4 दिन में दो देशों ने दिया सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान, विदशों में PM मोदी की जय-जयकार
Dominica Award of Honor: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन देशों के दौरे पर हैं. सबसे पहले वो नाइजीरिया पहुंचे जहां उन्हें सम्मानित किया गया. उन्हें ‘ग्रैंड कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द नाइजर’ दिया गया. इसके चार दिन के अंदर ही डोमिनिका ने प्रधानमंत्री मोदी को देश का शीर्ष पुरस्कार 'डोमिनिका अवार्ड ऑफ ऑनर' दिया है. और भारत के एक एहसान की चर्चा की है, जानें पूरा मामला.
ट्रंप के कुर्सी संभालने से पहले क्यों पैदल भाग रहे हजारों अप्रवासी?
US migrants crisis: ट्रंप ने चुनाव जीत लिया है लेकिन कुर्सी संभालने में अभी वक्त है. वे जनवरी 2025 में सत्ता संभालेंगे लेकिन इसके पहले ही अमेरिका में रह रहे प्रवासियों में भगदड़ मच गई है.
सैन्य शासन की आलोचना करना पड़ा भारी, बर्खास्त हुए माली के प्रधानमंत्री
Mali PM : सैन्य शासन की आलोचना करने पर माली के प्रधानमंत्री चोगुएल मैगा को बर्खास्त कर दिया गया है. इस मामले में राष्ट्रपति की ओर से आदेश जारी कर किया गया है.
कितनी घातक हैं स्टॉर्म शैडो मिसाइलें? यूक्रेन ने पहली बार रूस पर दागीं तो मच गया तहलका
Ukraine missile attack on Russia: यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध खत्म होने की बजाय समय के साथ बढ़ता जा रहा है. साथ ही इस युद्ध में एक से बढ़कर घातक हथियारों के उपयोग के तहत अब यूक्रेन ने रूस पर स्टॉर्म शैडो मिसाइलें दागी हैं.
PM Modi-CARICOM: पीएम मोदी ने इस समिट को संबोधित करते कहा कि भारत और कैरिबियाई देशों के संबंधों को और मजबूत करने के लिए सात स्तंभों का प्रस्ताव रखा गया है.जानें वह सात बातें. जिसके आधार पर तय होगा कैरिबियाई देशों से रिश्ता.
संस्कृत में शपथ लेकर छाए थे लेटिन अमेरिकी देश के राष्ट्रपति, PM मोदी से मुलाकात में भी जीता दिल
PM Modi and Suriname President Chan Santokhi : गुयाना यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सूरीनाम के राष्ट्रपति चान संतोषी से मुलाकात की. ये वही भारतीय मूल के राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने संस्कृत में शपथ लेकर खूब सुर्खियां बटोरी थीं.
सबसे पहले रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव का बयान पढ़िए- 'रूस ने नया परमाणु सिद्धांत बनाया है। कोई देश जिसके पास परमाणु शक्ति नहीं है, अगर वो किसी न्यूक्लियर पावर वाले देश के सपोर्ट से हमला करता है तो इसे रूस के खिलाफ जंग का ऐलान समझा जाएगा। अब NATO के ठिकाने चाहे जहां हों, रूस उनके खिलाफ भारी तबाही फैलाने वाले (परमाणु) हथियारों से जवाबी कार्रवाई कर सकता है। इसका मतलब है- तीसरा विश्वयुद्ध।’ पिछले 2-3 दिनों में हालात तेजी से बदले हैं। अमेरिका ने यूक्रेन की राजधानी कीव में अपना दूतावास बंद कर दिया है। नॉर्वे, स्वीडन और फिनलैंड ने अपने नागरिकों को जंग के लिए तैयार रहने को कहा है। जर्मनी ने नाटो के 8 लाख सैनिकों को मोबिलाइज करने का प्लान तैयार कर लिया है। डोनाल्ड ट्रम्प के बेटे आरोप लगा रहे हैं कि उनके पिता के काम-काज संभालने से पहले बाइडेन प्रशासन तनाव पैदा कर रहा है ताकि थर्ड वर्ल्ड वॉर की शुरुआत हो जाए। अचानक न्यूक्लियर वॉर का हड़कंप क्यों मचा और क्या ट्रम्प के राष्ट्रपति पद संभालने से पहले ही जंग फैल जाएगी; इसी टॉपिक पर है हमारा आज का एक्सप्लेनर… सवाल 1: ऐसा क्या हुआ है कि अचानक न्यूक्लियर वॉर का हड़कंप मच गया? जवाब: बीते एक हफ्ते में 6 ऐसी बड़ी घटनाएं हुई हैं जिनके चलते न्यूक्लियर वॉर का हड़कंप मच गया है… 1. यूक्रेन ने रूस पर अमेरिका के दिए 6 लॉन्ग रेंज मिसाइल दागे: यूक्रेन ने 19 नवंबर को रूस पर 6 अमेरिकी बैलिस्टिक मिसाइल से हमला किया। इस वॉर में यह पहली बार है जब यूक्रेन ने लॉन्ग रेंज की बैलिस्टिक मिसाइल का इस्तेमाल किया है। कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि अमेरिका ने इसकी इजाजत 17 नवंबर को ही दे दी थी। 2. रूस ने न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन में बदलाव किए: अमेरिका द्वारा यूक्रेन को परमिशन दिए जाने के बाद 19 नवंबर को रूस ने अपने न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन में बदलाव किए। नई न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन के मुताबिक, अगर कोई नॉन-न्यूक्लियर देश (यूक्रेन) रूस पर हमला कर रहा हो और उसे किसी न्यूक्लियर देश (अमेरिका) का सपोर्ट हो तो इसे जॉइंट अटैक माना जाएगा। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि इस हमले को रूस, अमेरिका के सीधे हमले की तरह देख रहा है। 3. फिनलैंड और स्वीडन ने अपने लोगों से तैयार रहने को कहा: स्वीडन और फिनलैंड ने अपने नागरिकों को जंग के लिए तैयार रहने के लिए कहा है। फिनलैंड ने इस बारे में 18 नवंबर को गाइडलाइन भी जारी की है। दोनों देशों ने हाल ही में NATO की सदस्यता ली है। दरअसल, रूस ने अपनी डॉक्ट्रिन में कहा है कि किसी सैन्य गुट का कोई सदस्य देश उस पर हमला करेगा तो रूस इसे पूरे गुट के हमले की तरह देखेगा। 4. नॉर्थ कोरिया के सैनिक रूस की तरफ से लड़ रहे: 20 नवंबर को साउथ कोरिया ने अपनी खुफिया एजेंसी के हवाले से बताया कि नॉर्थ कोरिया ने रूस की मदद के लिए करीब 11 हजार सैनिक भेजे हैं। यह सैनिक रूस की ओर से यूक्रेन के खिलाफ लड़ रहे हैं। साउथ कोरिया ने यह भी दावा किया कि नॉर्थ कोरिया रूस को हथियार भेजकर भी मदद कर रहा है। 5. ट्रम्प के बेटे का ‘थर्ड वर्ल्ड वॉर’ पर बयान: डोनाल्ड ट्रम्प के बेटे डोनाल्ड ट्रम्प जूनियर ने भी बाइडेन द्वारा यूक्रेन को मिसाइल के इस्तेमाल की परमिशन की आलोचना की। 17 नवंबर को उन्होंने सोशल मीडिया X पर पोस्ट लिखा, ’मिलिट्री इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि मेरे पिता के कार्यभार संभालने से पहले ही तीसरा विश्वयुद्ध शुरू हो जाए।’ 6. जर्मनी ने कहा रूस की धमकियों से नहीं डरेंगे: 19 नवंबर को जर्मनी की विदेश मंत्री एनालेना बेयरबॉक ने रूस की न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन को लेकर कहा कि उनका देश रूस की धमकियों से नहीं डरेगा। उन्होंने कहा, ‘पुतिन हमारे डर के साथ खेल रहे हैं। वह ऐसा 2014 से कर रहे हैं। मगर उस दौरान हमने राजनीतिक तौर पर उनसे डरने की गलती की थी, मगर अब हम अपनी सुरक्षा का ध्यान रखेंगे। पुतिन यूरोप को बांटना चाहते हैं, लेकिन वह बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं।’ सवाल 2: अमेरिका की मिसाइल से रूस पर हमले को इतनी बड़ी घटना क्यों माना जा रहा है? जवाब: दो महत्वपूर्ण कारणों से रूस पर हुए इस हमले को बड़ी घटना माना जा रहा है। 1. रूस ने कहा- यूक्रेन को अमेरिका का ऑपरेशनल सपोर्ट: 19 नवंबर को रूस के विदेश मंत्री सरगेई लावरोव ने कहा कि यूक्रेन के हमले का मतलब है कि पश्चिमी देश इस वॉर को और बढ़ाना चाहते हैं। रूस ने यह भी कहा कि अमेरिका के ऑपरेशनल सपोर्ट के बिना इन मिसाइलों को लॉन्च नहीं किया जा सकता। ऐसे में अमेरिका सीधे तौर पर रूस के सामने है, जिसका जवाब देने के लिए वह बाध्य है। रूस के अनुसार वह इस हमले को वॉर के नए फेज की तरह देख रहा है और उसी तरह इसका जवाब भी देगा। 2. मिसाइल के उपयोग से यूक्रेन रूस के सैन्य ठिकानों को निशाना बना सकेगा: अमेरिका का आर्मी टैक्टिकल मिसाइल सिस्टम (ATACMS) 300 किमी की रेंज तक मिसाइल दाग सकता है। यूक्रेन ने इसका इस्तेमाल कर रूस की आर्मी फैसिलिटी को निशाना बनाया है। आशंका जताई जा रही है कि यूक्रेन आगे भी रूस के सैन्य ठिकानों, एयर बेस और अन्य महत्वपूर्ण जगहों पर हमला कर सकता है। साथ ही इसका इस्तेमाल रूस और नॉर्थ कोरिया के सैनिकों को रोकने के लिए किया जा सकता है। मिलिट्री एक्सपर्ट का कहना है कि यूक्रेन अपने कब्जे वाले इलाके को बचाने के लिए भी इसका इस्तेमाल करेगा। सवाल 3: क्या रिटैलिएशन में पुतिन न्यूक्लियर बम का इस्तेमाल कर सकते हैं? जवाब: फरवरी 2022 में शुरू हुई रूस-यूक्रेन जंग के दौरान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कई बार इंटरनेशनल लॉ तोड़कर यूक्रेन पर हमला किया। कई बार परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की धमकी दी, लेकिन ऐसा कोई हमला उन्होंने नहीं किया। रूस के पास सबसे ज्यादा 5580 एटॉमिक वेपन हैं। हाल ही में रूस ने अपने न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन में बदलाव किए हैं। 19 फरवरी को क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने इस बात पर जोर दिया कि यूक्रेन के ऐसे हमले नए न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन के तहत एटॉमिक एक्शन को बढ़ावा दे सकते हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन और पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने भी यूक्रेन, नाटो और अमेरिका को खुली चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि अगर उनके देश के खिलाफ लंबी दूरी की मिसाइलों या हथियारों का इस्तेमाल किया गया तो परमाणु जंग छेड़ देंगे। विदेश मामलों के जानकार और जेएनयू में प्रोफेसर राजन कुमार मानते हैं कि पुतिन न्यूक्लियर अटैक की धमकी दे रहे हैं, लेकिन ऐसे हमले की संभावना कम है। वे कहते हैं, अमेरिका और यूक्रेन के एक्शन पर रूस रिटैलिएट जरूर करेगा, लेकिन न्यूक्लियर बम के इस्तेमाल की संभावना कम है। हालांकि दोनों देशों के बीच साइकोलॉजिकल वॉर जारी है। प्रो. राजन कुमार कहते हैं, ‘रूस मैसेज देना चाह रहा है कि अगर उसे या उसकी आर्मी को ज्यादा नुकसान होता है तो वह टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन का इस्तेमाल कर सकता है। ये एक तरह की धमकी है, लेकिन इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। रूस जानता है कि ट्रम्प के आने के बाद उसकी स्थिति और मजबूत होगी। इसलिए वह इंतजार करेगा और अभी कोई बड़ा हमला नहीं करेगा।’ सवाल 4: क्या ट्रम्प के कार्यभार संभालने से पहले ही थर्ड वर्ल्ड वॉर शुरू हो सकती है? रूस-यूक्रेन वॉर पर ट्रम्प का रुख क्या है? जवाब: 14 नवंबर को एक कार्यक्रम में डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा, 'रूस और यूक्रेन को रुकना होगा। मैंने आज एक रिपोर्ट देखी। पिछले तीन दिनों में हजारों लोग मारे गए। वे सभी सैनिक थे, फिर चाहे वे सेना में हों या शहरों में बैठे लोग। हम इस पर काम करेंगे।' इलेक्शन कैम्पेन के दौरान ट्रम्प ने कई बार रूस-यूक्रेन जंग खत्म करने का वादा किया। उन्होंने यूक्रेन की मदद के लिए अमेरिका की ओर से भेजे गए ‘अरबों डॉलर’ की आलोचना की। चुनाव के दौरान ट्रम्प ने ‘24 घंटे के भीतर’ जंग को खत्म करने की भी बात की। ट्रम्प ने एक इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने इलेक्शन जीतने के बाद दुनियाभर के करीब 70 लीडर्स के साथ फोन पर बात की। 6 नवंबर को यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से फोन पर ट्रम्प की बात हुई। इसके बाद जेलेंस्की ने कहा कि उन्हें यकीन है कि डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद रूस के साथ जंग जल्दी खत्म हो जाएगी। इसके बाद 7 नवंबर को ट्रम्प ने पुतिन से फोन पर बात की और यूक्रेन के साथ जंग न बढ़ाने को कहा। द वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक, 'ट्रम्प ने पुतिन से यूक्रेन जंग का जल्द ही उपाय खोजने की मांग की।' लेकिन कुछ अमेरिकी जानकारों का मानना है कि बाइडेन के फैसलों से वर्ल्ड वॉर की सिचुएशन बन गई है। अमेरिकी पॉलिटिकल कमेंटेटर ग्लेन बेक ने कहा, बाडेन अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में तीसरे विश्व युद्ध का जोखिम उठा रहे हैं। यह महाभियोग योग्य है। जॉर्जिया की रिप्रेजेंटेटिव मार्जोरी टेलर ग्रीन ने कहा, 'केवल कांग्रेस ही जंग का ऐलान कर सकती है, लेकिन बाइडेन अपने आखिरी दिनों में रूस के साथ युद्ध भड़काने के लिए हर कोशिश कर रहे हैं। बाइडेन हमें WW3 में धकेलने की कोशिश कर रहे हैं।' प्रो. राजन कुमार बताते हैं, वर्ल्ड वॉर में कई देश सीधे तौर पर शामिल होते हैं, लेकिन अभी ऐसी स्थिति नहीं है। तो ऐसे में कहा जा सकता है कि अभी वर्ल्ड वॉर के हालात नहीं हैं। हालांकि ट्रम्प के आने के बाद से रूस-यूक्रेन वॉर में स्थिति सुधर सकती है। सवाल 5: बाइडेन ने ट्रम्प के आने से पहले मिसाइल के इस्तेमाल की इजाजत क्यों दी? जवाब: अमेरिकी राष्ट्रपति जो. बाइडेन अपने कार्यकाल के आखिरी 2 महीनों में यूक्रेन को जंग में खुलकर सपोर्ट कर रहे हैं। 5 नवंबर को ट्रम्प की जीत के बाद से बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन के अधिकारियों ने बार-बार कहा है कि बाइडेन बचे हुए समय में यूक्रेन को मजबूती से जंग लड़ने और रूस के साथ समझौते में स्ट्रॉन्ग पोजिशन रखने के लिए मदद करेंगे। हालांकि कुछ अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि अगर रूस पर यूक्रेन मिसाइलें दागता है तो पुतिन अमेरिका और उसके साथी देशों के खिलाफ एक्शन ले सकते हैं। यूक्रेन के पूर्व सीक्रेट सर्विस ऑफिसर इवान स्टुपक ने कहा कि अमेरिका के इस फैसले से ग्लोबल लेवल पर कुछ भी नहीं बदलेगा। हालांकि यह एक 'निर्णायक' कदम है। इससे यूक्रेन एक-दो हजार रूसी सैनिकों और करीब 150 भारी इक्विपमेंट्स को खत्म कर सकता है। लेकिन ट्रम्प के करीबियों ने इसका विरोध किया है। ट्रम्प के करीबी और अमेरिकी नेशनल इंटेलिजेंस के कार्यकारी निदेशक रहे रिचर्ड ग्रेनेल ने बाइडेन के इस फैसले की आलोचना की। उन्होंने सोशल मीडिया X पर लिखा, किसी को भी अंदेशा नहीं था कि बाइडेन पद छोड़ने से पहले रूस-यूक्रेन जंग को बढ़ा देंगे। ये सब पॉलिटिक्स के लिए हो रहा है। 18 नवंबर को बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर से पूछा गया कि क्या कोई राष्ट्रपति ऐसे समय में इतना अहम फैसला ले सकते हैं? तो इस पर उन्होंने जवाब दिया कि बाइडेन को चार साल कार्यकाल के लिए चुना गया था, न कि तीन साल और 10 महीने कार्यकाल के लिए। जब ट्रम्प सत्ता संभालेंगे, तो वह अलग फैसले ले सकते हैं। बाइडेन के फैसले को प्रो. राजन कुमार वादा पूरा करने की कोशिश मानते हैं। वे कहते हैं, ‘बाइडेन के फैसले की दो वजहें हैं। पहली, नॉर्थ कोरिया ने अपने सिपाही रूस की मदद करने के लिए भेजे हैं। इससे यूक्रेन कमजोर पड़ सकता है। दूसरी, बाइडेन अपने आखिरी दिनों में यूक्रेन को दिया हुआ अपना वादा पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि बाइडेन के दौरान ही ये जंग शुरू हुई और उन्होंने यूक्रेन को अमेरिकी मदद का आश्वासन दिया था।।’ प्रो. राजन कुमार कहते हैं, ट्रम्प के आने के बाद रूस-यूक्रेन के बीच नेगोशिएशन शुरू होगा। इसमें यूक्रेन मजबूती से अपना पक्ष रख सके और रूस कम दबाव बनाए इसके लिए बाइडेन ऐसा कर रहे हैं। **** रिसर्च सहयोग: शिशिर अग्रवाल -------------- रूस-यूक्रेन जंग से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए... यूक्रेन ने पहली बार रूस पर अमेरिकी मिसाइलें दागीं: बाइडेन ने 2 दिन पहले दी थी मंजूरी; पुतिन ने परमाणु हमले की धमकी दी थी रूस ने दावा किया है कि यूक्रेन ने पहली बार अमेरिका से मिली लंबी दूरी की मिसाइलें उनके इलाके में दागी हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि यूक्रेन ने 19 नवंबर की सुबह ब्रियांस्क इलाके में लंबी दूरी वाली 6 आर्मी टेक्टिकल मिसाइल सिस्टम (ATACMS) मिसाइलें दागीं। रिपोर्ट के मुताबिक यूक्रेन और अमेरिका के अधिकारियों ने भी रूस पर ATACMS का इस्तेमाल किए जाने की पुष्टि की है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने सितंबर में अमेरिका को धमकी दी थी कि अगर अमेरिका ने लंबी दूरी के हथियारों के इस्तेमाल की मंजूरी दी तो परमाणु जंग छिड़ जाएगी। ATACMS एक सुपरसॉनिक बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम है। यह 300 किमी तक सटीक हमला कर सकता है। पूरी खबर पढ़िए...
5 साल की सियासी उठापटक के बाद महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए। अब कुछ सवाल हैं। क्या BJP के नेतृत्व वाला महायुति गठबंधन दोबारा सरकार बना पाएगा या कांग्रेस के महाविकास अघाड़ी की सरकार में वापसी होगी, वोटर दो हिस्सों में बंटी शिवसेना और NCP में से किसे चुनेंगे। मराठा आरक्षण आंदोलन, मराठा Vs OBC के मुद्दे और लाडकी बहिन जैसी योजना का असर क्या रिजल्ट पर भी दिखेगा। इन सवालों का जवाब जानने के लिए भास्कर रिपोर्टर्स बीते एक महीने में मुंबई से लेकर कोंकण, पश्चिम महाराष्ट्र से मराठवाड़ा, उत्तर महाराष्ट्र से विदर्भ तक वोटर्स से मिले। पॉलिटिकल एक्सपर्ट, जर्नलिस्ट, पॉलिटिकल PR करने वाली एजेंसियों से जुड़े लोगों से बात की। पढ़िए भास्कर रिपोर्टर्स पोल… BJP सबसे बड़ी पार्टी, सबसे ज्यादा फायदे में कांग्रेसमहाराष्ट्र में 20 नवंबर को सभी 288 सीटों पर वोटिंग हुई। इन सीटों पर 58% मतदान हुआ है। रिजल्ट 23 नवंबर को आएगा। कवरेज के दौरान मिले इनपुट से समझ आया कि महायुति या महाविकास अघाड़ी दोनों को बहुमत के लिए जरूरी 145 सीटें मिलना मुश्किल है। BJP को सबसे ज्यादा 80-90 सीटें मिल सकती हैं। 2019 में उसे 105 सीटें मिली थीं। 58-60 सीटों के साथ कांग्रेस दूसरे नंबर पर रह सकती है। पिछले चुनाव में उसकी 44 सीटें थीं। चुनाव में शरद पवार का मैजिक चलता दिख रहा है। 86 कैंडिडेट उतारने वाली उनकी पार्टी NCP (SP) 50-55 सीटें जीत सकती है। शिवसेना (शिंदे गुट) और शिवसेना (उद्धव गुट) 30-35 सीटें जीतकर बराबरी पर रह सकती हैं। महायुति के लिए कमजोर कड़ी अजित पवार की पार्टी NCP बन रही है। उसके सिर्फ 15-20 सीटों पर जीतने की संभावना है। छोटी पार्टियां और निर्दलीय को 20 से 25 सीटें मिल सकती हैं। ऐसे में ये किंगमेकर बन सकते हैं। राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के 2-4 कैंडिडेट जीत सकते हैं। समाजवादी पार्टी को भी एक सीट मिल सकती है। कांग्रेस, NCP (शरद पवार) और शिवसेना (उद्धव) का गठबंधन महाविकास अघाड़ी, महायुति से 10 सीटें ज्यादा हासिल कर सकता है। ये भी मुमकिन है कि इस गठबंधन को बहुमत मिल जाए। महाविकास अघाड़ी उद्धव की शिवसेना कमजोर, विदर्भ में कांग्रेस को बढ़त 2019 के चुनाव में चौथे नंबर पर रही कांग्रेस इस बार सहयोगी पार्टियों पर भारी दिख रही है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 13 सीटें जीतकर चौंका दिया था। विदर्भ की 62 सीटों में से कांग्रेस करीब 50 सीटें जीत सकती है। गठबंधन में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 101 कैंडिडेट उतारे हैं। महाविकास अघाड़ी की दूसरी बड़ी पार्टी शिवसेना (उद्धव गुट) सबसे कमजोर साबित हो सकती है। पार्टी ने 95 कैंडिडेट उतारे हैं। इनमें से एक तिहाई के ही जीतने के चांस हैं। शरद पवार की पार्टी NCP (SP) पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा में मजबूत दिख रही है। उसे मराठा वोट का फायदा मिल सकता है। महायुति: BJP का स्ट्राइक रेट अच्छा, अजित पवार बिगाड़ सकते हैं खेलBJP के नेतृत्व वाला महायुति बहुमत से थोड़ा पीछे रह सकता है। उत्तरी महाराष्ट्र, कोंकण और मुंबई में BJP अच्छा कर सकती है। हालांकि विदर्भ में पार्टी को नुकसान होता दिख रहा है। पिछले चुनाव में BJP ने यहां 29 सीटें जीती थीं। पार्टी इस बार 149 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अलायंस की दूसरी बड़ी पार्टी शिवसेना (शिंदे गुट) मुंबई, कोंकण और मराठवाड़ा में मजबूत है। पार्टी ने 80 सीटों पर कैंडिडेट उतारे हैं। महायुति के पीछे रहने की वजह अजित पवार की NCP बन सकती है। पश्चिम महाराष्ट्र और मराठवाड़ा के ग्रामीण इलाकों में पार्टी शरद पवार से पिछड़ती दिख रही है। लोकसभा चुनाव में भी अजित पवार की पार्टी सिर्फ रायगढ़ सीट जीत पाई थी। विधानसभा चुनाव में पार्टी 55 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। किसी अलायंस को बहुमत नहीं मिला, तो निर्दलीय बनवाएंगे सरकारनेशनल लेवल पर INDIA ब्लॉक में शामिल समाजवादी पार्टी महाराष्ट्र में अलग चुनाव लड़ रही है। उसे एक सीट मिल सकती है। राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना 2-4 सीटों पर मजबूत है। एक सीट बाबा अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन अघाड़ी को मिल सकती है। 2019 में इस पार्टी ने 3 सीटें जीती थीं। पिछले चुनाव में 13 निर्दलीय कैंडिडेट जीतकर आए थे। इस बार ये संख्या 20 से ज्यादा रह सकती है, यानी बहुमत न मिलने की स्थित में दोनों अलायंस को सरकार बनाने के लिए निर्दलीयों की जरूरत पड़ेगी। एक्सपर्ट बोले- 'बंटेंगे तो कटेंगे ' जैसे बयान महायुति के लिए चैलेंज बने मराठी अखबार लोकसत्ता के एडिटर गिरीश कुबेर कहते हैं, ‘चुनाव के पहले विपक्ष और सत्ता पक्ष, दोनों के पास बड़ा मुद्दा नहीं था। यूपी के CM योगी आदित्यनाथ ने बंटेंगे तो कटेंगे की बात छेड़ दी। यही बयान महायुति के सामने चुनौती बन गया। सहयोगी पार्टियां NCP (अजित) और शिवसेना (शिंदे) दलितों-मुसलमानों को साथ लाना चाहती थीं। योगी के बयान से उनका नुकसान हुआ है।’ ‘लोकसभा चुनाव में महायुति और महाविकास अघाड़ी के वोट में सिर्फ 1% का फर्क था, लेकिन महाविकास अघाड़ी ने 13 सीटें ज्यादा जीती थीं। BJP के लिए सुरक्षित इलाका विदर्भ है। 2019 में BJP ने यहां 29 सीटें जीती थीं, BJP को भी लगता है कि इससे ज्यादा सीटें नहीं मिल सकतीं।’ ‘पश्चिम महाराष्ट्र और विदर्भ में शरद पवार का प्रभाव है। उत्तरी महाराष्ट्र में कांटे की टक्कर है। मराठवाड़ा में BJP के लिए हालात बुरे हैं। मुंबई और ठाणे-कोंकण रीजन में करीब 75 सीटें हैं। महायुति की सबसे ज्यादा उम्मीद यहीं है।’ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से BJP+ को नुकसानमराठी डेली पुढारी के पॉलिटिकल एडिटर प्रमोद चुंचूवार का मानना है कि महाविकास अघाड़ी 150 से ज्यादा सीट जीतेगा, लेकिन ये बॉर्डर लाइन विक्ट्री होगी। कई सीटों पर महाविकास अघाड़ी और महायुति की नेक टु नेक फाइट है। इस चुनाव में ध्यान देने वाली बात ये भी है कि BJP के साथ वे नेता खड़े हैं, जो सेक्युलर हुआ करते थे। इनमें मिलिंद देवड़ा, अशोक चव्हाण और अजित पवार शामिल हैं। प्रमोद चुंचूवार कहते है, ‘ये नेता बांटने की राजनीति नहीं करते। बंटेंगे तो कटेंगे वाले बयान पर अजित पवार और पंकजा मुंडे कह चुके हैं कि ये सब महाराष्ट्र में नहीं चलने वाला है। पहले भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की गई है, तब महाराष्ट्र के लोगों ने इसे नकार दिया है।’ ‘ये चुनाव लोकल मुद्दों पर लड़ा गया है। संविधान का मामला बड़ा साबित हो सकता है क्योंकि यहां विधायक पार्टी का अपहरण कर रहे हैं। पार्टी और सिंबल तक छीन लिया। संविधान के मसले पर BJP कमजोर नजर आ रही है।’ 1995 में 45 निर्दलीय सरकार में शामिल थे, इस बार भी ऐसा मुमकिनमुंबई में रहने वाले सीनियर जर्नलिस्ट राजेंद्र साठे कहते हैं, ‘दोनों गठबंधन बहुमत से पीछे रह जाएंगे, तब निर्दलीय विधायक सरकार बनाने में मदद करेंगे। 1995 में पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा में 45 निर्दलीय कैंडिडेट चुनकर आए थे और सभी सरकार में शामिल हुए थे। नंबर गेम में फिर वैसा ही देखने को मिलेगा, लेकिन नंबर 45 से काफी कम करीब 20-25 होंगे।’ चुनाव के बाद राज ठाकरे और अजित पवार का क्या होगा?राज ठाकरे ने अनुमान लगाया है कि चुनाव के बाद BJP का मुख्यमंत्री होगा। 2029 में उनकी पार्टी मनसे अपना मुख्यमंत्री बनाने में कामयाब होगी। राज ठाकरे के बयान से ये तो साफ है कि महायुति की सरकार बन रही है। सीनियर जर्नलिस्ट राजेंद्र साठे मानते हैं कि... अजित पवार के बारे में वे कहते हैं, ‘अजित भले ही महायुति का हिस्सा हैं, लेकिन कई बार वे पुराने सहयोगियों की तारीफ या साथी दलों के बयानों से असहमति जता चुके हैं। उनके कितने उम्मीदवार जीतेंगे, ये एक सवाल है क्योंकि शरद पवार चुनाव में पूरी ताकत लगा रहे हैं।' लग रहा है कि अजित पवार के 10-15 से ज्यादा उम्मीदवार जीतकर नहीं आएंगे। अजित पवार आज नहीं तो कल शरद पवार के पास वापस चले जाएंगे। हालांकि सीनियर जर्नलिस्ट संदीप सोनवलकर सीटों के बारे में अलग दावा करते हैं। वे कहते हैं कि महायुति की करीब 136 सीटें आती दिख रही हैं। वहीं, महाविकास अघाड़ी को 126 सीटें मिलने की संभावना है। 5 मुद्दे, जिनका चुनाव पर असर दिखा 1. विदर्भ-मराठवाड़ा में सोयाबीन और कपास किसानों की नाराजगीविदर्भ और मराठवाड़ा में पानी की कमी है। यहां गेहूं, गन्ना, चावल के बजाय सोयाबीन और कपास की खेती ज्यादा होती है। दोनों फसलों में कम पानी लगता है। नवंबर में सोयाबीन की फसल कट जाती है और कपास खेत में पककर तैयार होता है। सोयाबीन और कपास दोनों का मौजूदा भाव MSP से नीचे है। इससे किसान नाराज हैं। विदर्भ में विधानसभा की 62 और मराठवाड़ा में 46 सीटें हैं। विदर्भ कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ रहा है। यहां की 36 सीटों पर BJP और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। मराठवाड़ा में किसानों के बीच शरद पवार की अच्छी छवि महाविकास अघाड़ी को फायदा पहुंचाएगी। 2. मराठा बनाम OBC: मराठा वोट नहीं बंटे, तो महाविकास अघाड़ी को फायदामहाराष्ट्र के गांवों में 2 साल से मराठा आरक्षण आंदोलन चल रहा है। यहां आंदोलन शुरू करने वाले मनोज जरांगे पाटिल का प्रभाव है। पहले मनोज जरांगे ने कैंडिडेट उतारने का फैसला लिया था, लेकिन आखिरी वक्त पर उन्होंने नॉमिनेशन वापस ले लिए। अगर मनोज जरांगे पाटिल के कैंडिडेट चुनाव लड़ते, तो मराठा वोट तीन हिस्सों में बंट जाते। एक हिस्सा मनोज जरांगे को, दूसरा महाविकास अघाड़ी को और तीसरा छोटा हिस्सा महायुति को मिलता। इससे सबसे ज्यादा नुकसान महाविकास अघाड़ी को होता। एक्सपर्ट मानते हैं कि आखिरी वक्त पर मनोज जरांगे के नामांकन वापस लेने से मराठा वोट दो हिस्सों में ही बटेंगे। इसका बड़ा हिस्सा शरद पवार और कांग्रेस को मिल सकता है। 3. लाडकी बहिन योजना और महिला वोटर्सलोकसभा चुनाव में हार मिलने के बाद शिंदे सरकार ने महिलाओं के लिए लाडकी बहिन योजना शुरू की थी। इसमें महिलाओं को हर महीने 1500 रुपए मिलते हैं। सरकार बनने के बाद इसे 2100 रुपए करने का वादा किया है। ये योजना मध्य प्रदेश की तर्ज पर शुरू की गई थी। वहां विधानसभा चुनाव में इसी योजना के बलबूते BJP ने बड़ी जीत हासिल की थी। दूसरी तरफ महाविकास अघाड़ी ने वादा किया है कि उसकी सरकार बनी, तो महिलाओं को हर महीने 3 हजार रुपए मिलेंगे। 4. धारावी रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट मुंबई की सबसे बड़ी स्लम धारावी के रीडेवलपमेंट का मुद्दा चुनाव से पहले ही गरमा गया था। इसका प्रोजेक्ट अडाणी ग्रुप की कंपनी को मिला है। उद्धव ठाकरे ने प्रोजेक्ट को रद्द करने का वादा किया है। कांग्रेस पहले से गौतम अडाणी के बहाने BJP को घेरती रही है। महाविकास अघाड़ी में शामिल शरद पवार गौतम अडाणी के दोस्त रहे हैं। चुनाव के दौरान अजित पवार ने एक इंटरव्यू में 2019 में हुई मीटिंग का जिक्र किया, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह, देवेंद्र फडणवीस, शरद पवार और अजित पवार के साथ गौतम अडाणी भी मौजूद थे। शरद पवार ने भी ये बात मानी, लेकिन BJP मौन रही। 5. ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारों से ध्रुवीकरण की कोशिशयूपी के CM योगी के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ से शुरू हुई नारे की राजनीति PM मोदी के ‘एक हैं तो सेफ हैं’ नारे तक गई। चुनाव के पहले BJP ने अखबारों में विज्ञापन भी दिए। पॉलिटिकल एनालिस्ट प्रो. जयदेव डोले कहते हैं, ‘चुनाव पर जाति का फैक्टर हावी दिख रहा था। BJP ने चुनावी रणनीति में बदलाव करके बंटेंगे तो कटेंगे जैसे नारे के जरिए हिंदुओं को एकजुट करने और जाति के समीकरण तोड़ने की कोशिश की।’ एक्सपर्ट ये भी मान रहे हैं कि ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे की वजह से मुस्लिम वोटों में ध्रुवीकरण हुआ, जिसका फायदा महाविकास अघाड़ी को मिला है।....................................... चुनाव से जुड़ी ये खबरें भी पढ़िए1. झारखंड में बहुमत वाली सरकार मुश्किल, BJP बन सकती है सबसे बड़ी पार्टी झारखंड में भी विधानसभा चुनाव हुए हैं। भास्कर रिपोर्टर्स पोल के मुताबिक, राज्य में किसी एक पार्टी या गठबंधन को बहुमत के लिए जरूरी 41 सीटें मिलती नहीं दिख रही हैं। झारखंड में BJP+ को 37-40 और JMM+ को 36-39 सीटें मिल सकती हैं। इस स्थिति में निर्दलीय विधायक किंगमेकर बन सकते हैं। पढ़िए पूरी खबर...
नमस्ते, मेरा नाम रोशन हैकोई मीठा बोलता है तो कोई छक्का या हिजरा। आते-जाते टच भी करते हैं। शुरुआत में बहुत बुरा लगता था। बड़ी ही मुश्किल से अपने आपको कंट्रोल कर पाता। लेकिन, अब धीरे-धीरे ये सब सुनने और सहने की आदत सी हो गई है। कहने को तो अपने घर में मर्द हूं, पत्नी है और बच्चे भी हैं। रोज घर से एक मर्द तरह काम पर जाने का कहकर कंधे पर बैग टांगकर निकलता हूं। हर दिन एक सुनसान जगह पहुंच मेरा रूप बदल जाता है। करीब आधा-एक घंटे के मेकअप और कपड़े औरतों वाले कपड़े पहनने के बाद किन्नर बन जाता हूं।जी हां किन्नर यानी हिजरा... अब यही जिंदगी है मेरी... स्याह कहानियों की सीरीज ब्लैकबोर्ड में आज कहानी ऐसे पुरुषों की जो किन्नर बनकर पैसे कमा रहे हैं... 35 साल के किन्नर राकिब से मेरी मुलाकात नोएडा में एक रेड लाइट सिग्नल के पास हुई। चाल-ढाल और बात करने के तरीके के साथ-साथ पहनावा भी बिल्कुल किन्नरों जैसा। शक की कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं थी। लेकिन, पास खड़े दूसरे किन्नरों को देखकर अचानक वे भागने लगे। समझ नहीं पाई की ऐसा क्या हो गया कि राकिब भाग गए। अपनी कार से उसका कुछ दूर तक पीछा किया और उसे रोककर भागने वजह पूछी। हांफते हुए राकिब ने कहा, 'वो लोग मुझे और मेरे दोस्तों को पसंद नहीं करते।' बार-बार राकिब से दूसरे किन्नरों के पसंद पसंद नहीं किए जाने की वजह पूछी। पहले तो वो मना करता रहा, आखिर में उसने चिढ़ते हुए कहा- वो हमें नकली किन्नर समझते हैं। कुछ देर तक बात करने के बाद राकिब ने कहा कि वो तो किन्नर ही नहीं हैं। फिर बोला- मजबूरी थी इसलिए सलवार-सूट पहनकर ये काम करने लगा। मैं उसकी बात सुन हैरान रह गई... उसे थोड़ी तसल्ली दी और उससे बात करने लगी। राकिब कहते हैं, ‘ग्रेजुएट हूं और कोलकत्ता का रहने वाला हूं। काम की तलाश में मुंबई गया था। जब नौकरी नहीं मिली तो एक बैंक से टैक्सी के लिए कर्ज ले लिया। काम काज जम ही रहा था कि कोरोना आ गया। धंधा बंद हो गया। गाड़ी की किश्त रुक गई। बैंक वाले गाड़ी खींच ले गए। इसी बीच 5 साल का बेटा बीमार हो गया। रिश्तेदारों और दोस्तों से पैसे लेकर इलाज कराया। 15 लाख का कर्ज हो गया। लेनदार घर आने लगे, कमाई का कोई साधन नहीं था।’ एक बार फिर से नौकरी की कोशिश की लेकिन नहीं लगी। घर में खाने तक के लाले पड़ गए। मुंबई में कैब चलाते-चलाते मेरी दोस्ती एक ऐसे लड़कों से हुई थी जो किन्नर बनकर पैसे मांगते थे। परेशानी के वक्त उन लड़कों ने मुझे भी किन्नर बनकर पैसे कमाने को कहा। शुरुआत में मना कर दिया लेकिन जब कोई रास्ता नहीं बचा तो उनके जैसा हिजरा बन चौराहे पर खड़े होकर रुपए मांगने लगा। एक साल पहले ही दिल्ली आया हूं। जब किन्नर बनना शुरू किया तो रोना आता था। खुद को सजा-धजा, लिपिस्टिक और पाउडर लगाए शीशे में देखता था तो ऐसा लगता था कि कोई मर्दानगी को ललकार रहा है। सजा-संवरा रूप मुझे रातभर सोने नहीं देता था। कई रातें तो रोते हुए गुजारी। दुनिया में जिम्मेदारियों से बड़ा कुछ नहीं होता। जब अपने बेटे का चेहरा देखता था तब लगता था कि कुछ भी गलत नहीं कर रहा। राकिब से काफी देर बात करने के बाद उससे उसके कुछ ऐसे दोस्तों से मिलवाने कहा जो उसकी तरह ही पुरुष होकर भी किन्नर बनकर पैसे कमाते हैं। उसने मना किया, लेकिन रिक्वेस्ट करने के बाद वो तैयार हो गया। उसने बिहार के अपने दोस्त रोशन से मिलवाया। पहनावा और चाल देखकर कोई ये नहीं कह सकता कि ये किन्नर नहीं हैं। रोशन कहते हैं, ' किन्नर बन पैसे कमाने में कोई बुराई नहीं है। नौकरी की तलाश में दिल्ली आया था। अच्छी एजुकेशन के बाद भी मुझे नौकरी नहीं मिली। कभी सोचा नहीं था किन्नर बनना पड़ेगा। बात सिर्फ अपनी होती तो गुजारा कर भी लेते। मां-बाप, चार छोटे-भाई बहन की जिम्मेदारी है। उनको हर महीने रुपए भेजने होते हैं। किन्नर बनकर धूप में पूरा दिन रेड लाइट पर खड़े रहते हैं। पेट पालने के लिए कुछ न कुछ तो करना पड़ता है। पैसे कमाने के लिए लोग गलत रास्ते पर चले जाते हैं लेकिन थोड़ा सा मेकअप करके और ताली बजाकर पैसे कमाने में क्या गलत है। रोशन से बात करने के बाद राहुल से मिली। राहुल कहते हैं, 'सोशल मीडिया के चलते संभल कर रहते हैं। डर रहता है कि हमारा कोई वीडियो कभी वायरल नहीं हो जाए। हमारे घरवाले नहीं जानते की हम क्या करते हैं। उनको अगर पता चल गया तो हम कहीं के नहीं रहेंगे। ताली बजाने की और इतरा के चलने की ऐसी आदत हो गई है कि हमारे लिए अब यही नॉर्मल लाइफ है। गांव भी नहीं जाते और जाना भी हुआ तो एक-एक कदम सोच समझकर रखते हैं। लड़का हूं और किन्नर बनकर लोगों से 10-10 रुपए कमाकर जिंदगी चला रहा हूं। असली किन्नर हमें सताते हैं। हमारा अपना भी गुट है। शुरू-शुरू में अजीब लगता था, डिप्रेशन होता था लेकिन कोई कितने दिन टेंशन में रहेगा। अब हमारी यही जिंदगी है जो असली किन्नरों से भी बदतर है। राहुल कहते हैं, 'असली किन्नर टोली में घूमते हैं, जहां भी हमें देखते हैं गालियां देते और मारते हैं। दिनभर का कमाया रुपया पैसा भी छीन लेते हैं। हमारी कोई सोशल लाइफ नहीं है। किन्नर बनकर पैसा कमाना अच्छा नहीं लगता। नॉर्मल लाइफ जीना किसको नहीं पसंद।' इनकी बातें सुनने के बाद मैं असली किन्नरों के पास भी पहुंची। ये जानने के लिए कि नकली किन्नरों की वजह से असली किन्नरों को क्या परेशानी हो रही है। लगातार कोशिश करते-करते मेरी मुलाकात ममता से हुई जो पहचान न उजागर करने की शर्त पर बात करने के राजी हो गईं। नोएडा की रहने वाली 28 साल की ममता कहती हैं कि हमको जिंदगी में बहुत संघर्ष करना पड़ता है। मां-बाप हमें नहीं अपनाते। ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे हमको कोई रोग हो या फिर बीमारी। रुंआसी आवाज में वो कहती हैं कि सौ की भीड़ में आप अकेले हो सकती हो लेकिन उस भीड़ में हम और भी अकेले होते हैं। घरवाले बोलते हैं कि रात के अंधेरे में मिलने आओ। हमने कोई मर्डर थोड़ी ही की जो छिपते छिपाते मिलें। पेट पालने के लिए नौकरी भी की, वहां भी बदसलूकी हुई। हार के फिर वही पीतल के घुंघरु और काठ की ढोलक, हमारा यही मुकद्दर है। लोग हमसे इतना फर्क करते हैं जैसे हमको एचआईवी हो या टीवी हो जो संपर्क में आते ही उन्हें भी हो जाएगा। ममता कहती हैं कि, ‘हम रोज धक्के खाते हैं, बड़ी-बड़ी सोसाइटी बन गई है जिनमें हमें घुसने भी नहीं दिया जाता। आजकल तो वो जमाना है कि पढ़े-लिखे आदमी भी कहते हैं कि दो हथेली ही तो पीटनी है, किसी रेड लाइट पर खड़े हो जाओ और मांगने लगो। ऐसे लोग हम किन्नरों को बदनाम करते हैं।’ अच्छे खासे आदमियों ने इसको धंधा बना रखा है। कभी सोचा कि इतने किन्नर कहां से आ रहे हैं। दुनिया भर का मेकअप करके खड़े हो जाते हैं और दो घंटे में अच्छा-खासा पैसा कमा लेते हैं।ममता कहती हैं कि, ‘किन्नर वो होते हैं जो गद्दी वाले होते हैं, ये सिर्फ बधाईयां ही लेते हैं। नए घर की बधाई, शादी की बधाई, किसी के बच्चा हुआ उसकी बधाई तक ही गद्दी वाले किन्नर सीमित हैं। बाकी किन्नरों के नाम पर करने वाले तो सबकुछ कर रहे हैं, कोई रोकने वाला नहीं, कोई टोकने वाला नहीं। असली किन्नर कभी ट्रेन या बस अड्डे पर मांगने नहीं जाते, हमारे जो नियम है उसे के अनुसार नेक मांगते हैं।’ दिल्ली के मयूर विहार से नोएडा जाते वक्त मेरी मुलाकात संध्या से हुई जो किन्नर हैं। हाथ में छोटा सा पर्स, चेहरे पर हल्का मेकअप और बिखरे बाल को समेटते हुई संध्या ने मुझसे काफी देर बात की। 26 साल की संध्या से पूछा कि आपको टूटी-फूटी हिंदी आती है, आप दिल्ली में कब से हैं और कैसे आईं। इसपर वो कहती हैं कि त्रिलोकपुरी में रहती हूं लेकिन घर पश्चिम बंगाल के दमदम में है। घर में मां, पापा, भाई और बहन हैं लेकिन जैसे-जैसे बड़ी होती गई लोगों के सवाल बढ़ते गए। लोग ताने मारने लगे, किन्नर है इसे घर से निकाल दो। दिल्ली आए 6 साल हो गए फिर कभी घर नहीं गई। यहीं रहती हूं और कुछ मांग कर खा लेती हूं। घरवालों की बहुत याद आती है, मन परेशान होता है, कई बार डर लगता है तो घर पर फोन करती हूं। मम्मी-पापा कोई भी फोन नहीं उठाते, रिश्तेदारों और समाज के तानों के डर से उन्होंने अपने ही खून से मुंह फेर लिया। मैंने संध्या से नकली किन्नरों को लेकर सवाल पूूछना चाहा तो नाम सुनते ही संध्या भड़क गईं और कहने लगीं, ‘अगर अच्छे-खासे मर्द को कोई किन्नर (छक्का) कह दे तो वो मरने-मारने पर उतारू हो जाता है। लेकिन, जब वही बाल-बच्चों वाला मर्द हम जैसे किन्नरों की तरह सज-धज कर हिजड़ा बन रोज पैसा कमाने जाता है, तो उसे क्या कहेंगे।’ हम तो जन्म से ही ऐसे हैं, वो क्यों रोज-रोज हिजड़ा बनता है। जब हिजड़ा बने मर्द कहीं टकरा जाते हैं तो उनके और हमारे बीच का फर्क बताने में हम कोई गुरेज नहीं करते। इन्हीं लोगों की वजह से हम लोग बदनाम हो रहे हैं।संध्या कहती हैं, ‘कई बार सोशल मीडिया पर हिजड़ों के झगड़े की वीडियो वायरल होते हैं। लेकिन सच ये है कि कोई लड़का, किन्नर बनकर पैसे मांगता है तब हमलोग उसका विरोध करते हैं। तभी लड़ाई होती है। आम लोगों को वायरल वीडियो देखकर लगता है कि किन्नर आपस में लड़ रहे हैं।’ 27 साल की राजेश्वरी भी पश्चिम बंगाल की रहने वाली हैं। वो पिछले 6 साल से दिल्ली में रह रही हैं। दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर के पास मेरी मुलाकात राजेश्वरी से हुई। हंसमुख चेहरा और चुलबुली अंदाज में वो मुझसे मिली। अपने अतीत को याद कर राजेश्वरी बताती हैं कि, ‘परिवार में कोई भी नहीं चाहता था कि मैं उनके साथ रहूं। घर में सबसे छोटी थी, मेरे कारण मेरे भाई और बहन की शादी नहीं हो पा रही थी। परिवार वालों ने डॉक्टर के पास इलाज करवाने की भी कोशिश की लेकिन मैं किन्नर थी और मेरा कोई इलाज नहीं हो सकता था। अपने बाईं तरफ का ब्लाउज उठाकर वो मुझे जले का निशान दिखाकर कहती हैं कि मेरे घरवालों ने मुझे जलाकर मारने की कोशिश की। मेरे पड़ोसियों ने किन्नरों को बताया कि मुझे जलाने वाले हैं तो हिजड़े मुझे बचाकर ले गए।’ ये बात कहते कहते राजेश्वरी का गला भारी हो जाता है, वो अपने आंसुओं को पीकर फिर से बताती हैं कि मेरे गुरु ने तब से मुझे संभाला और वही मेरा परिवार बन गए तब से मैने अपने परिवार से नाता तोड़ लिया। एक किन्नर का दर्द किन्नर ही समझ सकता है। आजकल तो किन्नर भी नकली होते हैं। लोग किन्नर का भेष बनाकर गलत तरीके से पैसे कमा रहे हैं। इस वजह से हमें परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हमें बदनाम करके लोग अच्छा नहीं करते हैं। ऐसे लोगों के कारण हम तो बदनाम होते ही हैं लेकिन वो भी अपनी जिंदगी खराब करते हैं। ब्लैकबोर्ड सीरीज की ये खबरें भी पढ़िए... 1.बदला लेने के लिए मैंने आतंकवादी से शादी की:फर्नीचर में जलाए थे बेटे और पति के शव, भाभी पागल हो गईं दिल्ली के पालम इलाके में हमारा घर था। 1 नवंबर 1984 को दंगे शुरू होने के बाद सरकारी दफ्तर बंद कर दिए गए थे। दोपहर करीब एक बजे दरवाजा तोड़कर दंगाई घर के अंदर घुस गए। मेरी आंखों के सामने उन्होंने मेरे पति, बेटे और मामा के तीन बेटों को जलाकर मार डाला।पूरी खबर पढ़िए... 2. शराब पीकर अंधा हो गया:मर जाता तो अच्छा था; अपनी ही बेटी को नहीं देख सकता, इससे बड़ा दुख क्या होगा इस महीने बिहार में शराब पीने से 36 की मौत हुई है। 7 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई। बेचना, खरीदना और पीना सबके लिए जेल होती है। लेकिन, ये तीनों ही काम धड़ल्ले से हो रहे हैं। बिहार में बीते तीन-चार साल में शराब पीकर आंख गंवाने वाले लोगों में से सतेंद्र भी एक हैं। पूरी खबर पढ़िए...
Alexander Dugin India visit:रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को राजनीति सिखाने वाले उनके गुरु अलेक्जेंडर दुगिन ने भारत को लेकर अपने विचार साझा किए हैं. अखंड भारत के विचार से प्रभावित अलेक्जेंडर दुगिन ने भारत को सांस्कृतिक और आध्यात्मिक शक्ति के रूप में देखा है.
झारखंड में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग हो चुकी है। अब 23 नवंबर को पता चलेगा कि क्या JMM सत्ता में वापसी कर रही है? या फिर BJP सरकार बना रही है? नतीजों की तस्वीरें साफ होने से पहले भास्कर रिपोर्टर्स झारखंड की सभी 81 विधानसभा सीटों तक पहुंचे और हवा का रुख समझा। हमने आम जनता से लेकर पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स, सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल पार्टियों से बात की। झारखंड में किसी एक पार्टी या गठबंधन को बहुमत के लिए जरूरी 41 सीटें मिलती नहीं दिख रही हैं। सबसे ज्यादा सीटें BJP गठबंधन (NDA) को मिल सकती हैं। दूसरे नंबर पर JMM के नेतृत्व वाला INDIA ब्लॉक रह सकता है। सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होता दिख रहा है, जो INDIA ब्लॉक को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा सकता है। इस बार झारखंड की JLKM जैसी लोकल पार्टियां और निर्दलीय कैंडिडेट भी सरकार बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। पांकी सीट से निर्दलीय कैंडिडेट देवेंद्र सिंह उर्फ बिट्टू सिंह और कोडरमा सीट से निर्दलीय कैंडिडेट शालिनी गुप्ता मजबूत स्थिति में हैं। NDA झारखंड में सत्ता पाने के करीब झारखंड में भले किसी अलायंस को बहुमत मिलता नहीं दिखा रहा है, लेकिन BJP की अगुआई में NDA सरकार बनाने के करीब दिख रहा है। NDA 37-40 सीटों पर मजबूत है। अगर ये अलायंस 40 सीटें भी जीतता है तो बहुमत के लिए एक सीट की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में NDA किसी निर्दलीय विधायक या छोटी पार्टियों की मदद ले सकता है। झारखंड विधानसभा चुनाव में अगर NDA का सीट शेयरिंग फॉर्मूला देखें तो BJP 68, AJSU 10, JDU 2 और LJP(R) एक सीट पर चुनाव लड़ी है। 2019 के चुनाव में BJP को 25 सीटें मिली थीं, इस बार पार्टी 29-32 सीटें जीत सकती है। यानी पार्टी को 4-7 सीटों का फायदा होता दिख रहा है। AJSU को पिछले चुनाव में 2 सीट मिली थी। इस बार उसे 3-5 सीटें मिल सकती हैं। JDU और LJP (R) को पिछले चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी। इस बार इन्हें 2 और 1 सीट मिलने के आसार हैं। INDIA ब्लॉक के लिए कांग्रेस कमजोर कड़ीINDIA ब्लॉक में सबसे ज्यादा 43 सीटों पर JMM चुनाव लड़ रही है। इसके बाद 30 सीटों पर कांग्रेस और 6 पर RJD मैदान में है। CPI (ML) ने 4 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। इनमें से 3 सीटों धनवार, विश्रामपुर और छतरपुर पर INDIA ब्लॉक में शामिल पार्टियों के बीच फ्रेंडली फाइट है। 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने 16 सीटें जीती थीं, इस बार पार्टी 6-8 सीटों पर सिमट सकती है। JMM को भी नुकसान होता दिख रहा है। पिछले चुनाव में JMM के पास 30 सीटें थीं। इस बार पार्टी के 25-29 सीटें जीतने की संभावना है। लेफ्ट को एक सीट का फायदा हो सकता है। पार्टी इस बार 2 सीटें जीत सकती है। वहीं, RJD को पिछली बार की तरह एक सीट मिल सकती है। सीनियर जर्नलिस्ट शंभू नाथ चौधरी बताते हैं, ‘कांग्रेस पूरे विधानसभा चुनाव में लड़ती हुई नहीं दिखी। पार्टी की स्टेट लीडरशिप चुनाव में बिखर गई। राष्ट्रीय नेताओं के जो दौरे हुए, वो भी पूरी तैयारी से नहीं हुए। झारखंड के मुद्दों पर उन्होंने बात ही नहीं की। राहुल गांधी के भाषणों में सिर्फ संविधान बचाओ और लोकसभा चुनाव के पुराने मुद्दे उठाए गए।’ ’INDIA ब्लॉक पहले से हेमंत सोरेन को लीडर मानकर चल रहा था। चुनाव में JMM को कल्पना सोरेन के रूप में एक और स्टार प्रचारक मिल गया। इन्हीं दोनों नेताओं के बलबूते INDIA ब्लॉक का प्रचार अभियान चला। लिहाजा, ये कहा जा सकता है कि इस चुनाव में INDIA ब्लॉक को जितना भी फायदा होगा, उसका 80% श्रेय हेमंत-कल्पना की जोड़ी को ही जाएगा।’ BJP कोल्हान में खोल सकती है खाता 2019 में BJP को जिस इलाके में सबसे बड़ा झटका लगा था, वो कोल्हान ही है। इस बार पार्टी ने यहां मजबूत घेराबंदी की है। सबसे पहले पार्टी ने कोल्हान टाइगर कहे जाने वाले पूर्व CM चंपाई सोरेन को JMM से BJP में शामिल कराया। इसके बाद कांग्रेस की बड़ी लीडर और पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को अपने साथ जोड़ा। पिछले चुनाव में सरयू राय, चंपाई सोरेन और गीता कोड़ा के कारण ही BJP को इस इलाके में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था। सरयू राय ने तो CM रहे रघुवर दास को ही हरा दिया था। इस बार ये सभी चेहरे BJP के साथ हैं। BJP ने यहां के दो बड़े नेता झारखंड के पूर्व CM रघुवर दास और अर्जुन मुंडा के घरवालों को मैदान में उतारा है। इन समीकरणों की मदद से BJP कोल्हान में वापसी करती दिख रही है। अगर NDA के सहयोगी JDU को भी शामिल कर दें, तो कोल्हान में BJP 4-6 सीटें निकालने में कामयाब होती दिख रही है। निर्दलीय कैंडिडेट और छोटी पार्टियां अहमझारखंड में NDA और INDIA ब्लॉक के बीच कड़ा मुकाबला है। बावजूद इसके 2-3 सीटों पर निर्दलीय और झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा यानी JLKM मजबूत दिख रही है। JLKM चीफ जयराम महतो इलेक्शन में ‘X-फैक्टर’ साबित हो सकते हैं। पांकी और को़डरमा सीटों पर निर्दलीय कैंडिडेट कड़ी टक्कर दे रहे हैं। पांकी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार देवेंद्र सिंह उर्फ बिट्टू सिंह पहले कांग्रेस में थे। टिकट कटने पर वो BJP के कॉन्टैक्ट में थे लेकिन वहां से भी टिकट न मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। वहीं, कोडरमा सीट से निर्दलीय कैंडिडेट शालिनी गुप्ता चुनाव मैदान में हैं। यहां से BJP ने नीरा यादव और RJD ने सुभाष यादव को टिकट दिया है। ऐसे में एंटी यादव वोटों का फायदा शालिनी गुप्ता को मिलता दिख रहा है। वो 2014 में कोडरमा जिला परिषद अध्यक्ष भी रह चुकी हैं और 2019 के चुनाव के बाद से लगातार फील्ड में एक्टिव हैं। एक्सपर्ट बोले- निर्दलीय बन सकते हैं किंगमेकररांची के सीनियर जर्नलिस्ट शंभूनाथ चौधरी कहते हैं, ‘अगर सीट दर सीट कैलकुलेट करेंगे, तो NDA 38 से 39 सीटें जीत सकती है। वहीं, INDIA ब्लॉक 40-41 सीटें जीतती दिख रही है। NDA में BJP 30 से 32 सीटें जीत सकती है। AJSU 5 सीट, JDU और LJP को 1-1 सीट मिलती दिख रही है।‘ ‘INDIA ब्लॉक में सबसे ज्यादा 31 सीटें JMM को मिल सकती हैं। कांग्रेस अपने पुराने प्रदर्शन से नीचे जा सकती है। मैं कांग्रेस को 7 सीटें, RJD को 2 और CPI-ML को एक सीट दूंगा।‘ शंभूनाथ आगे कहते हैं, ‘चुनाव में BJP का कैंपेन सबसे स्ट्रॉन्ग रहा। कोल्हान में BJP पिछली बार 0 थी। इस बार उसे 5 सीटें मिल सकती हैं। दूसरी तरफ संथाल परगना में भी पिछले चुनाव की तुलना में BJP को 1-2 सीटें ज्यादा मिलती दिख रही हैं। 2019 में BJP ने संथाल में 4 सीटें जीती थीं।‘ NDA-INDIA ब्लॉक के लिए बहुमत का आंकड़ा छू पाना मुश्किलझारखंड की सियासत को समझने वाले पॉलिटिकल एक्सपर्ट सुरेंद्र सोरेन कहते हैं, ‘इस बात की संभावना ज्यादा है कि किसी अलायंस को बहुमत न मिले। चुनाव के बाद झारखंड एक बार फिर से पुराना इतिहास दोहरा सकता है। NDA- 37 से 40 और INDIA-36 से 38 सीट जीतता दिख रहा है।‘ JMM की टीम और इसके दो स्टार प्रचारक कल्पना सोरेन और हेमंत सोरेन की सभाओं को छोड़ दिया जाए, तो बाकी न कोई चुनावी सभा हुई और न कोई रैलियां होती दिखीं। उनके कार्यकर्ता डोर-टु-डोर कैंपेनिंग पर फोकस कर रहे थे। ‘दूसरी तरफ BJP की सभाओं की संख्या इस तुलना में थोड़ी ज्यादा रहीं। हालांकि सभाओं की संख्या विधायकों की संख्या बढ़ाएगी, ये कहना फिलहाल मुश्किल है। BJP और JMM दोनों के खाते में 25-25 सीटें आती दिख रही हैं।‘ कांग्रेस इस चुनाव में कहां खड़ी है? इसके जवाब में सुरेंद्र सोरेन कहते हैं, ‘ग्राउंड लेवल पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं की बॉडी लैंग्वेज में ज्यादा कॉन्फिडेंस दिखाई नहीं दिया। कांग्रेस इस चुनाव में डबल डिजिट तक भी पहुंच जाए, तो हैरानी की बात होगी। JMM की बैसाखी के सहारे उनके नेता विधानसभा तक पहुंचेंगे।‘ अगर किसी पार्टी या अलायंस को बहुमत नहीं मिलता है तो सरकार कैसे बनेगी? इस सवाल पर सुरेंद्र कहते हैं, ‘बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के लिए दोनों पार्टियों को सहयोगी दलों पर निर्भर रहना पड़ेगा। संथाल में कांग्रेस और लेफ्ट बेहतर प्रदर्शन करती हैं, तो राज्य में एक बार फिर से INDIA ब्लॉक की सरकार बनेगी।‘ ‘वहीं, NDA खेमे में LJP(R), JDU और AJSU तीन बड़ी पार्टियां हैं। अगर ये अपनी सीटें निकालने में कामयाब हुईं, तो निश्चित तौर पर BJP अलायंस की सरकार बन जाएगी।‘ संथाल में पहली बार JMM से ज्यादा दिखे BJP के झंडे सुरेंद्र के मुताबिक, इस चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ है कि संथाल परगना में घरों पर बड़ी तादाद में BJP के झंडे लगे थे। संथाल के यूथ और महिलाओं में BJP के प्रति झुकाव दिखाई दिया। ये एक बड़ा बदलाव है। इस बार BJP संथाल में कुछ उलटफेर कर सकती है। वहीं, कोल्हान में भी BJP 2-3 सीटें जीत सकती है। ओवरऑल BJP इस बार 25-30 सीटें लाएगी। जयराम महतो JMM और AJSU के वोट को प्रभावित करेंगे। जहां सीटों पर महतो वोटर्स हैं, वहां दोनों अलायंस को नुकसान उठाना पड़ सकता है। सीटें, जिन पर नजर रही... 'बंटोगे तो कटोगे' और 'एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे' का असर झारखंड में पॉलिटिकल एनालिस्ट आनंद कुमार 70 विधानसभा सीटों की यात्रा कर चुके हैं। वो एक्सपर्ट शंभूनाथ चौधरी और सुरेंद्र सोरेन के आंकड़ों पर सहमति नहीं जताते। आनंद का मानना है कि इस बार झारखंड में NDA 42 सीटों के साथ सरकार बनाने की स्थिति में दिख रही है। हंग असेंबली के आसार नहीं दिखाई दे रहे हैं। आनंद कहते हैं, ‘चुनाव में BJP सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई है। अकेले BJP 34 सीटें जीतती दिख रही है। वहीं उसके सहयोगियों की बात करें तो JDU 2, AJSU 5 और LJP(R) एक सीट पर मजबूत दिख रही है।‘ ‘दूसरी तरफ, INDIA ब्लॉक 34-38 सीटों पर सिमट सकता है। चुनाव में JMM और कांग्रेस दोनों को नुकसान होता दिख रहा है। कांग्रेस 16 से घटकर 8 और JMM 30 से घटकर 26-28 सीट पर आ सकती है। जबकि CPI(ML) के विधायकों की संख्या 1 से बढ़कर 2 हो सकती है।‘ 'आदिवासियों के साथ जिस तरीके से मुस्लिम शादी कर रहे हैं, ये राज्य की एक समस्या है। इस मुद्दे को यूपी के CM योगी आदित्यनाथ के नारे 'बंटोगे तो कटोगे' और PM मोदी के 'एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे' बयान ने बड़ा बना दिया।‘ BJP की टॉप लीडरशिप पर हेमंत-कल्पना पड़े भारी इस चुनाव में JMM को कहां देखते हैं? इसके जवाब में आनंद कहते हैं, ‘मंइयां योजना का एक अंडर करंट हो सकता है। महिला वोटर्स बढ़ने में मंइयां योजना की भी भूमिका हो सकती है। अब जमीन पर ये कितना रंग लाएगी, इसका आकलन होना अभी बाकी है।‘ ‘इस चुनाव में JMM ने जो चीज कमाई है, वो उसके पावरफुल फेस हैं। हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन की जोड़ी ने BJP की टॉप लीडरशिप से अकेले मुकाबला किया। कल्पना की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि PM नरेंद्र मोदी के बाद किसी की सभा में भीड़ उमड़ रही थी, तो वो कल्पना सोरेन की सभा थी।‘ ‘कांग्रेस झारखंड विधानसभा का चुनाव अपने बूते लड़ी ही नहीं, वो कल्पना और हेमंत के सहारे रही। राहुल गांधी ने यहां सिर्फ दो दौरे किए। प्रियंका की कोई सभा ही नहीं हुई। अगर कांग्रेस के कोई कैंडिडेट जीतते हैं, तो वे अपनी लोकप्रियता के सहारे ही जीतेंगे।‘ .................................................
5 साल की सियासी उठापटक के बाद महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए। अब कुछ सवाल हैं। क्या BJP के नेतृत्व वाला महायुति गठबंधन दोबारा सरकार बना पाएगा या कांग्रेस के महाविकास अघाड़ी की सरकार में वापसी होगी, वोटर दो हिस्सों में बंटी शिवसेना और NCP में से किसे चुनेंगे। मराठा आरक्षण आंदोलन, मराठा Vs OBC के मुद्दे और लाडकी बहिन जैसी योजना का असर क्या रिजल्ट पर भी दिखेगा। इन सवालों का जवाब जानने के लिए भास्कर रिपोर्टर्स बीते एक महीने में मुंबई से लेकर कोंकण, पश्चिम महाराष्ट्र से मराठवाड़ा, उत्तर महाराष्ट्र से विदर्भ तक वोटर्स से मिले। पॉलिटिकल एक्सपर्ट, जर्नलिस्ट, पॉलिटिकल PR करने वाली एजेंसियों से जुड़े लोगों से बात की। पढ़िए भास्कर रिपोर्टर्स पोल… BJP सबसे बड़ी पार्टी, सबसे ज्यादा फायदे में कांग्रेसमहाराष्ट्र में 20 नवंबर को एक ही फेज में सभी 288 सीटों पर वोटिंग हुई। रिजल्ट 23 नवंबर को आएगा। कवरेज के दौरान मिले इनपुट से समझ आया कि महायुति या महाविकास अघाड़ी दोनों को बहुमत के लिए जरूरी 145 सीटें मिलना मुश्किल है। BJP को सबसे ज्यादा 80-90 सीटें मिल सकती हैं। 2019 में उसे 105 सीटें मिली थीं। 58-60 सीटों के साथ कांग्रेस दूसरे नंबर पर रह सकती है। पिछले चुनाव में उसकी 44 सीटें थीं। चुनाव में शरद पवार का मैजिक चलता दिख रहा है। 87 कैंडिडेट उतारने वाली उनकी पार्टी NCP (SP) 50-55 सीटें जीत सकती है। शिवसेना (शिंदे गुट) और शिवसेना (उद्धव गुट) 30-35 सीटें जीतकर बराबरी पर रह सकती हैं। महायुति के लिए कमजोर कड़ी अजित पवार की पार्टी NCP बन रही है। उसके सिर्फ 15-20 सीटों पर जीतने की संभावना है। छोटी पार्टियां और निर्दलीय को 20 से 25 सीटें मिल सकती हैं। ऐसे में ये किंगमेकर बन सकते हैं। राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के 2-4 कैंडिडेट जीत सकते हैं। समाजवादी पार्टी को भी एक सीट मिल सकती है। कांग्रेस, NCP (शरद पवार) और शिवसेना (उद्धव) का गठबंधन महाविकास अघाड़ी, महायुति से 10 सीटें ज्यादा हासिल कर सकता है। ये भी मुमकिन है कि इस गठबंधन को बहुमत मिल जाए। महाविकास अघाड़ी उद्धव की शिवसेना कमजोर, विदर्भ में कांग्रेस को बढ़त 2019 के चुनाव में चौथे नंबर पर रही कांग्रेस इस बार सहयोगी पार्टियों पर भारी दिख रही है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 13 सीटें जीतकर चौंका दिया था। विदर्भ की 62 सीटों में से कांग्रेस करीब 50 सीटें जीत सकती है। गठबंधन में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 101 कैंडिडेट उतारे हैं। महाविकास अघाड़ी की दूसरी बड़ी पार्टी शिवसेना (उद्धव गुट) सबसे कमजोर साबित हो सकती है। पार्टी ने 95 कैंडिडेट उतारे हैं। इनमें से एक तिहाई के ही जीतने के चांस हैं। शरद पवार की पार्टी NCP (SP) पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा में मजबूत दिख रही है। उसे मराठा वोट का फायदा मिल सकता है। महायुति: BJP का स्ट्राइक रेट अच्छा, अजित पवार बिगाड़ सकते हैं खेलBJP के नेतृत्व वाला महायुति बहुमत से थोड़ा पीछे रह सकता है। उत्तरी महाराष्ट्र, कोंकण और मुंबई में BJP अच्छा कर सकती है। हालांकि विदर्भ में पार्टी को नुकसान होता दिख रहा है। पिछले चुनाव में BJP ने यहां 29 सीटें जीती थीं। पार्टी इस बार 149 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अलायंस की दूसरी बड़ी पार्टी शिवसेना (शिंदे गुट) मुंबई, कोंकण और मराठवाड़ा में मजबूत है। पार्टी ने 81 सीटों पर कैंडिडेट उतारे हैं। महायुति के पीछे रहने की वजह अजित पवार की NCP बन सकती है। पश्चिम महाराष्ट्र और मराठवाड़ा के ग्रामीण इलाकों में पार्टी शरद पवार से पिछड़ती दिख रही है। लोकसभा चुनाव में भी अजित पवार की पार्टी सिर्फ रायगढ़ सीट जीत पाई थी। विधानसभा चुनाव में पार्टी 59 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। किसी अलायंस को बहुमत नहीं मिला, तो निर्दलीय बनवाएंगे सरकारनेशनल लेवल पर INDIA ब्लॉक में शामिल समाजवादी पार्टी महाराष्ट्र में अलग चुनाव लड़ रही है। उसे एक सीट मिल सकती है। राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना 2-4 सीटों पर मजबूत है। एक सीट बाबा अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर की पार्टी बहुजन विकास अघाड़ी को मिल सकती है। 2019 में इस पार्टी ने 3 सीटें जीती थीं। पिछले चुनाव में 13 निर्दलीय कैंडिडेट जीतकर आए थे। इस बार ये संख्या 20 से ज्यादा रह सकती है, यानी बहुमत न मिलने की स्थित में दोनों अलायंस को सरकार बनाने के लिए निर्दलीयों की जरूरत पड़ेगी। एक्सपर्ट बोले- 'बंटेंगे तो कटेंगे ' जैसे बयान महायुति के लिए चैलेंज बने मराठी अखबार लोकसत्ता के एडिटर गिरीश कुबेर कहते हैं, ‘चुनाव के पहले विपक्ष और सत्ता पक्ष, दोनों के पास बड़ा मुद्दा नहीं था। यूपी के CM योगी आदित्यनाथ ने बंटेंगे तो कटेंगे की बात छेड़ दी। यही बयान महायुति के सामने चुनौती बन गया। सहयोगी पार्टियां NCP (अजित) और शिवसेना (शिंदे) दलितों-मुसलमानों को साथ लाना चाहती थीं। योगी के बयान से उनका नुकसान हुआ है।’ ‘लोकसभा चुनाव में महायुति और महाविकास अघाड़ी के वोट में सिर्फ 1% का फर्क था, लेकिन महाविकास अघाड़ी ने 13 सीटें ज्यादा जीती थीं। BJP के लिए सुरक्षित इलाका विदर्भ है। 2019 में BJP ने यहां 29 सीटें जीती थीं, BJP को भी लगता है कि इससे ज्यादा सीटें नहीं मिल सकतीं।’ ‘पश्चिम महाराष्ट्र और विदर्भ में शरद पवार का प्रभाव है। उत्तरी महाराष्ट्र में कांटे की टक्कर है। मराठवाड़ा में BJP के लिए हालात बुरे हैं। मुंबई और ठाणे-कोंकण रीजन में करीब 75 सीटें हैं। महायुति की सबसे ज्यादा उम्मीद यहीं है।’ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से BJP+ को नुकसानमराठी डेली पुढारी के पॉलिटिकल एडिटर प्रमोद चुंचूवार का मानना है कि महाविकास अघाड़ी 150 से ज्यादा सीट जीतेगा, लेकिन ये बॉर्डर लाइन विक्ट्री होगी। कई सीटों पर महाविकास अघाड़ी और महायुति की नेक टु नेक फाइट है। इस चुनाव में ध्यान देने वाली बात ये भी है कि BJP के साथ वे नेता खड़े हैं, जो सेक्युलर हुआ करते थे। इनमें मिलिंद देवड़ा, अशोक चव्हाण और अजित पवार शामिल हैं। प्रमोद चुंचूवार कहते है, ‘ये नेता बांटने की राजनीति नहीं करते। बंटेंगे तो कटेंगे वाले बयान पर अजित पवार और पंकजा मुंडे कह चुके हैं कि ये सब महाराष्ट्र में नहीं चलने वाला है। पहले भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की गई है, तब महाराष्ट्र के लोगों ने इसे नकार दिया है।’ ‘ये चुनाव लोकल मुद्दों पर लड़ा गया है। संविधान का मामला बड़ा साबित हो सकता है क्योंकि यहां विधायक पार्टी का अपहरण कर रहे हैं। पार्टी और सिंबल तक छीन लिया। संविधान के मसले पर BJP कमजोर नजर आ रही है।’ 1995 में 45 निर्दलीय सरकार में शामिल थे, इस बार भी ऐसा मुमकिनमुंबई में रहने वाले सीनियर जर्नलिस्ट राजेंद्र साठे कहते हैं, ‘दोनों गठबंधन बहुमत से पीछे रह जाएंगे, तब निर्दलीय विधायक सरकार बनाने में मदद करेंगे। 1995 में पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा में 45 निर्दलीय कैंडिडेट चुनकर आए थे और सभी सरकार में शामिल हुए थे। नंबर गेम में फिर वैसा ही देखने को मिलेगा, लेकिन नंबर 45 से काफी कम करीब 20-25 होंगे।’ चुनाव के बाद राज ठाकरे और अजित पवार का क्या होगा?राज ठाकरे ने अनुमान लगाया है कि चुनाव के बाद BJP का मुख्यमंत्री होगा। 2029 में उनकी पार्टी मनसे अपना मुख्यमंत्री बनाने में कामयाब होगी। राज ठाकरे के बयान से ये तो साफ है कि महायुति की सरकार बन रही है। सीनियर जर्नलिस्ट राजेंद्र साठे मानते हैं कि... अजित पवार के बारे में वे कहते हैं, ‘अजित भले ही महायुति का हिस्सा हैं, लेकिन कई बार वे पुराने सहयोगियों की तारीफ या साथी दलों के बयानों से असहमति जता चुके हैं। उनके कितने उम्मीदवार जीतेंगे, ये एक सवाल है क्योंकि शरद पवार चुनाव में पूरी ताकत लगा रहे हैं।' लग रहा है कि अजित पवार के 10-15 से ज्यादा उम्मीदवार जीतकर नहीं आएंगे। अजित पवार आज नहीं तो कल शरद पवार के पास वापस चले जाएंगे। हालांकि सीनियर जर्नलिस्ट संदीप सोनवलकर सीटों के बारे में अलग दावा करते हैं। वे कहते हैं कि महायुति की करीब 136 सीटें आती दिख रही हैं। वहीं, महाविकास अघाड़ी को 126 सीटें मिलने की संभावना है। 5 मुद्दे, जिनका चुनाव पर असर दिखा 1. विदर्भ-मराठवाड़ा में सोयाबीन और कपास किसानों की नाराजगीविदर्भ और मराठवाड़ा में पानी की कमी है। यहां गेहूं, गन्ना, चावल के बजाय सोयाबीन और कपास की खेती ज्यादा होती है। दोनों फसलों में कम पानी लगता है। नवंबर में सोयाबीन की फसल कट जाती है और कपास खेत में पककर तैयार होता है। सोयाबीन और कपास दोनों का मौजूदा भाव MSP से नीचे है। इससे किसान नाराज हैं। विदर्भ में विधानसभा की 62 और मराठवाड़ा में 46 सीटें हैं। विदर्भ कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ रहा है। यहां की 36 सीटों पर BJP और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। मराठवाड़ा में किसानों के बीच शरद पवार की अच्छी छवि महाविकास अघाड़ी को फायदा पहुंचाएगी। 2. मराठा बनाम OBC: मराठा वोट नहीं बंटे, तो महाविकास अघाड़ी को फायदामहाराष्ट्र के गांवों में 2 साल से मराठा आरक्षण आंदोलन चल रहा है। यहां आंदोलन शुरू करने वाले मनोज जरांगे पाटिल का प्रभाव है। पहले मनोज जरांगे ने कैंडिडेट उतारने का फैसला लिया था, लेकिन आखिरी वक्त पर उन्होंने नॉमिनेशन वापस ले लिए। अगर मनोज जरांगे पाटिल के कैंडिडेट चुनाव लड़ते, तो मराठा वोट तीन हिस्सों में बंट जाते। एक हिस्सा मनोज जरांगे को, दूसरा महाविकास अघाड़ी को और तीसरा छोटा हिस्सा महायुति को मिलता। इससे सबसे ज्यादा नुकसान महाविकास अघाड़ी को होता। एक्सपर्ट मानते हैं कि आखिरी वक्त पर मनोज जरांगे के नामांकन वापस लेने से मराठा वोट दो हिस्सों में ही बटेंगे। इसका बड़ा हिस्सा शरद पवार और कांग्रेस को मिल सकता है। 3. लाडकी बहिन योजना और महिला वोटर्सलोकसभा चुनाव में हार मिलने के बाद शिंदे सरकार ने महिलाओं के लिए लाडकी बहिन योजना शुरू की थी। इसमें महिलाओं को हर महीने 1500 रुपए मिलते हैं। सरकार बनने के बाद इसे 2100 रुपए करने का वादा किया है। ये योजना मध्य प्रदेश की तर्ज पर शुरू की गई थी। वहां विधानसभा चुनाव में इसी योजना के बलबूते BJP ने बड़ी जीत हासिल की थी। दूसरी तरफ महाविकास अघाड़ी ने वादा किया है कि उसकी सरकार बनी, तो महिलाओं को हर महीने 3 हजार रुपए मिलेंगे। 4. धारावी रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट मुंबई की सबसे बड़ी स्लम धारावी के रीडेवलपमेंट का मुद्दा चुनाव से पहले ही गरमा गया था। इसका प्रोजेक्ट अडाणी ग्रुप की कंपनी को मिला है। उद्धव ठाकरे ने प्रोजेक्ट को रद्द करने का वादा किया है। कांग्रेस पहले से गौतम अडाणी के बहाने BJP को घेरती रही है। महाविकास अघाड़ी में शामिल शरद पवार गौतम अडाणी के दोस्त रहे हैं। चुनाव के दौरान अजित पवार ने एक इंटरव्यू में 2019 में हुई मीटिंग का जिक्र किया, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह, देवेंद्र फडणवीस, शरद पवार और अजित पवार के साथ गौतम अडाणी भी मौजूद थे। शरद पवार ने भी ये बात मानी, लेकिन BJP मौन रही। 5. ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारों से ध्रुवीकरण की कोशिशयूपी के CM योगी के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ से शुरू हुई नारे की राजनीति PM मोदी के ‘एक हैं तो सेफ हैं’ नारे तक गई। चुनाव के पहले BJP ने अखबारों में विज्ञापन भी दिए। पॉलिटिकल एनालिस्ट प्रो. जयदेव डोले कहते हैं, ‘चुनाव पर जाति का फैक्टर हावी दिख रहा था। BJP ने चुनावी रणनीति में बदलाव करके बंटेंगे तो कटेंगे जैसे नारे के जरिए हिंदुओं को एकजुट करने और जाति के समीकरण तोड़ने की कोशिश की।’ एक्सपर्ट ये भी मान रहे हैं कि ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे की वजह से मुस्लिम वोटों में ध्रुवीकरण हुआ, जिसका फायदा महाविकास अघाड़ी को मिला है।
जिसके पति को ट्रंप ने WWE रिंग में कर दिया था गंजा, उसकी चमक गई किस्मत, मिला बड़ा पद
Donald Trump: चुनाव जीतने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी कैबिनेट बनानी शुर कर दी है और लगभग तमाम बड़े पदों पर बैठने वाले नेताओं के ऐलान भी कर दिए हैं. हाल ही में उन्होंने शिक्षा से जुड़े पर एक ऐसी महिला को बैठा दिया है जिनके पति को उन्होंने कभी सरेआम गंजा कर दिया था.
US Embassy Kyiv: रूस से डरा अमेरिका! अपने लोगों से बोला-सेफ जगह चले जाओ, कीव में दूतावास का शटर डाउन
US Embassy Kyiv Closure:रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिका ने बड़ा कदम उठाते हुए कीव में अपना दूतावास बंद कर दिया है. संभावित बड़े हवाई हमले की खुफिया जानकारी मिलने के बाद अमेरिका ने 20 नवंबर को दूतावास को अस्थायी रूप से बंद करने की घोषणा की.
यूक्रेन हो जाए सावधान! किम जोंग ने पुतिन को दे दी अब ऐसी ताकत
उत्तर कोरिया ने रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के मध्य रूस को सहयोग देने के वास्ते और तोपें भेजी हैं, साथ ही रूस में मौजूद हजारों उत्तर कोरियाई सैनिकों में से कुछ ने युद्ध में भाग लेना शुरू कर दिया है.
जौहरी की तरह ट्रंप चुन रहे अपनी टीमें, हार्ट सर्जन को दिया अमेरिका में सबसे जिम्मेदारी वाल पद
Dr Mehmet Oz to run Medicare and Medicaid services: अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप जबसे राष्टपति चुनाव जीते हैं, तबसे अपनी कैबिनेट में लोगों को चुन रहे हैं, शपथ ग्रहण से पहले ट्रंप ने उन लोगों को खूब मौका दे रहे हैं, जो उनके समर्थक रहे हैं और वह अपने फील्ड में मास्टर रहे हो, तभी तो ट्रंप ने एक हार्ट सर्जन को देश की बड़ी जिम्मेदारी दे दी.
India Pakistan Peace Talks: यूएन में भारत के परमानेंट प्रतिनिधि, पर्वतनेनी हरीश ने मंगलवार को कहा कि 'पाकिस्तान के साथ बातचीत में पहला मुद्दा आतंकवाद को रोकना है.'
India China News: अचानक भारत से रिश्ते सुधारने के लिए बेकरार क्यों हुआ चीन? अब पता चली इनसाइड स्टोरी
कुछ घंटे पहले भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर से चीनी विदेश मंत्री ने मुलाकात की. इससे पहले बॉर्डर से तनाव कम करने वाली खबर आई थी. आपको लग रहा होगा कि अचानक चीन अपनी चालबाजी भूल इतना नरम क्यों दिख रहा है. इसकी एक बड़ी वजह है.
न्यूक्लियर बम के ट्रिगर पर पुतिन की उंगली, अगर इन 5 में से कुछ भी हुआ तो नहीं बचेगी दुनिया!
Russia Nuclear Doctrine Change: रूस ने परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की नीतियां बदल दी हैं. अब राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चाहें तो परंपरागत हमले का जवाब न्यूक्लियर मिसाइलों से दे सकते हैं.
वो लाचार थी, मना नहीं कर सकती थी... नॉर्वे की राजकुमारी का बेटा बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार
Son of Norwegian crown princess arrested: नॉर्वे की क्राउन प्रिंसेस मेटे-मैरिट के सबसे बड़े बेटे बोर्ग होइबी को गिरफ्तार किया गया है. होइबी प्रिंसेस मेटे-मैरिट के शादी के पहले से पैदा हुए बेटे हैं. जानें पूरा मामला.
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) अपनी एक मजबूत एकजुट टीम बनाने में जुटे हैं, लेकिन उनकी टीम में चुने गए 3 नामों से पाकिस्तान को परेशानी हो रही है और भारत के पड़ोसी देश में खलबली मच गई है.
Netanyahu makes rare visit to Gaza: इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने सभी को चौंकाते हुए गाजा का दौरा किया है. यही नहीं नेतन्याहू ने सभी को एक खुला ऑफर दिया है. उनका कहना है कि गाजा से बंधकों को जो भी रिहा कराएगा, उसे लगभग पांच मिलियन यानी 42 करोड़ मिलेंगे. जानें पूरा मामला.
‘लॉरेंस की गैंग नए गुर्गों की तलाश में रहती है। एक टीम ऐसे लड़कों की प्रोफाइल शॉर्ट लिस्ट करती है, जो सोशल मीडिया पर हथियारों के साथ फोटो डालते हैं। शॉर्टलिस्ट करने के बाद उनका बैकग्राउंड वेरिफाई कर कॉन्टैक्ट किया जाता है। फिर हायरिंग की प्रोसेस शुरू होती है।’ यूपी पुलिस के एक अधिकारी बताते हैं कि लॉरेंस गैंग में भर्ती और कामकाज का तरीका बिल्कुल किसी कॉर्पोरेट हाउस की तरह है। उन्होंने दैनिक भास्कर को बताया कि लॉरेंस बिश्नोई 2014 से देश की अलग-अलग जेलों में बंद है, लेकिन जेल से ही नेटवर्क चला रहा है। NCP नेता बाबा सिद्दीकी के मर्डर केस में मुख्य आरोपी शिव कुमार गौतम ने भी ऐसे खुलासे किए हैं। उसने पूछताछ में बताया कि लॉरेंस गैंग में वो मर्जी से नहीं गया, बल्कि सोशल मीडिया के जरिए गैंग मेंबर्स ने ही उसे तलाशा था। यूपी STF से जुड़े एक सोर्स ने दैनिक भास्कर को बताया कि जेल ही लॉरेंस का हेडक्वार्टर है। वहीं से पूरा गैंग ऑपरेट होता है। गैंग मेंबर्स को सैलरी और इंसेंटिव तो मिलता ही है, पकड़े जाने या मारे जाने पर फैमिली को पेंशन भी दी जाती है। लॉरेंस गैंग कैसे चलता है, गुर्गों की भर्तियां कैसे होती हैं और क्या हैं गैंग के नियम, पढ़िए पूरी रिपोर्ट… जेल से प्लानिंग, वहीं से जारी होते हैं आदेशयूपी STF में हमारे सोर्स ने बताया कि जेल में ही लॉरेंस पूरी प्लानिंग, एग्जीक्यूशन और अपॉइंटमेंट के आदेश जारी करता है। दूसरी जेल में शिफ्ट होने पर उसके गुर्गे भी छोटे अपराधों में खुद को अरेस्ट करवाकर उसके साथ शिफ्ट होते हैं। वे लॉरेंस की क्राइम कंपनी चलाने में मदद करते हैं। लॉरेंस को जेल में फोन से लेकर इंटरनेट तक आसानी से मिल जाता है। इसके जरिए वो बाहर की दुनिया से कनेक्ट रहता है। बठिंडा जेल में रहते हुए लॉरेंस ने एक जर्नलिस्ट को वीडियो कॉल पर इंटरव्यू दिया था। इस इंटरव्यू में उसने जेल के सेटअप के बारे में बताया था। इसके बाद उसे गांधीनगर की साबरमती जेल में शिफ्ट कर दिया गया। पुलिस सोर्सेज के मुताबिक, लॉरेंस जानबूझकर जेल से बाहर आने की कोशिश नहीं करता। इसके पीछे दो वजहे हैं। पहली, वो जेल से आसानी से नेटवर्क चला लेता है। दूसरा, वहां वो सेफ रहता है। खालिस्तानी आतंकी अर्श डल्ला से उसकी दुश्मनी जगजाहिर है। यही वजह है कि उसने किसी भी बड़े मामले में जमानत के लिए अर्जी नहीं दी है। 16 से 30 साल के लड़कों का सिलेक्शन, गैंग में नाबालिग को खास जिम्मेदारीमुंबई पुलिस के एक अफसर ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि जॉब प्रोफाइल की तरह ही लॉरेंस गैंग से जुड़ने के लिए ऐज लिमिट तय है। 16 से 30 साल के युवाओं को ही गैंग में रखा जाता है। नाबालिग को सिलेक्ट करने का मकसद बड़े क्राइम में शामिल होने के बावजूद, बड़ी सजा से बचाना है। लॉरेंस गैंग का मानना है कि इस ऐज ग्रुप के लोग फिजिकली एक्टिव रहते हैं और इन पर परिवार की जिम्मेदारियां भी नहीं होती हैं। सोशल मीडिया पर प्रोफाइल की मॉनिटरिंग, बैकग्राउंड चेक करके ऑफर गैंग के मेंबर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लॉरेंस बिश्नोई और गोल्डी बराड़ के नाम से पेज बनाते हैं। इनसे जुड़ने वाले लड़कों को तवज्जो दी जाती है। ये एक तरह से रिज्यूम भेजने जैसा है। यूपी पुलिस के अधिकारी पहचान न जाहिर करने की शर्त पर बताते हैं कि ये एचआर के काम जैसा ही होता है। एक टीम ऐसे लड़कों की प्रोफाइल शॉर्ट लिस्ट करती है, जो सोशल मीडिया पर क्राइम को ग्लोरिफाई करते हुए हथियारों के साथ फोटो डालते हैं। इसके बाद बैकग्राउंड वेरिफाई किया जाता है। सब कुछ सही रहने पर उससे कॉन्टैक्ट किया जाता है। शुरू में अपॉइंटमेंट छोटे-मोटे क्राइम के लिए होता है। शिवकुमार ने भी पूछताछ में खुलासा किया था कि पहली बातचीत में लॉरेंस बिश्नोई के बारे में नहीं बताया जाता है। गैंग में शामिल करने से पहले नए मेंबर्स को छोटे टास्क दिए जाते हैं। टास्क पूरा करने पर 50 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक दिए जाते हैं। इसके बाद ही बड़े कॉन्ट्रैक्ट मिलते हैं। गैंग मेंबर्स कई लेवल पर लेते हैं इंटरव्यू, लॉरेंस छोटे गुर्गों से बात नहीं करता प्रोफाइल सिलेक्ट करने के बाद हर गुर्गे का इंटरव्यू होता है। इसे लॉरेंस गैंग में सीनियर मेंबर करते हैं। इंटरव्यू ऑडियो और वीडियो कॉल के जरिए होता है। शिवकुमार ने बताया है कि उसका इंटरव्यू लॉरेंस के भाई अनमोल बिश्नोई ने स्नैपचैट पर लिया था। अनमोल ने शिवकुमार से कहा था कि वो जो करने जा रहा है, वो भगवान और समाज के लिए है। फिलहाल अनमोल यूएस में है। ऐसी खबरें हैं कि अनमोल अमेरिका में रहता है। उसे 18 नवंबर को कैलिफोर्निया में अरेस्ट किया गया है। अनमोल से पहले बाबा सिद्दीकी मर्डर केस में अरेस्ट शुभम लोनकर ने उसका इंटरव्यू लिया था। सोर्स के मुताबिक, लॉरेंस छोटे गुर्गों से बात नहीं करता है। वो कंपनी के CEO की तरह सिर्फ टॉप लेवल के मेंबर्स के कॉन्टैक्ट में रहता है। इनमें रोहित गोदारा, गोल्डी बराड़, काला जठेड़ी, अनमोल बिश्नोई, सचिन बिश्नोई और कपिल सांगवान शामिल हैं। पुराने मेंबर्स देते हैं नए गुर्गों को ट्रेनिंगसिलेक्शन के बाद किसी कॉर्पोरेट कंपनी की तरह गुर्गों का इंडक्शन कराया जाता है। उन्हें गैंग के मेंबर्स से मिलवाया जाता है। लॉरेंस या उसकी गैंग से जुड़े बड़े क्रिमिनल सीधे नए गुर्गे से बात नहीं करते हैं। पहले इन्हें टीम मेंबर्स के साथ रखा जाता है। ये रिपोर्टिंग मैनेजर जैसे होते है। वही उनके रहने, खाने-पीने और लॉजिस्टिक का इंतजाम करते हैं। कॉन्ट्रैक्ट कैसे पूरा करना है, वही डिसाइड करते हैं। मुंबई पुलिस की अब तक की जांच में पता चला है कि बाबा सिद्दीकी को मारने का जिम्मा गैंग से जुड़े शुभम लोनकर को मिला था। उसने शिवकुमार समेत 15 से 20 लोगों की एक टीम को इस काम के लिए तैयार किया था। शुभम ने ही टीम के बाकी मेंबर्स की ट्रेनिंग पुणे और करजत के जंगलों में करवाई थी। इनमें हथियार चलाना, टारगेट की रेकी करना और काम पूरा होने पर फरार होने के तरीके बताना शामिल था। इस ट्रेनिंग का खर्च भी शुभम ने ही उठाया था।, नए गुर्गों को दी जाती है जॉइनिंग किट गैंग जॉइन करने के बाद सभी गुर्गों को जॉइनिंग किट भी मिलती है। इसमें मोबाइल के साथ नया नंबर दिया जाता है। सोर्स के मुताबिक, गुर्गों से कहा जाता है कि एक वारदात में एक फोन का इस्तेमाल करना है। ट्रेनिंग में फोन और बाकी एविडेंस खत्म करना सिखाया जाता है। शिवकुमार ने पूछताछ में बताया है कि बाबा सिद्दीकी के मर्डर के लिए शुभम और यासीन ने उसे हथियार, मोबाइल फोन और सिम दिए थे। मर्डर के बाद बात करने के लिए अलग मोबाइल फोन और सिम भी दिए गए थे। पूछताछ में ये भी खुलासा हुआ है कि हर गुर्गे को हथियार नहीं दिया जाता। वारदात से कुछ दिन पहले ही कॉन्ट्रैक्ट लेने वाले तक हथियार पहुंचाया जाता है और फिर काम पूरा होने पर उसे वापस ले लिया जाता है। बाबा सिद्दीकी मर्डर केस में भी यही हुआ। पुलिस को अब तक शिवकुमार के पास से हत्या में इस्तेमाल हथियार बरामद नहीं हुआ है। नए कॉन्ट्रैक्ट पर एक फिक्स अमाउंट, हर महीने सैलरीबाबा सिद्दीकी मर्डर केस की जांच से जुड़े यूपी पुलिस के सीनियर इंस्पेक्टर बताते हैं कि लॉरेंस गैंग कॉर्पोरेट सेक्टर की तरह गुर्गों को पैसे देता है। नए कॉन्ट्रैक्ट पर एक फिक्स अमाउंट और हर महीने सैलरी देने का वादा किया जाता है। शिवकुमार ने भी खुलासा किया है कि उसे 10 लाख रुपए टोकन मनी और हर महीने कुछ पैसे देने का वादा किया गया था। पकड़े जाने या मारे जाने की स्थिति में फैमिली मेंबर्स का खर्च भी लॉरेंस गैंग उठाता है। उन्हें पेंशन के तौर पर हर महीने पैसे दिए जाते हैं। टाइम पर कॉन्ट्रैक्ट पूरा करने वालों को इंसेंटिवक्राइम के बाद छिपने की जगह ढूंढने से लेकर वहां रहने का खर्च गैंग उठाता है। लॉरेंस ने खास लोगों को छिपाने के लिए अमेरिका, अजरबैजान, यूएई, पुर्तगाल, रूस, नेपाल और थाईलैंड में ठिकाने बनाए हैं। यहां से ये फिरौती और हथियारों की सप्लाई करते हैं। लॉरेंस गैंग का अपना कोड ऑफ कंडक्टलॉरेंस गैंग का प्राइवेट कंपनी की तरह 'कोड ऑफ कंडक्ट' है। सेंट्रल जांच एजेंसी से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि लॉरेंस जेल में कई साल से ब्रह्मचर्य का जीवन जी रहा है। उसने गैंग के लिए भी उसी तरह के नियम बनाए हैं। गैंग जॉइन करने वालों को सख्त हिदायत दी जाती है कि वे कभी लड़कियों से बात नहीं करेंगे और न ही उनके साथ संबंध रखेंगे। लॉरेंस की कभी गर्लफ्रेंड नहीं रही है। उसका भाई अनमोल भी यही दावा करता है कि उसकी लाइफ में कोई लड़की नहीं है। गोल्डी बराड़ की भी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है। लॉरेंस गैंग ने गुर्गों को बता रखा है कि लड़की के कॉन्टैक्ट में आने से वे आसानी से ट्रैक हो जाएंगे। नियम के मुताबिक, गैंग मेंबर्स बच्चों और बुजुर्गों को मारने की सुपारी नहीं लेते हैं। क्राइम के लिए पूरी प्लानिंग, प्लान B भी तैयारलॉरेंस गैंग हर कॉन्ट्रैक्ट को पूरा करने से पहले प्लानिंग करता है। मुंबई पुलिस के सोर्स के मुताबिक, बाबा सिद्दीकी के मर्डर से 4 हफ्ते पहले से उनकी रेकी की जा रही थी। वे कब घर से निकलते थे, किससे मिलते थे और कहां-कहां जाते थे, ये सब लॉरेंस गैंग को पता था। ये भी तय किया गया कि बाबा पर उस जगह हमला करना है, जहां सीसीटीवी कैमरे न हों। प्रोजेक्ट की तरह एक डिटेल रिपोर्ट पुणे में बनाई गई और इसे अप्रूवल के लिए पहले अनमोल और फिर लॉरेंस को भेजा गया था। हर प्रोजेक्ट की तरह इस हत्याकांड में भी प्लान B तैयार था। इसमें बाबा को नहीं मार पाने की स्थिति में उनके बेटे जीशान सिद्दीकी को मारने का प्लान था। जीशान की रेकी के लिए अलग टीम थी। मर्डर के बाद कैसे नेपाल भागना है, इसकी भी तैयारी पहले से थी। सीक्रेट मिशन की तरह पूरा किया जाता है कॉन्ट्रैक्टलॉरेंस ने गैंग चलाने के लिए सिस्टम तैयार किया है। इसमें ऐसे शूटर चुने जाते हैं, जो उस इलाके के लिए नए हों। उनके बैकग्राउंड के बारे में लोकल लोगों को कुछ भी मालूम न हो। ज्यादातर गुर्गे दूसरे राज्यों से लाए जाते हैं, जैसे बाबा सिद्दीकी के मर्डर में शामिल शूटर यूपी के हैं। सेंट्रल जांच एजेंसी से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि शूटर को सिर्फ यही पता होता है कि उससे ऊपर कौन है। उन्हें नहीं पता कि उनके साथी शूटर्स कौन हैं। कॉन्ट्रैक्ट पूरा होने पर गैंग से कम्युनिकेशन चेन ब्रेक कर दी जाती है, ताकि पकड़े जाने पर गैंग के बाकी मेंबर के नाम सामने न आएं। फेक नैरेटिव गढ़ने के लिए अलग टीममुंबई साइबर सेल से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि फेक नैरेटिव के लिए लॉरेंस गैंग ने एक टेक और सोशल मीडिया मैनेजमेंट टीम बनाई है। ये विदेशों में बैठकर सोशल मीडिया में अपने काम को ग्लोरिफाई करती है। लॉरेंस गैंग के मेंबर फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब का इस्तेमाल क्रिमिनल एक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए कर रहे हैं। गैंग के लोग 'जय बलकारी जी' जैसे नारे हैशटैग में लिखते हैं। लगातार ऐसे वीडियो अपलोड करते हैं, जो युवाओं को धर्म के नाम पर एकजुट करने का मैसेज देते हैं। गैंगस्टर के नाम से 50 से ज्यादा इंस्टाग्राम अकाउंट बने हैं। मुंबई पुलिस ने ऐसे फेक नैरेटिव गढ़ने वाले प्रोफाइल्स, पेजों को सिलेक्ट कर लिया है और उन्हें प्रतिबंधित करने के लिए 'X' और 'META' को लिखा है। 40 साल पहले भी ऐसे ही ऑपरेट होते थे गैंगअंडरवर्ल्ड पर किताबें लिख चुके मुंबई के सीनियर जर्नलिस्ट विवेक अग्रवाल बताते हैं कि लॉरेंस के शूटर शिवकुमार ने खुलासा किया है कि लॉरेंस गैंग ने उसे कॉन्ट्रैक्ट अमाउंट, सैलरी और पेंशन देने का वादा किया था। ठीक ऐसा ही 80 और 90 के दशक में भी होता था। कॉर्पोरेट तरीके से गैंग ऑपरेट करने की शुरुआत 80 के दशक में दाऊद इब्राहिम ने की थी। दाऊद से पहले के डॉन अशोक जोशी, हाजी मस्तान, करीम लाला, वरदराजन मुदलियार और शबीर के दौर में ऐसा नहीं था। वे काम के हिसाब से पैसे दिया करते थे। हालांकि वे अपने मैनेजर या पीए को मंथली सैलरी जरूर देते थे। ...................................................लारेंस गैंग से जुड़ी ये खबरें भी पढ़िए... 1. ड्रग्स, हथियार, फिरौती की कमाई से चल रहा लॉरेंस गैंग, दिल्ली पुलिस के सामने लॉरेंस का कबूलनामा सलमान खान के घर पर फायरिंग हो या फिर 12 अक्टूबर को मुंबई में NCP नेता बाबा सिद्दीकी का मर्डर, पुलिस को लॉरेंस गैंग पर ही शक है। सवाल है कि आखिर लॉरेंस का नेटवर्क कैसे ऑपरेट हो रहा है, गैंग चलाने के लिए उसके पास पैसा कहां से आता है। इसे लेकर दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट में लॉरेंस बिश्नोई का पूरा कबूलनामा है। पढ़िए पूरी रिपोर्ट... 2. क्या मुंबई में दाऊद की जगह ले रहा लॉरेंस, बाबा सिद्दीकी के मर्डर से बॉलीवुड-बिल्डरों पर धाक जमाने की कोशिश एक्सपर्ट मानते हैं कि बाबा सिद्दीकी के मर्डर से लॉरेंस बॉलीवुड और बिल्डर लॉबी में धाक जमाने की कोशिश कर रहा है। सलमान खान और सलीम खान को धमकी देना, फिर सलमान के घर पर फायरिंग करवाना इसी कोशिश का हिस्सा है। उसके काम करने का तरीका दाऊद इब्राहिम की तरह है। पढ़िए पूरी खबर...
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Love Story of Sperm Donor: आज के दौरान बच्चे पैदा करने के लिए नई-नई तकनीक आ चुकी हैं. स्पर्म डोनेशन भी उनमें से एक है. हाल ही में एक जर्मनी एक्ट्रेस ने स्पर्म डोनर के साथ प्यार करने की कहानी बयान की है. एक्ट्रेस का कहना है कि उसके साथ प्यार करना जहन्नुम में रहने जैसा था.
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एयर इंडिया के चक्कर में 3 दिन से विदेश में फंसे 100 यात्री! मसला जानकर सिर घूम जाएगा
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क्या दुनिया पर मंडरा रहा है परमाणु युद्ध का खतरा? UN चीफ ने की यह बड़ी मांग
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200 साल से नहीं लड़ा युद्ध, अब देश में बांट रहा पर्चे- युद्ध के लिए हो जाइए तैयार!
Russia Sweden Tension: स्वीडन ने अपने नागरिकों को 50 लाख से अधिक पर्चे बांटे है, जिसमें उन्हें युद्ध के लिए तैयार रहने के लिए कहा गया है. इसके बाद सवाल उठने लगा है कि क्या अब एक और युद्ध शुरू होने वाला है?
नाइजीरियाई वायु सेना ने डाकुओं के ठिकानों पर की एयर स्ट्राइक, कई अपराधियों की मौत
Nigeria Air Strike Today: नाइजीरिया की वायुसेना ने सैन्य कर्मियों और नागरिकों पर हमले की योजना बना रहे डाकुओं के ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की. इस एयर स्ट्राइक में कई अपराधी मारे गए हैं.
World War 3: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने यूक्रेन को रूस पर हमला करने के लिए लंबी दूरी की मिसाइलों का इस्तेमाल करने की हरी झंडी देकर दुनिया को वर्ल्ड वॉर 3 के मुहाने पर खड़ा कर दिया है. क्योंकि, इस फैसले से यूक्रेन की स्थिति तो मजबूत होगी, लेकिन इस पर रूस कैसी प्रतिक्रिया देगा यह बड़ा सवाल है.
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सबसे पहले चुनौतियों से निपटना होगा, दुनिया के सबसे बड़े मंच से मोदी ने बताया भारत का सक्सेस फंडा
Pm Modi Speech at G20: ब्राजील में हो रहे जी 20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में बड़ी चुनौतियों का जिक्र करते हुए, सबसे पहले उनके निदान को जरूरी बताया. इस दौरान उन्होंने भारत की सफलता का मंत्र भी बताया.
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G20 Summit 2024: ब्राजील में चल रही जी-20 समिट में प्रधानमंत्रभ् ने शिरकत की और कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों से गर्मजोशी से मुलाकात की.
जब हम गहरी नींद में थे, भारत का सैटलाइट पीठ पर बांध उड़ चला एलन मस्क का रॉकेट
जिस समय भारतीय गहरी नींद में सोए थे, हजारों किमी दूर अमेरिका के फ्लोरिडा से एलन मस्क का रॉकेट भारत के सबसे एडवांस्ड कम्युनिकेशन सैटलाइट को लेकर उड़ चला. मस्क की एजेंसी स्पेसएक्स ने इसरो (ISRO) के सैटलाइट को अपनी पीठ पर बांधकर 34 मिनट की यात्रा कर आउटर स्पेस में सुरक्षित तरीके से पहुंचा दिया.
आज से करीब 9 साल पहले। 25 जनवरी 2016 को घने स्मॉग को चीरता हुआ एयरफोर्स-वन दिल्ली में लैंड किया। उसमें अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा सवार थे। वो यहां 3 दिन रुके। राष्ट्रपति भवन गए, रिपब्लिक डे परेड में शामिल हुए और धुंध में ताजमहल का भी दीदार किया। इस दौरान इंटरनेशनल मीडिया में हेडलाइन बनी- मिस्टर प्रेसिडेंट, दुनिया की सबसे खराब हवा ने आपकी जिंदगी 6 घंटे कम कर दी। अगर दिल्ली की जहरीली हवा में महज 3 दिन गुजारने से ओबामा की जिंदगी के 6 घंटे कम हो गए, तो जिसके फेफड़ों में हर साल... महीनों तक ये जहर भर रहा हो, उस पर क्या इम्पैक्ट पड़ रहा होगा? 18 नवंबर की सबसे बड़ी खबर दिल्ली के प्रदूषण पर है आज का एक्सप्लेनर... सवाल 1: दिल्ली की हवा कितनी खराब कि हर तरफ हल्ला मचा हुआ है?जवाब: देश में प्रदूषण का स्तर बताने वाली सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के मुताबिक, दिल्ली में प्रदूषण पिछले 2 दिनों से बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच गया। 17 नवंबर को AQI 441 था। 18 नवंबर को सुबह 6 बजे तो AQI 494 पार कर गया। CPCB ने इतने AQI को सीवियर+ कैटेगरी में रखा है। इस हवा में सांस लेने वाला स्वस्थ्य व्यक्ति भी बीमार हो सकता है। तेजी से बढ़ते प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने दिल्ली में ऑरेंज अलर्ट जारी कर दिया। सुबह 8:30 बजे दिल्ली के सफदरजंग में विजिबिलिटी घटकर सिर्फ 300 मीटर रह गई। घने कोहरे की वजह से राजधानी में फ्लाइट्स का शेड्यूल बदल दिया गया और ट्रेनें भी देरी से पहुंचीं। फ्लाइट रडार 24 के मुताबिक, कम विजिबिलिटी की वजह से सुबह 8:30 बजे तक दिल्ली एयरपोर्ट पर 160 से ज्यादा फ्लाइट्स लेट हुईं। इसके अलावा लगभग 30 ट्रेंने 3 से 4 घंटे तक बाधित रहीं। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR में 12वीं तक के सभी स्कूल बंद करने को कहा है। AQI सुधारने के लिए ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान के स्टेज-4 के सभी प्रतिबंध लागू करने के आदेश दिए हैं। सवाल 2: दिल्ली के अलावा किन राज्यों की हवा सबसे ज्यादा खराब?जवाब: उत्तर और मध्य भारत में दिवाली के बाद पराली जलाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। इस वजह से प्रदूषण बढ़ने की रफ्तार भी तेज होने लगती है। दिल्ली के सबसे नजदीक हरियाणा और पंजाब में सबसे ज्यादा पराली जलाई जाती है। इस कारण 18 नवंबर को राजधानी चंडीगढ़ में AQI लेवल 268 तक पहुंच गया। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का AQI लेवल 224 रहा। अगर AQI को सिगरेट के पैमाने पर मापा जाए, तो दिल्ली में एक शख्स हर रोज हवा के जरिए 38 सिगरेट पी रहा है। नीचे स्लाइड में जानिए अन्य राज्यों का हाल… सवाल 3: AQI सुधारने के लिए सरकार क्या कर रही है?जवाब: 18 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद दिल्ली सरकार ने ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) का चौथा स्टेज लागू कर दिया है। सरकार ने इससे पहले GRAP का पहला स्टेज 14 अक्टूबर और दूसरा स्टेज 21 अक्टूबर को लागू किया गया था, लेकिन इससे प्रदूषण पर कंट्रोल नहीं किया जा सका। वायु प्रदूषण बढ़ने पर सरकार ने GRAP नियम बनाया है। इसे AQI के लेवल के मुताबिक 4 स्टेज में बांटा गया है... GRAP का स्टेज-4 लागू होने के बाद 8 नियमों का पालन जरूरी सवाल 4: इतने खराब AQI का हेल्थ पर क्या इम्पैक्ट हो रहा है?जवाब: हवा को प्रदूषित करने में पार्टिकुलेट मैटर यानी PM 2.5 और PM 10 जिम्मेदार होते हैं। यही इंसानी शरीर को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। 2.5 माइक्रोन या इससे कम साइज के पार्टिकल्स को PM 2.5 कहते हैं। 2.5 से 10 माइक्रोन साइज वाले पार्टिकल्स PM 10 कहलाते हैं। यह इतने छोटे होते हैं, जो हमारे शरीर में मौजूद एल्वियोलर बैरियर पार करके फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं। इसके बाद यह ब्लडस्ट्रीम में शामिल होकर पूरे शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। सवाल 5: दिल्ली प्रदूषण के पीछे क्या-क्या अहम फैक्टर्स हैं, किसकी कितनी हिस्सेदारी?जवाब: दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने के 3 बड़े फैक्टर्स हैं… 1. पराली से प्रदूषण CPCB के मुताबिक दिल्ली में 37% प्रदूषण दिल्ली और आसपास के राज्यों में पराली जलाने से हुआ है। पंजाब में हर साल 70 से 80 लाख मीट्रिक टन पराली जलाई जाती है। हरियाणा, यूपी और एमपी में भी ये ट्रेंड दिखता है। सर्दियों में ये प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह बनती है। 2. गाड़ियों से होने वाला कार्बन इससे दिल्ली में 12% प्रदूषण बढ़ा है। 2023-24 के इकोनॉमिकल सर्वे के मुताबिक, दिल्ली में 80 लाख के करीब गाड़ियां हैं। इनसे सबसे छोटे प्रदूषित कण PM 2.5 निकलते हैं। दिल्ली के प्रदूषण में 47% PM 2.5 इन्हीं वाहनों से निकलता है। यह वाहन न सिर्फ हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करते हैं बल्कि यह धूल से होने वाले प्रदूषण की भी वजह बनते हैं। 3. फैक्ट्रियों से निकलने वाले केमिकल्स दिल्ली में प्रदूषण की तीसरी सबसे बड़ी वजह फैक्ट्रियां हैं। दिल्ली और इसके आसपास मौजूद इंडस्ट्री से PM 2.5 और PM 10 का उत्सर्जन होता है। द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (TERI) के मुताबिक, यह हवा में मौजूद 44% PM 2.5 और 41% PM 10 के लिए जिम्मेदार है। सवाल 6: बैन के बाद भी किसान पराली क्यों जला रहे है?जवाब: किसान साल में दो बार गर्मियों में और सर्दियों की शुरुआत में पराली जलाते हैं। पहली बार जब वे ऐसा करते हैं, तो गर्म हवा आग को जल्दी से फैला देती है, लेकिन अक्टूबर या नवंबर में तापमान में गिरावट और हवा की धीमी रफ्तार की वजह से धुआं दूर-दूर तक फैल जाता है। 2015 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने पराली जलाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। इससे किसानों को पराली का सफाया करने में परेशानी होने लगी। पराली को खत्म करने के दो रास्ते हैं। एक पराली को जलाकर खत्म किया जाए और दूसरा हैप्पी सीडर मशीन से इसे काटा जाए, लेकिन ये मशीन इतनी महंगी आती है कि किसान इसे खरीद नहीं पाते। किराए पर हैप्पी सीडर मशीनों के इस्तेमाल से किसानों को प्रति एकड़ 4,000 रुपए तक खर्च आता है। मदद के लिए 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरी राज्यों को किसानों को मुआवजा देने का आदेश दिया। इसके तहत पराली न जलाने वाले हर किसान को प्रति एकड़ जमीन के हिसाब से 2,400 रुपए दिए जाएंगे, लेकिन पंजाब सरकार इतना भुगतान करने में विफल रही। किसानों का कहना है कि धान की फसल पर पहले ही काफी खर्च आता है। ऐसे में मशीन से पराली नष्ट कराने पर प्रति एकड़ 5 से 6 हजार का अतिरिक्त खर्च बढ़ेगा। ऐसे में गरीब किसान ये खर्च चुनेंगे या फिर माचिस की एक तीली? केंद्र सरकार ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) अधिनियम 2021 के तहत पराली जलाने पर नियम लागू किए। इसके मुताबिक 2 एकड़ से कम जमीन पर पराली जलाने पर 5,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। 2 से 5 एकड़ जमीन पर 10,000 रुपए और 5 एकड़ से ज्यादा जमीन पर पराली जलाने पर 30,000 रुपए का जुर्माना लगता है। सवाल 7: दिल्ली में प्रदूषण के लिए राज्य और केंद्र सरकारें कितनी गंभीर? जवाब: 2013 में दिल्ली में पहली बार आम आदमी पार्टी की सरकार बनी थी। तब नवंबर 2013 में प्रदूषण का लेवल 287 AQI था और 11 साल बाद नवंबर 2024 में प्रदूषण का लेवल 500 AQI से ऊपर पहुंच चुका है। 2013 में एक व्यक्ति औसतन 10 सिगरेट जितना धुआं प्रदूषण के जरिए अपने अंदर ले रहा था। 2024 में यह आंकड़ा बढ़कर 38 सिगरेट तक पहुंच गया है। 2015 से 2021 के बीच दिल्ली सरकार ने प्रदूषण की रोकथाम पर 470 करोड़ रुपए खर्च कर दिए, लेकिन इससे प्रदूषण को रोका नहीं जा सका। 2021 में दिल्ली सरकार ने प्रदूषण पर काबू पाने के लिए 5 सूत्रीय रणनीति बनाई थी। इसके लिए 550 टीमें गठित हुईं। दिल्ली सरकार की 5 सूत्रीय रणनीति 1. प्रदूषण रोकने के लिए लोगों को जागरूक किया जाएगा। 2. खुले में आग जलाने से लोगों को रोका जाएगा। 3. सड़कों पर पानी का छिड़काव करेंगे। 4. डीजल जनरेटर सेट को बंद कर दिया जाएगा। 5. पराली को लेकर बायोडिकम्पोजर का छिड़काव किया जाएगा। इसके बावजूद राज्य सरकार दिल्ली में प्रदूषण रोकने में नाकाम रही। केंद्र सरकार भी इसमें बहुत गंभीर नहीं दिखती। दिल्ली के रोड टैक्स से केंद्र सरकार को जो पैसा मिलता है, वो पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए खर्च किया जाता है। केंद्र सरकार को पिछले 7 सालों में 401 करोड़ रुपए का टैक्स मिला, लेकिन इसमें से सिर्फ 99 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए। रिसर्च सहयोग- शिशिर अग्रवाल ---------------- प्रदूषण से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए... दिल्ली में AQI 450 पार, यह 'बहुत गंभीर' श्रेणी:10वीं-12वीं को छोड़कर सभी क्लासेस ऑनलाइन होंगीं, 50% नौकरीपेशा लोगों को वर्क फ्रॉम होम दे सकते हैं दिल्ली में प्रदूषण का स्तर लगातार गंभीर होता जा रहा है। रविवार शाम को दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 450 के पार दर्ज किया गया, जो बेहद गंभीर श्रेणी में आता है। इसके चलते कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) ने 18 नवंबर 2024 की सुबह 8 बजे से दिल्ली-NCR में संशोधित ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के चौथे फेज को लागू करने का ऐलान किया है। पूरी खबर पढ़ें...
तेलंगाना के लागाचरला गांव में उस दिन भीड़ जुटी थी। तारीख थी 11 नवंबर, 2024। सरकार आसपास के गांवों की जमीनें फार्मा विलेज के लिए लेना चाहती है। किसानों को डर है कि इससे जमीन और पानी जहरीला हो जाएगा और उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ेगा। लागाचरला गांव विकाराबाद जिले में आता है। कलेक्टर प्रतीक जैन और एडिशनल कलेक्टर वेंकट रेड्डी साथी अफसरों के साथ किसानों से जमीन अधिग्रहण पर बात करने गए थे। ये मीटिंग गांव के बाहर होनी थी। गांव वालों ने वहां जाने से इनकार कर दिया और अफसरों को गांव में बुलाया। दोपहर एक बजे अधिकारी गांव पहुंचे, बातचीत शुरू भी नहीं हुई थी कि गांव वालों ने उन पर हमला कर दिया। बचने के लिए सभी अधिकारी कार में बैठकर गांव से निकलने लगे, तो उन पर पत्थर और डंडे बरसाए गए। गाड़ियों से खींचकर पीटा गया। इसके वीडियो भी सामने आए हैं, जिनमें दिख रहा है कि भीड़ सड़क से बड़े-बड़े पत्थर उठाकर अफसरों की गाड़ियों पर फेंक रही है। ये वीडियो गांव वालों ने ही बनाए थे। मामले में ट्विस्ट तब आया जब पुलिस ने दावा किया कि इस विरोध और हमले के पीछे तेलंगाना की विपक्षी पार्टी भारत राष्ट्र समिति के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामाराव का हाथ है। KTR के नाम से मशहूर केटी रामाराव पूर्व CM के. चंद्रशेखर राव के बेटे हैं। पुलिस ने पार्टी के पूर्व विधायक पटनम नरेंद्र रेड्डी और यूथ विंग से जुड़े बोगामनी सुरेश को मुख्य आरोपी बनाया है। नरेंद्र रेड्डी ही KTR तक हर अपडेट पहुंचा रहा था। किसानों को डर- फार्मा विलेज बनने से जमीनें बंजर हो जाएंगीआखिर गांव वालों ने अफसरों पर हमला क्यों किया, ये साजिश है या जमीन छिनने के डर से उपजा गुस्सा, इस हमले के पीछे कौन है? इन सवालों का जवाब ढूंढने दैनिक भास्कर हैदराबाद से 125 किमी दूर लागाचरला गांव पहुंचा। लागाचरला गांव मेन रोड से करीब 4 किमी अंदर है। सरकार यहां 1,350 एकड़ में स्पेशल इकोनॉमिक जोन बनाना चाहती है। लागाचरला गांव के साथ ही हकीमपेटा, पोलेपल्ली, आरबी थांडा, पुलीचेरला, ईरलापल्ली थांडा और आसपास के कुछ गांवों के किसान इसका विरोध कर रहे हैं। उनका विरोध यहां बनने वाले फार्मा विलेज की वजह से है। गांव वालों का कहना है कि फार्मा प्रोजेक्ट आने से यहां रिसर्च लैब खुलेंगी। इनसे निकलने वाले केमिकल की वजह से आसपास के गांवों की हवा और पानी जहरीला हो जाएगा। कैंसर जैसी बीमारियां बढ़ेंगी। फसलें खराब होंगी और जमीन बंजर हो जाएगी। आज नहीं तो कल उन्हें घर छोड़कर जाना पड़ेगा। अफसरों पर हमले के बाद महिलाएं और मर्द भागे, बच्चे और बुजुर्ग ही बचेकलेक्टर समेत बड़े अफसरों पर हमले के बाद सरकार और पुलिस एक्शन में आ गई। 22 लोगों के खिलाफ नामजद और 100 अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया। हम सुबह करीब 11 बजे लागाचरला गांव पहुंचे। गांव में सन्नाटा पसरा था। कुछ बच्चे और बुजुर्ग ही घरों के बाहर बैठे मिले। आधा घंटा घूमने के बावजूद एक भी महिला या पुरुष नजर नहीं आया। घरों के दरवाजे भी खटखटाए, लेकिन कोई बाहर नहीं निकला। गांव के चौक पर शिव मंदिर बना है। यहां कुछ बुजुर्ग बैठे मिले। इन्हीं में शामिल कृष्णाया बताते हैं, ‘सरकार करोड़ों का कारोबार खड़ा करना चाहती है, लेकिन हमें एक एकड़ जमीन के बदले 9-10 लाख रुपए दे रही है। यहां की मिट्टी बहुत उपजाऊ है। हम साल में एक एकड़ से 5 से 7 लाख रुपए की फसल पैदा कर लेते हैं। जमीन लेकर सरकार हमारे हाथ-पैर काटना चाहती है।’ गांव वाले बोले- बाहरी लोग नशा करके आए थे, उन्होंने ही हमला कियागांव के लोगों पर आरोप है कि उन्होंने भारत राष्ट्र समिति के नेताओं के कहने पर अफसरों पर हमला किया। इस बारे में कृष्णाया कहते हैं, ‘हमें किसी ने पैसे नहीं दिए। हमला करने वाले नशे में धुत थे। उनका हमारे गांव से कोई लेना-देना नहीं है। सरकार जानबूझकर हमारे लोगों को पकड़ रही है। हम किसी पार्टी में नहीं हैं।’ कृष्णाया बताते हैं, ‘जो वीडियो सामने आया, वो कहानी का एक हिस्सा है। अधिकारी हमें धमका रहे थे कि किसी भी हाल में जमीन लेंगे। इसी से लोग भड़के और हमला कर दिया। आपको जमीन लेनी है, तो शांति से बात करनी चाहिए। हमें नहीं पता कि कलेक्टर के साथ किसने मारपीट की है। पुलिस एक हफ्ते से रात में छापे मार रही है। मर्दों को उठाकर जेल में ठूंस दिया है।’ ‘पुलिस ने जिन्हें पकड़ा, उनसे पूछा भी नहीं कि गांव में थे या नहीं’कृष्णाया आगे कहते हैं, ‘जिसे भी पुलिस ने पकड़ा, उससे पूछा भी नहीं कि उस दिन गांव में थे या नहीं। इसीलिए गांव के ज्यादातर जवान लड़के घर छोड़कर भाग गए हैं। उन्हें डर है कि गांव में आते ही अरेस्ट कर लिया जाएगा। डेढ़ हजार की आबादी वाले गांव में अब सिर्फ 25-30 बुजुर्ग बचे हैं। महिलाएं भी घर छोड़ कर जा रही हैं। भरोसा नहीं है, कल को पुलिस उन्हें भी अरेस्ट कर ले।’ दूसरे गांवों की जमीन बंजर हुई, इसलिए विरोध में आए लोगगांव के पूर्व सरपंच सी. कृष्णैया कांग्रेस से जुड़े हैं। वे खुद को CM रेवंत रेड्डी का करीबी बताते हैं। सी. कृष्णैया बताते हैं, ‘फार्मा विलेज के बारे में पता चलते ही आसपास के 6 गांव के लोग राज्य में पहले से चल रहे स्पेशल इकोनॉमिक जोन देखने गए।' 'वहां पता चला कि जहां भी कोई फार्मा कंपनी है, उसके आसपास के ज्यादातर गांव खाली हो चुके हैं। लोग घर छोड़कर चले गए हैं। पानी और हवा जहरीली हो गई है। इससे वे डर गए। धीरे-धीरे ये डर पूरे गांव में फैल गया।’ ‘लोकसभा चुनाव से पहले लोग मेरे पास आए थे। तब एक डेलिगेशन बनाकर हम मुख्यमंत्री से मिले। उन्हें बताया कि हम फार्मा विलेज से खुश नहीं है। अगर ये हमारे फायदे के लिए है, तो गांव में कुछ साइंटिस्ट और अफसरों को भेजकर इसके फायदे बताए जाएं। इससे लोगों का विरोध कम होगा और सरकार पर भरोसा बनेगा। उन्होंने कहा कि ये ग्रीन फार्मा विलेज होंगे और इनसे लोगों को फायदा होने वाला है। इसके बाद हम लौट आए।’ ‘सस्ते लेबर के चक्कर में यूपी-बिहार वालों को मिलेगी नौकरी’सी. कृष्णैया आगे कहते हैं, ‘फार्मा विलेज से न सिर्फ हमारी जमीनें जाएंगी, बल्कि हमारे लोगों को काम भी नहीं मिलेगा। सस्ते लेबर के चक्कर में कंपनियां यूपी-बिहार के लोगों को हायर करेंगी। सभी को लगता है कि मैं अपनी पार्टी की वजह से प्रोजेक्ट का समर्थन कर रहा हूं। मैं क्लियर करना चाहता हूं कि मैं गांव के लोगों के साथ खड़ा हूं। प्रोजेक्ट से मेरे बच्चों की सेहत भी खराब होगी।’ महिलाएं बोलीं- मर जाएंगे, लेकिन जमीन नहीं देंगेकुछ आगे बढ़ने पर हमें एस. बालना मिलीं। वे खेत में गेहूं काट रही थीं। बालना कहती हैं, ‘ये शायद मेरी आखिरी खेती है। मेरा 8 लोगों का परिवार है। हमारे पास सिर्फ ये खेत ही हैं। अगर इन्हें भी छीन लेंगे, तो हम कहां जाएंगे। मुआवजे के नाम पर कुछ नहीं दे रहे हैं।’ बालना आगे कहती हैं, ‘हमारे बच्चे सिर्फ खेती करते हैं। उन्होंने किसी पर हमला नहीं किया। इसके बावजूद वे डर की वजह से घर में नहीं रुक रहे हैं। पुलिस ने उनके दोस्तों को पकड़ लिया है। मुझे डर है कि मेरे बच्चों को भी ले जाएंगे।’ आरोपी पूर्व विधायक CM के खिलाफ लड़ चुका चुनावअफसरों पर हमले के बाद पुलिस ने 65 से ज्यादा लोगों को अरेस्ट किया है। उन पर पब्लिक सर्वेंट पर हमले और सरकारी काम में रुकावट डालने का केस दर्ज किया गया है। आरोपियों की पहचान हमले की फुटेज से हुई है। दैनिक भास्कर के पास आरोपियों की रिमांड कॉपी है। इसमें तेलंगाना पुलिस ने दावा किया है कि गवाहों के बयान के अलावा मुख्य आरोपी बोगामनी सुरेश, विशाल और 4 अन्य आरोपियों के इकबालिया बयान से पता चला कि घटना के पीछे कोडंगल विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक पटनम नरेंद्र रेड्डी का हाथ है। सुरेश भी BRS की यूथ विंग से जुड़ा है। नरेंद्र रेड्डी ने हकीमपेट, पोलेपल्ली, रोटीबंदा थांडा, पुलीचेरला थांडा, लागाचरला के किसानों को भड़काने, उन्हें फाइनेंशियल सपोर्ट देने में बड़ी भूमिका निभाई है। इसलिए उसे मुख्य आरोपी बनाया गया है। कोडंगल मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी का विधानसभा क्षेत्र है। नरेंद्र रेड्डी ने उनके खिलाफ चुनाव लड़ा था। आरोप है कि नरेंद्र रेड्डी ने आरोपी बोगामनी सुरेश को गांवों में भेजा और किसानों के दिमाग में ये बात डाली कि सरकार के फैसले से उन्हें नुकसान होगा। रेड्डी ने अफसरों पर हमले और काम रुकवाने की साजिश रची। 13 नवंबर की सुबह नरेंद्र रेड्डी को हैदराबाद में उनके घर से अरेस्ट किया गया। BRS चीफ के इशारे पर हिंसा के सबूत मिलेरिमांड शीट के मुताबिक, नरेंद्र रेड्डी ने कबूल किया है कि उसने सरकार को अस्थिर और बदनाम करने के लिए लोगों को उकसाया। इसके लिए उसे पार्टी चीफ केटी रामाराव से निर्देश मिला था। नरेंद्र ने घटना के बारे में पूरी जानकारी केटी रामाराव को भी भेजी थी। पुलिस के मुताबिक, नरेंद्र रेड्डी घटना से पहले और बाद में लगातार आरोपी नंबर 2 यानी सुरेश से फोन पर बात कर रहा था। सबूत के तौर पर नरेंद्र रेड्डी की कॉल डिटेल भी अदालत में पेश की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 70 दिनों में बोगामनी सुरेश और नरेंद्र के बीच 84 बार बात हुई थी। पुलिस ने शुरुआत में सुरेश को मुख्य आरोपी बताया था। उसकी गिरफ्तारी के बाद सुरेश की जगह नरेंद्र को आरोपी बना दिया गया। पुलिस का दावा– हिंसा में ऐसे लोग शामिल, जिनकी जमीनें भी नहींपुलिस सूत्रों के मुताबिक, इस केस में जल्द ही केटी रामाराव पर भी कार्रवाई हो सकती है। रामाराव और नरेंद्र रेड्डी के बीच बातचीत के सबूत हैं। पुलिस को यह भी पता चला है कि केटी रामाराव इस अधिग्रहण के खिलाफ राज्य में आंदोलन करना चाहते थे। पूछताछ में नरेंद्र ने कबूल किया है कि कब और कैसे विरोध करना है, इसका ब्लू प्रिंट रामाराव की ओर से दिया गया था। सूत्रों के मुताबिक, पुलिस हिंसा को बड़ी साजिश मानकर जांच कर रही है। अब तक गिरफ्तार 65 लोगों में से 23 ऐसे हैं, जिनकी जमीन फार्मा विलेज प्रोजेक्ट में नहीं है। केटी रामाराव बोले- मैं किसानों के साथ, सिर ऊंचा करके जेल जाऊंगारिमांड कॉपी में नाम आने के बाद भारत राष्ट्र समिति के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामाराव ने कहा कि अगर आप मुझे गिरफ्तार कर सकते हैं, तो करें। मैं तेलंगाना के किसानों के साथ खड़े होने के लिए सिर ऊंचा करके जेल जाऊंगा। उन्होंने आगे कहा, 'यह झूठा और मनगढ़ंत मामला है। मैं CM रेवंत रेड्डी से कहना चाहता हूं कि आप मुझे गिरफ्तार कर लें, लेकिन जेल में बंद 21 गरीब किसानों को रिहा किया जाना चाहिए। मैं CM रेवंत से कहना चाहता हूं कि वे किसानों की जमीन हड़पना बंद करें। केटी रामाराव ने ये भी आरोप लगाया कि रेवंत रेड्डी अपने दामाद सत्यनारायण रेड्डी की फार्मा कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए किसानों की जमीन हड़प रहे हैं। CM रेड्डी के भाई बोले- फार्मा विलेज का काम नहीं रुकेगाकिसानों के विरोध के बावजूद सरकार फार्मा विलेज का काम नहीं रोकेगी। CM रेवंत रेड्डी के भाई तिरुपति रेड्डी ने 13 नवंबर को कहा कि सरकार कोडंगल में फार्मा विलेज प्रोजेक्ट से पीछे नहीं हटेगी। उन्होंने हमले के शिकार हुए अफसरों से भी बात की। तिरुपति रेड्डी के बयान के जवाब में केटी रामाराव ने कहा कि तिरुपति रेड्डी कोडंगल के शेडो MLA हैं। वही कोडंगल में हुकूमत चला रहे हैं और किसी भी कीमत पर गरीब किसानों की हजारों एकड़ जमीन लेने की सरकार की मंशा जाहिर कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारी BRS, किसानों के जरिए वापसी की कोशिश2013 में तेलंगाना बनने के बाद 10 साल तक BRS के चंद्रशेखर राव मुख्यमंत्री रहे। पहले उनकी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति थी, जिसे उन्होंने बदलकर भारत राष्ट्र समिति कर दिया। 2023 के चुनाव में पार्टी बुरी तरह हारी। 119 सीटों में से 64 सीटें जीतकर कांग्रेस ने बहुमत से सरकार बनाई। चंद्रशेखर राव की पार्टी सिर्फ 39 सीटें जीत पाई। चंद्रशेखर राव की कोशिशों की वजह से ही अलग तेलंगाना राज्य बना था। खराब सेहत की वजह से वे राजनीति में पहले की तरह एक्टिव नहीं हैं। उनके बेटे केटी रामाराव पार्टी संभाल रहे हैं। पार्टी किसानों के जरिए प्रदेश में वापसी करना चाह रही है। ..................................... उत्तर प्रदेश में भी एक फैसले का विरोध हो रहा है, पढ़िए इससे जुड़ी ये खबर UP के सैलून-बुटीक-जिम वाले फंसे, कहां से लाएं महिला स्टाफ 28 अक्टूबर को लखनऊ में UP महिला आयोग की मीटिंग हुई। इसमें प्रपोजल बना कि जिम और योग सेंटर में महिला ट्रेनर रखना होगा। वहीं, बुटीक में पुरुष टेलर महिलाओं का नाप नहीं ले सकेंगे।इस प्रपोजल से सैलून, बुटीक और जिम ओनर परेशान हैं। उनका कहना है कि ट्रेंड फीमेल स्टाफ मिलता ही नहीं है, तो हम कहां से लाएं। पढ़िए पूरी खबर...
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Russia-Ukraine conflict: बाइडन ने यूक्रेन को रूस के अंदरूनी हिस्से में लंबी दूरी की मिसाइलें ATACMS इस्तेमाल करने की अनुमति दी. न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, इन मिसाइलों का उपयोग रूस के पश्चिमी हिस्से, खासकर कुर्स्क क्षेत्र में किया जा सकता है.
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PM Modi in Nigeria: प्रधानमंत्री मोदी ने नाइजीरिया में भारतीय समुदाय को भी संबोधित किया. उन्होंने कहा कि भारतीय हमेशा अपने मूल्यों और संस्कारों को साथ लेकर चलते हैं, चाहे वे दुनिया में कहीं भी हों. नाइजीरिया में लगभग 60,000 भारतीय प्रवासी रहते हैं, जो पश्चिमी अफ्रीका का सबसे बड़ा भारतीय समुदाय है.
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Air Pollution: एक तरफ जहां दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण अपना कहर बरपा रहा है, वहीं पाकिस्तान में इससे बुरी हालत बनी हुई है. लोगों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से बचाने के लिए सरकार को दो शहरों में लॉकडाउन लगा पड़ गया है.
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Muktinath Temple Nepal: मुक्तिनाथ मंदिर हिंदू और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र स्थल है. इसे मोक्ष और आत्मज्ञान प्राप्त करने का स्थान माना जाता है. भारत और नेपाल के श्रद्धालुओं के लिए यह मंदिर विशेष महत्व रखता है और यहां आने वाले भक्त इसे एक अद्वितीय धार्मिक अनुभव के रूप में देखते हैं.
उत्तर कोरिया की अजीब हरकत, 7,000 गुब्बारों में कचरा भरकर दक्षिण कोरिया भेजे
North Korea: उत्तर कोरिया अपने अजीब कारनामों के लिए मशहूर है. साथ ही उसकी दक्षिण कोरिया से लड़ाई भी जगजाहिर है. लेकिन इस बार उसने अपने पड़ोसी दुश्मन से लड़ने के लिए कचरे को हथियार बना रहा है.
और खतरनाक होगी रूस-यूक्रेन की जंग! लंबी दूरी की मिसाइल को लेकर बाइडेन ने...
Joe Biden : जाते-जाते जो बाइडेन ने वो फैसला कर दिया है, जो रूस के आगे यूक्रेन को पहले से भी मजबूत बनाएगा. बाइडेन ने यूक्रेन को अब लंबी दूरी की अमेरिकी मिसाइलों से रूस पर हमला करने की अनुमति दे दी है.
कार की डिक्की में मिली भारतीय महिला की लाश, पति को ढूंढने के लिए ब्रिटेन ने लगाए 60 से ज्यादा जासूस
London Police: ब्रिटेन में एक भारतीय महिला की हत्या के आरोप में उसके भारतीय मूल के पति को ढूंढने के लिए लंदन पुलिस ने 60 जासूसों को काम पर लगा दिया है. आरोपी का नाम पंकज लांबा है.
शेख हसीना की बढ़ेंगी मुश्किलें? बांग्लादेश की यूनुस सरकार ने कर दिया बड़ा ऐलान
Sheikh Hasina Extradition: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने ऐलान किया है कि वे भारत से शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग करेंगे.
बढ़ेगी तकरार! तुर्की ने इजरायली प्रेसिडेंट के प्लेन को अपने आसमान से उड़ने की नहीं दी परमिशन
Israel Turkey : तुर्की और इजराइल के खराब संबंधों का एक उदाहरण हाल ही में देखने को मिला, जब तुर्की ने अजरबैजान में इजरायल के प्रेसिडेंट के विमान को अपने हवाई क्षेत्र में आने की अनुमति नहीं दी.
US: बर्गर खाकर अमेरिका को हेल्दी बनाएंगे ट्रंप के भावी स्वास्थ्य मंत्री? मामला कुछ और भी है...
Donald Trump Make America Healthy Again:
मौत की सजा देने में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ रहा सऊदी अरब, सजा पाने वालों में सबसे ज्यादा पाकिस्तानी
Death Penalty in Saudi Arabia: सजा देने के मामले में सऊदी अरब कुख्यात है. लेकिन इस साल तो सऊदी अरब ने मौत की सजा देने के मामले में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया और साल 2024 में 100 से ज्यादा विदेशी नागरिकों को मृत्युदंड दे दिया.
Brazil G20 Summit: तिलक लगाते, मंत्र बोलते, साड़ी पहनते... ब्राजील में इन विदेशी सनातनियों से मिलिए
Hindu Culture In Brazil: ब्राजील में भले ही भारतीयों की संख्या बहुत अधिक न हो, उन्होंने यहां गहरी छाप छोड़ी है. रियो डि जेनेरो में तो विदेशी भी सनातनी अंदाज में वैदिक मंत्रों का पाठ करते नजर आते हैं.
ईरान की सुप्रीम कुर्सी के लिए मोजतबा खामनेई ने रची थी साजिश? क्यों उठा रईसी की मौत का मुद्दा
Ali Khamenei Successor: ईरानी सुप्रीम लीडर अली खामेनेई ने चुपके से अपना उत्तराधिकारी चुन लिया. अपने बेटे मोजतबा खामनेई को ईरान का नया सुप्रीम लीडर तो घोषित कर दिया है लेकिन इसके साथ ही एक नया सवाल भी खड़ा हो गया है.
अमेरिका में डेमोक्रेट्स की सत्ता छिन चुकी है. रिपब्लिकन ट्रंप चुनाव जीतते ही अपनी पसंद की भर्तियां कर रहे हैं. बाइडेन ने जाते जाते ट्रंप की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. दरअसल व्हाइट हाउस का अधिकारिक हैंडओवर होना बाकी है. पुराने फैसले जल्दी-जल्दी निपटाए जा रहे हैं.
फॉक्स टीवी के एंकर पीट हेगसेथ अमेरिका के नए रक्षामंत्री होंगे। गीता पर हाथ रखकर शपथ लेने वाली तुलसी गबार्ड नेशनल इंटेलिजेंस की डायरेक्टर होंगी। दुनिया के सबसे अमीर शख्स एलन मस्क को अमेरिकी सरकार का खर्च घटाने का जिम्मा मिला है। 20 जनवरी 2025 को कार्यभार संभालने की तैयारी में लगे प्रेसिडेंट इलेक्ट डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी टीम लगभग तैयार कर ली है। रविवार को ट्रम्प और उनकी नामित कैबिनेट ने UFC में जश्न मनाया। आज के एक्सप्लेनर में जानेंगे ट्रम्प ने अपने नई टीम में किसे और क्यों चुना… -------अमेरिका से जुड़ी अन्य खबरें...1. ट्रम्प ने मस्क और रामास्वामी को सौंपा DOGE, ₹168 लाख करोड़ कैसे बचाएंगे अमेरिका के प्रेसिडेंट इलेक्ट डोनाल्ड ट्रम्प ने इलॉन मस्क और विवेक रामास्वामी के लिए नया विभाग डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी यानी DOGE बनाया है। मस्क और रामास्वामी मिलकर हर साल अमेरिकी सरकार के 2 ट्रिलियन डॉलर बचाएंगे। क्या है DOGE और कैसे काम करेगा। पूरी खबर पढ़ें 2. ट्रम्प की हत्या की तीसरी कोशिश का खुलासा: ‘ईरानी एसेट’ पर हत्या की साजिश रचने का आरोप; पिछले 6 महीने में चौथी साजिश अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बंपर जीत दर्ज करने वाले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की हत्या की एक और साजिश का खुलासा हुआ है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी FBI ने फरहाद शकेरी नाम के ईरानी नागरिक पर आरोप लगाए हैं। FBI का कहना है कि फरहाद को 7 अक्टूबर को ईरान सरकार ने ट्रम्प की हत्या प्लान बनाने का काम सौंपा था। पूरी खबर पढ़ें
अमेरिका के प्रेसिडेंट इलेक्ट डोनाल्ड ट्रम्प ने जॉन रैटक्लिफ को दुनिया की सबसे ताकतवर खुफिया एजेंसी CIA की कमान सौंपने का फैसला किया है। ट्रम्प के वफादार रैटक्लिफ कभी अमेरिकी जासूस थे। उनका मानना है कि कोरोना चीन की लैब में बना और चीन 21वीं सदी में अमेरिका के लिए सबसे बड़ा खतरा है। CIA डायरेक्टर की रेस में भारतीय मूल के काश पटेल भी थे। मंडे मेगा स्टोरी में CIA की पूरी कहानी, जो दुनियाभर में सीक्रेट मिशन और तख्तापलट के लिए मशहूर है… आइए, अब CIA के कुछ अनोखे तरीके और उसके कुछ बड़े ऑपरेशन की कहानी जानते हैं… ------- अमेरिका से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... 1. ट्रम्प की हत्या की तीसरी कोशिश का खुलासा:‘ईरानी एसेट’ पर हत्या की साजिश रचने का आरोप; पिछले 6 महीने में चौथी साजिश अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बंपर जीत दर्ज करने वाले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की हत्या की एक और साजिश का खुलासा हुआ है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी FBI ने फरहाद शकेरी नाम के ईरानी नागरिक पर आरोप लगाए हैं। FBI का कहना है कि फरहाद को 7 अक्टूबर को ईरान सरकार ने ट्रम्प की हत्या प्लान बनाने का काम सौंपा था। पूरी खबर पढ़ें
तारीख 20 जून 2022, मुंबई का सीएम हाउस ‘वर्षा’। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे शिवसेना के तमाम बड़े नेताओं और विधायकों के साथ मीटिंग कर रहे थे। उनके पीछे करीब एक कुर्सी दूर उनके ओएसडी के मोबाइल पर एक बीप आती है। ओएसडी बिना किसी आहट के चुपके से मैसेज देख मोबाइल लॉक कर देते हैं और एक चिट पर कुछ लिखते हैं। इधर, मीटिंग में जैसे ही उद्धव अपनी बात खत्म करते हैं, ओएसडी कुर्सी से उठ वो चिट उनके सामने रख देते हैं। उद्धव ने चिट देखने के बाद डस्टबिन में डाल दी। बॉस का रिएक्शन देख ओएसडी बिना कुछ कहे अपनी जगह जाकर बैठ जाते हैं। ये मैसेज महाराष्ट्र के किसी छोटे नेता का नहीं था, मैसेज था शिवसेना के सबसे दमदार और असरदार नेता एकनाथ शिंदे का… जिसे शिवसेना के सुप्रीमो और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कुछ देर पहले ही डस्टबिन में फेंका था। दरअसल, इसी दिन कुछ घंटे पहले ही विधानसभा में विधान परिषद की बैठक खत्म हुई थी। इसके तुरंत बाद सीएम हाउस में ये बैठक हुई थी। एकनाथ शिंदे भी मीटिंग के लिए आए, लेकिन थोड़ा लेट हो गए थे। उन्हें मीटिंग में नहीं जाने दिया गया। एकनाथ शिंद ने एक घंटे से ज्यादा इंतजार किया। मीटिंग खत्म होने के बाद शिंदे को लगा कि उद्धव चुनाव को लेकर उनसे शायद अकेले में बात करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। महाराष्ट्र के सीनियर जर्नलिस्ट जितेंद्र दीक्षित ने अपनी किताब ‘सबसे बड़ी बगावत’ में इस किस्से का जिक्र किया है। जितेंद्र दीक्षित कहते हैं- उस रोज शिंदे ने देवेंद्र फडणवीस को फोन किया और कहा, ‘उद्धव के बर्ताव की वजह से मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंची है। मैंने अब पार्टी छोड़ने का मन बना लिया है। कई विधायक भी साथ आने को तैयार हैं।’ इतना सुनते ही फडणवीस हरकत में आ गए। ऐसा माना जाता है कि 20 जून को जब विधान परिषद की वोटिंग हुई थी, तब जानबूझकर शिवसेना के दोनों कैंडिडेट को जिताया गया था, ताकि शिंदे पर शिवसेना को शक न हो। 20 जून की देर शाम खबर आई कि शिवसेना के एकनाथ शिंदे पार्टी के संपर्क से बाहर हो गए हैं। बाद में पता चला कि शिंदे 11 विधायकों के साथ सूरत में हैं। दो दिन बाद 40 विधायकों के साथ उन्होंने पार्टी से बगावत भी कर दी। उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। 30 जून को एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के सीएम बने। ‘महाराष्ट्र के महाकांड’ सीरीज के 5वें एपिसोड में ‘शिवसेना के खांटी नेता एकनाथ शिंदे की बगावत और महाराष्ट्र की राजनीति में उसका असर जानने मैं मुंबई पहुंची हूं…. महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार अंतिम दौर में है। मुद्दा असली और नकली पार्टी का भी है। बीते पांच साल में महाराष्ट्र की राजनीति में जो हुआ इससे पहले देश में कहीं नहीं हुआ। मैं महाराष्ट्र में करीब ढाई साल पहले हुए तख्तापलट की गवाह भी रही हूं। सूरत, गुवाहाटी से दिल्ली और फिर मुंबई में जो राजनीतिक उठापटक हुई उसे मैंने खुद देखा है। फ्लैशबैक में जाएं, तो महाराष्ट्र की इस दिलचस्प पटकथा की शुरुआत 24 अक्तूबर 2019 से होती है। उस दिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजे आए थे। बीजेपी और शिवसेना साथ लड़े थे। दूसरी ओर कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन था। बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बहुमत लायक सीटें मिल गई थीं। भाजपा को सबसे ज्यादा 106 और शिवसेना को 56 सीटें मिली थीं, लेकिन मुख्यमंत्री कौन बनेगा, इसे लेकर मामला फंस गया। बीजेपी और शिवसेना की बात नहीं बन पाई। नवंबर 2019 में देवेंद्र फडणवीस दोबारा मुख्यमंत्री तो बने, लेकिन 80 घंटे बाद ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। फिर महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई। तब से ही महाराष्ट्र सरकार और बीजेपी के बीच शह और मात का खेल शुरू हो गया। आदित्य ठाकरे के दखल से हुई अलगाव की शुरुआत नवंबर 2019 में एकनाथ शिंदे लगातार चौथी बार मुंबई के ठाणे से विधायक बने। वे तीस साल से शिवसेना से जुड़े थे। जब तय हुआ कि महाविकास अघाड़ी में CM शिवसेना का होगा, तो शिंदे और उनके करीबियों को लगा कि CM की कुर्सी उनकी होगी। शिंदे का कद दूसरे विधायकों के मुकाबले ज्यादा था। उनके पास पैसा भी था, जनाधार भी और महाराष्ट्र में बड़ा नेटवर्क भी, लेकिन जब उद्धव को विधायक दल का नेता चुना गया, तो शिंदे की उम्मीदों पर पानी फिर गया। जितेंद्र दीक्षित कहते हैं- इससे पहले ठाकरे परिवार का कोई भी व्यक्ति मुख्यमंत्री नहीं बना था, लेकिन उद्धव ठाकरे की शिवसेना में उनकी पत्नी रश्मि ठाकरे का ठीक-ठाक दखल है और उन्होंने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनने के लिए राजी कर लिया। इधर बीजेपी लगातार एकनाथ शिंदे के टच में थी। अब शिंदे को भी इसमें संभावना नजर आने लगी थी।’ जब महाविकास अघाड़ी की सरकार में उद्धव ठाकरे CM बने, तब कुछ गिने-चुने अहम मंत्रालय शिवसेना को मिले। इनमें एक था नगर विकास मंत्रालय जो एकनाथ शिंदे को दिया गया। आमतौर पर ये मंत्रालय CM अपने पास रखते हैं। ‘सबसे बड़ी बगावत’ किताब के मुताबिक, 'पार्टी के लोग उद्धव से मिलने के लिए तरसते थे। उद्धव ने अपना एक इनर सर्कल बना रखा था। वे सिर्फ अपने लोगों से ही मिलते थे। पहले तो वो किसी से मिलते ही नहीं थे और मिलते भी तो घंटों इंतजार करना पड़ता था।' शिंदे के करीबियों के मुताबिक आदित्य ठाकरे पर्यावरण मंत्री थे, लेकिन शिंदे के मंत्रालय पर भी उन्होंने अपना अधिकार जमा लिया था। मुंबई मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट सोसाइटी अथॉरिटी की मीटिंग्स जो शिंदे को लेनी थीं, वो आदित्य लेने लगे। मंत्रालय से जुड़े तमाम फैसले आदित्य लेते और शिंदे के पास साइन करवाने के लिए फाइल पहुंचा दी जाती। तिरुमाला तिरुपति ट्रस्ट को जमीन अलॉट करने के बाद ये बात सबके सामने साफ हो गई। जब पेपर देते हुए आदित्य ठाकरे की तस्वीर सामने आई, जिसमें मिलिंद नार्वेकर भी मौजूद थे। लोगों ने सवाल भी किया कि नगर विकास मंत्री यहां क्यों नहीं हैं। उधर, सियासी हल्कों में ये बात भी होने लगी कि शरद पवार रिमोट कंट्रोल से सरकार चला रहे हैं। ये बात शिवसेना विधायकों को रास नहीं आ रही थी। विधायकों को लगने लगा था कि पार्टी को कमजोर किया जा रहा है और यहीं से शिवसेना में बगावत का बीज पड़ गया। मुझे याद है कि बगावत करने के बाद जब शिंदे अपने विधायकों के साथ सूरत पहुंचे, तो उद्धव ठाकरे लगातार उनसे संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे। महाराष्ट्र से सूरत की दूरी ज्यादा नहीं थी, इसलिए तय हुआ कि विधायक असम की राजधानी गुवाहाटी जाएंगे। 22 जून 2022 की सुबह से ही गुवाहाटी की आबोहवा गरम थी। फाइव स्टार होटल रैडिसन पर सबकी निगाहें थीं क्योंकि यहां देश की सियासत का सबसे बड़ा ड्रामा चल रहा था। होटल को सील कर दिया गया था। दरअसल, देर रात यहां एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के विधायकों के साथ पहुंचे थे। मैं अलसुबह से ही रैडिसन के बाहर पहुंच गई थी। उस वक्त असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इन विधायकों को गुवाहाटी भेजने का सुझाव दिया था। शाम होते-होते असम के मुख्यमंत्री भी वहां आए। इस राजनीतिक बगावत को कवर करने के लिए यहां असम, नॉर्थ ईस्ट, कोलकाता, दिल्ली और महाराष्ट्र से कम से कम 500 पत्रकार पहुंचे थे। हर पत्रकार जानना चाह रहा था कि आखिर अंदर क्या चल रहा है। शाम होते-होते एक तस्वीर के साथ खबर आई कि अंदर मीटिंग चल रही है। पत्रकारों के लिए होटल के बाहर एक टेंट लगवाया गया था। उनके लिए चाय, नाश्ता, लंच और डिनर भी होटल की तरफ से आ रहा था। दूसरे दिन भी यहां यही ड्रामा चलता रहा। आखिरकार पत्रकारों के मोबाइल पर एक तस्वीर आई जिसमें बागी विधायकों ने एकनाथ शिंदे को अपना नेता चुना। तीन दिन तक चले इस सियासी खेल ने शिवसेना के पैरों तले जमीन खींच ली। ठाकरे परिवार को इस बात का अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि अब न तो पार्टी उनकी रहेगी और न ही चुनाव चिह्न। जितेंद्र दीक्षित ने अपनी किताब में लिखा है कि,’जब एकनाथ शिंदे तैयार होकर सीएम पद की शपथ के लिए राजभवन की ओर निकले तब उन्हें अमित शाह ने फोन किया था। शाह ने उन्हें बधाई दी और कहा, शिंदे जी हम लोग तो पुराने मित्र हैं। शिवसेना-भाजपा का गठबंधन तो पहले से है। आप चिंता मत करो। आपके पीछे हम चट्टान की तरह खड़े हैं।’ जितेंद्र दीक्षित बताते हैं, 'शिवसेना में यह चौथी सबसे बड़ी बगावत थी। इससे पहले 1991 में छगन भुजबल ने बगावत की थी। पार्टी में छगन भुजबल का कद तेजी से बढ़ा। वह तेज दिमाग थे और भाषण अच्छा देते थे। ओबीसी समुदाय पर उनकी अच्छी पकड़ थी। उनकी कोशिशों से महाराष्ट्र में शिवसेना का विस्तार भी अच्छा हुआ। वह बाल ठाकरे के करीबी नेताओं में से एक थे। साल 1990 में दोनों के बीच रिश्ते बिगड़ने लगे। उन्हें बीएमसी की राजनीति में भेज दिया गया और लगातार उनका डिमोशन हुआ। 5 दिसंबर 1991 को भुजबल ने बालासाहेब ठाकरे के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। भुजबल के नेतृत्व में 18 विधायकों ने ठाकरे को एक पत्र सौंपा, जिसमें लिखा था कि वह शिवसेना बी नाम से अलग गुट बना रहे हैं और पार्टी से अलग हो रहे हैं।' 'बालासाहेब ठाकरे आहत हुए और उन्होंने छगन भुजबल को लखोबा कहना शुरू कर दिया। लखोबा एक मराठी किरदार है, जो दगाबाज होता है।' 'इसी तरह से नारायण राणे और उद्धव ठाकरे के बीच दरार तब पड़ी, जब बालासाहेब ठाकरे ने 2003 में उद्धव ठाकरे को अपना सियासी वारिस बनाते हुए कार्यकारी अध्यक्ष घोषित कर दिया। अब नारायण राणे की पार्टी में बिल्कुल नहीं चलती थी। उन्हें मीटिंग्स में बुलाना बंद कर दिया गया, उनके करीबियों को न तो चुनाव में टिकट दिए जा रहे थे और न संगठन में कोई पद। यहां तक कि मातोश्री से फोन जाता था कि नारायण राणे की सभा में कार्यकर्ता नहीं भेजने हैं।' 'हालांकि बाल ठाकरे को राणे अभी भी प्रिय थे, लेकिन उद्धव ठाकरे के सामने राणे की एक नहीं चलती थी। राणे ने अपनी आत्मकथा ‘नो होल्डस बार्ड’ में लिखा है कि उनकी वजह से बालासाहेब और उद्धव के बीच अक्सर झगड़े होते थे। एक बार उद्धव ने बालासाहेब को धमकी दे डाली कि राणे पार्टी में रहेंगे, तो वह अपने परिवार के साथ मातोश्री छोड़ देंगे। आखिरकार राणे ने 2005 में शिवसेना छोड़ दी। 2005 में ही शिवसेना में एक और फूट पड़ी। इस बार बालासाहेब के चहेते और परिवार के ही एक सदस्य राज ठाकरे ने बगावत कर दी। दिसंबर 2005 में राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर नई पार्टी बना ली। दो साल बाद जब एकनाथ शिंदे ने शिवसेना से बगावत की तो पार्टी ही नहीं तोड़ी, शिवसेना और उसका चुनाव चिह्न धनुष-बाण दोनों ले गए। महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार राजू पारुलेकर कहते हैं- ‘बालासाहेब ठाकरे ने एक शेर का चित्र बनाया था, जो उनकी कुलदेवी माता इक्विरा से जुड़ा था। शिंदे पार्टी के साथ-साथ वो शेर भी उठा ले गए।’ जितेंद्र दीक्षित कहते हैं, ‘शिवसेना में इससे पहले भी बगावत हुई है, लेकिन पार्टी का अस्तित्व कायम रहा। पार्टी जड़ों से नहीं हिली और उसकी कमान ठाकरे परिवार के पास ही रही, लेकिन शिंदे की बगावत ने तो शिवसेना जैसा वट वृक्ष जड़ों समेत हथिया लिया।’ लोकसभा चुनाव में शिंदे की शिवसेना पर उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना भारी पड़ी थी। शिंदे के खाते में 8 सीटें गई थीं, जबकि उद्धव के धड़े ने 9 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार विधानसभा चुनावों में शिवसेना के तीन धड़े आमने-सामने हैं। शिवसेना उद्धव ठाकरे, शिवसेना शिंदे और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (मनसे)। शिंदे की चुनावी सभाओं में बालासाहेब ठाकरे और प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीरें लगी हुई हैं। धनुष बाण का चुनावी चिह्न चमक रहा है। जबकि उद्धव गुट को जनता के बीच अपनी पार्टी की पहचान बताने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। चुनावी सामग्री में लिखा गया है शिवसेना उद्धव ठाकरे। पार्टी का चुनाव चिह्न मशाल भी खूब प्रचारित किया जा रहा है। जितेंद्र दीक्षित कहते हैं- ‘ये चुनाव असली शिवसेना और नकली शिवसेना का है। चुनावी नतीजों में साफ हो जाएगा कि शिंदे की शिवसेना असली है या उद्धव की शिवसेना।’ वरिष्ठ पत्रकार राजू पारुलेरकर बताते हैं, ‘शिवसेना के चुनावी चिह्न पर अदालत ने अभी तक निर्णय नहीं दिया है। भाजपा चाहती है कि जनता के बीच चुनाव चिह्न को लेकर कन्फ्यूजन रहे।’ अविनाश थोराट कहते हैं कि,’जनता को लगता है कि एकनाथ शिंदे ने पार्टी से गद्दारी की है। बीते दो सालों से शिंदे लगातार लोगों को समझा रहे हैं कि यह गद्दारी नहीं, बगावत थी। शिवसेना अपने मार्ग से भटक गई थी। शिवसेना ने हिंदुत्व का विचार छोड़ दिया था। बालासाहेब ठाकरे के हिंदू राष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए उन्होंने ऐसा किया। महाराष्ट्र के महाकांड सीरीज के अन्य एपिसोड भी पढ़िए... 1-बाबरी विध्वंस का बदला, मुंबई में 12 ब्लास्ट:जानबूझकर चुना था नमाज का वक्त, 257 लोग मारे गए; यहीं से हिंदुत्व ने जोर पकड़ा 12 मार्च 1993, उस रोज शुक्रवार को 12 बम धमाके हुए थे। इसमें 257 लोग मारे गए थे। ये अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने का बदला था। दुबई के एक आलीशान होटल में ISI अधिकारियों और दाऊद की पहली मीटिंग हुई। उसके बाद दाऊद इस काम के लिए राजी हो गया। पूरी खबर पढ़िए...2- दलित महारों के सामने टिक न सकी पेशवा की सेना:कोरेगांव हिंसा के बाद दलित वोट बंटे; BJP नेता बोले- पुराना जख्म मत कुरेदो 2018 से पहले सब कुछ ठीक था। 1 जनवरी 2018 को एल्गार परिषद की तरफ से भीमा कोरेगांव में सभा हुई। एल्गार परिषद एक तरह की सभा है, जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता, पूर्व जज, IPS अधिकारी और कई दलित चिंतक जुड़ते हैं। वे दलितों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ अपनी बात मजबूत करने के संगठित होते हैं। पूरी खबर पढ़िए...
‘1989 की बात है। हम लोग कोलकाता में थे। मेरी उम्र उस वक्त तकरीबन 4 साल रही होगी। घर में दो बहन, मम्मी-पापा सब कुछ ठीक चल रहा था, तभी एक रोज पापा की हार्ट अटैक से मौत हो गई। हमारे दो रेस्टोरेंट थे, एक कोलकाता में और दूसरा बेंगलुरु में। सब बंद हो गया। बहन मुझसे 7 साल बड़ी है। अब घर की स्थिति ऐसी हो गई कि कोई कमाने वाला नहीं। मां घरेलू महिला थीं। उन्होंने कभी जॉब नहीं किया था। मायका दिल्ली में था। हम लोग कोलकाता से दिल्ली शिफ्ट हो गए। घर चलाने के लिए मां एक स्कूल में पढ़ाने लगीं।’ अरोमा थेरेपी नेचुरल प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनी ‘नेतारा’ की को-फाउंडर तारा मल्होत्रा शुरुआती दिनों की ये बातें बता रही हैं। उनके चेहरे पर उदासी के बदले एक गंभीर भाव के साथ मुस्कुराहट है। तारा कहती हैं, ‘ये जो संघर्ष है, वह मां और बहन से सीखा है। यदि 2019 में रिस्क लेकर इस कंपनी की शुरुआत नहीं की होती, तो आज करोड़ों की कंपनी नहीं चला रही होती।’ मैं तारा से मिलने दिल्ली से सटे नोएडा के सेक्टर 57 आया हूं। यह इंडस्ट्रियल एरिया है। तारा के साथ उनके पति अधीर अवस्थी भी हैं। पूछने पर तारा कुछ प्रोडक्ट् दिखाते हुए कहती हैं, ‘नेतारा की शुरुआत तो हमने ब्यूटी प्रोडक्ट्स से की थी, लेकिन आज हम इसके साथ-साथ अरोमा थेरेपी प्रोडक्ट्स भी बना रहे हैं। साबुन, शैंपू, धूप बत्ती, हवन सामग्री, एयर फ्रेशनर, कार फ्रेशनर, होम डेकोर समेत 35 से ज्यादा तरह के प्रोडक्ट्स बना रही हूं।’ तारा मुझे अपना प्रोडक्शन यूनिट दिखा रही हैं। महिलाएं पैकेजिंग का काम कर रही हैं। अलग-अलग फ्रेग्नेंस में धूप कप, प्रोसेस्ड कपूर को पैक किया जा रहा है। इनमें से एक महिला पहले तारा के घर पर मेड का काम करती थीं। आज वह इस कंपनी में सुपरवाइजर हैं। प्रोडक्शन यूनिट में काम करने वाली महिलाओं की टीम लीडर हैं। तारा बताती हैं, ‘मेरे लिए अब तक का सबसे बड़ा अचीवमेंट यही है कि मैंने इन महिलाओं को फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट बनाया है। अब ये स्किल्ड हैं। यदि मेरी मां पढ़ी-लिखी नहीं होतीं तो वह टीचिंग नहीं करतीं, हम आज यहां नहीं होते। आज 25 से ज्यादा लोगों को हम रोजगार दे रहे हैं। एक वक्त था जब मेरी मां जॉब करती थीं। उसी से घर खर्च चलता था। आज भी वह जॉब करती हैं। घर की स्थिति ऐसी थी कि मम्मी हमेशा चाहती थीं कि पढ़-लिखकर कोई अच्छा जॉब करूं। हिस्ट्री से ग्रेजुएशन करने के बाद मार्केटिंग में MBA किया। उस वक्त वोकेशनल कोर्स का ट्रेंड था। ग्रेजुएशन के साथ ही काम करना शुरू कर दिया। 15 साल तक अलग-अलग कॉर्पोरेट हाउस के साथ ब्रांडिंग और मार्केटिंग फील्ड में जॉब किए।’ फिर ये साबुन-शैंपू, अरोमा थेरेपी का बिजनेस कैसे…? मैं तारा से पूछता हूं… वह हंसते हुए कहती हैं, ‘स्कूल में कैंडल बनाने की एक वर्कशॉप हुई। उस वक्त 11वीं में थी। 15 हजार रुपए के कैंडल भी बेचे थे, लेकिन उस वक्त ऐसा लगा नहीं कि कभी ये सब भी करूंगी। मां ने अपनी लाइफ में इतने चैलेंजेज देखे कि उन्हें रिस्क से हमेशा डर लगता था। कॉर्पोरेट लाइफ में हर रोज एक ही बातें, एक ही लाइफ… एक दशक काम करने के बाद यह मेरे लिए उबाऊ हो चुका था। 2019 की बात है। किसी प्रोडक्ट के बनने को लेकर कुछ फॉर्मूलेशन रिलेटेड सर्टिफिकेट कोर्स किया। इसमें साबुन-शैंपू, ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाना सिखाया जाता था। तब लगा कि जिस साबुन-शैंपू का हम इस्तेमाल करते हैं, उसमें पाम ऑयल जैसी हानिकारक चीजें भी मिली रहती हैं। इसलिए घर पर ही खुद से साबुन बनाना शुरू कर दिया।’ अलग-अलग फ्रेग्रेंस में साबुन की टिकिया रखी हुई है। तारा के मुताबिक इसमें कोई भी केमिकल, पाम ऑयल नहीं है। वह कहती हैं, ‘2020 में कोविड की वजह से सब कुछ बंद हो चुका था। लोग मेंटली परेशान थे। इसी दौरान अरोमा थेरेपी सेक्टर में गैप दिखा। मार्केट में जितने भी प्लेयर्स हैं, सभी चार्कोल, पोटेशियम नाइट्रेट, पैराबेन यूज करते हैं। हमने नेचुरल तरीके से धूप बत्ती स्टिक बनानी शुरू की। इसके बाद अलग-अलग फ्रेग्रेंस में एयर फ्रेशनर प्रोडक्ट बनाने शुरू किए। जब सोशल मीडिया के जरिए ऑर्डर आने लगे, तो अपने यहां काम करने वाली मेड को कहा कि वह मेरे साथ काम करे। 2021 में मैंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से कंपनी के साथ जुड़ गई। उससे पहले तक हर रोज ऑफिस जाने से पहले और आने के बाद ऑफिस का काम करती थी।’ तारा के पति अधीर हमारी बातचीत को सुन रहे हैं। अधीर से उनके बारे में पूछता हूं। अधीर एक फोटो दिखाते हुए कहते हैं, ‘कुछ महीने पहले ही कैंसर से रिकवर हुआ हूं।’ कैंसर…? मैं चौंकते हुए पूछता हूं। अधीर कहते हैं, ‘संयोग देखिए कि 2023 में जब कंपनी के ऑर्डर बढ़ रहे थे, तब तारा ने कहा कि मैं भी इसे जॉइन कर लूं। तब तक बैंकिंग सेक्टर में 18 साल से जॉब कर रहा था। कंपनी स्टेबल हो चुकी थी, तो जॉइन करने का मन बना लिया। जिस दिन कंपनी जॉइन की, उसके अगले दिन ही कैंसर डायग्नोस हो गया। स्टेज 3 का हॉजकिन लिंफोमा कैंसर था। उस वक्त हमारे लिए खुद को संभालना मुश्किल था। हमने अपनी टीम में से भी किसी को नहीं बताया। दरअसल, जिम करने के दौरान स्लिप डिस्क हो गई थी। गर्दन में स्वेलिंग हो रही थी। मुझे लगा नॉर्मल होगा। डॉक्टर ने सिम्प्टम्स देखकर टेस्ट कराने की सलाह दी। जब रिपोर्ट आई तब सब कुछ बदल गया।’ अधीर आर्मी फैमिली से आते हैं। बताते हैं, ‘2000 के आसपास आर्मी की सैलरी भी बहुत कम थी। 12वीं से ही जॉब करनी शुरू कर दी थी। सबसे पहले कोटक महिंद्रा बैंक में काम किया। अरोमा थेरेपी ब्यूटी सेग्मेंट में जब तारा ने बिजनेस प्लान किया, तो उसे फाइनेंशियली गाइड किया। हमारे पास इतने पैसे नहीं थे कि लाखों में इन्वेस्ट कर सकें। मार्केट में प्रोडक्ट की क्या डिमांड हो सकती है, कुछ कहा नहीं जा सकता। याद है- तारा ने 10 हजार रुपए से ही इसकी शुरुआत की थी। पहले साल 3 लाख के करीब बिजनेस हुआ था। धीरे-धीरे प्रोडक्ट के रेंज बढ़ते गए, तो हमारी ग्रोथ भी बढ़ने लगी। हम B 2 C यानी बिजनेस टू कंज्यूमर में सबसे ज्यादा बिजनेस कर रहे हैं। अब हमने B 2 B यानी बिजनेस टू बिजनेस में डील करना शुरू किया है।’ तारा कहती हैं, ‘हमने सोशल मीडिया के जरिए ही प्रोडक्ट को बेचना शुरू किया था। फिर कुछ सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स को ऑनबोर्ड किया। अब तो हम सभी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं। पहले दिन के दो-चार ऑर्डर आते थे। आज हम महीने के ढाई से तीन हजार ऑर्डर डिलिवर कर रहे हैं। कई बार तो ऐसा हुआ है कि कॉर्पोरेट हाउस 2 रुपए, 3 रुपए के अंतर की वजह से डील कैंसिल कर देते हैं। उन्हें बताना पड़ता है कि मार्केट में जो प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं, वह न हमारी सेहत के लिए अच्छा है और न वातावरण के लिए। अब आप ही बताइए, हम अगरबत्ती में बैंबू यानी बांस का इस्तेमाल कर रहे हैं। चारकोल का इस्तेमाल कर रहे हैं। आर्टिफिशियल कपूर जला रहे हैं। हालांकि कुछ ऐसे क्लाइंट्स हैं, जो हमसे ही प्रोडक्ट्स खरीदते हैं। लास्ट ईयर हमारा सालाना टर्नओवर 3 करोड़ के करीब था। इस साल हमारा प्रोजेक्शन टर्नओवर 8 करोड़ का है। यदि 2019 में रिस्क नहीं लिया होता, तो आज भी जॉब ही कर रही होती।’ ***** इस सीरीज की अन्य खबरें भी पढ़िए... 1.एक्सीडेंट हुआ तो याददाश्त चली गई:हिचकी की वजह से लोग बुली करते थे; आज 30 लाख की चॉकलेट कंपनी का मालिक 2009 की बात है। 12वीं का एग्जाम दे चुका था। एक-दो महीने बाद रिजल्ट आने वाला था, इससे पहले ही एक ऐसी घटना घटी, जिसने मेरी पूरी जिंदगी बदल दी। एक रोज मैं मोटर साइकिल से शहर जा रहा था। जितना याद है कि अकेला ही था। पूरी खबर पढ़िए... 2. पापा की किराना शॉप, बेटे की AI कंपनी:टर्नओवर 25 करोड़; घर बेचकर कॉलेज फीस भरी, कंपनी बेचने तक की भी नौबत आई दिल्ली से सटे गुरुग्राम का सेक्टर 48 इलाका। यहां एक कंपनी है- टैगलैब्स। मैं इसके फाउंडर हरिओम सेठ से मिलने आया हूं। दिवाली के अगले दिन की बात है। छुट्टी की वजह से ऑफिस में बहुत कम कर्मचारी हैं, जो अलग-अलग सिस्टम पर काम कर रहे हैं। पूरी खबर पढ़िए...
‘BJP के लोग झारखंड में हिंदू-मुसलमान कर रहे हैं। अगड़ा-पिछड़ा कर रहे हैं। ये लोगों को गुमराह करने लगते हैं। इसलिए वोट डालने जाएं, तो हमेशा सोचिएगा कि आपके चेहरों पर खुशियों की वजह कौन है। आपको एक ही नाम याद आएगा ..हेमंत सोरेन...हेमंत सोरेन...हेमंत सोरेन।’ हजारों लोगों की भीड़ के सामने उंगली उठाकर कल्पना सोरेन ये बात कहती हैं, तो पूरी सभा 'झारखंड मुक्ति मोर्चा जिंदाबाद' के नारे लगाने लगती है। एक साल पहले कल्पना की पहचान CM हेमंत सोरेन की पत्नी की थी। आज वे अपनी पार्टी JMM की स्टार प्रचारक हैं। विधानसभा चुनाव की रैलियों में सबसे ज्यादा भीड़ उनकी सभा में ही जुटती है। 81 सीटों वाले झारखंड में 20 नवंबर को दूसरे फेज की वोटिंग होनी है। इस फेज में गांडेय सबसे चर्चित सीट है। यहां से कल्पना सोरेन चुनाव लड़ रही हैं। BJP ने उनके खिलाफ गिरिडीह जिला परिषद की अध्यक्ष मुनिया देवी को उतारा है। मुनिया देवी गांडेय की लोकल लीडर हैं, वहीं कल्पना 5 महीने पहले उपचुनाव जीतकर इस सीट से विधायक बनी थीं। दोनों के बीच चुनावी जंग को लोकल Vs आउटसाइडर की लड़ाई माना जा रहा है। लोग कल्पना को हेलिकॉप्टर वाली कैंडिडेट कह रहे हैं। कल्पना सोरेन के लिए गांडेय से दोबारा जीतना कितनी बड़ी चुनौती है, वोटर उनके बारे में क्या सोचते हैं, क्या मुनिया देवी उन्हें मात दे सकती हैं, ये जानने दैनिक भास्कर गांडेय पहुंचा। आदिवासी और मुस्लिम वोटर JMM की ताकत गांडेय सीट JMM का गढ़ रही है। यहां से उसे 6 बार जीत मिली है। JMM का कोर वोट बैंक आदिवासी हैं, जो करीब 20% हैं। 26% मुस्लिम वोटर्स का झुकाव भी उसी की तरफ है। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद JMM ने गांडेय सीट पर 2 बार विधानसभा चुनाव और एक बार उपचुनाव जीता है। BJP सिर्फ एक बार 2014 में जीती थी। इस सीट से सबसे ज्यादा 4 बार JMM नेता सालखन सोरेन विधायक रहे हैं। सालखन सोरेन के निधन के बाद पार्टी ने कांग्रेस से आए सरफराज अहमद को उम्मीदवार बनाया और 2019 के चुनाव में वे गांडेय से विधायक बन गए। सरफराज को राज्यसभा भेजे जाने के बाद जून 2024 में उपचुनाव हुए। कल्पना सोरेन BJP के दिलीप कुमार वर्मा को 27,149 वोटों से हराकर पहली बार विधायक बनीं। गांडेय से JMM के अजेय रहने की वजह... BJP ने मुनिया देवी को उतारकर लोकल Vs बाहरी का मुद्दा उठाया BJP ने इस बार जयप्रकाश वर्मा की जगह OBC समुदाय से आने वाली मुनिया देवी को मैदान में उतारा है। गांडेय मुनिया देवी का मायका है। लोग उन्हें गांडेय की बेटी मानते हैं। 2023 में BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक जनसभा के दौरान उन्हें पार्टी में शामिल किया था। गांडेय से मुनिया को उतारने का फैसला BJP की रणनीति का हिस्सा है। जेपी वर्मा के पार्टी छोड़ने के बाद, BJP को गांडेय में मजबूत कुशवाहा नेता की तलाश थी। मुनिया देवी को कल्पना सोरेन के खिलाफ चुनाव लड़ाकर लोकल Vs बाहरी का समीकरण बनाया जा रहा है। गांडेय जीतने के लिए BJP इसलिए जोर लगा रही ‘गांडेय जीत लो, कहीं मेहनत करने की जरूरत नहीं’गांडेय सीट BJP के लिए कितनी जरूरी है, इसकी बानगी 14 नवंबर को दिखी। गृहमंत्री अमित शाह ने यहां रैली की थी। 25 मिनट के भाषण में अमित शाह ने कहा, ‘दूसरे चरण में कहीं मेहनत करने की जरूरत नहीं है।' 'मुनिया दीदी को जिता दो, अपने आप सारा कैडर फुस्स हो जाएगा। समझ में आ रही है बात, मुनिया देवी जीतेगी तो कौन हारेगा, बोलो कौन हारेगा… इसलिए गांडेय सीट पर किला ठोंक दो। सरकार अपने आप बदल जाएगी।’ गृहमंत्री के इस बयान पर JMM ने भी तीखा जवाब दिया। गांडेय सीट से पूर्व विधायक और राज्यसभा सांसद डॉ. सरफराज अहमद ने कहा, ‘किसका किला बचेगा या ढहेगा, यह वक्त बताएगा। अमित शाह मजाक की बात करते हैं। इनके प्रचार को देश क्या दुनिया के लोग देख रहे हैं। 20 नवंबर को वोटिंग के बाद इनकी स्थिति और भी खराब हो जाएगी।' एक्सपर्ट बोले- पहला विधानसभा चुनाव लड़ रहीं कल्पना, मुनिया पर भारीसीनियर जर्नलिस्ट परवेज आलम बताते हैं, ’कल्पना सोरेन ओडिशा की जिस जाति से आती हैं, वो झारखंड में रिजर्व सीट से चुनाव लड़ने के योग्य नहीं है। लिहाजा JMM ने काफी सोच-विचार कर कल्पना के लिए गांडेय सीट को चुना।’ जनरल सीट होने के बावजूद आदिवासी-मुस्लिम गांडेय में बड़ा फैक्टर गिरिडीह कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट के HOD बालेंदु शेखर त्रिपाठी ने बताते हैं, ‘झारखंड आंदोलन में गांडेय ने अहम भूमिका निभाई है। जनरल सीट होने के बाद भी गांडेय में आदिवासी और मुस्लिम वोटर्स की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है। यही कारण है कि यहां से सालखन सोरेन और डॉ. सरफराज अहमद जैसे लीडर चुनाव जीतते रहे हैं।’ ‘गांडेय में लोकल मुद्दे जब-जब हावी हुए हैं, वोटिंग पैटर्न प्रभावित हुआ है। धार्मिक और सामाजिक समीकरण के साथ-साथ स्थानीय मुद्दों पर जनरल वोटर्स यहां डिसाइडिंग फैक्टर रहे हैं। जातीय समीकरण के अलावा एजुकेशन और डेवलपमेंट यहां का बड़ा मुद्दा है।’ कल्पना की बेबाकी और भाषण देने का स्टाइल उनकी खासियतविधानसभा चुनाव में कल्पना सोरेन ने JMM के लिए अब तक 70 से ज्यादा रैलियां की हैं। वे बहुत तेजी से पॉपुलर हुई हैं। सीनियर जर्नलिस्ट आनंद कुमार कहते हैं, ‘हेमंत के जेल में रहते हुए JMM को कल्पना सोरेन जैसी बड़ी लीडर मिली हैं।’ पॉलिटिकल पार्टियां क्या कह रही हैं BJP: मुनिया देवी बोलीं- गांडेय में लोग JMM से ऊबेBJP कैंडिडेट मुनिया देवी कहती हैं, ‘गांडेय में JMM 3 बार से चुनाव जीत रही है, लेकिन यहां कुछ काम नहीं हुआ। मैं गांडेय की बेटी हूं। सबने तय कर लिया है कि बाहरी नेता उनकी समस्या दूर नहीं कर सकती, लोकल लीडर ही हमारी बात सुनेगी।’ JMM: गांडेय में 30 हजार के मार्जिन से जीतेंगी कल्पना सोरेन JMM के जिला उपाध्यक्ष शाहनवाज अंसारी दावा करते हैं कि इस बार गांडेय से कल्पना सोरेन 30 हजार वोट से जीतेंगी। अभी गांडेय में विधायक के साथ राज्य में हमारी सरकार है। इससे यहां विकास तेजी से हो रहा है।’ क्या लोकल Vs बाहरी का मुद्दा गांडेय में हावी है? शाहनवाज जवाब देते हैं, ऐसा कोई मुद्दा नहीं है। कल्पना BJP के कैंडिडेट को हराकर ही विधायक बनी थीं। वे इस बार फिर से चुनाव जीतेंगी। ‘जून में उपचुनाव जीतने के बाद चार महीने के अंदर कल्पना सोरेन ने 300 करोड़ की योजनाओं की शुरुआत की। इन्फ्रास्ट्रक्चर, पुल, कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने के लिए कई योजनाएं ला चुकी हैं। यहां की जनता उनके काम से खुश है। इसलिए उनकी जीत तय है।’ आखिर में आम लोगों की बात… कल्पना का 5 महीने का काम, पिछले 20 साल पर भारी गांडेय के भैरव प्रसाद वर्मा कल्पना सोरेन के काम से खुश हैं। वे कहते हैं, ‘उपचुनाव जीतने के बाद 5 महीने में कल्पना सोरेन ने काफी काम किया। 20 साल में जो काम नहीं हुआ था, वो उन्होंने करके दिखाया है। यहां रोड, पुल, स्टेडियम, महिला कॉलेज का शिलान्यास जैसे काम की शुरुआत उन्होंने विधायक बनने के बाद की है।’ वहीं, गांडेय मार्केट में ज्वेलरी शॉप चलाने वाले रंजीत स्वर्णकार कहते हैं, ‘यहां BJP का माहौल है। आज तक BJP ने लोकल कैंडिडेट नहीं उतारा था। पहली बार ऐसा हुआ है कि गांडेय की बेटी को कैंडिडेट बनाया गया है। इसका असर देखने को मिल रहा है।’ भूमिहार समुदाय से आने वाले किसान राजकिशोर राय कहते हैं, ’गांडेय में इस बार भूमिहार BJP और मुनिया देवी के साथ है। किसानों के साथ हेमंत सरकार ने अन्याय किया है। उनका धान नहीं खरीदा गया। रघुवर सरकार में किसानों को नकद प्रोत्साहन राशि देने की शुरुआत की गई थी। JMM सरकार ने इसे बंद कर दिया।’ गांडेय बाजार में होटल के पास मिले डोमन पाठक बताते हैं, ‘कल्पना सोरेन के विधायक बनने के बाद यहां विकास हुआ है। दोनों कैंडिडेट में से कोई लोकल नहीं है। मुनिया देवी भी गांडेय की रहने वाली नहीं हैं। इसलिए यहां लोकल और बाहरी की लड़ाई में कोई दम नहीं है।’ ................................. झारखंड विधानसभा चुनाव में क्या है हवा का रुख, पढ़िए ये खबरें...फेज 1:झारखंड में खेला कर सकती है BJP, पहले फेज में 14-21 सीटें मिलने के आसार झारखंड में 81 सीटों पर दो फेज में वोटिंग होनी है। पहले फेज में 13 नवंबर को 43 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है। इसमें NDA 16 से 24 सीटों पर मजबूत नजर आ रहा है। BJP 14 से 21, JDU 0-1, आजसू 0-1, LJP (रामविलास) 0-1 सीटें जीत सकती है। वहीं INDIA ब्लॉक 14 से 19 सीटों पर मजबूत है। इसमें JMM 11-15, कांग्रेस 0-4 और RJD 0-1 सीटें जीत सकती है। पढ़िए पूरी खबर... फेज 2: 38 सीटों में से BJP 8-13, JMM 10-15 पर मजबूत, कांग्रेस को नुकसान झारखंड विधानसभा चुनाव के दूसरे फेज की 38 पर 20 नवंबर को वोटिंग होगी। 18-18 सीटों वाले संथाल परगना और उत्तरी छोटानागपुर में BJP 8-13 सीटें जीत सकती है। दक्षिणी छोटानागपुर की दोनों सीटों पर पार्टी मजबूत है। हेमंत सोरेन की पार्टी JMM 10-15 पर मजबूत है। कांग्रेस को 2019 के मुकाबले 5 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है। पढ़िए पूरी खबर...
‘ये तो साफ है कि महाराष्ट्र में किसी को बहुमत मिलने की उम्मीद नहीं है। इस बार छोटी पार्टियां और इंडिपेंडेंट कैंडिडेट 25 सीटें जीत सकते हैं, यानी सरकार यही बनवाएंगे।’ पॉलिटिकल एक्सपर्ट संदीप सोनवलकर का अनुमान सही बैठा तो महाराष्ट्र में एक बार फिर तोड़फोड की राजनीति शुरू हो सकती है। राज्य में 20 नवंबर को सभी 288 सीटों पर वोटिंग होनी है। इससे पहले हवा का रुख समझने के लिए दैनिक भास्कर ने आम लोगों, एक्सपर्ट्स और पॉलिटिकल पार्टियों से बात की। 5 पॉइंट्स में समझिए महाराष्ट्र के रुझान और सियासी समीकरण… 1. 148 सीटों पर चुनाव लड़ रही BJP 80 से 90 सीटों पर मजबूत दिख रही है। 2019 में उसे 105 सीटें मिली थीं। सहयोगी पार्टी शिवसेना (शिंदे गुट) 30-35 और NCP (अजित गुट) 15-20 सीटें जीत सकती हैं। इस लिहाज से महायुति को 125 से 145 सीटें मिल सकती हैं। बहुमत के लिए 145 सीटों की जरूरत है। 2. महाविकास अघाड़ी में कांग्रेस सबसे मजबूत दिख रही है। उसे 52-65 सीटें मिल सकती हैं। शरद पवार की पार्टी NCP (SP) 50-55 सीटों पर मजबूत है। सबसे कमजोर स्थिति में शिवसेना (उद्धव गुट) है। उसे 30-35 सीटें मिल सकती हैं। महाविकास अघाड़ी को 132 से 155 सीटें मिलने के आसार हैं। 3. महाराष्ट्र में छोटी पार्टियां और इंडिपेंडेंट कैंडिडेंट 20-25 सीटें जीत सकते हैं। अगर दोनों अलायंस बहुमत से दूर रह गए, तो सरकार बनाने में इनकी भूमिका सबसे अहम होगी। 4. लाडकी बहन योजना से महायुति को फायदा मिल सकता है। इसी योजना की वजह से मध्यप्रदेश में BJP को जीत मिली थी। हालांकि मराठा आरक्षण, मराठा Vs OBC, महंगाई, फसलों के कम रेट मिलना शिंदे सरकार को नुकसान पहुंचा सकते हैं। 5. ‘कटेंगे तो बटेंगे’ नारे की वजह से मुस्लिम वोटों में धुव्रीकरण हो सकता है, जिसका फायदा महाविकास अघाड़ी को मिलेगा। हर रीजन में कैसी है पार्टियां की स्थितिपूरा महाराष्ट्र 6 रीजन विदर्भ, मराठवाड़ा, पश्चिम महाराष्ट्र, उत्तरी महाराष्ट्र, कोंकण और मुंबई में बंटा है। सबसे ज्यादा सीटें 70 सीटें पश्चिम महाराष्ट्र में हैं। सबसे कम 35 सीटें उत्तरी महाराष्ट्र में है। विदर्भ: कांग्रेस का गढ़ रहा, वही सबसे मजबूत क्षेत्रफल के लिहाज से विदर्भ महाराष्ट्र का सबसे बड़ा रीजन है। यहां की 62 में से 36 सीटों पर BJP और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई है। नागपुर विदर्भ का सबसे बड़ा शहर है। यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हेडक्वाटर भी है। डिप्टी CM देवेंद्र फडणवीस नागपुर से ही चुनाव लड़ रहे हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी यहीं से हैं। विदर्भ में RSS का कैडर एक्टिव रहा, लेकिन यहां कांग्रेस ज्यादा मजबूत दिखती है। 2019 के विधानसभा चुनाव में BJP ने विदर्भ में सबसे ज्यादा 29 सीटें जीती थीं। हालांकि, लोकसभा चुनाव 2024 के आंकड़ों के हिसाब से कांग्रेस को 30 और BJP को 15 सीटों पर बढ़त है। पश्चिम महाराष्ट्र : शरद पवार सबसे बड़ा फैक्टर पुणे के आसपास फैला पश्चिम महाराष्ट्र शरद पवार की पार्टी NCP का गढ़ रहा है। अब NCP दो धड़ों में बंट चुकी है। इस वजह से पश्चिम महाराष्ट्र की 70 में से ज्यादातर सीटों पर शरद पवार और अजित पवार की NCP के बीच लड़ाई है। इलाके में मराठा आरक्षण आंदोलन का असर भी दिखेगा क्योंकि मराठाओं की बड़ी आबादी यहां रहती है। आंदोलन चलाने वाले मनोज जरांगे पाटिल ने चुनाव से पहले अपने कैंडिडेट्स के नॉमिनेशन वापस ले लिए थे, इसका फायदा शरद पवार और महाविकास अघाड़ी को हो सकता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मराठाओं पर पकड़ और इमोशनल अटैचमेंट की वजह से पश्चिम महाराष्ट्र में शरद पवार सबसे बड़ा फैक्टर हैं। BJP यहां तीसरे नंबर की पार्टी बन सकती है। उत्तर महाराष्ट्र: BJP और कांग्रेस में मुकाबला उत्तरी महाराष्ट्र नासिक, धुले, नंदुरबार और जलगांव जिलों से मिलकर बना है। ये इलाका कभी कांग्रेस का गढ़ था, लेकिन BJP और शिवसेना यहां पकड़ बनाने में कामयाब रहीं। 2019 के विधानसभा चुनाव में BJP ने उत्तर महाराष्ट्र की 35 सीटें में से 20 सीटें जीती थीं। शिवसेना को 6, कांग्रेस को 5 और NCP को 4 सीटें मिली थीं। यहां कांग्रेस, NCP (SP) और शिवसेना (शिंदे गुट), BJP के बीच मुकाबला है। यहां OBC वोटर ज्यादा हैं, जो BJP की तरफ झुकाव रखता है। BJP के गोपीनाथ मुंडे बड़े OBC लीडर थे। उनके निधन के बाद बेटी पंकजा मुंडे राजनीति में आईं। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में वे हार गईं। माना गया कि OBC वोटर BJP से दूर हो रहा है। इसके उलट आदिवासी इलाके में कांग्रेस को फायदा मिलता दिख रहा है। मराठवाड़ा: मराठा आंदोलन का सेंटर, मराठा Vs OBC का सबसे ज्यादा असर 2 साल से मराठा आरक्षण आंदोलन का सेंटर बने मराठवाड़ा में जाति सबसे बड़ा फैक्टर है। मराठवाड़ा की लड़ाई NCP (SP), NCP (अजित पवार), BJP और कांग्रेस के बीच है। मराठा Vs OBC का मुद्दा वोटिंग पैटर्न को प्रभावित कर सकता है। मराठा शरद पवार और कांग्रेस की तरफ जा सकते हैं। अगर BJP ने OBC वोट अपने पाले में करने के साथ मराठा वोट काटे, तो बाजी पलट सकती है। ठाणे-कोंकण: CM एकनाथ शिंदे का गढ़, यहीं से उनका भविष्य तय होगा मुंबई से सटे ठाणे-कोंकण में शिवसेना (शिंदे गुट) और शिवसेना (उद्धव गुट) के बीच मुकाबला है। ठाणे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का गढ़ है, तो कोंकण का पूरा इलाका, रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग, रायगढ़ में पुरानी शिवसेना का दबदबा रहा है। लोकसभा चुनाव में 39 सीटों में से 23 पर महायुति और 11 सीटों पर महाविकास अघाड़ी आगे रहा। इस इलाके में जीत से दोनों शिवसेना का भविष्य भी तय हो सकता है। मुंबई: दोनों शिवसेना के बीच मुकाबला मुंबई की 36 सीटों के चुनावी नतीजे बताएंगे कि शिवसेना का असली वारिस कौन है। वोट की ताकत एकनाथ शिंदे के पास है या फिर उद्धव ठाकरे के पास। यहां राज ठाकरे की पार्टी मनसे भी मैदान में है। ये पार्टी एक तरह से शिवसेना (उद्धव) के वोट ही काटेगी। लोकसभा चुनाव में 36 में से 20 सीटों पर महाविकास अघाड़ी आगे रहा था। महायुति को 16 सीटों पर बढ़त थी। वोटर्स के लिए महंगाई बड़ा मुद्दा, लाडकी बहन का मिला-जुला असरमहाराष्ट्र के मराठवाड़ा में किसान नाराज हैं। खेती के लिए पानी की परेशानी तो थी, अब फसल के सही भाव नहीं मिल रहे। सोयाबीन की कटाई के बाद अगली फसल की तैयारी कर रहे किसान बाला साहेब कहते हैं, ‘जिस भाव पर सोयाबीन खरीदकर बुआई की थी, उतना भी रेट नहीं मिल रहा है। सोयाबीन की MSP 4,892 रुपए है, लेकिन मंडी में भाव 3100 से 3600 रुपए चल रहा हैं।’ वहीं, नागपुर की रहने वालीं मीनाक्षी वानखेड़े शिंदे सरकार की लाडकी बहना स्कीम से नाराज हैं। वे कहती हैं, ‘सरकार हर महीने 1500 रुपए दे रही है। हमें ये पैसा नहीं चाहिए। आपको सुधार करना है तो स्कूल-हॉस्पिटल ठीक करो। सिलेंडर महंगा हो गया, महंगाई बढ़ रही है।’ संजय कुमार चौरसिया मुंबई के सीएसटी स्टेशन के पास पान की दुकान लगाते हैं। बरसों पहले उत्तर प्रदेश से मुंबई आए थे, अब भिंडी बाजार विधानसभा क्षेत्र के वोटर हैं। संजय एक कमरा किराए पर लेकर चार लोगों के साथ रहते हैं। वे कहते हैं कि खाने-रहने लायक कमाई हो रही है, लेकिन महंगाई इतनी है कि कमाई कम पड़ जाती है।' एक्सपर्ट बोले- किसान सरकार से नाराज, महाविकास अघाड़ी को मिलेगा फायदासीनियर जर्नलिस्ट संदीप सोवनलकर कहते हैं, ‘सोयाबीन के कम रेट चुनावी मुद्दा बन गया है। इसका फायदा विपक्षी गठबंधन को मिल सकता है। 2 साल से तेज हुए मराठा आरक्षण आंदोलन ने महाराष्ट्र के बड़े हिस्से को प्रभावित किया। ये मुद्दा सिर्फ मराठाओं का नहीं रहा, इसमें OBC भी शामिल हो गए हैं।' 'OBC और मराठा राज्य की करीब दो तिहाई आबादी हैं। NCP-कांग्रेस की कोशिश है कि मराठा आंदोलन के गुस्से का इस्तेमाल अपने पक्ष में करें, वहीं BJP डैमेज कंट्रोल की बजाए OBC को एकजुट करने की कोशिश कर रही है।’ कटेंगे तो बंटेंगे से धार्मिक ध्रुवीकरणपॉलिटिकल एनाालिस्ट प्रो. जयदेव डोले कहते हैं ‘चुनाव पर जाति का फैक्टर हावी दिख रहा था। BJP ने चुनावी रणनीति में बदलाव करके कटेंगे तो बंटेंगे जैसे नारे के जरिए हिंदुओं को एकजुट करने और जाति के समीकरण तोड़ने की कोशिश की है।’ एक्सपर्ट कहते हैं कि RSS की मशीनरी की मदद से BJP जातिगत ध्रुवीकरण खत्म करना चाहती है, लेकिन इसकी वजह से धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ रहा है। कटेंगे तो बटेंगे पर महायुति में शामिल अजित पवार और BJP नेता पंकजा मुंडे ने भी असहमति जताई है। महाराष्ट्र में करीब 12% मुस्लिम आबादी है। एक्सपर्ट मान रहे हैं कि मुस्लिम वोटर महाविकास अघाड़ी के साथ जा सकते हैं। इसकी वजह शरद पवार और कांग्रेस की सेक्युलर इमेज है। संविधान और आरक्षण अब भी दलितों के बीच मुद्दामहाराष्ट्र में करीब 14% आबादी दलितों की है। सीनियर जर्नलिस्ट संदीप सोनवलकर कहते हैं, ‘एक तरफ मराठा बनाम OBC चल रहा है, दूसरी तरफ संविधान बचाओ और दलितों की नाराजगी का मुद्दा है। महाराष्ट्र में करीब 10% आदिवासी समुदाय है। धनगर समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के आदिवासी समुदाय BJP से नाराज है। इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा। आम मराठी मानुष तोड़फोड़ की राजनीति से भी आहतकवरेज के दौरान ऐसे लोग मिले, जो दलबदलुओं से नाराज हैं। वे कहते हैं कि जिस नेता को वोट दिया, उसने पार्टी बदल ली या दूसरे गठबंधन में शामिल हो गया। इसलिए वोट देने का कोई फायदा नहीं है। महाराष्ट्र में लंबे समय से रिपोर्टिंग करने वाले सुनील सोनवलकर कहते हैं कि आम मराठी मानुष 5 साल में हुई तोड़फोड़ की राजनीति से आहत है। मनसे प्रमुख राज ठाकरे तोड़फोड़ की राजनीति को मुद्दा बना रहे हैं। महाविकास अघाड़ी का माहौल, महायुति का मैनेजमेंट मजबूतसुनील सोनवलकर कहते हैं, ‘महाराष्ट्र चुनाव इतना फंसा हुआ है कि वोटर, नेता, चुनाव विश्लेषक सब उलझे हुए हैं। 288 सीटों पर करीब 8 हजार उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। एक सीट पर करीब 40 उम्मीदवार हैं। ज्यादा कैंडिडेट के होने की वजह से वोट बंटना तय है।’ ‘अब तक महाविकास अघाड़ी के लिए अच्छा माहौल है, लेकिन महायुति मैनेजमेंट के दम पर चुनाव लड़ना जानती है। इस वक्त महायुति आगे दिख रही है। महायुति में BJP की कोशिश 105 सीटें जीतने की है। पार्टी 78 से 90 सीटें जीत सकती हैं। एकनाथ शिंदे की शिवसेना 30-35 सीटें जीत सकती है। महायुति की कमजोर कड़ी अजित पवार की NCP है। उसके लिए 15-20 सीटें जीतना भी मुश्किल हो सकता है।’ सुनील सोनवलकर आगे कहते हैं, ‘दूसरी तरफ महाविकास अघाड़ी में शिवसेना (उद्धव) कमजोर है। लोकसभा चुनाव के बाद उद्धव ठाकरे को कैंडिडेट सिलेक्शन में जैसी मदद करनी थी, वैसी उन्होंने नहीं की। उद्धव को 30-35 सीटें मिल सकती हैं। शरद पवार की पार्टी 50 सीट जीत सकती है। ऐसा हुआ तो महाराष्ट्र की राजनीति बदल जाएगी।’ ‘BJP 60 हजार से ज्यादा छोटी-बड़ी रैलियां कर चुकी है। पार्टी दो रणनीतियों पर काम कर रही है- पहला, कोर वोटर को पोलिंग बूथ तक लाना और दूसरा- विरोधी पार्टी के वोटों को बांटना।’ पॉलिटिकल पार्टियों क्या कह रहीं BJP: 110 से 115 सीटें जीतेंगे, CM का फैसला विधायक करेंगेपार्टी प्रवक्ता चंदन गोस्वामी कहते हैं, ‘महाराष्ट्र में डेवलपमेंट सबसे बड़ा मुद्दा है। हमारा चेहरा PM मोदी हैं। एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार हमारे लीडर हैं।' शिवसेना (शिंदे गुट): 185 से ज्यादा सीटें जीतेगा महायुुतिप्रवक्ता और मुंबादेवी सीट से चुनाव लड़ रहीं शाइना एनसी कहती हैं, ‘महाराष्ट्र में हमारी सरकार ने ढाई साल में इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम किया है। महिलाओं के लिए लाडकी बहना योजना लाए हैं।' NCP (अजित पवार गुट): महायुति का आंकड़ा 160 तक जाएगाप्रवक्ता संजय तटकरे कहते हैं, ‘हम विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे हैं। शरद पवार की पार्टी से चुनौती मिल रही है, ऐसा नहीं है। मराठा आरक्षण राजनीतिक मुद्दा नहीं है। मनोज जरांगे पाटिल जो कर रहे थे, हम उसे आंदोलन की तरह देखते हैं। हम उनकी मांग का समर्थन करते हैं, बस हमारी मांग है कि आरक्षण OBC के हिस्से से नहीं दिया जाना चाहिए।' कांग्रेस: महाविकास अघाड़ी को 170 सीटें मिलेंगीपार्टी प्रवक्ता अतुल लोंढे कहते हैं, ‘मराठा और OBC का मुद्दा बहुत बड़ा है। BJP ने दोनों समुदायों को नाराज किया है। धनगरों को आरक्षण का वादा भी अधूरा रह गया। पेपर लीक, एग्जाम न होना, बेरोजगारी के कारण हैं। एक बड़ा मुद्दा महाराष्ट्र के प्रोजेक्ट बाहर ले जाने का भी है।' NCP (SP) : सीट का पता नहीं, सरकार बनाएंगे ये तय हैपार्टी के प्रवक्ता क्लाइड क्रैस्टो कहते हैं ‘महाराष्ट्र में सबसे बड़े मुद्दे महंगाई, बेरोजगारी और किसान हैं। हम इन्हें लोगों तक लेकर जा रहे हैं। BJP इन मुद्दों को हाथ नहीं लगाती। वे हिंदू मुस्लिम और वोट जिहाद जैसे मुद्दे उछाल रहे हैं।’ शिवसेना (उद्धव): महाविकास अघाड़ी को 155-160 सीटें मिलेंगीप्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी कहती हैं कि महाराष्ट्र में कानून व्यवस्था सबसे बड़ा मुद्दा है। सलमान खान को धमकी से लेकर बाबा सिद्दीकी की हत्या तक हमने सब मुंबई में देखा है। महाराष्ट्र की इंडस्ट्री को बाहर ले जाने का मुद्दा बड़ा है। दूसरी तरफ BJP बंटवारे के लिए ‘एक हैं, तो सेफ हैं’ और ‘बटेंगे तो कटेंगे’ जैसी बातें कर रही है। ................................. महाराष्ट्र के अलावा झारखंड में भी चुनाव हैं, पढ़िए वहां क्या है हवा का रुख...फेज 1:झारखंड में खेला कर सकती है BJP, पहले फेज में 14-21 सीटें मिलने के आसार झारखंड में 81 सीटों पर दो फेज में वोटिंग होनी है। पहले फेज में 13 नवंबर को 43 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है। इसमें NDA 16 से 24 सीटों पर मजबूत नजर आ रहा है। BJP 14 से 21, JDU 0-1, आजसू 0-1, LJP (रामविलास) 0-1 सीटें जीत सकती है। वहीं INDIA ब्लॉक 14 से 19 सीटों पर मजबूत है। इसमें JMM 11-15, कांग्रेस 0-4 और RJD 0-1 सीटें जीत सकती है। पढ़िए पूरी खबर... फेज 2: 38 सीटों में से BJP 8-13, JMM 10-15 पर मजबूत, कांग्रेस को नुकसान झारखंड विधानसभा चुनाव के दूसरे फेज की 38 पर 20 नवंबर को वोटिंग होगी। 18-18 सीटों वाले संथाल परगना और उत्तरी छोटानागपुर में BJP 8-13 सीटें जीत सकती है। दक्षिणी छोटानागपुर की दोनों सीटों पर पार्टी मजबूत है। हेमंत सोरेन की पार्टी JMM 10-15 पर मजबूत है। कांग्रेस को 2019 के मुकाबले 5 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है। पढ़िए पूरी खबर...
टाइटैनिक हादसे में 700 लोगों को बचाने वाले कप्तान को दी गई थी सोने की घड़ी, अब नीलामी हुई तो..
Golden Watch: इस नीलामी ने टाइटैनिक की त्रासदी से जुड़ी यादों को ताज़ा कर दिया है और उन बहादुर लोगों की कहानियों को एक बार फिर से जीवित किया है जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों को बचाने की कोशिश की थी.
रूस ने यूक्रेन पर दागे 120 मिसाइल और 90 ड्रोन, जेलेंस्की बोले- पावर प्लांट तबाह करना चाहता है मॉस्को
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आयतुल्लाह खामेनेई ने चोर दरवाजे से चुना ईरान का नया सुप्रीम लीडर, जानिए कौन हैं मोजतबा खामेनेई?
Iran Supreme Leader: ईरान के सुप्रीम लीडर को लेकर दावा किया जा रहा है कि आयतुल्लाह खामेनेई ने अपना उत्तराधिकारी चुन लिया है. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है किकथित तौर पर खामेनेई और उनके प्रतिनिधियों के सख्त दबाव के बाद मोजतबा के उत्तराधिकार पर सर्वसम्मति से सहमति जाहिर की है.
दुनिया वालों इजरायल से बचा लो ..., गाजा बना कब्रिस्तान, शहर में हुआ हमला तो चिल्लाया फिलिस्तीन
Isreal attack on Palestine: इजराइल अपनी कसम पूरी करने के लिए गाजा में पहले कहर बरपाया, इसके बाद पड़ोसी लेबनान के हिजबुल्लाह की कमर तोड़ रहा है. इसी बीच इजरायल ने फिलिस्तीन में हमला किया तो चिल्लाने लगा. जानें पूरा मामला.
ब्राजील की फर्स्ट लेडी ने खुलेआम दी गाली तो एलन मस्क ने भी दिया जवाब, वीडियो हो गया वायरल
Elon Musk: ब्राजील की फर्स्ट लेडीजन्जा लूला दा सिल्वा ने सरे आम एलन मस्क को गाली दे दी, जिसका वीडियो तेजी के साथ वायरल हो रहा है, साथ ही लोग तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं. ऐसे में एलन मस्क ने भी इसका जवाब दिया जो वीडियो से भी ज्यादा वायरल होने लगा है.
PM मोदी को मिला 17वां इंटरनेशनल अवार्ड, नाइजीरिया ने दिया ग्रैंड कमांडर का खिताब
Grand Commander of the Order of the Niger: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन देशों के दौरे पर हैं. सबसे पहले वो नाइजीरिया पहुंचे जहां उन्हें सम्मानित किया गया. उन्हें‘ग्रैंड कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द नाइजर’ दिया गया. ये पुरस्कार अब तक सिर्फ Queen Elizabeth को ही 1959 में मिला था.
अब होगा इराक-सीरिया में मारे गए हर ईरानी की मौत का हिसाब, कोर्ट ने US पर लगाया अरबों का मुआवजा
Irani Court Penalty to America: ईरान अब इराक-सीरिया में मारे गए अपने हर नागरिक की मौत का हिसाब लेने के मूड में आ गया है. इसी कड़ी में ईरानी कोर्ट ने अमेरिका को मृतकों के परिजनों को भारी-भरकम मुआवजा देने का ऑर्डर दिया है.
खजाने के अंदर मिला इतना बड़ा खजाना, कीमत आंकने में विशेषज्ञों के छूटे पसीने
Ancient Golden Treasure: खजाना मिलना ही अपने आप में जैकपॉट लगने जैसी घटना होती है. उस पर खजाने में कोई ऐसी बेशकीमती चीज मिल जाए कि विशेषज्ञों को भी उसकी कीमत आंकने में पसीने छूट जाएं, तो कैसा होगा.
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