुर्गा के दस रूपों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इन नवरात्रि में देवी साधना से शीघ्र प्रसन्न् होती हैं और मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। जितनी अधिक गोपनीयता इस साधना की होगी उसका फल भी उतनी ही जल्दी मिलेगा। देवी के मां कालिके, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी देवी, भुनेश्वरी देवी, मां धूम्रावती, बगलामुखी माता, मातंगी माता और देवी कमला की गुप्त नवरात्रि में पूजा की जाती है। मंत्र जाप, श्री दुर्गा सप्तशती, हवन के द्वारा इन दिनों देवी साधना करते हैं। यदि आप हवन आदि कर्मकांड करने में असहज हों तो नौ दिन का किसी भी तरह का संकल्प जैसे सवा लाख मंत्रों का जाप कर अनुष्ठान कर सकते हैं। या फिर राम रक्षा स्त्रोत, देवी भागवत आदि का नौ दिन का संकल्प लेकर पाठ कर सकते हैं। अखंड जोत जलाकर साधना करने से माता प्रसन्न होती हैं। मां दुर्गा के इन स्वरूपों की होती है पूजा भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि मां कालिके, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता चित्रमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां धूम्रवती, माता बगलामुखी, मातंगी, कमला देवी। सामग्री भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि मां दुर्गा की प्रतिमा या चित्र, सिंदूर, केसर, कपूर, जौ, धूप,वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, सुगंधित तेल, बंदनवार आम के पत्तों का, लाल पुष्प, दूर्वा, मेंहदी, बिंदी, सुपारी साबुत, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, पटरा, आसन, चौकी, रोली, मौली, पुष्पहार, बेलपत्र, कमलगट्टा, जौ, बंदनवार, दीपक, दीपबत्ती, नैवेद्य, मधु, शक्कर, पंचमेवा, जायफल, जावित्री, नारियल, आसन, रेत, मिट्टी, पान, लौंग, इलायची, कलश मिट्टी या पीतल का, हवन सामग्री, पूजन के लिए थाली, श्वेत वस्त्र, दूध, दही, ऋतुफल, सरसों सफेद और पीली, गंगाजल आदि। मां दुर्गा की ऐसे करें पूजा भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि गुप्त नवरात्रि के दौरान तांत्रिक और अघोरी मां दुर्गा की आधी रात में पूजा करते हैं। मां दुर्गा की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित कर लाल रंग का सिंदूर और सुनहरे गोटे वाली चुनरी अर्पित की जाती है। इसके बाद मां के चरणों में पूजा सामग्री को अर्पित किया जाता है। मां दुर्गा को लाल पुष्प चढ़ाना शुभ माना जाता है। सरसों के तेल से दीपक जलाकर 'ॐ दुं दुर्गायै नमः' मंत्र का जाप करना चाहिए। - डा. अनीष व्यास भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक
25 लोगों की जान बचाने वाले आरक्षी नरेश जोशी को 'जीवन रक्षा पदक' सम्मान
देहरादून, 30 जनवरी (आईएएनएस)। उत्तराखंड पुलिस के एक जवान नरेश जोशी ने पूरे प्रदेश का मान बढ़ा दिया है। जोशी ने अपनी जान की परवाह किए बिना अदम्य साहस का परिचय देते हुए 25 जिंदगियों को बचाया था। नरेश जोशी के इस साहस और वीरता को देखते हुए महामहिम राष्ट्रपति द्वारा उन्हें जीवन रक्षा पदक प्रदान किये जाने की घोषणा की गयी है।
इस बार 29 जनवरी 2024 को संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जा रहा है। हिंदू धर्म में इसको एक महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। संकष्टी चतुर्थी को संकटा चौथ और तिलकूट चतुर्थी आदि नामों से भी जाना जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सकट चौथ का पर्व मनाया जाता है। आपको बता दें कि संतान को मुसीबतों और आपदाओं से बचाने के लिए सकट चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की और चंद्र देव की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। तो आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी के व्रत का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि के बारे में... इसे भी पढ़ें: Lambodara Sankashti Chaturthi 2024: लंबोदर संकष्टी चतुर्थी पर इस तरह करें भगवान श्रीगणेश की पूजा, मिलेगा दोगुना फल संकष्टी चतुर्थी का महत्व पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान गणेश ने माता पार्वती और भगवान शिव की माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को परिक्रमा की थी। वहीं संतान के लिए इस व्रत को काफी फलदायी माना जाता है। संतान की दीर्घायु के लिए माताएं यह व्रत करती हैं। इस व्रत को करने से संतान का रोग, नकारात्मकता और तनाव आदि दूर होता है। संकष्टी चतुर्थी का पूजा मुहूर्त संकष्टी चतुर्थी तिथि- 29 जनवरी 2024 सोमवार संकष्टी चतुर्थी की शुरूआत- 29 जनवरी को सुबह 06:10 मिनट से संकष्टी चतुर्थी तिथि की समाप्ति- 30 जनवरी को सुबह 08:55 मिनट पर संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि सकट चौथ के दिन सुबह जल्दी स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण करें। इस दिन व्रत करने वाली महिलाओं को लाल या पीले रंग के कपड़े पहनने चाहिए। पूजा के लिए साफ आसन बिछाएं और फिर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। वहीं पूजा की चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं। फिर इस चौकी पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। अब भगवान गणेश का हल्की व कुमकुम से तिलक करें। इसके माला, मौली, रोली, फूल, 21 दुर्वा, अक्षत, पंचामृत, फल और मोदक का भोग लगाएं। आखिरी में धूप-दीप जलाकर भगवान श्रीगणेश की आरती करें। वहीं रात में चंद्रोदय के बाद चंद्र देव को दूध और जल से अर्घ्य देकर पूजा करें।
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है। हर महीने में 2 और पूरे साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं। वहीं साल में 2 दो बार पुत्रदा एकादशी का व्रत किया जाता है। बता दें कि एकादशी का व्रत भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होता है। इस बार आज यानी की 21 जनवरी 2024 को पुत्रदा एकादशी का व्रत किया जा रहा है। पुत्रदा एकादशी के दिन कुछ विशेष योग का निर्माण हो रहा है। तो आइए जानते हैं पुत्रदा एकादशी का महत्व और शुभ मुहूर्त के बारे में... पुत्रदा एकादशी व्रत आपको बता दें कि साल में 2 बार पड़ने वाली पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व होता है। जिसमें पहली पुत्रदा एकादशी का व्रत सावन माह में किया जाता है और दूसरा पुत्रदा एकादशी का व्रत पौष माह में किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो भी व्यक्ति पुत्रदा एकादशी का व्रत करता है, उसको अग्निष्टोम यज्ञ के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। जो जातक संतान प्राप्ति की कामना रखते हैं, उनको पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। इसे भी पढ़ें: Paush Durga Ashtami 2024: पौष दुर्गाष्टमी व्रत से होती हैं मनोकामनाएं पूरी पुत्रदा एकादशी तिथि पुत्रदा एकादशी तिथि 20 जनवरी को 07:26 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 21 जनवरी को शाम 07:26 मिनट तक रहेगी। वहीं उदयातिथि के मुताबिक 20 जनवरी 2024 को पुत्रदा एकादशी का व्रत किया जा रहा है। शुभ योग सर्वार्थ सिद्धि योग- सुबह 03:09 मिनट से सुबह 07:14 मिनट तक ब्रह्म योग- सुबह 10:22 मिनट से 22 जनवरी को सुबह 08:47 मिनट तक अमृत सिद्धि योग- सुबह 03:09 मिनट से सुबह 07:14 मिनट तक पुत्रदा एकादशी का महत्व भगवान विष्णु को समर्पित पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति व संतान की सलामती के लिए रखा जाता है। जिन दंपति को संतान की प्राप्ति नहीं होती, यदि वह पुत्रदा एकादशी का व्रत सच्चे मन से करते हैं और विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं। उनको जल्द ही संतान की प्राप्ति होती है। वहीं इस व्रत को करने से जीवन में आने वाली सभी परेशानियां दूर होती हैं। ऐसे करें पूजा इस समस्त त्रिलोक में एकादशी की तिथि से बढ़कर अन्य कोई तिथि नहीं है। इस दिन श्रीहरि विष्णु की पूजा करनी चाहिए। सबसे पहले स्नान आदि कर एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करें। इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को पीले चन्दन, अक्षत, पीले पुष्प, रोली, मोली, ऋतुफल, मिष्ठान आदि अर्पित करें। इसके बाद आरती करें और दीप दान करें। वहीं पूजा में हुई भूलचूक के लिए क्षमा मांगे। एकादशी का व्रत करने वाले जातकों को 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:' मंत्र का जाप करना चाहिए। वहीं जो दंपति संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, उनको पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। साथ ही संतान गोपाल मंत्र का जाप करना चाहिए। फिर अगले दिन यानी की द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए।
Makar Sankranti 2024: मकर संक्रांति पर इस तरह करें सूर्यदेव की आराधना, 77 साल बाद बन रहे ये शुभ योग
सनातन धर्म में मकर संक्रांति को सूर्य देव की उपासना का महापर्व कहा जाता है। बता दें कि इस दिन से खरमास समाप्त हो जाता है। मकर संक्रांति के दिन से सूर्य देव अपने तेज के साथ चलना शुरू करते हैं। इस दिन से सूर्यदेव मकर राशि में प्रवेश करेंगे। आज यानी की 15 जनवरी को मकर संक्रांति का महापर्व मनाया जा रहा है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक इस पर्व के मौके पर सूर्यदेव अपने पुत्र शनि से मिलने आते हैं। सूर्य और शनि के संबंध से मकर संक्रांति का यह पर्व काफी अहम हो जाता है। इस दिन से ही शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। इसे भी पढ़ें: Pongal 2024: 15 से 18 जनवरी तक मनाया जाएगा पोंगल पर्व, जानिए महापर्व का महत्व और खासियत शुभ संयोग मकर संक्रांति के मौके पर करीब 77 सालों के बाद वरीयान योग और रवि योग का निर्माण हो रहा है। आपको बता दें कि इस दिन मंगल और बुध भी धनु राशि में प्रवेश करेंगे। 15 जनवरी 2024 को सुबह 02:54 मिनट पर सूर्यदेव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। मकर संक्रांति पुण्यकाल सुबह 07:15 मिनट से शाम 06:21 मिनट तक मकर संक्रांति महा पुण्यकाल सुबग 07:15 मिनट से सुबह 09:06 मिनट तक पूजा विधि आज यानी की 15 जनवरी 2024 को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन श्रद्धालु विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन सुबह जल्दी स्नान आदिकर साफ-सफाई कर लें। अगर संभव हो तो किसी पवित्र नदी में स्नान करें। या फिर स्नान के पानी में थोड़ा से गंगाजल मिला लें। मकर संक्रांति के दिन पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है। इसलिए पीले वस्त्र पहनकर ही सूर्यदेव को अर्घ्य दें। सूर्यदेव को जल अर्पित कर सूर्य चालीसा और आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। आखिरी में आरती करें और लोगों को दान करें। बता दें कि मकर संक्रांति के दिन दान-पुण्य का काफी महत्व माना जाता है।
Makar Sankranti 2024: विविध परम्पराओं के साथ हर्षोल्हास से मनाया जाता है मकर संक्रान्ति का पर्व
सूर्योपासना का सबसे बड़ा पर्व मकर संक्रान्ति भारत में विविध परम्पराओं के साथ हर्षोल्हास से मनाया जाता है। उत्तर भारत के राज्यों में पवित्र नदियों में स्नान कर तिल, गुड, खिचड़ी, उड़द, चावल, वस्त्र दान देने परंपरा है। तमिनाडु में पोंगल, असम में बिहू के रूप में, बिहार में खिचड़ी के रूप में मनाने की परम्पराएँ हैं। इस पर्व पर दान का विशेष महत्व है। नेपाल में भी इस पर्व को बड़े चाव से मनाया जाता है। वहां का थारु समुदाय का यह विशेष पर्व है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में आता है अतः कहीं-कहीँ इसे उत्तरायणी भी कहा जाता है। बताया जाता है इस दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चल कर कपिल मुनि के आश्रम से हो कर सागर में उनसे मिली थी एवम् भीष्म पितामह ने अपनी देह त्याग के लिए मकर संक्रांति के दिन का चयन किया था। पश्चिमी बंगाल में गंगा सागर स्नान का बड़ा महात्म्य है। परंपरा से प्रतिदिन सूर्य को जल से अर्घ्य देने की प्राचीन परंपरा निरन्तर चली आ रही हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव प्रत्यक्ष रूप से दर्शन देने वाले देवता हैं। वेदों में सूर्य का उल्लेख विश्व की आत्मा और ईश्वर के नेत्र के रूप में किया गया है। सूर्य की पूजा से जीवनशक्ति, मानसिक शांति, ऊर्जा और जीवन में सफलता की प्राप्ति होती हैं। यही वजह है कि लोग उगते हुए सूर्य को देखना शुभ मानते हैं और सूर्य को अर्घ्य देते हैं। मान्यता है कि रविवार के दिन सूर्य देव का व्रत रखने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी। भविष्य पुराण में ब्रह्मा विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण का महत्व समझाया गया है। अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है, कि ऋषि दुर्वासा के शाप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी। रामायण में भी इस बात का जिक्र है कि भगवान राम ने लंका के लिए सेतु निर्माण से पहले सूर्य देव की आराधना की थी। भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र सांब भी सूर्य की उपासना करके ही कुष्ठ रोग से मुक्ति पाई थी। वैदिक साहित्य के साथ-साथ आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है। आज तो सूर्य बिजली उत्पादन करने के विशाल श्रोत के रूप में देखा जा रहा है। समाज में जब मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो सूर्य की मूर्ति के रूप में पूजा प्रचलित हुई। इसी कारण भारत में सूर्य देव के कई प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर पाये जाते हैं। भारत के सूर्य मन्दिरों में उलार्क सूर्य मंदिर, कोणार्क सूर्य मंदिर, मोढ़ेरा सूर्य मंदिर, कटारमल सूर्य मन्दिर, रणकपुर सूर्य मंदिर, सूर्य पहर मंदिर, सूर्य मंदिर, प्रतापगढ़, दक्षिणार्क सूर्य मंदिर, औंगारी सूर्य मंदिर, बेलार्कसूर्य मंदिर, सूर्य मंदिर, हंडिया, सूर्य मंदिर, गया, सूर्य मंदिर, महोबा, रहली का सूर्य मंदिर, सूर्य मंदिर, झालरापाटन, सूर्य मंदिर, रांची, सूर्य मंदिर, जम्मू, मार्तंड मंदिर, कश्मीर एवं सूर्य मंदिर, कंदाहा आदि शामिल हैं। जानिए भारत के कुछ प्रमुख सूर्य मन्दिरों के बारे में ..... इसे भी पढ़ें: Makar Sankranti Festival 2024: गंगासागर में होता है गंगा का सागर से मिलन कोणार्क का सूर्य मंदिर ओडिशा में भुवनेश्वर के समीप कोणार्क का मंदिर न केवल अपनी वास्तुकलात्मक भव्यता के लिए बल्कि शिल्पकला की बारीकी के लिए प्रसिद्ध है। यह कलिंग वास्तुकला का उच्चतम बिन्दु है जो भव्यता, उल्लास और जीवन के सभी पक्षों का अनोखा ताल मेल प्रदर्शित करता है। इस मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत घोषित किया गया है और इसका निर्माण 1250 ई. में पूर्वी गंगा राजा नरसिंह देव प्रथम के कार्यकाल में किया गया था। इसमें कोणार्क सूर्य मंदिर के दोनों और 12 पहियों की दो कतारें है। इनके बारे में कुछ लोगों का मत है कि 24 पहिए एक दिन में 24 घण्टों का प्रतीक है, जबकि कुछ का कहना है कि ये 12 माह का प्रतीक हैं। यहां स्थित सात अश्व सप्ताह के सात दिन दर्शाते हैं। समुद्री यात्रा करने वाले लोग एक समय इसे ब्लैक पगोडा कहते थे, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह जहाजों को किनारे की ओर आकर्षित करता था और उनका नाश कर देता था। झालरापाटन का सूर्य मंदिर राजस्थान में झालरापाटन का सूर्य मंदिर यहाँ के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यह मंदिर अपनी प्राचीनता और स्थापत्य वैभव के कारण कोणार्क के सूर्य मंदिर और ग्वालियर के श्विवस्वान मंदिर का स्मरण कराता है। शिल्प सौन्दर्य की दृष्टि से मंदिर की बाहरी व भीतरी मूर्तियाँ वास्तुकला देखते ही बनती है । मंदिर का ऊर्घ्वमुखी कलात्मक अष्टदल कमल अत्यन्त सुन्दर जीवंत और आकर्षक है। शिखरों के कलश और गुम्बज अत्यन्त मनमोहक है। मंदिर का निर्माण नवीं सदी में हुआ था। यह मंदिर अपनी प्राचीनता और स्थापत्य वैभव के कारण प्रसिद्ध है। कर्नल जेम्स टॉड ने इस मंदिर को चार भूजा (चतुर्भज) मंदिर माना है। वर्तमान में मंदिर के गर्भग्रह में चतुर्भज नारायण की मूर्ति प्रतिष्ठित है। सूर्य मंदिर, मोढ़ेरा यह मंदिर अहमदाबाद से लगभग 102 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसे भारत के तीन प्रसिद्ध प्राचीनतम सूर्य मंदिरों में से एक माना गया है। इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि पूरे मंदिर के निर्माण में जुड़ाई के लिए कहीं भी चूने का उपयोग नहीं किया गया है। ईरानी शैली में निर्मित इस मंदिर को भीमदेव ने तीन हिस्सों में बनवाया था। पहला हिस्सा गर्भगृह, दूसरा सभामंडप और तीसरा सूर्य कुण्ड है। ये मंदिर गुजरात के मोढ़ेरा में स्थित है। मोढ़ेरा मेहसाना से 25 किमी. की दूरी पर है। लोहार्गल सूर्य मंदिर यह मंदिर राजस्थान के झुंझुनू जिले में स्थित है। यहां मंदिर के सामने एक प्राचीनतम पवित्र सूर्य कुण्ड बना हुआ है द्य मान्यता है की यहा स्नान के बाद ही पांडवो को ब्रहम हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। मार्तंड मंदिर प्रतिरूप दक्षिण कश्मीर के मार्तण्ड के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर के प्रतिरूप का सूर्य मंदिर जम्मू में भी बनाया गया है। मंदिर मुख्यत: तीन हिस्सों में बना है। पहले हिस्से में भगवान सूर्य रथ पर सवार हैं जिसे सात घोड़े खींच रहे हैं। दूसरे हिस्से में भगवान शिव का परिवार दुर्गा गणेश कार्तिकेय पार्वती और शिव की प्रतिमा है और तीसरे हिस्से में यज्ञशाला है। औंगारी सूर्य मंदिर नालंदा का प्रसिद्ध सूर्य धाम औंगारी और बडगांव के सूर्य मंदिर देश भर में प्रसिद्ध हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां के सूर्य तालाब में स्नान कर मंदिर में पूजा करने से कुष्ठ रोग सहित कई असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। प्रचलित मान्यताओं के कारण यहां छठ व्रत त्यौहार करने बिहार के कोने-कोने से ही नहीं, बल्कि देश भर के श्रद्धालु यहां आते हैं। लोग यहां तम्बू लगा कर सूर्य उपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ संपन्न करते हैं। कहते है कि भगवान कृष्ण के वंशज साम्ब कुष्ठ रोग से पीड़ित था। इसलिए उसने 12 जगहों पर भव्य सूर्य मन्दिर बनवाए थे और भगवान सूर्य की आराधना की थी। ऐसा कहा जाता है तब साम्ब को कुष्ठ से मुक्ति मिली थी। उन्ही 12 मन्दिरो मे औगारी एक है। उन्नाव का सूर्य मंदिर उन्नाव के सूर्य मंदिर का नाम बह्यन्य देव मन्दिर है। यह मध्य प्रदेश के उन्नाव में स्थित है। इस मन्दिर में भगवान सूर्य की पत्थर की मूर्ति है, जो एक ईंट से बने चबूतरे पर स्थित है। जिस पर काले धातु की परत चढी हुई है। साथ ही, साथ 21 कलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सूर्य के 21 त्रिभुजाकार प्रतीक मंदिर पर अवलंबित है। रणकपुर सूर्य मंदिर राजस्थान के रणकपुर नामक स्थान में अवस्थित यह सूर्य मंदिर, नागर शैली मे सफेद संगमरमर से बना है। भारतीय वास्तुकला का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता यह सूर्य मंदिर जैनियों के द्वारा बनवाया गया था जो उदयपुर से करीब 98 किलोमीटर दूर स्थित है। सूर्य मंदिर रांची रांची से 39 किलोमीटर की दूरी पर रांची टाटा रोड़ पर स्थित यह सूर्य मंदिर बुंडू के समीप है 7 संगमरमर से निर्मित इस मंदिर का निर्माण 18 पहियों और 7 घोड़ों के रथ पर विद्यमान भगवान सूर्य के रूप में किया गया है। 25 जनवरी को हर साल यहां विशेष मेले का आयोजन होता है। मार्तंड सूर्य मंदिर मार्तण्ड सूर्य मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य के अनंतनाग नगर में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। मार्तण्ड का यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। यहाँ पर सूर्य की पहली किरण के साथ ही मंदिर में पूजा अर्चना का दौर शुरू हो जाता है। मंदिर की उत्तरी दिशा में सुन्दर पर्वतमाला है। यह मंदिर विश्व के सुंदर मंदिरों की श्रेणी में भी अपना स्थान बनाए हुए है। बेलाउर सूर्य मंदिर यह मंदिर पश्चिभिमुख है। सूर्य पूजा का छठ पर्व पर हजारो श्रद्धालु इस सूर्य मंदिर में दर्शन करने दूर दूर से आते है। वे भगवान सूर्य को जल से अर्ध्य देते है। मंदिर में सात घोड़े वाले रथ पर सवार भगवान भास्कर की प्रतिमा ऐसी लगती है मानों वे साक्षात धरती पर उतर रहे हों। -डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा लेखक एवं पत्रकार
Makar Sankranti festival 2024: 15 जनवरी को रवि योग में मनाया जाएगा मकर संक्रांति पर्व
अंग्रेजी वर्ष 2024 में इस बार लीप वर्ष का संयोग बन रहा है। यह वर्ष 365 दिनों के बजाय 366 दिनों का होगा। फरवरी 28 दिनों का होता है, लेकिन लीप वर्ष में फरवरी 29 दिनों का रहेगा। इस महीने सप्ताह के सात वारों में से छह वार चार-चार बार पड़ रहे हैं। केवल गुरुवार पांच बार पड़ेगा। प्रत्येक वर्ष के पहले महीने में मकर संक्रांति पर्व 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस साल लीप वर्ष के संयोग में सूर्य 15 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश कर रहा है, इसलिए मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाएंगे। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि ग्रहों के राजा सूर्य 14 जनवरी 2024 की अर्धरात्रि 02:42 मिनट पर मकर राशि में गोचर करेंगे। उदया तिथि 15 जनवरी को प्राप्त हो रही है। ऐसे में मकर संक्रांति 15 जनवरी 2024 को मनाई जाएगी। ऐसे में सूर्यास्त के बाद राशि परिवर्तन करने से इस साल मकर संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को रहेगा। इस वर्ष मकर संक्रांति अश्व पर बैठकर आएगी यानी उनका वाहन अश्व और उपवाहन सिंह होगा। मकर संक्रांति के आगमन के साथ ही एक माह का खरमास भी समाप्त हो जाएगा सूर्य का मकर राशि में प्रवेश ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी की रात्रि 2.42 बजे हो रहा है। उदया काल को महत्व दिए जाने से 15 जनवरी को सूर्य के उदय होने पर मकर संक्रांति मनाना शुभ होगा। पौष माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि, शतभिषा नक्षत्र होने से सुबह से ही पुण्यकाल प्रारंभ हो जाएगा। इसे भी पढ़ें: Ayodhya Ram Mandir: देश के सबसे लंबे केस में शामिल है श्रीराम जन्मभूमि, जानिए विवाद, विध्वंस से लेकर निर्माण तक की कहानी रवि योग ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस साल मकर संक्रांति पौष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 15 जनवरी को रवि योग, शतभिषा नक्षत्र में मनाई जाएगी। इस दिन वारियांन योग पूरे दिन रहेगा। रवि योग सुबह 7:15 से 8:07 बजे तक रहेगा। मकर संक्रांति शुभ मुहूर्त कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि मकर संक्रांति का महा पुण्य काल सुबह 07:15 मिनट से सुबह 09:00 बजे तक है। इस समय में आपको मकर संक्रांति का स्नान और दान करना चाहिए। उस दिन महा पुण्य काल 1 घंटा 45 मिनट तक है। हालांकि पुण्य काल में भी मकर संक्रांति का स्नान दान होगा। मकर संक्रांति का वाहन अश्व, उपवाहन शेर भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि मकर संक्रांति का वाहन इस बार अश्व है और उपवाहन शेर है। दोनों ही तेज दौड़ते हैं और गति के प्रतीक हैं। संक्रांति के प्रभाव से गेहूं, अनाज दूध और दूध से निर्मित पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि होगी। वहीं, भारत देश का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पराक्रम बढ़ेगा। अन्य देशों से संबंध मजबूत होंगे। देश के लिए मकर संक्रांति शुभ कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि मकर संक्रांति पर सूर्य की पूजा, नदियों में स्नान, देव दर्शन और दान से विशेष पुण्य फल मिलेगा। इस संक्रांति का वाहन अश्व और उपवाहन सिंह होने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का पराक्रम बढ़ेगा। दूसरे देशों से संबंध मजबूत होंगे। विद्वान और शिक्षित लोगों के लिए ये संक्रांति शुभ रहेगी। लेकिन अन्य कुछ लोगों में डर बढ़ सकता है। अनाज बढ़ेगा और महंगाई पर नियंत्रण भी रहेगा। चीजों की कीमतें सामान्य रहेंगी। नदी में स्नान, दान का महत्व भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि मकर संक्रांति पर सूर्य, धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना शुभ माना जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके तिल, गुड़, वस्त्र का दान करने से पुण्य में वृद्धि होती है। भीष्म ने किया था उत्तरायण काल का इंतजार कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि मान्यता है कि संक्रांति के दिन सूर्य, उत्तरायण में प्रवेश करता है। उत्तरायण को शुभ काल मानते हैं। इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त करने वाले तीरों की शैया पर लेटे भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए उत्तरायण काल का इंतजार किया था। पतंग उड़ाने की परंपरा भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि मकर संक्रांति पर्व को उत्तर भारत में स्नान पर्व के रूप में मनाया जाता है। पवित्र नदियों में स्नान करके खिचड़ी खिलाने, तिल, गुड़ का दान करने की मान्यता है। जीवन में खुशियां, उत्साह, उमंग के लिए आकाश में पतंग उड़ाने की परंपरा निभाई जाती है। इसी तरह दक्षिण भारत में पोंगल पर्व के रूप में मनाते हैं। गुजरात में उत्तरायण, पंजाब में लोहड़ी के रूप में मनाते हैं। संक्रांति का वाहन- अश्व उपवाहन- शेर आगमन दिशा- दक्षिण दिशा से संक्रांति का आगमन प्रस्थान दिशा- उत्तर दिशा में संक्रांति का प्रस्थान प्रभाव- गेहूं, दूध के उत्पादों में वृद्धि, भारत का पराक्रम बढ़ेगा - डा. अनीष व्यास भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक
हिंदू धर्म में एकदशी का काफी महत्व होता है। साल में पड़ने वाली सारी एकादशी श्रीहरि विष्णु को समर्पित होती हैं। एकादशी के दिन श्रीहरि विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता के अनुसार, जो भी व्यक्ति एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की भक्तिभाव से पूजा करता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आज यानी की 7 जनवरी 2024 को सफला एकादशी है। यह साल 2024 की पहली एकादशी है। इस एकादशी को सभी कार्यों में सफलता दिलाने वाली और मनोकामना पूरी करने वाली एकादशी कहा गया है। जिन भी लोगों को कार्यों में असफलता मिलती है, या अधिक मेहनत के बाद भी मनमुताबिक फल नहीं मिलता है। उनको सफला एकादशी का व्रत करना चाहिए। आइए जानते हैं सफला एकादशी की तिथि, पूजा विधि और महत्व के बारे में... सफला एकादशी मुहूर्त बता दें कि पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरूआत 7 जनवरी की रात 12: 41 मिनट से हो रही है। वहीं अगले दिन यानी की 8 जनवरी की रात 12:46 मिनट पर इसका समापन होगा। उदयातिथि के अनुसार सफला एकादशी का व्रत 07 जनवरी 2024 को रखा जाएगा। व्रत पारण समय सफला एकादशी का व्रत करने वाले लोग 08 जनवरी 2024 को सुबह 07:15 मिनट से सुबह 09:20 मिनट के बीच में व्रत खोल सकते हैं। पूजा नियम इस दिन सुबह जल्दी स्नान आदि कर साफ कपड़े पहनें। फिर सूर्य देव को अर्घ्य देकर व्रत का संपल्प करें। इसके बाद मंदिर को साफ कर एक चौकी पर साफ कपड़ा बिछाएं और उस पर श्रीहरि विष्णु की प्रतिमा व श्रीयंत्र को स्थापित करें। अब गाय के देसी घी का दिया जलाएं और भगवान विष्णु को पीले रंग की माला और तुलसी पत्र अर्पित करें। फिर गोपी चंदन या हल्दी का तिलक लगाएं। घर में बनी मिठाई और पंचामृत अर्पित करें। इसके बाद आप ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय मंत्र का 108 बार जाप करें। वहीं श्रीहरि विष्णु का आशीर्वाद पाने के लिए श्री हरि स्तोत्रम और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। पूजा के आखिरी में आरती करें और फिर शाम को भगवान विष्णु की पूजा करें। अंत में पूजा में हुई भूलचूक के लिए क्षमा मांगे। एकादशी के अगले दिन सभी पूजा अनुष्ठानों को पूरा करने के बाद व्रत खोलें। वहीं व्रत का पारण सात्विक भोजन से करें। महत्व धार्मिक मान्यता के मुताबिक जो भी व्यक्ति सफला एकादशी का व्रत करता है। साथ ही श्रीहरि विष्णु की विधि-विधान से पूजा करता है। उसको सौभाग्य की प्राप्ति होती है और सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
Saphala Ekadashi 2024: 7 जनवरी को रखा जायेगा सफला एकादशी व्रत
रविवार 7 जनवरी को नए साल की पहली एकादशी है। अभी पौष मास चल रहा है और इसके महीने के कृष्ण में सफला एकादशी का व्रत किया जाता है। जैसा कि इस एकादशी के नाम से ही समझ आ रहा है कि ये व्रत बाधाओं को दूर करके सफल होने की कामना से किया जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है और दिनभर विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत किया जाता है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि साल की पहली एकादशी सफला एकादशी है और इसका व्रत 7 जनवरी को रखा जाएगा। सफला एकादशी का व्रत करने से सभी शुभ कार्यों में सिद्धि का आशीर्वाद मिलता है और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। सफला एकादशी पौष मास की पहली एकादशी है और इस दिन पवित्र नदी में स्नान के साथ ही भगवान विष्णु की पूजा का खास महत्व शास्त्रों में बताया गया है। ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी घर-परिवार की और कार्यों में आ रही परेशानियों को दूर करना वाला व्रत है। स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में एकादशी महात्म्य नाम के अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के बड़े भाई युधिष्ठिर को एकादशियों के व्रत के बारे में बताया है। एकादशी पर विष्णु जी के साथ ही उनके अवतारों की भी पूजा करनी चाहिए, खासतौर पर श्रीराम और श्रीकृष्ण की पूजा जरूर करें। श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल को भी माखन-मिश्री का भोग तुलसी के साथ लगाएं। कृं कृष्णाय नम: मंत्र का जप करें। इसे भी पढ़ें: Pooja in Kharmas: खरमास में इन धार्मिक उपायों को कर पा सकते हैं श्रीहरि विष्णु की कृपा, मां लक्ष्मी भी होंगी प्रसन्न ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि श्रीराम दरबार की पूजा करें। राम दरबार में श्रीराम के साथ देवी सीता, लक्ष्मण, हनुमान शामिल होते हैं। इन सभी की पूजा करने से घर-परिवार में सुख-शांति और प्रेम बना रहता है। कार्यों में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और लक्ष्य पूरे होते हैं। ऐसी मान्यता है। सफला एकादशी की शाम घर के आंगन में तुलसी के पास दीपक जलाएं और परिक्रमा करें। सूर्यास्त के बाद तुलसी को स्पर्श नहीं करना चाहिए। पूजा में शालिग्राम जी की प्रतिमा भी रखनी चाहिए। तुलसी और शालिग्राम जी को हार-फूल, वस्त्र आदि पूजन सामग्री अर्पित करें। फलों का भोग लगाएं। तुलसी के सामने बैठकर विष्णु जी के मंत्र ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करें। सफला एकादशी भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि पंचाग के अनुसार एकादशी तिथि का आरंभ 6 जनवरी को रात 12 बजे के बाद 7 जनवरी की तिथि में 12:41 मिनट पर होगा। इसका समापन 7 जनवरी की रात को 12 बजे के बाद 8 जनवरी की तिथि में 12:46 मिनट पर होगा। यानी कि उदया तिथि के नियमानुसार सफला एकादशी का व्रत 7 जनवरी को रखा जाएगा। सफला एकादशी शुभ मुहूर्त कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि सफला एकादशी की पूजा का शुभ मुहूर्त 7 जनवरी को सुबह 8:33 मिनट से दोपहर में 12:27 मिनट तक है। एकादशी के दिन रात्रि जागरण करने से विशेष लाभ होता है। एकादशी व्रत का पारण 8 जनवरी को सुबह 6:39 मिनट से 8:59 मिनट पर होगा। ऐसे कर सकते हैं व्रत भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद घर के मंदिर में गणेश पूजा करें। गणेश पूजन के बाद भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करें। भगवान के सामने व्रत करने का संकल्प लें। एकादशी व्रत करने वाले भक्तों को दिनभर अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। जो लोग भूखे नहीं रह पाते हैं, वे फलाहार कर सकते हैं। फलों के रस का सेवन करें। दूध पी सकते हैं। इस दिन सुबह-शाम विष्णु जी की पूजा करें। दिनभर विष्णु के मंत्र जपें, विष्णु जी कथाएं पढ़ें-सुनें। अगले दिन या द्वादशी पर सुबह फिर से विष्णु पूजन करें। पूजा के बाद जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं और फिर खुद भोजन करें। इस तरह एकादशी व्रत पूरा होता है। सफला एकादशी का महत्व कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि सफला एकादशी के शुभ अवसर पर घर में तुलसी का पौधा लगाने का विशेष महत्व होता है। इस दिन घर के उत्तर या पूर्व या फिर उत्तर-पूर्व दिशा में तुलसी का पौधा लगाने से आपकी धन समृद्धि में वृद्धि होती है। सफला एकादशी पर यदि आप व्रत नहीं कर सकते तो भी विधि विधान के साथ पूजा करने के बाद आप ग्रहण कर सकते हैं। ऐसा करने से भी भगवान विष्णु की कृपा आपको प्राप्त होती है। सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु को खीर का भोग लगाना चाहिए और उसमें तुलसी का पत्ता भी जरूर डालें। इन बातों का भी रखें ध्यान भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि पुराणों में बताया गया है कि सफला एकादशी का व्रत जो भक्त पूर्ण विधि विधान से रखते हैं उन पर भगवान नारायण की कृपा बनी रहती है। एकादशी के व्रत वाले दिन आप फलाहार चीजें खाने में ग्रहण करें और इस दिन अन्न बिल्कुल भी न खाएं। इस दिन आप भगवान हरि के निमित्त उनके विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर सकते हैं। संध्या काल के समय जब सूर्यास्त हो जाए उसके बाद आप तुलसी जी के पास गाय के घी का दीपदान कर सकते हैं। इस दिन चावल बिल्कुल भी न खाएं ऐसा करने से आप घोर पाप के भीगी बनेंगे। इसी के साथ सफला एकादशी की व्रत कथा इस दिन अवश्य सुनें तभी आपका व्रत पूर्ण माना जाएगा। शास्त्रों में व्रत वाले दिन रात्रि जागरण कर भगवान विष्णु के नाम का जप करने का विधान बताया गया है। सफला एकादशी का व्रत जो लोग नियम पूर्वक रखते हैं उनके जीवन में सभी मनोरथ श्री नारायण पूर्ण करते हैं और व्रत रखने वालों को जीवन में अपार सफलता मिलती है। - डा. अनीष व्यास भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक
Haryana Vegetable Market: फल सब्जियों के दाम जारी, सस्ती हुई सब्जियां, फलों की कीमत में भी बदलाव
Haryana Vegetable Marketएसोसिएशन रोज सुबह फलों और सब्जियों के नए दाम जारी करता है। जानिए आज क्या हैं हरियाणा में फल और सब्जियों के भाव।
बेंगलुरु में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वृद्धि: 176 रेप, 1,135 छेड़छाड़ व 25 दहेज हत्याएं
बेंगलुरु, 3 जनवरी (आईएएनएस) । कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में 2023 में 176 बलात्कार के मामले सामने आए। पुलिस के अनुसार, हैरानी की बात यह है कि केवल तीन मामलों में अज्ञात व्यक्ति शामिल हैं।
साहिबजादों की एक्टिंग करने को एसजीपीसी ने बताया परंपराओं के खिलाफ, स्पष्टीकरण की मांग
अमृतसर, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) ने शुक्रवार को केंद्र सरकार द्वारा घोषित वीर बाल दिवस कार्यक्रमों के तहत स्कूलों में बच्चों द्वारा नाटकों में अंतिम सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों, साहिबजादों के शारीरिक चित्रण की आलोचना की और इसे सिख सिद्धांतों और परंपराओं के खिलाफ बताया।
Paush Month 2023: 27 दिसंबर से 25 जनवरी तक रहेगा पौष मास, जानें इस माह का महत्व
हिन्दी पंचांग का दसवां महीना पौष 27 दिसंबर से 25 जनवरी तक रहेगा। ये हिंदू पंचांग का दसवां महीना है। इस महीने सूर्य देव को पूजने की परंपरा है। पौष मास में सूर्य को दिया अर्घ्य पुण्यदायी माना जाता है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि हिन्दी पंचांग का दसवां महीना पौष 27 दिसंबर से 25 जनवरी तक रहेगा। पुराणों का कहना है कि पौष में सूर्य पूजा करने से उम्र बढ़ती है। हर महीने सूर्य अलग रूप की पूजा करने का विधान है, इसलिए पौष मास में भग नाम के सूर्य की उपासना की जाती है। इस महीने में सूर्य पूजा करने का विशेष महत्व है। पौष मास में गंगा, यमुना, अलकनंदा, शिप्रा, नर्मदा, सरस्वति जैसी नदियों में, प्रयागराज के संगम में स्नान करने की परंपरा है। इस महीने में तीर्थ दर्शन करने की भी परंपरा है। इस हिंदी महीने में व्रत-उपवास, दान और पूजा-पाठ के साथ ही पवित्र नदियों में नहाने का भी महत्व बताया है। इस पवित्र महीने में किए गए धार्मिक कामों से कई गुना पुण्य फल मिलता है। व्रत और दान का विशेष फल मिलता है। ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि पुण्य देने वाले इस पवित्र महीने में भगवान विष्णु की पूजा नारायण रूप में करनी चाहिए। वहीं, उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का भी विधान है। पौष महीने में सूर्य नारायण नाम से पूजा करने से हर तरह की परेशानियां दूर हो जाती हैं। पौष मास में रोज सुबह जल्दी उठना चाहिए, स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना चाहिए। इस में महीने में पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना करें। स्नान करते समय सभी तीर्थों का और पवित्र नदियों का ध्यान करेंगे तो घर पर ही तीर्थ स्नान करने का पुण्य मिल सकता है। ऐसे चढ़ाएं सूर्य को अर्घ्य भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि रोज सुबह स्नान के बाद घर के आंगन में ऐसी जगह चुनें, जहां से सूर्य देव के दर्शन होते हैं। इसके बाद तांबे के लोटे में जल भरें, जल में कुमकुम, चावल और फूल भी डालें। इसके बाद सूर्य को जल चढ़ाएं। इसे भी पढ़ें: Shri Gopal Ashtakam: इस मंत्र के रोजाना जाप से पूरी होगी संतान प्राप्ति की इच्छा, बाल गोपाल का मिलेगा आशीष सूर्य मंत्र भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि ऊँ सूर्याय नम:, ऊँ खगाय नम:, ऊँ भास्कराय नम: आदि का जप करें। सूर्य को जल चढ़ाने के बाद जरूरतमंद लोगों खाना दान करें। आप चाहें तो अनाज और धन का दान भी कर सकते हैं। किसी गौशाला में भी दान-पुण्य करें। सूर्य को जल चढ़ाने से मिलता हैं स्वास्थ्य लाभ भविष्यवक्ता डॉ अनीष व्यास ने बताया कि अभी शीत ऋतु का समय है। इन दिनों में रोज सुबह जल्दी उठने और सुबह-सुबह की धूप में रहने से स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। ठंड के दिनों में सुबह-सुबह की धूप त्वचा की चमक बढ़ाती है। धूप से विटामिन डी मिलता है, जिससे हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। ठंड से होने वाली बीमारियों से बचाव होता है। ग्रहों के राजा हैं सूर्य कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि किसी भी काम की शुरुआत पंचदेवों की पूजा के साथ ही होती है। सूर्य पूजा से कुंडली के नौ ग्रहों से संबंधित दोष दूर होते हैं। कुंडली में सूर्य की स्थिति ठीक न हो तो घर-परिवार और समाज में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहे, मान-सम्मान मिले, सफलता मिले, इसके लिए सूर्य की पूजा करनी चाहिए। भविष्य पुराण में जिक्र भविष्यवक्ता डॉ अनीष व्यास ने बताया कि भविष्य पुराण के ब्राह्म पर्व में श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र सांब को सूर्यदेव पूजा का महत्व बताया है। भगवान श्रीकृष्ण ने सांब को बताया था कि सूर्यदेव एक मात्र प्रत्यक्ष देवता हैं यानी सूर्य हमें साक्षात दिखाई देते हैं। जो लोग श्रद्धा के साथ सूर्य पूजा करते हैं, उनकी सभी इच्छाएं सूर्य देव पूरी करते हैं। वेद और उपनिषद में सूर्य कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि अथर्ववेद और सूर्योपनिषद के अनुसार सूर्य परब्रह्म है। ग्रंथों में बताया गया है कि पौष मास में भगवान भास्कर ग्यारह हजार किरणों के साथ तपकर सर्दी से राहत देते हैं। इनका रंग खून के जैसा लाल है। शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है और इन सबके कारण इन्हें भगवान माना जाता है। ये ही वजह है कि पौष मास का भग नाम के सूर्य को साक्षात परब्रह्म का ही रूप माना गया है। पौष महीने में सूर्य को अर्घ्य देने और उनके लिए व्रत करने का भी महत्व धर्म शास्त्रों में बताया है। क्या करें भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि आदित्य पुराण के अनुसार, पौष माह के हर रविवार को तांबे के बर्तन में शुद्ध जल, लाल चंदन और लाल रंग के फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए तथा विष्णवे नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके साथ ही दिनभर व्रत रखना चाहिए और खाने में नमक का उपयोग नहीं करना चाहिए। संभव हो तो सिर्फ फलाहार ही करें। रविवार को व्रत रखकर सूर्य को तिल-चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है। पुराणों के अनुसार पौष माह में किए गए तीर्थ स्नान और दान से उम्र लंबी होती है और बीमारियां दूर हो जाती हैं। पौष माह 2023 व्रत-त्योहार 28 दिसंबर 2023 - गुरु पुष्य योग 30 दिसंबर 2023 - अखुरथ संकष्टी चतुर्थी व्रत 7 जनवरी 2024 (रविवार) - सफला एकादशी 9 जनवरी 2024 (मंगलवार) - भौम प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि 11 जनवरी 2024 (गुरुवार) - पौष अमावस्या 13 जनवरी 2024 (शनिवार) - पंचक शुरू 14 जनवरी 2024 (रविवार) - पौष विनायक चतुर्थी 15 जनवरी 2024 (सोमवार)- मकर संक्रांति, पोंगल, उत्तरायण 17 जनवरी 2024 (मंगलवार) - गुरु गोबिंद सिंह जयंती 21 जनवरी 2024 (रविवार) - पौष पुत्रदा एकादशी, वैकुंण एकादशी 23 जनवरी 2024 (मंगलवार) - भौम दूसरा प्रदोष व्रत 25 जनवरी 2024 (गुरुवार) - पौष पूर्णिमा - डॉ अनीष व्यास भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक
सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व माना जाता है। एकादशी का दिन भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होता है। एकादशी के दिन व्रत करने और श्रीहरि विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति की सुख-समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती है। कुछ एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है। इनमें से एक मोक्षदा एकादशी है। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी मनाई जाती है। मान्यता के मुताबिक मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत करने, विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करने और पवित्र नदी में स्नान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। धर्म शास्त्रों की मानें तो मोक्षदा एकादशी का विधि-विधान से व्रत करने से पूर्वजों को उनके कर्मों के बंधन छुटकारा मिलता है। इस कारण इसे पुण्यदायिनी व मोक्षदायिनी एकादशी कहा जाता है। तो आइए जानते हैं मोक्षदा एकादशी के शुभ मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में... इसे भी पढ़ें: Geeta Jayanti 2023: आज के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था गीता का ज्ञान, जानिए गीता जयंती का महत्व और मुहूर्त मोक्षदा एकादशी का शुभ मुहूर्त मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी का व्रत किया जा रहा है। हांलाकि इस बार मोक्षदा एकादशी की डेट को लेकर कंफ्यूजन की स्थिति बनी हुई है। हिंदू पंचांग के मुताबिक 22 दिसंबर 2023 दिन शुक्रवार की सुबह 8:16 मिनट से मोक्षदा एकादशी तिथि की शुरूआत होगी। वहीं अगले दिन यानी की 23 दिसंबर 2023 को सुबह 07:12 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी। ऐसे में 22 दिसंबर को गृहस्थ जन और शैव संप्रदाय के लोग मोक्षदा एकादशी व्रत रखेंगे। वहीं 23 दिसंबर को वैष्णव संप्रदाय के लोग मोक्षदा एकादशी का व्रत करेंगे। इसदिन शिवयोग का भी निर्माण हो रहा है। पारण समय जो लोग 22 दिसंबर को एकादशी का व्रत करेंगे, वह 23 दिसंबर को दोपहर 01:22 से 03:26 मिनट तक के बीच में व्रत का पारण करेंगे। वहीं 23 दिसंबर को व्रत करने वाले जातक 24 दिसंबर को सुबह 07:11 बजे से 09:15 मिनट के बीच में पारण करेंगे। वहीं मोक्षदा एकदाशी को गीता जयंती भी मनायी जाती है। ऐसे में इस दिन गीता का पाठ करना शुभ माना जाता है। जरूर खरीदें ये चीजें मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु के साथ माता लक्ष्मी का पूजन करना चाहिए। इसके अलावा इस दिन सफेद हाथी या मछली की मूर्ति खरीदना काफी शुभ माना जाता है। इसके अलावा आप चांदी की मछली भी खरीद सकते हैं। इन चीजों को खरीदने से आपके घर में सुख-समृ्द्धि का वास होता है।
Youth Congress Protest: युवा कांग्रेस का केंद्र के खिलाफ प्रदर्शन, पुलिस और कार्यकर्ताओं के बीच झड़प
Youth Congress Protest: भारतीय युवा कांग्रेस ने दिल्ली में केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है। युवा कांग्रेस ने आज बुधवार को बेरोजगारी के मुद्दे पर केंद्र के खिलाफ जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया।
छत्तीसगढ़ में पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में सब इंस्पेक्टर शहीद
रायपुर, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में सब इंस्पेक्टर सुधाकर रेड्डी शहीद हो गए हैं।
जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करते हैं, तो उसे संक्रांति कहा जाता है। सूर्य देव हर साल पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को धनु राशि में प्रवेश करते हैं। सूर्य देव के धनु राशि में इस प्रवेश को धनु संक्रांति कहा जाता है। सभी संक्रांतियों में धनु संक्रांति सबसे ज्यादा खास मानी जाती है। साथ ही इसका विशेष महत्व होता है। आज के दिन यानी की 16 दिसंबर को सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। धनु संक्रांति 2023 मुहूर्त धनु संक्रान्ति पुण्य काल - शाम 04:09-शाम 05:26 अवधि - 01:17 मिनट पर धनु संक्रान्ति महा पुण्य काल- शाम 04:09-शाम 05:26 इसे भी पढ़ें: Dwadash Jyotirling Stotra: रोजाना द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत का पाठ करने से मिलती है महादेव की कृपा धनु संक्रांति का महत्व संक्रांति के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व माना जाता है। जब सूर्य देव एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करते हैं, तो इसे संक्रांति कहा जाता है। वहीं सूर्यदेव धनु राशि में गोचर करते हैं, तो इसी दिन से खरमास यानी की मलमास की शुरूआत होती है। हर तरह के शुभ और मांगलिक कार्य पर इस दौरान हर तरह से विराम लगा दिया जाता है। यह खरमास एक माह तक रहता है। धनु संक्रांति के दिन विधि-विधान से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। मान्यता के मुताबिक जो भी व्यक्ति इस दिन पूजा करता है, उसकी आयु लंबी होती है, वह सेहतमंद बना रहता है। साथ ही घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। सूर्यदेव की करें पूजा धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक धनु संक्रांति के मौके पर स्नानदान और सूर्य देव की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन जो भी जातक श्रद्धा और भक्तिपूर्वक सूर्य देव की पूजा करता है, उसे पापों से मुक्ति मिलती है। सूर्यदेव के प्रभाव से बीमारियां दूर होती हैं। धनु संक्रांति पर सूर्य देव के साथ भगवान श्रीकृष्ण, श्रीहरि विष्णु और भगवान जगन्नाथ की भी आऱाधना विशेष फलदायी होती है। इस दिन सूर्यदेव के बीज मंत्र व गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए।
नोएडा में आवारा कुत्ते को खाना खिलाने को लेकर सोसाइटी में बवाल
नोएडा, 15 दिसंबर (आईएएनएस)। नोएडा में आवारा कुत्तों को लेकर वाद विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। ताजा मामला एक सोसाइटी का आया है, जहां पर खुले में आवारा कुत्तों को खाना खिलाने को लेकर पशु प्रेमी और सोसाइटी के लोग आपस में भिड़ गए और काफी कहासुनी हुई।
दिन में करते थे कबाड़ी बनकर रेकी, रात में करते थे चोरी, 3 शातिर गिरफ्तार
गाजियाबाद, 8 दिसंबर (आईएएनएस)। गाजियाबाद के लोनी थाना पुलिस ने चोरों के गैंग को गिरफ्तार किया है। जो दिन में कबाड़ी बनकर घरों की रेकी किया करता था और रात में उन घरों में चोरी किया करता था। इस गैंग के तीन लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है।
बजरंग दल और विहिप ने 25 परिवारों की कराई घर वापसी
बागेश्वर, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। बागेश्वर में 25 परिवारों ने गुरुवार को बजरंग दल और विहिप द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सनातन धर्म को अपनाया। ये वो 25 परिवार हैं जिन्होंने कुछ सालों पहले कुछ कारणों से हिंदू धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपना लिया था। गायत्री मंत्र के जाप के साथ हिंदू धर्म में वापसी करने वाले लोग खुश नजर आए।
Kaal Bhairav Jayanti 2023: आज 5 दिसंबर को मनाई जा रही काल भैरव जयंती, जानिए पूजन विधि और महत्व
हर महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि बाबा काल भैरव को समर्पित होती है। वहीं मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का विशेष महत्व माना जाता है। क्योंकि मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान काल भैरव का अवतरण हुआ था। इस साल आज यानी की 5 दिसंबर 2023 को काल भैरव जयंती मनाई जा रही है। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक भगवान शिव के रौद्र स्वरूप को काल भैरव माना गया है। मान्यता के अनुसार भगवान काल भैरव अपने भक्तों से शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं। वहीं अनैतिक कार्यों में संलिप्त लोगों के लिए भगवान शिव का यह रौद्र स्वरूप काफी दंडनायक होता है। तो आइए जानते हैं काल भैरव की जयंती के मौके पर भगवान काल भैरव जयंती का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और महत्व के बारे में... काल भैरव जयंती का शुभ मुहूर्त हिंदू पंचांग के मुताबिक मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। इस साल 4 दिसंबर 2023 दिन सोमवार को रात 09:59 मिनट पर मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरूआत हो रही है। वहीं 6 दिसंबर 2023 दिन बुधवार को रात 12:37 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी। ऐसे में उदयातिथि के चलते 5 दिसंबर 2023 को काल भैरव जयंती मनाई जा रही है। क्योंकि हिंदू धर्म में किसी भी पूजा, व्रत या अनुष्ठान के लिए उदयातिथि को सबसे उत्तम माना जाता है। पूजा का मुहूर्त 5 दिसंबर 2023 दिन मंगलवार को सुबह 10:53 मिनट से दोपहर 01:29 मिनट तक। 5 दिसंबर 2023 दिन मंगलवार को रात 11:44 मिनट से रात 12:39 मिनट तक। ऐसे करें पूजा इस दिन सुबह जल्दी स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण करें। इस दिन काले वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। इसके बाद भगवान काल भैरव की मूर्ति या प्रतिमा के आगे धूप, दीपक, अगरबत्ती जलाएं। फिर बेलपत्र, पंचामृत, दही, धतूरा और पुष्प अर्पित करें। विधि-विधान से पूजा किए जाने के बाद सरसों के तेल में बनी बूंदी का भोग लगाएं। काल भैरव जयंती के मौके पर काले कुत्ते को प्रसाद जरूर खिलाएं। वहीं गरीबों में फल व जरूरत की चीजें बांटे। कालाष्टमी व्रत का महत्व यदि किसी व्यक्ति को अपने जीवन में बार-बार दुखों का सामना करना पड़ रहा है। तो इन समस्याओं को दूर करने के लिए उसे भगवान शिव के रौद्र स्वरूप काल भैरव की पूजा करनी चाहिए। साथ ही कालाष्टमी का व्रत करना चाहिए। कालाष्टमी का व्रत करने से व्यक्ति चिंता और भयमुक्त होता है। साथ ही उसे शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
Telangana Assembly Election Result 2023: तेलंगाना विधानसभा चुनाव में काउटिंग के बीच कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार हैदराबाद पहुंच गए हैं। पार्टी को राज्य में टूट का डर सता रहा है। पढ़ें रिपोर्ट...
किराये की जमीन पर खेती की नयी इबारत लिख रहे गोरखपुर के धर्मेंद्र
लखनऊ, 3 दिसंबर (आईएएनएस)। यूपी के गोरखपुर के पिपराइच क्षेत्र के उनौला गांव के धर्मेंद्र सिंह बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में रुचि रखने वाले हैं। जैसे जैसे बड़े हुए उनकी रुचि साहित्य की ओर होती गयी। राजनीतिशास्त्र से स्नातकोत्तर कर लिया, लेकिन समय का चक्र ऐसा घूमा कि उनके जीवन की केमेस्ट्री कृषि से जुड़ गयी।
बहुपक्षवाद में विश्वास बहाल करने के आह्वान के साथ दुबई में शुरू हुई संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता
दुबई, 30 नवंबर (आईएएनएस)। दो सप्ताह तक चलने वाला संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी28), जिसमें 160 से अधिक विश्व नेताओं के जुटने की उम्मीद है, गुरुवार को दुबई में शुरू हुआ। सुल्तान अल जाबेर ने आधिकारिक तौर पर अध्यक्ष की भूमिका निभाई। एक समारोह में उन्होंने अपने पूर्ववर्ती, मिस्र के समेह शौकरी से आधिकारिक तौर पर अध्यक्षता ग्रहण की।
Dev Diwali 2023: आज मनाया जा रहा देव दीपावली का पर्व, जानिए पूजन विधि और मुहूर्त
कार्तिक पूर्णिमा का दिन कार्तिक महीने का आखिरी दिन होता है। कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन देशभर में देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है। लेकिन इस साल पंचांग भेद की वजह से 26 नवंबर 2023 को देव दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है। वहीं 27 नवंबर 2023 को कार्तिक पूर्णिमा का व्रत स्नान किया जाएगा। बता दें कि देव दीपावली पर सुबह गंगा स्नान कर शाम को घाट पर दीपदान किया जाता है। देव दीपावली का भगवान शिव से गहरा संबंध है। आइए जानते हैं देव दीपावली का मुहूर्त पूजन विधि और महत्व... इसे भी पढ़ें: Kartik Purnima 2023: 27 नवंबर को मनाई जायेगी कार्तिक पूर्णिमा, राशि अनुसार करें दान देव दिवाली 2023 मुहूर्त कार्तिक पूर्णिमा तिथि की शुरूआत - 26 नवंबर 2023 को दोपहर 03:53 मिनट पर कार्तिक पूर्णिमा तिथि का समाप्ति - 27 नवंबर 2023 को दोपहर 02:45 मिनट पर प्रदोषकाल देव दीपावली मुहूर्त - शाम 05:08 से रात 07:47 अवधि - 02:39 मिनट तक इस बार प्रदोष काल में देव दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है। देव दीपावली के दिन वाराणसी का गंगा घाट और मंदिर दीयों से जगमगा उठते हैं। काशी में इस पर्व की खास रौनक देखने को मिलती है। देव दिवाली पूजा विधि देव दीपावली के दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। इस दिन नदी में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। क्योंकि यह विशेष फलदाई होता है। अगर आप नदी में स्नान नहीं कर सकते तो आप नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं। स्नान आदि कर तांबे के लोटे में कुमकुम मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। इसके बाद घर के मंदिर की साफ-सफाई करें और मंदिर के आसपास गंगाजल का छिड़काव करें। फिर सभी देवी-देवताओं को स्नान करवाएं और उन्हें नए वस्त्र पहनाएं। फिर एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं और उस पर श्रीहरि विष्णु और मां लक्ष्मी की तस्वीर स्थापित करें। सभी देवी-देवताओं को नए वस्त्र पहनाएं और श्रीहरि विष्णु को पीले पुष्प अर्पित करें। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। इसके बाद मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करें और फिर आरती करें। अंत में प्रसाद वितरित करें। वहीं शाम के समय घाट पर दीपदान करें और मंदिर में 7 दीपक जलाकर रखें व देवी-देवताओं का आहृवन करें। इससे आपके घर में सुख-समृद्धि आएगी और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
देवोत्थनी एकादशी और तुलसी विवाह की पूजन विधि और व्रत का महत्व
कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवोत्थनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, इस दिन से विवाह, गृह प्रवेश तथा अन्य सभी प्रकार के मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस को लम्बे युद्ध के बाद समाप्त किया था और थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर में जाकर सो गए थे और चार मास पश्चात फिर जब वे उठे तो वह दिन देवोत्थनी एकादशी कहलाया। इस दिन भगवान विष्णु का सपत्नीक आह्वान कर विधि विधान से पूजन करना चाहिए। इस दिन उपवास करने का विशेष महत्व है। इस एकादशी को तुलसी एकादश भी कहा जाता है। तुलसी को साक्षात लक्ष्मी का निवास माना जाता है इसलिए कहा जाता है कि जो भी इस मास में तुलसी के समक्ष दीप जलाता है उसे अत्यन्त लाभ होता है। इस दिन तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है। तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से कराया जाता है। मान्यता है कि इस प्रकार के आयोजन से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। तुलसी शालिग्राम का विवाह करने से वही पुण्य प्राप्त होता है जो माता−पिता अपनी पुत्री का कन्यादान करके पाते हैं। इस आयोजन की विशेषता यह होती है कि विवाह में जो रीति−रिवाज होते हैं उसी तरह तुलसी विवाह के सभी कार्य किए जाते हैं साथ ही विवाह से संबंधित मंगल गीत भी गाए जाते हैं। इसे भी पढ़ें: Dev Uthani Ekadashi 2023: 23 नवंबर को मनाई जाएगी देवउठनी एकादशी, शुरू होंगे मांगलिक कार्य सनातन धर्म में देवोत्थनी एकादशी का महत्व सबसे अधिक है। इस दिन लाखों श्रद्धालु व्रत रखते हैं और तुलसी विवाह में शामिल होते हैं। पुराणों के अनुसार, स्वर्ग में भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मीजी का जो महत्व है वही धरती पर तुलसी का है। इसी के चलते भगवान को जो व्यक्ति तुलसी अर्पित करता है उससे वह अति प्रसन्न होते हैं। बद्रीनाथ धाम में तो यात्रा मौसम के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा तुलसी की करीब दस हजार मालाएं रोज चढ़ाई जाती हैं। तुलसी विवाह की पूजन विधि जिस गमले में तुलसी का पौधा लगा है उसे गेरु आदि से सजाकर उसके चारों ओर मंडप बनाकर उसके ऊपर सुहाग की प्रतीक चुनरी को ओढ़ा दें। इसके अलावा गमले को भी साड़ी में लपेट दें और उसका श्रृंगार करें। इसके बाद सिद्धिविनायक श्रीगणेश सहित सभी देवी−देवताओं और श्री शालिग्रामजी का विधिवत पूजन करें। एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखें और भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा कराएं। इसके बाद आरती करें। देवोत्थनी एकादशी व्रत कथा भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा को अपने रूप पर बड़ा गर्व था। वे सोचती थीं कि रूपवती होने के कारण ही श्रीकृष्ण उनसे अधिक स्नेह रखते हैं। एक दिन जब नारदजी उधर गए तो सत्यभामा ने कहा कि आप मुझे आशीर्वाद दीजिए कि अगले जन्म में भी भगवान श्रीकृष्ण ही मुझे पति रूप में प्राप्त हों। नारदजी बोले, 'नियम यह है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी प्रिय वस्तु इस जन्म में दान करे तो वह उसे अगले जन्म में प्राप्त होगी। अतरू तुम भी श्रीकृष्ण को दान रूप में मुझे दे दो तो वे अगले जन्मों में जरूर मिलेंगे।' सत्यभामा ने श्रीकृष्ण को नारदजी को दान रूप में दे दिया। जब नारदजी उन्हें ले जाने लगे तो अन्य रानियों ने उन्हें रोक लिया। इस पर नारदजी बोले, 'यदि श्रीकृष्ण के बराबर सोना व रत्न दे दो तो हम इन्हें छोड़ देंगे।' तब तराजू के एक पलड़े में श्रीकृष्ण बैठे तथा दूसरे पलड़े में सभी रानियां अपने−अपने आभूषण चढ़ाने लगीं, पर पलड़ा टस से मस नहीं हुआ। यह देख सत्यभामा ने कहा, यदि मैंने इन्हें दान किया है तो उबार भी लूंगी। यह कह कर उन्होंने अपने सारे आभूषण चढ़ा दिए, पर पलड़ा नहीं हिला। वे बड़ी लज्जित हुईं। सारा समाचार जब रुक्मिणी जी ने सुना तो वे तुलसी पूजन करके उसकी पत्ती ले आईं। उस पत्ती को पलड़े पर रखते ही तुला का वजन बराबर हो गया। नारद तुलसी दल लेकर स्वर्ग को चले गए। रुक्मिणी श्रीकृष्ण की पटरानी थीं। तुलसी के वरदान के कारण ही वे अपनी व अन्य रानियों के सौभाग्य की रक्षा कर सकीं। तब से तुलसी को यह पूज्य पद प्राप्त हो गया कि श्रीकृष्ण उसे सदा अपने मस्तक पर धारण करते हैं। इसी कारण इस एकादशी को तुलसीजी का व्रत व पूजन किया जाता है। -शुभा दुबे
Dev Uthani Ekadashi 2023: 23 नवंबर को मनाई जाएगी देवउठनी एकादशी, शुरू होंगे मांगलिक कार्य
देवउठनी एकादशी इस साल 23 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु 5 माह की निद्रा के बाद जागेंगे। इसके बाद से सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। इस दिन लोग घरों में भगवान सत्यनारायण की कथा और तुलसी-शालिग्राम के विवाह का आयोजन करते हैं। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर-जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि देवउठनी एकादशी इस साल 23 नवंबर को मनाई जाएगी। माना जाता है कि देवउठनी एकादशी को भगवान श्रीहरि 5 माह की गहरी निद्रा से उठते हैं। भगवान के सोकर उठने की खुशी में देवोत्थान एकादशी मनाया जाता है। इसी दिन से सृष्टि को भगवान विष्णु संभालते हैं। इसी दिन तुलसी से उनका विवाह हुआ था। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं। परम्परानुसार देव देवउठनी एकादशी में तुलसी जी विवाह किया जाता है, इस दिन उनका श्रृंगार कर उन्हें चुनरी ओढ़ाई जाती है। उनकी परिक्रमा की जाती है। शाम के समय रौली से आंगन में चौक पूर कर भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करेंगी। रात्रि को विधिवत पूजन के बाद प्रात:काल भगवान को शंख, घंटा आदि बजाकर जगाया जाएगा और पूजा करके कथा सुनी जाएगी। ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि वैदिक पंचांग के मुताबिक कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 22 नवंबर को रात 11:03 से शुरू होगी और इसका समापन 23 नवंबर रात 9:01 पर होगा। उदया तिथि के अनुसार देवउठनी एकादशी व्रत 23 नवंबर को रखा जाएगा। इसे भी पढ़ें: Vivah Shubh Muhurat 2023: 23 नवंबर से 15 दिसंबर तक विवाह के 13 मुहूर्त देवउठनी एकादशी कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि का प्रारंभ - 22 नवंबर 2023, रात 11.03 से शुरू कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि का समापन - 23 नवंबर 2023, रात 09.01 पर समाप्त शुभ योग एकादशी के शुभ योग की बात करें तो ये दिन पूजा पाठ के लिए उत्तम माना जाता है। इस बार रवि योग, सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बनने जा रहे हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 11:55 से शुरू होगा। वहीं रवि योग सुबह 6:50 से शाम 5:16 तक रहेगा। इसके बाद सर्वार्थ सिद्धि योग शुरू हो जाएगा। चातुर्मास मास होगा समाप्त भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि देवउठनी एकादशी के दिन चातुर्मास समाप्त होगा। मान्यताओं के अनुसार चतुर्मास में भगवान विष्णु आराम करते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दौरान कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं। देवउठनी एकादशी का महत्व कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि देवउठनी एकादशी तिथि से चतुर्मास अवधि खत्म हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु शयनी एकादशी को सो जाते हैं। वह इस दिन जागते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन जातक सुबह जल्द उठकर स्वस्छ वस्त्र पहनते हैं। भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं। शास्त्रों के अनुसार विष्णुजी के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने एकादशी को देवी वृंदा (तुलसी) से शादी की थीं। इस साल तुलसी विवाह 24 नवंबर को मनाया जाएगा। इन बातों का रखें विशेष ध्यान भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि पौराणिक मान्यताओँ के अनुसार भगवान विष्णु 5 माह की योग निद्रा के बाद इसी दिन जागते हैं इसी कारण इस दिन को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। ऐसे में भगवान विष्णु का आर्शीवाद पाने के लिए भक्त कई उपाय भी करते हैं। लेकिन आर्शीवाद पाने के साथ कुछ ऐसे नियम भी हैंए जिन्हें देवउठनी एकादशी के दिन भूलकर भी नहीं तोड़ना चाहिए। चावल न खाएं इस दिन भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि मान्यताओं के अनुसार किसी भी एकादशी पर चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। दरअसल जानकारों के अनुसार केवल देवउठनी एकादशी ही नहीं बल्कि सभी एकादशी पर चावल खाना हर किसी के लिए वर्जित माना गया है। चाहे जातक ने व्रत रखा हो या न रखा हो। माना जाता है कि इस दिन चावल खाने से मनुष्य को अगला जन्म रेंगने वाले जीव में मिलता है। मांस-मदिरा से रहें दूर कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि हिंदू धर्म में वैसे ही मांस-मंदिरा को तामसिक प्रवृत्ति बढ़ने वाला माना गया है। ऐसे में किसी पूजन में इन्हें खाने को लेकर मनाही है। ऐसे में एकादशी पर इन्हें खाना तो दूर घर मे लाना तक वर्जित माना गया है। माना जाता है कि ऐसा करने वाले जातक को जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। महिलाओं का अपमान न करें भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि एकादशी के दिन महिलाओं का भूलकर भी अपमान न करें चाहें वे आपसे छोटी हो या बड़ी। दरअसल माना जाता है कि किसी का भी अपमान करने से आपके शुभ फलो में कमी आती हैए वहीं इस दिन इनके अपमान से व्रत का फल नहीं मिलता है। साथ ही जीवन में कई तरहों की समस्याओं का सामना करना पड़ता है क्रोध से बचें भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि एकादशी के दिन भक्त भगवान विष्णु की अराधना करते हैंए ऐसे में माना जाता है कि इस दिन सिर्फ भगवान का गुणगान करना चाहिए। साथ ही एकादशी के दिन भूलकर भी किसी पर क्रोध नहीं करना चाहिए और वाद-विवाद से भी दूरी बनाकर रखनी चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करें एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस दिन भूलकर भी शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है। एकादशी के दिन करें ये काम भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि एकादशी के दिन दान करना उत्तम माना जाता है। एकादशी के दिन संभव हो तो गंगा स्नान करना चाहिए। विवाह संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए एकादशी के दिन केसर, केला या हल्दी का दान करना चाहिए। एकादशी का उपवास रखने से धन, मान-सम्मान और संतान सुख के साथ मनोवांछित फल की प्राप्ति होने की मान्यता है। कहा जाता है कि एकादशी का व्रत रखने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवउठनी एकादशी पूजा विधि भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, पुष्प, फल, अर्घ्य और चंदर आदि अर्पित करें। भगवान की पूजा करके नीचे दिए मंत्रों का जाप करें। उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदिम्।। उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे। हिरण्याक्षप्राघातिन् त्रैलोक्यो मंगल कुरु।। इसके बाद भगवान की आरती करें। वह पुष्प अर्पित कर इन मंत्रों से प्रार्थना करें। इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता। त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।। इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो। न्यूनं संपूर्णतां यातु त्वत्वप्रसादाज्जनार्दन।। इसके बाद सभी भगवान को स्मरण करके प्रसाद का वितरण करें। - डा. अनीष व्यास भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक