नीतीश कुमार आज यानी गुरुवार को 11.30 बजे 10वीं बार बिहार में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। इसके लिए गांधी मैदान में भव्य समारोह का आयोजन किया गया है। शपथ ग्रहण समारोह में PM मोदी समेत 11 राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल होंगे। PM मोदी सुबह 10.45 बजे हेलिकॉप्टर से सीधे गांधी मैदान पहुंचेंगे। इसके बाद 11 बजे से समारोह शुरू हो जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत कई बड़े भाजपा नेता मौजूद रहेंगे। गांधी मैदान की सुरक्षा SPG के हाथों में है। वहीं, राजभवन में PM के सम्मान में भोज होगा। यहां नरेंद्र मोदी के साथ 150 खास मेहमान रहेंगे। ताज, मौर्या, चाणक्या जैसे होटलों में 260 कमरे बुक कराए गए हैं। गांधी मैदान के आसपास के सभी स्कूल-कॉलेज बंद रहेंगे। NDA का शक्ति प्रदर्शन, 3 लाख लोगों के जुटने की संभावना शपथ ग्रहण समारोह में NDA की ओर शक्ति प्रदर्शन भी होगा। 3 लाख से अधिक लोगों के जुटने की संभावना है। इसको लेकर जदयू, बीजेपी, रालोमो और हम के कार्यकर्ताओं और नेताओं को जिम्मेदारी दी गई है। हर विधायक को 5-5 हजार लोगों को पटना लाना है। ये बड़े नेता आएंगे... शपथ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा शामिल होंगे। इसके साथ ही 16 राज्यों के मुख्यमंत्री समारोह में मौजूद रहेंगे। इनमें यूपी के योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के मोहन यादव, उत्तराखंड के पुष्कर सिंह धामी, आंध्र प्रदेश के चंद्रबाबू नायडू, राजस्थान के भजनलाल शर्मा, महाराष्ट्र के देवेंद्र फडनवीस, मेघालय के कॉनराड संगमा, उड़ीसा के मोहन चरण मांझी, गुजरात के भूपेंद्र पटेल, गोवा के प्रमोद सावंत, दिल्ली की रेखा गुप्ता, हरियाणा के नायब सिंह सैनी, असम के हिमंत बिस्वा सरमा, अरुणाचल प्रदेश के पेमा खांडू, त्रिपुरा के माणिक साहा और मणिपुर के एन. बीरेन सिंह शामिल हैं। गेट नंबर-1 से VVIP गेस्ट की एंट्री गांधी मैदान में एंट्री के लिए 13 गेट हैं। गेट नंबर वन सिर्फ VVIP गेस्ट के लिए है। इस गेट से वे लोग ही गांधी मैदान जाएंगे, जिन्हें मुख्य मंच पर बैठना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सीएम नीतीश कुमार, राज्यपाल, मंत्री पद की शपथ लेने वाले विधायक और विभिन्न राज्यों के सीएम जैसे VVIP की एंट्री इसी गेट से होगी। आम लोगों को दूसरे गेट से गांधी मैदान में प्रवेश मिलेगा। गांधी मैदान में 2 मंच, मुख्य मंच पर सीएम लेंगे शपथ शपथ ग्रहण समारोह के लिए गांधी मैदान में दो मंच बनाए गए हैं। मुख्य मंच पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शपथ लेंगे। इसी मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा और NDA के शासन वाले राज्यों के सीएम बैठेंगे। इसी मंच पर शपथ लेने वाले मंत्री भी बैठेंगे। मुख्य मंच के ठीक बगल में दूसरा मंच बनाया गया है। इसपर शपथ समारोह के लिए बुलाए गए खास लोगों को बैठने का इंतजाम किया गया है। मंच के आसपास बैरिकेडिंग की गई है। विशेष अतिथियों के लिए अलग रास्ता है। दोनों मंच पर 150 लोग बैठेंगे। योगी आदित्यनाथ समेत कई राज्यों के CM होंगे शामिल शपथ समरोह के लिए NDA शासित राज्यों के CM को न्योता भेजा गया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी बुलाया गया है। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ, दिल्ली की CM रेखा गुप्ता, उत्तराखंड के CM पुष्कर सिंह धामी, मध्यप्रदेश के CM मोहन यादव, राजस्थान के CM भजन लाल शर्मा, महाराष्ट्र के CM देवेंद्र फडणवीस सहित भाजपा और NDA शासित राज्यों के CM और डिप्टी CM को निमंत्रण भेजा गया है। कार्यक्रम में पद्मभूषण, पद्मश्री सम्मान पाने वाले लोगों, वैज्ञानिकों, साहित्यकारों सहित अन्य खास लोगों को इनवाइट किया गया है। प्रधानमंत्री के सम्मान में राज भवन में भोज पीएम नरेंद्र मोदी के सम्मान में राज भवन में भोज का आयोजन किया गया है। खाने में कम तेल-मसाला हो इसका विशेष ध्यान रखा गया है। लिट्टी चोखा पर पुदीना की चटनी मिलेगी। पीएम के लिए खासतौर पर हरी सब्जी और सलाद का इंतजाम किया गया है। भोज में सिलाव का खाजा, पंतूआ जैसे बिहारी व्यंजन परोसे जाएंगे। इस भोज में पीएम के साथ 150 खास मेहमान होंगे। केंद्रीय मंत्री, विभिन्न राज्यों के सीएम, बड़े नेता और चुनाव जीतकर आए विधायकों को न्योता दिया गया है। 3 होटलों में ठहरेंगे शपथ समारोह में बुलाए गए गेस्ट शपथ समारोह में बुलाए गए मेहमानों को ठहराने के लिए स्टेट गेस्ट हाउस में व्यवस्था की गई है। इसके अलावा पटना सर्किट हाउस को भी तैयार रखा गया है। NDA के 202 विधायक चुनाव जीतकर आए हैं। इसके साथ ही कई राज्यों के सीएम आने वाले हैं। उन्हें ठहराने के लिए ताज, मौर्या, चाणक्या जैसे आलीशान होटल में 250 कमरे बुक कराए गए हैं। बुधवार को एनडीए विधानमंडल दल के नेता चुने गए थे नीतीश बुधवार की सुबह 11 बजे पटना के बीजेपी ऑफिस में विधायक दल की बैठक हुई। इसमें सम्राट चौधरी को विधायक दल का नेता चुना गया है। विजय सिन्हा को विधानमंडल का उपनेता चुना गया। यानी अब ये तय हो गया है कि सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा ही नई सरकार में डिप्टी CM होंगे। इधर, बीजेपी के विधायक दल की बैठक से पहले JDU के विधायक दल की बैठक हुई, जिसमें नीतीश कुमार को नेता चुना गया। इसके बाद बिहार विधानसभा के सेंट्रल हॉल में नीतीश कुमार को NDA विधायक दल का नेता चुना गया। बैठक खत्म होते ही मुख्यमंत्री राजभवन पहुंचे और राज्यपाल मो. आरिफ खान को इस्तीफा सौंपा और साथ ही नई सरकार बनाने का दावा पेश किया। 5 तस्वीरों में देखिए बुधवार को क्या-क्या हुआ सुबह से ही बदली रहेगी ट्रैफिक व्यवस्था आज सुबह 8 बजे से दोपहर 3 बजे तक पटना का ट्रैफिक व्यवस्था बदली रहेगी। इमरजेंसी वाहनों को छोड़कर अन्य दूसरे वाहनों को गांधी मैदान के इलाके में प्रतिबंधित कर दिया गया है। सुरक्षा के दृष्टिकोण से अभी से ही गांधी मैदान की ओर आने वाली एक लेन में बैरिकेडिंग कर दी गई है। ------------ क्या आप हैं बिहार के एक्सपर्ट? 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लखनऊ में 6 दिवसीय जनजाति उत्सव संपन्न:बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर संस्कृति का संगम
राजधानी लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित 6 दिवसीय जनजाति भागीदारी उत्सव मंगलवार को संपन्न हो गया। जनजाति गौरव दिवस पर शुरू हुए इस उत्सव में देशभर के विभिन्न राज्यों और जनजातीय समुदायों की संस्कृति, नृत्य, संगीत और परंपराओं का अनूठा संगम देखने को मिला। समापन समारोह में अनेक लोकनृत्य और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी गईं, जिन्होंने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कठपुतली प्रदर्शन ने पारंपरिक लोककला का प्रदर्शन किया और खूब सराहना बटोरी। मध्य प्रदेश के बैगा परधौनी, बहराइच के हूरदूंगवा और चित्रकूट के जावरा, राई तथा बलमा नृत्य की प्रस्तुतियों ने जनजातीय जीवन के विविध रंगों को दर्शाया। उत्सव का मुख्य उद्देश्य जनजातीय परंपराओं को नई पीढ़ी से जोड़ना था अरुणाचल प्रदेश के याक (Yak) और न्यहो (Nyohu) नृत्य ने पूर्वोत्तर भारत की पारंपरिक विरासत को मंच पर जीवंत किया। दर्शकों ने इन प्रस्तुतियों की सराहना की। पूरे सप्ताह चले इस उत्सव में आए लोगों ने विभिन्न जनजातीय समुदायों की कला, खानपान, हस्तशिल्प और लोक-संस्कृति को करीब से अनुभव किया। आयोजन समिति के अनुसार, इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य जनजातीय समाज की सांस्कृतिक विविधता को मुख्यधारा तक पहुंचाना और उनकी गौरवपूर्ण परंपराओं को नई पीढ़ी से जोड़ना था।समापन के अवसर पर सफल आयोजन के लिए सभी विभागीय अधिकारियों, सहयोगी संस्थानों, प्रतिभागी कलाकारों और दर्शकों को धन्यवाद दिया गया।
नवंबर 1962। भारत और चीन के बीच जंग जारी थी। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी LAC के नजदीक लद्दाख के रेजांग ला में 13 कुमाऊं बटालियन की चार्ली कंपनी तैनात थी। माइनस 30 डिग्री की तूफानी हवाओं से बचने के लिए जवानों के पास ढंग के स्वेटर और दस्ताने तक नहीं थे। पत्थरों से बने बिना छत वाले बंकर, जरूरत से आधी ऑक्सीजन के साथ इस चौकी पर जिंदा रहना भी किसी जंग से कम नहीं था। तभी आई 18 नवंबर 1962 की वो सुबह। चौकी पर तैनात जवानों ने देखा कि 3 हजार से ज्यादा चीनी सैनिक मॉडर्न हथियारों के साथ रेजांग ला दर्रे की ओर चले आ रहे हैं। उनसे भिड़ने का मतलब था मौत। कंपनी कमांडर मेजर शैतान सिंह भाटी ने आदेश दिया- एक इंच भी पीछे नहीं हटना है। और फिर शुरू हुई वह जंग, जो मिसाल बनी। महीनों बाद जब बर्फ पिघली, तो पोजिशन में उनकी जमी हुई देह मिली। साथ ही दिखा चीनी सैनिकों का राइफलें उल्टी रखकर दिया गया Arms Down Salute। 21 नवंबर को रिलीज होने वाली फरहान अख्तर की फिल्म ‘120 बहादुर’ ने इस लड़ाई को फिर सुर्खियों में ला दिया है। कौन थे ये 120 योद्धा? रेजांग ला में उस रात क्या हुआ था और अब क्यों मच रहा है विवाद; जानेंगे भास्कर एक्सप्लेनर में… रेजांग ला की लड़ाई से पहले भारत और चीन के सीमा विवाद को समझना जरूरी है। इसकी जड़ 1914 की मैकमोहन रेखा (McMahon Line) थी, जिसे भारत में ब्रिटिश राज के दौरान तिब्बत के साथ सीमा तय करने के लिए खींचा गया था, लेकिन चीन ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया। 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया, तो भारत ने इसका खुलकर विरोध नहीं किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे के साथ शांति की नीति पर कायम रही। 1959 में तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा छुपकर भारत आ गए, जिससे चीन भड़क गया। इसके बाद चीन ने अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में लगातार घुसपैठ शुरू की। भारत ने जवाब में ‘फॉरवर्ड पॉलिसी’ अपनाई, यानी बॉर्डर के पास छोटी-छोटी चौकियां बनाकर अपने होने का एहसास कराया। इसी नीति के तहत भारतीय सेना ने अक्साई चिन और लद्दाख के इलाकों में कई पोस्टें बनाई थीं, जिनमें से एक थी रेजांग ला पोस्ट। ये इलाका करीब 16,000 फीट की ऊंचाई पर था, जहां तापमान -30 डिग्री तक गिर जाता था और ऑक्सीजन बेहद कम थी। 29 सितंबर 1962 को 13 कुमाऊं बटालियन को इस पोस्ट में तैनाती के आदेश मिले। उस समय चार्ली कंपनी के मुखिया थे मेजर शैतान सिंह भाटी। वो राजस्थान के जोधपुर जिले के बनासर गांव के रहने वाले एक राजपूत थे। बटालियन के ज्यादातर जवान उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब से ताल्लुक रखते थे। कश्मीर में पोस्टिंग के चलते ये जवान सर्दियों में रहना सीख चुके थे, लेकिन बर्फ से इनका पाला कम ही पड़ा था। लद्दाख में विंड चिल फैक्टर भी काम करता है। यानी इतनी ठंडी हवाएं चलती हैं कि खाने-पीने की सारी चीजें पत्थर बन जाती हैं। बटालियन का हिस्सा रहे लांस नायक रामचंद्र यादव के मुताबिक, ‘लद्दाख की ठंड से निपटने के लिए जवानों के पास ढंग के कपड़े तक नहीं थे। कुछ ही दिनों बाद जवान बीमार पड़ने लगे।’ शुरुआत के दिनों में खाना बनाते वक्त बर्तनों ने जवाब दे दिया, तो जवानों ने बिस्किट खाकर काम चलाया। फिर एक बड़े प्रेशर कुकर का इंतजाम हुआ, जिसमें चावल उबालकर खाए गए। 20 अक्टूबर को भारत-चीन युद्ध शुरू हुआ। शुरुआती झड़पों में ही भारतीय सेना को पीछे हटना पड़ा और चीन ने तवांग, बोमडिला और गलवान जैसी चौकियों पर कब्जा कर लिया। नेविल मैक्सवेल अपनी किताब ‘इंडियाज चाइना वॉर’ में लिखते हैं कि युद्ध के पहले हफ्तों में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को ये विश्वास था कि चीन भाईचारे के रिश्ते को नहीं तोड़ेगा, लेकिन जैसे-जैसे भारतीय चौकियां गिरती गईं, उन्हें धक्का लगता गया। इधर, लद्दाख में चुशूल ही एकमात्र इलाका बचा था, जिस पर अभी तक तिरंगा लहरा रहा था। रेजांग ला पास पर 13 कुमाऊं बटालियन तैयारियों में जुटी गई थी। बोरे मंगवाए गए, जिनमें कॉन्क्रीट भरकर बंकर बनाए गए। रेजांग ला में भारतीय सेना के पास ऊंचाई का एडवांटेज था। वो 18 हजार 300 फीट की ऊंचाई पर थी, जबकि चीनी सैनिक 16 हजार फीट पर। देर रात बर्फीले तूफान के बीच सैनिक अपने-अपने बंकरों में थे, लेकिन रेडियो ऑपरेटर लांस नायक रामचंद यादव को ब्रिगेड हेडक्वार्टर से एक संदेश मिला, जिसमें कंपनी को पीछे हट जाने का आदेश दिया गया। इस पर कंपनी कमांडर मेजर शैतान सिंह भाटी ने कहा- ‘हम अपनी पोजिशन नहीं छोड़ेंगे। जब तक जिंदा हैं, रेजांग ला की मिट्टी नहीं छोड़ेंगे।’ 18 नवंबर का सूरज अभी निकला नहीं था। रात के अंधेरे में दुश्मन दबे पांव रेजांग ला की ओर बढ़ने लगा। सबसे आगे की पोस्ट पर तैनात जवानों ने मेजर शैतान सिंह को सिग्नल भेजा, तो उनका जवाब आया कि चीनी सैनिक जैसे ही उनकी रेंज में आएं, फायरिंग शुरू कर दी जाए। ऑर्डर मिलते ही भारतीय जवान दुश्मन पर मशीन गन्स और लाइट मशीन गन्स की मदद से ताबड़तोड़ फायर करने लगे। कुछ ही मिनटों के बाद मेजर को इत्तला दी गई कि चीनी सैनिकों को आगे बढ़ने से रोक दिया गया है और अब तक किसी भी जवान को खरोंच तक नहीं आई है। वहीं, दूसरी ओर चीन ने सुबह साढ़े 4 बजे एक नई चाल चली। बटालियन की सभी पोस्ट्स पर एक साथ शेलिंग की। आसमान से बरसते बारूद के गोलों ने जवानों का खड़े रहना मुश्किल कर दिया। शैतान सिंह ने कहा कि जवान चाहें तो पीछे हट सकते हैं। इस पर आगे की सीमा पर लड़ रहे अहीर जवानों का जवाब आया-‘चिंता मत कीजिए साहब, हमें भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त है।’ इस पर शैतान सिंह ने कहा-‘मैं तुम लोगों के साथ हूं और भले ही मेरे नाम में भाटी लगा है, लेकिन आज मैं भी यादव हूं।’ शैतान सिंह की बातों ने बाकी सैनिकों में भी जोश भरने का काम किया, लेकिन हकीकत ये थी कि 20 मिनट की उस शेलिंग ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया था। जवानों के पास अब सिर्फ दूसरे विश्व युद्ध के दौर की 303 राइफलें थीं, जो चीन की हैवी आर्टिलरी के आगे नहीं टिक सकती थीं। 303 राइफलों को एक बार फायर करने के बाद फिर से लोड करना पड़ता था। कुलप्रीत यादव की किताब ‘द बैटल ऑफ रेजांग ला’ में इस बात का जिक्र मिलता है कि भारतीय जवानों के पास ठंड से लड़ने के कपड़े नहीं थे। वो मोटे हैंड ग्लव्स पहने हुए थे, जिससे बंदूक के ट्रिगर में उनकी उंगली नहीं जा पाती थी। इस बात का फायदा उठाकर चीनी सैनिकों ने पूरी ताकत से हमला किया। भारतीयों के टेंट और बंकर चकनाचूर हो गए, लेकिन उन्होंने लड़ना जारी रखा। कई सैनिकों के पैर कुचल दिए गए, वो गोलियां खाकर जमीन पर गिरने लगे। कुछ जवानों ने तो बिना हथियार के भी दो-दो हाथ किए, 2-3 चीनी सैनिकों को उठाकर पहाड़ी से नीचे फेंक दिया, मगर ये ज्यादा देर तक नहीं चल सका। मेजर शैतान सिंह बुरी तरह जख्मी हो गए थे। पहले उनके कंधे पर शेल का एक टुकड़ा आकर लग गया। फिर एक साथ 10 से ज्यादा गोलियां उनके पेट में आकर धंस गईं। उस समय उनके साथ मौजूद लांस नायक रामचंद्र यादव ने देखा कि मेजर की आंतें बाहर आ चुकी हैं। मेजर शैतान सिंह ने रामचंद्र से कहा कि बटालियन में जाओ रामचंद्र और उन्हें बताओ कि कंपनी कितनी बहादुरी से लड़ी और शहीद हो गई। सवा 5 बजे मेजर शैतान सिंह की सांसें थम चुकी थीं। इसके बाद रामचंद्र यादव ने उनके शरीर को बर्फ से ढंक दिया। मेजर शैतान सिंह के अंगरक्षक निहाल सिंह ने उनके आखिरी शब्द सुन लिए थे। वो वहां से निकलकर भाग जाना चाहते थे। उन्होंने किसी तरह अपनी लाइट मशीन गन के पुर्जे अलग किए, ताकि दुश्मन सैनिक उसका इस्तेमाल न कर सकें। लेकिन उनके दोनों हाथों में गोली लग चुकी थी और तभी चीनी सैनिकों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। फिर भी रात के अंधेरे में चीनी सैनिकों को चकमा देकर निहाल सिंह वहां से निकल भागे। भटकते-भटकते 19 नवंबर की दोपहर को निहाल सिंह हेडक्वार्टर पहुंचे, उन्हें जम्मू के अस्पताल में भर्ती कराया गया। जब अधिकारियों ने पूछा कि वहां क्या हुआ था, तो निहाल सिंह ने पूरी कहानी सुनाई। शुरुआत में उनकी बातों पर किसी ने भरोसा नहीं किया। इतिहासकार रचना बिष्ट एक इंटरव्यू में बताती हैं कि वो जवान रेजांग ला से वापस नहीं लौटे। उन्हें दो-तीन महीनों तक कायर कहा गया। आसपास के गांववालों ने उनके परिवारों से बात करना भी छोड़ दिया। यहां तक कि उनके बच्चों को भी स्कूल से निकाल दिया गया। 3 महीने बाद फरवरी 1963 में एक स्थानीय चरवाहे ने बर्फ में जमी लाशें देखकर नजदीकी भारतीय पोस्ट को सूचित किया। सूचना मिलने पर सर्च के लिए टीम भेजी गई। टीम ने वहां जो देखा, वो होश उड़ा देने वाला था। 13 कुमाऊं बटालियन के सैनिकों के शव मोर्चे पर अपनी पोजिशंस पर ही जमे मिले। कितने तो मरते-मरते हथियार जकड़े ही हुए थे। अंतिम संस्कार के लिए हथियारों को अलग करने में मेडिकल टीम के पसीने छूट गए। रेजांग ला की इस लड़ाई में 113 भारतीय सैनिक शहीद हुए। 6 जवानों को बंदी बना लिया गया, जिनमें से एक निहाल सिंह कैद से भाग निकले। एक की मृत्यु चीन की कैद में हुई और 4 वापस देश लौट गए। रेजांग ला की लड़ाई में भारतीय जवानों ने चीनियों को करारा जवाब दिया था। बाद में खुद चीन के रेडियो प्रसारण ने माना कि इस मुकाबले में उनके सैनिकों की हताहत संख्या भारत की तुलना में चार से पांच गुना ज्यादा हुई थी। माना जाता है कि उनकी वीरता को देखकर चीनी सैनिक भी स्तब्ध रह गए थे। जब टीम वहां पहुंची तो उन्होंने देखा कि चीनी सैनिक कई भारतीय सैनिकों की लाशों को आर्म्स डाउन सेल्यूट देकर गए थे। इसे सैनिक परंपरा में सम्मान और श्रद्धांजलि का प्रतीक माना जाता है। आसान शब्दों में कहें तो लाशों पर चीनी सैनिकों की राइफलों के मुंह नीचे की ओर झुके हुए रखे गए थे। कुछ रिकॉर्ड्स ये भी कहते हैं कि लड़ाई के बाद चीनी सैनिकों ने अपने कमांडरों से जाकर कहा था- They did not retreat an inch यानी वे एक इंच भी पीछे नहीं हटे। 13 कुमाऊं की ‘सी कंपनी’ को बाद में कई सम्मान मिले। मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र, जबकि आठ अन्य जवानों को वीर चक्र से सम्मानित किया गया। छह बचे हुए सैनिकों में से पांच को सेना मेडल और एक को मेंशन इन डिस्पैच दिया गया। यह एकमात्र ऐसी कंपनी थी जिसे भारतीय सेना के इतिहास में सबसे ज्यादा वीरता पुरस्कार एक साथ मिले। फरहान अख्तर की फिल्म का ट्रेलर लॉन्च होने के बाद इसका नाम ‘120 बहादुर’ से बदलकर ‘120 वीर अहीर’ करने की मांग उठाई जा रही है। अहीर समाज का आरोप है कि फिल्म में अहीरों की कहानी को कम दिखाकर, इसे मेजर शैतान सिंह भाटी पर केंद्रित कर दिया गया है। अब सच्चाई क्या है, ये तो फिल्म रिलीज होने के बाद ही पता चला चलेगा। **** ये स्टोरी दैनिक भास्कर में फेलोशिप कर रहे प्रथमेश व्यास ने लिखी है। **** References and Further Readings: -------------- ये खबर भी पढ़िए... जब ईरान ने 53 अमेरिकियों को बंधक बनाया:अमेरिका गिड़गिड़ाता रहा, छुड़ाने गए 8 कमांडोज की लाश लौटी; 444 दिनों के जद्दोजहद की कहानी 4 नवंबर 1979 की सुबह… यानी आज से ठीक 46 साल पहले। वॉशिंगटन डीसी स्थित अमेरिकी विदेश मंत्रालय के दफ्तर का फोन बजा। कॉल ईरान से थी। वहां अमेरिकी दूतावास की पॉलिटिकल ऑफिसर एलिजाबेथ ऐन स्विफ्ट ने हांफते हुए कहा- हमला हो गया है। भीड़ दीवार फांदकर दूतावास के अंदर घुस रही है और दूतावास पर कभी भी कब्जा हो सकता है। एलिजाबेथ के आखिरी शब्द थे- ‘वी आर गोइंग डाउन’। पूरी खबर पढ़ें...
हिमालय परिवार श्रीगंगानगर की ओर से कैलाश मानसरोवर को चीन के कब्जे से मुक्त कराने और तिब्बत की आजादी को लेकर श्रीगंगानगर कलेक्ट्रेट के बाहर विरोध-प्रदर्शन किया गया। पदाधिकारियों ने कलेक्टर को राष्ट्रपति का नाम ज्ञापन सौंपा और नारेबाजी की। प्रदेशाध्यक्ष बोले- चीन का 1962 से अवैध कब्जा अब तक कायम संस्था के प्रदेशाध्यक्ष शिव स्वामी ने बताया- चीन ने भाईचारे को तार-तार करते हुए 20 अक्टूबर 1962 को जबरन युद्ध थोपकर 82 हजार वर्ग किलोमीटर भारतीय भूमि पर अवैध कब्जा जमा लिया था।भारत सरकार ने उसी साल 14 नवंबर को इस भूमि को मुक्त कराने का संकल्प लिया था, लेकिन 63 वर्ष बीत जाने के बावजूद यह पवित्र भूमि चीन के चंगुल से आजाद नहीं हो पाई है। जिलाध्यक्ष मुनीश कुमार लड्ढा ने कहा कि हिमालय परिवार ने 14 नवंबर को 'संकल्प स्मरण दिवस' के रूप में विभिन्न आयोजन किए और चीन द्वारा कब्जाई गई भारतीय भूमि से 63 साल गुजरने पर भी चीनी कब्जेदारों को खदेड़ न पाने पर गहरा आक्रोश जताया। भारत सरकार से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ा कदम उठाने की मांग चीन के भारत के आंतरिक मामलों में बार-बार हस्तक्षेप, अरुणाचल प्रदेश सहित बड़े भू-भाग को अपने नक्शे में दिखाने और कब्जाई गई भूमि को विदेशी अड्डों, आतंकवादी प्रशिक्षण, घुसपैठ व नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए इस्तेमाल करने जैसे गंभीर मुद्दों को उठाया गया। संगठन ने भारत सरकार से मांग की कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी विरोध दर्ज करवाकर भारतीय भूमि को मुक्त कराया जाए।
Bigg Boss 18 : चुम दरांग को मिला अरुणाचल प्रदेश के सीएम का सपोर्ट
सलमान खान का पॉपुलर रियलिटी शो 'बिग बॉस 18' अपने अंतिम दौर में पहुंच गया है। हर कोई इस सीजन का विनर बनने के लिए पूरा जोर लगा रहा है। इन दिनों शो में 'टिकट टू फिनाले' टास्क चल रहा है। इस टास्क में विवियन डीसेना और चुम दरंग आमने-सामने खड़े हैं। वहीं ...

