भारतीय लोक कला मंडल का स्थापना दिवस समारोह 22 से, देशभर से कलाकार आएंगे
स्थापना दिवस पर हर साल राष्ट्रीय लोकानुरंजन मेला सजता है: निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने बताया कि संस्था की स्थापना 1952 में पद्मश्री देवीलाल सामर ने की थी। इस दिवस पर हर साल राष्ट्रीय लोकानुरंजन मेले का आयोजन किया जाता है। समारोह का आयोजन कला, साहित्य, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, राजस्थान सरकार, उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पटियाला, पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र उदयपुर, भाषा एवं संस्कृति विभाग तेलंगाना सरकार, पंजाब फोक आर्ट सेंटर गुरदासपुर और राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जोधपुर के सहयोग से किया जा रहा है। कार्यक्रम मुक्ताकाशी रंगमंच पर शाम 7:15 बजे से होंगे, प्रवेश निशुल्क रहेगा। उदयपुर| भारतीय लोक कला मंडल का 74वां स्थापना दिवस समारोह शनिवार से शुरू होगा। देशभर के लोक कलाकार, रंगकर्मी कला का प्रदर्शन करेंगे। समारोह की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। परिसर को सजाया जा रहा है। इस बार 3 दिवसीय लोकानुरंजन मेला और 21वें पद्मश्री देवीलाल सामर स्मृति राष्ट्रीय नाट्य समारोह का आयोजन होगा। 22 से 24 फरवरी तक लोकानुरंजन मेला और 25, 26 व 28 फरवरी को राष्ट्रीय नाट्य समारोह होगा। इसमें राजस्थान, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, तेलंगाना, महाराष्ट्र और गुजरात के लोक कलाकार और रंगकर्मी भाग लेंगे, लोकनृत्य प्रस्तुत करेंगे। नाट्य समारोह में 25 को एक्टिंग स्टूडियो, मुंबई द्वारा साहेब नीतीश निर्देशित नाटक ‘कपास के फूल’ का मंचन होगा। 26 फरवरी ‘खोया हुआ आदमी’ का मंचन। 28 फरवरी मंच-रंगमंच संस्था, अमृतसर द्वारा केवल धालीवाल निर्देशित नाटक ‘एक था मंटो’ का मंचन किया जाएगा।
स्वदेशी मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति दी
राजनांदगांव| स्टेट स्कूल मैदान में 23 फरवरी तक स्वदेशी मेले का आयोजन किया जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के उद्देश्य से स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए वर्षों से प्रयासरत भारतीय विपणन विकास केंद्र द्वारा स्वदेशी मेले का भव्य उद्घाटन गत दिनों किया गया। इस मेले में विभिन्न उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई गई है। साथ ही रोजाना सांस्कृतिक आयोजनों की प्रस्तुति भी दी जा रही है। गत दिनों लोक गायिका अल्का चंद्राकर ने सुमधुर गीतों की प्रस्तुति से सबका मन मोह लिया। रायपुर के सुप्रसिद्ध शदानी दरबार संत शिरोमणि युधिष्ठिर लाल महाराज प्रमुख रूप से स्वदेशी मेले में आशीर्वाद देने पहुंचे। उद्घाटन के इस अवसर पर मुख्य अतिथि नव निर्वाचित महापौर मधुसूदन यादव, सुनील अग्रवाल आदि मौजूद थे।
राजस्थान पर्यटन विभाग के लोकप्रिय सांस्कृतिक आयोजन 'कल्चरल डायरीज' में इस बार हाड़ौती अंचल की समृद्ध लोक संस्कृति को विशेष पहचान दी जाएगी। 21-22 फरवरी 2025 को अल्बर्ट हॉल, जयपुर में आयोजित इस कार्यक्रम में हाड़ौती क्षेत्र के लोक कलाकार अपनी पारंपरिक प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करेंगे। खास बात यह है कि दूसरे दिन पद्मश्री से सम्मानित अब्दुल गनी बंधु अपनी मधुर आवाज में लोक संगीत की शानदार प्रस्तुति देंगे।पहले दिन हाड़ौती की लोक कला का रंग बिखरेगा कार्यक्रम के पहले दिन हाड़ौती अंचल की पारंपरिक लोक प्रस्तुतियों का मंचन किया जाएगा। इनमें चकरी नृत्य, सहरिया नृत्य, कानगवली, कच्छी घोड़ी, बिन्दौरी और डंडा बिन्दौरी जैसी अद्भुत प्रस्तुतियां शामिल होंगी। इन लोक कलाओं को प्रस्तुत करने के लिए हाड़ौती के प्रसिद्ध कलाकार अपने दलों के साथ कार्यक्रम में भाग लेंगे। प्रमुख लोक कलाकारों में रूपसिंह चाचोड़ा (छबड़ा), हरिकेश सिंह (शाहबाद, बारां), जुगल चौधरी (झालावाड़), मथुरालाल सोली (दीगोद), विनीता चौहान (कोटा) और अशोक कश्यप (झालावाड़) शामिल हैं, जो अपनी कला का जादू बिखेरेंगे। दूसरे दिन अब्दुल गनी बंधुओं की प्रस्तुति होगी मुख्य आकर्षण कार्यक्रम के दूसरे दिन का सबसे बड़ा आकर्षण होगा पद्मश्री से सम्मानित अब्दुल गनी बंधुओं की लोकसंगीत प्रस्तुति। अली मोहम्मद और गनी मोहम्मद की जोड़ी न केवल राजस्थानी संगीत को वैश्विक मंच पर ले गई है, बल्कि हिंदी, पंजाबी और सूफी गायन में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
मंडला जिले के मोहगांव जनपद के ग्राम खर्रा छापर में हो रहे आदिवासी लोक कला महोत्सव में जिले भर से आई 25 टीमों ने अपनी प्रस्तुतियों दी। महोत्सव में स्थानीय कलाकारों ने पारंपरिक शैला, कर्मा रीना नृत्य और कर्मा गीतों की प्रस्तुतियां दीं। कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान सांसद फग्गनसिंह कुलस्ते भी लोक धुनों पर थिरके। उन्होंने आयोजकों और कलाकारों के साथ नृत्य किया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सांसद कुलस्ते ने कहा कि यह महोत्सव आदिवासी समाज की समृद्ध लोक कला और परंपराओं को संरक्षित करने का एक सशक्त माध्यम है। उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों के उत्साह की सराहना की। इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्ष संजय कुशराम, भाजपा मंडल अध्यक्ष मालती मरावी, जनपद पंचायत सदस्य शिव पुसाम के साथ बड़ी संख्या में क्षेत्र के लोक कलाकार, स्थानीय नागरिक और महिलाएं मौजूद रहीं।
सिग्नल कोर का 115वां स्थापना दिवस मनाया:शहीदों को श्रद्धांजलि दी, सांस्कृतिक कार्यक्रम का हुआ आयोजन
झुंझुनूं में भारतीय सेना की महत्वपूर्ण इकाई सिग्नल कोर का शनिवार को 115 वां स्थापना दिवस मनाया गया। पूर्व सैनिकों ने शहीद स्मारक पर पुष्प अर्पित कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुआ। स्थापना दिवस समारोह में शेखावाटी के तमाम पूर्व सैनिकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और सिग्नल कोर की गौरवशाली परंपरा को याद किया। पूर्व सैनिक बलबीर सिंह भैड़ा ने कहा कि 15 फरवरी 1911 को स्थापित हुई थी। सिग्नल कोर भारतीय सेना के संचार और सूचना तंत्र की रीढ़ मानी जाती है। यह कोर सेना के संचालन और युद्धक रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। कार्यक्रम के दौरान पूर्व सैनिकों ने सिग्नल कोर के योगदान पर प्रकाश डाला और वर्तमान पीढ़ी को राष्ट्रसेवा के प्रति प्रेरित किया। सेवानिवृति जवानों ने पोस्टिंग के दौरान के बाते साझा की। इस मौके पर विशेष सम्मान समारोह भी आयोजित किया गया। जिसमें वीर सैनिकों की बहादुरी और सेवा को सराहा गया और उनका सम्मान किया गया। इस दौरान शेखावाटी के अनेक सैनिक मौजूद रहे।
इंदौर में भारतीय ज्ञान परंपरा में अनुवाद की चुनौतियों और संभावनाओं पर एक दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इंदौर और भाषा समन्वय वेदी, केरल के संयुक्त तत्वावधान में 16 फरवरी को होने वाली इस संगोष्ठी में देशभर के विद्वान शामिल होंगे। शिवाजी भवन में आयोजित होने वाली इस संगोष्ठी में तीन महत्वपूर्ण सत्र होंगे। पहले सत्र में प्रज्ञा द्विवेदी और डॉ. आरसु विशेष अतिथि के रूप में शामिल होंगे। दूसरे सत्र में दक्षिण भारत की भाषाएं, अनुवाद और देवनागरी लिपि पर विशेष चर्चा होगी, जिसमें केरल से डॉ. अजय कुमार मुख्य वक्ता होंगे। अंतिम सत्र में दक्षिण भारतीय साहित्यकारों का हिंदी को योगदान विषय पर विचार-विमर्श होगा। समारोह की अध्यक्षता करेंगे लोकप्रिय कवि सत्यनारायण सत्तन। समापन सत्र में हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल व्ही.एस. कोकजे, सांसद शंकर लालवानी और केरल से डॉ. शीना इप्पन विशेष रूप से उपस्थित रहेंगे। कार्यक्रम का समन्वय डॉ. पुष्पेंद्र दुबे और अरविंद ओझा कर रहे हैं। यह संगोष्ठी भारत की विभिन्न भाषाओं के बीच सेतु निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी और साहित्यिक-सांस्कृतिक एकता को मजबूत करेगी।