नवंबर 1962। भारत और चीन के बीच जंग जारी थी। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी LAC के नजदीक लद्दाख के रेजांग ला में 13 कुमाऊं बटालियन की चार्ली कंपनी तैनात थी। माइनस 30 डिग्री की तूफानी हवाओं से बचने के लिए जवानों के पास ढंग के स्वेटर और दस्ताने तक नहीं थे। पत्थरों से बने बिना छत वाले बंकर, जरूरत से आधी ऑक्सीजन के साथ इस चौकी पर जिंदा रहना भी किसी जंग से कम नहीं था। तभी आई 18 नवंबर 1962 की वो सुबह। चौकी पर तैनात जवानों ने देखा कि 3 हजार से ज्यादा चीनी सैनिक मॉडर्न हथियारों के साथ रेजांग ला दर्रे की ओर चले आ रहे हैं। उनसे भिड़ने का मतलब था मौत। कंपनी कमांडर मेजर शैतान सिंह भाटी ने आदेश दिया- एक इंच भी पीछे नहीं हटना है। और फिर शुरू हुई वह जंग, जो मिसाल बनी। महीनों बाद जब बर्फ पिघली, तो पोजिशन में उनकी जमी हुई देह मिली। साथ ही दिखा चीनी सैनिकों का राइफलें उल्टी रखकर दिया गया Arms Down Salute। 21 नवंबर को रिलीज होने वाली फरहान अख्तर की फिल्म ‘120 बहादुर’ ने इस लड़ाई को फिर सुर्खियों में ला दिया है। कौन थे ये 120 योद्धा? रेजांग ला में उस रात क्या हुआ था और अब क्यों मच रहा है विवाद; जानेंगे भास्कर एक्सप्लेनर में… रेजांग ला की लड़ाई से पहले भारत और चीन के सीमा विवाद को समझना जरूरी है। इसकी जड़ 1914 की मैकमोहन रेखा (McMahon Line) थी, जिसे भारत में ब्रिटिश राज के दौरान तिब्बत के साथ सीमा तय करने के लिए खींचा गया था, लेकिन चीन ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया। 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया, तो भारत ने इसका खुलकर विरोध नहीं किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे के साथ शांति की नीति पर कायम रही। 1959 में तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा छुपकर भारत आ गए, जिससे चीन भड़क गया। इसके बाद चीन ने अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में लगातार घुसपैठ शुरू की। भारत ने जवाब में ‘फॉरवर्ड पॉलिसी’ अपनाई, यानी बॉर्डर के पास छोटी-छोटी चौकियां बनाकर अपने होने का एहसास कराया। इसी नीति के तहत भारतीय सेना ने अक्साई चिन और लद्दाख के इलाकों में कई पोस्टें बनाई थीं, जिनमें से एक थी रेजांग ला पोस्ट। ये इलाका करीब 16,000 फीट की ऊंचाई पर था, जहां तापमान -30 डिग्री तक गिर जाता था और ऑक्सीजन बेहद कम थी। 29 सितंबर 1962 को 13 कुमाऊं बटालियन को इस पोस्ट में तैनाती के आदेश मिले। उस समय चार्ली कंपनी के मुखिया थे मेजर शैतान सिंह भाटी। वो राजस्थान के जोधपुर जिले के बनासर गांव के रहने वाले एक राजपूत थे। बटालियन के ज्यादातर जवान उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब से ताल्लुक रखते थे। कश्मीर में पोस्टिंग के चलते ये जवान सर्दियों में रहना सीख चुके थे, लेकिन बर्फ से इनका पाला कम ही पड़ा था। लद्दाख में विंड चिल फैक्टर भी काम करता है। यानी इतनी ठंडी हवाएं चलती हैं कि खाने-पीने की सारी चीजें पत्थर बन जाती हैं। बटालियन का हिस्सा रहे लांस नायक रामचंद्र यादव के मुताबिक, ‘लद्दाख की ठंड से निपटने के लिए जवानों के पास ढंग के कपड़े तक नहीं थे। कुछ ही दिनों बाद जवान बीमार पड़ने लगे।’ शुरुआत के दिनों में खाना बनाते वक्त बर्तनों ने जवाब दे दिया, तो जवानों ने बिस्किट खाकर काम चलाया। फिर एक बड़े प्रेशर कुकर का इंतजाम हुआ, जिसमें चावल उबालकर खाए गए। 20 अक्टूबर को भारत-चीन युद्ध शुरू हुआ। शुरुआती झड़पों में ही भारतीय सेना को पीछे हटना पड़ा और चीन ने तवांग, बोमडिला और गलवान जैसी चौकियों पर कब्जा कर लिया। नेविल मैक्सवेल अपनी किताब ‘इंडियाज चाइना वॉर’ में लिखते हैं कि युद्ध के पहले हफ्तों में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को ये विश्वास था कि चीन भाईचारे के रिश्ते को नहीं तोड़ेगा, लेकिन जैसे-जैसे भारतीय चौकियां गिरती गईं, उन्हें धक्का लगता गया। इधर, लद्दाख में चुशूल ही एकमात्र इलाका बचा था, जिस पर अभी तक तिरंगा लहरा रहा था। रेजांग ला पास पर 13 कुमाऊं बटालियन तैयारियों में जुटी गई थी। बोरे मंगवाए गए, जिनमें कॉन्क्रीट भरकर बंकर बनाए गए। रेजांग ला में भारतीय सेना के पास ऊंचाई का एडवांटेज था। वो 18 हजार 300 फीट की ऊंचाई पर थी, जबकि चीनी सैनिक 16 हजार फीट पर। देर रात बर्फीले तूफान के बीच सैनिक अपने-अपने बंकरों में थे, लेकिन रेडियो ऑपरेटर लांस नायक रामचंद यादव को ब्रिगेड हेडक्वार्टर से एक संदेश मिला, जिसमें कंपनी को पीछे हट जाने का आदेश दिया गया। इस पर कंपनी कमांडर मेजर शैतान सिंह भाटी ने कहा- ‘हम अपनी पोजिशन नहीं छोड़ेंगे। जब तक जिंदा हैं, रेजांग ला की मिट्टी नहीं छोड़ेंगे।’ 18 नवंबर का सूरज अभी निकला नहीं था। रात के अंधेरे में दुश्मन दबे पांव रेजांग ला की ओर बढ़ने लगा। सबसे आगे की पोस्ट पर तैनात जवानों ने मेजर शैतान सिंह को सिग्नल भेजा, तो उनका जवाब आया कि चीनी सैनिक जैसे ही उनकी रेंज में आएं, फायरिंग शुरू कर दी जाए। ऑर्डर मिलते ही भारतीय जवान दुश्मन पर मशीन गन्स और लाइट मशीन गन्स की मदद से ताबड़तोड़ फायर करने लगे। कुछ ही मिनटों के बाद मेजर को इत्तला दी गई कि चीनी सैनिकों को आगे बढ़ने से रोक दिया गया है और अब तक किसी भी जवान को खरोंच तक नहीं आई है। वहीं, दूसरी ओर चीन ने सुबह साढ़े 4 बजे एक नई चाल चली। बटालियन की सभी पोस्ट्स पर एक साथ शेलिंग की। आसमान से बरसते बारूद के गोलों ने जवानों का खड़े रहना मुश्किल कर दिया। शैतान सिंह ने कहा कि जवान चाहें तो पीछे हट सकते हैं। इस पर आगे की सीमा पर लड़ रहे अहीर जवानों का जवाब आया-‘चिंता मत कीजिए साहब, हमें भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त है।’ इस पर शैतान सिंह ने कहा-‘मैं तुम लोगों के साथ हूं और भले ही मेरे नाम में भाटी लगा है, लेकिन आज मैं भी यादव हूं।’ शैतान सिंह की बातों ने बाकी सैनिकों में भी जोश भरने का काम किया, लेकिन हकीकत ये थी कि 20 मिनट की उस शेलिंग ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया था। जवानों के पास अब सिर्फ दूसरे विश्व युद्ध के दौर की 303 राइफलें थीं, जो चीन की हैवी आर्टिलरी के आगे नहीं टिक सकती थीं। 303 राइफलों को एक बार फायर करने के बाद फिर से लोड करना पड़ता था। कुलप्रीत यादव की किताब ‘द बैटल ऑफ रेजांग ला’ में इस बात का जिक्र मिलता है कि भारतीय जवानों के पास ठंड से लड़ने के कपड़े नहीं थे। वो मोटे हैंड ग्लव्स पहने हुए थे, जिससे बंदूक के ट्रिगर में उनकी उंगली नहीं जा पाती थी। इस बात का फायदा उठाकर चीनी सैनिकों ने पूरी ताकत से हमला किया। भारतीयों के टेंट और बंकर चकनाचूर हो गए, लेकिन उन्होंने लड़ना जारी रखा। कई सैनिकों के पैर कुचल दिए गए, वो गोलियां खाकर जमीन पर गिरने लगे। कुछ जवानों ने तो बिना हथियार के भी दो-दो हाथ किए, 2-3 चीनी सैनिकों को उठाकर पहाड़ी से नीचे फेंक दिया, मगर ये ज्यादा देर तक नहीं चल सका। मेजर शैतान सिंह बुरी तरह जख्मी हो गए थे। पहले उनके कंधे पर शेल का एक टुकड़ा आकर लग गया। फिर एक साथ 10 से ज्यादा गोलियां उनके पेट में आकर धंस गईं। उस समय उनके साथ मौजूद लांस नायक रामचंद्र यादव ने देखा कि मेजर की आंतें बाहर आ चुकी हैं। मेजर शैतान सिंह ने रामचंद्र से कहा कि बटालियन में जाओ रामचंद्र और उन्हें बताओ कि कंपनी कितनी बहादुरी से लड़ी और शहीद हो गई। सवा 5 बजे मेजर शैतान सिंह की सांसें थम चुकी थीं। इसके बाद रामचंद्र यादव ने उनके शरीर को बर्फ से ढंक दिया। मेजर शैतान सिंह के अंगरक्षक निहाल सिंह ने उनके आखिरी शब्द सुन लिए थे। वो वहां से निकलकर भाग जाना चाहते थे। उन्होंने किसी तरह अपनी लाइट मशीन गन के पुर्जे अलग किए, ताकि दुश्मन सैनिक उसका इस्तेमाल न कर सकें। लेकिन उनके दोनों हाथों में गोली लग चुकी थी और तभी चीनी सैनिकों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। फिर भी रात के अंधेरे में चीनी सैनिकों को चकमा देकर निहाल सिंह वहां से निकल भागे। भटकते-भटकते 19 नवंबर की दोपहर को निहाल सिंह हेडक्वार्टर पहुंचे, उन्हें जम्मू के अस्पताल में भर्ती कराया गया। जब अधिकारियों ने पूछा कि वहां क्या हुआ था, तो निहाल सिंह ने पूरी कहानी सुनाई। शुरुआत में उनकी बातों पर किसी ने भरोसा नहीं किया। इतिहासकार रचना बिष्ट एक इंटरव्यू में बताती हैं कि वो जवान रेजांग ला से वापस नहीं लौटे। उन्हें दो-तीन महीनों तक कायर कहा गया। आसपास के गांववालों ने उनके परिवारों से बात करना भी छोड़ दिया। यहां तक कि उनके बच्चों को भी स्कूल से निकाल दिया गया। 3 महीने बाद फरवरी 1963 में एक स्थानीय चरवाहे ने बर्फ में जमी लाशें देखकर नजदीकी भारतीय पोस्ट को सूचित किया। सूचना मिलने पर सर्च के लिए टीम भेजी गई। टीम ने वहां जो देखा, वो होश उड़ा देने वाला था। 13 कुमाऊं बटालियन के सैनिकों के शव मोर्चे पर अपनी पोजिशंस पर ही जमे मिले। कितने तो मरते-मरते हथियार जकड़े ही हुए थे। अंतिम संस्कार के लिए हथियारों को अलग करने में मेडिकल टीम के पसीने छूट गए। रेजांग ला की इस लड़ाई में 113 भारतीय सैनिक शहीद हुए। 6 जवानों को बंदी बना लिया गया, जिनमें से एक निहाल सिंह कैद से भाग निकले। एक की मृत्यु चीन की कैद में हुई और 4 वापस देश लौट गए। रेजांग ला की लड़ाई में भारतीय जवानों ने चीनियों को करारा जवाब दिया था। बाद में खुद चीन के रेडियो प्रसारण ने माना कि इस मुकाबले में उनके सैनिकों की हताहत संख्या भारत की तुलना में चार से पांच गुना ज्यादा हुई थी। माना जाता है कि उनकी वीरता को देखकर चीनी सैनिक भी स्तब्ध रह गए थे। जब टीम वहां पहुंची तो उन्होंने देखा कि चीनी सैनिक कई भारतीय सैनिकों की लाशों को आर्म्स डाउन सेल्यूट देकर गए थे। इसे सैनिक परंपरा में सम्मान और श्रद्धांजलि का प्रतीक माना जाता है। आसान शब्दों में कहें तो लाशों पर चीनी सैनिकों की राइफलों के मुंह नीचे की ओर झुके हुए रखे गए थे। कुछ रिकॉर्ड्स ये भी कहते हैं कि लड़ाई के बाद चीनी सैनिकों ने अपने कमांडरों से जाकर कहा था- They did not retreat an inch यानी वे एक इंच भी पीछे नहीं हटे। 13 कुमाऊं की ‘सी कंपनी’ को बाद में कई सम्मान मिले। मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र, जबकि आठ अन्य जवानों को वीर चक्र से सम्मानित किया गया। छह बचे हुए सैनिकों में से पांच को सेना मेडल और एक को मेंशन इन डिस्पैच दिया गया। यह एकमात्र ऐसी कंपनी थी जिसे भारतीय सेना के इतिहास में सबसे ज्यादा वीरता पुरस्कार एक साथ मिले। फरहान अख्तर की फिल्म का ट्रेलर लॉन्च होने के बाद इसका नाम ‘120 बहादुर’ से बदलकर ‘120 वीर अहीर’ करने की मांग उठाई जा रही है। अहीर समाज का आरोप है कि फिल्म में अहीरों की कहानी को कम दिखाकर, इसे मेजर शैतान सिंह भाटी पर केंद्रित कर दिया गया है। अब सच्चाई क्या है, ये तो फिल्म रिलीज होने के बाद ही पता चला चलेगा। **** ये स्टोरी दैनिक भास्कर में फेलोशिप कर रहे प्रथमेश व्यास ने लिखी है। **** References and Further Readings: -------------- ये खबर भी पढ़िए... जब ईरान ने 53 अमेरिकियों को बंधक बनाया:अमेरिका गिड़गिड़ाता रहा, छुड़ाने गए 8 कमांडोज की लाश लौटी; 444 दिनों के जद्दोजहद की कहानी 4 नवंबर 1979 की सुबह… यानी आज से ठीक 46 साल पहले। वॉशिंगटन डीसी स्थित अमेरिकी विदेश मंत्रालय के दफ्तर का फोन बजा। कॉल ईरान से थी। वहां अमेरिकी दूतावास की पॉलिटिकल ऑफिसर एलिजाबेथ ऐन स्विफ्ट ने हांफते हुए कहा- हमला हो गया है। भीड़ दीवार फांदकर दूतावास के अंदर घुस रही है और दूतावास पर कभी भी कब्जा हो सकता है। एलिजाबेथ के आखिरी शब्द थे- ‘वी आर गोइंग डाउन’। पूरी खबर पढ़ें...
हिमालय परिवार श्रीगंगानगर की ओर से कैलाश मानसरोवर को चीन के कब्जे से मुक्त कराने और तिब्बत की आजादी को लेकर श्रीगंगानगर कलेक्ट्रेट के बाहर विरोध-प्रदर्शन किया गया। पदाधिकारियों ने कलेक्टर को राष्ट्रपति का नाम ज्ञापन सौंपा और नारेबाजी की। प्रदेशाध्यक्ष बोले- चीन का 1962 से अवैध कब्जा अब तक कायम संस्था के प्रदेशाध्यक्ष शिव स्वामी ने बताया- चीन ने भाईचारे को तार-तार करते हुए 20 अक्टूबर 1962 को जबरन युद्ध थोपकर 82 हजार वर्ग किलोमीटर भारतीय भूमि पर अवैध कब्जा जमा लिया था।भारत सरकार ने उसी साल 14 नवंबर को इस भूमि को मुक्त कराने का संकल्प लिया था, लेकिन 63 वर्ष बीत जाने के बावजूद यह पवित्र भूमि चीन के चंगुल से आजाद नहीं हो पाई है। जिलाध्यक्ष मुनीश कुमार लड्ढा ने कहा कि हिमालय परिवार ने 14 नवंबर को 'संकल्प स्मरण दिवस' के रूप में विभिन्न आयोजन किए और चीन द्वारा कब्जाई गई भारतीय भूमि से 63 साल गुजरने पर भी चीनी कब्जेदारों को खदेड़ न पाने पर गहरा आक्रोश जताया। भारत सरकार से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ा कदम उठाने की मांग चीन के भारत के आंतरिक मामलों में बार-बार हस्तक्षेप, अरुणाचल प्रदेश सहित बड़े भू-भाग को अपने नक्शे में दिखाने और कब्जाई गई भूमि को विदेशी अड्डों, आतंकवादी प्रशिक्षण, घुसपैठ व नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए इस्तेमाल करने जैसे गंभीर मुद्दों को उठाया गया। संगठन ने भारत सरकार से मांग की कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी विरोध दर्ज करवाकर भारतीय भूमि को मुक्त कराया जाए।
लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में आज से छह दिवसीय जनजातीय भागीदारी उत्सव की शुरुआत हो रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह आज शाम 5 बजे इसका उद्घाटन करेंगे। यह उत्सव 13 से 18 नवंबर तक चलेगा, जिसमें देशभर के आदिवासी समुदायों की कला, संगीत, परंपराओं और जीवनशैली को प्रदर्शित किया जाएगा। यह आयोजन उत्तर प्रदेश पर्यटन व संस्कृति विभाग और समाज कल्याण विभाग के सहयोग से स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती के मौके पर किया जा रहा है। हर साल आयोजित होने वाला यह उत्सव भारत की आदिवासी विरासत को सम्मान देने का प्रतीक बन गया है। 100 स्टॉलों में दिखेगा आदिवासी जीवन का रंग उत्सव परिसर में 100 से अधिक स्टॉल लगाए गए हैं, जिनमें आदिवासी व्यंजन, हस्तशिल्प, पारंपरिक आभूषण, लोक पेंटिंग, घर सजावट का सामान और जनजातीय जीवन से जुड़ी वस्तुएं प्रदर्शित की जा रही हैं। साथ ही, आने वाले लोगों के लिए आदिवासी कहानियों के सत्र, कार्यशालाएं, पारंपरिक खेल और क्षेत्रीय खाद्य प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाएंगी। पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह ने कहा, “भारतीय सभ्यता अपने आदिवासी समाजों की वजह से इतनी समृद्ध है। यह उत्सव ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के विचार को इन समुदायों की सांस्कृतिक एकता के माध्यम से साकार करता है।” अरुणाचल प्रदेश बनेगा आकर्षण का केंद्र इस बार उत्सव में भागीदार राज्य के रूप में अरुणाचल प्रदेश शामिल है। वहाँ से आए 27 कलाकार लोक गीत, पारंपरिक नृत्य और विशेष व्यंजन प्रस्तुत करेंगे। उनके स्टॉल पर पूर्वोत्तर की पेंटिंग और हस्तशिल्प भी प्रदर्शित किए जाएंगे। उत्तर प्रदेश जनजातीय एवं लोक कला संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी ने बताया कि इस बार का मुख्य आकर्षण “मुखौटों की प्रदर्शनी” होगी, जिसे उत्तर-पूर्वी राज्यों के कलाकार प्रस्तुत करेंगे। आदिवासी गौरव और सशक्तिकरण का उत्सव समाज कल्याण मंत्री आसिम अरुण ने कहा कि “यह उत्सव आदिवासी समुदायों के गौरव, विकास और सशक्तिकरण का प्रतीक है। यह उनकी भाषाओं, परंपराओं और जीवनशैली के सम्मान का अवसर है, जो भारत की एकता की नींव को और मजबूत करता है।” एकता में विविधता का जीवंत उदाहरण ‘जनजातीय भागीदारी उत्सव’ केवल सांस्कृतिक प्रदर्शनी नहीं, बल्कि भारत की विविधता में एकता का जीवंत उदाहरण है। यहां आने वाले लोग अलग-अलग राज्यों के आदिवासी कलाकारों से सीधे संवाद कर सकते हैं, उनके हस्तनिर्मित उत्पाद खरीद सकते हैं और उनकी संस्कृति को करीब से जान सकते हैं। यह उत्सव न सिर्फ आदिवासी समाज की पहचान को सामने लाता है, बल्कि उस भारत की झलक भी दिखाता है, जो अपनी जड़ों और परंपराओं से गहराई से जुड़ा हुआ है।
जनजाति गौरव दिवस के अवसर पर 13 से 18 नवम्बर तक गोमतीनगर स्थित इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में ‘जनजाति भागीदारी उत्सव’ का आयोजन होगा। यह महोत्सव केवल सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारत की जनजातीय परंपराओं, रहन-सहन और लोक संस्कृति का जीवंत प्रदर्शन बनेगा। आयोजन में 18 राज्यों के करीब 600 जनजातीय कलाकार पारंपरिक गीत, नृत्य और वादन प्रस्तुत कर देश की सांस्कृतिक एकता का संदेश देंगे। अरुणाचल प्रदेश इस उत्सव का भागीदार राज्य रहेगा। जनजातीय समाज की वन संस्कृति, प्रकृति के प्रति आस्था, सहयोग की परंपरा और आत्मनिर्भर जीवनशैली इस आयोजन की आत्मा होगी। प्रदर्शनी में पारंपरिक व्यंजन, हस्तशिल्प, हथकरघा उत्पाद, लोक चित्रकला और आभूषण आकर्षण का केंद्र रहेंगे। असम के लखीमपुर निवासी वरिष्ठ रंगकर्मी दयाल कृष्ण नाठ इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान परिसर को बांस, टेराकोटा लुक और जनजातीय अल्पनाओं से सजा रहे हैं। उनका कहना है,बांस असम की जिंदगी का हिस्सा है, जो घर से लेकर क्राकरी तक में शामिल है। 13 नवम्बर को सांस्कृतिक शोभायात्रा निकाली जाएगी उत्सव की तैयारियां देर रात तक जारी हैं। कहीं चौपाल बन रही है तो कहीं जनजातीय आंगन सजे हैं। उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति कला संस्कृति संस्थान के निदेशक डॉ. अतुल द्विवेदी ने बताया कि 13 नवम्बर को सुबह 11 बजे 1090 चौराहे से सांस्कृतिक शोभायात्रा निकलेगी। शाम 5 बजे से उद्घाटन सत्र होगा, जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुख्य अतिथि होंगे। पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) असीम अरुण और राज्य मंत्री संजीव कुमार गोंड की उपस्थिति रहेगी। उद्घाटन के बाद असम का बरदोईशिखला, ओडिशा का डुरुआ नृत्य, महाराष्ट्र का लिंगो, छत्तीसगढ़ का मांदरी, राजस्थान का मांगणिहार गायन, गुजरात का मेवासी व सिद्धिधमाल, अरुणाचल का याक न्य्हो, मध्य प्रदेश का भगोरिया व गुदुमबाजा, उत्तर प्रदेश का बुक्सा, शैला, झीझी व मादल वादन तथा बिहार का संथाली नृत्य दर्शकों को मंत्रमुग्ध करेंगे। बीन वादन, रंगोली, नट-नटी और बहुरूपिया कला भी विशेष आकर्षण रहेंगी।
Bigg Boss 18 : चुम दरांग को मिला अरुणाचल प्रदेश के सीएम का सपोर्ट
सलमान खान का पॉपुलर रियलिटी शो 'बिग बॉस 18' अपने अंतिम दौर में पहुंच गया है। हर कोई इस सीजन का विनर बनने के लिए पूरा जोर लगा रहा है। इन दिनों शो में 'टिकट टू फिनाले' टास्क चल रहा है। इस टास्क में विवियन डीसेना और चुम दरंग आमने-सामने खड़े हैं। वहीं ...

