अमेरिका में ट्रंप रिटर्न्स! शपथ लेते ही लगा दी घोषणाओं की झड़ी, पीछे बैठे बाइडेन को भी सुनाया
Donald Trump News: डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी को अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेतेही बड़ा फैसला लिया है. उन्होंने दक्षिणी सीमाओं पर इमर्जेंसी की घोषणा कर दी.ट्रंप ने पनामा नहर को भी वापस लेने का वादा करते हुए कहा कि पनामा पर नियंत्रण देना एक 'मूर्खतापूर्ण' फैसला था.
Donald Trump News:अमेरिका को उसका नया राष्ट्रपति मिल गया. डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार अमरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ ली. शपथग्रहण के बाद ट्रंप व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस पहुंचें तो उनकी मेज पर कौन सी 5 फाइल्स सबसे पहले मिलेंगी, आइए बताते हैं.
Joe Biden News:अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने कार्यकाल के आखिरी क्षणों में कई चौंका देने वाली घोषणाएं कीं. इनमें से एक बड़ा ऐलान उनके परिवार के सदस्यों को माफी देने का था.
Bangladesh News:बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने सोमवार को एक चौंका देने वाला ऐलान किया. उन्होंने अपने देश के सीमा रक्षकों को नए तरह के हथियार देने का फैसला लिया है.
Donald Trump Biography: डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के इतिहास में शपथ राष्ट्रपति निर्वाचित होने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति हैं. ट्रंप 20 जनवरी, 2025 को अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ग्रहण करेंगे.
इस देश में सट्टेबाजी का ऐसा चढ़ा बुखार, किस्मत आजमाने के लिए सांप लेकर पहुंच रहे लोग
Malaysia: मेलिशिया में चाईनीज न्यू ईयर से पहले लोग टोटो लॉटरी में अपना हाथ आजमा रहे हैं. इस देश में हर उम्र के लोगों पर जैकपॉट जीतने का बुखार चढ़ा है. इसके लिए लोग अलग-अलग तरीके आजमा रहे हैं. एक व्यक्ति तो लॉटरी शॉप में सीधा सांप लेकर पहुंच गया.
Russia: भारत के गोवा घूमने आई एक रूसी महिला ने भारतीयों की बार-बार तस्वीरे के लिए पूछने की आदत से परेशान होकर एक क्रिएटिव आईडिया निकाला. महिला के इस आईडिया को सोशल मीडिया पर काफी तारीफ मिल रही है.
महिला की जान के लिए आफत बनी नोज रिंग, घंटों तक कुर्सी में फंसी रही नाक, फायर फाइटर्स ने बचाया
Indonesia: इंडोनेशिया में एक अजीब मामला देखने को मिला है. यहां ऑफिस में काम कर रही एक महिला की नाक उसकी कुर्सी में फंस गई. यह आफत इतनी लंबी बन पड़ी की महिला को इससे छुटकारा पाने के लिए फायर फाइटर्स की मदद लेनी पड़ गई.
पाकिस्तान में सगे भाई-बहन की शादी के दावे से वायरल तस्वीर विज्ञापन की है
बूम ने पाया कि वायरल तस्वीर पाकिस्तान की एक मैट्रिमोनियल साइट 'ZAWAJ Marriage Bureau' पर प्रदर्शित होने वाले एक विज्ञापन की है.
इस मुस्लिम देश में अचानक फटा गैसोलीन टैंकर, काल के गाल में गए 86 लोग; मच गई चीख-पुकार
Nigeria Tanker Explosion: अफ्रीकी मुस्लिम देश उत्तरी नाइजीरिया के नाइजर राज्य में एक पेट्रोल टैंकर ट्रक पलटने और फिर विस्फोट होने से भयानक त्रासदी पूर्व घटना हुई है. इसमें अब तक 86 लोगों की मौत हो चुकी है.
लोहे से भी मजबूत हैं इस महिला की जांघे, 1 मिनट के अंदर तोड़ डाले 5 बड़े-बड़े तरबूज
Turkey: सोशल मीडिया पर तुर्की की एक महिला का गजब का कारनामा देखने को मिल रहा है. इस महिला ने अपनी जांघों से ताबड़तोड़ तरबूज तोड़ने का अनोखा रिकॉर्ड बनाया है. महिला के इस कारनामे को देख आप भी हैरान रह जाएंगे.
शपथ से पहले दहाड़े डोनाल्ड ट्रंप, शेयर मार्केट से लेकर इंवेस्टमेंट तक पर बताया 'ट्रंप इफेक्ट'
Trump Rally Today: ट्रंप ने शपथ लेने से पहले अपने समर्थकों और देशवासियों से वादा किया कि वे अमेरिका के हर संकट को दूर करने के लिए तेजी से काम करेंगे. साथ ही उन्होंने शेयर मार्केट में उछाल से लेकर अरबों के निवेश को ट्रंप इफेक्ट बताया.
ब्रिटेन ने करीब डेढ़ सौ साल तक भारत को अपना उपनिवेश बनाकर रखा और इस दौरान भारत से इतना धन और सोना लूटा कि उसके आंकड़े हिला देने वाले हैं. ऑक्सफैम इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट ने इसकी पूरी सच्चाई खोलकर सामने रख दी है.
30,000,000,000 कीमत, टॉयलेट में भी सोने की परत, क्यों इस घर को कहा जा रहा ब्रह्मांड का केंद्र?
Mar-a-Lago Florida: फ्लोरिडा के पाम बीच पर स्थित मार-ए-लागो रिसॉर्ट भव्यता के लिए अपने आप में एक बेंचमार्क है. लेकिन अब ये शक्ति का भी केंद्र बन गया है. 3 हजार करोड़ रुपए की कीमत वाले इस घर में दुनिया के सबसे ताकतवर व्यक्ति डोनाल्ड ट्रंप रहते हैं.
हिंदुओं पर अत्याचार की हदें पार कर दीं अब भारत के दुश्मन को राष्ट्रपिता बनाएगा यूनुस का बांग्लादेश
Bangladesh: बांग्लादेश में मोहम्मद युनुस की अंतरिम सरकार आने के बाद से वहां राष्ट्रपिता को बदल दिए जाने की मांग की जा रही है. वहीं अब देशभर में भारत के खिलाफ जंग लड़ने वाले जियाउर्रहमान को बांग्लादेश का राष्ट्रपिता बनाए जाने की मांग की जा रही है.
दुनिया के मशहूर पॉप सिंगर पर ऐसा गंभीर आरोप, ईरान ने सुना दी मौत की सजा
Amir Tataloo Punishment: दुनिया के मशहूर पॉप सिंगर आमिर तातालू को ईरान में मौत की सजा सुनाई गई है. आमिर तातालू पर पैगंबर मोहम्मद का अपमान करने समेत कई आरोप थे.
Prediction for 2025: साल 2025 की शुरुआत ही कई खौफनाक घटनाओं से हुई. अभी लॉस एंजेलिस से लेकर महाकुंभ तक की आग चर्चा में बनी है. साल 2025 मंगल का वर्ष है और इसे लेकर जो भविष्यवाणियां की गईं थीं, वे सच होती नजर आ रही हैं.
ट्रंप खाना खाकर बटोरेंगे 2 हजार करोड़, एक डिनर के लिए बिलिनेयर्स चुकाएंगे 9 करोड़
Trump Dinner Politics: डोनाल्ड ट्रंप अपने शपथ ग्रहण समारोह को जितना भव्य और रिकॉर्ड ब्रेकिंग बना रहे हैं, वैसे ही वे डिनर करके पैसे बटोरने में भी रिकॉर्ड बनाएंगे. इस समय ट्रंप की डिनर पॉलीटिक्स भी खासी चर्चा में बनी हुई है.
ये क्या मजाक है बे...बिल्ली इस्तीफा भेज रही, कुत्ता बम ला रहा! पालतू जानवरों ने कर डाले गजब कांड
Hilarious Pets: घर के पालतू जानवर आपको बिना शर्त प्यार करते हैं, हंसाते हैं, कई बार जान पर खेलकर मालिक की रक्षा करते हैं. वहीं कभी-कभी पेट्स गजब कांड भी कर देते हैं. बिल्ली और कुत्ते के इन 2 मालिकों के साथ पेट्स ने ऐसा किया कि वे कभी भूल नहीं पाएंगे.
Hajj Fire: प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में लगी आग ने करीब 200 कॉटेज जला दिया. हालांकि चाक-चौबंद व्यवस्था के चलते जल्द ही आग पर काबू पा लिया गया. क्या आप जानते हैं कई साल मुसलमानों के पवित्र तीर्थ मक्का में भी हज के दौरान भीषण आग लगी थी.
विरोधी गुस्से में, समर्थक निराश! वॉशिंगटन डीसी में ट्रंप के शपथ ग्रहण पर बन रहे कई रिकॉर्ड
Trump Oath Ceremony: आखिरकार डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार राजतिलक होने का दिन आ गया है. आज 20 जनवरी को ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे. इस मौके पर वॉशिंगटन डीसी में क्या कुछ चल रहा है, जानिए शपथ समारोह के प्रमुख हाईलाइट्स.
'हम वर्ल्ड वॉर के बेहद करीब लेकिन मैं...', शपथ से पहले ट्रंप की हुंकार, बता दिया अगले 4 साल का खाका
Donald Trump Speech: शपथ ग्रहण समारोह से पहले डोनाल्ड ट्रांप ने एक प्रोग्राम को संबोधित करते हुए अपने अगले 4 वर्षों का खाका पेश कर दिया है. सारी दुनिया को बता दिया है कि वो क्या बड़े कदम उठाने जा रहे हैं और उनके शपथ ग्रहण से पहले ही नतीजे दिखने लग गए हैं.
राजस्थान के बीकानेर शहर से 115 किलोमीटर दूर पाकिस्तान बॉडर से सटा खाजूवाला गांव। जहां तक नजरें जा रही हैं, रेत के पहाड़ और छिटपुट घर नजर आ रहे हैं। साथ में सीरियल एंटरप्रेन्योर यानी एक साथ कई बिजनेस करने वाले गोविंद भादू हैं। गोविंद खाजूवाला गांव के ही रहने वाले हैं। वो किस्सा बताते हैं, ‘बचपन में हम लोग गांव में रहते थे, तो पानी की बड़ी किल्लत थी। ऊंट से पानी की ढुलाई होती थी। इसके बदले 50 रुपए देने होते थे। 50 रुपए बचाने के लिए मां पांच किलोमीटर दूर से सिर पर पानी का घड़ा रखकर लाती थीं। गांव से शहर जाने के लिए भी सोचना पड़ता था। गांव में साइकिल भी किसी-किसी के पास होती थी। दादा-पापा भी यहां से 35 किलोमीटर दूर, दूसरे गांव से पलायन करके आए थे क्योंकि वहां रहने-खाने को भी नहीं था। बहुत गरीबी थी। उस वक्त मेरी उम्र 5 साल थी।’ गोविंद हंसते हुए कहते हैं, ‘सब मेहनत और विजन का खेल है। आज खुद की तीन-तीन कंपनी है। इंपोर्ट के बिजनेस से लेकर स्टोन माइनिंग तक का काम है। 100 से ज्यादा लोगों की टीम है। सालाना 20 करोड़ का बिजनेस है। जहां से मैं आता हूं, वहां दूर-दूर तक किसी को पता भी नहीं था कि बिजनेस क्या होता है। घर में खेती और सर्विस का माहौल था। गरीबी भी थी। 1990 के आसपास की बात है। मैं 7वीं, 8वीं में था। स्कूल की फीस महीने की 50 रुपए थी। घरवालों के लिए ये फीस भर पाना भी मुश्किल था। कई बार कहने के बाद स्कूल में फीस जमा होती थी। एक यूनिफॉर्म हम दो-तीन साल पहनते थे। किसी रिश्तेदार के यहां जाते थे तो गरीब होने की वजह से हमारे साथ भेदभाव होता था। ये सारी बातें मेरे दिमाग में खटकती रहती थी। सोचता था कि मेरे पास भी पैसे होते, तो घर की जरूरतें पूरी कर पाते।’ गोविंद कहते हैं, ‘9वीं की बात है। उस वक्त गांव में वीडियो गेम का दौर था। 10 रुपए देकर बच्चे एक घंटे के लिए वीडियो गेम खेलते थे। मैंने एक पुराना टीवी खरीदकर वीडियो गेम का बिजनेस शुरू कर दिया। 7 रुपए के हिसाब से चार्ज करने लगा। मेरे पास लोग वीडियो गेम खेलने के लिए आने लगे। उसके बाद मैंने पुरानी कॉमिक्स खरीदकर रेंट पर देना शुरू कर दिया। मेरे दिमाग में बस एक ही चीज थी कि बिजनेस करना है। जॉब नहीं। भले ही रेहड़ी, ठेला क्यों न लगाना पड़े। जब एक रुपए के बदले दो रुपए आने लगे, तो घरवालों को भी लगा कि ठीक ही है। आवारा घूमने से तो अच्छा ही है कि कुछ करके पैसे कमा रहा है। 12वीं के बाद मुझे लगा कि गांव में ही रहा, तो इसी रेत के बीच रह जाऊंगा। मैंने घरवालों से कहा- बीकानेर जाकर कंप्यूटर सीखना है। चाचा मेरे एग्रीकल्चर में थे। उन्होंने कहा- इसकी पढ़ाई कर लो। जॉब लग जाएगी। मैं एग्जाम देने के लिए गया भी, लेकिन पेपर नहीं लिखा। फेल होने के बाद अब घरवालों के पास भी दूसरा कोई ऑप्शन नहीं था। उन्होंने शहर भेज दिया। उसी के बाद मसाला बेचने लगा।’ मसाला? ‘हां, और क्या करता। घरवालों का कहना था कि रहने-खाने का खर्च खुद उठाओ। वे सिर्फ कंप्यूटर क्लास की फीस देते थे। मेरे एक दोस्त की मसाले की फैक्ट्री थी। मैं छोटे-छोटे पैकेट में मसाले पैक करके शहर की दुकानों में जाकर बेचने लगा। करीब एक-डेढ़ साल तक ये बिजनेस चला। सुबह से लेकर रात तक मोटरसाइकिल पर दुकान-दुकान जाता था। मैं सोचने लगा- पैसे कमाने के लिए बिजनेस शुरू किया था। यह तो जॉब से भी मुश्किल है। इसी के बाद मैंने कई छोटे-छोटे काम करने शुरू किए। प्रिंटिंग से लेकर डिजाइनिंग तक का काम करने लगा। कुछ साल तक मैं दिल्ली से इंडक्शन कुकटॉप जैसे प्रोडक्ट खरीद कर बीकानेर में बेचता था। इससे पैसे बनने लगे। 2005 आते-आते मैंने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर स्किन केयर प्रोडक्ट बनाने की कंपनी शुरू करने के बारे में सोचा। घरवालों को भी लगा कि उनका बेटा बिजनेस कर रहा है। करीब 15 लाख रुपए का इन्वेस्टमेंट किया। दो साल के भीतर ही कंपनी बंद करने की नौबत आ गई। दरअसल, मार्केट में इन प्रोडक्ट्स की डिमांड नहीं थी। 25 लोग काम कर रहे थे। सैलरी देने में भी दिक्कत होने लगी। रातों-रात कंपनी बंद करनी पड़ी। घरवालों के 4 लाख रुपए लगे थे। बाकी पैसे मार्केट से लिए थे। हमारे पास इतने पैसे भी नहीं बचे कि कमरे का किराया भर पाएं। मुझे आज भी याद है- बाइक बेचकर किराया चुकाया था।’ कहते-कहते गोविंद थोड़े मायूस हो जाते हैं। कुछ देर ठहरने के बाद कहते हैं, ‘मैंने सोचा कि अब छोटे लेवल से बिजनेस शुरू करूंगा। हम तीन भाई हैं। तीनों ने साथ मिलकर स्किन केयर प्रोडक्ट इंपोर्ट करना शुरू किया। साल 2010-11 के बाद इंडिया में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म आ चुका था। मैंने बॉडी डिटॉक्स करने वाले फुट पैच या हील पैड जैसे प्रोडक्ट इंपोर्ट करके ऑनलाइन बेचना शुरू किया। ‘यूनिलाइफ’ नाम से कंपनी बनाई। ये ऐसे प्रोडक्ट हैं, जिसकी इंडिया में डिमांड है, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग नहीं है। आपको यकीन नहीं होगा। 20 हजार रुपए से मैंने ये बिजनेस शुरू किया था। शुरुआत में दो-चार ऑर्डर आते थे। आज हर रोज 150 के करीब ऑर्डर आते हैं। मैंने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म को लेकर भी एक खुद की कंपनी शुरू की।’ गोविंद मुझे प्रोडक्ट के कुछ सैंपल दिखा रहे हैं। उनका प्रीमियम स्टोन यानी क्वार्ट्ज ग्रेन का भी बिजनेस है। गोविंद कहते हैं, ‘इस स्टोन की सप्लाई गुजरात के मोरबी में होती है। ग्लास, सेरेमिक और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में इसका इस्तेमाल होता है। उदयपुर में हमारी माइनिंग साइट है। यहीं पर क्वार्ट्ज स्टोन तैयार किया जाता है। फिर इसे थर्ड पार्टी को सप्लाई करते हैं।’ क्वार्ट्ज ग्रेन का बिजनेस? ‘जब इंपोर्ट्स इंडस्ट्री में कनेक्शन बनने लगे, तो पता चला कि क्वार्ट्ज ग्रेन की माइनिंग राजस्थान के कुछ जिलों में होती है। हमने थर्ड पार्टी वेंडर्स के साथ कॉन्टैक्ट करके ‘अल्फा नेचुरल्स’ की शुरुआत की। आज 15 से ज्यादा क्लाइंट हैं, जो थोक में स्टोन खरीदते हैं। यह महंगा होता है। इसे ज्यादातर एक्सपोर्ट किया जाता है।’ 2019 तक बिजनेस अच्छा चलने लगा। इसी बीच एक रोज मुझे ब्रेन स्ट्रोक आ गया। आधा शरीर पैरालाइज्ड हो गया। करीब तीन-चार महीने तक मैं बेड पर था। धीरे-धीरे रिकवरी हुई, तो मैंने सोचा कि अब खुद के बिजनेस के साथ-साथ दूसरों के बिजनेस बनाने में भी मदद करूंगा। बतौर बिजनेस मेंटॉर काम करने लगा। करीब 3 सालों में मैंने 50 से ज्यादा सेमिनार्स अटेंड किए हैं। ‘शेप योर ड्रीम’ के नाम से यंग जनरेशन को बिजनेस के बारे में बताता हूं। मैंने एक किताब भी लिखी है- बिजनेस बियॉन्ड लिमिट्स। लोगों के लिए यकीन करना मुश्किल होता है कि एक मसाला बेचने वाला आज तीन कंपनी चला रहा है।
20 जनवरी 2025 को भारत में रात के 10:30 बज रहे होंगे, तो अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प 47वें राष्ट्रपति के तौर पर पद की शपथ लेंगे। सेरेमनी के बाद वो फेमस 'व्हाइट हाउस' पहुंचेंगे और अगले 4 साल के लिए यही उनका घर बन जाएगा। व्हाइट हाउस में अमेरिका के 45 राष्ट्रपति रह चुके हैं। ये दुनिया का सबसे सुरक्षित घर माना जाता है। जहां कोई गोली चलाए, तो बुलेटप्रूफ खिड़किया हैं। कोई हवाई हमला करे तो एंटी मिसाइल सिस्टम है। न्यूक्लियर अटैक हो, तो सुरक्षित बंकर है। कैंपस में एक चूहा भी चलता है तो पता लग जाता है। ये घर कब और कैसे बना, कितने कमरे और सुविधाएं, सुरक्षा के क्या इंतजाम और यहां के भूतों के क्या किस्से हैं; मंडे मेगा स्टोरी में 'द व्हाइट हाउस' की पूरी कहानी... ***** ग्राफिक्सः अंकुर बंसल और अंकित द्विवेदी ----------- रेफरेंस- ------- अमेरिका से जुड़ी ये भी खबर पढ़िए... मंडे मेगा स्टोरी- अमेरिका में मंगलवार को ही वोटिंग क्यों: राष्ट्रपति को कुछ हुआ तो 18 लोग कुर्सी के लिए हमेशा क्यों तैयार रहते हैं अमेरिका में 50 राज्य हैं। भारत की तरह वहां भी जनसंख्या के हिसाब से हर राज्य की सीटें तय हैं। जैसे उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं, उसी तरह कैलिफोर्निया में 54 इलेक्टोरल वोट्स हैं। मान लीजिए 2024 चुनाव में कमला हैरिस की पार्टी कैलिफोर्निया में 30 सीटें जीतती है और ट्रंप 24 सीटें। ऐसे में यहां के सभी 54 इलेक्टोरल वोट्स कमला हैरिस के हो जाएंगे। 'विनर टेक्स ऑल' यानी नंबर-1 पर रहने वाले को राज्य की सभी सीटें मिलने का नियम है। पूरी खबर पढ़िए...
आज डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बनेंगे। ट्रम्प की शपथ, सत्ता का ट्रांसफर और बाइडेन की विदाई... पूरी सेरेमनी करीब 6 घंटे चलेगी। इसी दौरान ट्रम्प को न्यूक्लियर फुटबॉल सौंपी जाएगी और व्हाइट हाउस से बाइडेन की सभी निशानियां भी हटा ली जाएंगी। ट्रम्प सरकार के इनॉगरेशन डे की सभी रोचक और जरूरी बातें; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में... सवाल 1: 20 जनवरी को शपथ ग्रहण से पहले ट्रम्प क्या-क्या करेंगे? जवाब: 20 जनवरी को शपथ ग्रहण के दिन की शुरुआत सेंट जॉन्स एपिस्कोपल चर्च से होगी। इसे 'राष्ट्रपतियों का चर्च' भी कहते हैं। सवाल 2: ट्रम्प के शपथ ग्रहण के दौरान क्या-क्या होगा? जवाब: हमेशा कैपिटल हॉल बिल्डिंग की सीढ़ियों पर शपथ ली जाती है, लेकिन इस साल अमेरिका में 1789 के बाद सबसे कम तापमान रहने वाला है। तब रोनाल्ड रीगन ने -13C टेम्परेचर में शपथ ली थी, इस बार तापमान लगभग -7 C होगा। इसलिए ट्रम्प यूएस कैपिटल हॉल के अंदर की गुंबद के आकार की एक बिल्डिंग 'कैपिटल रोटुंडा' में शपथ लेंगे। बाहर जमा करीब 20 हजार लोग इसे नहीं देख पाएंगे। सबसे पहले वेंस उप-राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। वेंस को सुप्रीम कोर्ट के जज ब्रेट कैवनोग शपथ दिलाएंगे। शपथ में वेंस को अंग्रेजी में कहना होगा- मैं सत्यनिष्ठा से शपथ लेता हूं कि मैं सभी विदेशी और घरेलू दुश्मनों से अमेरिका के संविधान की रक्षा करूंगा, कि मैं इसके प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखूंगा; कि मैं इस दायित्व को स्वतंत्र रूप से स्वीकार करता हूं; और कि मैं जिस पद पर आसीन होने वाला हूं उसके कर्तव्यों का भलीभांति और ईमानदारी से निर्वहन करूंगा। अतः हे प्रभु मेरी सहायता करें। सवाल 3: ट्रम्प की शपथ ग्रहण के बाद क्या-क्या होगा? जवाब: शपथ ग्रहण के बाद ट्रम्प अमेरिका की जनता को अपने दूसरे कार्यकाल का पहला भाषण देंगे। पिछले कार्यकाल के लिए 2017 में शपथ लेने के बाद उन्होंने लगभग 17 मिनट का भाषण दिया था। सवाल 4: शपथ ग्रहण समारोह के बाद पूर्व राष्ट्रपति नए राष्ट्रपति को एक ब्रीफकेस देते हैं, इसमें क्या होता है? जवाब: अमेरिका के नए राष्ट्रपति को शपथ ग्रहण के बाद पूर्व राष्ट्रपति एक ब्रीफकेस सौंपते है। इसे न्यूक्लियर फुटबॉल कहते हैं। यह काले रंग का ब्रीफकेस अमेरिका के राष्ट्रपति को न्यूक्लियर बम कंट्रोल करने की शक्ति देता है। इस ब्रीफकेस में न्यूक्लियर वॉर का प्लान और मिसाइल्स के वेरिफिकेशन कोड्स होते हैं। प्रेसिडेंट को परमाणु हमले का आदेश देने के लिए अपनी पहचान बतानी होती है। ये पहचान सिर्फ उनका नाम या उनकी आवाज नहीं हो सकती, उन्हें इस बॉक्स में रखे अपने वेरिफिकेशन कोड बताने होते हैं। बाइडेन जब ट्रम्प की शपथ में शामिल होंगे तब भी उनके साथ यह बॉक्स रहेगा। जैसे ही ट्रम्प शपथ लेंगे, बाइडेन के जिस मिलिट्री ऑफिसर के पास न्यूक्लियर बॉल होगी, वह इसे ट्रम्प के मिलिट्री ऑफिसर को सौंप देगा। इस दौरान दो और ऑफिसर जो ट्रम्प के पीछे एक पिलर के पास खड़े रहेंगे वह, बॉल के इस एक्सचेंज को अपने पीछे छिपा लेंगे। यह बॉक्स हर समय लगभग सभी देशों के मुखिया के साथ रहता है। यानी कोई भी न्यूक्लियर बॉल को एक ऑफिसर के हाथ से दूसरे ऑफिसर के हाथ में जाते नहीं देख पाएगा। ये सब इतना तेजी से किया जाता है कि एक भी पल के लिए ऐसा नहीं हो सकता कि न्यूक्लियर बॉल पर नए या पुराने किसी भी प्रेसिडेंट का कंट्रोल न हो। ये इस बात का प्रतीक है कि अमेरिका हर समय जरूरत पड़ने पर न्यूक्लियर अटैक के लिए तैयार रहता है। सवाल 5: पुराने राष्ट्रपति का सामान हटाने और नए राष्ट्रपति का सामान लाने के लिए सिर्फ 6 घंटे का समय क्यों होता है? जवाब: पुराने राष्ट्रपति यानी बाइडेन शपथ ग्रहण के दिन सुबह 10 बजे के आसपास व्हाइट हाउस छोड़ेंगे। दस बजे व्हाइट हाउस का स्टाफ इकठ्ठा होकर पूर्व राष्ट्रपति और उनकी पत्नी को विदाई देता है। इस दौरान चीफ अशर, बाइडेन को व्हाइट हाउस की लकड़ी की वर्कशॉप में हाथ से बना एक गिफ्ट बॉक्स देगा। इसमें दो अमेरिकन झंडे होंगे, जो बाइडेन ने ओवल ऑफिस में पहले दिन और आखिरी दिन लगाए थे। बाइडेन के व्हाइट हाउस छोड़ने से पहले तक यहां कोई बड़ा बदलाव नहीं किया जा सकता। इसके बाद नए राष्ट्रपति शाम को करीब 4 बजे तक व्हाइट हाउस में दाखिल होते हैं। इसलिए पूरे एग्जीक्यूटिव रेजिडेंस से पुराना सामान हटाने, नया सामान रखने और साफ-सफाई वगैरह के लिए सिर्फ 6 घंटे होते हैं। व्हाइट हाउस के स्टाफ के 100 लोग सुबह 4 बजे जागकर तैयारी शुरू करते हैं, इसमें किसी छोटी सी भी गलती की गुंजाइश नहीं होती। सुरक्षा कारणों से पैकिंग और मूविंग के लिए कोई बाहरी व्यक्ति नहीं बुलाया जाता। पुराने राष्ट्रपति के साथ वह सामान नहीं जाता जो उन्हें बतौर राष्ट्रपति गिफ्ट में मिला होता है। इसे नेशनल आर्काइव में रख दिया जाता है। अगर बाइडेन ऐसा कोई गिफ्ट ले जाना चाहेंगे तो उन्हें मार्केट के हिसाब से उसकी सही कीमत सरकार को देनी होगी। सवाल 6: ट्रम्प के आने से व्हाइट हाउस में क्या-क्या बदल जाएगा? जवाब: पूरी प्लानिंग राष्ट्रपति के चुनाव के दिन से ही शुरू हो जाती है। व्हाइट हाउस के चीफ अशर नए प्रेसिडेंट की टीम को एक सवालों की लिस्ट नए प्रेसिडेंट की ट्रांजीशन टीम को भेजता है। इसमें प्रेसिडेंट क्या खाना पसंद करते हैं, से लेकर वह कौन सा शैंपू इस्तेमाल करते हैं, तक सारे सवाल पूछे जाते हैं। चीफ अशर शुरू से आखिर तक प्रेसिडेंट की पत्नी से संपर्क में रहता है। मिलानिया ट्रम्प ने जो चीजें चुनी होंगी, मैरीलैंड से उन्हें लाकर व्हाइट हाउस में सजाया जाएगा। जिस तरह बाइडेन ने अमेरिका के सामाजिक कार्यकर्ता सीजर शावेज का बुत अपने ऑफिस में रखा था, उसी तरह ट्रम्प भी कुछ चीजें चुनकर अपने ऑफिस में रखवा सकते हैं। कमरों के पेंट से लेकर, कार्पेट के रंग तक मिलानिया का तय किया हुआ होगा। कई बार ये मांग बहुत ज्यादा भी हो सकती है, जैसे प्रेसिडेंट रूजवेल्ट शिकार के शौकीन थे, वह अपने साथ दीवारों पर लगाने के लिए खाल से बने जानवरों के पुतले लाए थे। कई कलाकृतियां और कुछ सामान ऐसा भी है, जिसे नहीं हटाया जा सकता। जैसे 1865 में अब्राहम लिंकन की हत्या के पहले उनका बेडरूम जैसा था, उसे जस का तस रखा जाएगा। हिलेरी क्लिंटन व्हाइट हाउस को उस समय के मॉडर्न आर्ट्स के हिसाब से सजाना चाहती थीं, व्हाइट हाउस हिस्टोरिकल एसोसिएशन ने इसका विरोध किया। वहीं प्रेसिडेंट रीगन लॉन में एक स्विमिंग पूल बनाना चाहते थे, लेकिन उनकी सिक्योरिटी सर्विस ने सुरक्षा कारणों से इसके लिए मना कर दिया। सवाल 7: वाइट हाउस से निकलने के बाद बाइडेन कहां रहेंगे? जवाबः बाइडेन के पास अमेरिका के डेलावेयर प्रांत के विलमिंगटन शहर में एक बड़े तालाब के किनारे 6,850 वर्ग फीट में बना एक शानदार घर है। वह पिछली बार 2017 में उप-राष्ट्रपति पद से हटने के बाद इसी घर में रहने गए थे। वह अपने साथ बड़ी तादाद में कागज ले गए थे, इनमें कुछ क्लासीफाइड डाक्यूमेंट्स भी थे। अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस ने इस मामले की जांच भी की थी। वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार बाइडेन ने 3 बेडरूम वाले इस घर को 3 करोड़ रुपए में खरीदा था। अब इसकी कीमत करीब 17 करोड़ है। बाइडेन ने अपने संस्मरण 'प्रॉमिस मी डैड' में लिखा है कि वह 2017 में अपने बेटे बीयू बाइडेन के कैंसर के इस घर पर दूसरी बार लोन लेने जा रहे थे। उन्होंने तब के अमेरिकी प्रेसिडेंट बराक ओबामा को इस बारे में बताया तो उन्होंने कहा, 'ऐसा मत करो, मैं पैसे दूंगा।' ---------- ट्रम्प से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें मंडे मेगा स्टोरी- अमेरिका में मंगलवार को ही वोटिंग क्यों:राष्ट्रपति को कुछ हुआ तो 18 लोग कुर्सी के लिए हमेशा क्यों तैयार रहते हैं अमेरिका में 50 राज्य हैं। भारत की तरह वहां भी जनसंख्या के हिसाब से हर राज्य की सीटें तय हैं। जैसे उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं, उसी तरह कैलिफोर्निया में 54 इलेक्टोरल वोट्स हैं। पूरी खबर पढ़ें...
साल 1942, दुनिया दूसरा विश्वयुद्ध लड़ रही थी। ब्रिटेन ने जबरन भारतीयों को युद्ध में धकेल दिया था। इससे भारत के बड़े नेता नाराज थे। इसी साल इलाहाबाद में कुंभ लगा। कुंभ को लेकर अंग्रेजों की खासी दिलचस्पी होती थी। वे कुंभ को ग्रेट फेयर कहते थे और टैक्स के जरिए इससे कमाई भी करते थे। एक रोज भारत के वायसराय गवर्नर जनरल लॉर्ड लिनलिथगो कुंभ मेला देखने पहुंचे। मदन मोहन मालवीय भी उनके साथ थे। मालवीय का कुंभ से खास लगाव था। वे अक्सर प्रयाग जाते रहते थे। कुंभ में लाखों लोगों की भीड़ और आस्था को देखकर वायसराय दंग रह गए। उन्होंने मालवीय से पूछा- ‘इस मेले में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को जुटाने के लिए कितना पैसा प्रचार-प्रसार पर खर्च हुआ होगा?’ मालवीय ने कहा- ‘सिर्फ दो पैसे।’ वायसराय ने हैरान होकर पूछा- ‘क्या कहा आपने, केवल दो पैसे?’ मालवीय ने जेब से पंचांग निकाला और उसे दिखाते हुए कहा- ‘ये दो पैसे में मिलता है, जो हर भारतीय के घर में होता है। इसमें लिखा है कि किस साल और किस तिथि को कुंभ लगेगा और कब कौन सा स्नान होगा। लोग तारीख देखते हैं और उसके हिसाब से घर से निकल पड़ते हैं। इन्हें बुलाने के लिए कोई प्रचार-प्रसार नहीं करना पड़ता।’ आज ‘महाकुंभ के किस्से’ सीरीज के 9वें एपिसोड में कुंभ से जुड़ीं 8 दिलचस्प कहानियां… हड्डियों की माला पहनकर कुंभ का इंतजार, गंगा से कहते हैं- ‘फिर से इस बच्चे को हमारी गोद में देना’ इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर धनंजय चोपड़ा बताते हैं- ‘2001 महाकुंभ की बात है। मैं कवरेज के लिए संगम क्षेत्र में घूम रहा था। मैंने देखा कि कुछ लोग सफेद कपड़ा पहने गुनगुनाते हुए संगम में डुबकी लगाने जा रहे थे। महिला, पुरुष और बच्चे सभी उस ग्रुप में शामिल थे। सबसे आगे चल रहे शख्स के गले में इंसानी हड्डियों की माला थी। मुझे यह जानने की दिलचस्पी जागी कि आखिर ये लोग कौन हैं और गले में हड्ढियों की माला पहनकर क्यों नहाने जा रहे हैं। मैंने उनसे इसकी वजह पूछी। पता चला कि ये लोग मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर से आए हैं। ये एक परंपरा निभा रहे हैं। दरअसल, इनके परिवार में जब कोई कम उम्र में मर जाता है, तो उसे ये लोग दफना देते हैं। फिर घर का मुखिया उसके हड्डियों की माला बनाकर गले में पहन लेता है। ये लोग 12 साल तक कुंभ का इंतजार करते हैं। कुंभ आने पर पूरा परिवार प्रयाग आता है और हड्डियों की माला गंगा में प्रवाहित कर दी जाती है। वे गंगा से प्रार्थना करते हैं कि उस बच्चे के प्रति हमारे कुछ दायित्व थे, लेकिन हम निभा नहीं पाए। हे गंगा मां फिर से बच्चे को हमारी गोद में देना।’ जब नागा साधु ने तलवार की नोक पर टांग लिया फोटोग्राफर का कैमरा प्रयागराज के सीनियर फोटोजर्नलिस्ट स्नेह मधुर बताते हैं- ‘1977 की बात है। मैं कुंभ की कवरेज के लिए संगम पहुंचा था। तब मैं एक मैगजीन के लिए काम करता था। उस दिन नागा साधुओं का स्नान था। मैं नागाओं के जुलूस को फॉलो करने लगा। सुबह का वक्त था। आकाश में बादल थे। अंधेरा सा छाया था। मैंने देखा कि एक जगह घेरा बनाकर नागा साधु तलवारबाजी कर रहे हैं। मैं वहां रुककर तलवारबाजी देखने लगा। अद्भुत दृश्य था। मुझे लगा कि इनकी फोटो लेनी चाहिए। मैंने चुपके से कैमरा निकाला और फोटो खींचने लगा। एक नागा साधु ने मुझे ऐसा करते देख लिया। वो मेरी तरफ दौड़ पड़े और तलवार की नोक पर मेरा कैमरा उठा लिया। सब लोग सकपका गए क्योंकि ऐसा माना जाता था कि नागा गुस्सा होते हैं तो कुछ भी कर गुजरते हैं। मेरे बगल में ही एसपी खड़े थे। नागा साधु ने मुझसे कहा- ‘तुम्हें पता नहीं कि नागा की फोटो खींचना मना है। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई फोटो खींचने की।’ मैंने कहा- ‘मुझे मालूम नहीं था। मुझे लगा कि फोटो खींच लूंगा तो लोग भी देखेंगे।’ उन्होंने कहा- चलो कैमरे में से रील निकालो। मैंने कहा- फोटो खींची नहीं है। इसके बाद एसपी आ गए। उन्होंने कहा कि बाबा इन्हें छोड़ दीजिए, माफ कर दीजिए। नए हैं, गलती हो गई है। मैं मन ही मन सोच रहा था कि चलो जो भी होगा देखा जाएगा। गलती तो कर ही दी है। पता नहीं क्या हुआ कि नागा साधु का दिल पिघल गया। उन्होंने तलवार से कैमरा मेरे कंघे पर टांग दिया और कहा- ‘चलो मन की मुराद पूरी कर लो। खींच लो मेरी फोटो।’ मैं डरा हुआ था कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए। एसपी ने कहा- ‘बाबा कह रहे हैं, तो फोटो खींच लो। वर्ना ये नाराज हो जाएंगे।’ मैंने नागा साधु की फोटो खींची। बाकी नागा साधु भी उनके पास आ गए थे। वो फोटो एक मैगजीन में छपी भी थी।’ हाथ में बिसलेरी की बोतल, गंदे पानी में डुबकी लगाने के लिए कूद पड़े विदेशी स्नेह मधुर बताते हैं- ‘2007 की बात है। प्रयागराज में अर्धकुंभ लगा था। मैं झूंसी से संगम की तरफ आ रहा था। मैंने देखा कि कुछ विदेशी नदी के पास खड़े थे। वहां पानी कम था और काफी गंदा दिख रहा था। उनके हाथों में बिसलेरी पानी की बोतल थी। उन लोगों ने मुझसे अंग्रेजी में पूछा- ‘क्या हम इसमें स्नान कर सकते हैं?’ मैंने जवाब दिया- ‘नहीं आप लोग यहां मत नहाइए। हेल्थ इश्यू हो सकता है। दूसरी जगह स्नान कर लीजिए।’ पर वे लोग बार-बार दोहरा रहे थे कि ये तो बहुत पवित्र नदी है। दुनिया भर के लोग यहां आते हैं और स्नान करते हैं। हम यहां आए हैं तो नहाकर ही जाएंगे। यहां नहाने का अवसर नहीं खो सकते। मैंने कहा ठीक है जैसी आपकी मर्जी। थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि वे लोग अपने कपड़े उतारकर गंदे जल में कूद पड़े। कोई डुबकी लगाने लगा तो कोई आचमन जैसा करने लगा। मैं दंग रह गया कि बिसलेरी की बोतल लेकर चलने वाले इतने गंदे पानी से नहा रहे हैं। ये उनकी श्रद्धा थी। गंगा के प्रति। कुंभ के प्रति। एक विदेशी महिला, नागा साधुओं की तरह बिना कपड़े के संगम की रेत पर लोटने लगी प्रयागराज के सीनियर फोटो जर्नलिस्ट एसके यादव बताते हैं- ‘2001 की बात है। कुंभ की कवरेज के लिए संगम किनारे घूम रहा था। सुबह-सुबह नागा साधु ढोल नगाड़ों के साथ झूमते हुए शाही स्नान के लिए संगम पहुंचे। वे तलवारबाजी कर रहे थे। हर-हर महादेव के नारे लगा रहे थे। जैसे ही नागा साधुओं ने संगम में डुबकी लगाना शुरू किया, 25-30 साल की एक विदेशी महिला अचानक अपने कपड़े उतारने लगी। लोग कुछ समझ पाते, वो बिना कपड़े के तेजी से संगम की तरफ दौड़ी और छलांग लगा दी। कुछ देर बाद महिला स्नान करके बाहर निकली और संगम किनारे रेत के ढेर पर लोटने लगी। नागाओं को देखकर अपने शरीर पर रेत मलने लगी। लोगों के लिए कौतूहल का विषय बन गया। उसे देखने के लिए भीड़ जुट गई। इसी बीच कुछ पुलिस अधिकारी महिला के पास पहुंचे और उसे कंबल ओढ़ाकर थाने में ले गए। बाद में एक मैगजीन ने अपनी कवर स्टोरी में उस महिला की फोटो छापी थी। तब यूपी में बीजेपी की सरकार थी और राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री थे। लालजी टंडन के जिम्मे कुंभ मेला था। महिला की फोटो छापने पर लालजी टंडन पत्रकारों से खासा नाराज हुए थे। बाद में कुंभ की रिपोर्टिंग को लेकर पत्रकारों पर लाठीचार्ज भी हुआ। कई दिनों तक पत्रकारों ने धरना भी दिया था। जब कुंभ में एक के बाद एक धमाके हुए, अखबार में लपेटकर रखे गए थे विस्फोटक स्नेह मधुर कुंभ से जुड़ा एक और किस्सा बताते हैं। वे कहते हैं- ‘1989 कुंभ की बात है। शाम का वक्त था। हम लोग संगम क्षेत्र में ‘चलो मन गंगा यमुना तीरे’ कल्चरल प्रोग्राम देख रहे थे। करीब 6 बजे बम फटने जैसी आवाज आई। हम लोग चौंक गए। लगा कोई पटाखा फटा होगा। कुछ सेकेंड बाद एक और धमाका हुआ। हम लोग फौरन बाहर निकले। बाहर देखा तो सबकुछ सामान्य था। इस बीच एक और धमाके की आवाज आ गई। जिधर से आवाज आ रही थी, उधर ही हम आगे बढ़ने लगे। थोड़ी देर में लोग पैनिक होने लगे। इधर-उधर भागने लगे। चूंकि उस दिन मेन बाथिंग डे नहीं था, इसलिए भगदड़ जैसी स्थिति नहीं बनी। जब हम वहां पहुंचे तो देखा बांग्ला भाषा में लिखे अखबार में विस्फोटक रखे हुए थे। जिन्हें पुलिस ने बरामद कर लिया। इसमें कोई हताहत नहीं हुआ था। कुछेक लोगों को हल्की चोटें आई थीं। हालांकि ये पता नहीं चल सका कि धमाके किसने किए और क्यों किए, लेकिन इसका असर अगले कुंभ में देखने को मिला। उस कुंभ में जो एसएसपी आए थे, उनके साथ ब्लैक कमांडोज थे। उनका कहना था कि दहशत फैलाने वालों को ये दिखाना जरूरी है कि हम तैयारी के साथ आए हैं।’ टीन के बने भोंपू से नाम पुकारा जाता था, एक ही दिन हजारों लोग अपनों से बिछड़ जाते थे ‘भारत में कुंभ’ किताब में धनंजय चोपड़ा लिखते हैं- ‘2001 में सदी का पहला कुंभ प्रयाग में लगा। उस रोज मौनी अमावस्या थी। हम लोग स्नान की कवरेज के बाद भूला-भटका शिविर पहुंचे। भीड़ इतनी कि लोग कैंप की बल्लियों पर चढ़कर बिछड़े परिजनों की पर्चियां ले रहे थे। आठ हजार स्क्वायर में बना कैंप दोपहर होने से पहले ही खचाखच भर गया था। किसी की मां खो गई थी, तो किसी की पत्नी भूल गई थी, तो किसी का बेटा भटकते हुए यहां आ पहुंचा था। मैंने देखा कि सैकड़ों की संख्या में बूढ़ी महिलाएं और बच्चे आंखों में आंसू लिए अपनों की राह देख रहे थे। हर कोई चाहता था कि उसका नाम जल्दी से जल्दी एनाउंस कर दिया जाए। शिविर के बाहर भी भूले-भटके लोगों का नाम नोट कराने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। पुलिस को लोगों की कतार लगवाने में मशक्कत करनी पड़ रही थी। दिल उस समय और भी दहल गया, जब एक बूढ़ी महिला रो-रोकर बता रही थी कि उसे अपने गांव का नाम तो मालूम है, लेकिन राज्य या जिले का नाम नहीं पता। ऐसी ही कहानी कई महिलाओं और बच्चों की थी।' 'मेला क्षेत्र में लाउडस्पीकर से आवाज गूंज रही थी- 'मुन्ने की अम्मा, मुन्ने की अम्मा... जहां कहीं भी हो.. तुरंत भूले-भटके शिविर में पहुंचो... यहां आपके पति राम नारायण गांव सिहोरी जिला बलिया इंतजार कर रहे हैं। बिछड़ों को मिलाने का जुनून पाले लोग लगातार कोशिश करते रहते हैं कि जो बिछुड़ गया है, उसे जल्दी-से-जल्दी उसके साथियों से मिलवा दिया जाए। ऐसे ही एक जुनूनी थे राजाराम तिवारी। भारत सेवा दल संस्था बनाकर उन्होंने 70 साल तक भूले-भटके शिविर का संचालन किया। कुंभ मेलों और माघ मेलों में बिछुड़े-भटके दस लाख से भी ज्यादा लोगों को उनके परिजनों से मिलाया। 18 की उम्र में 1946 से यह काम करने वाले राजाराम पहले टीन से बने भोंपू से चिल्लाकर नाम पुकारा करते थे। बाद में यह काम लाउडस्पीकर से होने लगा। धीरे-धीरे प्रशासन ने भी उनका साथ देना प्रारंभ कर दिया। राजाराम तिवारी की लोकप्रियता इतनी थी कि वे 'भूले-भटके या 'भूले-भटकों के बाबा' कहे जाने लगे थे। 88 साल की उम्र में 2016 में उनकी मृत्यु हो गई।' ईसाई मिशनरी ने कुंभ में जमीन मांगी, धर्मांतरण के लिए प्रयाग पहुंचा पादरी इतिहासकार हेरंब चतुर्वेदी अपनी किताब ‘कुंभ : ऐतिहासिक वांग्मय’ में लिखते हैं- ‘1840 के प्रयाग कुंभ में एक पादरी धर्मांतरण के नजरिए से मेले में आया। वह दस दिनों तक वहां रहा। उसने अपनी यात्रा के बारे में लिखा- ‘20 जनवरी की बात है। साधु-संतों ने काफी पहले से तैयारी शुरू कर दी थी। पचास-पचास कदमों की दूरी पर फूस की अस्थाई झोपड़ियां बनी थीं। इसके भीतर साफ-सुथरे कमरे बनाए गए थे। हर कुटी के सामने चार फीट ऊंची मिट्टी डाल कर चबूतरा बनाया गया था। इसके ऊपर कुछ इंच ऊंची एक दीवार सिरे के चारों ओर फैली हुई थी। इस पर गेरू की सुंदर लिपाई की गई थी। इन चबूतरों पर दिन में वे धूप-सेवन और धर्म-ग्रन्थों का पाठ करते थे। हर डेरे में एक शानदार झंडा बहुत ऊंचे बांस में लहराता रहता था।’ हालांकि वह धर्मांतरण के एजेंडे में कामयाब नहीं हो सका। ईसाई मिशनरी कुंभ में अपना शिविर लगाते थे। तीर्थयात्रियों की सेवा के साथ-साथ वे धर्मप्रचार भी करते थे। हिंदू साधु-संत उनका विरोध कर रहे थे। प्रयागराज के क्षेत्रीय अभिलेखागार में 30 दिसंबर 1880 की एक चिट्ठी सहेजकर रखी गई है। इसमें कहा गया है कि ईसाई मिशनरियों को चौड़ी सड़क के किनारे मनमाफिक जगह दी जाए, जहां वे अपना शामियाना लगा सके। यह चिट्ठी पादरी जॉनस्टन ने इलाहाबाद के तब के जॉइंट मजिस्ट्रेट मिस्टर विंसन को लिखी थी। स्केच : संदीप पाल महाकुंभ से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... संतों ने चिमटे बजाकर कहा-मोदी को PM बनाओ: प्रधानमंत्री बनते ही कुंभ पहुंचीं इंदिरा; सोनिया का प्रोटोकॉल कोड था-पापा वन, पापा टू, पापा थ्री प्रयाग के कांग्रेस नेता अभय अवस्थी बताते हैं- ‘मेरे पुराने साथी सोनिया गांधी की सुरक्षा में लगे थे। उनके वायरलेस पर बार-बार एक मैसेज आ रहा था- पापा वन, पापा टू, पापा थ्री। मैंने उनसे पूछा कि ये क्या है? तब उन्होंने बताया कि ये सोनिया गांधी का प्रोटोकॉल कोड है। वो स्नान करने के बाद तीन जगहों पर जाएंगी। ये कोडवर्ड उन्हीं तीन जगहों के लिए हैं।’ पढ़िए पूरी खबर... नेहरू के लिए भगदड़ मची, 1000 लोग मारे गए:सैकड़ों शव जला दिए गए; फटे कपड़े में पहुंचे फोटोग्राफर ने चुपके से खींची तस्वीर साल 1954, आजाद भारत का पहला कुंभ इलाहाबाद यानी अब के प्रयागराज में लगा। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या थी। मेले में खबर फैली कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आ रहे हैं। उन्हें देखने के लिए भीड़ टूट पड़ी। जो एक बार गिरा, वो फिर उठ नहीं सका। एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए। सरकार ने कहा कि कोई हादसा नहीं हुआ, लेकिन एक फोटोग्राफर ने चुपके से तस्वीर खींच ली थी। अगले दिन अखबार में वो तस्वीर छप गई। पढ़िए पूरी खबर... नागा बनने के लिए 108 बार डुबकी, खुद का पिंडदान:पुरुषों की नस खींची जाती है; महिलाओं को देनी पड़ती है ब्रह्मचर्य की परीक्षा नागा साधु कोडवर्ड में बातें करते हैं। इसके पीछे दो वजह हैं। पहली- कोई फर्जी नागा इनके अखाड़े में शामिल नहीं हो पाए। दूसरी- मुगलों और अंग्रेजों के वक्त अपनी सूचनाएं गुप्त रखने के लिए यह कोड वर्ड में बात करते थे। धीरे-धीरे ये कोर्ड वर्ड इनकी भाषा बन गई। पढ़िए पूरी खबर...
हर सोमवार को छपने वाले दैनिक भास्कर के खास एडिशन ‘नो निगेटिव मंडे’ के आज 10 साल पूरे हो गए। भास्कर पिछले 10 सालों में 522 सोमवार को ऐसी सैकड़ों पॉजिटिव खबरें पब्लिश चुका है, जिससे हजारों लोगों की जिंदगी बदल गई। ये दुनिया का ऐसा पहला इनीशिएटिव है। पीएम मोदी इसकी तारीफ कर चुके हैं। ऐसी ही चुनिंदा कहानियों पर बनी दैनिक भास्कर की विशेष डॉक्यूमेंट्री देखने के लिए ऊपर थंबनेल पर क्लिक करिए…
‘एक दिन कचरे का ढेर ढह गया। मेरे पति के भाई उसमें दब गए। मेरी सास खूब रोईं, तब से ही बीमार हैं। हमने डर से FIR भी नहीं कराई। पुलिस आती तो काम रुक जाता, बस्ती भी उजाड़ देते। आज तक लाश नहीं मिली। मेरी 4 साल की बेटी भी पेट के इन्फेक्शन से मर गई।’ दिल्ली के गाजीपुर में दूर से ही जो कचरे का पहाड़ नजर आता है, उसी के पास बस्ती में रुखसाना रहती हैं। ये रुखसाना की कहानी है। जब वो ये सुना रही होती हैं तो उनकी सास रुकैया बस हमें देखती रहती हैं। लेकिन ये अकेली कहानी नहीं है। पास ही रहने वाली अजमीरा भी लैंडफिल साइट पर कचरा बीनती हैं। गंदगी में रहने की वजह से फेफड़ों में इंफेक्शन हो गया। सांस लेने में तकलीफ है। काम से कोई शिकायत नहीं। बस यहां सुविधाएं न मिलने से नाराज हैं। AAP विधायक से गुस्सा हैं, लेकिन ये भी नहीं चाहती कि BJP आए। कहती हैं, ‘BJP आई तो बस्ती उजाड़ देगी। हम कहां जाएंगे।’ दिल्ली में रोज 11 हजार टन कचरा निकलता है। ये कचरा 3 लैंडफिल साइट्स गाजीपुर, ओखला और भलस्वा में जाता है। सिर्फ गाजीपुर में 84 लाख टन कचरा और 3500 टन गंदा पानी जमा है। दिल्ली कचरे से बोझ से दबी जा रही है। इससे होने वाला पॉल्यूशन भी बड़ा मसला है, लेकिन विधानसभा चुनावों में ये कचरा और यहां रहने वाले लोगों की दिक्कतें कोई मुद्दा नहीं हैं। दिल्ली में 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज ‘हम भी दिल्ली’ के तीसरे एपिसोड में हम तीनों लैंडफिल साइट्स से प्रभावित दो तरह से किरदारों से मिले। इनके जरिए समझिए लैंडफिल साइट्स वाली कोंडली, बादली और ओखला विधानसभा सीट पर क्या चुनावी माहौल है। यहां रहने वाले लोगों के बीच ये कितना बड़ा चुनावी मुद्दा है। पॉलिटिकल पार्टीज से उनकी क्या उम्मीदें हैं। सबकी परेशानी की वजह कचरा, लेकिन शिकायतें अलग-अलगमोनू, अजमीरा और उनके जैसे लोगों की परेशानियां और उनके लिए चुनाव के मायने समझने हम उनकी बस्ती में पहुंचे। यहां एक तबका आसपास की कॉलोनियों में रहने वाला मिला, जो चाहते हैं कि उनके घर के सामने से कचरे का पहाड़ हट जाए। वे चाहते हैं कि इसे शहर से दूर ले जाना चाहिए। कहानी के दूसरे किरदार वो लोग हैं, जो इसी कचरे के ढेर पर जिंदगी गुजार रहे हैं। इनका घर कचरे से होने वाली कमाई से चलता है। उनकी परेशानियों की वजह भी यही कचरा है। वे फिर भी नहीं चाहते कि लैंडफिल साइट्स और उनकी बस्ती यहां से हटाई जाए। बस्ती के लोगों की बात…किरदार: रुखसानागंदे पानी से बेटी की जान गई, जेठ कूढ़े के ढेर में दबकर मरेसबसे पहले हम गाजीपुर लैंडफिल साइट पहुंचे। यहां कचरे का 65 मीटर ऊंचा पहाड़ है। ये दिल्ली की मशहूर कुतुबमीनार से सिर्फ 7 मीटर कम है। इस पर चढ़ने में करीब एक घंटा लगता है। यहां की आबोहवा में भयंकर बदबू और जहरीली गैस घुली हुई है। दोपहर 12 बजे से लोग यहां कचरा बीनने आने लगते हैं। चेहरे पर न मास्क, न शील्ड या न ही किसी के हाथ में दस्ताने। यहां हमारी मुलाकात रुखसाना से हुई। वे इस कचरे के पहाड़ से सिर्फ 100 मीटर दूर झुग्गी में रहती है। हम उनसे बात कर ही रहे थे, तभी प्लांट में काम कर रहे लोग वहां आ गए और वीडियो बनाने से रोक दिया। रुखसाना हमें अपने घर ले गईं। पति पास में ही गार्बेज प्लांट में सफाई कर्मचारी है। घर में चार बच्चे और सास रुकैया हैं। पिछले साल रुकैया के बड़े बेटे अंसार की कचरे के ढेर में दबने से मौत हो गई। तभी से वे बीमार रहती हैं। रुखसाना के घर के एक कमरे में कचरे की बोरियां भी रखी हैं और चूल्हा भी। वे बताती हैं, 'हम कचरा घर ले आते हैं। यहीं प्लास्टिक, डिब्बे, बोतल और इलेक्ट्रॉनिक सामान अलग-अलग करते हैं। कुछ सामान बोरियां में भरकर घर पर भी रखते हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर बेच सकें।’ रुखसाना का दिन सुबह 6 बजे से शुरू हो जाता है। वे बताती हैं, ‘यहां पीने का पानी नहीं है। थोड़ी दूर से लाना पड़ता है। बाकी कामों के लिए पड़ोसी से पानी मांग लेते हैं। उनके घर में बोरिंग है। इसके लिए हर महीने 1200 रुपए देते हैं।’ ‘पानी इतना खारा है कि आंखों में जलन होती है। शरीर पर खुजली होती है। पिछले साल मेरे पूरे परिवार को एलर्जी हो गई थी। शरीर पर छोटे दाने निकल आए थे। डॉक्टर ने बताया कि ये गंदा पानी पीने की वजह से हुआ है। पानी में सफेद रंग का कुछ निकलता था। कीड़े भी आते थे। अब पानी कपड़े से छानकर लाती हूं।' इसी गंदे पानी की वजह से 3 साल पहले रुखसाना की बेटी की मौत हो गई थी। वे बताती हैं, '2022 में बेटी को डबल निमोनिया हो गया था। वो सिर्फ 4 साल की थी। कलावती अस्पताल में उसका इलाज कराया। पानी की वजह से पेट में इंफेक्शन भी हो गया था। हम उसे नहीं बचा सके।' जेठ अंसार की मौत के बारे में पूछने पर रुखसाना बताती हैं, ‘कूड़े के ढेर में दब गए थे। आज तक डेडबॉडी नहीं मिली। हम FIR लिखवाना चाहते थे, बस्ती के लोगों ने रोक दिया। कहने लगे कि अगर शिकायत करेंगे तो यहां काम बंद हो जाएगा। बस्ती खाली करा देंगे।’ केजरीवाल ने फ्री बिजली दी, BJP आई तो हमें उजाड़ देगीइतनी तकलीफों के बीच भी रुखसाना को दिल्ली सरकार से कोई शिकायत नहीं। वे कहती हैं, 'कुछ दिन पहले विधायक आए थे। यहां काम पहले से अच्छा हो गया है। बिजली फ्री हो गई है। बस फ्री मिलती है। मां से मिलने फ्री में चले जाते हैं। अरविंद केजरीवाल ने सड़क बनवाने का वादा किया है। वो पानी की लाइन डालेंगे। नाली का काम शुरू हो गया है।’ किरदार: अजमीरान साफ पानी, न टॉयलेट, सिर्फ बीमारियां और लाचारी मिलीरुखसाना के घर से कुछ दूर अजमीरा रहती हैं। वे भी गाजीपुर लैंडफिल साइट पर कचरा बीनती हैं। परिवार में तीन बच्चे हैं। अजमीरा बताती हैं, 'कचरे के पहाड़ तक पहुंचने में एक घंटा लग जाता है। वहां तक जाए बिना काम नहीं होता क्योंकि ताजा कचरा पहाड़ पर सबसे ऊपर मिलता है। इसके बाद दिनभर गंदगी के बीच रहते हैं। खांसी, गले में खराश और कभी-कभी सीने में दर्द पीछा नहीं छोड़ता।’ ’20 दिन पहले की बात है। मुझे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। फिर एक रात सीने में भी दर्द होने लगा। एक्स-रे कराया, तो फेफड़ों में इंफेक्शन का पता चला। डॉक्टर ने कुछ दिन आराम करने को कहा। अब अगर आराम करेंगे तो बच्चों का पेट कौन भरेगा। अब मैं दवा खाकर काम पर जाती हूं।' 'महीने के 4 से 6 हजार रूपए कमाते हैं। उसी में मुश्किल से गुजारा होता है। झुग्गियों में सिर्फ एक टॉयलेट है, वो भी 500 मीटर दूर है। वहां रात में जाना सेफ नहीं होता है।’ BJP की सरकार नहीं चाहिए, वो आए तो झुग्गी हटा देंगे चुनाव के जिक्र होते ही अजमीरा के मन की बात सामने आ जाती है। वो कहती हैं, 'नेताओं के वादे हवा में उड़ जाते हैं। एक बार सड़क बनी थी, लेकिन अब वो भी टूट चुकी है। विधायक कुलदीप कुमार ने जीतने के बाद कभी झुग्गियों की सुध नहीं ली। BJP से तो हमें पहले ही उम्मीद नहीं है। वो सिर्फ झुग्गी हटाने का काम करती है।' किरदार: लाड़लीकचरा और गंदगी से परेशान, बीमारी की वजह से काम छूटा इस झुग्गी में बिहार, यूपी और पश्चिम बंगाल से आए कई लोग रहते हैं। कोलकाता से आकर यहां बस गईं लाड़ली कहती हैं, 'बिजली की कोई परेशानी नहीं है। सबके घर में मीटर लगे हैं। जब से आई हूं, तबसे यहां कचरे का पहाड़ देख रही हूं। इसी से कबाड़ बीनकर यहां कई लोगों के घर चल रहे हैं। मैं भी पहले कचरा बीनती थी। अब बीमारी की वजह से नहीं जाती हूं।' किरदार: रीता देवीकीचड़ में रहते 10 साल हो गए, फिर भी AAP सरकार ठीक हैआगे बढ़े तो रीता देवी घर के बाहर भरा गंदा पानी हटाती मिलीं। वो 10 साल पहले बिहार के दरभंगा से आकर यहां बसी थीं। दिल्ली की ही वोटर हैं। पति रिक्शा चलाते हैं। रीता कहती हैं, ‘यहां पानी और कीचड़ बहुत ज्यादा है। आपको तो यहां तक आने में दिक्कत हुई। हम तो इसी में रहते हैं।‘ ‘बर्तन अंदर धोती हूं, तो पानी बाहर आ जाता है। यहां नाली नहीं बनी है। पानी न हटाऊं तो झुग्गी वाले झगड़ा करते हैं। इसी गंदगी में सब काम करना पड़ता है। 10 साल पहले जब मैं यहां आई थी, तब हालात बेहतर थे। अब यहां भीड़ बढ़ गई है।‘ चुनावी माहौल पूछते ही रीता कहती हैं, ‘अरविंद केजरीवाल को इतने साल में हमारी याद नहीं आई। अब चुनाव के वक्त सड़क बनवाने का वादा करके गए हैं। फिर भी BJP से AAP बेहतर है। बिजली फ्री है। महिलाओं को 2100 रुपए देने के लिए फॉर्म भरवा लिया है। झुग्गी भी नहीं हटाएंगे। BJP आई तो हमें डर है कि हमारी झुग्गी हटा दी जाएगी।’ 2024 तक खत्म होना था कूड़े का पहाड़भलस्वा, ओखला और गाजीपुर की लैंडफिल साइट का कैपेसिटी से ज्यादा इस्तेमाल कर लिया गया है। दिल्ली में म्यूनिसिपल एरिया से रोजाना 11 हजार टन कचरा निकलता है। दिल्ली सरकार ने बीते दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि रोज सिर्फ 8000 टन कचरा ही ट्रीट हो पाता है। लिहाजा रोज 3000 टन कचरा डंप कर दिया जाता है। 2020 में विधानसभा चुनाव के वक्त गाजीपुर में कचरे के पहाड़ की ऊंचाई 65 मीटर तक पहुंच गई थी। दिल्ली की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी गाजीपुर लैंडफिल 2002 में ही बंद होनी थी। दूसरी जगह न होने से यहां कचरा डंप करना जारी रहा। 2019 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने तीनों डंपिंग साइट्स हटाना शुरू करने का आदेश दिया था। दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने ओखला में दिसंबर 2023, भलस्वा में मार्च 2024 और गाजीपुर में दिसंबर 2024 तक कचरे का पहाड़ खत्म करने का टारगेट रखा था। तय समय पर कचरा नहीं हटाया जा सका और अब इसे बंद करने की तारीख बढ़ाकर दिसंबर 2028 कर दी गई है। BJP विधानसभा चुनाव में इसे लेकर AAP को घेर रही है। अब लैंडफिल साइट्स के पास बसे कॉलोनी वालों की बात…बारिश में बदबू से यहां जीना मुश्किल, बस ये कचरा हट जाएभलस्वा लैंडफिल साइट के पास ही स्वामी श्रद्धानंद कॉलोनी है। यहां रहने वाले जेपी मिश्रा के लिए चुनाव में कचरा मुद्दा तो नहीं है, लेकिन वो चाहते हैं कि इसे हटाया जाए। वे कहते हैं, ‘मैं पिछले 20 साल से ये कचरा देख रहा हूं। हम यहां रहने आए थे तब कचरा था, लेकिन समतल जमीन हुआ करती थी। फिर ये बढ़ता ही गया और पहाड़ खड़ा हो गया।‘ ‘यहां का पानी बहुत गंदा है। सड़क ठीक नहीं है। बारिश में तो बदबू से सांस लेना मुश्किल हो जाता है। तेज हवा चलती है कि सूखा कचरा उड़कर घर में आ जाता है। पानी-जमीन सब पॉल्यूडेट हैं। यहां रहने वालों को तरह-तरह की बीमारियां हो रही हैं। यहां बहुत मुश्किलों में जी रहे हैं। ‘हालांकि कचरा पहले से कम हुआ है। केजरीवाल सरकार ने यहां काम किया है, लेकिन अब भी बड़ा हिस्सा हटना बाकी है। यहां सरकार चाहे किसी की भी आए, अभी इसे हटने में 3 से 4 साल लग जाएंगे।‘ यहीं रहने वाले मोनू कहते हैं, ‘हम बचपन से यहां कचरे का पहाड़ देख रहे हैं। इसे हटाना इतना आसान नहीं है। बहुत टाइम लगेगा। मेरे ससुराल वाले जब घर आए थे, तब वो भी कह रहे थे कि ये कहां रह रहे हो। हम सब चाहते हैं कि यहां से कचरा पूरी तरह से हटे और यहां कॉलोनी बनाई जाए। कचरा ही नहीं यहां इसके अलावा भी दिक्कतें हैं। यहां नाली, सीवर और गंदे पानी की समस्या है। बारिश में हर तरफ पानी भर जाता है।‘ भलस्वा में ही राजकुमार की दुकान कचरे के पहाड़ के ठीक सामने हैं। वो कहते हैं, ‘हम इसे तब से देख रहे हैं, जब यहां कुछ नहीं था। AAP के अजेश यादव दो बार से चुनाव जीत रहे हैं, लेकिन कोई विकास नहीं किया। 10 साल से सब उसी हाल में है।‘ क्या चुनाव में कचरे का पहाड़ मुद्दा है? राजकुमार कहते है, ‘चुनाव में असली मुद्दा तो पानी, सड़क और सफाई है। यहां पानी की निकासी का कोई सिस्टम नहीं है। कचरा भी मुद्दा है, लेकिन इसे हटाना अब सरकार के लिए चैलेंज हो गया है। इसे हटा पाना आसान नहीं है। ये हट जाएगा, तो यहां के लोगों की सेहत बेहतर हो जाएगी।’ अब बात पॉलिटिकल पार्टीज की…BJP: AAP कचरा हटाने का वादा कर MCD में आई, किया कुछ नहींBJP प्रवक्ता विष्णु मित्तल कहते हैं, ‘दिल्ली के MCD चुनाव में अरविंद केजरीवाल सबसे पहले कचरे के पहाड़ पर फोटो खिंचवाने गए थे। तब उन्होंने कहा था कि अगर हम MCD में आए, तो एक साल में इसे हटवाएंगे। MCD चुनाव जीते 2 साल से ज्यादा हो गए, लेकिन कुछ नहीं हआ। MCD में AAP आई है, तब से कूड़े के ढेर बढ़ गए हैं। केजरीवाल को कच्ची बस्तियों में जाकर देखना चाहिए।’ AAP: BJP ने 15 साल कुछ नहीं किया, हम कचरे का पहाड़ हटाएंगे आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता जय रौनक ठाकुर कहते हैं, ‘दिल्ली को साफ रखने की जिम्मेदारी नगर निगम की है। 15 साल MCD में BJP का शासन रहा। 2022 में जनता ने हमारी पार्टी को चुना। पूर्व CM अरविंद केजरीवाल का प्लान है कि नया कचरा वहां तक न पहुंचे। लेटेस्ट स्टोरेज वेस्ट मैनेजमेंट प्लान के तहत इसका निवारण किया जाए। दिल्ली को कचरे के पहाड़ों से निजात मिलने वाली है।‘ .................................. हम भी दिल्ली सीरीज की पहली और दूसरी स्टोरी...1. क्या ‘वोट जिहाद’ करने वाले हैं बांग्लादेशी और रोहिंग्या, हिंदू कह रहे- इन्हें हटाना जरूरी रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिए, दिल्ली चुनाव में बड़ा मुद्दा हैं। BJP नेता कह रहे हैं कि AAP अपने वोट बैंक के लिए इन्हें बसा रही है। वहीं AAP लीडर्स का कहना है कि घुसपैठियों के बहाने BJP यूपी से आए लोगों को टारगेट कर रही है। जिन रोहिंग्या और बांग्लादेशियों का नाम लिया जा रहा है, वे क्या कह रहे हैं, पढ़िए पूरी रिपोर्ट... 2. झुग्गियों के लोग बोले- केजरीवाल ने बिजली-पानी-दवा फ्री किए, वही जीतेंगे दिल्ली की सर्द सुबह में चूल्हे पर हाथ सेंक रहीं वनीता को सरकार से बहुत शिकायतें हैं। 60 साल से ज्यादा उम्र हो गई, लेकिन बुजुर्गों वाली पेंशन नहीं मिलती। पीने का पानी लेने दूसरी कॉलोनी में जाना पड़ता है। फिर भी उन्हें अरविंद केजरीवाल का काम पसंद है। वनीता की तरह की दिल्ली की झुग्गियों में रह रहे 3 लाख परिवारों की कहानी हैं। बाकी परिवारों की क्या शिकायतें हैं, पढ़िए पूरी रिपोर्ट...
हमास के आतंकियों ने तीन महिलाओं को छोड़ा, तो इजरायल ने भारत को शुक्रिया क्यों कहा?
Ceasefire in Gaza:गाजा में हमास और इजरायल के बीच सीजफायर लागू हो गया है. हमास ने तीन बंधकों को भी छोड़ दिया है. दोनों पक्षों के बीच युद्ध विराम समझौता 15 महीने के संघर्ष के बाद हुआ है. सीजफायर होने के बाद इजरायल ने भारत का भी शुक्रिया अदा किया.
Bangladesh and Saif Ali Khan:बांग्लादेश में तख्तापलट और सैफ पर हमले के बीच एक और गजब का संयोग दिखा है. 6 महीने पहले ही तख्तापलट के बाद यूनुस सरकार गठित हुए और बताया जा रहा है कि सैफ पर हमला करने वाला शहजाद भी पिछले 6 महीने से मुंबई में रह रहा था.
Joe Biden: बतौर राष्ट्रपति अपना आखिरी दिन कहां बिता रहे जो बाइडन? चुनी ये खास जगह
Joe Biden Last day as President:अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने कार्यकाल का अंतिम दिन साउथ कैरोलिना में बिताने का फैसला किया है. यह राज्य बाइडन के राजनीतिक सफर में बेहद खास महत्व रखता है.
हमास के चंगुल से छूटे तीन बंधक पहुंचे इजरायल, उधर अमन की खबर से गाजा लौटने लगे लाखों फलस्तीनी
Gaza War:फलस्तीनी ग्रुप और इजरायल बीच रविवार को संघर्ष विराम लागू होने के बाद हमास ने तीन बंधकों को छोड़ दिया है. तीनों को लेकर रेड क्रॉस का काफिला इजरायल पहुंच गया है. उधर, अमन की खबर सुनकर लाखों बेघर अपने घर की तरफ लौटने लगे हैं.
इस देश में जेल की सलाखों के पीछे जाने को तरस रहे बुजुर्ग, बेहद हैरान करने वाली है वजह?
Japan Elderly:जापान की सबसे बड़ी महिला जेल के अंदर का नजारा किसी नर्सिंग होम जैसा लगता है. झुकी हुई कमरें, झुर्रियों से भरे हाथ और सहारे से चलती बुजुर्ग महिलाएं. कर्मचारियों की मदद से ये महिलाएं नहाती हैं.. खाना खाती हैं और अपनी दवाइयां लेती हैं.
Donald Trump Inauguration LIVE Updates:परंपराओं के मुताबिक 20 जनवरी यानी अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप की शपथ ग्रहण की शुभ घड़ी आ गई है. सुपरपावर देश के राष्ट्रपति का चुनाव और शपथ ग्रहण दोनों राजा-महाराजा के राज्याभिषेक जैसा होता है, जो कई दिन चलता है. इनॉग्रेशन में अब तक क्या-क्या हो चुका है और आयोजन कैसेआगेबढ़ेगा, आइए जानते हैं.
अफ्रीका के इस देश में बड़ी अजीब परंपरा, महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग है भाषा
Nigeria: नाइजीरिया के एक गांव में अनोखी परंपरा देखी जाती है, जहां पुरुष और महिलाएं अलग-अलग भाषा बोलते हैं. इस गांव में बच्चे पहले महिलाओं की भाषा बोलते हैं और फिर बड़े होने पर पुरुषों की भाषा बोलने लगते हैं.
FTA: ओमान के साथ बातचीत समाप्त, भारत ने 100 से ज्यादा उत्पादों पर नहीं मांगी रियायत?
FTA:भारत और ओमान के बीच एफटीए ( Free Trade Agreement ) पर बातचीतसमाप्त हो गई है. ओमान के साथ प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) में भारत शराब और सिगरेट जैसे 100 से ज्यादा उत्पाद श्रेणियों पर सीमा शुल्क रियायत की मांग नहीं कर रहा है.
हॉलीवुड स्टार ब्रैड पिट बन महिला के साथ की करोड़ों की ठगी, अब असली एक्टर का आया रिएक्शन
Cyber Fraud: हाल ही में एक फ्रेंच महिला ने अपने साथ हुआ एक किस्सा शेयर किया था, जिसमें उन्होंने बताया था कि एक ठग ने हॉलीवुड एक्टर बॅैड पिट बनकर उनके साथ ठगी की. वहीं अब मामले को लेकर खुद एक्टर की ओर से एक बयान सामने आया है.
Los Angeles Wildfire: कैलिफोर्निया और लॉस एंजिल्स में पिछले कुछ दिनों से फैली आग ने विकराल रूप लिया है. इस आग में पासाडेना के फायर इंजीनियर की खोई हुई वेडिंग रिंग मिली है, जिसे वापस पाकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा.
290 रुपये दो, काम की एक्टिंग करो और फ्री में लंच खाओ, बेरोजगारों के लिए कंपनी लाई अनोखा ऑफर
China:चीन की एक कंपनी देश के बेरोजगार लोगों के लिए एक खास ऑफर लेकर आई है. इस ऑफर के तहत नौकरी से निकाल दिए जाने वाले लोगों को फेक वर्कस्पेस मिलेगा. इससे उन्हें अपने घर-परिवार में अपनी इस स्थिति को छुपाने में मदद मिलेगी.
हमास के लिए धरती पर ही जहन्नुम बना देंगे ट्रंप? शपथ में कुछ ही घंटे बाकी और अब तक नहीं रुकी जंग
Israel hamas ceasefire news: इजरायल और हमास के बीच युद्ध विराम समझौता अब तक जमीनी तौर पर लागू नहीं हो पाया है. इजरायल दनादन बमबारी कर रहा है और गाजा में मौतों का सिलसिला जरूरी है.
हम ट्रंप के आगे नहीं झुकेंगे...शपथ ग्रहण से पहले वॉशिंगटन डीसी की सड़कों पर उतरे हजारों लोग
Protest Against Trump: डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी, सोमवार को अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने जा रहे हैं. लेकिन उनकी नीतियों का विरोध अभी से शुरू हो गया है. वॉशिंगटन डीसी में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन भी हो रहा है.
अमेरिका में नया राष्ट्रपति 20 जनवरी को ही क्यों लेता है शपथ, क्या बेहद 'शुभ' है ये तारीख?
Trump Oath Ceremony: अमेरिका में हर 4 साल में नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव होते हैं और 20 जनवरी को नया राष्ट्रपति शपथ लेता है. क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों और कब से है?
Spain: स्पेन में स्की लिफ्ट गिरने से कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. घायलों को इलाज के लिए तुरंत अस्पताल भेजा गया. हादसे को लेकर स्पेन के राष्ट्रपति ने भी दुख व्यक्त किया है. हादसे में किसी की जान जाने की कोई खबर सामने नहीं आई है.
देखी नहीं होगी ऐसी तबाही, जब समंदर के बीच एक हफ्ते धधकती रही आग, फिर...
X-Press Pearl disaster: समुद्र में जहाज महीनों तक सफर करते रहते हैं और कई बार दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते हैं. समुद्री जहाजों की भीषण दुर्घटनाओं में एक एक्सप्रेस पर्ल शिप एक्सीडेंट ऐसा है, जिसमें समंदर के बीच कई दिनों तक आग धधकती रही थी.
खत्म, टाटा, बाय-बाय...अमेरिका में प्लेस्टोर से टिकटॉक गया; अब ट्रंप बोले- बस इतना वक्त दे सकता हूं
TikTok US Ban:अमेरिका में TikTok पर प्रतिबंध लगाने वाला संघीय कानून प्रभावी होने से कुछ समय पहले शनिवार शाम इस ऐप को ऐप के स्टोर से हटा दिया गया है. एक कानून के तहत ऐप्पल प्ले स्टोर और गूगल प्ले स्टोर पर ऐप को पेश करने पर रोक लगा दी गई है.
Jeju Air Crash: जेजु एयर लाइन के प्लेन क्रैश ने दक्षिण कोरिया को बड़ा झटका दिया. अभी देश इतने लोगों की मौतों से उबरा भी नहीं है और एक कोरियाई कॉफी चेन ने शॉप मालिक ने अजीब बयान देकर विवाद भड़का दिया है.
6 बार दिवालिया फिर रियलिटी शो करके पाई खोई इज्जत, बिटकॉइन से जूते तक सब ट्रंप के नाम पर
Trump Coin News: दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बनने जा रहे डोनाल्ड ट्रंप के नए कॉइन ने क्रिप्टो मार्केट में तहलका मचा दिया है. लेकिन एक वक्त ऐसा भी था तब ट्रंप को बार-बार दिवालिया होने का आवेदन देना पड़ा. जानिए ट्रंप के जीवन के कुछ बेहद रोचक किस्से.
शपथ लेने से पहले ही खतरे में ट्रंप का सबसे बड़ा सपना, द ग्रेट अमेरिका की राह में बनेगा रोड़ा
Trump Inauguration Date: डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी को अपना नया कार्यकाल शुरू करने जा रहे हैं और उससे पहले ही उनके 2 सपने खतरे में पड़ गए हैं. इसके पीछे वजह है लॉस एंजेलिस में लगी भीषण आग.
...तो फिर से शुरू करेंगे युद्ध, सीजफायर डील के बीच सख्त हुए नेतन्याहू, हमास को दी खुली धमकी
Israel Hamas Deal: हमास के साथ इजराइल का बहुप्रतीक्षित युद्ध विराम समझौता भले ही ट्रंप के शपथ लेने से पहले हो गया है लेकिन इजराइली पीएम ने एक शर्त रख दी. साथ ही फिर से युद्ध शुरू करने की धमकी भी दे दी है.
'आप रविवार को घर पर बैठकर क्या करते हैं? आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक घूर सकते हैं?’ 'मुझे खेद है कि मैं आपसे रविवार को काम नहीं करवा पा रहा हूं। अगर मैं ऐसा कर पाऊं, तो मुझे ज्यादा खुशी होगी, क्योंकि मैं रविवार को काम करता हूं।' ये कहना है लार्सन एंड टुब्रो यानी LT के मैनेजिंग डायरेक्टर और चेयरमैन एस. एन. सुब्रह्मण्यन का। सुब्रह्मण्यन ने अपने एंप्लॉइज को मीटिंग के दौरान एक हफ्ते में 90 घंटे काम करने की सलाह दी। कंपनी मीटिंग में कर्मचारी ने सुब्रह्मण्यन से पूछा कि शनिवार को काम करने की क्या जरूरत है? इस पर सुब्रह्मण्यन ने कहा मुझे खेद है कि मैं आपको रविवार को काम करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। अगर मैं आपको रविवार को काम करने के लिए बाध्य कर सक सकूं, तो मुझे अधिक खुशी होगी, क्योंकि मैं रविवार को काम करता हूं। इसके बाद से सुब्रह्मण्यन चर्चा में बने हुए हैं। देश के इंफ्रा प्रोजेक्ट्स में अहम भूमिका निभाने वाली लार्सन एंड टुब्रो एक भारतीय मल्टीनेशनल कंपनी है। ये अपने बेहतरीन आर्किटेक्ट डिजाइन के लिए जानी जाती है। LT दुनियाभर के 50 से ज्यादा देशों में काम करती है। आज मेगा एंपायर में कहानी इसी LT ग्रुप के बारे में… एक कमरे से शुरू हुआ था LT ग्रुपसाल 1934 में डेनमार्क की कंपनी ने सिविल इंजीनियर सोरेन क्रिस्टियन टुब्रो और केमिकल इंजीनियर हेनिंग होल्क लार्सन को सीमेंट कंपनी के इंस्टॉलेशन और मर्जर के सिलसिले में भारत भेजा था। दरअसल, लार्सन एंड टुब्रो दोनों कॉलेज फ्रेंड्स थे। जब 1939 में सेकेंड वर्ल्ड वॉर शुरू हुई तो डेनमार्क पर जर्मनी का कब्जा हो गया और ये दोनों दोस्त वापस नहीं लौट सके। भारत में ही रुक कर बिजनेस स्टार्ट करने का फैसला लिया। उनके पास ज्यादा पैसे नहीं बचे थे, इसलिए मुंबई में एक छोटे से कमरे से उन्होंने एक पार्टनरशिप फर्म के रूप में LT की शुरुआत की। इम्पोर्ट के बिजनेस से की शुरुआतभारत में उस समय अंग्रेजों का शासन था। लार्सन और टुब्रो ने भारत की जरूरतों को समझा, जिससे उन्हें बिजनेस कैसे करना है ये पता लगा। वे दूसरे देशों से भारत के लोगों की जरूरत के हिसाब से सामान इम्पोर्ट करने लगे। डेनमार्क से भी डेयरी से संबंधित उत्पाद मंगा कर भारत में सप्लाई करते थे। 1940 में जर्मनी ने डेनमार्क पर आक्रमण कर इम्पोर्ट पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे उनका व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ। इसके बाद दोनों ने अपनी एक छोटी सी वर्कशॉप शुरू करने का फैसला किया। युद्ध के समय जहाजों की मरम्मत का काम कियासेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान काफी सारे जहाज डैमेज हो रहे थे। इन्हें मरम्मत की जरूरत थी। लार्सन और टुब्रो को इसमें भी एक मौका दिखा। उन्होंने अपनी वर्कशॉप में जहाजों की मरम्मत करना शुरू कर दिया। टाटा ग्रुप ने दिया था पहला बड़ा ऑर्डरबात 1940 की है। टाटा ने एक जर्मन कंपनी को सोडा ऐश यानी वॉशिंग सोडा प्लांट लगाने का ऑर्डर दिया था। वर्ल्ड वॉर के कारण जर्मन इंजीनियर्स ने इस प्रोजेक्ट को छोड़ दिया। इसके बाद टाटा ने ये काम LT को सौंप दिया। यह LT के लिए एक बड़ा मौका था और उन्होंने इसका पूरा फायदा उठाया। क्वालिटी के साथ कंपनी ने प्रोजेक्ट को समय से पहले ही पूरा कर दिया। पूरे देश में LT की तारीफ होने लगी। उन्हें और भी प्रोजेक्ट मिलने लगे। 1946 में ये प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनी और 1950 में पब्लिक कंपनी बन गई। हालांकि LT ने सिविल कंस्ट्रक्शन को प्राथमिकता पर रखा। कंपनी ने इंजीनियरिंग, कंस्ट्रक्शन एंड कॉन्ट्रैक्ट यानी ECC के नाम से एक अलग सब्सिडियरी बना दी, जो आज भी LT की मेन कंस्ट्रक्शन डिवीजन है। पूरा पेमेंट न देने पर डायरेक्टर को दे दिया था कोर्ट का नोटिस ECC के बनाए गए पहले पुल की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। दरअसल, 1957 में अमेरिकन प्रोड्यूसर सैम स्पीगल की फिल्म आई थी ‘The Bridge on the River Kwai’। उस फिल्म में दिखाए गए लकड़ी के पुल को बनाने का कॉन्ट्रैक्ट LT को मिला था। जिसे बनाने में लगभग आठ महीने का समय लगा और इस पुल को डायरेक्टर डेविड लीन की टीम ने सिर्फ 30 सेकेंड में उड़ा दिया था। शुरुआत में इस पुल को बनाने का बजट 8 लाख रुपए था, लेकिन इस पर 16 लाख रुपए खर्च हो गए। जब सैम स्पीगल ने एक्स्ट्रा पैसे का पेमेंट करने से मना कर दिया, तब टूब्रो ने उन्हें कहा कि बिना पेमेंट किए आप क्लाइमैक्स सीन के लिए पुल को उड़ा नहीं पाएंगे। कंपनी ने डायरेक्टर को कोर्ट का स्टे ऑर्डर पकड़ा दिया था। कुछ दिन तक शूटिंग रुकी रही और अंत में हार मान कर सैम स्पीगल ने पूरा पेमेंट किया। इस फिल्म ने ऑस्कर अवॉर्ड भी जीता और यह 1957 की हाईएस्ट ग्रॉसिंग फिल्म भी बनी। 55 एकड़ जंगल खरीद बनाया इंडस्ट्रियल हब आजादी के बाद कंपनी ने अपना एक्सपेंशन करते हुए कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में भी अपना ऑफिस शुरू कर दिया। 1950 में मुंबई के पवई इलाके में सरकार ने IIT मुंबई शुरू करने का फैसला लिया तो LT ने भी आसपास खाली पड़ा 55 एकड़ जंगल खरीद लिया। इसके चारों तरफ दलदल और कूड़े का अंबार था। LT ने उस एरिया को डेवलप कर इंडस्ट्रियल हब बना दिया, जिससे सैकड़ों लोगों को रोजगार मिला। 1950 में ही LT एक पब्लिक कंपनी बन गई और कुछ दिनों बाद मुंबई ऑफिस को बलार्ड एस्टेट के ICI हाउस में शिफ्ट कर दिया गया, जिसे बाद में LT ने ही खरीद कर अपना हेडक्वार्टर LT हाउस बना दिया। न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने में की थी मदद 1965 में डॉ. होमी भाभा ने लार्सन और टुब्रो को न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने में मदद करने के लिए कहा। हालांकि उस दौर में न्यूक्लियर रिएक्टर बनाना घाटे का सौदा था, लेकिन देश की जरूरत को देखते हुए LT ने न्यूक्लियर रिएक्टर बनाया। 70 के दशक में विक्रम साराभाई ने LT को इसरो के साथ काम करने का मौका दिया। इस तरह LT देश की न्यूक्लियर और स्पेस प्रोग्राम के साथ भी जुड़ गई और 1985 तक LT, DRDO के साथ डिफेंस इक्विपमेंट के डिजाइन और डेवलपमेंट पर भी काम करने लगी। आज वह देश के लिए कई तरह के डिफेंस वेपंस, मिसाइल सिस्टम, कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम, इंजीनियरिंग सिस्टम और सबमरीन बना रही है। धीरुभाई अंबानी चाहते थे कंपनी पर होल्ड90 के दशक में LT, रिलायंस के हाथों में जाते-जाते रह गई थी। कंपनी के उस दौर के सीईओ एएम नाइक के मुताबिक धीरूभाई अंबानी ने अपने दोनों बेटों मुकेश और अनिल अंबानी को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में जगह भी दिला दी थी। धीरे-धीरे कंपनी में अंबानी की हिस्सेदारी बढ़कर लगभग 19% तक हो गई। LT की सबसे बड़ी शेयरहोल्डर एलआईसी और सरकार के इंटरफियर के बाद अंबानी को LT से बाहर जाना पड़ा और धीरूभाई अंबानी के हाथ से यह मौका निकल गया। बिड़ला ग्रुप ने भी किया था LT पर टेकओवर का प्रयास रिलायंस ने जब अपनी हिस्सेदारी कम की तो आदित्य बिड़ला ग्रुप ने उस हिस्सेदारी को खरीद लिया। ऐसे में एएम नाइक ने अपने कर्मचारियों को समझाया कि यदि हम सब मिलकर कंपनी के शेयर खरीद लें तो कोई बाहरी कंपनी हमें खरीदने की कोशिश नहीं करेगी। उनकी बात का असर हुआ और LT एम्प्लॉइज ट्रस्ट ने बिड़ला की पूरी हिस्सेदारी खरीद ली। इसके बाद LT एम्प्लॉइज ट्रस्ट और बिड़ला के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत LT ने अपना सीमेंट बिजनेस यानी कि अल्ट्राटेक सीमेंट बिड़ला को सौंप दिया। रिसर्च-श्रेयांश गौर ----------------------- अन्य मेगा एंपायर भी पढ़िए... 1.मेगा एंपायर-साइकिल रिपेयर की दुकान से शुरू हुई MG MOTOR:6 बार बिकी, आज 40 हजार करोड़ की कंपनी, 80 देशों में कारोबार दुनिया के सबसे बड़े कार ब्रांड में से एक MG Motors की शुरुआत साइकिल की दुकान से हुई थी। इसकी शुरुआत सिसिल किम्बर ने मोरिस गैराज से 1924 में की थी। आज एमजी मोटर 80 से ज्यादा देशों में कारोबार कर रहा है। पूरी खबर पढ़ें... 2. मेगा एंपायर-कैंडी की शॉप से शुरू हुई चॉकलेट कंपनी हर्शेज:दुकान के लिए घर गिरवी रखा, आज 95 हजार करोड़ रेवेन्यू हर्शे शुरुआत अमेरिका के मिल्टन हर्शे ने की थी, जिन्होंने 12 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ दी थी। ये कंपनी आज 85 देशों में कारोबार करती है और सालाना 93 हजार करोड़ से भी ज्यादा का रेवेन्यू जनरेट करती है। पूरी खबर पढ़िए... 3. मेगा एंपायर-2600 रुपए से शुरू हुई थी ZARA:आज 2.32 लाख करोड़ की सेल; 96 देशों में 2 हजार स्टोर्स आजकल ज्यादातर मॉल में कपड़ों का चमकता-दमकता शोरूम जारा जरूर दिखता है। जारा एक स्पैनिश फैशन ब्रांड है। जिसकी खासियत है कि हर 15 दिन में इसके कलेक्शन बदल जाते हैं। यानी जो कपड़े आप जारा के शोरूम में आज देख कर आए हैं, वो अगले 15 दिन में आपको स्टोर पर नहीं मिलेंगे। जबकि दूसरे ब्रांड का लेटेस्ट कलेक्शन लॉन्च होने में कम से कम 6 महीने का समय लगता है। इस वजह से जारा सबसे बड़े फास्ट फैशन ब्रांड में से एक है। पूरी खबर पढ़ें...
मेरे गुरु ने मुझे नाम दिया है स्वामी अरविंदानंद गिरी महाराज। मैं आवाह्न अखाड़ा, चौदह मढ़ी, भैरों परिवार से हूं। जैसे आपके परिवार होते हैं वैसे संतों के भी परिवार होते हैं। जैसे आम लोगों में समुदाय होते हैं वैसे ही हमारे भी गिरी, पुरी, भारती और सरस्वती समुदाय होते हैं। मैं गिरी नामे में आता हूं। आज से लगभग 25 साल पुरानी बात है। मेरी आखिरी नौकरी जापान में थी। मैकेनिकल इंजीनियर था। प्रोडक्ट ब्रांडिंग का काम करता था। जीवन बहुत अच्छा चल रहा था। सब कुछ था मेरे पास। सुखों का संसार था। मैं देश विदेश में अपनी नौकरी के संबंध में घूमा करता था। आज खाना इस देश में तो दूसरे दिन किसी और देश में। कभी अमेरिका, कभी इंग्लैंड, कभी साउथ अफ्रीका। मैंने बड़ी-बड़ी कंपनी में काम किया है। एक दिन मन में कुछ ऐसा आया कि सबकुछ छोड़कर बाबा बन गया। बिना किसी को बताए सबकुछ छोड़कर भारत आ गया। मेरा जन्म हरियाणा के एक साधारण परिवार में हुआ है। सभी गांव में ही रहते थे। गरीब ही थे। मेरी पढ़ाई-लिखाई बुआ राजकुमारी शर्मा के घर में रहकर हुई। वो गांव की सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी महिला थीं। हमारे स्कूल की प्रिंसिपल भी थीं। वो मेरे लिए सबकुछ करती थीं, पढ़ाना, खिलाना, समझाना। अगर बात नहीं सुनता था तो थप्पड़ भी लगा देती थीं। बचपन में ही उन्होंने मुझे बहुत ज्ञानवान बना दिया था। माता-पिता का कोई दबाव नहीं था। स्कूल के बाद पटियाला के थापर कॉलेज से पढ़ाई की। माता-पिता ने मुश्किल से मैकेनिकल इंजीनियरिंग करवाई थी। पढ़ाई में अच्छा था। नौकरीपेशा जीवन लगभग विदेश में ही बीता। हर किसी की तरह मैं भी यही सोचता था कि अच्छा पैसा होगा, शादी होगी, बच्चे होंगे। जीवन सुख से कटेगा। मुझे मेरा काम बहुत पसंद था। हालांकि अब मुझे मेरे संन्यास लेने पर भी कोई गिला नहीं है। मेरे जीवन में कई हादसे हुए। जिन्होंने मेरी जिंदगी को काफी बदल दिया। आखिर एक ट्रिगर पॉइंट ऐसा आया जिसके चलते मैंने एक झटके में सब छोड़ दिया। पहले मैं उस घटना के बारे में बताता हूं जिसने मेरे जीवन पर गहरा असर डाला। जापान की बात है। मेरे बॉस इंडियन थे। उनके साथ मेरे रिश्ते पारिवारिक थे। घर आना-जाना था। मैं जब भी उन्हें उनकी पत्नी के साथ देखता तो सोचता कि दुनिया में इनसे सुंदर कपल कोई हो ही नहीं सकता। एक दिन उनके घर गया तो उनकी पत्नी कहने लगीं कि अरविंद अब तू कभी मेरे यहां नहीं आ पाएगा। मैं जा रही हूं। मैंने हैरान होकर पूछा, आप कहां जा रही हैं? तो कहने लगी कि तेरे बॉस मुझे तलाक दे रहे हैं। मैं तो सन्न रह गया। मैंने कहा कि अगर ऐसा हो भी गया तो मैं आपसे मिलने जरूर आऊंगा। आप मेरी मां जैसी हैं। बॉस के साथ मेरे अलग संबंध हैं। उस दिन मैं सो नहीं पाया। रातभर उनके तलाक के बारे में ही सोचता रहा। इनके रिश्ते को देखकर मैं अपने रिश्ते के लिए परेशान हो गया, क्योंकि मैं भी एक लड़की को पसंद करता था। अगले दिन मैं बॉस के पास गया और बहुत हिम्मत जुटा कर उनसे तलाक के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि तलाक आखिरी लीगल स्टेज पर है। उन्होंने मुझे मैडम की हजार खामियां भी गिनाईं। उसी तरह जैसे बीती रात मैडम ने मुझे मेरे बॉस की हजार खामियां गिनवाई थीं। मुझे लग रहा था कि मेरा ही घर टूट रहा है। मैं कई दिनों तक दोनों से बात करता रहा। एक दिन बॉस के घर गया और उनकी पत्नी से कहा कि आप सच में तलाक चाहती हैं? ये सुनते ही वो रोने लगीं। मुझे लगा कि अभी भी रिश्ते में गुंजाइश है। अगले दिन मैंने बॉस से कहा कि आप सच में नहीं रहना चाहते मैडम के साथ, कल रात मैडम रो रही थीं। बॉस थोड़ी देर तक कुछ सोचते रहे फिर पता नहीं क्या हुआ उनकी आंखों में भी आंसू आ गए। अगले दिन मैंने दोनों को अपने घर खाने पर बुलाया। मैडम से कहा आज खाना आप ही बनाएंगी। इतने में बॉस भी आ गए। उन्हें पता नहीं था कि मैडम भी आएंगीं। बॉस अपनी वाइफ को देखकर हैरान रह गए। खाना खाते हुए हम लोगों के बीच खूब बातें हुईं। कुछ बातें इतनी गहरी थीं कि दोनों ने तलाक लेने का फैसला खत्म कर दिया। दोनों फिर से साथ रहने लगे। उसके बाद उन्होंने मुझे अपना बेटा बना लिया। मेरा प्रेम उन दोनों को साथ खींच लाया। इस घटना ने मेरे जीवन पर गहरा असर डाला। मैं भी शादी करना चाहता था। किसी के साथ जीवन भर रहना चाहता था। मन था कि मैं परिवार बनाऊं। हालांकि हम सोचते कुछ हैं और भाग्य में कुछ और लिखा रहता है। मैंने जो सोचा था वो नहीं हुआ। जिंदगी में जो ट्रिगर पॉइंट साबित हुआ उस बारे में ज्यादा तो नहीं बता सकता, बस इतना कहूंगा कि मैंने गलत नहीं किया। मैंने किसी को धोखा नहीं दिया, किसी की हत्या नहीं की और न ही कभी जेल गया। हां, मुझे किसी से प्रेम था और बेइंतहा प्रेम था, लेकिन मैं उसे छोड़कर भारत आ गया। कैसा लगता है न जब आप किसी ऐसे को छोड़कर आ जाते हैं, जिसके बिना रह नहीं सकते। मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ था। मुझे उसकी संस्कृति मंजूर नहीं थी और उसे मेरी। मुझे भारत और यहां का कल्चर पसंद था, लेकिन उसे नहीं। मुझे विदेश में उसकी संस्कृति के साथ रहना मंजूर नहीं था। उसने भारत आने से इनकार कर दिया था। कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूं। फिर मैंने अपने जीवन का सबसे कठिन और कठोर फैसला लिया। मुझे उसे अधर में छोड़ना पड़ा। एक झटके में मैंने सब खत्म कर दिया। नौकरी से रिजाइन कर दिया। उसे छोड़ दिया, उसका देश छोड़ दिया। लाखों रुपए का पैकेज और ऐशोआराम की जिंदगी को झटके में छोड़ दिया। भारत अपने गुरु को फोन किया कि मैं आ रहा हूं। आज भी मुझे उसकी याद आती है। जब याद आती है तो भगवान का भजन करने लगता हूं। भजन में भी जब उसकी याद आती है, दर्द होता है, ख्याल में आने लगती है, तब अपने गुरु के पास चला जाता हूं। अगर कोई चीज मुझे रुलाती है तो उसे भुलाने की कोशिश करने लगता हूं। पता है साधु भी रोते हैं, क्योंकि साधुओं का भी समाज होता है। साधुओं की गृहस्थी तो सबसे बड़ी गृहस्थी होती है। आपके पास एक घर है, हमारे पास हजार घर हैं। मैंने अपने माता-पिता को नहीं बताया था कि नौकरी छोड़ दी है। जानता था कि इससे बहुत हो-हल्ला होगा। भारत आकर सीधा अपने गुरु के आश्रम ऋषिकेश गया। उन्हें बताया कि सबकुछ छोड़ आया हूं। आश्रम में रहते हुए लगभग दो महीने बीते। मेरे माता-पिता को पता लग गया कि मैं भारत लौट आया हूं। दरअसल, मेरे गुरु सुमित गिरी महाराज भी हरियाणा से हैं। शायद, उनके किसी शिष्य ने मुझे आश्रम में देखकर माता-पिता को बता दिया। वो लोग मुझे लेने आ गए। बहुत मनाया, लेकिन मैं फैसला ले चुका था। आखिरकार वह लोग चले गए। मैंने आजीवन संन्यासी बनकर रहने का फैसला ले लिया था। मुझे माता-पिता की कभी याद भी नहीं आती। हां, बुआ की बहुत याद आती है। पता नहीं वो भी जिंदा हैं या नहीं। सच पूछें तो बेशक आज साधु संन्यासी हो चुका हूं। इसबार मेरा नागा संस्कार होना है और मैं बहुत खुश हूं। ईश्वर ने मुझे सब कुछ दिया है। फिर भी कभी-कभी रो लेता हूं, जब उसकी याद आती है। 25 साल बीत चुके हैं उस बात को। फिर भी जब याद आती है तो बेचैनी होने लगती है। फिर कुछ काम करने लग जाता हूं। किसी न किसी से बात करने लग जाता हूं और अपने आप को व्यस्त कर लेता हूं। कुछ साल ऋषिकेश रहने के बाद मैं गुरु जी का फरीदाबाद वाला आश्रम संभालने लगा। संन्यास के इतने साल में हजारों लोग मिले। सबने अपनी परेशानियां बताईं। सुनते-सुनते इंसानी रिश्तों का जाल समझने लगा। एक हादसा मैं कभी नहीं भुला सकता। किसी काम से अपने एक दोस्त से मिलने गया था। वो कॉर्पोरेट जॉब में था। उसके घर पहुंचा तो वो आत्महत्या की तैयारी कर रहा था। वो किसी आर्थिक मजबूरी में फंस चुका था और परिवार ने साथ देने से इनकार कर दिया था। उस रात मैं उसे अपने साथ लेकर आया। उसे दो-तीन महीने अपने साथ रखा। नौकरी भी दिलवाई। उसको देखकर मुझे लगा कि किस काम का ऐसा परिवार जो मरने के लिए अकेला छोड़ दे। वो भी सिर्फ इसलिए कि आपके पास पैसा नहीं है। इंसानी रिश्तों के जंजाल की इतनी कहानियों से गुजर चुका हूं कि मुझे लगता है कि ईश्वर में ध्यान लगाना सबसे अच्छा है। कुंभ के बाद चाहता हूं कि जो कुछ भी पढ़ा है, सीखा है, उसे दूसरों के साथ शेयर करूं। हम चाहते हैं बच्चे मॉडर्न होने के साथ-साथ आध्यात्मिक भी बनें। धर्म और मॉडर्न एजुकेशन को क्लब करने के लिए लाइब्रेरी और स्कूल कॉलेज पर काम कर रहा हूं। मध्यप्रदेश और प्रयागराज में हम कॉलेज बना रहे हैं। एक ऑफर आया है किसी सेठ का कि महाराज मैं भी एक कॉलेज बनवाना चाहता हूं। इस तरह से कुंभ के बाद एजुकेशन का काम जोरों पर रहेगा। मुंबई के लिए हमारा खास प्लान है। (ये बातें स्वामी अरविंदानंद गिरी ने दैनिक भास्कर रिपोर्टर मनीषा भल्ला से शेयर की हैं) ------------------------------------------------------ संडे जज्बात सीरीज की ये स्टोरीज भी पढ़िए... 1.संडे जज्बात-सचिन ने बच्चों की फीस भेजी, मैंने लौटा दी:कांबली की पत्नी बोलीं- शराब छोड़ने के वादे पर विनोद से शादी की थी मैं एंड्रिया हेविट, क्रिकेटर विनोद कांबली की पत्नी। फैशन मॉडल रह चुकी हूं। पिछले कुछ सालों से विनोद की तबीयत ठीक नहीं है। हालत लगातार सीरियस होती जा रही है। ये सब पैसों की तंगी की वजह से हो रहा है। अगर वो शराब नहीं भी पी रहे होते थे तो सिगरेट पीते थे। पूरी खबर पढ़ें... 2.संडे जज्बात-15 साल की थी, 12 लोगों ने रेप किया:80 गांव की पंचायतों ने कहा- इसमें जो पसंद आए शादी कर लो कुछ लोग मुझे जबरदस्ती उठाकर दूर जगंल की तरफ ले गए, नदी के किनारे। वो लोग मेरे साथ जबरदस्ती करने लगे, मुझे पीटा। जितना मुझे याद है- कुल 12 लोग थे। 18 साल से लेकर अधेड़ उम्र के आदमी थे। मैं सिर्फ एक-दो को ही पहचान रही थी। पूरी खबर पढ़ें... 3.संडे जज्बात-जला चेहरा ठीक कराने दुबई पहुंची, फांसी की सजा:बेटी को शादी का झांसा देकर प्रेमी ने नौकर बनाया, अब हम कहां जाएं मैं शब्बीर खान। यूपी के बांदा जिले के गोयरा मुगली गांव में रहता हूं। मेरी बेटी शहजादी को दुबई में मौत की सजा सुनाई गई है। उसे जेल में बंद हुए करीब 22 महीने बीत गए। किसी भी दिन फांसी पर झूल सकती है। उसकी केवल यही गलती थी कि वो ‘आम लड़कियों’ जैसा दिखना चाहती थी। पूरी खबर पढ़ें...
1924 प्रयाग कुंभ की बात है। अंग्रेज सरकार ने संगम में स्नान पर रोक लगा दी थी। सरकार का कहना था कि संगम के पास फिसलन बढ़ गई है, भीड़ की वजह से हादसा हो सकता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे हेरंब चतुर्वेदी बताते हैं- ‘कल्पवासी दिन में तीन बार स्नान करते हैं। दोपहर का स्नान वे संगम तट पर ही करते हैं। इसलिए वे संगम में स्नान के लिए अड़े थे।' कल्पवासियों को पंडित मदन मोहन मालवीय का साथ मिला। उन्होंने सरकार के फरमान के खिलाफ जल सत्याग्रह शुरू कर दिया। 200 से ज्यादा कल्पवासी, मालवीय के साथ ब्रिटिश पुलिस के साथ आर-पार के मूड में थे। जवाहरलाल नेहरू भी तब प्रयाग में ही थे। जब उन्हें पता चला कि संगम में स्नान को लेकर मालवीय जल सत्याग्रह कर रहे हैं, तो वे भी संगम पहुंच गए। अपनी आत्मकथा ‘मेरी कहानी’ में नेहरू लिखते हैं- ‘मेला पहुंचने पर मैंने देखा कि मालवीय जी जिला मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ जल सत्याग्रह कर रहे हैं। जोश में आकर मैं भी सत्याग्रह दल में शामिल हो गया। मैदान के उस पार लकड़ियों का बड़ा सा बैरिकेड बनाया गया था। हम आगे बढ़ने लगे, तो पुलिस ने रोका। हमारे हाथ में सीढ़ी थी, जिसे पुलिस ने छीन लिया। हम रेत पर बैठकर धरना देने लगे। दोनों तरफ पैदल और घुड़सवार पुलिस खड़ी थी। धूप बढ़ती जा रही थी। मेरा धैर्य अब टूटने लगा था। इसी बीच घुड़सवार पुलिस को कुछ ऑर्डर मिला। मुझे लगा कि ये लोग हमें कुचल देंगे, हमारे साथ मार-पीट करेंगे। मैंने सोचा क्यों न हम घेरे के ऊपर से ही फांद जाएं। मेरे साथ बीसों आदमी बैरिकेड्स के ऊपर चढ़ गए। कुछ लोगों ने बांस की बल्लियां भी निकाल लीं। इससे रास्ता जैसा बन गया। मुझे बहुत गर्मी लग रही थी, सो मैंने गंगा में गोता लगा दिया। मालवीय जी बहुत भिन्नाए हुए थे और ऐसा लग रहा था कि वे खुद को रोकने की कोशिश कर रहे हैं। अचानक बिना किसी से कुछ कहे मालवीय जी उठे और पुलिस के बीच से निकलकर गंगा में कूद पड़े। इसके बाद तो पूरी भीड़ गंगा में डुबकी लगाने के लिए टूट पड़ी।' इस तरह ब्रिटिश सरकार के फरमान के बावजूद कल्पवासियों ने संगम में स्नान किया। 'महाकुंभ के किस्से' सीरीज के 8वें एपिसोड में आज कल्पवास की कहानी… कल्पवास, यानी पौष महीने की पूर्णिमा से लेकर माघ महीने की पूर्णिमा तक संगम किनारे रहकर वेदों का अध्ययन करना, ध्यान करना और साधना करना। सदियों से यह परंपरा चली आ रही है। महाभारत, रामचरित मानस और पुराणों में कल्पवास का जिक्र मिलता है। आमतौर पर कल्पवास महीनेभर का होता है। कुछ लोग 3 दिन, 7 दिन और 15 दिन का भी कल्पवास करते हैं। रामचरित मानस के बालकांड में तुलसीदास लिखते हैं- 'माघ मकर गत रवि जब होई। तीरथ पतिहि आव सब कोई। देव दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी।' यानी माघ के महीने में जब सूर्य मकर राशि में आते हैं, तब सब कोई तीर्थराज प्रयाग आते हैं। देव, दैत्य, किन्नर और इंसान भक्ति भाव से त्रिवेणी-संगम में स्नान करते हैं। कल्पवास के दौरान याज्ञवल्क्य मुनि ने भारद्वाज मुनि को सुनाई थी रामकथा रामचरित मानस के मुताबिक हर साल माघ महीने में साधु-संत प्रयाग आते थे और भारद्वाज मुनि के आश्रम में रहकर कल्पवास करते थे। एक बार कल्पवास पूरा करने के बाद सभी संत लौट गए, लेकिन याज्ञवल्क्य मुनि को भारद्वाज मुनि ने जाने नहीं दिया। उन्होंने उनका पैर पकड़ लिया और रामकथा सुनाने का आग्रह किया। इसके बाद याज्ञवल्क्य मुनि ने उन्हें रामकथा सुनाई। कहा जाता है कि राम वनवास की शुरुआत में प्रयाग गए थे और लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद उन्होंने प्रयाग में स्नान-दान किया था। कल्पवास, कल्प से बना है। वैदिक साहित्य के मुताबिक वेदों के अध्ययन के लिए 6 वेदांगों की रचना की गई। यह 6 वेदांग हैं- शिक्षा, छंद, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और कल्प। कल्प में यज्ञ, ध्यान, दान आदि की विधि बताई गई है। कुंभ चार जगहों- प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में लगता है, लेकिन कल्पवास सिर्फ प्रयाग में ही होता है। हर साल माघ मेला के दौरान कल्पवासी प्रयाग आते हैं। मान्यता है कि कुंभ के दौरान कल्पवास की महिमा बढ़ जाती है। मान्यता- कल्पवास करने वालों को 432 करोड़ साल का फल मिलता है शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के मुताबिक ब्रह्माजी के एक दिन को कल्प कहा जाता है। कलयुग, द्वापर, त्रेता और सतयुग चारों युग मिलकर जब एक हजार बार आते हैं, तो वह अवधि ब्रह्मा जी के एक दिन या एक रात के बराबर होती है। सतयुग 17,28,000 साल, त्रेता युग 12,96,000 साल, द्वापर युग 8,64,000 साल और कलियुग 4,32,000 साल का होता है। ऐसे एक हजार साल बीतेंगे तब एक कल्प होगा। यानी कोई कुंभ में कल्पवास करेगा तो पृथ्वी की गणना के अनुसार उसे 432 करोड़ साल का फल मिलेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो कल्पवासी 12 साल तक लगातार कल्पवास करते हैं, उन्हें मोक्ष मिलता है। कर्मकाण्ड या पूजा में हर कार्य संकल्प के साथ शुरू होता है और संकल्प में 'श्रीश्वेतवाराहकल्पे' का सम्बोधन किया जाता है। इसका मतलब है कि सृष्टि की शुरुआत से लेकर अब तक 11 कल्प बीत चुके हैं। अभी 12वां कल्प चल रहा है। प्रयाग आने पर खिचड़ी और जाते वक्त कढ़ी खाते हैं कल्पवासी शास्त्रों में कुंभ के दौरान कल्पवास को सबसे फलदाई माना गया है। पुराणों में कल्पवास के लिए अलग-अलग समय बताया गया है। पद्म और ब्रह्म पुराण के अनुसार पौष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी से माघ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तक कल्पवास करना चाहिए। विष्णु पुराण के अनुसार कल्पवास अमावस्या या पूर्णिमा के दिन शुरू किया जा सकता है। शर्त केवल इतनी है कि सूर्य मकर राशि में होना चाहिए। फिलहाल पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक कल्पवास करने की परंपरा है। कल्पवासियों के लिए प्रयागराज की पवित्र रेत पर पैर रखते ही कल्पवास शुरू माना जाता है। संगम में डुबकी लगाने। फिर किनारे पर ध्यान करने और दान देने के बाद कल्पवासी उन शिविरों या कुटिया में पहुंचते हैं, जहां वे एक महीना रहेंगे। इतिहासकार हेरंब चतुर्वेदी बताते हैं- ‘कल्पवासी जब प्रयाग आते हैं, तो सबसे पहले वे खिचड़ी खाते हैं। अपने टेंट में जौ और तुलसी का पौधा लगाते हैं। खिचड़ी खाना संसारिकता से मुक्ति का प्रतीक माना जाता है। कल्पवास पूरा करने के बाद कल्पवासी जौ और तुलसी को गंगा जल में प्रवाहित कर देते हैं। घर लौटते वक्त वह कढ़ी खाते हैं। कढ़ी खाने का मतलब है वह फिर से संसारिकता में प्रवेश करता है।’ आजादी के बाद पहले कुंभ में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने किया कल्पवास आजादी के बाद 1954 में पहला कुंभ प्रयाग में लगा। राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद तब कुंभ पहुंचे थे और उन्होंने एक महीने कल्पवास किया था। वे संगम तट पर किले के एक हिस्से में रहते थे। आज भी उनकी याद में वह स्थान सुरक्षित है। उस जगह को प्रेसीडेंट व्यू कहा जाता है। जब राजेंद्र प्रसाद वहां कल्पवास करते थे, तो उनसे मिलने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री समेत कई नेता आते थे। राजा हर्षवर्धन कल्पवास के दौरान पूरा राज-पाट लुटा देते थे शुुरुआत में यहां केवल ऋषि-मुनि ही तपस्या करते थे। छठी शताब्दी की शुरुआत में कल्पवास के लिए गृहस्थों ने आना शुरू किया। उस दौरान राजा हर्षवर्धन माघ महीने में यहां आते थे और अपना सब कुछ त्याग कर लौट जाते थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी प्रयाग में राजा हर्षवर्धन के दान और अनुष्ठानों का जिक्र किया है। ह्वेनसांग अपने संस्मरण में लिखते हैं- ‘दो नदियों गंगा और यमुना के बीच प्रयाग है। यहां बहुत सारे फलदार वृक्ष हैं। हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर हैं। हर जगह रेत ही रेत दिखती है। जिस जगह ये दोनों नदियां मिलती हैं, यहां के लोग उसे महादानभूमि कहते हैं। गंगा के उत्तरी तट पर हर्षवर्धन का शिविर लगा था। सुबह हर्षवर्धन सैनिकों के साथ जलपोत से महादानभूमि पहुंचे। मैं भी उनके साथ था। कई देशों के राजा इंतजार कर रहे थे। साधु-संत, गरीब, रोगी और विधवा, हर तरह के लोगों का हुजूम उमड़ा था।’ ह्वेनसांग लिखते हैं- ‘हर्षवर्धन ने सबसे पहले महादानभूमि के भीतर बनी एक झोपड़ी में बुद्ध की मूर्ति स्थापित की। उसका श्रृंगार किया और बहुमूल्य रत्न चढ़ाए। राजा ने कपड़े, रत्न और भोजन लोगों के बीच बांटे। दूसरे दिन उन्होंने सूर्य की मूर्ति और तीसरे दिन महादेव की मूर्ति स्थापित की। चौथे दिन बौद्ध भिक्षुओं को सोने के सिक्के बांटे। इसके बाद साधु-संतों को बहुमूल्य रत्न दिए। फिर विधवा, अनाथ और रोगियों को दान दिया। इस तरह लगातार 74 दिनों तक हर्षवर्धन दान करते रहे। उन्होंने पूरा खजाना खाली कर दिया। अंत में अपना मुकुट भी दान कर दिया।’ ----------------------------------------------- महाकुंभ से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... संतों ने चिमटे बजाकर कहा-मोदी को PM बनाओ: प्रधानमंत्री बनते ही कुंभ पहुंचीं इंदिरा; सोनिया का प्रोटोकॉल कोड था-पापा वन, पापा टू, पापा थ्री प्रयाग के कांग्रेस नेता अभय अवस्थी बताते हैं- ‘मेरे पुराने साथी सोनिया गांधी की सुरक्षा में लगे थे। उनके वायरलेस पर बार-बार एक मैसेज आ रहा था- पापा वन, पापा टू, पापा थ्री। मैंने उनसे पूछा कि ये क्या है? तब उन्होंने बताया कि ये सोनिया गांधी का प्रोटोकॉल कोड है। वो स्नान करने के बाद तीन जगहों पर जाएंगी। ये कोडवर्ड उन्हीं तीन जगहों के लिए हैं।’ पढ़िए पूरी खबर... नेहरू के लिए भगदड़ मची, 1000 लोग मारे गए:सैकड़ों शव जला दिए गए; फटे कपड़े में पहुंचे फोटोग्राफर ने चुपके से खींची तस्वीर साल 1954, आजाद भारत का पहला कुंभ इलाहाबाद यानी अब के प्रयागराज में लगा। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या थी। मेले में खबर फैली कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आ रहे हैं। उन्हें देखने के लिए भीड़ टूट पड़ी। जो एक बार गिरा, वो फिर उठ नहीं सका। एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए। सरकार ने कहा कि कोई हादसा नहीं हुआ, लेकिन एक फोटोग्राफर ने चुपके से तस्वीर खींच ली थी। अगले दिन अखबार में वो तस्वीर छप गई। पढ़िए पूरी खबर... नागा बनने के लिए 108 बार डुबकी, खुद का पिंडदान:पुरुषों की नस खींची जाती है; महिलाओं को देनी पड़ती है ब्रह्मचर्य की परीक्षा नागा साधु कोडवर्ड में बातें करते हैं। इसके पीछे दो वजह हैं। पहली- कोई फर्जी नागा इनके अखाड़े में शामिल नहीं हो पाए। दूसरी- मुगलों और अंग्रेजों के वक्त अपनी सूचनाएं गुप्त रखने के लिए यह कोड वर्ड में बात करते थे। धीरे-धीरे ये कोर्ड वर्ड इनकी भाषा बन गई। पढ़िए पूरी खबर...
कोलकाता के आरजी कर हॉस्पिटल में ट्रेनी डॉक्टर से रेप और मर्डर का दोषी संजय रॉय ही है। 18 जनवरी को सियालदाह कोर्ट के स्पेशल जज अनिर्बान दास ने कहा कि CBI ने बलात्कार के जो सबूत पेश किए हैं, उससे अपराध साबित होता है। CBI ने संजय के लिए फांसी की मांग की है। सोमवार, 20 जनवरी को सजा का ऐलान होगा। ट्रेनी डॉक्टर के गुनहगार को फांसी मिलेगी या नहीं, बाकी आरोपियों का क्या हुआ, गैंगरेप जैसी थ्योरीज का क्या हुआ; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में... सवाल-1: सियालदह कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया और इसका आधार क्या है?जवाब: संजय रॉय को भारतीय न्याय संहिता यानी BNS की धारा 64, 66 और 103(1) के तहत दोषी ठहराया गया है। इन धाराओं के तहत अधिकतम मौत की सजा और कम से कम उम्रकैद हो सकती है। CBI की चार्जशीट में 100 गवाहों के बयान, 12 पॉलीग्राफ टेस्ट रिपोर्ट, CCTV फुटेज, फोरेंसिक रिपोर्ट, मोबाइल की कॉल डिटेल और लोकेशन शामिल रहीं। सियालदह कोर्ट ने संजय रॉय के खिलाफ मिले 4 सबूतों के तहत फैसला सुनाया… 10 अगस्त को संजय ने गिरफ्तारी के बाद अपना जुर्म कबूला था। लेकिन बाद में वे अपने बयान से मुकर गया। 18 जनवरी को सुनवाई के दौरान संजय ने जज से कहा, ‘मुझे झूठा फंसाया गया है। मैंने ऐसा नहीं किया है। जिन्होंने ऐसा किया है, उन्हें छोड़ दिया जा रहा।' सवाल-2: कोलकता रेप-मर्डर में गैंगरेप की थ्योरी का क्या हुआ?जवाबः सरकारी अस्पताल और कोलकाता पुलिस ने इस अपराध को आत्महत्या के रूप में पेश करने की कोशिश की, जिससे देश भर के लोगों के मन में संदेह के बीज बो दिए गए कि अपराध को छिपाने की कोशिश की जा रही है। यहीं से तरह-तरह की झूठी बातें फैलने लगीं, उनमें से एक गैंगरेप की थ्योरी थी। किसी डॉक्टर ने मीडिया में बाइट दी थी कि पीड़िता के प्राइवेट पार्ट से 151 मिलीग्राम सफेद तरल पदार्थ मिला है। इसके बाद फर्जी अनुमान लगाए गए कि एक पुरुष औसतन एक बार में 5 मिलीग्राम वीर्य ही स्खलित कर सकता है। इसलिए बलात्कार में कई लोग शामिल रहे होंगे। CBI ने 7 अक्टूबर को हाईकोर्ट में चार्जशीट दायर की, जिसमें संजय को रेप-मर्डर का एकमात्र आरोपी बताया था। एजेंसी ने बताया कि ट्रेनी डॉक्टर का गैंगरेप नहीं हुआ था। फोरेंसिक जांच में भी गैंगरेप की पुष्टि नहीं हुई थी। सवाल-3: पीड़िता के शरीर पर फैक्चर वाली थ्योरी का क्या हुआ?जवाबः सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर दावा किया गया कि जूनियर डॉक्टर के शरीर में पेल्विक गर्डल, ह्योइड हड्डी और कॉलरबोन में कई फ्रैक्चर थे। इससे गैंगरेप होने की बातें सामने आने लगीं और यह कहा गया कि हमलावरों ने अपराध करते समय महिला के पैर फैला दिए थे। जिस वजह से महिला की पेल्विक हड्डी टूट गई। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया क्योंकि रिपोर्ट में डॉक्टर ने लिखा- NIL यानी कोई फ्रैक्चर नहीं है। रिपोर्ट में इस बात का साफतौर पर जिक्र किया गया कि पीड़ित के शरीर की कोई भी हड्डी फ्रैक्चर या डिस्लोकेट नहीं थी। सवाल-4: कोलकाता रेप-मर्डर में पिछले महीने आई फोरेंसिक रिपोर्ट से केस में क्या ट्विस्ट आया?जवाबः सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लेबोरेट्री (CFSL) की एक रिपोर्ट में कई सनसनीखेज खुलासे हैं। 12 पेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि सेमिनार रूम में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिससे पता चले कि वहां पीड़ित से रेप के बाद हत्या की गई है। रिपोर्ट के 12वें पेज की आखिरी लाइनों में लिखा है- जिस जगह ट्रेनी डॉक्टर का शव मिला था, वहां संघर्ष का कोई सबूत नहीं मिला। जिस गद्दे पर शव था, उस पर भी किसी तरह की हाथापाई के निशान नहीं मिले हैं। इससे अब ये सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या ट्रेनी डॉक्टर का रेप-मर्डर कहीं और हुआ था। गद्दे पर सिर और पेट के नीचे ही खून के निशान मिले थे, इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि शव कहीं और से लाया गया था। सवाल-5: संजय रॉय को फांसी मिलेगी या कोई और सजा?जवाबः सुप्रीम कोर्ट के वकील और Rape Laws Death Penalty किताब के लेखक विराग गुप्ता के मुताबिक, 'ये पूरा मामला रेयरेस्ट ऑफ रेयर है। कायदे से दोषी को फांसी की सजा होनी चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट है कि मीडिया ट्रॉयल के बेस पर किसी को फांसी की सजा नहीं दी जा सकती। इस केस में मीडिया ट्रॉयल जमकर हुआ। जांच में भी कई तरह के विरोधाभास दिखाए दिए। इससे अभियोजन पक्ष का दावा कमजोर हो सकता है।' सवाल-6: CBI की जांच पर क्या सवाल उठ रहे हैं?जवाब: पीड़िता डॉक्टर के माता-पिता फैसले से पहले कोर्ट पहुंचे थे। उन्होंने पत्रकारों से कहा, हमें हाल ही में कोर्ट में जो कार्यवाही हुई है, उसके बारे में नहीं पता है। सीबीआई ने हमें कभी नहीं बुलाया। वह एक-दो बार हमारे घर आए, लेकिन हमने जब भी उनसे जांच के बारे में पूछा तो यही कहा कि जांच जारी है। उन्होंने जांच पर सवाल खड़ा करते हुए कहा, 'मेरी बेटी की गर्दन पर काटने के निशान थे, लेकिन वहां से जांच के लिए नमूना नहीं लिया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कोई ठोस सबूत नहीं मिला। सीबीआई ज्यादा कोशिश नहीं कर रही है। इसमें कोई न कोई शामिल है। DNA रिपोर्ट में देखा जा सकता है कि मौके पर 4 पुरुष और 2 महिलाएं थीं। हम चाहते हैं कि इसमें शामिल सभी लोगों को सजा मिले।’ इससे पहले 19 दिसंबर को पीड़िता के माता-पिता ने कोलकाता हाई कोर्ट से मामले की नए सिरे से जांच करने की मांग की थी। 24 दिसंबर को जस्टिस तीर्थंकर घोष ने मामले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था। उनका कहा था कि मामला पहले से हाई कोर्ट की बेंच और सुप्रीम कोर्ट के पास है। उन्होंने पीड़िता के वकील से सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी लेने को कहा था। सवाल-7: कोलकाता रेप और मर्डर मामले में बाकी सह-आरोपियों का क्या हुआ?जवाब: इस मामले में 7 अक्टूबर को CBI ने सिर्फ संजय रॉय को ही आरोपी बनाया था। हालांकि संजय रॉय के अलावा आरजी कर अस्पताल के तत्कालीन प्रिंसिपल संदीप घोष और थाने के SHO अभिजीत मंडल पर भी सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप लगा था। अभिजीत मंडल पर मामले में एफआईआर दर्ज करने में देरी का भी आरोप था। साथ ही सीबीआई और ईडी ने संदीप घोष पर अस्पताल में वित्तीय गड़बड़ी के आरोप में भी जांच शुरू कर दी थी। 18 जनवरी को सुनवाई के दौरान संजय ने जस्टिस दास से पूछा कि मुझे फंसाने वाले अन्य लोगों को क्यों छोड़ा जा रहा है। तो इसके जज ने जवाब देते हुए कहा, ‘मैंने सभी सबूतों की बारीकी से जांच की है और गवाहों को सुना है। मुकदमे के दौरान दलीलें भी सुनी हैं। इन सबसे गुजरने के बाद मैंने तुम्हें दोषी पाया है। तुम्हें सजा मिलनी ही चाहिए।’ सवाल-8: तो फिर इस रेप-मर्डर केस में आगे क्या होगा?जवाबः सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील आशीष पांडेय कहते हैं कि फांसी की सजा मिलने पर इसके कंफर्मेशन के लिए एक रेफेरेंस हाई कोर्ट भेजता जाता है। हाई कोर्ट इस सजा को कन्फर्म कर सकता है या सजा पर दोबारा विचार भी कर सकता है। अगर हाई कोर्ट सजा को बरकरार रखता है तो आरोपी सुप्रीम कोर्ट में इसे चैलेंज कर सकता है। वहीं अगर संजय को फांसी से कम सजा मिलती है तो वह इस सजा को स्वीकार सकता है या फिर ऊंची अदालत में इसके खिलाफ अपील कर सकता है। निर्भया रेप मामले में ऐसा ही हुआ, दोषी करार दिए जाने के बाद भी आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं डालीं। हालांकि संजय की बड़ी बहन ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि वह सियालदह कोर्ट के फैसले को किसी ऊंची अदालत में चुनौती देने के बारे में नहीं सोच रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर संजय ने अपराध किया है तो उसे सजा मिलनी चाहिए। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि 2007 में शादी के बाद से उनका संजय से कोई संपर्क नहीं है। ------------ कोलकाता रेप-मर्डर केस से जुड़ी अन्य खबर पढ़ें कोलकाता रेप-मर्डर केस में संजय रॉय दोषी करार: सजा का ऐलान 20 जनवरी को, संजय बोला- मुझे फंसाया गया, इसमें IPS शामिल कोलकाता के आरजी कर हॉस्पिटल में ट्रेनी डॉक्टर से रेप और मर्डर केस में सियालदह कोर्ट ने 18 जनवरी को मुख्य आरोपी संजय रॉय को दोषी करार दिया। सजा का ऐलान सोमवार (20 जनवरी) को किया जाएगा। पूरी खबर पढ़ें...
‘युद्ध नहीं जिनके जीवन में, वो भी बड़े अभागे होंगे,या तो प्रण को तोड़ा होगा या रण से भागे होंगे।' एक वीडियो है, जिसमें सिविल सर्विस की कोचिंग देने वाले और अब AAP लीडर अवध ओझा ये लाइनें कह रहे हैं। वीडियो की शुरुआत में उनसे मनीष सिसोदिया के सीट बदलने पर सवाल पूछा गया था। मनीष सिसोदिया दिल्ली की पटपड़गंज सीट से चुनाव लड़ते थे, इस बार जंगपुरा से मैदान में हैं। पटपड़गंज में AAP ने अवध ओझा को टिकट दिया है। दैनिक भास्कर ने अवध ओझा से पूछा कि क्या आपका इशारा सिसोदिया के रण से भागने की तरफ है? वे जवाब देते हैं, ‘रण से भागे होते तो लड़ते क्यों। मैंने कहा कि वे पूरी दिल्ली और देश के राजनेता हैं। उन्होंने ही मुझसे कहा कि ओझा जी मैं कहीं से भी लड़ सकता हूं। आप अपनी प्राथमिकता बता दीजिए। वे 10 साल से काम कर रहे हैं, कहीं भी जाएंगे, उन्हें लोग गले लगा लेंगे। हमने उनसे मनीष सिसोदिया की जगह लेने, AAP जॉइन करने और BJP के लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखने पर सवाल पूछे। पढ़िए पूरा इंटरव्यू… सवाल: लोकसभा चुनाव में BJP और कांग्रेस से टिकट मांगा, BSP का टिकट ठुकरा दिया, अब AAP से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं?जवाब: आम आदमी पार्टी का मुख्य आधार ह्यूमन रिसोर्स का विकास है। ह्यूमन रिसोर्स के दो पिलर हैं- शिक्षा और स्वास्थ्य। ये किसी भी परिवार और राष्ट्र को शक्तिशाली बनाते हैं। इन दोनों क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी का अच्छा-खासा काम रहा है। यही वजह है कि मैंने आम आदमी पार्टी जॉइन की। सवाल: BJP के लोग कह रहे हैं कि मनीष सिसोदिया पटपड़गंज छोड़कर भाग गए। आप इसी सीट से लड़ना चाहते थे। पूर्व डिप्टी CM की सीट आपको देने की वजह क्या है?जवाब: मैंने अपने परिवार की वजह से पटपड़गंज सीट मांगी। इस इलाके में मेरा बड़ा परिवार रहता है। अब तो ये इतना बड़ा हो गया है कि मैं नामांकन दाखिल करने गया, तो लोगों का हुजूम मेरे साथ था। सवाल: ये तो वैसे ही है कि BJP में अमित शाह की अहमदाबाद सीट बदलकर किसी और को लड़ा देना। AAP में नंबर 2 नेता की सीट आखिर आपको कैसे मिल गई?जवाब: इसके लिए मैं सिसोदिया जी को बहुत धन्यवाद देता हूं। मैंने कहा था कि आप बहुत बड़ी कुर्बानी दे रहे हो। कहीं लंबे समय तक राजनीति करने के बाद उसे छोड़ना आसान नहीं होता। सवाल: पूर्व डिप्टी CM की सीट से लड़ना कितनी बड़ी जिम्मेदारी है?जवाब: बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। उन्होंने जिस तरह का प्रेम लोगों को दिया है, उस उम्मीद पर खरा उतरना बड़ी जिम्मेदारी है। सवाल: आप मनीष सिसोदिया को रिप्लेस करते दिख रहे हैं। दिल्ली में उनके बनाए एजुकेशन मॉडल की तारीफ होती है। आपका क्या विजन है?जवाब: मैं सिसोदिया जी को कभी रिप्लेस नहीं कर सकता। वही मुझे लेकर आए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में मुझसे जो सहयोग मांगा जाएगा, वो मैं दूंगा। मेरी इच्छा है कि हमारी शिक्षा जो चंद्रगुप्त, अशोक, समुद्रगुप्त जैसे लोग पैदा करती थी, वो फिर से शुरू हो। सवाल: BJP के खिलाफ आप बाकी AAP नेताओं के मुकाबले कम हमलावर दिख रहे हैं। BJP के लिए आपके क्या पॉइंट हैं?जवाब: पहला तो ये कि आपने जो वादा किया, वो निभाना पड़ेगा। लोगों को 15 लाख दीजिए। आपने यात्रा शुरू की, महंगाई के मुद्दे को लेकर, तो लोगों की दिशा भ्रमित मत कीजिए। 'एक हैं तो सेफ हैं' और 'बंटेंगे तो कटेंगे' जैसी बातें बीच में मत लाइए। महंगाई के मुद्दे लेकर आइए और जनता से बात कीजिए। सवाल: BJP हिंदुत्व की राजनीति करती है, तो AAP चुप्पी साध लेती है। इन मुद्दों पर पार्टी का मौन रहना क्या सही है?जवाब: आम आदमी पार्टी बिल्कुल मौन नहीं रहती। हमने हमेशा से ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट की बात की है। मुख्य ताकत जनता है। जनता तैयार हो जाएगी, तो गलत रास्ते पर जाने वाले को अपने आप साइड कर देगी। सवाल: आप पर 19 केस दर्ज थे, BJP प्रचार कर रही है कि आपने खुलकर कहा है कि आपने मर्डर किया है, क्या लोग ऐसे कैंडिडेट को वोट देंगे?जवाब: इलेक्शन कमीशन के पास मेरे सारे दस्तावेज हैं। मैं किसी भी डॉक्यूमेंट को छिपाता नहीं हूं। मैं BJP वालों से कहता हूं कि वो सारे डॉक्यूमेंट निकालकर पब्लिक करें। लोगों को भी पता चले कि सच्चाई क्या है। अब तो कुछ छिपा नहीं है। लीगल चीजें तो वैसे भी नहीं छिपा सकते हैं। मैं BJP के लोगों से रिक्वेस्ट कर रहा हूं कि वो सारी चीजें सामने निकालकर रखें और लोगों को बताएं कि असलियत क्या है। सवाल: दिल्ली की लड़ाई AAP और BJP के बीच है, या कांग्रेस भी टक्कर में है। नेशनल पॉलिटिक्स में आपको कौन बेहतर लगता है?जवाब: नेशनल पॉलिटिक्स में आने वाले वक्त में केजरीवाल उभरकर आएंगे। दिल्ली में हमने जिस तरह से काम किए हैं, उसका प्रचार पूरे भारत में हो रहा है। आने वाला समय हमारी पार्टी का है। सवाल: आम आदमी पार्टी की शुरुआत भ्रष्टाचार के विरोध और सादगी से हुई थी। ये पहचान पार्टी खो चुकी है। क्या ये कहना ठीक होगा?जवाब: आपने देखा कि अरविंद केजरीवाल ने अपना नामांकन सिर्फ बहनों के साथ किया। कोई लाव-लश्कर नहीं, कोई भौकाल नहीं, कोई दिखावा नहीं। सवाल: किताबी और जमीनी राजनीति में क्या फर्क है?जवाब: जिंदगी का एक सिद्धांत है। हमें बचपन में कहा जाता है टॉप कर जाओगे, जिंदगी में फिर कोई कष्ट नहीं होगा, लेकिन ऐसा नहीं है। जिंदगी में चुनौतियां आती रहती हैं। हर फील्ड की अपनी चुनौतियां होती हैं, जब वो सामने आती हैं, तब पता चलता है कि ये असली चैलेंज है। सवाल: आजकल टीचर सेलिब्रिटी हो गए हैं। लोग आप जैसे लोगों को सुनते हैं। क्या इसका पॉलिटिक्स में फायदा हो रहा है?जवाब: बहुत रिस्पॉन्स मिल रहा है। मैं एक साल से यूट्यूब पर गीता पढ़ा रहा हूं। 58 एपिसोड हो चुके हैं। उस पर सिर्फ स्टूडेंट ही नहीं, बड़ी उम्र के लोग भी जुड़ रहे हैं। सवाल: बतौर पत्रकार मुझे लगता है कि BJP से ज्यादा टोकाटाकी आम आदमी पार्टी में होती है, BBC पर आपका इंटरव्यू रोक दिया गया?जवाब: नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। आपको यहां कोई सवाल करने से रोक नहीं रहा है। वे कार्यकर्ता थे। सेल्फी लेने के चक्कर में गेट पर खड़े थे। उन्हें लगा कि शायद गुरुजी को ग्रिल कर रहे हैं, इसलिए भावुक हो गए। सवाल: कार्यकर्ता थे, तो उन्हें रोकना चाहिए था, लेकिन आपने कहा जो पार्टी कहेगी, वही करूंगा?जवाब: पार्टी और अनुशासन का गहरा संबंध है। कोई भी आदमी संगठन से ऊपर नहीं हो सकता। आप जिस संगठन में काम करते हैं, उसी की परिधि में रहकर काम करना होता है। ये मां-बेटे जैसा है, जो अलग नहीं हो सकता। संगठन में रहते हुए आपको अनुशासन का सम्मान करना होगा। सवाल: पार्टी जॉइन करने के पहले केजरीवाल से क्या बात हुई थी?जवाब: वो मुझसे मिले, गीता पर चर्चा हुई। बोले आप गीता पढ़ाते हैं, मुझे सुनकर बहुत अच्छा लगता है। मेरी तमन्ना थी कि हम कभी बैठें और गीता पर चर्चा करें। सवाल: AAP में कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण जैसे पब्लिक फेस आए, लेकिन ऊपर से नीचे आने में उन्हें जरा भी समय नहीं लगा। ये आपके साथ न हो, इसके लिए क्या सोचा है?जवाब: मैं सिर्फ एक बात जानता हूं कि परिवार में परिवार की तरह रहिए। परिवार में आप अनुशासन के साथ रहते हैं, वैसे ही आपको यहां रहना होगा। परिवार का एक संविधान और रीति है। उसका उल्लंघन करेंगे तो क्या परिवार आपको स्वीकार करेगा। परिवार में नियम के हिसाब से रहिए, आप खुश रहेंगे। सवाल: टीचर से पॉलिटिशियन, ये ट्रांजिशन कैसा चल रहा है और ये क्या डिमांड करता है?जवाब: दूरदर्शिता समय और अनुभव के साथ पैदा होती है। 25 साल तक मेरा शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव रहा है। अब मुझे लगा कि अपने समय और अनुभव को देश के लोगों के विकास में लगा सकता हूं। शिक्षा को लेकर मेरा प्रोजेक्ट है, उस पर काम करना मेरे लिए अति अनिवार्य है। सवाल: पटपड़गंज की जनता आपको क्यों वोट दे?जवाब: मैं उनके बच्चों का भविष्य बनाने जा रहा हूं। मैं अब तक 100 बच्चों की लिस्ट बना चुका हूं। मां-पिता मुझसे जुड़ गए हैं क्योंकि उनके बच्चों को पढ़ने में मजा आने लगा है। सवाल: यहां वोटर्स के मुद्दे क्या हैं, लोगों का क्या फीडबैक मिल रहा है?जवाब: लोगों के अलग-अलग मुद्दे हैं। जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई। यही मुद्दे रहेंगे। इसे ही गति देने की जरूरत है। सवाल: पटपड़गंज में पहाड़ी वोटर्स की तादाद अच्छी खासी है, क्या ये चुनावी समीकरण प्रभावित करेंगे?जवाब: शिक्षक से तो सभी जगह के छात्र पढ़ते हैं। मेरे लिए पूर्वांचली, पहाड़ी, मद्रासी, बंगाली सब एक जैसे हैं। मुझे सभी का समर्थन मिल रहा है। ...........................................इंटरव्यू में सहयोग: श्रेया नाकाड़े, फेलो........................................... दिल्ली इलेक्शन से जुड़ी ये खबरें भी पढ़िए 1. झुग्गियों के लोग बोले- काम के बदले वोट देंगे, 15 लाख वोटर करेंगे 20 सीटों का फैसला दिल्ली के 3 लाख परिवार झुग्गियों में रहते हैं। रोजी-रोटी और अच्छी जिंदगी के तलाश में आए थे, लेकिन छोटे-छोटे कमरों में सिमट कर रह गए। दिन भर मजदूरी करके 400-500 रुपए कमाते हैं। वोट देने के सवाल पर कहते हैं, जो काम देगा उसे वोट देंगे। झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले करीब 15 लाख वोटर 20 सीटों पर फैसला करते हैं। पढ़िए पूरी खबर... 2. केजरीवाल ने 1000 वोटर्स पर लगाए 12 कार्यकर्ता, बस्तियों में फ्री बिजली-इलाज का वादा दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता हर रोज दो टीमें बनाकर निकलते हैं। एक टीम ऐसे इलाके में जाती है, जहां जरूरतमंद लोग रह रहे हों। उनके बीच जाकर कार्यकर्ता सरकारी स्कीम जैसे फ्री बिजली-पानी और इलाज की बातें करते हैं। दूसरी टीम ऐसे इलाकों में जाती है, जहां अमीर लोग रहते हैं। ये विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी की स्ट्रैटजी है। पढ़िए पूरी खबर...
Donald Trump news:होमन ने कहा, 'शिकागो समेतदेश में कई राज्यों में बड़े पैमाने पर छापेमारी होगी. ICE मंगलवार से एक्शन मोड में काम करने जा रहा है. हम ICE के हाथ में लगी बंदिशों की हथकड़ी हटाने हटाने जा रहे हैं. हम उन्हें बड़े पैमाने पर अपराधिक विदेशियों को गिरफ़्तार करने की इजाजत देंगे.'
इस अजीब जानवर को पालने के लिए महिला ने लगाए कोर्ट के चक्कर, दूर से ही देख आप भी डर जाएंगे
France: फ्रांस में एक महिला को जंगली सूअर पालने के लिए कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े, हालांकि इसके बाद महिला को इसे पालने की अनुमति मिल गई. कोर्ट के इस फैसले के बाद से फ्रांस में कई पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने खुशी जाहिर की है.
North Korean Army: रूस-यूक्रेन की जंग में उत्तर कोरियाई सैनिकों को चारा बनाया जा रहा है. ये सैनिक रूस की तरफ से लड़ते हुए मौत को गले लगा रहे हैं. सामने आई एक रिपोर्ट के मुताबिक इस जंग में पूरी उत्तर कोरियाई सेना साफ हो सकती है.
ईरान के सुप्रीम कोर्ट में तड़ातड़ बरसी गोलियां, अंदर घुसकर दो जजों की हत्या
Iran Supreme Court Attack: ईरान के सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की गोली मारकर हत्या कर दी गई है. इस हमले ने पूरी दुनिया को हिला दिया है. हमले में एक गार्ड घायल भी है.
दो बच्चे हैं तो मम्मी-पापा का ज्यादा चहेता कौन होगा? स्टडी में खुलासा
आपके घर में मम्मी-पापा किसे सबसे ज्यादा चाहते हैं? भैया, बहन, छोटे को या बड़े को. अब स्टडी की समीक्षा में एक दिलचस्प जानकारी निकलकर सामने आई है. इससे परिवार के पैटर्न का पता चलता है. आम धारणा यह रहती है कि जो माता-पिता की बात मानता है, वही उनको सबसे ज्यादा प्रिय होता है. क्या सच में ऐसा है?
2024 में 200 बीमारियां...मौत का तांडव देख कराह उठे इस देश के लोग, डॉक्टर्स के भी कांपे हाथ
Africa: आर्थिक संकट और भुखमरी झेल रहे कई अफ्रीकी देशों में स्वास्थ्य सेवाएं मिलना भी बेहद मुश्किल है. हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीका महाद्वीप साल 2024 में 200 से अधिक बीमारियों की चपेट में रहा. इसको लेकर चिंता जाहिर की गई है.
Bangladesh: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को बीते साल कड़े विरोध प्रदर्शन के बाद अपना देश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी थी. वहीं अब हसीना ने एक ऑडियो टेप के जरिए खुद पर हुए हमले को लेकर अपनी चुप्पी तोड़ी है.
Vladimir Putin & Donald Trump:पिछले साल रूसी सेना धीरे-धीरे लेकिन लगातार यूक्रेनी सुरक्षा बलों को धकेलती आगे बढ़ती रही है और पूर्व और दक्षिण में चार क्षेत्रों पर फुल कंट्रोल करने की कोशिश कर रही है. रूस ने युद्ध की शुरुआत में जबरन इन क्षेत्रों का विलय कर लिया था, लेकिन वह कभी पूरी तरह से कब्ज़ा नहीं कर पाया.
8वें वेतन आयोग के आने से सरकारी के साथ- साथ प्राइवेट कर्मचारियों की सैलरी पर क्या फर्क पड़ेगा, क्या होता है फिटमेंट फैक्टर और दिल्ली चुनाव से पहले इसकी घोषणा के क्या हैं मायने, जानेंगे स्पॉटलाइट में
बंटवारे के बाद दिल्ली पहुंचा छोले-भटूरे:38 साल कोई CM नहीं बना; मेट्रो के पीछे की कहानी क्या है
1951-52 में पहली बार दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने थे। कांग्रेस ने तय किया कि सीएम पद का चेहरा देशबंधु गुप्ता होंगे। वो संविधान सभा के सदस्य थे और नेहरू भी उन्हें पसंद करते थे। 21 नवंबर 1951 को देशबंधु गुप्ता को कोलकाता में एक सम्मेलन में भाग लेने जाना था। उन्होंने एयर इंडिया में टिकट तलाशी तो पता चला कि सारी सीटें फुल हैं। महात्मा गांधी के सबसे छोटे बेटे देवदास गांधी उसी फ्लाइट से कोलकाता जा रहे थे। अचानक देवदास गांधी को दिल्ली में कोई काम पड़ा। उन्होंने कोलकाता जाने वाली अपनी यात्रा रद्द कर दी। इस तरह एक सीट खाली हो गई। वो सीट देशबंधु गुप्ता को अलॉट कर दी गई। वे विमान में सवार हो गए, लेकिन ये विमान लैंडिंग से पहले कोलकाता एयरपोर्ट के पास क्रैश हो गया। इस हादसे में देशबंधु गुप्ता सहित विमान में सवार सभी यात्री मारे गए। ऐसे में आनन-फानन में दिल्ली के लिए नया सीएम खोजा गया। 'दिल्ली की कहानी' सीरीज के आखिरी एपिसोड में आजादी के बाद की दिल्ली... इतिहासकार वीएन दत्ता एक लेख में कहते हैं कि दिल्ली वह शहर है, जो पहले मुगलों का था, फिर ब्रिटिशर्स का बना और 1950 के बाद ये पंजाबी शहर बन गया है। मुसलमानों, हिंदू राजपूतों और बनियों की आबादी वाली दिल्ली में 1947 के बाद एक तिहाई आबादी पंजाबियों की हो गई। दिल्ली सरकार के रिटायर्ड ऑफिसर राहुल सिंह बताते हैं कि खान मार्केट शरणार्थियों ने शुरू किया था आज यह शहर के सबसे पॉश बाजारों में से एक है। इसका श्रेय पाकिस्तान से आए पंजाबी शरणार्थी व्यापारियों को जाता है। यहां के ज्यादातर लोग लाहौर, मुल्तान, रावलपिंडी और सियालकोट जैसे पाकिस्तानी शहरों में सफल व्यापारी हुआ करते थे। सिंधी व्यापारियों की अपनी कहानी है। चांदनी चौक में चैना राम सिंधी हलवाई वाले ने कराची हलवे को दिल्ली ही नहीं, पूरे देश में मशहूर कर दिया है। इस दुकान की स्थापना चैनाराम के बेटे नीचाराम ने की थी। इससे पहले उनकी दुकान लाहौर में थी। बांग्लादेश से आए शरणार्थियों ने साउथ दिल्ली में चित्तरंजन पार्क एरिया बसाया। 60 के दशक में इसे EPDP यानी 'पूर्वी पाकिस्तान के विस्थापितों की कॉलोनी' कहा जाता था। ये वो लोग हैं, जिन्होंने दिल्ली को झाल मुरी का स्वाद चखाया। अब ये दिल्ली का पॉश एरिया है। यहां की दुर्गा पूजा देखने पूरी दिल्ली आती है। ऐसी ही एक कहानी छोले-भटूरे को लेकर है। दिल्ली के कमला नगर इलाके में एक मशहूर दुकान है 'चाचे दी हट्टी रावलपिंडी के छोले भटूरे'। शॉप के मालिक प्रवीण कुमार बताते हैं, 'हम मूल रूप से पंजाबी हैं। मेरे पिताजी प्राणदान कुमार आजादी से पहले पाकिस्तान के रावलपिंडी में रहते थे। वहीं उनकी छोले-भटूरे की दुकान थी। बंटवारे के बाद वो दिल्ली आ गए। उन्हें केवल छोटे-भटूरे का काम आता था। जब रेफ्यूजी कैंप से निकले तो उन्होंने इसी धंधे को फिर से शुरू किया।' 'प्रवीण आगे कहते हैं, 'पिताजी सिर पर सारा सामान ढोकर सरकारी दफ्तरों के सामने जाकर छोले-भटूरे बेचते थे। फिर आदर्श कॉलेज के सामने बैठने की जगह मिल गई, तो वहीं काम शुरू किया। पैसे जोड़कर 1958 में कमला नगर में दुकान ली। तब से आज तक ये दुकान है।' प्रवीण बताते हैं कि उनके पिता को सब चाचा कहते थे, इस कारण उनकी दुकान का नाम 'चाचा की हट्टी' पड़ा। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ब्रज किशन चांदीवाला ने एक बार पीएम जवाहरलाल नेहरू को लिखा था कि दिल्ली के लोगों ने अपनी खास पहचान खो दी है। दिल्ली के मूल निवासी अपने ही घर में अनजान हो गए हैं। जवाब में नेहरू ने लिखा था, 'आपकी शिकायतें विभाजन के दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम हैं।' सीएम पद के उम्मीदवार देशबंधु गुप्ता का प्लेन क्रैश में निधन हुआ तो नया नाम चौधरी ब्रह्म प्रकाश का तय हुआ। युवा ब्रह्म प्रकाश ने आजादी के आंदोलन में भाग लिया था। कई बार जेल गए थे, इसलिए उनके नाम पर सहमति बन गई। उस समय कांग्रेस की आंधी चल रही थी। 27 मार्च 1952 को दिल्ली विधानसभा के लिए पहली बार चुनाव हुए। नतीजा आया तो कुल 48 सीटों में से कांग्रेस 39 सीटों पर जीती। मात्र 34 साल की उम्र में चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के सीएम बने। तब वे देश के सबसे कम उम्र के सीएम बने थे। ये रिकॉर्ड आज भी कायम है। ब्रह्म प्रकाश को 'शेर-ए-दिल्ली' कहा जाता था। वे सरकारी गाड़ी में नहीं, बल्कि बसों में सफर करते थे, ताकि लोगों की समस्याओं का पता लगा सकें। बसों में सफर के दौरान लोगों से मिलकर उनका फीडबैक लेते थे। 1955 में जब एक घोटाला हुआ तो सरकार का मुखिया होने के नाते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 12 फरवरी 1955 को उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। बाद में वे दो बार लोकसभा के लिए चुने गए और केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे। इसके बाद दिल्ली में चुनाव नहीं हुए, केंद्र सरकार ने उसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया। केंद्र सरकार ने 1993 में दोबारा दिल्ली में इलेक्शन शुरू कराए। तब बहुमत बीजेपी के हिस्से आया और मदनलाल खुराना सीएम बने। दो साल बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद साहेब सिंह वर्मा भी दो साल ही सीएम रहे पाए। महीने भर के लिए सुषमा स्वराज सीएम बनीं। तब तक दोबारा इलेक्शन का समय आ गया। 3 दिसंबर 1998 को कांग्रेस की शीला दीक्षित दिल्ली की सीएम बनीं। वे 15 साल तक सीएम रहीं। उनके बाद आप की अरविंद केजरीवाल सरकार आई और अब आतिशी दिल्ली की सीएम हैं। आपातकाल का दौर था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी दिल्ली के सौंदर्यीकरण की योजना बना रहे थे। 15 अप्रैल 1976 को वे पुरानी दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके का दौरा करने पहुंचे। ये मुस्लिम बहुल इलाका था और झुग्गियों से पटा हुआ था। जामा मस्जिद तक पहुंचने के लिए संजय को इन झुग्गियों की भूलभुलैया से गुजरना पड़ा। संजय गांधी ने दिल्ली विकास प्राधिकरण के वाइस चेयरमैन जगमोहन से कहा कि इस इलाके की 'सफाई' होनी चाहिए। अशोक चक्रवर्ती अपनी किताब 'द स्ट्रगल विदिन: ए मेमॉयर ऑफ द इमरजेंसी' में लिखते हैं कि जगमोहन समझ गए कि संजय कैसी 'सफाई' चाहते हैं। 16 अप्रैल 1976 को पुरानी दिल्ली में बुलडोजर तैनात हो गए। झोपड़ियों और घरों की महिलाओं को जबरदस्ती बाहर निकाला जा रहा था। एक तरफ लोगों के घर गिराए जा रहे थे, दूसरी तरफ उन्हें पकड़ कर जबरन नसबंदी शिविरों में ले जाकर नसबंदी की जा रही थी। इससे जामा मस्जिद, चांदनी चौक और तुर्कमान गेट के आसपास रहने वाले लोगों में गुस्सा फैल गया। हजारों लोगों ने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। प्रदर्शन हिंसक हो गया। प्रशासन भी पीछे हटने को तैयार नहीं था, क्योंकि संजय गांधी का आदेश था। पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी, जनता ने पत्थरबाजी की। तीन दिन में कई लोग मारे गए। पुलिस की बंदूकें और प्रशासन का बुलडोजर केवल रात को शांत रहते थे। जब जनता का आक्रोश बढ़ गया तो अतिरिक्त सुरक्षा बल लगाया गया। जो भी सामने आया पुलिस ने उसकी आवाज खामोश कर दी। सड़क पर पड़ी लाशों को प्रशासन ने बुलडोजर से एक गड्ढा खोदकर दफना दिया। कई इंडिपेंडेंट रिसर्चर्स का कहना है कि इस टकराव में करीब 400 लोगों की मौत हो गई थी। नवंबर 2020 से ही दिल्ली की सीमा से लगे पंजाब, हरियाणा और यूपी बॉर्डर पर हजारों किसान डटे हुए थे। वो केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को लेकर नाराज थे। 26 जनवरी 202़1 को किसानों ने दिल्ली के बाहरी इलाके में शांतिपूर्ण ट्रैक्टर परेड की अनुमति मांगी। सरकार ने अनुमति दे दी। दोपहर हाेते-होते किसानों ट्रैक्टर आईटीओ और लाल किले की तरफ चलने लगे। कई ट्रैक्टर वीवीआईपी इलाके लुटियंस में भी पहुंच गए। करीब 5 लाख ट्रैक्टर्स के साथ किसानों ने दिल्ली को एक तरह से बंधक बना लिया था। कुछ आंदोलनकारी लाल किले पहुंच गए। जहां हर साल 15 अगस्त पर पीएम झंडा फहराते हैं, उस पोल पर एक प्रदर्शनकारी ने भगवा झंडा फहरा दिया। पूरी दुनिया ने इसे लाइव देखा। प्रदर्शनकारी दिल्ली में जगह-जगह तोड़फोड़ कर रहे थे। लाखों किसानों के आगे पुलिस और सुरक्षा तंत्र बेबस नजर आया। जब किसानों की आलोचना होने लगी तो प्रदर्शनकारी ठंडे पड़े और शाम होते-होते दिल्ली शांति हुई। बाद में आंदोलन के मुखिया और किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा, 'हुड़दंग करने वाले लोग किसान नहीं हैं। हमारे आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।' इस घटनाक्रम से सरकार ने सबक लिया। सुरक्षा व्यवस्था इतनी तगड़ी की गई कि दोबारा ऐसी कोई घटना नहीं हुई है। प्रदर्शन अब भी होते हैं, लेकिन अब आंदोलनकारियों को जंतर-मंतर पर ही जुटने की अनुमति दी जाती है। दिल्ली में हुए कुछ और बड़े आंदोलन… अन्ना आंदोलन: 5 अप्रैल 2011 को समाज सेवी अन्ना हजारे ने लोकपाल बिल की मांग को लेकर दिल्ली में आमरण अनशन शुरू किया था। इसमें रोज दिल्ली के रामलीला मैदान पर लाखों लोग समर्थन देने के लिए इकट्ठा हो रहे थे। देशभर में लाखों लोग सड़कों पर उतर आए थे। अंतत: सरकार बातचीत को तैयार हुई और 9 अगस्त 2011 को अन्ना ने आंदोलन खत्म किया था। निर्भया आंदोलन: 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में एक लड़की का गैंगरेप कर हत्या कर दी गई थी। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। महिला सुरक्षा को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान और जंतर-मंतर पर लोगों ने प्रदर्शन किया था। मृतक लड़की को 'निर्भया' नाम दिया गया और पूरा देश इस आंदोलन में कूद पड़ा था। शाहीन बाग: दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ 15 दिसंबर 2019 को आंदोलन शुरू हुआ था। इसमें महिलाएं और बुजुर्ग अपने बच्चों के साथ हिस्सा ले रही थीं। 24 मार्च 2020 को सरकार ने लॉकडाउन लागू किया। इसके बाद ये आंदोलन खत्म हो गया था। एशियन गेम्स: दिल्ली को पहचान मिली, इन्फ्रास्ट्रक्चर बदला 1951 में भारत को पहले एशियन गेम्स की मेजबानी मिली थी। प्रोफेसर गुरुदत्त सोंधी को एशियाई खेलों की आयोजन समिति का डायरेक्टर बनाया गया। बिना किसी बुनियादी ढांचे और पैसों की कमी से परेशान होकर प्रोफेसर सोंधी ने आयोजन के छह महीने पहले इस्तीफा दे दिया। इसके बाद बीसीसीआई के संस्थापक सदस्यों में से एक एंथनी स्टैनिस्लॉस डी मेलो को नया डायरेक्टर बनाया गया। खेल कमेटी में रहे एसएस धवन के बेटे टूटू धवन बताते हैं कि पहले एशियाड की सारी चीजें आज भी मेरे घर में जस की तस रखी हैं। तब दिल्ली में कोई स्टेडियम नहीं था। कोई ट्रैक, कोई उपकरण नहीं था, न कोई फंड था। केंद्र सरकार ने फंड देने से इनकार कर दिया था। भारतीय ओलिंपिक संघ के पास पैसा नहीं था। 1000 खिलाड़ियों के ठहरने और खेल गांव बनाने के लिए डी मेलो, तब के आर्मी चीफ जनरल केएम करिअप्पा के पास गए। उन्होंने खिलाड़ियों को सेना की दो बिल्डिंग उधार दे दीं, जो स्टेडियम के दो छोरों पर थीं। टूटू बताते हैं कि उस समय स्टेडियम, ट्रैक और सड़कें बनाई गईं। एक तरह से दिल्ली का इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार हुआ। डी मेलो ने अपने संस्मरण में लिखा है कि मैंने चार साल का काम छह महीने में किया था। डी मेलो, पीएम नेहरू के पास गए और कहा कि सरकार को कुछ मदद करनी चाहिए। इसके बाद उन्होंने पीएम रिलीफ फंड से 10 लाख रुपए खर्च करने की अनुमति दी। इस तरह दिल्ली में पहले एशियाई खेल हुए, जिससे इस शहर को नई पहचान मिली। सीएनजी: सुप्रीम कोर्ट ने 1 हजार रुपए प्रति बस जुर्माना लगाया 1990 के दशक के आखिर में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका लगाई। याचिका में कहा कि दिल्ली में सांस लेना मुश्किल हो रहा है। इसकी वजह दिल्ली में चल रहे डीजल वाले वाहन हैं। कोर्ट सरकार को निर्देशित करें। सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण बनवाया। तय किया गया कि सीएनजी लाएंगे तो प्रदूषण दूर हो जाएगा। सन् 2000 तक दिल्ली के सभी ऑटो-टैक्सियों को सीएनजी में बदला गया। मार्च 2001 तक सभी सरकारी बसों में सीएनजी किट लगानी थी, लेकिन 2002 तक भी ये नहीं हो पाया। सुप्रीम कोर्ट ने फिर फटकार लगाई। शीर्ष कोर्ट ने प्रति बस 1 हजार रुपए रोज का जुर्माना लगाया। सरकार ने ताबड़तोड़ सारी बसें और सरकारी वाहन सीएनजी करवा दिए। मेट्रो: दिल्ली की लाइफलाइन, जो 99% टाइम पर चलती है तीन बार दिल्ली की सीएम रहीं शीला दीक्षित ने एक इंटरव्यू में बताया था, 'मैं पहली बार सीएम बनी थी। कुछ दिनों बाद मैं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के पास गई। उनसे कहा कि शहर में ट्रैफिक बढ़ रहा है। हमारे पास दिल्ली मेट्रो का प्लान तैयार है। हमें आपकी सहमति चाहिए। अटलजी ने केवल एक ही वाक्य कहा था, इसे तुरंत इम्प्लीमेंट करवाइए।' 1984 में दिल्ली मेट्रो की योजना पहली बार दिल्ली मास्टर प्लान में शामिल की गई थी, लेकिन वित्तीय और तकनीकी दिक्कतों के चलते इसे तुरंत लागू नहीं किया जा सका। 1995 में दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन बनाई गई। ई श्रीधरन को प्रोजेक्ट का मुखिया बनाया गया। मेट्रो प्रोजेक्ट में खर्च को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार में मतभेद थे। केंद्र की कांग्रेस सरकार हिचकिचा रही थी। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की बीजेपी सरकार ने इसे हरी झंडी दी। ई श्रीधरन की सख्त कार्यशैली के कारण 2002 में मेट्रो का पहला चरण पूरा हुआ। तब 8.4 किलोमीटर शाहदरा से तीस हजारी तक मेट्रो चली थी। अपने जन्मदिन के एक दिन पहले 24 दिसंबर 2002 को पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने सफर करके इसका उद्घाटन किया। दिल्ली की मेट्रो पूरे देश में मिसाल दी जाती है। इसकी 99% ट्रेनें समय पर चलती हैं। आज के समय में 200 ट्रेनें रोजाना 69 हजार किलोमीटर की यात्रा करती हैं। ---------------- दिल्ली की कहानी सीरीज के अन्य एपिसोड... 1. महाभारत का इंद्रप्रस्थ कैसे बना दिल्ली:पांडवों ने नागों को भगाकर बसाया; यहीं के महल में बेइज्जत हुए दुर्योधन दिल्ली का इतिहास भारत की माइथोलॉजी यानी पौराणिक कथाओं जितना पुराना है। महाभारत के युद्ध में दिल्ली की बड़ी भूमिका थी। हालांकि तब इसे इंद्रप्रस्थ कहा जाता था। उस दौर में नाग यहां रहा करते थे। जानिए कैसे पांडवों ने उन्हें भगाया। पूरी खबर पढ़ें पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी का पहला मुकाबला 1191 में तराइन के युद्ध में हुआ। ये जगह हरियाणा के करनाल के पास है। पृथ्वीराज की सेना ने मोहम्मद गोरी की सेना को तहस-नहस कर दिया। मोहम्मद गोरी सेना समेत पंजाब की तरफ भाग खड़ा हुआ। पृथ्वीराज ने गोरी को खदेड़ने की कोशिश नहीं की और उसकी जान बच गई। पृथ्वीराज की इस गलती ने भारत के इतिहास का रुख ही मोड़ दिया। पढ़िए पूरी खबर... 3. अंग्रेजों ने कलकत्ता से दिल्ली क्यों शिफ्ट की राजधानी:महारानी तक से छिपाया गया प्लान; नई दिल्ली बनाने में 20 साल लगे बात उन दिनों की है, जब देश की राजधानी कलकत्ता थी। 1905 में बंगाल का बंटवारा हुआ, तो अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गए। अंग्रेज अफसरों पर लगातार हमले हो रहे थे। शासन चलाने के लिए कलकत्ता असुरक्षित और अस्थिर हो गई, तो अंग्रेजों ने नई राजधानी के बारे में सोचा। पढ़िए पूरी खबर...
16 जनवरी की रात 2 बजे। सैफ अली खान के बेटे जहांगीर के कमरे में एक शख्स घुसा। देखभाल करने वाली स्टाफ नर्स ने देखा तो शोर मचा दिया। शख्स ने चुप रहने को कहा और 1 करोड़ रुपए मांगे। शोर सुनकर सैफ भी वहां पहुंचे। उन्हें देखते ही हमलावर ने अटैक कर दिया। सैफ ने उसे किसी तरह कमरे में कैद कर दिया। बाद में स्टाफ ने देखा तो वो कमरे से फरार हो चुका था। ये FIR में दर्ज कहानी का मजमून है। जिस तरह हाई सिक्योरिटी वाली सोसाइटी में हमलावर घुसा और सैफ पर जानलेवा हमला कर आसानी से फरार हो गया। इससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्राइम ब्रांच की 8 टीमें इन्वेस्टिगेट कर रही हैं कि आखिर हमलावर कैसे घुसा और उसका असली मकसद क्या था? FIR में दर्ज कहानी, पुलिस की जांच, घर में मौजूद स्टाफ के बयानों और परिस्थिति जनित साक्ष्यों के आधार पर फिलहाल 3 तरह के थ्योरीज सामने आ रही हैं। ये थ्योरीज और उन पर उठ रहे सवाल, जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में… हमलावर की सैफ से कोई निजी दुश्मनी नहीं थी। वह सैफ के बेटे जहांगीर को बंधक बनाकर लूट को अंजाम देने के इरादे से घुसा होगा। ये थ्योरी FIR में दर्ज कहानी से मेल खाती है। सैफ अली खान के छोटे बेटे जहांगीर की 56 साल की नैनी यानी दाई अरियामा फिलिप ने बांद्रा पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज कराई। FIR के मुताबिक… पुलिस की जांच: मुंबई के डीसीपी दीक्षित गेडाम ने बताया कि BNS की धारा 311 (मौत या गंभीर चोट पहुंचाने की कोशिश के साथ डकैती), 312 (जानलेवा हथियार के साथ डकैती की कोशिश) और 331 (घर में सेंध लगाकर हमला करना) के तहत मामला दर्ज किया गया है। डकैती की धाराएं तब लगाई जाती हैं जब घटना में 5 या उससे ज्यादा लोग शामिल हों। अभी यह जानकारी सामने नहीं आई है कि पुलिस ने कितने लोगों को आरोपी बनाया है, साथ ही घटना का मुख्य आरोपी कौन है। एक सीनियर पुलिस ऑफिसर ने कहा कि आरोपी ने फ्लैट में घुसने के लिए बिल्डिंग शाफ्ट का इस्तेमाल किया होगा, क्योंकि वह दोनों लिफ्टों और लॉबी में लगे CCTV कैमरों में नहीं दिखा। बिल्डिंग में दो एंट्री गेट हैं। मेन गेट पर दो सिक्योरिटी गार्ड हैं जबकि दूसरे गेट पर एक गार्ड है। इस थ्योरी पर सवालः हाई सिक्योरिटी सोसाइटी में हमलावर कैसे घुसा? हमला करने के बाद शोर-शराबे के बीच वह भागने में कामयाब कैसे हुआ? सैफ के किसी स्टाफ ने हमलावर की मदद की होगी। उसे घर में घुसने और बाहर निकलने के सभी रास्ते पता थे। उसे ये भी पता था कि वह बिल्डिंग में लगे CCTV फुटेज से कैसे बच सकता है। पुलिस इस थ्योरी के आधार पर भी जांच कर रही है। FIR में फिलिप ने बताया… FIR से ऐसा लगता है कि हमलावर को पता था कि कमरे की खिड़की के रास्ते वह बाहर कैसे निकलेगा। पुलिस की जांच: पुलिस के मुताबिक, छठी मंजिल पर फायर-एग्जिट के लिए जो सीढ़ियां बनी हैं उसके CCTV फुटेज में हमलावर को 2 बजकर 33 मिनट पर निकलते देखा गया। आरोपी कमरे की खिड़की से भागा। एक सीनियर पुलिस ऑफिसर ने कहा कि बिल्डिंग के दूसरे गेट की दीवार ऊंची नहीं है। जो जाल लगा है वह भी फटा हुआ है। यह किसी अंदरूनी आदमी का काम हो सकता है। मुंबई पुलिस ने ये भी कहा है कि, हमलावर सैफ के स्टाफ में से एक का रिश्तेदार है, जिसने उसे घर में घुसने दिया। स्टाफ से पूछताछ की जा रही है। महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और वरिष्ठ एनसीपी (एसपी) नेता डॉ. जितेंद्र आव्हाड ने इस हमले को साजिश बताया। आव्हाड ने कहा, 'सैफ अली खान पर हमला किसी प्लांड साजिश का हिस्सा हो सकता है। जिस तरह से सैफ को पिछले कई सालों से अपने बेटे का नाम तैमूर रखने के लिए निशाना बनाया जा रहा है, उसे देखते हुए इस बात की जांच जरूरी है कि यह हमला धार्मिक कट्टरपंथियों ने किया था या नहीं।' FIR के मुताबिक, हमलावर ने सैफ पर 6 बार ब्लेड से वार किया। इससे यह संभावना बढ़ जाती है कि हमला सिर्फ चोरी या लूट के लिए नहीं, बल्कि मर्डर के इरादे से किया गया था। हालांकि, इस संकेत से किसी फैसले पर नहीं पहुंचा जा सकता है। पुलिस की जांचः पुलिस फिलहाल इस थ्योरी से इनकार कर रही है। पुलिस का मानना है कि हमलावर चोरी या लूट के इरादे से घुसा था। उसका मकसद हत्या करना नहीं था और न ही ये प्री प्लांड है। गृह राज्य मंत्री योगेश कदम ने शुक्रवार को पुणे में संवाददाताओं से कहा कि सैफ अली खान पर चाकू से हमले के पीछे किसी अंडरवर्ल्ड गिरोह का हाथ नहीं है। हमले के सिलसिले में हिरासत में लिया गया संदिग्ध किसी गिरोह का सदस्य नहीं है। किसी गिरोह ने यह हमला नहीं किया है। अब इस मामले से जुड़े 3 जरूरी सवालों के जवाब… सवाल-1: हमलावर को ढूंढने में पुलिस को देरी क्यों हो रही?जवाबः पुलिस अधिकारियों का कहना है कि उनके पास आरोपी की सिर्फ तस्वीर है। पुलिस को आरोपी के बारे में कोई और जानकारी नहीं है। इसलिए अभी तक आरोपी की पहचान नहीं हो पाई है। पुलिस की लगभग 20 टीमें मामले की जांच कर रही हैं। पुलिस ने 17 जनवरी की सुबह बांद्रा रेलवे स्टेशन से एक संदिग्ध को गिरफ्तार किया था। संदिग्ध का हुलिया हमलावर के हुलिए से मेल खा रहा था। कहा गया था कि संदिग्ध पर पहले से ही हाउस-ब्रेक यानी सेंधमारी के 5 केस दर्ज हैं। हालांकि दोपहर तक पूछताछ के बाद पुलिस ने कहा कि इस शख्स का सैफ अली खान के केस से कोई लेना देना नहीं है। अभी तक किसी को हिरासत में नहीं लिया गया है। इस बीच महाराष्ट्र के गृह राज्य मंत्री योगेश कदम ने कहा, एक्टर पर हमले के पीछे किसी अंडरवर्ल्ड गैंग का हाथ नहीं है। सैफ ने कभी नहीं बताया कि उन्हें खतरा है या फिर सुरक्षा की जरूरत है। सवाल-2: हमले के करीब 44 घंटे बाद सैफ की हालत कैसी है?जवाबः 17 जनवरी को मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल के चीफ न्यूरोसर्जन डॉ. नितिन डांगे और COO डॉ. नीरज उत्तमानी ने बताया कि सैफ को ICU से अस्पताल के स्पेशल रूम में शिफ्ट कर दिया गया है। वे खतरे से बाहर हैं। सैफ के गले, पीठ, हाथ और सिर समेत 6 जगह ब्लेड लगा था। सैफ की रीढ़ की हड्डी में ब्लेड का ढाई इंच का टुकड़ा फंसा था और फ्लूड भी लीक हो रहा था। सर्जरी करके ब्लेड निकाला गया। डॉक्टर ने कहा कि अगर एक्टर की रीढ़ में चाकू 2 मिमी. और धंस गया होता तो रीढ़ की हड्डी को काफी नुकसान पहुंच सकता था। सवाल-3: क्या सैफ की बिल्डिंग में सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त नहीं है?जवाब: पुलिस ने बताया कि सैफ की बिल्डिंग में सुरक्षा व्यवस्था सख्त नहीं है। बांद्रा में इतनी हाई-प्रोफाइल बिल्डिंग के लिए सोसाइटी में CCTV कवरेज अपर्याप्त है। बिल्डिंग के बाहर दुकानदारों ने बताया कि गेट पर तैनात सिक्योरिटी गार्ड बिना जांच किए उन्हें अपार्टमेंट में जाने की इजाजत दिया करते थे। बिल्डिंग के बगल में एक सब्जी विक्रेता ने कहा, 'अगर हमें सब्जियां या फल डिलीवर करने का ऑर्डर मिलता है, तो हम गेट पर जाकर खड़े हो जाते हैं और चौकीदार को बता देते हैं। फिर वह कार्ड का इस्तेमाल करके ऑटोमैटिक गेट खोल देता है और हम लिफ्ट से सामान पहुंचा देते हैं।' ------------- सैफ अली खान से जुड़ी अन्य खबर पढ़ें 1200 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं सैफ अली खान: 800 करोड़ का पटौदी पैलेस, दिन में तीन बार घड़ी बदलते हैं बॉलीवुड एक्टर सैफ अली खान पर बुधवार देर रात करीब 2:30 बजे चाकू से 6 बार हमला हुआ है। सैफ पर ये हमला उनके मुंबई में खार स्थित घर पर हुआ। देर रात तीन बजे सैफ को लीलावती हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। उनके गले, पीठ, हाथ, सिर पर चाकू लगा है। दो घाव ज्यादा गहरे थे, जिसकी वजह से सर्जरी भी करनी पड़ी। पूरी खबर पढ़ें...
तारीख 1 फरवरी 2013, प्रयाग में महाकुंभ लगा हुआ था। तब विश्व हिंदू परिषद यानी वीएचपी के अध्यक्ष अशोक सिंघल ने नरेंद्र मोदी को लेकर एक ऐसी बात कह दी, जिससे राजनीतिक गलियारों में कुंभ की चर्चा होने लगी। सिंघल ने कहा- ‘6 फरवरी को संत सम्मेलन है। उसमें मोदी को लेकर ऐसा फैसला लिया जाएगा, जिससे देश का इतिहास बदल जाएगा।’ 4 फरवरी अशोक सिंघल ने साधु-संतों से मीटिंग की। इसमें बाबा रामदेव, शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती, जगद्गुरु स्वामी वासुदेवाचार्य और आचार्य गोविंद गिरि जैसे संत शामिल थे। दो दिन बाद यानी 6 फरवरी को सिंघल ने कहा- ‘नेहरू जी के बाद पहली बार किसी नेता को इतनी लोकप्रियता मिल रही है। जनता के बीच से मोदी को प्रधानमंत्री बनाए जाने की मांग उठ रही है। मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाना चाहिए।’ इसी दिन तबके बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह संगम पहुंचे। कहा जाता है कि राजनाथ, मोदी की उम्मीदवारी पर संत समाज की राय जानने आए थे। अशोक सिंघल ने उन्हें फीडबैक दिया। अगले दिन यानी 7 फरवरी को धर्म संसद बुलाई गई। इसमें हजारों साधु-संत शामिल हुए। RSS प्रमुख मोहन भागवत भी धर्म संसद में पहुंचे थे। जगद्गुरु वासुदेवाचार्य बताते हैं कि धर्म संसद में उन्होंने नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने का प्रस्ताव रखा। साधु-संतों ने चिमटा बजाकर मोदी का समर्थन किया। कई संतों ने मोदी के नाम को लेकर नारे भी लगाए। मोहन भागवत ने भी सहमति जताई। जब पत्रकारों ने भागवत से सवाल पूछा तो उन्होंने कहा- ‘मोदी मेरे दोस्त हैं, लेकिन मैं राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं।’ 12 फरवरी को मोदी कुंभ में आने वाले थे। हालांकि, ऐन मौके पर उनका प्लान कैंसिल हो गया। करीब 5 महीने बाद, 9 जून 2013 को गोवा में BJP राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आखिरी दिन था। बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा- 'मैंने फैसला किया है कि केंद्रीय स्तर पर भी सेंट्रल कैंपेन कमेटी बनाई जाए और मैं नरेंद्र मोदी को उस कैंपेन कमेटी का चेयरमैन घोषित करता हूं।' इस ऐलान के साथ ही नरेंद्र मोदी, 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के कर्ताधर्ता बन गए। बीजेपी को प्रचंड जीत मिली और मोदी प्रधानमंत्री बने। ‘महाकुंभ के किस्से’ सीरीज के सातवें एपिसोड में कहानी पॉलिटिक्स और कुंभ कनेक्शन की… प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के अगले ही दिन कुंभ पहुंचीं इंदिरा गांधी 11 जनवरी 1966 की रात भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में निधन हो गया। नए प्रधानमंत्री की रेस में दो नाम सबसे आगे थे। पहला- कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज का और दूसरा- बंबई प्रांत के मोरारजी देसाई का। तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। सिंडिकेट की पसंद के. कामराज थे, लेकिन उन्होंने ऐन वक्त पर यह कहते हुए मना कर दिया कि ‘मुझे ना तो हिंदी आती है, ना इंग्लिश…मैं देश को एकजुट कैसे करूंगा।’ वहीं, मोरारजी को लेकर सिंडिकेट असहज था। उन्हें लगता था कि मोरारजी पीएम बन गए, तो उनका वर्चस्व खत्म हो जाएगा। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक सागरिका घोष अपनी किताब ‘इंदिरा इंडियाज मोस्ट पावरफुल प्राइम मिनिस्टर' में लिखती हैं- ‘सिंडिकेट की नजर में इंदिरा कमजोर नेता थीं। संसद में बोलते वक्त उनके हाथ-पैर कांपते थे। लोग उन्हें गूंगी गुड़िया कहने लगे थे। लिहाजा इंदिरा, सिंडिकेट के लिए परफेक्ट चॉइस थी। नेहरू की बेटी होने के कारण उन्हें कोई खारिज भी नहीं कर सकता था।’ 19 जनवरी 1966 को कांग्रेस पार्लियामेंट्री पार्टी यानी CPP की बैठक में इंदिरा और मोरारजी के बीच चुनाव हुआ। इंदिरा को 355 और मोरारजी को 169 सांसदों के वोट मिले। 13 दिन बाद यानी 24 जनवरी को इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। इंदिरा ऐसे समय में PM बनी थीं, जब दो साल के भीतर दो प्रधानमंत्रियों का निधन हो चुका था और अगले ही साल लोकसभा चुनाव होने थे। उन्हें पार्टी के भीतर और बाहर खुद को साबित करना था। उसी साल प्रयाग में कुंभ लगा था। प्रयाग से गांधी परिवार का गहरा नाता था। इंदिरा वहीं जन्मीं थीं। उनके पिता जवाहर लाल नेहरू अक्सर प्रयाग जाते रहते थे। इंदिरा के पीएम बनने के अगले ही दिन यानी 25 जनवरी को मौनी अमावस्या थी। इंदिरा, लाल बहादुर शास्त्री की अस्थियां लेकर संगम पहुंच गईं। उनके साथ राष्ट्रपति राधा कृष्णन, कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज और जाकिर हुसैन भी मौजूद थे। हालांकि, इंदिरा के कुंभ में आने का राजनीतिक फायदा कांग्रेस को नहीं मिला। 1967 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत तो मिला, लेकिन महज 283 सीटें ही जीत सकीं, जो 1952 के लोकसभा चुनाव के बाद सबसे कम थीं। कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज, केबी सहाय जैसे कई कद्दावर नेता हार गए। पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, केरल, मद्रास, ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में पार्टी के हाथ से सत्ता फिसल गई। लोकसभा भंग करने के 4 दिन बाद ही कुंभ पहुंचीं इंदिरा, साधुओं ने ‘मरी हुई दुश्मन’ कहा 18 जनवरी 1977, देश में इमरजेंसी लगी थी। शाम को इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर चार मिनट का भाषण दिया। उन्होंने कहा- ‘मैंने राष्ट्रपति को वर्तमान लोकसभा भंग करने और फ्रेश चुनाव के लिए आदेश देने की सलाह दी है। राष्ट्रपति ने इस पर सहमति जताई है। हमें उम्मीद है कि मार्च में चुनाव होंगे।’ चार दिन बाद यानी 22 जनवरी को इंदिरा प्रयाग पहुंचीं। उस दिन भी मौनी अमावस्या थी और कुंभ लगा था। संगम में स्नान करने के बाद इंदिरा, साधु-संतों से मिलीं। मंच पर भाषण दिया और वापस दिल्ली लौट गईं। ये वो दौर था जब इमरजेंसी की वजह से इंदिरा को लेकर लोगों में नाराजगी थी। ये नाराजगी कुंभ में भी दिखी। कई साधु-संत इंदिरा के विरोध में थे। साधु-संतों ने इंदिरा को ‘मरी हुई देश का दुश्मन’ घोषित किया था। तब इमरजेंसी के दौरान इंदिरा का पुरजोर विरोध करने वाले जय प्रकाश नारायण भी कुंभ पहुंचे और साधु-संतों से मिले थे। मार्च 1977 में नतीजे आए। इंदिरा की पार्टी 154 सीटों पर सिमट गई। इंदिरा खुद भी रायबरेली से चुनाव हार गईं। 295 सीटें जीतकर जनता पार्टी ने सरकार बनाई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। यह आजादी के बाद पहली गैर-कांग्रेसी सरकार थी। कुंभ में राम मंदिर बनाने का ऐलान, 2 से बढ़कर 85 सीटों पर पहुंची बीजेपी साल 1989, प्रयाग में कुंभ लगा। प्रधानमंत्री राजीव गांधी कुंभ में आने वाले थे। ‘पिलग्रिमेज एंड पावर : द कुंभ मेला इन इलाहाबाद फ्रॉम 1776-1954’ में कामा मैकलिन लिखती हैं- ‘राजीव का कुंभ में आने का प्लान बन गया था। उनके लिए प्रयाग में हेलीपैड भी तैयार कर लिया गया था, लेकिन इस बीच कांग्रेस तमिलनाडु में चुनाव हार गई। उसे सिर्फ 26 सीटें मिलीं। पिछली बार से 37 सीटें कम। राजीव गांधी को सलाह दी गई कि वे अपना दौरा कैंसिल कर दें।’ ये वो दौर था जब राजीव गांधी सरकार पर शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने को लेकर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लग रहे थे। 1 फरवरी 1989, कुंभ मेले में विश्व हिंदू परिषद ने संतों का सम्मेलन रखा। करीब एक लाख संत इसमें शामिल हुए। सम्मेलन में 9 नवंबर 1989 को राम मंदिर शिलान्यास करने की घोषणा कर दी गई। चार महीने बाद 27 मई 1989 को विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में विवादित जगह पर 25 करोड़ रुपए की लागत से राम मंदिर बनाने की घोषणा कर दी। इसके लिए हरिद्वार में एक बैठक की गई और देशभर से चंदा जमा करने की योजना बनाई गई। ‘मेरा देश मेरा जीवन’ किताब में लाल कृष्ण आडवाणी लिखते हैं- ‘कुंभ में राम मंदिर को लेकर घोषणा का देशभर के हिंदुओं में चौंकाने वाला प्रभाव देखा गया, लेकिन ज्यादातर राजनीतिक दल सार्वजनिक रूप से हिंदुओं की मांग का समर्थन नहीं कर रहे थे। एक दल के रूप में भाजपा ने भी खुद को इस मामले से अलग रखा था। शुरुआत में राजमाता विजयाराजे सिंधिया और विनय कटियार जैसे नेता व्यक्तिगत रूप से आंदोलन में हिस्सा ले रहे थे, लेकिन बाद में अयोध्या मामले में स्वयं को शामिल करना जरूरी हो गया।’ 11 जून 1989, बीजेपी ने पालमपुर अधिवेशन में राम मंदिर बनाने का वादा किया और अपने मैनिफेस्टो में राम मंदिर को शामिल करने का ऐलान कर दिया। इसके बाद राम मंदिर, बीजेपी के चुनावी घोषणा का हिस्सा बन गया। लाल कृष्ण आडवाणी ने यह प्रस्ताव तैयार किया था। 1989 नवंबर के अंत में लोकसभा चुनाव होने थे। उससे पहले 9 नवंबर को विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में अनुसूचित जाति के कामेश्वर चौपाल के हाथों राम मंदिर का शिलान्यास करवा दिया। चुनाव में बीजेपी ने इस मुद्दे को खूब जोर दिया। 1984 में महज दो सीटें जीतने वाली बीजेपी 1989 में 85 सीटों पर पहुंच गई। जबकि 1984 में रिकॉर्ड 404 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 197 सीटों पर सिमट गई। जनता दल को 143 सीटें मिलीं। बीजेपी और लेफ्ट के बाहर से समर्थन से जनता दल के वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री बनने के बाद वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान कर दिया। कहा जाता है कि इसकी काट निकालने के लिए बीजेपी ने राम मंदिर मुद्दे को आगे किया। 25 सितंबर 1990 को आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथ यात्रा की शुरुआत कर दी। सोनिया ने लगाई संगम में डुबकी, वायरलेस पर आवाज आ रही थी- पापा वन, पापा टू, पापा थ्री 1999 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी के विदेशी होने का मुद्दा काफी चर्चा में रहा। शरद पवार ने इस मुद्दे को उछाला और कांग्रेस छोड़कर अलग पार्टी एनसीपी बना ली। बीजेपी भी इस मुद्दे को हवा देने से नहीं चूक रही थी। कारगिल युद्ध के बाद सितंबर-अक्टूबर 1999 में लोकसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में 182 सीटें जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री। करीब 14 महीने बाद 2001 में प्रयाग में कुंभ लगा। तब केंद्र के साथ यूपी में भी बीजेपी की सरकार थी। 22 जनवरी को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी प्रयाग पहुंचीं। सबसे पहले वह आनंद भवन गईं। आनंद भवन गांधी परिवार का पैतृक घर था, जिसे मोतीलाल नेहरू ने 1930 में बनवाया था। 1970 में इंदिरा गांधी ने इसे भारत सरकार को दान कर दिया था। आनंद भवन से निकलने के बाद सोनिया सरस्वती घाट पहुंचीं और वहां से खास नाव में बैठकर संगम के लिए रवाना हुईं। नाव में ही स्नान के लिए कैविटी और चेंजिंग रूम बनाया गया था। करीब 20 मिनट तक सोनिया संगम ठहरी थीं। इस दौरान उन्होंने एक रिपोर्टर से कहा- ‘यहां आना घर आने जैसा है। मैं अपने ससुराल आई हूं।’ प्रयाग के कांग्रेस नेता अभय अवस्थी बताते हैं- ‘मेरे पुराने साथी सोनिया गांधी की सुरक्षा में लगे थे। उनके वायरलेस पर बार-बार एक मैसेज आ रहा था- पापा वन, पापा टू, पापा थ्री। मैंने उनसे पूछा कि ये क्या है? तब उन्होंने बताया कि ये सोनिया गांधी का प्रोटोकॉल कोड है। वो स्नान करने के बाद तीन जगहों पर जाएंगी। ये कोडवर्ड उन्हीं तीन जगहों के लिए हैं।’ सोनिया संगम स्नान के बाद टीकरमाफी आश्रम, सतपाल महाराज के आश्रम और शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के आश्रम में गई थीं। सोनिया के कुंभ में शामिल होने के फैसले को बीजेपी ने पॉलिटिकल एजेंडा बताया था। इसके तीन साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की और अगले 10 साल तक यूपीए गठबंधन की सत्ता बरकरार रही। लोकसभा चुनाव की घोषणा से 15 दिन पहले रुद्राक्ष पहने मोदी ने लगाई संगम में डुबकी, दलितों के पैर धोए तारीख 24 फरवरी 2019, लोकसभा चुनाव की घोषणा से 15 दिन पहले की बात है। प्रयाग में अर्धकुंभ लगा था। हरा कुर्ता, सफेद पायजामा और मरून कलर का जैकेट पहने पीएम मोदी प्रयाग पहुंचे। थोड़ी देर बाद उनका काफिला संगम पहुंचा। पीएम के संगम स्नान के लिए खास व्यवस्था की गई थी। काले रंग का कुर्ता और गले में रुद्राक्ष पहने मोदी ने संगम में डुबकी लगाई। 42 साल बाद किसी प्रधानमंत्री ने संगम में स्नान किया था। इससे पहले 1977 के चुनाव से ठीक पहले इंदिरा गांधी ने संगम में स्नान किया था। संगम स्नान के भगवा कुर्ता और पीला जैकेट पहने मोदी, गंगा पंडाल पहुंचे। वहां उन्होंने 5 सफाई कर्मियों के पैर धोए और उन्हें सम्मानित किया। पीएम के इस कदम को विपक्ष ने दलित राजनीति से प्रेरित बताया। तब यूपी में सपा और बसपा साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे। मायावती ने सोशल मीडिया पर लिखा- ‘चुनाव के समय संगम में शाही स्नान करने से मोदी सरकार की चुनावी वादाखिलाफी, जनता से विश्वासघात और अन्य प्रकार की सरकारी ज़ुल्म-ज्यादती, पाप क्या धुल जाएंगे?’ 23 मई 2019 को लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए। रिकॉर्ड 303 सीटें जीतकर बीजेपी ने लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी की और मोदी प्रधानमंत्री बने। तब यूपी में बीजेपी को 90 में से 62 सीटें मिली थीं। अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व 17 सीटों में से 14 सीटें बीजेपी ने जीत लीं। ----------------------------------------------- महाकुंभ से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... नेहरू के लिए भगदड़ मची, 1000 लोग मारे गए:सैकड़ों शव जला दिए गए; फटे कपड़े में पहुंचे फोटोग्राफर ने चुपके से खींची तस्वीर साल 1954, आजाद भारत का पहला कुंभ इलाहाबाद यानी अब के प्रयागराज में लगा। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या थी। मेले में खबर फैली कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आ रहे हैं। उन्हें देखने के लिए भीड़ टूट पड़ी। जो एक बार गिरा, वो फिर उठ नहीं सका। एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए। सरकार ने कहा कि कोई हादसा नहीं हुआ, लेकिन एक फोटोग्राफर ने चुपके से तस्वीर खींच ली थी। अगले दिन अखबार में वो तस्वीर छप गई। पढ़िए पूरी खबर... नागा बनने के लिए 108 बार डुबकी, खुद का पिंडदान:पुरुषों की नस खींची जाती है; महिलाओं को देनी पड़ती है ब्रह्मचर्य की परीक्षा नागा साधु कोडवर्ड में बातें करते हैं। इसके पीछे दो वजह हैं। पहली- कोई फर्जी नागा इनके अखाड़े में शामिल नहीं हो पाए। दूसरी- मुगलों और अंग्रेजों के वक्त अपनी सूचनाएं गुप्त रखने के लिए यह कोड वर्ड में बात करते थे। धीरे-धीरे ये कोर्ड वर्ड इनकी भाषा बन गई। पढ़िए पूरी खबर...
‘दिल्ली में रहते हुए 54 साल हो गए। बिहार के बक्सर से कमाने-खाने आए थे। पति को जहां काम मिल जाता है, कर लेते हैं। 100-50 रुपए मिल जाते हैं, तो रोटी खाकर सो जाते हैं, नहीं मिला तो भूखे सोते हैं। हारने-जीतने वाले सब नेता काम कर रहे हैं, लेकिन हमारी गरीबी तो दूर नहीं कर रहे।’ दिल्ली की सर्द सुबह में चूल्हे पर हाथ सेंक रहीं वनीता को सरकार से बहुत शिकायतें हैं। 60 साल से ज्यादा उम्र हो गई, लेकिन बुजुर्गों वाली पेंशन नहीं मिलती। दो बेटा-बहू, चार पोते-पोतियों के साथ दो कमरे के घर में रहती हैं। पीने का पानी लेने दूसरी कॉलोनी में जाना पड़ता है। फिर भी उन्हें अरविंद केजरीवाल का काम पसंद है। वनीता का दुख अपना है, लेकिन उनकी कहानी दिल्ली के 3 लाख परिवारों की हैं। ये परिवार राजधानी की झुग्गियों में रहते हैं। रोजी-रोटी और अच्छी जिंदगी के तलाश में आए थे, लेकिन छोटे-छोटे कमरों में सिमट कर रह गए। दिल्ली में 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। रिजल्ट 8 फरवरी को आएगा। झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले करीब 15 लाख वोटर 20 सीटों पर फैसला करते हैं। दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज 'हम भी दिल्ली' के दूसरे एपिसोड में कुछ किरदारों के जरिए पढ़िए और देखिए, कुल वोट में 10% हिस्सेदारी रखने वाले ये लोग किस माहौल में रहते हैं, चुनाव और नेताओं के बारे में क्या सोचते हैं। दो हाई-प्रोफाइल सीट, दो बस्तियां, लेकिन कहानियां एक जैसीवनीता जैसे लोगों की जिंदगी समझने के लिए हमने दो बस्तियां चुनीं। पहली है कालकाजी में नवजीवन कैंप। दिल्ली की CM आतिशी यहां से विधायक हैं और इस बार भी चुनाव लड़ रही हैं। दूसरी बस्ती कुसुमपुर पहाड़ी है, जो नई दिल्ली विधानसभा सीट से सटी है। नई दिल्ली सीट से पूर्व CM अरविंद केजरीवाल चुनाव लड़ रहे हैं। जगह: नवजीवन कैंप डेढ़ फीट की गलियां, अंदर सूरज की रोशनी भी नहीं जा पातीइंडिया गेट से महज 12 किलोमीटर दूर है कालका जी। आलीशान कोठियों को पार कर आगे बढ़ते हैं, तो झुग्गियां दिखने लगती हैं। ये दिल्ली की सबसे पुरानी बस्तियों में से एक नवजीवन कैंप है। झुग्गियों के बीच दो-दो फीट की गलियां हैं। कहीं तो ये सिकुड़कर डेढ़ फीट रह जाती है। बस्तियां इतनी घनी हैं कि कुछ गलियों में सूरज भी उजाला नहीं कर पाता। यहीं हमें वनीता मिलीं। ईंट की दीवारों से बने पुराने घर की छत पर बैठी थीं। ऊपर जाने के लिए बनी सीढ़ियों पर इतनी ही जगह है कि एक आदमी चढ़ सकता है। हमने पूछा- चुनाव आने वाले हैं। नेता आपकी बस्ती में आते हैं या नहीं।वनीता जवाब देती हैं- ‘आते हैं।’ राशन मिलता है?‘थोड़ा-बहुत मिलता है।’ पानी आता है?‘आता है, लेकिन पीने लायक नहीं होता। सिर्फ नहाने के काम आता है। पीने का पानी बगल की बंगाली कॉलोनी से लाते हैं।’ पोते-पोती स्कूल जाते हैं?‘हां जाते हैं, सरकारी स्कूल है पास में। उसमें फीस नहीं लगती। किताबें भी मिल जाती हैं।‘ कहानियां और भी हैं… रोटी-पानी के लिए जंग, बस्ती में सिर्फ 4-5 सरकारी टॉयलेटएक गली में घुसते ही खाली बाल्टियों के आसपास लगी भीड़ दिखी। पूछने पर पता चला कि पानी आया था, अचानक बंद हो गया। खाली बाल्टियों के पास सुशीला खड़ी थीं। वे किराए के घर में रहती हैं। जॉब करती हैं। परिवार में पति और दो बेटे हैं। हमने उनसे पूछा- पानी कितनी देर आता है।सुशीला गुस्से में बोलीं- 'पानी आता ही कहां है। पूरे दिन में आधा घंटा आता है। 9 बजे का टाइम फिक्स है।' फिर पानी कहां से लाते हैं?'पीछे की गली में भागना पड़ता है। हर गली में पानी आने का टाइम अलग-अलग है। एक गली से दूसरी गली में, तब तक भागते हैं जब तक कि बाल्टियां न भर जाएं।' आपके घर में टॉयलेट है?सुशीला थोड़ा हिचकते हुए कहती हैं, सरकारी टॉयलेट हैं, उसी में जाते हैं। बहुत ठीक तो नहीं है, लेकिन जाना पड़ता है। पूरी बस्ती के लिए 4–5 टॉयलेट हैं। महीने में 5-7 हजार कमाई, घर का खर्च भी नहीं चला पातेयूपी के आजमगढ़ से आए चंद्रभान को दिल्ली में 43 साल हो गए। मार्बल का काम करते हैं। 400-500 रुपए दिहाड़ी मिल जाती है। चंद्रभान बताते हैं, ‘महीने में 15-20 दिन ही काम मिलता है। काम कराने वाला अच्छा हुआ तो पैसा मिल जाता है, नहीं हुआ, तो मजदूरी डूब जाती है।' इतनी कमाई में घर का खर्च कैसे चलाते हैं?चंद्रभान जवाब देते हैं, 'घर में चार लोग हैं। बड़ा बेटा 28 साल का है। गाड़ी चलाता है। उसने इंटर तक पढ़ाई की है। कोई काम नहीं मिला तो ड्राइवरी कर ली। एक बेटा 10वीं तक पढ़ा है। 19 साल का है, अभी बेरोजगार है। पत्नी भी काम करती हैं। ऐसे ही गुजारा कर लेते हैं। समझ लीजिए चलती का नाम गाड़ी है।’ बेटों ने नौकरी के लिए कोशिश नहीं की?‘यहां नौकरी कौन देता है। नौकरी पाने के लिए भी पैसा चाहिए। यहां तो हर जगह घूस लगती है।' चुनाव और नेताओं के सवाल पर चंद्रभान मायूसी से कहते हैं, ‘मैडम जी, सभी पार्टी के नेता आते हैं। कहते हैं कि नल लगवा देंगे। ये कर देंगे, वो कर देंगे। कहकर चले जाते हैं, फिर दोबारा आते नहीं हैं। सपने इतने बड़े-बड़े दिखाते हैं, लेकिन सुबह होती है, तो सपने टूट जाते हैं।’ चंद्रभान के साथ ही बृजभान भी आजमगढ़ से आए थे। पीओपी का काम करते हैं। महीने में 10-15 दिन काम मिलता है। एक दिन में 500-600 रुपए कमा लेते हैं। 20 साल से दिल्ली के वोटर हैं। बृजभान कहते हैं, ‘काम मिल गया तो मिल गया, नहीं तो जय सियाराम। सरकार काम देती, तो हम घर बैठने वालों में से नहीं हैं। CM आतिशी हमारी विधायक हैं। हमारी बस्ती में आई हैं, लेकिन झुग्गियों में नहीं आईं। काम ढूंढने से फुरसत मिले, तो विधायक के पास जाएं। रैलियां शुरू हो गई हैं, लेकिन बच्चों के लिए रोटी जुटाएं या रैली में जाएं।’ कौन सी पार्टी अच्छा काम कर रही है?बृजभान कहते हैं, ‘अभी तो केजरीवाल अच्छा काम कर रहे हैं। बच्चे बीमार हो जाएं तो मोहल्ला क्लिनिक है। रोज सफाई होती है। 200 यूनिट बिजली फ्री है। इतनी बिजली हमें लगती ही नहीं है। इसलिए बिल नहीं भरना पड़ता। पानी फ्री हो गया है।’ जगह: कुसुमपुरी पहाड़ी एक लाख लोगों की बस्ती, बाल्टी भर पानी के लिए जंगनवजीवन कैंप से बुरा हाल कुसुमपुर पहाड़ी का है। यहां की झुग्गी बस्ती में करीब एक लाख लोग रहते हैं। इनमें यूपी, बिहार, ओडिशा और असम से आए लोग हैं। ये पहाड़ी इलाका है, इसलिए सबसे ज्यादा दिक्कत पानी की है। बस्ती में पानी के टैंकर आते हैं। जिस दिन टैंकर आता है, बच्चे स्कूल और बड़े अपना काम छोड़कर पानी भरने पहुंच जाते हैं। यहां मिली त्रिकासो करीब 30 साल से बस्ती में रह रही हैं। घर के दरवाजे पर खड़ी थीं। हमने पूछा कि सरकार कोई काम कर रही है। त्रिकासो कहती हैं, ‘केजरीवाल ने अच्छा काम किया है। पानी और लाइट की सुविधा कर दी है। बिल जीरो आता है। रोज सफाई होती है। पानी की टैंकर आने लगे हैं। हफ्ते में एक बार टैंकर आता है। पहले तो पानी के लिए झगड़े होते थे।’ त्रिकासो के परिवार में तीन बेटे-बहू, दो पोते और चार पोतियां हैं। घर छोटा पड़ा तो एक बेटा किराए पर घर लेकर रहने लगा। त्रिकासो देखने में बीमार लग रही थीं। हमने पूछा- तबीयत ठीक नहीं है क्या?जवाब मिला, ‘बीपी हाई रहता है। शुगर भी है। मोहल्ला क्लिनिक से दवा ली थी, लेकिन फायदा नहीं हुआ।’ बस्ती में रहने वाली कमला के लिए पानी सबसे बड़ी समस्या है। वे कहती हैं, ‘1995 से यहां रह रही हूं। तभी से पानी की दिक्कत देख रही हूं। लड़ाई-झगड़ा करके टैैंकरों से पानी लाते हैं। पानी मिल जाए, तो यहां सब ठीक है। मेरी उम्र ज्यादा है, इसलिए पानी नहीं ला पाती। किसी को पैसा देकर भरवाना पड़ता है। घर में बेटी, बहू और पोती हैं।’ यहीं मिले ललन कहते हैं, 'मुझे लकवा मार गया है। एक हाथ काम नहीं करता। कई बार रात में टैंकर आता है। बेटी को रात 12 बजे तक पानी भरना पड़ता है। बेचारी साइकिल से पानी ढोती है। इलाका तो आप देख ही रहे हैं। गंजेड़ी-नशेड़ी घूमते रहते हैं। डर रहता है बच्ची को कोई कुछ कर न दे।' ललन आगे कहते हैं, 'जल बोर्ड वाले कहते हैं कि पहाड़ी इलाका है, इसलिए पानी नहीं चढ़ता। इस बार भी AAP के लीडर महेंद्र चौधरी भरोसा देकर गए हैं कि चुनाव के बाद जलबोर्ड से पानी लाएंगे। पहले भी यही कहकर गए थे।' झुग्गियों में रह रहे वोटर्स पर तीनों पार्टियों की नजरदिल्ली की 675 झुग्गी बस्तियों में 15 लाख से ज्यादा वोटर हैं। ये दिल्ली के कुल वोटर्स का 10% हिस्सा हैं। ये कभी कांग्रेस का वोट बैंक थे, लेकिन अब AAP को वोट देते हैं। यही वजह है कि तीनों बड़ी पार्टियां AAP, BJP और कांग्रेस इन्हें अपनी तरफ लाने की कोशिश कर रही हैं। नवजीवन कैंप से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर रिहैबिलिटेशन फ्लैट बने हैं। यहां करीब 3 हजार फ्लैट हैं। हर फ्लैट में एक हॉल, बेडरूम और टॉयलेट है। पिछले साल नवंबर में 1600 लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्लैट की चाभियां सौंपी थीं। इनमें मोहित भी शामिल हैं। वे कहते है, 'यहां थोड़ी कमियां तो हैं, लेकिन जैसा कहा था वैसा ही है। अब हमारे पास कम से कम पक्का और साफ-सुथरा घर तो है। बीती 3 जनवरी को PM मोदी ने दिल्ली के अशोक विहार में 1,675 फ्लैट का उद्घाटन किया है। इस पर अरविंद केजरीवाल ने कहा, 'दिल्ली में 4 लाख झुग्गियां हैं। 11 साल में PM मोदी ने 4700 लोगों को फ्लैट दिए हैं। सोचिए सबको फ्लैट देने में कितना वक्त लगेगा।' नवजीवन कैंप में रह रहे राजकिशोर का नाम भी फ्लैट मिलने वालों की लिस्ट में आया है। वे कहते हैं, ‘सारा कंस्ट्रक्शन तो कांग्रेस ने कराया। ये तो बस चाबी दे रहे हैं।' 84 साल के राजकिशोर 1971 में आजमगढ़ से दिल्ली आए थे। उनके घर की हालत बाकी झुग्गियों के मुकाबले बेहतर है।घर में टाइल्स लगा किचन, टीवी और गैस कनेक्शन है। हमने उनसे पूछा- आप किसकी तरफ हैं?राजकिशोर जवाब देते हैं, 'जो सरकार अच्छा काम करे, उसी पर विचार करेंगे।' अच्छा काम किसने किया है? जवाब मिला, 'अभी तो केजरीवाल ही हैं। जो थोड़ा बहुत किया, उन्हीं ने किया। वही फिर आएंगे।’ पार्टियां क्या कह रहीं… BJP: सरकार बनी, तो झुग्गियों में सारी सुविधाएं देंगेBJP के महासचिव विष्णु मित्तल कहते हैं, ‘10 साल से अरविंद केजरीवाल की सरकार है। उन्होंने झुग्गियों के लिए क्या किया। पानी इतना गंदा है कि हर आदमी बोतल खरीद रहा है। झुग्गियों में कूढ़े का ढेर है। शौचालय गंदे हैं। रोज सुबह 100-100 लोगों की लाइन लगी रहती है।' 'अरविंद केजरीवाल ने झुग्गीवासियों को गुमराह किया है। इलेक्शन आते ही वे झुग्गियों में पहुंच जाते हैं और कहते हैं कि BJP आएगी तो झुग्गियां तोड़ देगी।’ BJP की सरकार ने क्या किया है? विष्णु मित्तल जवाब देते हैं, 'हमने अब तक 4700 फ्लैट बनाए हैं। केजरीवाल से पूछो कि उन्होंने यहां PM आवास क्यों नहीं बनने दिए। वे योजनाओं में रोड़ा अटकाते हैं।’ AAP: झुग्गियां तोड़ने की फिराक में है BJPकोंडली से विधायक कुलदीप कुमार कहते हैं, ‘‘BJP ने पहले ही वादा किया था कि जहां झुग्गी वहां मकान, लेकिन आज तक तो नहीं दिया। उलटे प्लानिंग कर रखी है कि झुग्गियों की जमीन अपने दोस्तों को देंगे। केजरीवाल की सरकार झुग्गीवालों के साथ खड़ी है, जबकि BJP झुग्गियां तोड़ने की फिराक में है। BJP सरकार ने जो फ्लैट दिए हैं, लोग उनमें शिफ्ट नहीं होना चाहते। इतनी खराब क्वालिटी के फ्लैट हैं।’ कांग्रेस: फ्रीबीज के लिए AAP ने दिल्ली को कर्ज में धकेला कांग्रेस के स्पोक्सपर्सन गौतम सेठ कहते हैं, लोगों को ये बात समझनी चाहिए, वे समझ भी रहे हैं कि उनके दिए टैक्स के पैसे से ही ये (AAP सरकार) आपको फ्रीबीज दे पाते हैं। शीला जी के टाइम पर दिल्ली का बजट एक से डेढ़ लाख करोड़ सरप्लस में था। उनके मॉडल ऑफ गवर्नेंस की वजह से दिल्ली कभी कर्ज में नहीं रही। आज इन्होंने दिल्ली को कर्ज में धकेल दिया। हम भी दिल्ली सीरीज की पहली स्टोरी...क्या ‘वोट जिहाद’ करने वाले हैं बांग्लादेशी और रोहिंग्या, हिंदू कह रहे- इन्हें हटाना जरूरी रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिए, दिल्ली चुनाव में बड़ा मुद्दा हैं। BJP नेता कह रहे हैं कि AAP अपने वोट बैंक के लिए इन्हें बसा रही है। वहीं AAP लीडर्स का कहना है कि घुसपैठियों के बहाने BJP यूपी से आए लोगों को टारगेट कर रही है। जिन रोहिंग्या और बांग्लादेशियों का नाम लिया जा रहा है, वे क्या कह रहे हैं, पढ़िए पूरी रिपोर्ट... .......................................दिल्ली इलेक्शन पर ये स्टोरी भी पढ़ेंकेजरीवाल ने 1000 वोटर्स पर लगाए 12 कार्यकर्ता, बस्तियों में फ्री बिजली-इलाज का वादा दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता हर रोज दो टीमें बनाकर निकलते हैं। एक टीम ऐसे इलाके में जाती है, जहां जरूरतमंद लोग रह रहे हों। उनके बीच जाकर कार्यकर्ता सरकारी स्कीम जैसे फ्री बिजली-पानी और इलाज की बातें करते हैं। दूसरी टीम ऐसे इलाकों में जाती है, जहां अमीर लोग रहते हैं। ये विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी की स्ट्रैटजी है। पढ़िए पूरी खबर...
अमेरिका बना रहा ऐसा प्लान, पीते-पीते खुद सिगरेट पीना छोड़ देंगे लोग
America News: अमेरिका में सिगरेट को छोड़ने के लिए एक योजना बनाई जा रही है, इस योजना के सफल होने के बाद कई लोग खुद से सिगरेट पीना छोड़ देंगे. इसके अलावा ध्रमूपान करने वाले लोगों की संख्या में भारी गिरावट आ जाएगी.
US TikTok Ban News: अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने टिकटॉक पर प्रतिबंध को बरकरार रखा है. अमेरिका ने रविवार (19 जनवरी 2025) से TikTok ऐप के नए डाउनलोड और अपडेट को बैन करने की योजना बनाई है.
माननीय सभापति... जिस भारतीय के चलते कनाडा की संसद में गूंजी देसी बोली, अब PM के लिए ठोकी दावेदारी
Chandra Arya Canada PM Bid: भारतवंशी चंद्र आर्य ने कनाडा में प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी पेश की है. इस बीच, इंटरनेट पर उनका कनाडा की संसद में कन्नड़ में दिया गया भाषण वायरल हो रहा है.
हर पल धरती की ओर बढ़ रहा प्रलय का खतरा, अब तो एक्सपर्ट्स ने भी दे दी चेतावनी
Space Debris hits Earth: धरती पर प्रलय या तबाही आ सकती है, इसकी कई भविष्यवाणियां होती रहती हैं. इसमें से एक को लेकर तो अब विशेषज्ञों ने भी चेतावनी दे दी है.
US Teacher sexual abuse: अमेरिका में एक अजीबो-गरीब मामला सामने आया है जिसने टीचर-स्टूडेंट के रिश्ते को तार-तार कर दिया है. यहां टीचर ने स्टूडेंट के साथ फिजीकल रिलेशन बनाया और बच्चा तक पैदा कर डाला.
निर्वस्त्र होकर पूरे शहर में घूमी थी ये रानी, इतिहास में कही जाती है महान, देखने वालों की आंखें...
Lady Godiva: दुनिया में कई महान राजा-रानी हुए हैं. इनमें से कुछ ने अपनी प्रजा के लिए ऐसे बलिदान दिए हैं, जिससे इतिहास में उन्हें विशेष महत्व दिया गया है. इसमें ब्रिटेन की महारानी लेडी गोडिवा भी एक हैं.
अमेरिकी सरकार को सत्ता से...ट्रक से वाइट हाउस पर हमला करने वाले भारतीय को 8 साल की जेल
US News:कंडुला ने 13 मई 2024 को जानबूझकर अमेरिकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने या तोड़ फोड़ के मामले में अपना जुर्म कबूल लिया था. कंडुला ‘ग्रीन कार्ड’ के साथ अमेरिका का वैध स्थायी निवासी है. जेल की सजा के अलावा, ‘डिस्ट्रिक्ट कोर्ट’ के जज डैबनी एल. फ्रेडरिक ने कंडुला को तीन साल की सजा सुनाई है.
खाने को नहीं दाने, पाकिस्तानी घर में चले शेर-चीते पालने! क्यों मजबूरी में सरकार ने दी इजाजत?
Lion as a Pet: एक और पाकिस्तान इतने बुरे बदहाली के दौर से गुजर रहा है कि यहां खाने के लाले पड़े हुए हैं. दूसरी ओर पाकिस्तान ने अपने नागरिकों के लिए शेर-चीता पालने की अनुमति देने की घोषणा की है.
Man With 6 Fingers : हाथ-पैरों में 6-6 उंगलियां, ये है 24 उंगली वाला इंसान
Man With 6 Fingers : एक वायरल फोटो में एक बुजुर्ग व्यक्ति के दोनों हाथों और पैरों में 6-6 उंगलियां दिखाई गईं, जिसके बाद से फोटो लेने वाले और देखने वाले सभी हैरान हैं.
अब कभी बांग्लादेश नहीं जाएंगी शेख हसीना, मिल गई भारत की नागरिकता? विदेश मंत्रालय ने...
Sheikh Hasina: बांग्लादेश में छात्रों के हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद इस्तीफा देकर भारत पहुंची पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना तब से भारत में ही रह रही हैं. लंबे निर्वासन के बाद उन्हें लेकर नया सवाल उठ खड़ा हुआ है.
'मंगल' का सपना देख रहे एलन मस्क को झटका.. राख हो गई स्टारशिप की टेस्टिंग, आसमान में फैला मलबा
Elon Musk: एलन मस्क ने इस पर प्रतिक्रिया भी दी है. उन्होंने रॉकेट के मलबे का वीडियो शेयर करते करते हुए अपने अंदाज में लिखा कि मनोरंजन की गारंटी है. यह स्टारशिप की सातवीं टेस्ट फ्लाइट थी.
ट्रंप के शपथ ग्रहण से पहले US में हड़कंप, क्या तलाक ले रहे बराक-मिशेल ओबामा?
Barack Obama and Michelle Obama: अमेरिका में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के बीच अचानक से एक नया मुद्दा छा गया है. वो है पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की तलाक की खबर.
अगर ये चोट थोड़ी भी और गहरी होती तो क्या पैरालाइज्ड हो सकते थे सैफ, घाव भरने के लिए प्लास्टिक सर्जरी की जरूरत क्यों पड़ी, जानेंगे स्पॉटलाइट में
बात उन दिनों की है, जब देश की राजधानी कलकत्ता थी। 1905 में बंगाल का बंटवारा हुआ, तो अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गए। अंग्रेज अफसरों पर लगातार हमले हो रहे थे। शासन चलाने के लिए कलकत्ता असुरक्षित और अस्थिर हो गई, तो अंग्रेजों ने नई राजधानी के बारे में सोचा। इतिहासकार नारायणी गुप्ता लिखती हैं, ‘अंग्रेजों काे लगा दिल्ली सुंदर शहर है। इसे राजधानी बनाकर वो भी इसके इतिहास से जुड़ जाएंगे, लेकिन ये भी सच था कि दिल्ली में जो राज करता है, उसका राज्य बहुत दिनों तक टिकता नहीं।’ 6 साल बाद यानी 15 दिसंबर 1911। ब्रिटेन के किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक के लिए दिल्ली दरबार सजाया गया। इसके लिए दिल्ली के बाहरी इलाके बुराड़ी में 20,000 कामगारों की मदद से किंग कैंप बनाया गया। हजारों शिविर लगाए गए। जिस शिविर में किंग और क्वीन ठहरे थे, वहां तक अलग रेलवे लाइन बिछाई गई। करीब 80 हजार लोगों के सामने किंग जॉर्ज पंचम ने ऐलान किया, ‘हमें भारत की जनता को ये बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि देश को बेहतर ढंग से प्रशासित करने के लिए ब्रिटेन सरकार भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट करती है।’ ये घोषणा सुनकर किंग के बगल में बैठी क्वीन मैरी भी चौंक गईं। भारत में उस वक्त के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग को भी इसकी खबर नहीं थी। ब्रिटिश इतिहासकारों ने इसे ‘बेस्ट केप्ट सीक्रेट ऑफ इंडिया’ कहा था। दिल्ली की कहानी सीरीज के तीसरे एपिसोड में अंग्रेजों के समय की दिल्ली के किस्से… 1608 में ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारियों ने गुजरात के सूरत पोर्ट पर पहला कदम रखा। शिप के कैप्टन विलियम हॉकिंस ने मुगल बादशाह जहांगीर से मुलाकात कर सूरत में एक फैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति मांगी, लेकिन बादशाह ने मना कर दिया। अंग्रेजों ने उन राज्यों का रुख किया, जहां मुगल शासन नहीं था। 1611 में आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में पहला कारखाना लगाने की अनुमति मिली। 1615 में ब्रिटिश सरकार की तरफ से सर थॉमस रो ने जहांगीर से मुलाकात की। उनके तोहफों से जहांगीर खुश हुए और फैक्ट्री लगाने की परमिशन दे दी। इस परमिशन के बदले ईस्ट इंडिया कंपनी मुगल सरकार को टैक्स देगी। अगले कुछ दशक में कंपनी ने मुंबई, मद्रास, पटना, अहमदाबाद और मुगल राजधानी आगरा में भी फैक्ट्री लगाई। मसालों के अलावा वे कपास, नील, सिल्क, चाय और अफीम का बिजनेस करने लगे। इन शहरों में अंग्रेजों ने किले बना लिए। 1670 में ब्रिटिश किंग चार्ल्स द्वितीय ने सरकारी नियंत्रण में ले लिया। अब कंपनी खुद की आर्मी रख सकती थी। करेंसी छाप सकती थी। 1707 आते-आते अंग्रेज पूरे भारत में मजबूत हो चुके थे। आदित्य अवस्थी अपनी किताब ‘दास्तान ए दिल्ली' में लिखते हैं कि अंग्रेजों ने 1714 से दिल्ली आना शुरू किया। वे लाल किले में पैदल जाकर, दीवाने आम, दीवाने खास में बादशाह के सामने घुटने टेककर सलामी देते थे। 1803 में पहली बार मुगल बादशाह शाह आलम ने सैन्य मदद के लिए अंग्रेजों को दिल्ली बुलाया। एम.एस. नरवने अपनी किताब 'बैटल्स ऑफ द ऑनरेबल ईस्ट इंडिया कंपनी: मेकिंग ऑफ द राज' में बताते हैं कि मराठा मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय दिल्ली पर कब्जा करने आ रहे थे। अंग्रेजों ने पहली बार मुगलों की तरफ से जंग लड़ी। 11 सितंबर, 1803 को पटपड़गंज (अब पूर्वी दिल्ली में) में मुगलों के कथित अंग्रेज सैनिकों और मराठों के बीच युद्ध हुआ। अंग्रेजों ने मराठों को हरा दिया। अब बादशाह भले ही शाह आलम था, लेकिन उसके पास कोई अधिकार नहीं थे। वो अंग्रेजों की पेंशन पर जिंदा थे। यह सिलसिला बहादुर शाह जफर तक चला। 1857 की क्रांति का केंद्र दिल्ली था। क्रांतिकारियों ने 80 वर्षीय बहादुर शाह जफर को अपना नेता घोषित कर दिया था। इतिहासकार विलियम बेनेडिक्ट हैमिल्टन-डेलरिम्पल अपनी किताब 'द लास्ट मुगल: द फॉल ऑफ द डायनेस्टी, दिल्ली 1857' में लिखते हैं कि बहादुर शाह जफर कभी इसमें शामिल नहीं होना चाहते थे, लेकिन लोगों के चाहने पर इनकार नहीं कर सके। अंग्रेजों ने पूरा जोर लगाकर विद्रोह को कुचल दिया। 14 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने कश्मीरी गेट के पास से शहर पर हमला किया। दिल्ली के गलियारों में खून बहने लगा और विद्रोही एक-एक कर पीछे हटने लगे। 20 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया। बहादुर शाह जफर हार जानकर अपने परिवार के साथ हुमायूं के मकबरे में शरण लेने के लिए भाग गए। ब्रिटिश अफसर मेजर हडसन ने उनका पता लगा लिया और गिरफ्तार कर लिया। उनके बेटों और पोतों को कैद कर लिया गया और बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। उनके कटे हुए सिर बहादुर शाह जफर के सामने पेश किए गए, ताकि उनकी इच्छाशक्ति को तोड़ा जा सके। लाल किले पर ब्रिटिश झंडा फहराने के बाद अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को रंगून निर्वासित कर दिया गया। जहां उनकी मौत हो गई। दिल्ली पर अब सीधा अंग्रेजों का नियंत्रण था, हालांकि उन्होंने अपनी राजधानी कलकत्ता बनाई। आदित्य अवस्थी अपनी किताब दास्तान ए दिल्ली' में लिखते हैं कि राजधानी को कोलकाता से दिल्ली लाए जाने के प्लान को बेहद सीक्रेट रखा गया था। इसे ‘सीसेम प्रोजेक्ट' नाम दिया गया था। अंग्रेज राजशाही काे अनुमान था कि अगर पहले ऐलान किया गया तो कोलकाता के प्रभावशाली लोग और व्यापारी विरोध करेंगे। जब ये फैसला लिया गया तो किंग जॉर्ज पंचम के अलावा दो दर्जन लोगों को यह जानकारी दी गई थी। दिल्ली में वायसराय लॉर्ड हार्डिंग और लंदन में भारत मामलाें के सेक्रेटरी रॉबर्ट ऑफ क्रू-मिल्स को भी इसकी जानकारी नहीं दी गई थी। ब्रिटिश इतिहासकार जेन रीडली अपनी किताब 'द आर्किटेक्स एंड हिज वाइफ: ए लाइफ ऑफ एडविन लुटियंस' में लिखती हैं कि राजधानी कोलकाता से दिल्ली शिफ्ट हो चुकी थी। अब नए शहर का निर्माण होना था। किंग जॉर्ज पंचम ने मशहूर आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस को बुलाया। उन्होंने बताया कि इंडिया जाकर नई राजधानी बनानी है। उस समय एडविन लुटियंस ने शर्त रखी कि उनके साथ उनके पुराने दोस्त हर्बर्ट बेकर भी सलाहकार के तौर पर जाएंगे। मजदूरी के रूप में उन्हें कुल लागत का 5% देने का वादा किया गया। 15 दिसंबर 1911 को किंग ने पुरानी दिल्ली के पास ही नई दिल्ली की नींव रखी थी, लेकिन एडवर्ड लुटियंस ने नई दिल्ली बसाने के लिए रायसीना हिल को चुना। कहते हैं भारतीय ठेकेदार सोभा सिंह ने अपनी साइकिल पर नींव का पत्थर लादकर रातों-रात उसे रायसीना हिल पहुंचाया था। नई दिल्ली को बनाने का काम 1912 में शुरू होकर 1931 में खत्म हुआ। बेकर को काउंसिल हाउस यानी संसद भवन बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी। बेकर ने अलग-अलग साइज वाला बेतरतीब त्रिकोण वाला नक्शा बनाया था। प्लान के अनुसार डिजाइन समबाहु त्रिकोण होना था। तीनों तरफ विधानसभा, राज्य परिषद और राजकुमारों के रूम्स होने चाहिए थे। सेंटर में भव्य गुंबद होना था। लुटियंस ने इस डिजाइन का कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा काउंसिल हाउस गोलाकार कोलोजियम जैसा होना चाहिए। मामला 10 जनवरी 1920 को न्यू कैपिटल कमेटी में गया। कमेटी ने फैसला लुटियंस के फेवर में सुनाया। लुटियंस ने कहा कि मैं जो चाहता था वो हो गया। मुझे मेरी बिल्डिंग मिल गई है। बेकर ने कहा कि मैं जानता हूं, मुझे बाहर कर दिया गया है। इसके बाद दोनों में कड़वाहटें और बढ़ गईं। फिर दोनों में वायसराय हाउस यानी आज के राष्ट्रपति भवन की ढलान को लेकर विवाद हो गया। बेकर का कहना था कि दूर ढलान से इमारत दिखनी चाहिए। ये बात भी कमेटी में गई और इस बार बेकर जीत गए। लुटियंस चीफ आर्किटेक्ट थे। उनके ईगो को ज्यादा ठेस पहुंची। वे इतना नाराज हुए कि उन्होंने अपनी पत्नी को लिखा कि मुझे बेकर से प्रॉब्लम हो रही है। बेकर मुगलिया वास्तुकला के मुरीद थे, वे चाहते थे कि इमारतों में उसका उपयोग हो। जबकि लुटियंस कुछ अलग करना चाहते थे। इसे लेकर भी दोनों दोस्त कई बार भिड़े थे। दोनों ने अपने प्रोजेक्ट पूरे किए, लेकिन फिर एक-दूसरे से बात नहीं की। 23 दिसंबर 1912 को वायसराय लॉर्ड हार्डिंग और उनकी पत्नी विनिफ्रेड सेसिल ट्रेन से दिल्ली पहुंचे थे। हार्डिंग अपनी किताब ‘माय इंडियन इयर्स' में लिखते हैं, ‘दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पंजाब के सभी राजाओं ने स्वागत किया। हमें एक हाथी पर बैठाया गया और जुलूस शुरू हो गया। दिल्ली का मुख्य बाजार चांदनी चौक लोगों से खचाखच भरा हुआ था। हम 300 कदम ही चले होंगे कि अचानक एक जोरदार ब्लास्ट हुआ और मेरा हाथी रुक गया।’ हार्डिंग ने पीछे देखा तो छत्र पकड़े बैठा कर्मचारी हौज की रस्सी में उलझकर मृत लटक रहा है। थोड़ी देर में हार्डिंग बेहोश हो गए। होश आया तो उन्होंने खुद को एक कार में पाया। जापानी लेखक और प्रोफेसर ताकेशी नाकाजिमा अपनी किताब 'बोस ऑफ नाकामुराया: एन इंडियन रिवोल्यूशनरी इन जापान' में लिखते हैं कि ये हमला रास बिहारी बोस ने अपने ऑफिस से एक दिन की छुट्टी लेकर किया था। हमले के बाद वे वापस देहरादून लौट गए। ब्रिटिश शासन के खिलाफ हर बड़े आंदोलन का कहीं न कहीं दिल्ली से जुड़ाव रहा। यह न केवल भौगोलिक रूप से भारत के बीच में थी, बल्कि राजनीतिक, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण थी। ऐसी ही कुछ घटनाएं… सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद 1945 में ब्रिटेन में चुनाव हुए। लेबर पार्टी सत्ता में आई और क्लेमेंट एटली प्रधानमंत्री बने। पीएम एटली ने फरवरी 1947 में ऐलान किया कि 30 जून 1948 तक ब्रिटेन भारत को आजाद कर देगा। इसके लिए लॉर्ड माउंटबेटन को आखिरी वायसराय चुना गया। भारत के पहले गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी के मुताबिक अगर माउंटबेटन जून 1948 तक इंतजार करते तो ट्रांसफर करने के लिए उनके पास कोई पावर ही नहीं बचती। पूरे देश में हिंसा और उथल-पुथल मची थी। माउंटबेटन ने भारत की आजादी और बंटवारे के प्लान में तेजी दिखाई। माउंटबेटन के सुझावों पर ब्रिटेन की संसद ने 4 जुलाई, 1947 को इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट पारित किया। इसमें 15 अगस्त 1947 को भारत से ब्रिटिश शासन खत्म करने का प्रावधान था। इससे पहले ही सत्ता हस्तांतरित कर दी गई। बंटवारे के दौरान कत्लेआम हुआ। हिंदू-मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग मारे गए। पंडित जवाहरलाल नेहरू को पीएम चुना गया। 15 अगस्त 1947 की आधी रात को संसद में जवाहरलाल नेहरू ने शपथ ली। लार्ड माउंटबेटन 14-15 अगस्त 1947 की आधी रात को पाकिस्तान और भारत को आजादी मिलने के बाद से 10 महीने तक नई दिल्ली में रहे। जून 1948 तक स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल के रूप में काम किया। ------- दिल्ली की कहानी सीरीज के अन्य एपिसोड... 1. महाभारत का इंद्रप्रस्थ कैसे बना दिल्ली:पांडवों ने नागों को भगाकर बसाया; यहीं के महल में बेइज्जत हुए दुर्योधन दिल्ली का इतिहास भारत की माइथोलॉजी यानी पौराणिक कथाओं जितना पुराना है। महाभारत के युद्ध में दिल्ली की बड़ी भूमिका थी। हालांकि तब इसे इंद्रप्रस्थ कहा जाता था। उस दौर में नाग यहां रहा करते थे। जानिए कैसे पांडवों ने उन्हें भगाया। पूरी खबर पढ़ें पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी का पहला मुकाबला 1191 में तराइन के युद्ध में हुआ। ये जगह हरियाणा के करनाल के पास है। पृथ्वीराज की सेना ने मोहम्मद गोरी की सेना को तहस-नहस कर दिया। मोहम्मद गोरी सेना समेत पंजाब की तरफ भाग खड़ा हुआ। पृथ्वीराज ने गोरी को खदेड़ने की कोशिश नहीं की और उसकी जान बच गई। पृथ्वीराज की इस गलती ने भारत के इतिहास का रुख ही मोड़ दिया। पढ़िए पूरी खबर...
मिडिल ईस्ट की सबसे बड़ी जंग 15 महीने की तबाही के बाद अब युद्धविराम के करीब है। 15 जनवरी 2025 को कतर के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुल रहमान अल थानी ने इजराइल और हमास के बीच सीजफायर की घोषणा की। 19 जनवरी से ये सीजफायर लागू हो जाएगा। हालांकि अभी इस समझौते पर नेतन्याहू ने फाइनल मुहर नहीं लगाई है। इजराइल सीजफायर को क्यों तैयार हुआ, क्या अब जंग पूरी तरह खत्म हो जाएगी, गाजा पर किसका कब्जा होगा; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में... सवाल-1: इजराइल और हमास के बीच सीजफायर की डील क्या है?जवाब: 31 जुलाई 2024 अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इजराइल-हमास सीजफायर डील की आउटलाइन तैयार की। इस डील को यूनाइटेड नेशन्स (UN) ने मंजूरी दी लेकिन तब इजराइल ने इसे खारिज कर दिया था। 15 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इजराइल-हमास सीजफायर डील पर कहा, इस समझौते से गाजा में लड़ाई रुकेगी और बंधकों को उनके परिवारों से मिलाया जाएगा। अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, इस डील में ट्रम्प की टीम भी शामिल रही। ट्रम्प राष्ट्रपति कार्यकाल शुरू करने से पहले इस डील को पूरा करना चाहते थे। 7 जनवरी को ट्रम्प की सख्त लहजे में चेतावनी के बाद डील तेजी से आगे बढ़ी। सवाल-2: गाजा में सीजफायर के लिए यह डील कैसे होगी और इसमें क्या होगा?जवाब: 15 जनवरी को जो बाइडेन ने कहा कि यह डील 19 जनवरी यानी रविवार से तीन फेज में शुरू होगी... पहला फेज: 42 दिन तक बंधकों की अदला-बदली होगी दूसरा फेजः युद्ध हमेशा के लिए खत्म होगा तीसरा फेजः गाजा का पुनर्निमाण होगा सवाल 3: क्या अब भी सीजफायर समझौता रद्द हो सकता है?जवाब: बीते कुछ दिनों के घटनाक्रम से पता लगता है कि नेतन्याहू इस डील से बहुत खुश नहीं है… विदेशी मामलों के जानकार प्रोफेसर मोहसिन रजा खान कहते हैं, नेतन्याहू को अपनी गठबंधन सरकार में शामिल मंत्रियों के विरोध के चलते सरकार चलाने में दिक्कत आ सकती है, इसलिए उन्होंने समझौता रोका हुआ है और इसका आरोप हमास पर डाल रहे हैं। टाइम्स ऑफ इजरायल के मुताबिक, इजराइल की गठबंधन सरकार में सुरक्षा मंत्री इतामार बेन-ग्वीर और फाइनेंस मिनिस्टर बेजेलल स्मोत्रिच के सरकार से अलग होने की धमकी के चलते नेतन्याहू समझौते पर फाइनल मोहर लगाने में देर कर रहे हैं। सवाल 4: जब नेतन्याहू खुश नहीं, फिर इजराइल सीजफायर के लिए क्यों तैयार हुआ?जवाब: इजराइल के युद्ध विराम के लिए तैयार होने की 3 बड़ी वजहें हैं… 1. नेतन्याहू पर बंधकों को छुड़ाने का दबावइजराइली बंधकों को छुड़ाने की मांग को लेकर बीते 15 महीनों में इजराइल में 900 से ज्यादा प्रोटेस्ट हुए। जंग शुरू होने से पहले से नेतन्याहू के खिलाफ इजराइल में प्रदर्शन हो रहे थे। जुलाई 2023 में नेतन्याहू की सरकार ने एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसके मुताबिक, इजराइल की सुप्रीम कोर्ट नेतन्याहू सरकार के किसी भी फैसले को पलट नहीं सकती। 2. अमेरिका ने इजराइल पर दबाव बनायाडोनाल्ड ट्रम्प का राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद इजराइल पर सीजफायर का दबाव बढ़ गया। 7 जनवरी 2025 को ट्रम्प ने सख्त लहजे में चेतावनी भी दे दी। मोहसिन रजा का कहना है, ‘ट्रम्प इस जंग को खत्म करके समझौते का क्रेडिट लेना चाहते हैं। 9 महीने पहले उन्होंने नेतन्याहू से मुलाकात में कहा था कि ‘जंग बंद करो, इट्स नॉट लुकिंग गुड।' ट्रम्प के सामने रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे मामले भी हैं।' मोहसिन रजा ने कहा, नेतन्याहू जानते हैं कि ट्रम्प को नाराज नहीं किया जा सकता। ट्रम्प पावर पॉलिटिक्स वाले नेता हैं। अगर ट्रम्प की बात नहीं मानी तो इससे वो नाराज हो जाएंगे। वह अपनी छवि बचाने के लिए अमेरिका का हित-अहित भी नहीं देखेंगे। 3. इजरायल की सेना जंग से थक चुकी हैमोहसिन रजा कहते हैं, ‘इजराइल के पास परमानेंट फोर्स नहीं है। सैनिक अब और जंग नहीं चाहते। इजराइल की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ गई है और वहां महंगाई भी बढ़ रही है।’ मोहसिन के मुताबिक, ये डील सिर्फ एक दिखावा भी हो सकती है, ताकि बंधक वापस आ जाएं। इसके बाद फिर से जंग शुरू कर दी जाए। सवाल-5: डोनाल्ड ट्रम्प को सीजफायर डील का क्रेडिट क्यों दिया जा रहा?जवाब: बीते दिनों मध्य पूर्व में डोनाल्ड ट्रम्प के प्रतिनिधि स्टीव विटकॉफ ने कहा, 'प्रेसिडेंट ट्रम्प, उनका कद, उनके शब्द और उनकी इस इच्छा के चलते यह बातचीत आगे बढ़ रही है कि 20 जनवरी तक जंग को खत्म करना होगा।' अमेरिका के पूर्व डेमोक्रेटिक नेता टॉम मालिनोवस्की ने कहा, यह डील बाइडेन की थी। मैं बहुत नफरत से यह कह रहा हूं, लेकिन सच यही है कि वह ट्रम्प के बिना ऐसा नहीं कर सकते थे। समझौता होने के बाद नेतन्याहू ने पहला फोन ट्रम्प को किया, जबकि दूसरा बाइडेन को। मोहसिन के मुताबिक, ‘रिपब्लिकन पार्टी इजराइल के पक्ष में मानी जाती है। ट्रम्प, बाइडेन की तुलना में इजरायल के बड़े समर्थक माने जाते हैं। वहीं बाइडेन का कार्यकाल खत्म होने वाला था। इजराइल चाहता है कि ट्रम्प की सरकार वेस्ट बैंक पर उसके कब्जे को मान्यता दे दे। इसलिए नेतन्याहू को ट्रम्प की बात माननी पड़ी।’ सवाल 6: सीजफायर के बाद गाजा पर किसका कब्जा होगा?जवाब: सीजफायर डील में गाजा पर कब्जे को लेकर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग में पूर्व डिप्टी सेक्रेटरी थॉमस एस. वारिक का कहना है कि गाजा पर कंट्रोल ही असली दिक्कत है, जिसका कोई समाधान नहीं निकल सका। डील के दूसरे फेज में इस पर चर्चा की बात कही गई है, लेकिन कोई भी इसके लिए तैयार नहीं है। थॉमस के मुताबिक, अमेरिका और इजराइल, गाजा में हमास की कोई भूमिका नहीं चाहते। वहीं, हमास के नेता भी फिलहाल पीछे हटने को तैयार हैं। इसके लिए ट्रम्प कुछ समय के लिए पीछे हट सकते हैं, जिससे इजराइल और फिलिस्तीन के बीच कब्जे की कार्रवाई पर नजर रख सकें। मोहसिन रजा ने कहा, कभी गाजा का प्रशासन फिलिस्तीन को देने की बात होती है, तो कभी मिस्र और कतर के मिले-जुले प्रशासन की बात की जाती है। लेकिन कोई भी देश इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता। सवाल 7: क्या इजराइल और हमास के बीच जंग दोबारा शुरू हो सकती है?जवाब: एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इजराइल चाहता है कि अमेरिका वेस्ट बैंक पर इजराइल के कब्जे को मान्यता दे दे। इन इलाकों से इजराइल आसानी से पीछे नहीं हटेगा। अभी हमास कमजोर है, इसलिए उसने समझौता मान लिया है। लेकिन वह अपने वजूद के लिए दोबारा लड़ाई के मैदान में आ सकता है।’ सवाल-8: 15 महीने की इजराइल-हमास जंग में क्या-क्या हुआ?जवाब: हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक गाजा में 46,707 लोग मारे गए हैं, वहीं 20 लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गए। इजराइल ने 90% गाजा को तबाह कर दिया है। 50 हजार से ज्यादा बच्चे गंभीर कुपोषण का शिकार हैं। --------- इजराइल-हमास जंग से जुड़ी अन्य खबर इजराइल-हमास सीजफायर डील 17 घंटों में टूटने की कगार पर:नेतन्याहू का आरोप- हमास शर्तों से पीछे हटा, समझौते के अंत तक रियायत मांग रहा इजराइल-हमास के बीच सीजफायर डील 17 घंटों के अंदर ही टूटने की कगार पर पहुंच गई है। इस डील को मंजूरी देने के लिए इजराइली कैबिनेट की मीटिंग होने वाली थी। अब PM नेतन्याहू ने मीटिंग करने से मना कर दिया है। पढ़िए पूरी खबर...
10 फरवरी 2013, रविवार का दिन। प्रयाग में कुंभ लगा था। उस दिन मौनी अमावस्या थी। तीन करोड़ से ज्यादा लोग संगम में डुबकी लगा चुके थे। शाम साढ़े सात-आठ बजे की बात है। मैं प्रयाग जंक्शन के बाहर एक दुकान पर चाय पी रहा था। दिनभर कुंभ की कवरेज की वजह से थक सा गया था। सोचा, थोड़ा आराम करके दफ्तर के लिए निकलूंगा। इसी बीच लोगों की चीख-पुकार गूंजने लगी। मैं प्लेटफॉर्म नंबर 6 की तरफ दौड़ा। वहां पैर रखने की जगह नहीं थी। लाखों लोग बदहवास होकर इधर-उधर भाग रहे थे। एक-दूसरे पर गिरते-गिराते। कुछ देर बाद जब भगदड़ थमी तो प्लेटफॉर्म पर इधर-उधर लाशें बिखरी पड़ी मिलीं। इनमें महिलाएं, पुरुष, जवान और बुजुर्ग सब शामिल थे। कुल 36 लोग मारे गए। ज्यादातर लोगों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था। ये किस्सा बताते हुए प्रयाग के सीनियर जर्नलिस्ट स्नेह मधुर सिहर उठते हैं। ‘महाकुंभ के किस्से’ सीरीज के छठे एपिसोड में कहानी 2013 कुंभ में मची भगदड़ की… स्नेह बताते हैं- ‘मैं लंबे समय से कुंभ कवर करता आ रहा हूं। 1954 की भगदड़ के बारे में सुना-पढ़ा था, लेकिन 2013 में सबकुछ मेरी आंखों के सामने था। लोग बचाओ, बचाओ कहकर चीख रहे थे, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। चारों तरफ अफरा-तफरी मची थी। 'तोहरे बिना हम घर कइसे लौटब, तोहरे बाबू के का मुंह देखाइब'। बिहार की रहने वाली एक महिला बदहवास होकर अपनी बेटी को ढूंढ रही थी। उनकी बहन संभालने की कोशिश कर रही थी, लेकिन कुछ देर बाद उनका भी धैर्य टूट गया। दोनों लिपटकर रोने लगीं। महिला ने बताया कि उसकी बेटी की शादी दो महीने बाद होने वाली थी। देर रात तक इस तरह की चीखों से स्टेशन गूंजता रहा। प्लेटफॉर्म पर न तो वक्त रहते स्ट्रेचर पहुंच पाया न ही कोई एंबुलेंस। लोगों को कपड़े में बांधकर अस्पताल पहुंचाया जा रहा था। कई लोगों ने तो इलाज के बिना प्लेटफॉर्म पर ही दम तोड़ दिया। करीब दो घंटे बाद रेलवे और प्रशासन के अफसर प्लेटफॉर्म पर पहुंचे।’ 6 नंबर प्लेटफॉर्म पर आने वाली थी ट्रेन, अचानक बदल दिया प्लेटफॉर्म स्नेह मधुर बताते हैं- ‘प्रयाग जंक्शन रेलवे स्टेशन पर दो साइड हैं। एक सिविल लाइन्स और दूसरा चौक साइड। संगम स्नान के बाद लौटने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए चौक साइड में बाड़े बनाए गए थे। अलग-अलग रूट के लिए अलग-अलग बाड़े। उनके रूट की तरफ जाने वाली ट्रेन जब आती थी, तब उनके बाड़े को खोला जाता था, लेकिन उस रोज प्रशासन की लापरवाही से ये सिस्टम बिगड़ गया था। नवाब यूसुफ रोड, जो संगम से सीधे सिविल लाइन्स साइड यानी प्लेटफॉर्म नंबर 6 की तरफ जाताी है। उस दिन उस रास्ते को ब्लॉक नहीं किया गया। स्नान करके लौट रही भीड़ चौक साइड जाने के बजाय सिविल लाइन्स की तरफ बढ़ने लगी। दोपहर में ही प्लेटफॉर्म खचाखच भर गया था। पैर रखने तक की जगह नहीं थी, लेकिन भीड़ रुकने का नाम नहीं ले रही थी। लोग लगातार प्लेटफॉर्म की तरफ बढ़ते जा रहे थे। इधर प्लेटफॉर्म पर कई ट्रेनें घंटों की देरी से चल रही थीं। लिहाजा लंबे समय से ट्रेनों का इंतजार कर रहे लोग जमा होते गए। इसी बीच अनाउंसमेंट हुआ कि ट्रेन प्लेटफॉर्म नं 6 की बजाय दूसरे प्लेटफॉर्म पर आएगी। इतना सुनते ही लोग उस प्लेटफॉर्म पर जाने के लिए भागने लगे। फुट ओवर ब्रिज पर तो तिल रखने तक की जगह नहीं थी। लोगों को भागते देख रेलवे पुलिस लाठी भांजने लगी। एक दूसरे के ऊपर लोग गिरने लगे। भगदड़ मच गई। कई लोग तो ओवर ब्रिज से गिर भी गए।’ झारखंड के प्रसाद यादव हादसे में घायल हो गए थे। उन्होंने एक मीडिया रिपोर्ट में बताया था- 'प्लेटफॉर्म नंबर 6 के फुटओवर ब्रिज पर पैर रखने तक की जगह नहीं थी। इसके बाद भी लोग आगे बढ़ रहे थे। इतने में एक महिला गिर पड़ी। उसे बचाने के लिए लोगों ने भीड़ को धक्का दिया, ताकि जगह बन पाए, लेकिन जीआरपी ने लाठी भांज दी। भगदड़ मच गई। मैं दसियों लोगों के नीचे दब गया। ऐसा लग रहा था कि अब प्राण निकलने ही वाले हैं। सांसें ऊपर-नीचे हो रही थीं। शरीर का भुर्ता बन गया था। मैंने अपनी आंखों के सामने कई लोगों को तड़प-तड़प कर मरते देखा। इसके बाद मैं बेहोश हो गया। जब आंख खुली तो अस्पताल में था।' रेलवे कुंभ वार्ड में ताला लगा था, इलाज नहीं मिलने से चार मर गए हादसे के वक्त रेलवे कुंभ वार्ड में ताला लगा हुआ था। साढ़े नौ बजे डीआरएम पहुंचे। उसके बाद अस्पताल का ताला खुला। तब वहां रूई और पट्टी छोड़कर कोई व्यवस्था नहीं थी। ऑक्सीजन सिलेंडर खाली पड़े थे। चार लोगों की मौत तो इलाज नहीं मिलने की वजह से हो गई। कई लोग परिजनों की लाश लेकर भटक रहे थे। 12 घंटे इंतजार करने के बाद भी प्रशासन शवों को उनके घर तक पहुंचाने की व्यवस्था नहीं कर पाया था। अस्पताल के बाहर कई लोगों को मुंहमांगे दामों पर कफन खरीदने पड़े। किसी ने हजार रुपए में कफन खरीदे तो किसी को 1200 रुपए देने पड़े। मेले के प्रभारी मंत्री आजम खां ने कहा- 'मीडिया ने हालात पैनिक किया' 2013 कुंभ के वक्त यूपी में सपा की सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री। आजम खां को मेले का प्रभारी मंत्री बनाया गया था। हादसे के बाद नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए आजमा खां ने इस्तीफा तो दिया, लेकिन दोष रेलवे और मीडिया पर मढ़ दिया। उन्होंने कहा- ‘जहां तीन करोड़ लोग एक दिन में आए, वहां इस तरह के हादसे के बारे में किसी को जिम्मेदार ठहराया नहीं जा सकता। मीडिया की सूचना की वजह से भी जो पैनिक क्रिएट हुआ है, उसे कंट्रोल करना है।’ यूपी सरकार ने मृतकों को पांच-पांच लाख और घायलों को एक-एक लाख रुपए मुआवजा दिया। जबकि रेलवे की तरफ से मृतकों के परिजनों को एक-एक लाख रुपए दिए गए। सुबह भी मची थी भगदड़, लेकिन प्रशासन अलर्ट नहीं हुआ मौनी अमावस्या की सुबह भी सेक्टर 12 में भगदड़ मची थी, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी। इन चार में से दो की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ था कि उनकी मौत दम घुटने और अंदरूनी चोट की वजह से हुई है। हालांकि, मेला प्रशासन का कहना था कि इनकी मौत हार्ट अटैक से हुई है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मौके पर मौजूद लोगों ने बताया कि रास्ते में दो लाल बत्ती वाली कारें आ रही थी और पुलिस की जिप्सी उनके लिए रास्ता बनाते आ रही थी। इसी बीच पुलिस ने लाठी भांज दी। इससे लोग भागने लगे। एक दूसरे के ऊपर गिरने लगे। इससे चार लोगों की मौत हो गई। हालांकि बाद में पुलिस ने हालात कंट्रोल कर लिया। उस दिन एक और भगदड़ मची थी। इसका जिक्र करते हुए 'भारत में महाकुंभ' के लेखक धनंजय चोपड़ा बताते हैं- 'तब मैं मेले मे कुंभ की साउंड रिकॉर्ड करता हुआ बांध की ओर ऊपर जा रहा था। बांध की ढालान से एक जुलूस नीचे की तरफ आ रहा था। अचानक जुलूस में शामिल ट्रैक्टर का बैलेंस बिगड़ गया। इससे भगदड़ मच गई। मैं भी भगदड़ में गिर गया। मेरे ऊपर कई लोग चढ़ गए। मेरी जान तो बच गई, लेकिन मेरा झोला और स्वेटर कोई खींच ले गया। मेरी आंखों के सामने एक पश्चिम बंगाल के एक शख्स की जान चली गई थी।' अंग्रेजों के जमाने में भी कुंभ में होते रहे हादसे, 1820 में 450 लोग मारे गए थे कुंभ मेले में भगदड़ कई बार मची है। अंग्रेजों के जमाने में भी कुंभ के दौरान कई हादसे हुए। 1820 के हरिद्वार कुंभ मेले में भगदड़ से 450 से भी ज्यादा तीर्थयात्रियों की मौत हुई थी। 1000 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। 1840 के प्रयाग कुंभ मेले में 50 से अधिक मौतें हुईं। 1906 के प्रयाग कुम्भ मेले में तो भगदड़ से 50 से ज्यादा लोग मारे गए थे। आजादी के बाद 1954 के कुंभ में सबसे ज्यादा लोगों की जान गई थी। प्रयाग की स्थानीय अमृत बाजार पत्रिका अखबार के मुताबिक तब 1000 से ज्यादा लोगों की जान भगदड़ की वजह से गई थी। हरिद्वार कुंभ में मुख्यमंत्री के स्नान के लिए रास्ता रोका, भगदड़ में 50 मरे 14 अप्रैल 1986, हरिद्वार कुंभ खत्म होने को था। तब हरिद्वार यूपी का हिस्सा था। सुबह का वक्त था। यूपी के मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ स्नान करने हर की पैड़ी पहुंच गए। उनके स्नान के लिए रास्ता सवा तीन घंटे बंद रखा गया। तब हर की पैड़ी जाने के लिए एक संकरे पुल के ऊपर से जाना होता था। रास्ता रोके जाने की वजह से भीड़ पुल पर जमने लगी। जब सीएम के स्नान के बाद रास्ता खोला गया तो भीड़ बेकाबू हो गई। लोग एक-दूसरे के ऊपर गिरने लगे। भगदड़ मच गई। करीब 50 लोग कुचलकर मारे गए। इनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे। कुछ लोगों की मौत दम घुटने की वजह से भी हुई थी। साधु ने चांदी के सिक्के उछाले, भगदड़ में 39 मारे गए 27 अगस्त, 2003, महाराष्ट्र के नासिक में कुंभ लगा था। वहां रामकुंड की ओर जाने वाले तीर्थ यात्रियों को बैरिकेड्स लगाकर रोका गया था। करीब 30 हजार श्रद्धालु संकरी गली में फंसे थे। इसी बीच एक साधु ने चांदी के सिक्के उछाल दिए। सिक्के लूटने के चक्कर में लोग एक-दूसरे पर चढ़ने लगे। कुछ लोगों के बीच मार-पीट भी हो गई। इससे भगदड़ मच गई। 39 लोगों की जान चली गई। 140 से ज्यादा लोग हादसे में घायल हो गए। ----------------------------------------------- महाकुंभ से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... नेहरू के लिए भगदड़ मची, 1000 लोग मारे गए:सैकड़ों शव जला दिए गए; फटे कपड़े में पहुंचे फोटोग्राफर ने चुपके से खींची तस्वीर साल 1954, आजाद भारत का पहला कुंभ इलाहाबाद यानी अब के प्रयागराज में लगा। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या थी। मेले में खबर फैली कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आ रहे हैं। उन्हें देखने के लिए भीड़ टूट पड़ी। जो एक बार गिरा, वो फिर उठ नहीं सका। एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए। सरकार ने कहा कि कोई हादसा नहीं हुआ, लेकिन एक फोटोग्राफर ने चुपके से तस्वीर खींच ली थी। अगले दिन अखबार में वो तस्वीर छप गई। पढ़िए पूरी खबर... नागा बनने के लिए 108 बार डुबकी, खुद का पिंडदान:पुरुषों की नस खींची जाती है; महिलाओं को देनी पड़ती है ब्रह्मचर्य की परीक्षा नागा साधु कोडवर्ड में बातें करते हैं। इसके पीछे दो वजह हैं। पहली- कोई फर्जी नागा इनके अखाड़े में शामिल नहीं हो पाए। दूसरी- मुगलों और अंग्रेजों के वक्त अपनी सूचनाएं गुप्त रखने के लिए यह कोड वर्ड में बात करते थे। धीरे-धीरे ये कोर्ड वर्ड इनकी भाषा बन गई। पढ़िए पूरी खबर...
‘दिल्ली सरकार की OBC लिस्ट में जाट समाज का नाम आता है। केंद्र सरकार की OBC लिस्ट में नहीं आता। बच्चे केंद्र के कॉलेज या यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने जाते हैं, तो उन्हें रिजर्वेशन नहीं मिलता। दिल्ली पुलिस या DDA की नौकरी में रिजर्वेशन नहीं मिलता। इंट्रेस्टिंग बात ये है कि राजस्थान के जाट समाज के बच्चों को दिल्ली के कॉलेजों में रिजर्वेशन मिलता है, लेकिन दिल्ली के जाट समाज को नहीं।’ दिल्ली के पूर्व CM अरविंद केजरीवाल ने चुनाव से पहले जाट रिजर्वेशन का मुद्दा उठाया है। ऊपर लिखी बात उन्होंने 9 जनवरी को एक कार्यक्रम में कही थी। इससे एक दिन पहले 8 जनवरी को उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेटर लिखा था, उसमें भी यही मुद्दा उठाया। केजरीवाल भले जाट आरक्षण की बात कर रहे हैं, लेकिन मटियाला गांव के रहने वाले पवन के लिए जाट नेता कैलाश गहलोत का अपमान ज्यादा बड़ा मसला है। गहलोत AAP सरकार में मंत्री थे, फिर BJP में आ गए। पवन कहते हैं, 'हमने टीवी पर कैलाश गहलोत के इंटरव्यू सुने हैं। वे परेशान होकर BJP में चले गए। उनके सम्मान को ठेस पहुंचाई गई। केजरीवाल जेल से बाहर आए तो हर मंत्री से हाथ मिलाया, लेकिन कैलाश गहलोत से हाथ नहीं मिलाया।’ दिल्ली के 364 गांवों में 225 गांव जाट आबादी वालेदिल्ली के 364 गांवों में से 225 में जाटों की आबादी सबसे ज्यादा है। दूसरी बड़ी आबादी गुर्जर है, जिनका 70 गांवों में दबदबा है। जाट और गुर्जर वोटर दिल्ली की करीब 50 सीटों पर असर डालते हैं। 20 सीटों पर हार-जीत का फैसला करते हैं। इनकी मांग है कि इस बार जिसकी भी सरकार बने, CM दिल्ली वाला ही होना चाहिए। दिल्ली में पैदा हुए पिछले CM BJP के साहिब सिंह वर्मा थे, जो 1996 से 1998 तक मुख्यमंत्री रहे थे। दिल्ली में 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। रिजल्ट 8 फरवरी को आएगा। राजधानी दिल्ली की पावर पॉलिटिक्स में गांवों का रोल समझने दैनिक भास्कर ग्राउंड पर पहुंचा। यहां के लोगों के अलावा पार्टी लीडर्स और एक्सपर्ट्स से बात की। AAP के पास बड़ा जाट चेहरा नहीं, BJP के पास कई नेताआम आदमी पार्टी भले जाट वोटर्स पर फोकस कर रही है, लेकिन उसके पास कोई बड़ा जाट चेहरा नहीं है। पार्टी के सीनियर लीडर और मंत्री रहे कैलाश गहलोत BJP में जा चुके हैं। BJP के पास प्रवेश वर्मा जैसा पॉपुलर फेस है। BJP ने अब तक घोषित किए 68 कैंडिडेट्स में 20% से ज्यादा टिकट जाट नेताओं को दिए हैं। गुर्जर समुदाय को अपनी तरफ करने के लिए दो बार सांसद रह चुके रमेश बिधूड़ी को आगे किया है। हालांकि BJP ने CM फेस का ऐलान नहीं किया है। उसने हर सीट पर स्ट्रैटजी के तहत पोस्टर लगाए हैं। जाट आबादी वाली बिजवासन, नांगलोई, विकासपुरी, मटियाला और मुंडका सीटों पर प्रवेश वर्मा और BJP सांसद कमलजीत सेहरावत की फोटो लगी हैं। छतरपुर, बदरपुर, करावलनगर और तुगलकाबाद जैसी गुर्जर आबादी वाली सीटों पर रमेश बिधूड़ी के पोस्टर हैं। जाट-गुर्जरों की मांग दिल्ली का CM दिल्लीवाला ही बनेदिसंबर, 2024 में दिल्ली के 364 गांवों और 36 बिरादरी के लोगों ने मंगोलपुरी में महापंचायत की थी। यहां के लोग हाउस टैक्स और सरकार की ओर से अधिग्रहीत जमीन के मुआवजे जैसे मुद्दे उठा रहे हैं। ये मुद्दे जाट, गुर्जर और यादव वोटर्स के लिए अहम हैं। दैनिक भास्कर तुगलकाबाद, छतरपुर, मटियाला, पालम और नांगलोई जैसी जाट और गुर्जर बहुल सीटों पर पहुंचा। यहां हर सीट पर अलग मुद्दे हैं। मटियाला सीट का मुद्दा: AAP में कैलाश गहलोत का अपमानमटियाला जाटों का गांव है। इसी नाम से सीट भी है। यहां जाट और यूपी के पूर्वांचल से आने वाले वोटर रहते हैं। हमने मटियाला में रहने वाले पवन से बात की। वे जाट नेता कैलाश गहलोत के समर्थक हैं। पवन कहते हैं, 'कैलाश गहलोत ने बताया है कि पार्टी के नेताओं ने कई घोटाले किए। 10 साल काम नहीं किया, सिर्फ LG से लड़ते रहे। अगर AAP की सरकार आ भी गई तो उनके और LG के बीच लड़ाई होती रहेगी। हम इस लड़ाई से छुटकारा चाहते हैं।' सुरेंदर कुमार दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। वे कहते हैं, 'जाट उतने पढ़े-लिखे नहीं थे। इसलिए वोट डालना या न डालना इतना सीरियसली नहीं लेते। दिल्ली के गांव के इलाके न शहरी हो पाए और न पूरी तरह गांव रह पाए हैं। हमारे विधायक AAP के गुलाब सिंह हैं। उन्हें दिल्ली में अपने एरिया में रहकर काम करने चाहिए थे। केजरीवाल ने उन्हें प्रभारी बनाकर गुजरात भेज दिया।’ दूसरा मुद्दा: महंगी बिजलीसीट: पालममटियाला के बाद हम पालम गांव पहुंचे। इस सीट से 2020 में AAP की भावना गौड़ ने चुनाव जीता था। इस बार AAP ने उनकी जगह जोगिंदर सोलंकी और BJP ने कुलदीप सोलंकी को टिकट दिया है। दोनों जाट समुदाय से हैं। पालम में हमें सुखबीर सिंह सोलंकी मिले। उनका घर जोगिंदर सोलंकी के ऑफिस से 10 कदम दूर है। सुखबीर कहते हैं, 'बिजली और महंगाई का मुद्दा सबसे बड़ा है। बिजली का बिल बहुत बढ़ गया है। कॉमर्शियल बिजली के रेट 8 रुपए से 22 रुपए यूनिट हो गए। घरेलू बिजली भी 6 से 8 रुपए यूनिट हो गई। बिजली कंपनियों के साथ मिलकर लोगों को लूटा जा रहा है। मिडिल क्लास वाले परेशान हैं। ’ ‘यूपी और बिहार के लोग दिल्ली आ जाते हैं। वे सड़कों और फुटपाथ पर कब्जा कर लेते हैं। रेहड़ी लगाते हैं। उनके आते ही SDM उनके आधार कार्ड और वोटर कार्ड बना देते हैं। केजरीवाल यही राजनीति कर रहे हैं। गांव के लोग खेती करते थे। उनकी जमीन छीन ली गई।' सुखबीर आगे कहते हैं, 'साहिब सिंह वर्मा के बाद दिल्ली का मूल निवासी कभी मुख्यमंत्री नहीं रहा। BJP के बारे में कह रहे हैं कि वो साहिब सिंह के बेटे प्रवेश सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाएगी। कांग्रेस में ऐसा ही संदीप दीक्षित के बारे में कहा जा रहा है।’ तीसरा मुद्दा: सेना में गुर्जरों के लिए अलग रेजिमेंटपालम से हम दिल्ली के फतेहपुर गांव गए। यहां प्रवेश वर्मा की बजाय रमेश बिधूड़ी की फोटो लगी हैं। ये खेत वाला एरिया है। ज्यादातर में फार्महाउस बन गए हैं। अंग्रेजों ने कभी गुर्जरों को क्रिमिनल कास्ट घोषित कर दिया था। आजादी के बाद सरदार पटेल ने इसे हटा दिया था। यहां के लड़कों में बॉडी-बिल्डिंग का क्रेज है। इनमें कई लोग बाउंसर का काम करते हैं। यहां के भगवत चौधरी कहते हैं, 'हमारे खेत में ट्यूबवेल लगी है। इसलिए खेत में पानी दे पाते हैं। यहां का पानी इतना गंदा है कि खेत में नहीं दे सकते। हम मिलिट्री में अपनी बटालियन चाहते हैं। आर्मी में राजपूत और जाट यूनिट हैं, हमें गुर्जर रेजिमेंट भी चाहिए।' बलराज प्रधान 12 गुर्जर गांवों के चौधरी हैं। वे बताते हैं, 'दिल्ली गुर्जरों की ही थी। हमारे दिल्ली में करीब 100 गांव हैं। हर बार समुदाय के 4-5 विधायक बनते हैं।' 'गांव के लोगों के साथ बहुत बुरा हुआ है। हमारे पास जमीन है। 1908 में लाल डोरा सर्टिफिकेट बना। उसके बाद कभी उसका विस्तार नहीं हुआ। खेती की जमीन पर मकान बनाए गए। हम जमींदार होकर भी अपनी जमीन पर खेती नहीं कर सकते। जमीन में पानी नहीं है। सरकार कोई ट्यूबवेल भी नहीं लगाती।’ बलराज प्रधान आगे कहते हैं, ‘मजबूरी में हमें खेतों की जमीन पर गोदाम बनाने पड़े। हम गोदाम बना लें तो अगले दिन सरकार का नोटिस आ जाता है। सरकार हमें पानी नहीं देती। दिल्ली में रिश्वत बहुत है। एक बोरवेल लगवाने के लिए 36 लाख रुपए रिश्वत देनी पड़ती है। हमने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन भी किया।' '1857 में हम अंग्रेजों से लड़े थे। तब देश में फतेहपुर को छोड़कर कहीं भी पुलिस चौकी नहीं थी। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां के 12 लोग अंग्रेजों के खिलाफ बगावत पर उतर आए थे। इस इलाके में लोग हमेशा से पहलवानी करते आए हैं। अब लड़के बॉडी-बिल्डर बन गए हैं। ये लोग होटल और कई संस्थानों में सिक्योरिटी का काम संभालते हैं।' 'जाटों को OBC में लाने की बात हो रही है। गुर्जर पहले से OBC में हैं। AAP जाटों को गुर्जर की बराबरी पर लाने के नाम पर लड़ा रही है, लेकिन हम बंटेंगे नहीं। ये तय है कि इससे आम आदमी पार्टी को नुकसान होगा।’ जाटों को आरक्षण मिलता भी है तो हमें कोई आपत्ति नहीं है। वो हमारे भाई हैं। OBC को कोई खास फायदा नहीं मिलता, जितना SC/ST को मिलता है। चुनाव के बीच ऐसी बातें लाने का कोई फायदा नहीं मिलेगा। 'हम तो पूरे साल केजरीवाल के खिलाफ प्रदर्शन करते रहे। उसने हमारी कोई बात नहीं मानी। LG ने हमे सीलिंग में राहत दी। हम केजरीवाल जी से मिले थे, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। अगर BJP प्रवेश वर्मा या रमेश बिधूड़ी को CM बनाती है, तो खुशी होगी।' ‘गांव स्लम में बदले, यहां अब कुछ नहीं बचा’ इसके बाद हम 360 गांवों के प्रधान सुरेंदर सोलंकी से मिले। वे कहते हैं, 'हम दो साल से पंचायतें कर रहे हैं। गांवों के हालात बदतर हो रहे हैं। कोई सुनवाई करने वाला नहीं है। हमने मंगोलपुरी की पंचायत में फैसला लिया कि दिल्ली के गांव और 36 बिरादरी के लोग उसे समर्थन देंगे, जो हमारी बात करेगा।' '28 साल से दिल्ली का मूल निवासी मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है। हर राज्य के लोग चाहते हैं कि वहीं का बाशिंदा CM बने। दिल्ली के लोग भी यही चाहते हैं। बाहर के लोग चुनाव से पहले वादे करते हैं। कुर्सी पर बैठने के बाद भूल जाते हैं।’ सुरेंदर आगे कहते हैं, 'हमारे समुदाय के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्मप्रकाश और आखिरी मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ही थे। BJP ने उन्हें CM पद से हटा दिया था। तब हमने कंझावला में महापंचायत की थी। उस वक्त मेरे दादाजी जगराम सोलंकी प्रधान थे।’ ‘पंचायत में कहा गया कि BJP को यह गलती भारी पड़ेगी। हो सकता है भविष्य में दिल्ली में उसका कोई मुख्यमंत्री न बने। यह बात सच हुई। पिछले 28 साल से BJP वजूद ही तलाश रही है। हमें केजरीवाल से कोई उम्मीद नहीं है। कांग्रेस मुकाबले में नहीं है। अगर BJP चुनाव जीतना चाहती है तो CM के लिए देहात में रहने वाले किसी नाम की घोषणा करे।' गांवों में 2 साल से BJP और RSS एक्टिव 2021 में फतेहपुर में गुर्जर समाज ने 7 राजाओं भोज परमार, पृथ्वीराज चौहान, वनराज चावड़ा, भीमदेव सोलंकी, अनंगपाल तंवर, विद्याधर चंदेला और धन सिंह गुर्जर की मूर्तियां लगाई थीं। अब यहां 40 मूर्तियां लगी हैं। इस इलाके में RSS भी एक्टिव रहा है। RSS महिलाओं को कोई काम शुरू करने के लिए 50 हजार रुपए देता है। महिलाएं ये पैसा दो साल बाद लौटा सकती हैं। दो साल से BJP राजा सूरजमल के बलिदान दिवस पर बड़े कार्यक्रम करती है। राजा सूरजमल जाट समुदाय से थे। जनकपुरी में उनके नाम से एक कॉलेज भी है। एक्सपर्ट बोले- AAP को जाटों के दूर होने का डरसीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट सुनील कश्यप कहते हैं, 'जाट आरक्षण के लिए आंदोलन होते रहे हैं। वे केंद्र की OBC लिस्ट में आना चाहते हैं। आरक्षण के लिए हरियाणा, पश्चिमी यूपी और दिल्ली के जाटों में सेंटिमेंट जरूर है। केजरीवाल यही बात कर रहे हैं।’ सुनील कश्यप आगे कहते हैं, 'BJP ने जाट लीडरशिप बनाने में लंबा समय लगाया। उसके सबसे बड़े जाट लीडर साहिब सिंह वर्मा थे। उनके बेटे प्रवेश सिंह वर्मा को टिकट देकर लोकसभा भेजा। केजरीवाल ने ही प्रवेश वर्मा के बारे में ऐसे बयान दिए कि लगे अगर BJP सरकार में आई तो प्रवेश वर्मा मुख्यमंत्री होंगे।’ ‘AAP के एंटी BJP कैंपेन में भी दो ही चेहरे दिखते हैं। रमेश बिधूड़ी और प्रवेश वर्मा। एक गुर्जर हैं, दूसरे जाट। इनके गांव भी ज्यादा है। लंबे समय से जाटों की लीडरशिप नहीं है।' 'एक और मामला हुआ था। 15 अगस्त को झंडा फहराना था। अरविंद केजरीवाल जेल में थे। इस बार दिल्ली विधानसभा पर कैलाश गहलोत ने झंडा फहराया था। कुछ दिन बाद गहलोत BJP में चले गए। वे AAP के बड़े जाट नेता हैं। उन्हें नजरअंदाज करने से जाटों में नाराजगी है।' 'AAP के पास जाट और गुर्जर नेताओं में आरके पुरम से प्रमिला टोकस और नांगलोई से रघुविंदर शौकीन हैं। जाटों को नहीं लगता, उनसे कुछ हो पाएगा। अगर उन्हें ऐसा लगता तो वे पंचायत न करते। इन वजहों से 20 से 25 सीटें प्रभावित हो सकती हैं।' ..............................दिल्ली चुनाव को लेकर AAP और BJP की स्ट्रैटजी भी पढ़ें... 1. BJP ने 30 SC बहुल सीटों पर लगाए 45000 कार्यकर्ता, अंबेडकर-संविधान पर जोर BJP का दलित वोटर्स वाली सीटों पर ज्यादा फोकस है। दलितों के हिसाब से मुद्दों की लिस्ट बनाई जा रही है। बूथ लेवल पर 45 हजार से ज्यादा कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। दिल्ली में 70 सीटों पर 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव होने हैं। दिल्ली में करीब 18% यानी 44 लाख दलित वोटर्स है। BJP की इन्हें साधने की कवायद का बहुत असर नहीं दिख रहा। पढ़िए पूरी खबर... 2. केजरीवाल ने 1000 वोटर्स पर लगाए 12 कार्यकर्ता, बस्तियों में फ्री बिजली-इलाज का वादा दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता हर रोज दो टीमें बनाकर निकलते हैं। एक टीम ऐसे इलाके में जाती है, जहां जरूरतमंद लोग रह रहे हों। उनके बीच जाकर कार्यकर्ता सरकारी स्कीम जैसे फ्री बिजली-पानी और इलाज की बातें करते हैं। दूसरी टीम ऐसे इलाकों में जाती है, जहां अमीर लोग रहते हैं। ये विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी की स्ट्रैटजी है। पढ़िए पूरी खबर...