8वें वेतन आयोग के आने से सरकारी के साथ- साथ प्राइवेट कर्मचारियों की सैलरी पर क्या फर्क पड़ेगा, क्या होता है फिटमेंट फैक्टर और दिल्ली चुनाव से पहले इसकी घोषणा के क्या हैं मायने, जानेंगे स्पॉटलाइट में
बंटवारे के बाद दिल्ली पहुंचा छोले-भटूरे:38 साल कोई CM नहीं बना; मेट्रो के पीछे की कहानी क्या है
1951-52 में पहली बार दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने थे। कांग्रेस ने तय किया कि सीएम पद का चेहरा देशबंधु गुप्ता होंगे। वो संविधान सभा के सदस्य थे और नेहरू भी उन्हें पसंद करते थे। 21 नवंबर 1951 को देशबंधु गुप्ता को कोलकाता में एक सम्मेलन में भाग लेने जाना था। उन्होंने एयर इंडिया में टिकट तलाशी तो पता चला कि सारी सीटें फुल हैं। महात्मा गांधी के सबसे छोटे बेटे देवदास गांधी उसी फ्लाइट से कोलकाता जा रहे थे। अचानक देवदास गांधी को दिल्ली में कोई काम पड़ा। उन्होंने कोलकाता जाने वाली अपनी यात्रा रद्द कर दी। इस तरह एक सीट खाली हो गई। वो सीट देशबंधु गुप्ता को अलॉट कर दी गई। वे विमान में सवार हो गए, लेकिन ये विमान लैंडिंग से पहले कोलकाता एयरपोर्ट के पास क्रैश हो गया। इस हादसे में देशबंधु गुप्ता सहित विमान में सवार सभी यात्री मारे गए। ऐसे में आनन-फानन में दिल्ली के लिए नया सीएम खोजा गया। 'दिल्ली की कहानी' सीरीज के आखिरी एपिसोड में आजादी के बाद की दिल्ली... इतिहासकार वीएन दत्ता एक लेख में कहते हैं कि दिल्ली वह शहर है, जो पहले मुगलों का था, फिर ब्रिटिशर्स का बना और 1950 के बाद ये पंजाबी शहर बन गया है। मुसलमानों, हिंदू राजपूतों और बनियों की आबादी वाली दिल्ली में 1947 के बाद एक तिहाई आबादी पंजाबियों की हो गई। दिल्ली सरकार के रिटायर्ड ऑफिसर राहुल सिंह बताते हैं कि खान मार्केट शरणार्थियों ने शुरू किया था आज यह शहर के सबसे पॉश बाजारों में से एक है। इसका श्रेय पाकिस्तान से आए पंजाबी शरणार्थी व्यापारियों को जाता है। यहां के ज्यादातर लोग लाहौर, मुल्तान, रावलपिंडी और सियालकोट जैसे पाकिस्तानी शहरों में सफल व्यापारी हुआ करते थे। सिंधी व्यापारियों की अपनी कहानी है। चांदनी चौक में चैना राम सिंधी हलवाई वाले ने कराची हलवे को दिल्ली ही नहीं, पूरे देश में मशहूर कर दिया है। इस दुकान की स्थापना चैनाराम के बेटे नीचाराम ने की थी। इससे पहले उनकी दुकान लाहौर में थी। बांग्लादेश से आए शरणार्थियों ने साउथ दिल्ली में चित्तरंजन पार्क एरिया बसाया। 60 के दशक में इसे EPDP यानी 'पूर्वी पाकिस्तान के विस्थापितों की कॉलोनी' कहा जाता था। ये वो लोग हैं, जिन्होंने दिल्ली को झाल मुरी का स्वाद चखाया। अब ये दिल्ली का पॉश एरिया है। यहां की दुर्गा पूजा देखने पूरी दिल्ली आती है। ऐसी ही एक कहानी छोले-भटूरे को लेकर है। दिल्ली के कमला नगर इलाके में एक मशहूर दुकान है 'चाचे दी हट्टी रावलपिंडी के छोले भटूरे'। शॉप के मालिक प्रवीण कुमार बताते हैं, 'हम मूल रूप से पंजाबी हैं। मेरे पिताजी प्राणदान कुमार आजादी से पहले पाकिस्तान के रावलपिंडी में रहते थे। वहीं उनकी छोले-भटूरे की दुकान थी। बंटवारे के बाद वो दिल्ली आ गए। उन्हें केवल छोटे-भटूरे का काम आता था। जब रेफ्यूजी कैंप से निकले तो उन्होंने इसी धंधे को फिर से शुरू किया।' 'प्रवीण आगे कहते हैं, 'पिताजी सिर पर सारा सामान ढोकर सरकारी दफ्तरों के सामने जाकर छोले-भटूरे बेचते थे। फिर आदर्श कॉलेज के सामने बैठने की जगह मिल गई, तो वहीं काम शुरू किया। पैसे जोड़कर 1958 में कमला नगर में दुकान ली। तब से आज तक ये दुकान है।' प्रवीण बताते हैं कि उनके पिता को सब चाचा कहते थे, इस कारण उनकी दुकान का नाम 'चाचा की हट्टी' पड़ा। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ब्रज किशन चांदीवाला ने एक बार पीएम जवाहरलाल नेहरू को लिखा था कि दिल्ली के लोगों ने अपनी खास पहचान खो दी है। दिल्ली के मूल निवासी अपने ही घर में अनजान हो गए हैं। जवाब में नेहरू ने लिखा था, 'आपकी शिकायतें विभाजन के दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम हैं।' सीएम पद के उम्मीदवार देशबंधु गुप्ता का प्लेन क्रैश में निधन हुआ तो नया नाम चौधरी ब्रह्म प्रकाश का तय हुआ। युवा ब्रह्म प्रकाश ने आजादी के आंदोलन में भाग लिया था। कई बार जेल गए थे, इसलिए उनके नाम पर सहमति बन गई। उस समय कांग्रेस की आंधी चल रही थी। 27 मार्च 1952 को दिल्ली विधानसभा के लिए पहली बार चुनाव हुए। नतीजा आया तो कुल 48 सीटों में से कांग्रेस 39 सीटों पर जीती। मात्र 34 साल की उम्र में चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के सीएम बने। तब वे देश के सबसे कम उम्र के सीएम बने थे। ये रिकॉर्ड आज भी कायम है। ब्रह्म प्रकाश को 'शेर-ए-दिल्ली' कहा जाता था। वे सरकारी गाड़ी में नहीं, बल्कि बसों में सफर करते थे, ताकि लोगों की समस्याओं का पता लगा सकें। बसों में सफर के दौरान लोगों से मिलकर उनका फीडबैक लेते थे। 1955 में जब एक घोटाला हुआ तो सरकार का मुखिया होने के नाते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 12 फरवरी 1955 को उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। बाद में वे दो बार लोकसभा के लिए चुने गए और केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे। इसके बाद दिल्ली में चुनाव नहीं हुए, केंद्र सरकार ने उसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया। केंद्र सरकार ने 1993 में दोबारा दिल्ली में इलेक्शन शुरू कराए। तब बहुमत बीजेपी के हिस्से आया और मदनलाल खुराना सीएम बने। दो साल बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद साहेब सिंह वर्मा भी दो साल ही सीएम रहे पाए। महीने भर के लिए सुषमा स्वराज सीएम बनीं। तब तक दोबारा इलेक्शन का समय आ गया। 3 दिसंबर 1998 को कांग्रेस की शीला दीक्षित दिल्ली की सीएम बनीं। वे 15 साल तक सीएम रहीं। उनके बाद आप की अरविंद केजरीवाल सरकार आई और अब आतिशी दिल्ली की सीएम हैं। आपातकाल का दौर था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी दिल्ली के सौंदर्यीकरण की योजना बना रहे थे। 15 अप्रैल 1976 को वे पुरानी दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके का दौरा करने पहुंचे। ये मुस्लिम बहुल इलाका था और झुग्गियों से पटा हुआ था। जामा मस्जिद तक पहुंचने के लिए संजय को इन झुग्गियों की भूलभुलैया से गुजरना पड़ा। संजय गांधी ने दिल्ली विकास प्राधिकरण के वाइस चेयरमैन जगमोहन से कहा कि इस इलाके की 'सफाई' होनी चाहिए। अशोक चक्रवर्ती अपनी किताब 'द स्ट्रगल विदिन: ए मेमॉयर ऑफ द इमरजेंसी' में लिखते हैं कि जगमोहन समझ गए कि संजय कैसी 'सफाई' चाहते हैं। 16 अप्रैल 1976 को पुरानी दिल्ली में बुलडोजर तैनात हो गए। झोपड़ियों और घरों की महिलाओं को जबरदस्ती बाहर निकाला जा रहा था। एक तरफ लोगों के घर गिराए जा रहे थे, दूसरी तरफ उन्हें पकड़ कर जबरन नसबंदी शिविरों में ले जाकर नसबंदी की जा रही थी। इससे जामा मस्जिद, चांदनी चौक और तुर्कमान गेट के आसपास रहने वाले लोगों में गुस्सा फैल गया। हजारों लोगों ने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। प्रदर्शन हिंसक हो गया। प्रशासन भी पीछे हटने को तैयार नहीं था, क्योंकि संजय गांधी का आदेश था। पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी, जनता ने पत्थरबाजी की। तीन दिन में कई लोग मारे गए। पुलिस की बंदूकें और प्रशासन का बुलडोजर केवल रात को शांत रहते थे। जब जनता का आक्रोश बढ़ गया तो अतिरिक्त सुरक्षा बल लगाया गया। जो भी सामने आया पुलिस ने उसकी आवाज खामोश कर दी। सड़क पर पड़ी लाशों को प्रशासन ने बुलडोजर से एक गड्ढा खोदकर दफना दिया। कई इंडिपेंडेंट रिसर्चर्स का कहना है कि इस टकराव में करीब 400 लोगों की मौत हो गई थी। नवंबर 2020 से ही दिल्ली की सीमा से लगे पंजाब, हरियाणा और यूपी बॉर्डर पर हजारों किसान डटे हुए थे। वो केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को लेकर नाराज थे। 26 जनवरी 202़1 को किसानों ने दिल्ली के बाहरी इलाके में शांतिपूर्ण ट्रैक्टर परेड की अनुमति मांगी। सरकार ने अनुमति दे दी। दोपहर हाेते-होते किसानों ट्रैक्टर आईटीओ और लाल किले की तरफ चलने लगे। कई ट्रैक्टर वीवीआईपी इलाके लुटियंस में भी पहुंच गए। करीब 5 लाख ट्रैक्टर्स के साथ किसानों ने दिल्ली को एक तरह से बंधक बना लिया था। कुछ आंदोलनकारी लाल किले पहुंच गए। जहां हर साल 15 अगस्त पर पीएम झंडा फहराते हैं, उस पोल पर एक प्रदर्शनकारी ने भगवा झंडा फहरा दिया। पूरी दुनिया ने इसे लाइव देखा। प्रदर्शनकारी दिल्ली में जगह-जगह तोड़फोड़ कर रहे थे। लाखों किसानों के आगे पुलिस और सुरक्षा तंत्र बेबस नजर आया। जब किसानों की आलोचना होने लगी तो प्रदर्शनकारी ठंडे पड़े और शाम होते-होते दिल्ली शांति हुई। बाद में आंदोलन के मुखिया और किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा, 'हुड़दंग करने वाले लोग किसान नहीं हैं। हमारे आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।' इस घटनाक्रम से सरकार ने सबक लिया। सुरक्षा व्यवस्था इतनी तगड़ी की गई कि दोबारा ऐसी कोई घटना नहीं हुई है। प्रदर्शन अब भी होते हैं, लेकिन अब आंदोलनकारियों को जंतर-मंतर पर ही जुटने की अनुमति दी जाती है। दिल्ली में हुए कुछ और बड़े आंदोलन… अन्ना आंदोलन: 5 अप्रैल 2011 को समाज सेवी अन्ना हजारे ने लोकपाल बिल की मांग को लेकर दिल्ली में आमरण अनशन शुरू किया था। इसमें रोज दिल्ली के रामलीला मैदान पर लाखों लोग समर्थन देने के लिए इकट्ठा हो रहे थे। देशभर में लाखों लोग सड़कों पर उतर आए थे। अंतत: सरकार बातचीत को तैयार हुई और 9 अगस्त 2011 को अन्ना ने आंदोलन खत्म किया था। निर्भया आंदोलन: 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में एक लड़की का गैंगरेप कर हत्या कर दी गई थी। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। महिला सुरक्षा को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान और जंतर-मंतर पर लोगों ने प्रदर्शन किया था। मृतक लड़की को 'निर्भया' नाम दिया गया और पूरा देश इस आंदोलन में कूद पड़ा था। शाहीन बाग: दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ 15 दिसंबर 2019 को आंदोलन शुरू हुआ था। इसमें महिलाएं और बुजुर्ग अपने बच्चों के साथ हिस्सा ले रही थीं। 24 मार्च 2020 को सरकार ने लॉकडाउन लागू किया। इसके बाद ये आंदोलन खत्म हो गया था। एशियन गेम्स: दिल्ली को पहचान मिली, इन्फ्रास्ट्रक्चर बदला 1951 में भारत को पहले एशियन गेम्स की मेजबानी मिली थी। प्रोफेसर गुरुदत्त सोंधी को एशियाई खेलों की आयोजन समिति का डायरेक्टर बनाया गया। बिना किसी बुनियादी ढांचे और पैसों की कमी से परेशान होकर प्रोफेसर सोंधी ने आयोजन के छह महीने पहले इस्तीफा दे दिया। इसके बाद बीसीसीआई के संस्थापक सदस्यों में से एक एंथनी स्टैनिस्लॉस डी मेलो को नया डायरेक्टर बनाया गया। खेल कमेटी में रहे एसएस धवन के बेटे टूटू धवन बताते हैं कि पहले एशियाड की सारी चीजें आज भी मेरे घर में जस की तस रखी हैं। तब दिल्ली में कोई स्टेडियम नहीं था। कोई ट्रैक, कोई उपकरण नहीं था, न कोई फंड था। केंद्र सरकार ने फंड देने से इनकार कर दिया था। भारतीय ओलिंपिक संघ के पास पैसा नहीं था। 1000 खिलाड़ियों के ठहरने और खेल गांव बनाने के लिए डी मेलो, तब के आर्मी चीफ जनरल केएम करिअप्पा के पास गए। उन्होंने खिलाड़ियों को सेना की दो बिल्डिंग उधार दे दीं, जो स्टेडियम के दो छोरों पर थीं। टूटू बताते हैं कि उस समय स्टेडियम, ट्रैक और सड़कें बनाई गईं। एक तरह से दिल्ली का इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार हुआ। डी मेलो ने अपने संस्मरण में लिखा है कि मैंने चार साल का काम छह महीने में किया था। डी मेलो, पीएम नेहरू के पास गए और कहा कि सरकार को कुछ मदद करनी चाहिए। इसके बाद उन्होंने पीएम रिलीफ फंड से 10 लाख रुपए खर्च करने की अनुमति दी। इस तरह दिल्ली में पहले एशियाई खेल हुए, जिससे इस शहर को नई पहचान मिली। सीएनजी: सुप्रीम कोर्ट ने 1 हजार रुपए प्रति बस जुर्माना लगाया 1990 के दशक के आखिर में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका लगाई। याचिका में कहा कि दिल्ली में सांस लेना मुश्किल हो रहा है। इसकी वजह दिल्ली में चल रहे डीजल वाले वाहन हैं। कोर्ट सरकार को निर्देशित करें। सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण बनवाया। तय किया गया कि सीएनजी लाएंगे तो प्रदूषण दूर हो जाएगा। सन् 2000 तक दिल्ली के सभी ऑटो-टैक्सियों को सीएनजी में बदला गया। मार्च 2001 तक सभी सरकारी बसों में सीएनजी किट लगानी थी, लेकिन 2002 तक भी ये नहीं हो पाया। सुप्रीम कोर्ट ने फिर फटकार लगाई। शीर्ष कोर्ट ने प्रति बस 1 हजार रुपए रोज का जुर्माना लगाया। सरकार ने ताबड़तोड़ सारी बसें और सरकारी वाहन सीएनजी करवा दिए। मेट्रो: दिल्ली की लाइफलाइन, जो 99% टाइम पर चलती है तीन बार दिल्ली की सीएम रहीं शीला दीक्षित ने एक इंटरव्यू में बताया था, 'मैं पहली बार सीएम बनी थी। कुछ दिनों बाद मैं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के पास गई। उनसे कहा कि शहर में ट्रैफिक बढ़ रहा है। हमारे पास दिल्ली मेट्रो का प्लान तैयार है। हमें आपकी सहमति चाहिए। अटलजी ने केवल एक ही वाक्य कहा था, इसे तुरंत इम्प्लीमेंट करवाइए।' 1984 में दिल्ली मेट्रो की योजना पहली बार दिल्ली मास्टर प्लान में शामिल की गई थी, लेकिन वित्तीय और तकनीकी दिक्कतों के चलते इसे तुरंत लागू नहीं किया जा सका। 1995 में दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन बनाई गई। ई श्रीधरन को प्रोजेक्ट का मुखिया बनाया गया। मेट्रो प्रोजेक्ट में खर्च को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार में मतभेद थे। केंद्र की कांग्रेस सरकार हिचकिचा रही थी। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की बीजेपी सरकार ने इसे हरी झंडी दी। ई श्रीधरन की सख्त कार्यशैली के कारण 2002 में मेट्रो का पहला चरण पूरा हुआ। तब 8.4 किलोमीटर शाहदरा से तीस हजारी तक मेट्रो चली थी। अपने जन्मदिन के एक दिन पहले 24 दिसंबर 2002 को पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने सफर करके इसका उद्घाटन किया। दिल्ली की मेट्रो पूरे देश में मिसाल दी जाती है। इसकी 99% ट्रेनें समय पर चलती हैं। आज के समय में 200 ट्रेनें रोजाना 69 हजार किलोमीटर की यात्रा करती हैं। ---------------- दिल्ली की कहानी सीरीज के अन्य एपिसोड... 1. महाभारत का इंद्रप्रस्थ कैसे बना दिल्ली:पांडवों ने नागों को भगाकर बसाया; यहीं के महल में बेइज्जत हुए दुर्योधन दिल्ली का इतिहास भारत की माइथोलॉजी यानी पौराणिक कथाओं जितना पुराना है। महाभारत के युद्ध में दिल्ली की बड़ी भूमिका थी। हालांकि तब इसे इंद्रप्रस्थ कहा जाता था। उस दौर में नाग यहां रहा करते थे। जानिए कैसे पांडवों ने उन्हें भगाया। पूरी खबर पढ़ें पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी का पहला मुकाबला 1191 में तराइन के युद्ध में हुआ। ये जगह हरियाणा के करनाल के पास है। पृथ्वीराज की सेना ने मोहम्मद गोरी की सेना को तहस-नहस कर दिया। मोहम्मद गोरी सेना समेत पंजाब की तरफ भाग खड़ा हुआ। पृथ्वीराज ने गोरी को खदेड़ने की कोशिश नहीं की और उसकी जान बच गई। पृथ्वीराज की इस गलती ने भारत के इतिहास का रुख ही मोड़ दिया। पढ़िए पूरी खबर... 3. अंग्रेजों ने कलकत्ता से दिल्ली क्यों शिफ्ट की राजधानी:महारानी तक से छिपाया गया प्लान; नई दिल्ली बनाने में 20 साल लगे बात उन दिनों की है, जब देश की राजधानी कलकत्ता थी। 1905 में बंगाल का बंटवारा हुआ, तो अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गए। अंग्रेज अफसरों पर लगातार हमले हो रहे थे। शासन चलाने के लिए कलकत्ता असुरक्षित और अस्थिर हो गई, तो अंग्रेजों ने नई राजधानी के बारे में सोचा। पढ़िए पूरी खबर...
16 जनवरी की रात 2 बजे। सैफ अली खान के बेटे जहांगीर के कमरे में एक शख्स घुसा। देखभाल करने वाली स्टाफ नर्स ने देखा तो शोर मचा दिया। शख्स ने चुप रहने को कहा और 1 करोड़ रुपए मांगे। शोर सुनकर सैफ भी वहां पहुंचे। उन्हें देखते ही हमलावर ने अटैक कर दिया। सैफ ने उसे किसी तरह कमरे में कैद कर दिया। बाद में स्टाफ ने देखा तो वो कमरे से फरार हो चुका था। ये FIR में दर्ज कहानी का मजमून है। जिस तरह हाई सिक्योरिटी वाली सोसाइटी में हमलावर घुसा और सैफ पर जानलेवा हमला कर आसानी से फरार हो गया। इससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्राइम ब्रांच की 8 टीमें इन्वेस्टिगेट कर रही हैं कि आखिर हमलावर कैसे घुसा और उसका असली मकसद क्या था? FIR में दर्ज कहानी, पुलिस की जांच, घर में मौजूद स्टाफ के बयानों और परिस्थिति जनित साक्ष्यों के आधार पर फिलहाल 3 तरह के थ्योरीज सामने आ रही हैं। ये थ्योरीज और उन पर उठ रहे सवाल, जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में… हमलावर की सैफ से कोई निजी दुश्मनी नहीं थी। वह सैफ के बेटे जहांगीर को बंधक बनाकर लूट को अंजाम देने के इरादे से घुसा होगा। ये थ्योरी FIR में दर्ज कहानी से मेल खाती है। सैफ अली खान के छोटे बेटे जहांगीर की 56 साल की नैनी यानी दाई अरियामा फिलिप ने बांद्रा पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज कराई। FIR के मुताबिक… पुलिस की जांच: मुंबई के डीसीपी दीक्षित गेडाम ने बताया कि BNS की धारा 311 (मौत या गंभीर चोट पहुंचाने की कोशिश के साथ डकैती), 312 (जानलेवा हथियार के साथ डकैती की कोशिश) और 331 (घर में सेंध लगाकर हमला करना) के तहत मामला दर्ज किया गया है। डकैती की धाराएं तब लगाई जाती हैं जब घटना में 5 या उससे ज्यादा लोग शामिल हों। अभी यह जानकारी सामने नहीं आई है कि पुलिस ने कितने लोगों को आरोपी बनाया है, साथ ही घटना का मुख्य आरोपी कौन है। एक सीनियर पुलिस ऑफिसर ने कहा कि आरोपी ने फ्लैट में घुसने के लिए बिल्डिंग शाफ्ट का इस्तेमाल किया होगा, क्योंकि वह दोनों लिफ्टों और लॉबी में लगे CCTV कैमरों में नहीं दिखा। बिल्डिंग में दो एंट्री गेट हैं। मेन गेट पर दो सिक्योरिटी गार्ड हैं जबकि दूसरे गेट पर एक गार्ड है। इस थ्योरी पर सवालः हाई सिक्योरिटी सोसाइटी में हमलावर कैसे घुसा? हमला करने के बाद शोर-शराबे के बीच वह भागने में कामयाब कैसे हुआ? सैफ के किसी स्टाफ ने हमलावर की मदद की होगी। उसे घर में घुसने और बाहर निकलने के सभी रास्ते पता थे। उसे ये भी पता था कि वह बिल्डिंग में लगे CCTV फुटेज से कैसे बच सकता है। पुलिस इस थ्योरी के आधार पर भी जांच कर रही है। FIR में फिलिप ने बताया… FIR से ऐसा लगता है कि हमलावर को पता था कि कमरे की खिड़की के रास्ते वह बाहर कैसे निकलेगा। पुलिस की जांच: पुलिस के मुताबिक, छठी मंजिल पर फायर-एग्जिट के लिए जो सीढ़ियां बनी हैं उसके CCTV फुटेज में हमलावर को 2 बजकर 33 मिनट पर निकलते देखा गया। आरोपी कमरे की खिड़की से भागा। एक सीनियर पुलिस ऑफिसर ने कहा कि बिल्डिंग के दूसरे गेट की दीवार ऊंची नहीं है। जो जाल लगा है वह भी फटा हुआ है। यह किसी अंदरूनी आदमी का काम हो सकता है। मुंबई पुलिस ने ये भी कहा है कि, हमलावर सैफ के स्टाफ में से एक का रिश्तेदार है, जिसने उसे घर में घुसने दिया। स्टाफ से पूछताछ की जा रही है। महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और वरिष्ठ एनसीपी (एसपी) नेता डॉ. जितेंद्र आव्हाड ने इस हमले को साजिश बताया। आव्हाड ने कहा, 'सैफ अली खान पर हमला किसी प्लांड साजिश का हिस्सा हो सकता है। जिस तरह से सैफ को पिछले कई सालों से अपने बेटे का नाम तैमूर रखने के लिए निशाना बनाया जा रहा है, उसे देखते हुए इस बात की जांच जरूरी है कि यह हमला धार्मिक कट्टरपंथियों ने किया था या नहीं।' FIR के मुताबिक, हमलावर ने सैफ पर 6 बार ब्लेड से वार किया। इससे यह संभावना बढ़ जाती है कि हमला सिर्फ चोरी या लूट के लिए नहीं, बल्कि मर्डर के इरादे से किया गया था। हालांकि, इस संकेत से किसी फैसले पर नहीं पहुंचा जा सकता है। पुलिस की जांचः पुलिस फिलहाल इस थ्योरी से इनकार कर रही है। पुलिस का मानना है कि हमलावर चोरी या लूट के इरादे से घुसा था। उसका मकसद हत्या करना नहीं था और न ही ये प्री प्लांड है। गृह राज्य मंत्री योगेश कदम ने शुक्रवार को पुणे में संवाददाताओं से कहा कि सैफ अली खान पर चाकू से हमले के पीछे किसी अंडरवर्ल्ड गिरोह का हाथ नहीं है। हमले के सिलसिले में हिरासत में लिया गया संदिग्ध किसी गिरोह का सदस्य नहीं है। किसी गिरोह ने यह हमला नहीं किया है। अब इस मामले से जुड़े 3 जरूरी सवालों के जवाब… सवाल-1: हमलावर को ढूंढने में पुलिस को देरी क्यों हो रही?जवाबः पुलिस अधिकारियों का कहना है कि उनके पास आरोपी की सिर्फ तस्वीर है। पुलिस को आरोपी के बारे में कोई और जानकारी नहीं है। इसलिए अभी तक आरोपी की पहचान नहीं हो पाई है। पुलिस की लगभग 20 टीमें मामले की जांच कर रही हैं। पुलिस ने 17 जनवरी की सुबह बांद्रा रेलवे स्टेशन से एक संदिग्ध को गिरफ्तार किया था। संदिग्ध का हुलिया हमलावर के हुलिए से मेल खा रहा था। कहा गया था कि संदिग्ध पर पहले से ही हाउस-ब्रेक यानी सेंधमारी के 5 केस दर्ज हैं। हालांकि दोपहर तक पूछताछ के बाद पुलिस ने कहा कि इस शख्स का सैफ अली खान के केस से कोई लेना देना नहीं है। अभी तक किसी को हिरासत में नहीं लिया गया है। इस बीच महाराष्ट्र के गृह राज्य मंत्री योगेश कदम ने कहा, एक्टर पर हमले के पीछे किसी अंडरवर्ल्ड गैंग का हाथ नहीं है। सैफ ने कभी नहीं बताया कि उन्हें खतरा है या फिर सुरक्षा की जरूरत है। सवाल-2: हमले के करीब 44 घंटे बाद सैफ की हालत कैसी है?जवाबः 17 जनवरी को मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल के चीफ न्यूरोसर्जन डॉ. नितिन डांगे और COO डॉ. नीरज उत्तमानी ने बताया कि सैफ को ICU से अस्पताल के स्पेशल रूम में शिफ्ट कर दिया गया है। वे खतरे से बाहर हैं। सैफ के गले, पीठ, हाथ और सिर समेत 6 जगह ब्लेड लगा था। सैफ की रीढ़ की हड्डी में ब्लेड का ढाई इंच का टुकड़ा फंसा था और फ्लूड भी लीक हो रहा था। सर्जरी करके ब्लेड निकाला गया। डॉक्टर ने कहा कि अगर एक्टर की रीढ़ में चाकू 2 मिमी. और धंस गया होता तो रीढ़ की हड्डी को काफी नुकसान पहुंच सकता था। सवाल-3: क्या सैफ की बिल्डिंग में सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त नहीं है?जवाब: पुलिस ने बताया कि सैफ की बिल्डिंग में सुरक्षा व्यवस्था सख्त नहीं है। बांद्रा में इतनी हाई-प्रोफाइल बिल्डिंग के लिए सोसाइटी में CCTV कवरेज अपर्याप्त है। बिल्डिंग के बाहर दुकानदारों ने बताया कि गेट पर तैनात सिक्योरिटी गार्ड बिना जांच किए उन्हें अपार्टमेंट में जाने की इजाजत दिया करते थे। बिल्डिंग के बगल में एक सब्जी विक्रेता ने कहा, 'अगर हमें सब्जियां या फल डिलीवर करने का ऑर्डर मिलता है, तो हम गेट पर जाकर खड़े हो जाते हैं और चौकीदार को बता देते हैं। फिर वह कार्ड का इस्तेमाल करके ऑटोमैटिक गेट खोल देता है और हम लिफ्ट से सामान पहुंचा देते हैं।' ------------- सैफ अली खान से जुड़ी अन्य खबर पढ़ें 1200 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं सैफ अली खान: 800 करोड़ का पटौदी पैलेस, दिन में तीन बार घड़ी बदलते हैं बॉलीवुड एक्टर सैफ अली खान पर बुधवार देर रात करीब 2:30 बजे चाकू से 6 बार हमला हुआ है। सैफ पर ये हमला उनके मुंबई में खार स्थित घर पर हुआ। देर रात तीन बजे सैफ को लीलावती हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। उनके गले, पीठ, हाथ, सिर पर चाकू लगा है। दो घाव ज्यादा गहरे थे, जिसकी वजह से सर्जरी भी करनी पड़ी। पूरी खबर पढ़ें...
तारीख 1 फरवरी 2013, प्रयाग में महाकुंभ लगा हुआ था। तब विश्व हिंदू परिषद यानी वीएचपी के अध्यक्ष अशोक सिंघल ने नरेंद्र मोदी को लेकर एक ऐसी बात कह दी, जिससे राजनीतिक गलियारों में कुंभ की चर्चा होने लगी। सिंघल ने कहा- ‘6 फरवरी को संत सम्मेलन है। उसमें मोदी को लेकर ऐसा फैसला लिया जाएगा, जिससे देश का इतिहास बदल जाएगा।’ 4 फरवरी अशोक सिंघल ने साधु-संतों से मीटिंग की। इसमें बाबा रामदेव, शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती, जगद्गुरु स्वामी वासुदेवाचार्य और आचार्य गोविंद गिरि जैसे संत शामिल थे। दो दिन बाद यानी 6 फरवरी को सिंघल ने कहा- ‘नेहरू जी के बाद पहली बार किसी नेता को इतनी लोकप्रियता मिल रही है। जनता के बीच से मोदी को प्रधानमंत्री बनाए जाने की मांग उठ रही है। मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाना चाहिए।’ इसी दिन तबके बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह संगम पहुंचे। कहा जाता है कि राजनाथ, मोदी की उम्मीदवारी पर संत समाज की राय जानने आए थे। अशोक सिंघल ने उन्हें फीडबैक दिया। अगले दिन यानी 7 फरवरी को धर्म संसद बुलाई गई। इसमें हजारों साधु-संत शामिल हुए। RSS प्रमुख मोहन भागवत भी धर्म संसद में पहुंचे थे। जगद्गुरु वासुदेवाचार्य बताते हैं कि धर्म संसद में उन्होंने नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने का प्रस्ताव रखा। साधु-संतों ने चिमटा बजाकर मोदी का समर्थन किया। कई संतों ने मोदी के नाम को लेकर नारे भी लगाए। मोहन भागवत ने भी सहमति जताई। जब पत्रकारों ने भागवत से सवाल पूछा तो उन्होंने कहा- ‘मोदी मेरे दोस्त हैं, लेकिन मैं राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं।’ 12 फरवरी को मोदी कुंभ में आने वाले थे। हालांकि, ऐन मौके पर उनका प्लान कैंसिल हो गया। करीब 5 महीने बाद, 9 जून 2013 को गोवा में BJP राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आखिरी दिन था। बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा- 'मैंने फैसला किया है कि केंद्रीय स्तर पर भी सेंट्रल कैंपेन कमेटी बनाई जाए और मैं नरेंद्र मोदी को उस कैंपेन कमेटी का चेयरमैन घोषित करता हूं।' इस ऐलान के साथ ही नरेंद्र मोदी, 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के कर्ताधर्ता बन गए। बीजेपी को प्रचंड जीत मिली और मोदी प्रधानमंत्री बने। ‘महाकुंभ के किस्से’ सीरीज के सातवें एपिसोड में कहानी पॉलिटिक्स और कुंभ कनेक्शन की… प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के अगले ही दिन कुंभ पहुंचीं इंदिरा गांधी 11 जनवरी 1966 की रात भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में निधन हो गया। नए प्रधानमंत्री की रेस में दो नाम सबसे आगे थे। पहला- कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज का और दूसरा- बंबई प्रांत के मोरारजी देसाई का। तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। सिंडिकेट की पसंद के. कामराज थे, लेकिन उन्होंने ऐन वक्त पर यह कहते हुए मना कर दिया कि ‘मुझे ना तो हिंदी आती है, ना इंग्लिश…मैं देश को एकजुट कैसे करूंगा।’ वहीं, मोरारजी को लेकर सिंडिकेट असहज था। उन्हें लगता था कि मोरारजी पीएम बन गए, तो उनका वर्चस्व खत्म हो जाएगा। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक सागरिका घोष अपनी किताब ‘इंदिरा इंडियाज मोस्ट पावरफुल प्राइम मिनिस्टर' में लिखती हैं- ‘सिंडिकेट की नजर में इंदिरा कमजोर नेता थीं। संसद में बोलते वक्त उनके हाथ-पैर कांपते थे। लोग उन्हें गूंगी गुड़िया कहने लगे थे। लिहाजा इंदिरा, सिंडिकेट के लिए परफेक्ट चॉइस थी। नेहरू की बेटी होने के कारण उन्हें कोई खारिज भी नहीं कर सकता था।’ 19 जनवरी 1966 को कांग्रेस पार्लियामेंट्री पार्टी यानी CPP की बैठक में इंदिरा और मोरारजी के बीच चुनाव हुआ। इंदिरा को 355 और मोरारजी को 169 सांसदों के वोट मिले। 13 दिन बाद यानी 24 जनवरी को इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। इंदिरा ऐसे समय में PM बनी थीं, जब दो साल के भीतर दो प्रधानमंत्रियों का निधन हो चुका था और अगले ही साल लोकसभा चुनाव होने थे। उन्हें पार्टी के भीतर और बाहर खुद को साबित करना था। उसी साल प्रयाग में कुंभ लगा था। प्रयाग से गांधी परिवार का गहरा नाता था। इंदिरा वहीं जन्मीं थीं। उनके पिता जवाहर लाल नेहरू अक्सर प्रयाग जाते रहते थे। इंदिरा के पीएम बनने के अगले ही दिन यानी 25 जनवरी को मौनी अमावस्या थी। इंदिरा, लाल बहादुर शास्त्री की अस्थियां लेकर संगम पहुंच गईं। उनके साथ राष्ट्रपति राधा कृष्णन, कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज और जाकिर हुसैन भी मौजूद थे। हालांकि, इंदिरा के कुंभ में आने का राजनीतिक फायदा कांग्रेस को नहीं मिला। 1967 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत तो मिला, लेकिन महज 283 सीटें ही जीत सकीं, जो 1952 के लोकसभा चुनाव के बाद सबसे कम थीं। कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज, केबी सहाय जैसे कई कद्दावर नेता हार गए। पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, केरल, मद्रास, ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में पार्टी के हाथ से सत्ता फिसल गई। लोकसभा भंग करने के 4 दिन बाद ही कुंभ पहुंचीं इंदिरा, साधुओं ने ‘मरी हुई दुश्मन’ कहा 18 जनवरी 1977, देश में इमरजेंसी लगी थी। शाम को इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर चार मिनट का भाषण दिया। उन्होंने कहा- ‘मैंने राष्ट्रपति को वर्तमान लोकसभा भंग करने और फ्रेश चुनाव के लिए आदेश देने की सलाह दी है। राष्ट्रपति ने इस पर सहमति जताई है। हमें उम्मीद है कि मार्च में चुनाव होंगे।’ चार दिन बाद यानी 22 जनवरी को इंदिरा प्रयाग पहुंचीं। उस दिन भी मौनी अमावस्या थी और कुंभ लगा था। संगम में स्नान करने के बाद इंदिरा, साधु-संतों से मिलीं। मंच पर भाषण दिया और वापस दिल्ली लौट गईं। ये वो दौर था जब इमरजेंसी की वजह से इंदिरा को लेकर लोगों में नाराजगी थी। ये नाराजगी कुंभ में भी दिखी। कई साधु-संत इंदिरा के विरोध में थे। साधु-संतों ने इंदिरा को ‘मरी हुई देश का दुश्मन’ घोषित किया था। तब इमरजेंसी के दौरान इंदिरा का पुरजोर विरोध करने वाले जय प्रकाश नारायण भी कुंभ पहुंचे और साधु-संतों से मिले थे। मार्च 1977 में नतीजे आए। इंदिरा की पार्टी 154 सीटों पर सिमट गई। इंदिरा खुद भी रायबरेली से चुनाव हार गईं। 295 सीटें जीतकर जनता पार्टी ने सरकार बनाई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। यह आजादी के बाद पहली गैर-कांग्रेसी सरकार थी। कुंभ में राम मंदिर बनाने का ऐलान, 2 से बढ़कर 85 सीटों पर पहुंची बीजेपी साल 1989, प्रयाग में कुंभ लगा। प्रधानमंत्री राजीव गांधी कुंभ में आने वाले थे। ‘पिलग्रिमेज एंड पावर : द कुंभ मेला इन इलाहाबाद फ्रॉम 1776-1954’ में कामा मैकलिन लिखती हैं- ‘राजीव का कुंभ में आने का प्लान बन गया था। उनके लिए प्रयाग में हेलीपैड भी तैयार कर लिया गया था, लेकिन इस बीच कांग्रेस तमिलनाडु में चुनाव हार गई। उसे सिर्फ 26 सीटें मिलीं। पिछली बार से 37 सीटें कम। राजीव गांधी को सलाह दी गई कि वे अपना दौरा कैंसिल कर दें।’ ये वो दौर था जब राजीव गांधी सरकार पर शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने को लेकर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लग रहे थे। 1 फरवरी 1989, कुंभ मेले में विश्व हिंदू परिषद ने संतों का सम्मेलन रखा। करीब एक लाख संत इसमें शामिल हुए। सम्मेलन में 9 नवंबर 1989 को राम मंदिर शिलान्यास करने की घोषणा कर दी गई। चार महीने बाद 27 मई 1989 को विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में विवादित जगह पर 25 करोड़ रुपए की लागत से राम मंदिर बनाने की घोषणा कर दी। इसके लिए हरिद्वार में एक बैठक की गई और देशभर से चंदा जमा करने की योजना बनाई गई। ‘मेरा देश मेरा जीवन’ किताब में लाल कृष्ण आडवाणी लिखते हैं- ‘कुंभ में राम मंदिर को लेकर घोषणा का देशभर के हिंदुओं में चौंकाने वाला प्रभाव देखा गया, लेकिन ज्यादातर राजनीतिक दल सार्वजनिक रूप से हिंदुओं की मांग का समर्थन नहीं कर रहे थे। एक दल के रूप में भाजपा ने भी खुद को इस मामले से अलग रखा था। शुरुआत में राजमाता विजयाराजे सिंधिया और विनय कटियार जैसे नेता व्यक्तिगत रूप से आंदोलन में हिस्सा ले रहे थे, लेकिन बाद में अयोध्या मामले में स्वयं को शामिल करना जरूरी हो गया।’ 11 जून 1989, बीजेपी ने पालमपुर अधिवेशन में राम मंदिर बनाने का वादा किया और अपने मैनिफेस्टो में राम मंदिर को शामिल करने का ऐलान कर दिया। इसके बाद राम मंदिर, बीजेपी के चुनावी घोषणा का हिस्सा बन गया। लाल कृष्ण आडवाणी ने यह प्रस्ताव तैयार किया था। 1989 नवंबर के अंत में लोकसभा चुनाव होने थे। उससे पहले 9 नवंबर को विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में अनुसूचित जाति के कामेश्वर चौपाल के हाथों राम मंदिर का शिलान्यास करवा दिया। चुनाव में बीजेपी ने इस मुद्दे को खूब जोर दिया। 1984 में महज दो सीटें जीतने वाली बीजेपी 1989 में 85 सीटों पर पहुंच गई। जबकि 1984 में रिकॉर्ड 404 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 197 सीटों पर सिमट गई। जनता दल को 143 सीटें मिलीं। बीजेपी और लेफ्ट के बाहर से समर्थन से जनता दल के वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री बनने के बाद वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान कर दिया। कहा जाता है कि इसकी काट निकालने के लिए बीजेपी ने राम मंदिर मुद्दे को आगे किया। 25 सितंबर 1990 को आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथ यात्रा की शुरुआत कर दी। सोनिया ने लगाई संगम में डुबकी, वायरलेस पर आवाज आ रही थी- पापा वन, पापा टू, पापा थ्री 1999 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी के विदेशी होने का मुद्दा काफी चर्चा में रहा। शरद पवार ने इस मुद्दे को उछाला और कांग्रेस छोड़कर अलग पार्टी एनसीपी बना ली। बीजेपी भी इस मुद्दे को हवा देने से नहीं चूक रही थी। कारगिल युद्ध के बाद सितंबर-अक्टूबर 1999 में लोकसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में 182 सीटें जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री। करीब 14 महीने बाद 2001 में प्रयाग में कुंभ लगा। तब केंद्र के साथ यूपी में भी बीजेपी की सरकार थी। 22 जनवरी को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी प्रयाग पहुंचीं। सबसे पहले वह आनंद भवन गईं। आनंद भवन गांधी परिवार का पैतृक घर था, जिसे मोतीलाल नेहरू ने 1930 में बनवाया था। 1970 में इंदिरा गांधी ने इसे भारत सरकार को दान कर दिया था। आनंद भवन से निकलने के बाद सोनिया सरस्वती घाट पहुंचीं और वहां से खास नाव में बैठकर संगम के लिए रवाना हुईं। नाव में ही स्नान के लिए कैविटी और चेंजिंग रूम बनाया गया था। करीब 20 मिनट तक सोनिया संगम ठहरी थीं। इस दौरान उन्होंने एक रिपोर्टर से कहा- ‘यहां आना घर आने जैसा है। मैं अपने ससुराल आई हूं।’ प्रयाग के कांग्रेस नेता अभय अवस्थी बताते हैं- ‘मेरे पुराने साथी सोनिया गांधी की सुरक्षा में लगे थे। उनके वायरलेस पर बार-बार एक मैसेज आ रहा था- पापा वन, पापा टू, पापा थ्री। मैंने उनसे पूछा कि ये क्या है? तब उन्होंने बताया कि ये सोनिया गांधी का प्रोटोकॉल कोड है। वो स्नान करने के बाद तीन जगहों पर जाएंगी। ये कोडवर्ड उन्हीं तीन जगहों के लिए हैं।’ सोनिया संगम स्नान के बाद टीकरमाफी आश्रम, सतपाल महाराज के आश्रम और शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के आश्रम में गई थीं। सोनिया के कुंभ में शामिल होने के फैसले को बीजेपी ने पॉलिटिकल एजेंडा बताया था। इसके तीन साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की और अगले 10 साल तक यूपीए गठबंधन की सत्ता बरकरार रही। लोकसभा चुनाव की घोषणा से 15 दिन पहले रुद्राक्ष पहने मोदी ने लगाई संगम में डुबकी, दलितों के पैर धोए तारीख 24 फरवरी 2019, लोकसभा चुनाव की घोषणा से 15 दिन पहले की बात है। प्रयाग में अर्धकुंभ लगा था। हरा कुर्ता, सफेद पायजामा और मरून कलर का जैकेट पहने पीएम मोदी प्रयाग पहुंचे। थोड़ी देर बाद उनका काफिला संगम पहुंचा। पीएम के संगम स्नान के लिए खास व्यवस्था की गई थी। काले रंग का कुर्ता और गले में रुद्राक्ष पहने मोदी ने संगम में डुबकी लगाई। 42 साल बाद किसी प्रधानमंत्री ने संगम में स्नान किया था। इससे पहले 1977 के चुनाव से ठीक पहले इंदिरा गांधी ने संगम में स्नान किया था। संगम स्नान के भगवा कुर्ता और पीला जैकेट पहने मोदी, गंगा पंडाल पहुंचे। वहां उन्होंने 5 सफाई कर्मियों के पैर धोए और उन्हें सम्मानित किया। पीएम के इस कदम को विपक्ष ने दलित राजनीति से प्रेरित बताया। तब यूपी में सपा और बसपा साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे। मायावती ने सोशल मीडिया पर लिखा- ‘चुनाव के समय संगम में शाही स्नान करने से मोदी सरकार की चुनावी वादाखिलाफी, जनता से विश्वासघात और अन्य प्रकार की सरकारी ज़ुल्म-ज्यादती, पाप क्या धुल जाएंगे?’ 23 मई 2019 को लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए। रिकॉर्ड 303 सीटें जीतकर बीजेपी ने लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी की और मोदी प्रधानमंत्री बने। तब यूपी में बीजेपी को 90 में से 62 सीटें मिली थीं। अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व 17 सीटों में से 14 सीटें बीजेपी ने जीत लीं। ----------------------------------------------- महाकुंभ से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... नेहरू के लिए भगदड़ मची, 1000 लोग मारे गए:सैकड़ों शव जला दिए गए; फटे कपड़े में पहुंचे फोटोग्राफर ने चुपके से खींची तस्वीर साल 1954, आजाद भारत का पहला कुंभ इलाहाबाद यानी अब के प्रयागराज में लगा। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या थी। मेले में खबर फैली कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आ रहे हैं। उन्हें देखने के लिए भीड़ टूट पड़ी। जो एक बार गिरा, वो फिर उठ नहीं सका। एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए। सरकार ने कहा कि कोई हादसा नहीं हुआ, लेकिन एक फोटोग्राफर ने चुपके से तस्वीर खींच ली थी। अगले दिन अखबार में वो तस्वीर छप गई। पढ़िए पूरी खबर... नागा बनने के लिए 108 बार डुबकी, खुद का पिंडदान:पुरुषों की नस खींची जाती है; महिलाओं को देनी पड़ती है ब्रह्मचर्य की परीक्षा नागा साधु कोडवर्ड में बातें करते हैं। इसके पीछे दो वजह हैं। पहली- कोई फर्जी नागा इनके अखाड़े में शामिल नहीं हो पाए। दूसरी- मुगलों और अंग्रेजों के वक्त अपनी सूचनाएं गुप्त रखने के लिए यह कोड वर्ड में बात करते थे। धीरे-धीरे ये कोर्ड वर्ड इनकी भाषा बन गई। पढ़िए पूरी खबर...
‘दिल्ली में रहते हुए 54 साल हो गए। बिहार के बक्सर से कमाने-खाने आए थे। पति को जहां काम मिल जाता है, कर लेते हैं। 100-50 रुपए मिल जाते हैं, तो रोटी खाकर सो जाते हैं, नहीं मिला तो भूखे सोते हैं। हारने-जीतने वाले सब नेता काम कर रहे हैं, लेकिन हमारी गरीबी तो दूर नहीं कर रहे।’ दिल्ली की सर्द सुबह में चूल्हे पर हाथ सेंक रहीं वनीता को सरकार से बहुत शिकायतें हैं। 60 साल से ज्यादा उम्र हो गई, लेकिन बुजुर्गों वाली पेंशन नहीं मिलती। दो बेटा-बहू, चार पोते-पोतियों के साथ दो कमरे के घर में रहती हैं। पीने का पानी लेने दूसरी कॉलोनी में जाना पड़ता है। फिर भी उन्हें अरविंद केजरीवाल का काम पसंद है। वनीता का दुख अपना है, लेकिन उनकी कहानी दिल्ली के 3 लाख परिवारों की हैं। ये परिवार राजधानी की झुग्गियों में रहते हैं। रोजी-रोटी और अच्छी जिंदगी के तलाश में आए थे, लेकिन छोटे-छोटे कमरों में सिमट कर रह गए। दिल्ली में 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। रिजल्ट 8 फरवरी को आएगा। झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले करीब 15 लाख वोटर 20 सीटों पर फैसला करते हैं। दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज 'हम भी दिल्ली' के दूसरे एपिसोड में कुछ किरदारों के जरिए पढ़िए और देखिए, कुल वोट में 10% हिस्सेदारी रखने वाले ये लोग किस माहौल में रहते हैं, चुनाव और नेताओं के बारे में क्या सोचते हैं। दो हाई-प्रोफाइल सीट, दो बस्तियां, लेकिन कहानियां एक जैसीवनीता जैसे लोगों की जिंदगी समझने के लिए हमने दो बस्तियां चुनीं। पहली है कालकाजी में नवजीवन कैंप। दिल्ली की CM आतिशी यहां से विधायक हैं और इस बार भी चुनाव लड़ रही हैं। दूसरी बस्ती कुसुमपुर पहाड़ी है, जो नई दिल्ली विधानसभा सीट से सटी है। नई दिल्ली सीट से पूर्व CM अरविंद केजरीवाल चुनाव लड़ रहे हैं। जगह: नवजीवन कैंप डेढ़ फीट की गलियां, अंदर सूरज की रोशनी भी नहीं जा पातीइंडिया गेट से महज 12 किलोमीटर दूर है कालका जी। आलीशान कोठियों को पार कर आगे बढ़ते हैं, तो झुग्गियां दिखने लगती हैं। ये दिल्ली की सबसे पुरानी बस्तियों में से एक नवजीवन कैंप है। झुग्गियों के बीच दो-दो फीट की गलियां हैं। कहीं तो ये सिकुड़कर डेढ़ फीट रह जाती है। बस्तियां इतनी घनी हैं कि कुछ गलियों में सूरज भी उजाला नहीं कर पाता। यहीं हमें वनीता मिलीं। ईंट की दीवारों से बने पुराने घर की छत पर बैठी थीं। ऊपर जाने के लिए बनी सीढ़ियों पर इतनी ही जगह है कि एक आदमी चढ़ सकता है। हमने पूछा- चुनाव आने वाले हैं। नेता आपकी बस्ती में आते हैं या नहीं।वनीता जवाब देती हैं- ‘आते हैं।’ राशन मिलता है?‘थोड़ा-बहुत मिलता है।’ पानी आता है?‘आता है, लेकिन पीने लायक नहीं होता। सिर्फ नहाने के काम आता है। पीने का पानी बगल की बंगाली कॉलोनी से लाते हैं।’ पोते-पोती स्कूल जाते हैं?‘हां जाते हैं, सरकारी स्कूल है पास में। उसमें फीस नहीं लगती। किताबें भी मिल जाती हैं।‘ कहानियां और भी हैं… रोटी-पानी के लिए जंग, बस्ती में सिर्फ 4-5 सरकारी टॉयलेटएक गली में घुसते ही खाली बाल्टियों के आसपास लगी भीड़ दिखी। पूछने पर पता चला कि पानी आया था, अचानक बंद हो गया। खाली बाल्टियों के पास सुशीला खड़ी थीं। वे किराए के घर में रहती हैं। जॉब करती हैं। परिवार में पति और दो बेटे हैं। हमने उनसे पूछा- पानी कितनी देर आता है।सुशीला गुस्से में बोलीं- 'पानी आता ही कहां है। पूरे दिन में आधा घंटा आता है। 9 बजे का टाइम फिक्स है।' फिर पानी कहां से लाते हैं?'पीछे की गली में भागना पड़ता है। हर गली में पानी आने का टाइम अलग-अलग है। एक गली से दूसरी गली में, तब तक भागते हैं जब तक कि बाल्टियां न भर जाएं।' आपके घर में टॉयलेट है?सुशीला थोड़ा हिचकते हुए कहती हैं, सरकारी टॉयलेट हैं, उसी में जाते हैं। बहुत ठीक तो नहीं है, लेकिन जाना पड़ता है। पूरी बस्ती के लिए 4–5 टॉयलेट हैं। महीने में 5-7 हजार कमाई, घर का खर्च भी नहीं चला पातेयूपी के आजमगढ़ से आए चंद्रभान को दिल्ली में 43 साल हो गए। मार्बल का काम करते हैं। 400-500 रुपए दिहाड़ी मिल जाती है। चंद्रभान बताते हैं, ‘महीने में 15-20 दिन ही काम मिलता है। काम कराने वाला अच्छा हुआ तो पैसा मिल जाता है, नहीं हुआ, तो मजदूरी डूब जाती है।' इतनी कमाई में घर का खर्च कैसे चलाते हैं?चंद्रभान जवाब देते हैं, 'घर में चार लोग हैं। बड़ा बेटा 28 साल का है। गाड़ी चलाता है। उसने इंटर तक पढ़ाई की है। कोई काम नहीं मिला तो ड्राइवरी कर ली। एक बेटा 10वीं तक पढ़ा है। 19 साल का है, अभी बेरोजगार है। पत्नी भी काम करती हैं। ऐसे ही गुजारा कर लेते हैं। समझ लीजिए चलती का नाम गाड़ी है।’ बेटों ने नौकरी के लिए कोशिश नहीं की?‘यहां नौकरी कौन देता है। नौकरी पाने के लिए भी पैसा चाहिए। यहां तो हर जगह घूस लगती है।' चुनाव और नेताओं के सवाल पर चंद्रभान मायूसी से कहते हैं, ‘मैडम जी, सभी पार्टी के नेता आते हैं। कहते हैं कि नल लगवा देंगे। ये कर देंगे, वो कर देंगे। कहकर चले जाते हैं, फिर दोबारा आते नहीं हैं। सपने इतने बड़े-बड़े दिखाते हैं, लेकिन सुबह होती है, तो सपने टूट जाते हैं।’ चंद्रभान के साथ ही बृजभान भी आजमगढ़ से आए थे। पीओपी का काम करते हैं। महीने में 10-15 दिन काम मिलता है। एक दिन में 500-600 रुपए कमा लेते हैं। 20 साल से दिल्ली के वोटर हैं। बृजभान कहते हैं, ‘काम मिल गया तो मिल गया, नहीं तो जय सियाराम। सरकार काम देती, तो हम घर बैठने वालों में से नहीं हैं। CM आतिशी हमारी विधायक हैं। हमारी बस्ती में आई हैं, लेकिन झुग्गियों में नहीं आईं। काम ढूंढने से फुरसत मिले, तो विधायक के पास जाएं। रैलियां शुरू हो गई हैं, लेकिन बच्चों के लिए रोटी जुटाएं या रैली में जाएं।’ कौन सी पार्टी अच्छा काम कर रही है?बृजभान कहते हैं, ‘अभी तो केजरीवाल अच्छा काम कर रहे हैं। बच्चे बीमार हो जाएं तो मोहल्ला क्लिनिक है। रोज सफाई होती है। 200 यूनिट बिजली फ्री है। इतनी बिजली हमें लगती ही नहीं है। इसलिए बिल नहीं भरना पड़ता। पानी फ्री हो गया है।’ जगह: कुसुमपुरी पहाड़ी एक लाख लोगों की बस्ती, बाल्टी भर पानी के लिए जंगनवजीवन कैंप से बुरा हाल कुसुमपुर पहाड़ी का है। यहां की झुग्गी बस्ती में करीब एक लाख लोग रहते हैं। इनमें यूपी, बिहार, ओडिशा और असम से आए लोग हैं। ये पहाड़ी इलाका है, इसलिए सबसे ज्यादा दिक्कत पानी की है। बस्ती में पानी के टैंकर आते हैं। जिस दिन टैंकर आता है, बच्चे स्कूल और बड़े अपना काम छोड़कर पानी भरने पहुंच जाते हैं। यहां मिली त्रिकासो करीब 30 साल से बस्ती में रह रही हैं। घर के दरवाजे पर खड़ी थीं। हमने पूछा कि सरकार कोई काम कर रही है। त्रिकासो कहती हैं, ‘केजरीवाल ने अच्छा काम किया है। पानी और लाइट की सुविधा कर दी है। बिल जीरो आता है। रोज सफाई होती है। पानी की टैंकर आने लगे हैं। हफ्ते में एक बार टैंकर आता है। पहले तो पानी के लिए झगड़े होते थे।’ त्रिकासो के परिवार में तीन बेटे-बहू, दो पोते और चार पोतियां हैं। घर छोटा पड़ा तो एक बेटा किराए पर घर लेकर रहने लगा। त्रिकासो देखने में बीमार लग रही थीं। हमने पूछा- तबीयत ठीक नहीं है क्या?जवाब मिला, ‘बीपी हाई रहता है। शुगर भी है। मोहल्ला क्लिनिक से दवा ली थी, लेकिन फायदा नहीं हुआ।’ बस्ती में रहने वाली कमला के लिए पानी सबसे बड़ी समस्या है। वे कहती हैं, ‘1995 से यहां रह रही हूं। तभी से पानी की दिक्कत देख रही हूं। लड़ाई-झगड़ा करके टैैंकरों से पानी लाते हैं। पानी मिल जाए, तो यहां सब ठीक है। मेरी उम्र ज्यादा है, इसलिए पानी नहीं ला पाती। किसी को पैसा देकर भरवाना पड़ता है। घर में बेटी, बहू और पोती हैं।’ यहीं मिले ललन कहते हैं, 'मुझे लकवा मार गया है। एक हाथ काम नहीं करता। कई बार रात में टैंकर आता है। बेटी को रात 12 बजे तक पानी भरना पड़ता है। बेचारी साइकिल से पानी ढोती है। इलाका तो आप देख ही रहे हैं। गंजेड़ी-नशेड़ी घूमते रहते हैं। डर रहता है बच्ची को कोई कुछ कर न दे।' ललन आगे कहते हैं, 'जल बोर्ड वाले कहते हैं कि पहाड़ी इलाका है, इसलिए पानी नहीं चढ़ता। इस बार भी AAP के लीडर महेंद्र चौधरी भरोसा देकर गए हैं कि चुनाव के बाद जलबोर्ड से पानी लाएंगे। पहले भी यही कहकर गए थे।' झुग्गियों में रह रहे वोटर्स पर तीनों पार्टियों की नजरदिल्ली की 675 झुग्गी बस्तियों में 15 लाख से ज्यादा वोटर हैं। ये दिल्ली के कुल वोटर्स का 10% हिस्सा हैं। ये कभी कांग्रेस का वोट बैंक थे, लेकिन अब AAP को वोट देते हैं। यही वजह है कि तीनों बड़ी पार्टियां AAP, BJP और कांग्रेस इन्हें अपनी तरफ लाने की कोशिश कर रही हैं। नवजीवन कैंप से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर रिहैबिलिटेशन फ्लैट बने हैं। यहां करीब 3 हजार फ्लैट हैं। हर फ्लैट में एक हॉल, बेडरूम और टॉयलेट है। पिछले साल नवंबर में 1600 लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्लैट की चाभियां सौंपी थीं। इनमें मोहित भी शामिल हैं। वे कहते है, 'यहां थोड़ी कमियां तो हैं, लेकिन जैसा कहा था वैसा ही है। अब हमारे पास कम से कम पक्का और साफ-सुथरा घर तो है। बीती 3 जनवरी को PM मोदी ने दिल्ली के अशोक विहार में 1,675 फ्लैट का उद्घाटन किया है। इस पर अरविंद केजरीवाल ने कहा, 'दिल्ली में 4 लाख झुग्गियां हैं। 11 साल में PM मोदी ने 4700 लोगों को फ्लैट दिए हैं। सोचिए सबको फ्लैट देने में कितना वक्त लगेगा।' नवजीवन कैंप में रह रहे राजकिशोर का नाम भी फ्लैट मिलने वालों की लिस्ट में आया है। वे कहते हैं, ‘सारा कंस्ट्रक्शन तो कांग्रेस ने कराया। ये तो बस चाबी दे रहे हैं।' 84 साल के राजकिशोर 1971 में आजमगढ़ से दिल्ली आए थे। उनके घर की हालत बाकी झुग्गियों के मुकाबले बेहतर है।घर में टाइल्स लगा किचन, टीवी और गैस कनेक्शन है। हमने उनसे पूछा- आप किसकी तरफ हैं?राजकिशोर जवाब देते हैं, 'जो सरकार अच्छा काम करे, उसी पर विचार करेंगे।' अच्छा काम किसने किया है? जवाब मिला, 'अभी तो केजरीवाल ही हैं। जो थोड़ा बहुत किया, उन्हीं ने किया। वही फिर आएंगे।’ पार्टियां क्या कह रहीं… BJP: सरकार बनी, तो झुग्गियों में सारी सुविधाएं देंगेBJP के महासचिव विष्णु मित्तल कहते हैं, ‘10 साल से अरविंद केजरीवाल की सरकार है। उन्होंने झुग्गियों के लिए क्या किया। पानी इतना गंदा है कि हर आदमी बोतल खरीद रहा है। झुग्गियों में कूढ़े का ढेर है। शौचालय गंदे हैं। रोज सुबह 100-100 लोगों की लाइन लगी रहती है।' 'अरविंद केजरीवाल ने झुग्गीवासियों को गुमराह किया है। इलेक्शन आते ही वे झुग्गियों में पहुंच जाते हैं और कहते हैं कि BJP आएगी तो झुग्गियां तोड़ देगी।’ BJP की सरकार ने क्या किया है? विष्णु मित्तल जवाब देते हैं, 'हमने अब तक 4700 फ्लैट बनाए हैं। केजरीवाल से पूछो कि उन्होंने यहां PM आवास क्यों नहीं बनने दिए। वे योजनाओं में रोड़ा अटकाते हैं।’ AAP: झुग्गियां तोड़ने की फिराक में है BJPकोंडली से विधायक कुलदीप कुमार कहते हैं, ‘‘BJP ने पहले ही वादा किया था कि जहां झुग्गी वहां मकान, लेकिन आज तक तो नहीं दिया। उलटे प्लानिंग कर रखी है कि झुग्गियों की जमीन अपने दोस्तों को देंगे। केजरीवाल की सरकार झुग्गीवालों के साथ खड़ी है, जबकि BJP झुग्गियां तोड़ने की फिराक में है। BJP सरकार ने जो फ्लैट दिए हैं, लोग उनमें शिफ्ट नहीं होना चाहते। इतनी खराब क्वालिटी के फ्लैट हैं।’ कांग्रेस: फ्रीबीज के लिए AAP ने दिल्ली को कर्ज में धकेला कांग्रेस के स्पोक्सपर्सन गौतम सेठ कहते हैं, लोगों को ये बात समझनी चाहिए, वे समझ भी रहे हैं कि उनके दिए टैक्स के पैसे से ही ये (AAP सरकार) आपको फ्रीबीज दे पाते हैं। शीला जी के टाइम पर दिल्ली का बजट एक से डेढ़ लाख करोड़ सरप्लस में था। उनके मॉडल ऑफ गवर्नेंस की वजह से दिल्ली कभी कर्ज में नहीं रही। आज इन्होंने दिल्ली को कर्ज में धकेल दिया। हम भी दिल्ली सीरीज की पहली स्टोरी...क्या ‘वोट जिहाद’ करने वाले हैं बांग्लादेशी और रोहिंग्या, हिंदू कह रहे- इन्हें हटाना जरूरी रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिए, दिल्ली चुनाव में बड़ा मुद्दा हैं। BJP नेता कह रहे हैं कि AAP अपने वोट बैंक के लिए इन्हें बसा रही है। वहीं AAP लीडर्स का कहना है कि घुसपैठियों के बहाने BJP यूपी से आए लोगों को टारगेट कर रही है। जिन रोहिंग्या और बांग्लादेशियों का नाम लिया जा रहा है, वे क्या कह रहे हैं, पढ़िए पूरी रिपोर्ट... .......................................दिल्ली इलेक्शन पर ये स्टोरी भी पढ़ेंकेजरीवाल ने 1000 वोटर्स पर लगाए 12 कार्यकर्ता, बस्तियों में फ्री बिजली-इलाज का वादा दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता हर रोज दो टीमें बनाकर निकलते हैं। एक टीम ऐसे इलाके में जाती है, जहां जरूरतमंद लोग रह रहे हों। उनके बीच जाकर कार्यकर्ता सरकारी स्कीम जैसे फ्री बिजली-पानी और इलाज की बातें करते हैं। दूसरी टीम ऐसे इलाकों में जाती है, जहां अमीर लोग रहते हैं। ये विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी की स्ट्रैटजी है। पढ़िए पूरी खबर...
अमेरिका बना रहा ऐसा प्लान, पीते-पीते खुद सिगरेट पीना छोड़ देंगे लोग
America News: अमेरिका में सिगरेट को छोड़ने के लिए एक योजना बनाई जा रही है, इस योजना के सफल होने के बाद कई लोग खुद से सिगरेट पीना छोड़ देंगे. इसके अलावा ध्रमूपान करने वाले लोगों की संख्या में भारी गिरावट आ जाएगी.
माननीय सभापति... जिस भारतीय के चलते कनाडा की संसद में गूंजी देसी बोली, अब PM के लिए ठोकी दावेदारी
Chandra Arya Canada PM Bid: भारतवंशी चंद्र आर्य ने कनाडा में प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी पेश की है. इस बीच, इंटरनेट पर उनका कनाडा की संसद में कन्नड़ में दिया गया भाषण वायरल हो रहा है.
गाजा पर केवल सवाल पूछा था, इस पत्रकार को खींचकर प्रेस कॉन्फ्रेंस से क्यों निकाला गया?
Antony Blinken Press Conference: अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ से पहले मौजूदा विदेश मंत्री अपना अंतिम भाषण दे रहे थे, इसी दौरान वहां पर पत्रकार ने जब गाजा पर सवाल किया तो वो भड़क गए.
हर पल धरती की ओर बढ़ रहा प्रलय का खतरा, अब तो एक्सपर्ट्स ने भी दे दी चेतावनी
Space Debris hits Earth: धरती पर प्रलय या तबाही आ सकती है, इसकी कई भविष्यवाणियां होती रहती हैं. इसमें से एक को लेकर तो अब विशेषज्ञों ने भी चेतावनी दे दी है.
US Teacher sexual abuse: अमेरिका में एक अजीबो-गरीब मामला सामने आया है जिसने टीचर-स्टूडेंट के रिश्ते को तार-तार कर दिया है. यहां टीचर ने स्टूडेंट के साथ फिजीकल रिलेशन बनाया और बच्चा तक पैदा कर डाला.
निर्वस्त्र होकर पूरे शहर में घूमी थी ये रानी, इतिहास में कही जाती है महान, देखने वालों की आंखें...
Lady Godiva: दुनिया में कई महान राजा-रानी हुए हैं. इनमें से कुछ ने अपनी प्रजा के लिए ऐसे बलिदान दिए हैं, जिससे इतिहास में उन्हें विशेष महत्व दिया गया है. इसमें ब्रिटेन की महारानी लेडी गोडिवा भी एक हैं.
अमेरिकी सरकार को सत्ता से...ट्रक से वाइट हाउस पर हमला करने वाले भारतीय को 8 साल की जेल
US News:कंडुला ने 13 मई 2024 को जानबूझकर अमेरिकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने या तोड़ फोड़ के मामले में अपना जुर्म कबूल लिया था. कंडुला ‘ग्रीन कार्ड’ के साथ अमेरिका का वैध स्थायी निवासी है. जेल की सजा के अलावा, ‘डिस्ट्रिक्ट कोर्ट’ के जज डैबनी एल. फ्रेडरिक ने कंडुला को तीन साल की सजा सुनाई है.
खाने को नहीं दाने, पाकिस्तानी घर में चले शेर-चीते पालने! क्यों मजबूरी में सरकार ने दी इजाजत?
Lion as a Pet: एक और पाकिस्तान इतने बुरे बदहाली के दौर से गुजर रहा है कि यहां खाने के लाले पड़े हुए हैं. दूसरी ओर पाकिस्तान ने अपने नागरिकों के लिए शेर-चीता पालने की अनुमति देने की घोषणा की है.
Man With 6 Fingers : हाथ-पैरों में 6-6 उंगलियां, ये है 24 उंगली वाला इंसान
Man With 6 Fingers : एक वायरल फोटो में एक बुजुर्ग व्यक्ति के दोनों हाथों और पैरों में 6-6 उंगलियां दिखाई गईं, जिसके बाद से फोटो लेने वाले और देखने वाले सभी हैरान हैं.
'मंगल' का सपना देख रहे एलन मस्क को झटका.. राख हो गई स्टारशिप की टेस्टिंग, आसमान में फैला मलबा
Elon Musk: एलन मस्क ने इस पर प्रतिक्रिया भी दी है. उन्होंने रॉकेट के मलबे का वीडियो शेयर करते करते हुए अपने अंदाज में लिखा कि मनोरंजन की गारंटी है. यह स्टारशिप की सातवीं टेस्ट फ्लाइट थी.
अरे बाप रे! जॉर्जिया मेलोनी के सामने घुटनों पर बैठ गए इस देश के PM, फिर क्या हुआ...
Italy PM: मेलोनी 48वीं सालगिरह का जश्न खास रहा जब अल्बानिया के प्रधानमंत्री एडी रामा ने उनके लिए ऐसा कुछ किया जिसे देखकर सभी हैरान रह गए. अबू धाबी में वर्ल्ड फ्यूचर एनर्जी समिट के दौरान यह मजेदार और दिलचस्प घटना सामने आई.
ट्रंप के शपथ ग्रहण से पहले US में हड़कंप, क्या तलाक ले रहे बराक-मिशेल ओबामा?
Barack Obama and Michelle Obama: अमेरिका में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के बीच अचानक से एक नया मुद्दा छा गया है. वो है पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की तलाक की खबर.
अगर ये चोट थोड़ी भी और गहरी होती तो क्या पैरालाइज्ड हो सकते थे सैफ, घाव भरने के लिए प्लास्टिक सर्जरी की जरूरत क्यों पड़ी, जानेंगे स्पॉटलाइट में
बात उन दिनों की है, जब देश की राजधानी कलकत्ता थी। 1905 में बंगाल का बंटवारा हुआ, तो अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गए। अंग्रेज अफसरों पर लगातार हमले हो रहे थे। शासन चलाने के लिए कलकत्ता असुरक्षित और अस्थिर हो गई, तो अंग्रेजों ने नई राजधानी के बारे में सोचा। इतिहासकार नारायणी गुप्ता लिखती हैं, ‘अंग्रेजों काे लगा दिल्ली सुंदर शहर है। इसे राजधानी बनाकर वो भी इसके इतिहास से जुड़ जाएंगे, लेकिन ये भी सच था कि दिल्ली में जो राज करता है, उसका राज्य बहुत दिनों तक टिकता नहीं।’ 6 साल बाद यानी 15 दिसंबर 1911। ब्रिटेन के किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक के लिए दिल्ली दरबार सजाया गया। इसके लिए दिल्ली के बाहरी इलाके बुराड़ी में 20,000 कामगारों की मदद से किंग कैंप बनाया गया। हजारों शिविर लगाए गए। जिस शिविर में किंग और क्वीन ठहरे थे, वहां तक अलग रेलवे लाइन बिछाई गई। करीब 80 हजार लोगों के सामने किंग जॉर्ज पंचम ने ऐलान किया, ‘हमें भारत की जनता को ये बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि देश को बेहतर ढंग से प्रशासित करने के लिए ब्रिटेन सरकार भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट करती है।’ ये घोषणा सुनकर किंग के बगल में बैठी क्वीन मैरी भी चौंक गईं। भारत में उस वक्त के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग को भी इसकी खबर नहीं थी। ब्रिटिश इतिहासकारों ने इसे ‘बेस्ट केप्ट सीक्रेट ऑफ इंडिया’ कहा था। दिल्ली की कहानी सीरीज के तीसरे एपिसोड में अंग्रेजों के समय की दिल्ली के किस्से… 1608 में ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारियों ने गुजरात के सूरत पोर्ट पर पहला कदम रखा। शिप के कैप्टन विलियम हॉकिंस ने मुगल बादशाह जहांगीर से मुलाकात कर सूरत में एक फैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति मांगी, लेकिन बादशाह ने मना कर दिया। अंग्रेजों ने उन राज्यों का रुख किया, जहां मुगल शासन नहीं था। 1611 में आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में पहला कारखाना लगाने की अनुमति मिली। 1615 में ब्रिटिश सरकार की तरफ से सर थॉमस रो ने जहांगीर से मुलाकात की। उनके तोहफों से जहांगीर खुश हुए और फैक्ट्री लगाने की परमिशन दे दी। इस परमिशन के बदले ईस्ट इंडिया कंपनी मुगल सरकार को टैक्स देगी। अगले कुछ दशक में कंपनी ने मुंबई, मद्रास, पटना, अहमदाबाद और मुगल राजधानी आगरा में भी फैक्ट्री लगाई। मसालों के अलावा वे कपास, नील, सिल्क, चाय और अफीम का बिजनेस करने लगे। इन शहरों में अंग्रेजों ने किले बना लिए। 1670 में ब्रिटिश किंग चार्ल्स द्वितीय ने सरकारी नियंत्रण में ले लिया। अब कंपनी खुद की आर्मी रख सकती थी। करेंसी छाप सकती थी। 1707 आते-आते अंग्रेज पूरे भारत में मजबूत हो चुके थे। आदित्य अवस्थी अपनी किताब ‘दास्तान ए दिल्ली' में लिखते हैं कि अंग्रेजों ने 1714 से दिल्ली आना शुरू किया। वे लाल किले में पैदल जाकर, दीवाने आम, दीवाने खास में बादशाह के सामने घुटने टेककर सलामी देते थे। 1803 में पहली बार मुगल बादशाह शाह आलम ने सैन्य मदद के लिए अंग्रेजों को दिल्ली बुलाया। एम.एस. नरवने अपनी किताब 'बैटल्स ऑफ द ऑनरेबल ईस्ट इंडिया कंपनी: मेकिंग ऑफ द राज' में बताते हैं कि मराठा मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय दिल्ली पर कब्जा करने आ रहे थे। अंग्रेजों ने पहली बार मुगलों की तरफ से जंग लड़ी। 11 सितंबर, 1803 को पटपड़गंज (अब पूर्वी दिल्ली में) में मुगलों के कथित अंग्रेज सैनिकों और मराठों के बीच युद्ध हुआ। अंग्रेजों ने मराठों को हरा दिया। अब बादशाह भले ही शाह आलम था, लेकिन उसके पास कोई अधिकार नहीं थे। वो अंग्रेजों की पेंशन पर जिंदा थे। यह सिलसिला बहादुर शाह जफर तक चला। 1857 की क्रांति का केंद्र दिल्ली था। क्रांतिकारियों ने 80 वर्षीय बहादुर शाह जफर को अपना नेता घोषित कर दिया था। इतिहासकार विलियम बेनेडिक्ट हैमिल्टन-डेलरिम्पल अपनी किताब 'द लास्ट मुगल: द फॉल ऑफ द डायनेस्टी, दिल्ली 1857' में लिखते हैं कि बहादुर शाह जफर कभी इसमें शामिल नहीं होना चाहते थे, लेकिन लोगों के चाहने पर इनकार नहीं कर सके। अंग्रेजों ने पूरा जोर लगाकर विद्रोह को कुचल दिया। 14 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने कश्मीरी गेट के पास से शहर पर हमला किया। दिल्ली के गलियारों में खून बहने लगा और विद्रोही एक-एक कर पीछे हटने लगे। 20 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया। बहादुर शाह जफर हार जानकर अपने परिवार के साथ हुमायूं के मकबरे में शरण लेने के लिए भाग गए। ब्रिटिश अफसर मेजर हडसन ने उनका पता लगा लिया और गिरफ्तार कर लिया। उनके बेटों और पोतों को कैद कर लिया गया और बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। उनके कटे हुए सिर बहादुर शाह जफर के सामने पेश किए गए, ताकि उनकी इच्छाशक्ति को तोड़ा जा सके। लाल किले पर ब्रिटिश झंडा फहराने के बाद अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को रंगून निर्वासित कर दिया गया। जहां उनकी मौत हो गई। दिल्ली पर अब सीधा अंग्रेजों का नियंत्रण था, हालांकि उन्होंने अपनी राजधानी कलकत्ता बनाई। आदित्य अवस्थी अपनी किताब दास्तान ए दिल्ली' में लिखते हैं कि राजधानी को कोलकाता से दिल्ली लाए जाने के प्लान को बेहद सीक्रेट रखा गया था। इसे ‘सीसेम प्रोजेक्ट' नाम दिया गया था। अंग्रेज राजशाही काे अनुमान था कि अगर पहले ऐलान किया गया तो कोलकाता के प्रभावशाली लोग और व्यापारी विरोध करेंगे। जब ये फैसला लिया गया तो किंग जॉर्ज पंचम के अलावा दो दर्जन लोगों को यह जानकारी दी गई थी। दिल्ली में वायसराय लॉर्ड हार्डिंग और लंदन में भारत मामलाें के सेक्रेटरी रॉबर्ट ऑफ क्रू-मिल्स को भी इसकी जानकारी नहीं दी गई थी। ब्रिटिश इतिहासकार जेन रीडली अपनी किताब 'द आर्किटेक्स एंड हिज वाइफ: ए लाइफ ऑफ एडविन लुटियंस' में लिखती हैं कि राजधानी कोलकाता से दिल्ली शिफ्ट हो चुकी थी। अब नए शहर का निर्माण होना था। किंग जॉर्ज पंचम ने मशहूर आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस को बुलाया। उन्होंने बताया कि इंडिया जाकर नई राजधानी बनानी है। उस समय एडविन लुटियंस ने शर्त रखी कि उनके साथ उनके पुराने दोस्त हर्बर्ट बेकर भी सलाहकार के तौर पर जाएंगे। मजदूरी के रूप में उन्हें कुल लागत का 5% देने का वादा किया गया। 15 दिसंबर 1911 को किंग ने पुरानी दिल्ली के पास ही नई दिल्ली की नींव रखी थी, लेकिन एडवर्ड लुटियंस ने नई दिल्ली बसाने के लिए रायसीना हिल को चुना। कहते हैं भारतीय ठेकेदार सोभा सिंह ने अपनी साइकिल पर नींव का पत्थर लादकर रातों-रात उसे रायसीना हिल पहुंचाया था। नई दिल्ली को बनाने का काम 1912 में शुरू होकर 1931 में खत्म हुआ। बेकर को काउंसिल हाउस यानी संसद भवन बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी। बेकर ने अलग-अलग साइज वाला बेतरतीब त्रिकोण वाला नक्शा बनाया था। प्लान के अनुसार डिजाइन समबाहु त्रिकोण होना था। तीनों तरफ विधानसभा, राज्य परिषद और राजकुमारों के रूम्स होने चाहिए थे। सेंटर में भव्य गुंबद होना था। लुटियंस ने इस डिजाइन का कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा काउंसिल हाउस गोलाकार कोलोजियम जैसा होना चाहिए। मामला 10 जनवरी 1920 को न्यू कैपिटल कमेटी में गया। कमेटी ने फैसला लुटियंस के फेवर में सुनाया। लुटियंस ने कहा कि मैं जो चाहता था वो हो गया। मुझे मेरी बिल्डिंग मिल गई है। बेकर ने कहा कि मैं जानता हूं, मुझे बाहर कर दिया गया है। इसके बाद दोनों में कड़वाहटें और बढ़ गईं। फिर दोनों में वायसराय हाउस यानी आज के राष्ट्रपति भवन की ढलान को लेकर विवाद हो गया। बेकर का कहना था कि दूर ढलान से इमारत दिखनी चाहिए। ये बात भी कमेटी में गई और इस बार बेकर जीत गए। लुटियंस चीफ आर्किटेक्ट थे। उनके ईगो को ज्यादा ठेस पहुंची। वे इतना नाराज हुए कि उन्होंने अपनी पत्नी को लिखा कि मुझे बेकर से प्रॉब्लम हो रही है। बेकर मुगलिया वास्तुकला के मुरीद थे, वे चाहते थे कि इमारतों में उसका उपयोग हो। जबकि लुटियंस कुछ अलग करना चाहते थे। इसे लेकर भी दोनों दोस्त कई बार भिड़े थे। दोनों ने अपने प्रोजेक्ट पूरे किए, लेकिन फिर एक-दूसरे से बात नहीं की। 23 दिसंबर 1912 को वायसराय लॉर्ड हार्डिंग और उनकी पत्नी विनिफ्रेड सेसिल ट्रेन से दिल्ली पहुंचे थे। हार्डिंग अपनी किताब ‘माय इंडियन इयर्स' में लिखते हैं, ‘दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पंजाब के सभी राजाओं ने स्वागत किया। हमें एक हाथी पर बैठाया गया और जुलूस शुरू हो गया। दिल्ली का मुख्य बाजार चांदनी चौक लोगों से खचाखच भरा हुआ था। हम 300 कदम ही चले होंगे कि अचानक एक जोरदार ब्लास्ट हुआ और मेरा हाथी रुक गया।’ हार्डिंग ने पीछे देखा तो छत्र पकड़े बैठा कर्मचारी हौज की रस्सी में उलझकर मृत लटक रहा है। थोड़ी देर में हार्डिंग बेहोश हो गए। होश आया तो उन्होंने खुद को एक कार में पाया। जापानी लेखक और प्रोफेसर ताकेशी नाकाजिमा अपनी किताब 'बोस ऑफ नाकामुराया: एन इंडियन रिवोल्यूशनरी इन जापान' में लिखते हैं कि ये हमला रास बिहारी बोस ने अपने ऑफिस से एक दिन की छुट्टी लेकर किया था। हमले के बाद वे वापस देहरादून लौट गए। ब्रिटिश शासन के खिलाफ हर बड़े आंदोलन का कहीं न कहीं दिल्ली से जुड़ाव रहा। यह न केवल भौगोलिक रूप से भारत के बीच में थी, बल्कि राजनीतिक, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण थी। ऐसी ही कुछ घटनाएं… सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद 1945 में ब्रिटेन में चुनाव हुए। लेबर पार्टी सत्ता में आई और क्लेमेंट एटली प्रधानमंत्री बने। पीएम एटली ने फरवरी 1947 में ऐलान किया कि 30 जून 1948 तक ब्रिटेन भारत को आजाद कर देगा। इसके लिए लॉर्ड माउंटबेटन को आखिरी वायसराय चुना गया। भारत के पहले गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी के मुताबिक अगर माउंटबेटन जून 1948 तक इंतजार करते तो ट्रांसफर करने के लिए उनके पास कोई पावर ही नहीं बचती। पूरे देश में हिंसा और उथल-पुथल मची थी। माउंटबेटन ने भारत की आजादी और बंटवारे के प्लान में तेजी दिखाई। माउंटबेटन के सुझावों पर ब्रिटेन की संसद ने 4 जुलाई, 1947 को इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट पारित किया। इसमें 15 अगस्त 1947 को भारत से ब्रिटिश शासन खत्म करने का प्रावधान था। इससे पहले ही सत्ता हस्तांतरित कर दी गई। बंटवारे के दौरान कत्लेआम हुआ। हिंदू-मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग मारे गए। पंडित जवाहरलाल नेहरू को पीएम चुना गया। 15 अगस्त 1947 की आधी रात को संसद में जवाहरलाल नेहरू ने शपथ ली। लार्ड माउंटबेटन 14-15 अगस्त 1947 की आधी रात को पाकिस्तान और भारत को आजादी मिलने के बाद से 10 महीने तक नई दिल्ली में रहे। जून 1948 तक स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल के रूप में काम किया। ------- दिल्ली की कहानी सीरीज के अन्य एपिसोड... 1. महाभारत का इंद्रप्रस्थ कैसे बना दिल्ली:पांडवों ने नागों को भगाकर बसाया; यहीं के महल में बेइज्जत हुए दुर्योधन दिल्ली का इतिहास भारत की माइथोलॉजी यानी पौराणिक कथाओं जितना पुराना है। महाभारत के युद्ध में दिल्ली की बड़ी भूमिका थी। हालांकि तब इसे इंद्रप्रस्थ कहा जाता था। उस दौर में नाग यहां रहा करते थे। जानिए कैसे पांडवों ने उन्हें भगाया। पूरी खबर पढ़ें पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी का पहला मुकाबला 1191 में तराइन के युद्ध में हुआ। ये जगह हरियाणा के करनाल के पास है। पृथ्वीराज की सेना ने मोहम्मद गोरी की सेना को तहस-नहस कर दिया। मोहम्मद गोरी सेना समेत पंजाब की तरफ भाग खड़ा हुआ। पृथ्वीराज ने गोरी को खदेड़ने की कोशिश नहीं की और उसकी जान बच गई। पृथ्वीराज की इस गलती ने भारत के इतिहास का रुख ही मोड़ दिया। पढ़िए पूरी खबर...
मिडिल ईस्ट की सबसे बड़ी जंग 15 महीने की तबाही के बाद अब युद्धविराम के करीब है। 15 जनवरी 2025 को कतर के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुल रहमान अल थानी ने इजराइल और हमास के बीच सीजफायर की घोषणा की। 19 जनवरी से ये सीजफायर लागू हो जाएगा। हालांकि अभी इस समझौते पर नेतन्याहू ने फाइनल मुहर नहीं लगाई है। इजराइल सीजफायर को क्यों तैयार हुआ, क्या अब जंग पूरी तरह खत्म हो जाएगी, गाजा पर किसका कब्जा होगा; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में... सवाल-1: इजराइल और हमास के बीच सीजफायर की डील क्या है?जवाब: 31 जुलाई 2024 अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इजराइल-हमास सीजफायर डील की आउटलाइन तैयार की। इस डील को यूनाइटेड नेशन्स (UN) ने मंजूरी दी लेकिन तब इजराइल ने इसे खारिज कर दिया था। 15 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इजराइल-हमास सीजफायर डील पर कहा, इस समझौते से गाजा में लड़ाई रुकेगी और बंधकों को उनके परिवारों से मिलाया जाएगा। अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, इस डील में ट्रम्प की टीम भी शामिल रही। ट्रम्प राष्ट्रपति कार्यकाल शुरू करने से पहले इस डील को पूरा करना चाहते थे। 7 जनवरी को ट्रम्प की सख्त लहजे में चेतावनी के बाद डील तेजी से आगे बढ़ी। सवाल-2: गाजा में सीजफायर के लिए यह डील कैसे होगी और इसमें क्या होगा?जवाब: 15 जनवरी को जो बाइडेन ने कहा कि यह डील 19 जनवरी यानी रविवार से तीन फेज में शुरू होगी... पहला फेज: 42 दिन तक बंधकों की अदला-बदली होगी दूसरा फेजः युद्ध हमेशा के लिए खत्म होगा तीसरा फेजः गाजा का पुनर्निमाण होगा सवाल 3: क्या अब भी सीजफायर समझौता रद्द हो सकता है?जवाब: बीते कुछ दिनों के घटनाक्रम से पता लगता है कि नेतन्याहू इस डील से बहुत खुश नहीं है… विदेशी मामलों के जानकार प्रोफेसर मोहसिन रजा खान कहते हैं, नेतन्याहू को अपनी गठबंधन सरकार में शामिल मंत्रियों के विरोध के चलते सरकार चलाने में दिक्कत आ सकती है, इसलिए उन्होंने समझौता रोका हुआ है और इसका आरोप हमास पर डाल रहे हैं। टाइम्स ऑफ इजरायल के मुताबिक, इजराइल की गठबंधन सरकार में सुरक्षा मंत्री इतामार बेन-ग्वीर और फाइनेंस मिनिस्टर बेजेलल स्मोत्रिच के सरकार से अलग होने की धमकी के चलते नेतन्याहू समझौते पर फाइनल मोहर लगाने में देर कर रहे हैं। सवाल 4: जब नेतन्याहू खुश नहीं, फिर इजराइल सीजफायर के लिए क्यों तैयार हुआ?जवाब: इजराइल के युद्ध विराम के लिए तैयार होने की 3 बड़ी वजहें हैं… 1. नेतन्याहू पर बंधकों को छुड़ाने का दबावइजराइली बंधकों को छुड़ाने की मांग को लेकर बीते 15 महीनों में इजराइल में 900 से ज्यादा प्रोटेस्ट हुए। जंग शुरू होने से पहले से नेतन्याहू के खिलाफ इजराइल में प्रदर्शन हो रहे थे। जुलाई 2023 में नेतन्याहू की सरकार ने एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसके मुताबिक, इजराइल की सुप्रीम कोर्ट नेतन्याहू सरकार के किसी भी फैसले को पलट नहीं सकती। 2. अमेरिका ने इजराइल पर दबाव बनायाडोनाल्ड ट्रम्प का राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद इजराइल पर सीजफायर का दबाव बढ़ गया। 7 जनवरी 2025 को ट्रम्प ने सख्त लहजे में चेतावनी भी दे दी। मोहसिन रजा का कहना है, ‘ट्रम्प इस जंग को खत्म करके समझौते का क्रेडिट लेना चाहते हैं। 9 महीने पहले उन्होंने नेतन्याहू से मुलाकात में कहा था कि ‘जंग बंद करो, इट्स नॉट लुकिंग गुड।' ट्रम्प के सामने रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे मामले भी हैं।' मोहसिन रजा ने कहा, नेतन्याहू जानते हैं कि ट्रम्प को नाराज नहीं किया जा सकता। ट्रम्प पावर पॉलिटिक्स वाले नेता हैं। अगर ट्रम्प की बात नहीं मानी तो इससे वो नाराज हो जाएंगे। वह अपनी छवि बचाने के लिए अमेरिका का हित-अहित भी नहीं देखेंगे। 3. इजरायल की सेना जंग से थक चुकी हैमोहसिन रजा कहते हैं, ‘इजराइल के पास परमानेंट फोर्स नहीं है। सैनिक अब और जंग नहीं चाहते। इजराइल की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ गई है और वहां महंगाई भी बढ़ रही है।’ मोहसिन के मुताबिक, ये डील सिर्फ एक दिखावा भी हो सकती है, ताकि बंधक वापस आ जाएं। इसके बाद फिर से जंग शुरू कर दी जाए। सवाल-5: डोनाल्ड ट्रम्प को सीजफायर डील का क्रेडिट क्यों दिया जा रहा?जवाब: बीते दिनों मध्य पूर्व में डोनाल्ड ट्रम्प के प्रतिनिधि स्टीव विटकॉफ ने कहा, 'प्रेसिडेंट ट्रम्प, उनका कद, उनके शब्द और उनकी इस इच्छा के चलते यह बातचीत आगे बढ़ रही है कि 20 जनवरी तक जंग को खत्म करना होगा।' अमेरिका के पूर्व डेमोक्रेटिक नेता टॉम मालिनोवस्की ने कहा, यह डील बाइडेन की थी। मैं बहुत नफरत से यह कह रहा हूं, लेकिन सच यही है कि वह ट्रम्प के बिना ऐसा नहीं कर सकते थे। समझौता होने के बाद नेतन्याहू ने पहला फोन ट्रम्प को किया, जबकि दूसरा बाइडेन को। मोहसिन के मुताबिक, ‘रिपब्लिकन पार्टी इजराइल के पक्ष में मानी जाती है। ट्रम्प, बाइडेन की तुलना में इजरायल के बड़े समर्थक माने जाते हैं। वहीं बाइडेन का कार्यकाल खत्म होने वाला था। इजराइल चाहता है कि ट्रम्प की सरकार वेस्ट बैंक पर उसके कब्जे को मान्यता दे दे। इसलिए नेतन्याहू को ट्रम्प की बात माननी पड़ी।’ सवाल 6: सीजफायर के बाद गाजा पर किसका कब्जा होगा?जवाब: सीजफायर डील में गाजा पर कब्जे को लेकर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग में पूर्व डिप्टी सेक्रेटरी थॉमस एस. वारिक का कहना है कि गाजा पर कंट्रोल ही असली दिक्कत है, जिसका कोई समाधान नहीं निकल सका। डील के दूसरे फेज में इस पर चर्चा की बात कही गई है, लेकिन कोई भी इसके लिए तैयार नहीं है। थॉमस के मुताबिक, अमेरिका और इजराइल, गाजा में हमास की कोई भूमिका नहीं चाहते। वहीं, हमास के नेता भी फिलहाल पीछे हटने को तैयार हैं। इसके लिए ट्रम्प कुछ समय के लिए पीछे हट सकते हैं, जिससे इजराइल और फिलिस्तीन के बीच कब्जे की कार्रवाई पर नजर रख सकें। मोहसिन रजा ने कहा, कभी गाजा का प्रशासन फिलिस्तीन को देने की बात होती है, तो कभी मिस्र और कतर के मिले-जुले प्रशासन की बात की जाती है। लेकिन कोई भी देश इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता। सवाल 7: क्या इजराइल और हमास के बीच जंग दोबारा शुरू हो सकती है?जवाब: एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इजराइल चाहता है कि अमेरिका वेस्ट बैंक पर इजराइल के कब्जे को मान्यता दे दे। इन इलाकों से इजराइल आसानी से पीछे नहीं हटेगा। अभी हमास कमजोर है, इसलिए उसने समझौता मान लिया है। लेकिन वह अपने वजूद के लिए दोबारा लड़ाई के मैदान में आ सकता है।’ सवाल-8: 15 महीने की इजराइल-हमास जंग में क्या-क्या हुआ?जवाब: हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक गाजा में 46,707 लोग मारे गए हैं, वहीं 20 लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गए। इजराइल ने 90% गाजा को तबाह कर दिया है। 50 हजार से ज्यादा बच्चे गंभीर कुपोषण का शिकार हैं। --------- इजराइल-हमास जंग से जुड़ी अन्य खबर इजराइल-हमास सीजफायर डील 17 घंटों में टूटने की कगार पर:नेतन्याहू का आरोप- हमास शर्तों से पीछे हटा, समझौते के अंत तक रियायत मांग रहा इजराइल-हमास के बीच सीजफायर डील 17 घंटों के अंदर ही टूटने की कगार पर पहुंच गई है। इस डील को मंजूरी देने के लिए इजराइली कैबिनेट की मीटिंग होने वाली थी। अब PM नेतन्याहू ने मीटिंग करने से मना कर दिया है। पढ़िए पूरी खबर...
10 फरवरी 2013, रविवार का दिन। प्रयाग में कुंभ लगा था। उस दिन मौनी अमावस्या थी। तीन करोड़ से ज्यादा लोग संगम में डुबकी लगा चुके थे। शाम साढ़े सात-आठ बजे की बात है। मैं प्रयाग जंक्शन के बाहर एक दुकान पर चाय पी रहा था। दिनभर कुंभ की कवरेज की वजह से थक सा गया था। सोचा, थोड़ा आराम करके दफ्तर के लिए निकलूंगा। इसी बीच लोगों की चीख-पुकार गूंजने लगी। मैं प्लेटफॉर्म नंबर 6 की तरफ दौड़ा। वहां पैर रखने की जगह नहीं थी। लाखों लोग बदहवास होकर इधर-उधर भाग रहे थे। एक-दूसरे पर गिरते-गिराते। कुछ देर बाद जब भगदड़ थमी तो प्लेटफॉर्म पर इधर-उधर लाशें बिखरी पड़ी मिलीं। इनमें महिलाएं, पुरुष, जवान और बुजुर्ग सब शामिल थे। कुल 36 लोग मारे गए। ज्यादातर लोगों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था। ये किस्सा बताते हुए प्रयाग के सीनियर जर्नलिस्ट स्नेह मधुर सिहर उठते हैं। ‘महाकुंभ के किस्से’ सीरीज के छठे एपिसोड में कहानी 2013 कुंभ में मची भगदड़ की… स्नेह बताते हैं- ‘मैं लंबे समय से कुंभ कवर करता आ रहा हूं। 1954 की भगदड़ के बारे में सुना-पढ़ा था, लेकिन 2013 में सबकुछ मेरी आंखों के सामने था। लोग बचाओ, बचाओ कहकर चीख रहे थे, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। चारों तरफ अफरा-तफरी मची थी। 'तोहरे बिना हम घर कइसे लौटब, तोहरे बाबू के का मुंह देखाइब'। बिहार की रहने वाली एक महिला बदहवास होकर अपनी बेटी को ढूंढ रही थी। उनकी बहन संभालने की कोशिश कर रही थी, लेकिन कुछ देर बाद उनका भी धैर्य टूट गया। दोनों लिपटकर रोने लगीं। महिला ने बताया कि उसकी बेटी की शादी दो महीने बाद होने वाली थी। देर रात तक इस तरह की चीखों से स्टेशन गूंजता रहा। प्लेटफॉर्म पर न तो वक्त रहते स्ट्रेचर पहुंच पाया न ही कोई एंबुलेंस। लोगों को कपड़े में बांधकर अस्पताल पहुंचाया जा रहा था। कई लोगों ने तो इलाज के बिना प्लेटफॉर्म पर ही दम तोड़ दिया। करीब दो घंटे बाद रेलवे और प्रशासन के अफसर प्लेटफॉर्म पर पहुंचे।’ 6 नंबर प्लेटफॉर्म पर आने वाली थी ट्रेन, अचानक बदल दिया प्लेटफॉर्म स्नेह मधुर बताते हैं- ‘प्रयाग जंक्शन रेलवे स्टेशन पर दो साइड हैं। एक सिविल लाइन्स और दूसरा चौक साइड। संगम स्नान के बाद लौटने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए चौक साइड में बाड़े बनाए गए थे। अलग-अलग रूट के लिए अलग-अलग बाड़े। उनके रूट की तरफ जाने वाली ट्रेन जब आती थी, तब उनके बाड़े को खोला जाता था, लेकिन उस रोज प्रशासन की लापरवाही से ये सिस्टम बिगड़ गया था। नवाब यूसुफ रोड, जो संगम से सीधे सिविल लाइन्स साइड यानी प्लेटफॉर्म नंबर 6 की तरफ जाताी है। उस दिन उस रास्ते को ब्लॉक नहीं किया गया। स्नान करके लौट रही भीड़ चौक साइड जाने के बजाय सिविल लाइन्स की तरफ बढ़ने लगी। दोपहर में ही प्लेटफॉर्म खचाखच भर गया था। पैर रखने तक की जगह नहीं थी, लेकिन भीड़ रुकने का नाम नहीं ले रही थी। लोग लगातार प्लेटफॉर्म की तरफ बढ़ते जा रहे थे। इधर प्लेटफॉर्म पर कई ट्रेनें घंटों की देरी से चल रही थीं। लिहाजा लंबे समय से ट्रेनों का इंतजार कर रहे लोग जमा होते गए। इसी बीच अनाउंसमेंट हुआ कि ट्रेन प्लेटफॉर्म नं 6 की बजाय दूसरे प्लेटफॉर्म पर आएगी। इतना सुनते ही लोग उस प्लेटफॉर्म पर जाने के लिए भागने लगे। फुट ओवर ब्रिज पर तो तिल रखने तक की जगह नहीं थी। लोगों को भागते देख रेलवे पुलिस लाठी भांजने लगी। एक दूसरे के ऊपर लोग गिरने लगे। भगदड़ मच गई। कई लोग तो ओवर ब्रिज से गिर भी गए।’ झारखंड के प्रसाद यादव हादसे में घायल हो गए थे। उन्होंने एक मीडिया रिपोर्ट में बताया था- 'प्लेटफॉर्म नंबर 6 के फुटओवर ब्रिज पर पैर रखने तक की जगह नहीं थी। इसके बाद भी लोग आगे बढ़ रहे थे। इतने में एक महिला गिर पड़ी। उसे बचाने के लिए लोगों ने भीड़ को धक्का दिया, ताकि जगह बन पाए, लेकिन जीआरपी ने लाठी भांज दी। भगदड़ मच गई। मैं दसियों लोगों के नीचे दब गया। ऐसा लग रहा था कि अब प्राण निकलने ही वाले हैं। सांसें ऊपर-नीचे हो रही थीं। शरीर का भुर्ता बन गया था। मैंने अपनी आंखों के सामने कई लोगों को तड़प-तड़प कर मरते देखा। इसके बाद मैं बेहोश हो गया। जब आंख खुली तो अस्पताल में था।' रेलवे कुंभ वार्ड में ताला लगा था, इलाज नहीं मिलने से चार मर गए हादसे के वक्त रेलवे कुंभ वार्ड में ताला लगा हुआ था। साढ़े नौ बजे डीआरएम पहुंचे। उसके बाद अस्पताल का ताला खुला। तब वहां रूई और पट्टी छोड़कर कोई व्यवस्था नहीं थी। ऑक्सीजन सिलेंडर खाली पड़े थे। चार लोगों की मौत तो इलाज नहीं मिलने की वजह से हो गई। कई लोग परिजनों की लाश लेकर भटक रहे थे। 12 घंटे इंतजार करने के बाद भी प्रशासन शवों को उनके घर तक पहुंचाने की व्यवस्था नहीं कर पाया था। अस्पताल के बाहर कई लोगों को मुंहमांगे दामों पर कफन खरीदने पड़े। किसी ने हजार रुपए में कफन खरीदे तो किसी को 1200 रुपए देने पड़े। मेले के प्रभारी मंत्री आजम खां ने कहा- 'मीडिया ने हालात पैनिक किया' 2013 कुंभ के वक्त यूपी में सपा की सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री। आजम खां को मेले का प्रभारी मंत्री बनाया गया था। हादसे के बाद नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए आजमा खां ने इस्तीफा तो दिया, लेकिन दोष रेलवे और मीडिया पर मढ़ दिया। उन्होंने कहा- ‘जहां तीन करोड़ लोग एक दिन में आए, वहां इस तरह के हादसे के बारे में किसी को जिम्मेदार ठहराया नहीं जा सकता। मीडिया की सूचना की वजह से भी जो पैनिक क्रिएट हुआ है, उसे कंट्रोल करना है।’ यूपी सरकार ने मृतकों को पांच-पांच लाख और घायलों को एक-एक लाख रुपए मुआवजा दिया। जबकि रेलवे की तरफ से मृतकों के परिजनों को एक-एक लाख रुपए दिए गए। सुबह भी मची थी भगदड़, लेकिन प्रशासन अलर्ट नहीं हुआ मौनी अमावस्या की सुबह भी सेक्टर 12 में भगदड़ मची थी, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी। इन चार में से दो की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ था कि उनकी मौत दम घुटने और अंदरूनी चोट की वजह से हुई है। हालांकि, मेला प्रशासन का कहना था कि इनकी मौत हार्ट अटैक से हुई है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मौके पर मौजूद लोगों ने बताया कि रास्ते में दो लाल बत्ती वाली कारें आ रही थी और पुलिस की जिप्सी उनके लिए रास्ता बनाते आ रही थी। इसी बीच पुलिस ने लाठी भांज दी। इससे लोग भागने लगे। एक दूसरे के ऊपर गिरने लगे। इससे चार लोगों की मौत हो गई। हालांकि बाद में पुलिस ने हालात कंट्रोल कर लिया। उस दिन एक और भगदड़ मची थी। इसका जिक्र करते हुए 'भारत में महाकुंभ' के लेखक धनंजय चोपड़ा बताते हैं- 'तब मैं मेले मे कुंभ की साउंड रिकॉर्ड करता हुआ बांध की ओर ऊपर जा रहा था। बांध की ढालान से एक जुलूस नीचे की तरफ आ रहा था। अचानक जुलूस में शामिल ट्रैक्टर का बैलेंस बिगड़ गया। इससे भगदड़ मच गई। मैं भी भगदड़ में गिर गया। मेरे ऊपर कई लोग चढ़ गए। मेरी जान तो बच गई, लेकिन मेरा झोला और स्वेटर कोई खींच ले गया। मेरी आंखों के सामने एक पश्चिम बंगाल के एक शख्स की जान चली गई थी।' अंग्रेजों के जमाने में भी कुंभ में होते रहे हादसे, 1820 में 450 लोग मारे गए थे कुंभ मेले में भगदड़ कई बार मची है। अंग्रेजों के जमाने में भी कुंभ के दौरान कई हादसे हुए। 1820 के हरिद्वार कुंभ मेले में भगदड़ से 450 से भी ज्यादा तीर्थयात्रियों की मौत हुई थी। 1000 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। 1840 के प्रयाग कुंभ मेले में 50 से अधिक मौतें हुईं। 1906 के प्रयाग कुम्भ मेले में तो भगदड़ से 50 से ज्यादा लोग मारे गए थे। आजादी के बाद 1954 के कुंभ में सबसे ज्यादा लोगों की जान गई थी। प्रयाग की स्थानीय अमृत बाजार पत्रिका अखबार के मुताबिक तब 1000 से ज्यादा लोगों की जान भगदड़ की वजह से गई थी। हरिद्वार कुंभ में मुख्यमंत्री के स्नान के लिए रास्ता रोका, भगदड़ में 50 मरे 14 अप्रैल 1986, हरिद्वार कुंभ खत्म होने को था। तब हरिद्वार यूपी का हिस्सा था। सुबह का वक्त था। यूपी के मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ स्नान करने हर की पैड़ी पहुंच गए। उनके स्नान के लिए रास्ता सवा तीन घंटे बंद रखा गया। तब हर की पैड़ी जाने के लिए एक संकरे पुल के ऊपर से जाना होता था। रास्ता रोके जाने की वजह से भीड़ पुल पर जमने लगी। जब सीएम के स्नान के बाद रास्ता खोला गया तो भीड़ बेकाबू हो गई। लोग एक-दूसरे के ऊपर गिरने लगे। भगदड़ मच गई। करीब 50 लोग कुचलकर मारे गए। इनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे। कुछ लोगों की मौत दम घुटने की वजह से भी हुई थी। साधु ने चांदी के सिक्के उछाले, भगदड़ में 39 मारे गए 27 अगस्त, 2003, महाराष्ट्र के नासिक में कुंभ लगा था। वहां रामकुंड की ओर जाने वाले तीर्थ यात्रियों को बैरिकेड्स लगाकर रोका गया था। करीब 30 हजार श्रद्धालु संकरी गली में फंसे थे। इसी बीच एक साधु ने चांदी के सिक्के उछाल दिए। सिक्के लूटने के चक्कर में लोग एक-दूसरे पर चढ़ने लगे। कुछ लोगों के बीच मार-पीट भी हो गई। इससे भगदड़ मच गई। 39 लोगों की जान चली गई। 140 से ज्यादा लोग हादसे में घायल हो गए। ----------------------------------------------- महाकुंभ से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... नेहरू के लिए भगदड़ मची, 1000 लोग मारे गए:सैकड़ों शव जला दिए गए; फटे कपड़े में पहुंचे फोटोग्राफर ने चुपके से खींची तस्वीर साल 1954, आजाद भारत का पहला कुंभ इलाहाबाद यानी अब के प्रयागराज में लगा। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या थी। मेले में खबर फैली कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आ रहे हैं। उन्हें देखने के लिए भीड़ टूट पड़ी। जो एक बार गिरा, वो फिर उठ नहीं सका। एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए। सरकार ने कहा कि कोई हादसा नहीं हुआ, लेकिन एक फोटोग्राफर ने चुपके से तस्वीर खींच ली थी। अगले दिन अखबार में वो तस्वीर छप गई। पढ़िए पूरी खबर... नागा बनने के लिए 108 बार डुबकी, खुद का पिंडदान:पुरुषों की नस खींची जाती है; महिलाओं को देनी पड़ती है ब्रह्मचर्य की परीक्षा नागा साधु कोडवर्ड में बातें करते हैं। इसके पीछे दो वजह हैं। पहली- कोई फर्जी नागा इनके अखाड़े में शामिल नहीं हो पाए। दूसरी- मुगलों और अंग्रेजों के वक्त अपनी सूचनाएं गुप्त रखने के लिए यह कोड वर्ड में बात करते थे। धीरे-धीरे ये कोर्ड वर्ड इनकी भाषा बन गई। पढ़िए पूरी खबर...
‘दिल्ली सरकार की OBC लिस्ट में जाट समाज का नाम आता है। केंद्र सरकार की OBC लिस्ट में नहीं आता। बच्चे केंद्र के कॉलेज या यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने जाते हैं, तो उन्हें रिजर्वेशन नहीं मिलता। दिल्ली पुलिस या DDA की नौकरी में रिजर्वेशन नहीं मिलता। इंट्रेस्टिंग बात ये है कि राजस्थान के जाट समाज के बच्चों को दिल्ली के कॉलेजों में रिजर्वेशन मिलता है, लेकिन दिल्ली के जाट समाज को नहीं।’ दिल्ली के पूर्व CM अरविंद केजरीवाल ने चुनाव से पहले जाट रिजर्वेशन का मुद्दा उठाया है। ऊपर लिखी बात उन्होंने 9 जनवरी को एक कार्यक्रम में कही थी। इससे एक दिन पहले 8 जनवरी को उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेटर लिखा था, उसमें भी यही मुद्दा उठाया। केजरीवाल भले जाट आरक्षण की बात कर रहे हैं, लेकिन मटियाला गांव के रहने वाले पवन के लिए जाट नेता कैलाश गहलोत का अपमान ज्यादा बड़ा मसला है। गहलोत AAP सरकार में मंत्री थे, फिर BJP में आ गए। पवन कहते हैं, 'हमने टीवी पर कैलाश गहलोत के इंटरव्यू सुने हैं। वे परेशान होकर BJP में चले गए। उनके सम्मान को ठेस पहुंचाई गई। केजरीवाल जेल से बाहर आए तो हर मंत्री से हाथ मिलाया, लेकिन कैलाश गहलोत से हाथ नहीं मिलाया।’ दिल्ली के 364 गांवों में 225 गांव जाट आबादी वालेदिल्ली के 364 गांवों में से 225 में जाटों की आबादी सबसे ज्यादा है। दूसरी बड़ी आबादी गुर्जर है, जिनका 70 गांवों में दबदबा है। जाट और गुर्जर वोटर दिल्ली की करीब 50 सीटों पर असर डालते हैं। 20 सीटों पर हार-जीत का फैसला करते हैं। इनकी मांग है कि इस बार जिसकी भी सरकार बने, CM दिल्ली वाला ही होना चाहिए। दिल्ली में पैदा हुए पिछले CM BJP के साहिब सिंह वर्मा थे, जो 1996 से 1998 तक मुख्यमंत्री रहे थे। दिल्ली में 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। रिजल्ट 8 फरवरी को आएगा। राजधानी दिल्ली की पावर पॉलिटिक्स में गांवों का रोल समझने दैनिक भास्कर ग्राउंड पर पहुंचा। यहां के लोगों के अलावा पार्टी लीडर्स और एक्सपर्ट्स से बात की। AAP के पास बड़ा जाट चेहरा नहीं, BJP के पास कई नेताआम आदमी पार्टी भले जाट वोटर्स पर फोकस कर रही है, लेकिन उसके पास कोई बड़ा जाट चेहरा नहीं है। पार्टी के सीनियर लीडर और मंत्री रहे कैलाश गहलोत BJP में जा चुके हैं। BJP के पास प्रवेश वर्मा जैसा पॉपुलर फेस है। BJP ने अब तक घोषित किए 68 कैंडिडेट्स में 20% से ज्यादा टिकट जाट नेताओं को दिए हैं। गुर्जर समुदाय को अपनी तरफ करने के लिए दो बार सांसद रह चुके रमेश बिधूड़ी को आगे किया है। हालांकि BJP ने CM फेस का ऐलान नहीं किया है। उसने हर सीट पर स्ट्रैटजी के तहत पोस्टर लगाए हैं। जाट आबादी वाली बिजवासन, नांगलोई, विकासपुरी, मटियाला और मुंडका सीटों पर प्रवेश वर्मा और BJP सांसद कमलजीत सेहरावत की फोटो लगी हैं। छतरपुर, बदरपुर, करावलनगर और तुगलकाबाद जैसी गुर्जर आबादी वाली सीटों पर रमेश बिधूड़ी के पोस्टर हैं। जाट-गुर्जरों की मांग दिल्ली का CM दिल्लीवाला ही बनेदिसंबर, 2024 में दिल्ली के 364 गांवों और 36 बिरादरी के लोगों ने मंगोलपुरी में महापंचायत की थी। यहां के लोग हाउस टैक्स और सरकार की ओर से अधिग्रहीत जमीन के मुआवजे जैसे मुद्दे उठा रहे हैं। ये मुद्दे जाट, गुर्जर और यादव वोटर्स के लिए अहम हैं। दैनिक भास्कर तुगलकाबाद, छतरपुर, मटियाला, पालम और नांगलोई जैसी जाट और गुर्जर बहुल सीटों पर पहुंचा। यहां हर सीट पर अलग मुद्दे हैं। मटियाला सीट का मुद्दा: AAP में कैलाश गहलोत का अपमानमटियाला जाटों का गांव है। इसी नाम से सीट भी है। यहां जाट और यूपी के पूर्वांचल से आने वाले वोटर रहते हैं। हमने मटियाला में रहने वाले पवन से बात की। वे जाट नेता कैलाश गहलोत के समर्थक हैं। पवन कहते हैं, 'कैलाश गहलोत ने बताया है कि पार्टी के नेताओं ने कई घोटाले किए। 10 साल काम नहीं किया, सिर्फ LG से लड़ते रहे। अगर AAP की सरकार आ भी गई तो उनके और LG के बीच लड़ाई होती रहेगी। हम इस लड़ाई से छुटकारा चाहते हैं।' सुरेंदर कुमार दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। वे कहते हैं, 'जाट उतने पढ़े-लिखे नहीं थे। इसलिए वोट डालना या न डालना इतना सीरियसली नहीं लेते। दिल्ली के गांव के इलाके न शहरी हो पाए और न पूरी तरह गांव रह पाए हैं। हमारे विधायक AAP के गुलाब सिंह हैं। उन्हें दिल्ली में अपने एरिया में रहकर काम करने चाहिए थे। केजरीवाल ने उन्हें प्रभारी बनाकर गुजरात भेज दिया।’ दूसरा मुद्दा: महंगी बिजलीसीट: पालममटियाला के बाद हम पालम गांव पहुंचे। इस सीट से 2020 में AAP की भावना गौड़ ने चुनाव जीता था। इस बार AAP ने उनकी जगह जोगिंदर सोलंकी और BJP ने कुलदीप सोलंकी को टिकट दिया है। दोनों जाट समुदाय से हैं। पालम में हमें सुखबीर सिंह सोलंकी मिले। उनका घर जोगिंदर सोलंकी के ऑफिस से 10 कदम दूर है। सुखबीर कहते हैं, 'बिजली और महंगाई का मुद्दा सबसे बड़ा है। बिजली का बिल बहुत बढ़ गया है। कॉमर्शियल बिजली के रेट 8 रुपए से 22 रुपए यूनिट हो गए। घरेलू बिजली भी 6 से 8 रुपए यूनिट हो गई। बिजली कंपनियों के साथ मिलकर लोगों को लूटा जा रहा है। मिडिल क्लास वाले परेशान हैं। ’ ‘यूपी और बिहार के लोग दिल्ली आ जाते हैं। वे सड़कों और फुटपाथ पर कब्जा कर लेते हैं। रेहड़ी लगाते हैं। उनके आते ही SDM उनके आधार कार्ड और वोटर कार्ड बना देते हैं। केजरीवाल यही राजनीति कर रहे हैं। गांव के लोग खेती करते थे। उनकी जमीन छीन ली गई।' सुखबीर आगे कहते हैं, 'साहिब सिंह वर्मा के बाद दिल्ली का मूल निवासी कभी मुख्यमंत्री नहीं रहा। BJP के बारे में कह रहे हैं कि वो साहिब सिंह के बेटे प्रवेश सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाएगी। कांग्रेस में ऐसा ही संदीप दीक्षित के बारे में कहा जा रहा है।’ तीसरा मुद्दा: सेना में गुर्जरों के लिए अलग रेजिमेंटपालम से हम दिल्ली के फतेहपुर गांव गए। यहां प्रवेश वर्मा की बजाय रमेश बिधूड़ी की फोटो लगी हैं। ये खेत वाला एरिया है। ज्यादातर में फार्महाउस बन गए हैं। अंग्रेजों ने कभी गुर्जरों को क्रिमिनल कास्ट घोषित कर दिया था। आजादी के बाद सरदार पटेल ने इसे हटा दिया था। यहां के लड़कों में बॉडी-बिल्डिंग का क्रेज है। इनमें कई लोग बाउंसर का काम करते हैं। यहां के भगवत चौधरी कहते हैं, 'हमारे खेत में ट्यूबवेल लगी है। इसलिए खेत में पानी दे पाते हैं। यहां का पानी इतना गंदा है कि खेत में नहीं दे सकते। हम मिलिट्री में अपनी बटालियन चाहते हैं। आर्मी में राजपूत और जाट यूनिट हैं, हमें गुर्जर रेजिमेंट भी चाहिए।' बलराज प्रधान 12 गुर्जर गांवों के चौधरी हैं। वे बताते हैं, 'दिल्ली गुर्जरों की ही थी। हमारे दिल्ली में करीब 100 गांव हैं। हर बार समुदाय के 4-5 विधायक बनते हैं।' 'गांव के लोगों के साथ बहुत बुरा हुआ है। हमारे पास जमीन है। 1908 में लाल डोरा सर्टिफिकेट बना। उसके बाद कभी उसका विस्तार नहीं हुआ। खेती की जमीन पर मकान बनाए गए। हम जमींदार होकर भी अपनी जमीन पर खेती नहीं कर सकते। जमीन में पानी नहीं है। सरकार कोई ट्यूबवेल भी नहीं लगाती।’ बलराज प्रधान आगे कहते हैं, ‘मजबूरी में हमें खेतों की जमीन पर गोदाम बनाने पड़े। हम गोदाम बना लें तो अगले दिन सरकार का नोटिस आ जाता है। सरकार हमें पानी नहीं देती। दिल्ली में रिश्वत बहुत है। एक बोरवेल लगवाने के लिए 36 लाख रुपए रिश्वत देनी पड़ती है। हमने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन भी किया।' '1857 में हम अंग्रेजों से लड़े थे। तब देश में फतेहपुर को छोड़कर कहीं भी पुलिस चौकी नहीं थी। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां के 12 लोग अंग्रेजों के खिलाफ बगावत पर उतर आए थे। इस इलाके में लोग हमेशा से पहलवानी करते आए हैं। अब लड़के बॉडी-बिल्डर बन गए हैं। ये लोग होटल और कई संस्थानों में सिक्योरिटी का काम संभालते हैं।' 'जाटों को OBC में लाने की बात हो रही है। गुर्जर पहले से OBC में हैं। AAP जाटों को गुर्जर की बराबरी पर लाने के नाम पर लड़ा रही है, लेकिन हम बंटेंगे नहीं। ये तय है कि इससे आम आदमी पार्टी को नुकसान होगा।’ जाटों को आरक्षण मिलता भी है तो हमें कोई आपत्ति नहीं है। वो हमारे भाई हैं। OBC को कोई खास फायदा नहीं मिलता, जितना SC/ST को मिलता है। चुनाव के बीच ऐसी बातें लाने का कोई फायदा नहीं मिलेगा। 'हम तो पूरे साल केजरीवाल के खिलाफ प्रदर्शन करते रहे। उसने हमारी कोई बात नहीं मानी। LG ने हमे सीलिंग में राहत दी। हम केजरीवाल जी से मिले थे, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। अगर BJP प्रवेश वर्मा या रमेश बिधूड़ी को CM बनाती है, तो खुशी होगी।' ‘गांव स्लम में बदले, यहां अब कुछ नहीं बचा’ इसके बाद हम 360 गांवों के प्रधान सुरेंदर सोलंकी से मिले। वे कहते हैं, 'हम दो साल से पंचायतें कर रहे हैं। गांवों के हालात बदतर हो रहे हैं। कोई सुनवाई करने वाला नहीं है। हमने मंगोलपुरी की पंचायत में फैसला लिया कि दिल्ली के गांव और 36 बिरादरी के लोग उसे समर्थन देंगे, जो हमारी बात करेगा।' '28 साल से दिल्ली का मूल निवासी मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है। हर राज्य के लोग चाहते हैं कि वहीं का बाशिंदा CM बने। दिल्ली के लोग भी यही चाहते हैं। बाहर के लोग चुनाव से पहले वादे करते हैं। कुर्सी पर बैठने के बाद भूल जाते हैं।’ सुरेंदर आगे कहते हैं, 'हमारे समुदाय के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्मप्रकाश और आखिरी मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ही थे। BJP ने उन्हें CM पद से हटा दिया था। तब हमने कंझावला में महापंचायत की थी। उस वक्त मेरे दादाजी जगराम सोलंकी प्रधान थे।’ ‘पंचायत में कहा गया कि BJP को यह गलती भारी पड़ेगी। हो सकता है भविष्य में दिल्ली में उसका कोई मुख्यमंत्री न बने। यह बात सच हुई। पिछले 28 साल से BJP वजूद ही तलाश रही है। हमें केजरीवाल से कोई उम्मीद नहीं है। कांग्रेस मुकाबले में नहीं है। अगर BJP चुनाव जीतना चाहती है तो CM के लिए देहात में रहने वाले किसी नाम की घोषणा करे।' गांवों में 2 साल से BJP और RSS एक्टिव 2021 में फतेहपुर में गुर्जर समाज ने 7 राजाओं भोज परमार, पृथ्वीराज चौहान, वनराज चावड़ा, भीमदेव सोलंकी, अनंगपाल तंवर, विद्याधर चंदेला और धन सिंह गुर्जर की मूर्तियां लगाई थीं। अब यहां 40 मूर्तियां लगी हैं। इस इलाके में RSS भी एक्टिव रहा है। RSS महिलाओं को कोई काम शुरू करने के लिए 50 हजार रुपए देता है। महिलाएं ये पैसा दो साल बाद लौटा सकती हैं। दो साल से BJP राजा सूरजमल के बलिदान दिवस पर बड़े कार्यक्रम करती है। राजा सूरजमल जाट समुदाय से थे। जनकपुरी में उनके नाम से एक कॉलेज भी है। एक्सपर्ट बोले- AAP को जाटों के दूर होने का डरसीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट सुनील कश्यप कहते हैं, 'जाट आरक्षण के लिए आंदोलन होते रहे हैं। वे केंद्र की OBC लिस्ट में आना चाहते हैं। आरक्षण के लिए हरियाणा, पश्चिमी यूपी और दिल्ली के जाटों में सेंटिमेंट जरूर है। केजरीवाल यही बात कर रहे हैं।’ सुनील कश्यप आगे कहते हैं, 'BJP ने जाट लीडरशिप बनाने में लंबा समय लगाया। उसके सबसे बड़े जाट लीडर साहिब सिंह वर्मा थे। उनके बेटे प्रवेश सिंह वर्मा को टिकट देकर लोकसभा भेजा। केजरीवाल ने ही प्रवेश वर्मा के बारे में ऐसे बयान दिए कि लगे अगर BJP सरकार में आई तो प्रवेश वर्मा मुख्यमंत्री होंगे।’ ‘AAP के एंटी BJP कैंपेन में भी दो ही चेहरे दिखते हैं। रमेश बिधूड़ी और प्रवेश वर्मा। एक गुर्जर हैं, दूसरे जाट। इनके गांव भी ज्यादा है। लंबे समय से जाटों की लीडरशिप नहीं है।' 'एक और मामला हुआ था। 15 अगस्त को झंडा फहराना था। अरविंद केजरीवाल जेल में थे। इस बार दिल्ली विधानसभा पर कैलाश गहलोत ने झंडा फहराया था। कुछ दिन बाद गहलोत BJP में चले गए। वे AAP के बड़े जाट नेता हैं। उन्हें नजरअंदाज करने से जाटों में नाराजगी है।' 'AAP के पास जाट और गुर्जर नेताओं में आरके पुरम से प्रमिला टोकस और नांगलोई से रघुविंदर शौकीन हैं। जाटों को नहीं लगता, उनसे कुछ हो पाएगा। अगर उन्हें ऐसा लगता तो वे पंचायत न करते। इन वजहों से 20 से 25 सीटें प्रभावित हो सकती हैं।' ..............................दिल्ली चुनाव को लेकर AAP और BJP की स्ट्रैटजी भी पढ़ें... 1. BJP ने 30 SC बहुल सीटों पर लगाए 45000 कार्यकर्ता, अंबेडकर-संविधान पर जोर BJP का दलित वोटर्स वाली सीटों पर ज्यादा फोकस है। दलितों के हिसाब से मुद्दों की लिस्ट बनाई जा रही है। बूथ लेवल पर 45 हजार से ज्यादा कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। दिल्ली में 70 सीटों पर 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव होने हैं। दिल्ली में करीब 18% यानी 44 लाख दलित वोटर्स है। BJP की इन्हें साधने की कवायद का बहुत असर नहीं दिख रहा। पढ़िए पूरी खबर... 2. केजरीवाल ने 1000 वोटर्स पर लगाए 12 कार्यकर्ता, बस्तियों में फ्री बिजली-इलाज का वादा दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता हर रोज दो टीमें बनाकर निकलते हैं। एक टीम ऐसे इलाके में जाती है, जहां जरूरतमंद लोग रह रहे हों। उनके बीच जाकर कार्यकर्ता सरकारी स्कीम जैसे फ्री बिजली-पानी और इलाज की बातें करते हैं। दूसरी टीम ऐसे इलाकों में जाती है, जहां अमीर लोग रहते हैं। ये विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी की स्ट्रैटजी है। पढ़िए पूरी खबर...
जापान गजब है! बैंक में चोरी हुई तो अधिकारियों ने अपनी सैलरी कटवा कर भरा हर्जाना
Japan News:जापान की प्रमुख बैंकों में से एक एमयूएफजी बैंक की दो अलग-अलग शाखाओं में कर्मचारियों ने ग्रहाकों के लॉकर्स से करीब चार साल तक चोरी की घटनाओं को अंजाम दिया. पुलिस ने 90 लाख अमेरिकी डॉलर चुराने के आरोप में कर्मचारी को गिरफ्तार कर लिया है.
भारत से पंगा कनाडा के ट्रूडो को पड़ा इतना भारी! PM की कुर्सी गई, अब राजनीति से लेंगे संन्यास !
Justin Trudea News:कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाल ही में पार्टी द्वारा नेता चुने जाने के बाद ऐलान किया था कि वे कनाडा के पीएम के रूप में पद छोड़ देंगे. अब उन्होंने एक और हैरान कर देने वाला फैसला लेते हुए राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी है.
Republic Day Parade 2025:इस बार गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के प्रेसिडेंट प्रबोवो सुबिआंतो शिरकत करेंगे.खास बात यह है कि इंडोनेशियाई प्रेसिडेंट के साथ उनकी सेना भी गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा लेगी. इसके लिए इंडोनेशिया की सैनिकों ने तैयारी भी शुरू कर दी है.
बॉलीवुड एक्टर सैफ अली खान पर बुधवार देर रात करीब 2:30 बजे चाकू से 6 बार हमला हुआ है। सैफ पर ये हमला उनके मुंबई में खार स्थित घर पर हुआ। देर रात तीन बजे सैफ को लीलावती हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। उनके गले, पीठ, हाथ, सिर पर चाकू लगा है। दो घाव ज्यादा गहरे थे, जिसकी वजह से सर्जरी भी करनी पड़ी। सैफ अली खान एक एक्टर होने के साथ-साथ पटौदी घराने के 10वें नवाब भी हैं। सैफ के पिता नवाब मंसूर अली खान पटौदी जाने-माने क्रिकेटर थे। वे इंडियन क्रिकेट टीम के यंगेस्ट कैप्टन रहे। सैफ अली खान की कुल संपत्ति करीब 1200 करोड़ रुपए है। सैफ के पास कई आलीशान घर हैं। उनके पास गुरुग्राम में पटौदी पैलेस, बांद्रा में दो आलीशान घर हैं। हरियाणा के गुरुग्राम में बना उनका पैतृक पटौदी पैलेस सबसे खास है। पटौदी पैलेस की कीमत तकरीबन 800 करोड़ रुपए है। जिसमें राजशाही की झलक साफ दिखती है। पिछले कुछ सालों में उनकी संपत्ति में 70% तक का इजाफा हुआ है। सैफ ने एक इंटरव्यू में बताया था कि पिता की मौत के बाद पटौदी पैलेस नीमराणा होटल्स के पास लीज पर चला गया था। 2014 तक पैलेस को एक लग्जरी प्रॉपर्टी के रूप में ऑपरेट किया गया। जिसके बाद सैफ ने 800 करोड़ रुपए चुकाकर पैलेस को वापस लिया। बांद्रा में लग्जरी अपार्टमेंट सैफ और करीना दोनों बेटों के साथ मुंबई के बांद्रा स्थित सतगुरु शरण अपार्टमेंट में रहते हैं। इस चार मंजिला अपार्टमेंट के हर फ्लोर पर तीन बेड रूम और आलीशान हॉल है। सैफ की दोस्त और फेमस इंटीरियर डिजाइनर दर्शिनी शाह ने इसे डिजाइन किया है। पुराने घर की तरह सैफ के नए घर में भी लाइब्रेरी, आर्ट वर्क, खूबसूरत छत और स्विमिंग पूल है। शाही लुक देने के लिए इस अपार्टमेंट को वाइट और ब्राउन कलर से सजाया गया है। बच्चों के लिए नर्सरी और एक थिएटर स्पेस भी है। जहां 11 साल रहे, अब रेंट पर लगाया सैफ, करीना से शादी करने के बाद बांद्रा के फॉर्च्यून हाइट्स में रह रहे थे। दोनों लगभग 11 साल तक इस घर में रहे, लेकिन दूसरे बेटे जेह के जन्म से ठीक पहले फॉर्च्यून हाइट्स से नए अपार्टमेंट में शिफ्ट हो गए। जिसके बाद उन्होंने अपने घर को रेंट पर दे दिया। 1500 स्क्वायर फीट के इस अपार्टमेंट को 15 लाख की सिक्योरिटी डिपॉजिट के साथ 3.5 लाख रुपए मंथली रेंट पर दिया है। 2013 में इस घर की कीमत तकरीबन 50 करोड़ रुपए थी। स्विट्जरलैंड में 33 करोड़ का घर सैफ के पास दुनिया की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक स्विट्जरलैंड में भी घर है। यह आलीशान घर बर्फ की ऊंची पहाड़ियों और हरे-भरे मैदान के बीच जन्नत का एहसास दिलाता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस घर की कीमत 33 करोड़ रुपए है। घर पर बैठे हुए भी 3 बार घड़ी बदल लेता हूं- सैफ सैफ को बचपन से ही घड़ियों का शौक रहा है। उनको पहली वॉच पिता मंसूर अली खान ने दिया था। सैफ को वॉच से इतना लगाव है कि वे हर प्रोजेक्ट से पहले ऐसी घड़ी खरीदते हैं, जो फिल्म और किरदार के हिसाब से हो। सैफ ने एक इंटरव्यू में कहा था कि कभी-कभी घर पर बैठे-बैठे ही मैं दिन में तीन बार घड़ी बदल लेता हूं। सैफ को डायमंड भी काफी पसंद है। एंगेजमेंट पर करीना को 5 कैरेट प्लेटिनम बैंड डायमंड रिंग गिफ्ट की थी। जिसकी कीमत 75 लाख रुपए बताई जाती है। मालदीव में एक रात रुकने के लिए खर्च कर दिए 18 लाख रुपए सैफ हर साल परिवार के साथ छुट्टियों पर जाते हैं। 2022 में वह करीना और बच्चों के साथ मालदीव गए थे। सैफ यहां सोनेवा फुशी नाम के विला में रुके थे। इस फाइव स्टार विला में एक रात बिताने लिए उन्हें तकरीबन 18 लाख रुपए खर्च करने पड़े। इसके अलावा सैफ परिवार के साथ यूरोप में भी छुट्टियां मनाते हैं। जुलाई 2023 में पत्नी करीना और बच्चों के साथ इटली गए थे। अपने विदेशी दोस्तों के साथ करीना ने लंच करते हुए तस्वीर भी साझा की थी। सैफ ने यहां एक दिन रुकने के लिए दो लाख रुपए खर्च किए। हाल ही में वह परिवार के साथ समर वैकेशन मनाने ग्रीस गए थे। सैफ अली खान की पहली पसंद ऑडी R8, कीमत - 2.37 करोड़ सैफ अली खान लग्जरी और तेज रफ्तार कारों के शौकीन हैं। उनके गैराज में कई शानदार कार मौजूद हैं। ऑडी R8 स्पाइडर, मर्सिडीज बेंज एस-क्लास, रेंज रोवर वोग, लैंड रोवर डिफेंडर, फोर्ड मस्टैंग और जीप रैंगलर जैसी कार उनके गैराज में पार्क हैं। खुद का ब्रांड खड़ा कियासैफ अली खान का खुद का ऐपरल ब्रांड भी है। उन्होंने 2018 में हाउस ऑफ पटौदी के नाम से एक ब्रांड लॉन्च किया था। यह एक एथनिक वियर फैशनेबल ब्रांड है। जिसे मिंत्रा के साथ मिलकर ऑनलाइन लॉन्च किया गया था। इसमें ड्रेस, फुटवियर और होम डेकोर के 2500-3000 से ज्यादा स्टाइल मौजूद हैं। 2022 में कंपनी ने मुंबई में पहला ऑफलाइन स्टोर खोला था। ----------------------------------- सैफ अली खान से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... सैफ अली खान पर घर में घुसकर हमला:रीढ़ की हड्डी में फंसा था चाकू का टुकड़ा, हाथ-कंधे की भी सर्जरी हुई; एक आरोपी की पहचान
25 जनवरी 2023। अमेरिकी इन्वेस्टमेंट रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट पब्लिश की। रिपोर्ट का टाइटल था- दुनिया का तीसरा सबसे अमीर आदमी किस तरह कॉर्पोरेट इतिहास का सबसे बड़ा धोखा कर रहा है इस रिपोर्ट में भारत के अडाणी ग्रुप पर हैसियत से ज्यादा कर्ज लेने, शेयर मार्केट और इन्वेस्टमेंट में हेराफेरी का आरोप लगाया गया। इसके बाद अडाणी ग्रुप को करीब 7 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। अब हिंडनबर्ग रिसर्च बंद होने जा रही है। 15 जनवरी 2025 की देर रात कंपनी के मालिक नाथन एंडरसन ने ये ऐलान किया। उन्होंने कहा, कंपनी बंद करने का फैसला काफी बातचीत और सोच कर लिया है। हमने उन एम्पायर्स को हिला दिया, जिन्हें हिलाने की जरूरत थी। भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि हिंडनबर्ग कंपनी क्यों बंद हो रही है और इसकी पूरी कहानी… सवाल-1: आखिर क्यों हिंडनबर्ग बंद होने जा रही है? जवाब: हिंडनबर्ग रिसर्च के फाउंडर नाथन एंडरसन ने 15 जनवरी 2025 की देर रात एक नोट जारी किया, लेकिन इसे बंद करने की खास वजह नहीं बताई। उन्होंने लिखा, ‘कोई खास बात नहीं है- कोई खास खतरा नहीं, कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं और कोई बड़ा व्यक्तिगत मुद्दा नहीं है।’ वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए इंटरव्यू में एंडरसन ने कहा, ‘मुझे लगता है कि मैंने और हिंडनबर्ग ने वो सब हासिल कर लिया है जो हमने टारगेटकिया था। पब्लिक और प्राइवेट मार्केट में धोखाधड़ी, हेराफेरी जैसे मुद्दों का पता लगाकर बिजनेस बनाना मुमकिन है। मुझे उम्मीद है कि हम जल्द ही कंपनी से जुड़ी चीजें साझा करेंगे ताकि दूसरे लोग हिंडनबर्ग की स्ट्रैटजी का इस्तेमाल कर सकें।’ एंडरसन ने कहा, ‘मैंने पिछले 8 साल में ज्यादा समय या तो किसी लड़ाई में या अगली लड़ाई की तैयारी में बिताया है। अब मैं अपने शौक पूरे करने, घूमने, अपनी मंगेतर और बच्चे के साथ समय बिताने के लिए उत्सुक हूं। मैंने फ्यूचर के लिए काफी पैसा कमा लिया है।’ सवाल-2: हिंडनबर्ग कब शुरू हुई और ये क्या काम करती थी? जवाब: फाइनेंस और डेटा एनालिस्ट की नौकरी करते हुए नाथन एंडरसन समझ चुके थे कि शेयर मार्केट और कंपनियों में काफी कुछ ऐसा हो रहा है जो आम लोगों की समझ से बाहर है। नतीजतन एंडरसन के दिमाग में फाइनेंशियल रिसर्च कंपनी शुरू करने का आइडिया आया। इसका परिणाम 2017 में दिखा जब एंडरसन ने ‘हिंडनबर्ग’ नाम से इस कंपनी की शुरुआत की। एंडरसन ने कंपनी का नाम एक एयर स्पेसशिप क्रैश पर रखा था। दरअसल, 6 मई 1937 को ब्रिटेन के मैनचेस्टर शहर में 'हिंडनबर्ग' नाम का एक जर्मन एयर स्पेसशिप उड़ान भरते समय हवा में ही क्रैश हो गया। इस हादसे में 35 लोगों की मौत हुई थी। जांच रिपोर्ट में पता चला कि कंपनी ने नियमों का पालन किए बिना क्षमता से ज्यादा लोगों को इस विमान में बैठा दिया था। 80 साल पुरानी घटना ने एंडरसन के दिलोदिमाग पर गहरा असर छोड़ा था। उनका मानना था कि स्पेसशिप कंपनी पहले की घटनाओं से सीखकर इस हादसे को टाल सकती थी। अपनी कंपनी का नाम भी ‘हिंडनबर्ग’ नाम रखने के पीछे उनका मकसद था- हिंडनबर्ग की तर्ज पर शेयर मार्केट में मुनाफा कमाने के लिए हो रही गड़बड़ियों पर नजर रखकर उनकी पोल खोलना। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, हिंडनबर्ग में ब्लूमबर्ग और सीएनएन जैसे मीडिया ऑर्गनाइजेशन के पूर्व पत्रकार और एनालिस्ट काम करते थे। पूरी टीम में कुल 11 लोग थे, जो 6 महीने या उससे ज्यादा समय में एक डिटेल्ड रिसर्च रिपोर्ट तैयार करते थे। हिंडनबर्ग को करीब 10 अमीर निवेशक फर्में पैसा देती थीं। इनमें से कुछ हिंडनबर्ग के साथ मार्केट में पैसा भी लगाती थीं। हालांकि एंडरसन ने अपने इन्वेस्टर्स के नाम बताने से इनकार कर दिया था। उन्होंने अपनी फर्म के बारे में कहा, ‘यह एक सफल फर्म बन गई है, लेकिन शुरुआत में यह अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल था कि इससे कुछ भी हासिल होगा।’ सवाल-3: हिंडनबर्ग के फाउंडर नाथन एंडरसन कौन हैं? जवाब: 39 साल के नाथन एंडरसन एक प्रोफेसर और एक नर्स के बेटे हैं। उनका बचपन अमेरिका के कनेक्टिकट राज्य के एक छोटे शहर में गुजरा। कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी से उन्होंने इंटरनेशनल बिजनेस सब्जेक्ट में ग्रेजुएशन किया। कॉलेज के दौरान कुछ समय के लिए एंडरसन इजराइल में रहे। यहां उन्होंने हिब्रू यूनिवर्सिटी में क्लास लेते हुए पैरामेडिक स्टाफ के तौर पर काम किया। कॉलेज के बाद एंडरसन ने नौकरी तलाशी। 'फैक्टसेट' नाम की फाइनेंशियल एनालिटिक्स कंपनी में पहली नौकरी शुरू हुई। यहां वो कंपनी के क्लाइंट्स को सेल्स और टेक्निकल सलाह देते थे। बाद में उन्होंने अमीर परिवारों की इन्वेस्टमेंट फर्मों के लिए काम किया, जहां वे वित्तीय लेने-देन की ऑडिटिंग और वेरिफिकेशन करते थे। नौकरी करते हुए एंडरसन ने डेटा और शेयर मार्केट की बारीकियों को समझा। उन्हें इस बात का अंदाजा था कि शेयर मार्केट दुनिया के पूंजीपतियों का सबसे बड़ा अड्डा है। शुरुआत में उन्होंने शेयर मार्केट में निवेश में गड़बड़ियों पर नजर बनाई। कभी-कभी वे मशहूर फोरेंसिक अकाउंटेंट हैरी मार्कोपोलोस के साथ काम करते। एंडरसन ने उन्हें अपना रोल मॉडल माना। 2017 में उन्होंने ‘हिंडनबर्ग’ की शुरुआत कर दी। न्यूयॉर्क के मैनहट्टन शहर के मिडटाउन इलाके में 'वीवर्क' का दफ्तर था, यहां से काम करते हुए एंडरसन ने छोटी कंपनियों के शेयरों पर दांव खेला। उन्हें पैसों की जरूरत थी। दरअसल इस दौरान उन्होंने कर्ज लिया था, जो बढ़ता जा रहा था। ऐसे में उन्हें मैनहट्टन के अपार्टमेंट से बेदखल किए जाने का खतरा था। यहां वो अपनी गर्लफ्रेंड के साथ रहते थे। दिसंबर 2018 में एंडरसन की किस्मत चमकी। मेडिकल कंपनी 'एफ्रिया' पर उन्होंने एक रिपोर्ट लिखी और कंपनी पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए। रिपोर्ट पब्लिश होने के बाद एफ्रिया के शेयरों में 30% की गिरावट आई। इस दौरान एंडरसन ने शेयर मार्केट से मुनाफा कमाया। तब एंडरसन को अपार्टमेंट से निकाले जाने का खतरा था। इसे लेकर उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, 'अगर ये फेल हो जाता तो उन्हें भरोसेमंद और निश्चित इनकम वाली एक 'असली नौकरी' ढूंढनी पड़ती। सवाल-4: हिंडनबर्ग कमाई कैसे करती थी? जवाब: हिंडनबर्ग जिस कंपनी के खिलाफ रिपोर्ट पब्लिश करती थी, उसी में ‘शॉर्ट पोजिशन’ बनाए रखती थी। 2023 में अडाणी ग्रुप पर आई ‘हिंडनबर्ग’ की रिपोर्ट पढ़ने से साफ पता चला कि इस कंपनी ने जानबूझ कर ये रिपोर्ट अडाणी ग्रुप की कंपनियों के शेयर गिराने के लिए जारी की। ‘हिंडनबर्ग’ ने अडाणी ग्रुप की कंपनियों पर ‘शॉर्ट पोजिशन’ ले रखी थी। शेयर मार्केट से पैसा कमाने के दो मुख्य तरीके हैं… 1. लॉन्ग पोजिशन: मान लीजिए किसी कंपनी या व्यक्ति ने 100 रुपए में किसी कंपनी के शेयर खरीदे और 150 रुपए में बेच दिए। ऐसे में उसे 50 रुपए का लाभ मिलता है। इस तरीके को लॉन्ग पोजिशन कहते हैं। 2. शॉर्ट पोजिशन: मान लीजिए कि हिंडनबर्ग कंपनी ने शेयर मार्केट से जुड़ी किसी A कंपनी से एक महीने के लिए 10 शेयर उधार लिए और B को बेच दिए। इस वक्त बाजार में एक शेयर की कीमत 100 है। उसने उसी कीमत में B को शेयर बेचे हैं। अब हिंडनबर्ग को भरोसा है कि उसकी रिपोर्ट पब्लिश होने के बाद अडाणी के शेयर की कीमत गिरेगी। मान लीजिए रिपोर्ट पब्लिश होते ही अडाणी के एक शेयर का भाव 100 से गिरकर 80 हो गया। ऐसे में हिंडनबर्ग अब बाजार से 80 रुपए में 10 शेयर खरीदकर A कंपनी को लौटा देगा। इस तरह हिंडनबर्ग को एक शेयर पर 20 रुपए तक प्रॉफिट मिलता है। इसे ही शॉर्ट पोजिशन कहते हैं। नाथन एंडरसन की कंपनी ने अडाणी ग्रुप की कंपनी पर यही शॉर्ट पोजिशन दांव खेला, जिसके लिए उसने अपनी दो साल की रिसर्च को आधार बनाया। सवाल-5: हिंडनबर्ग ने किन कंपनियों को अपना शिकार बनाया? जवाब: हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्टों ने भारत के अडाणी ग्रुप और इकान इंटरप्राइजेज समेत कई कंपनियों को अरबों डॉलर का नुकसान पहुंचाया था। अगस्त 2024 में हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) चीफ माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच की अडाणी ग्रुप से जुड़ी ऑफशोर कंपनी में हिस्सेदारी है। हिंडनबर्ग की 2 चर्चित रिपोर्ट्स… निकोला कॉर्पोरेशन (2020): इलेक्ट्रिक ट्रक बनाने वाली अमेरिकी कंपनी निकोला के शेयरों की कीमत तेजी से बढ़ रही थी। तभी सितंबर महीने में निकोला कंपनी को लेकर हिंडनबर्ग ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसके बाद इस कंपनी के शेयर 80% तक टूटे। हिंडनबर्ग ने दावा किया कि निकोला ने अपनी कंपनी और गाड़ियों के बारे में निवेशकों को गलत जानकारी दी थी। इसके बाद अमेरिका के सिक्योरिटी और एक्सचेंज कमीशन (SEC) ने निकोला के मालिक ट्रेवोर मिल्टन के खिलाफ मुकदमा चलाया। दोषी साबित होने पर मिल्टन को 1 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा जुर्माना देना पड़ा था। अडाणी ग्रुप (2023): कुछ समय से अडाणी ग्रुप की कंपनियों के शेयर तेजी से बढ़ रहे थे। ग्रुप के मालिक गौतम अडाणी दुनिया का तीसरे अमीर शख्स बन चुके थे। जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग ने अडाणी ग्रुप पर स्टॉक मार्केट में हेरफेर और अकाउंटिंग में धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए एक रिपोर्ट पब्लिश की। इसके बाद अडाणी ग्रुप को काफी नुकसान हुआ, जिसका अनुमान 100 बिलियन डॉलर से ज्यादा था। एक अनुमान के मुताबिक ये आंकड़ा 7 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा था। इसके बाद अडाणी ग्रुप और SEBI पर सवाल उठे। सवाल-6: हिंडनबर्ग पर किस तरह के आरोप लगते आएं हैं? जवाब: हिंडनबर्ग पर शुरू होने से लेकर आज भी अपनी रिपोर्ट्स और कंट्रोवर्सी को लेकर चर्चा में बनी रहती है। उस पर आरोप लगते हैं कि अपने मुनाफे के लिए कंपनी कई बड़ी कंपनियों के खिलाफ निगेटिव रिपोर्ट्स पब्लिश की। साथ ही कंपनियों के शेयर की कीमतों को कम करन के लिए अपने दावों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया। इसके अलावा कुछ कंपनियों ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों का खंडन किया। कंपनियों ने आरोप लगाया कि हिंडनबर्ग ने ऐसा कर उनकी कंपनी को बदनाम किया। ब्लूमबर्ग के अनुमान के मुताबिक, हिंडनबर्ग ने जब भी किसी कंपनी के खिलाफ निगेटिव रिपोर्ट पेश की, उसके अगले ही दिन उस टारगेटेड कंपनी के शेयर 15% गिर गए। 6 महीने बाद करीब 26% तक की गिरावट हुई। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ लॉ में सिक्योरिटीज लॉ के प्रोफेसर फ्रैंक पार्टनॉय कहते हैं कि नाथन एंडरसन और हिंडनबर्ग एक ‘रियल जाइंट किलर’ हैं यानी बड़े राक्षस को मारने वाला। उसे बड़े-बड़े कॉर्पोरेट और कंपनियों के खिलाफ जाने से भी डर नहीं लगता। ------- अडाणी-SEBI केस से जुड़ी ये भी खबर पढ़िए... भास्कर एक्सप्लेनर- बोफोर्स से हर्षद मेहता स्कैम तक:JPC की जांच के बाद कैसे सरकारें पलटीं; क्या अडाणी-SEBI केस JPC को सौंपेगी सरकार हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद SEBI की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच सवालों में रहीं। विपक्ष अड़ा रहा कि SEBI चीफ और अडाणी मामले पर आरोपों की JPC जांच की जानी चाहिए। कांग्रेस इसे लेकर देशभर में प्रदर्शन किए। दूसरी तरफ BJP ने कहा है कि ये ढकोसला भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए किया जा रहा है। JPC क्या है, विपक्ष इसकी मांग पर क्यों अड़ा? 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Hamas Israel War: हमास और इजराइल की जंग ने गाजा पट्टी तबाह कर दी है. 15 महीने की जंग में हजारों मौतें हो चुकी हैं. वहीं तय माने जा रहे संघर्षविराम समझौते को लेकर नेतन्याहू कह रहे हैं कि अभी भी यह पूरा नहीं हुआ है.
ट्रंप 20 जनवरी को लेंगे शपथ पर भयंकर टेंशन में है ये 3 बच्चों की मां; वजह है खास
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Donald Trump: ग्रीनलैंड के बाद अब ब्रिटिश-इंडियन क्षेत्र पर डोनाल्ड ट्रंप की नजर है. मामले ने ब्रिटेन की राजनीति में भी उथल-पुथल मचा दी है. क्या मॉरीशस भी सहम गया है. आइए इसे समझ लेते हैं कि आखिर ट्रंप को क्या चाहिए.
टीम इंडिया के डाउनफॉल की वजह क्या है, क्या टूर के दौरान खिलाड़ियों की पत्नियां या परिवार उन्हें डिस्ट्रैक्ट करते हैं, क्या फिटनेस टेस्ट को सिलेक्शन प्रक्रिया में फिर से शामिल किया जाएगा, जानेंगे स्पॉटलाइट में
मैं जानती हूं लोग मुझे देखना पसंद नहीं करते। इसलिए हर वक्त मास्क लगा कर रहती हूं। मैं जब छोटी थी तो हर वक्त मास्क लगाकर रहना पसंद नहीं था। हमारे मोहल्ले में कोई मास्क नहीं लगाता, लेकिन मुझे लगाना पड़ता था। काश मैं भी ठीक होती तो बिना मास्क के घूमती। जब भी घर से बाहर निकलती तो लोग मुझे घूर कर देखते हैं। कोई हंसता है तो कोई देखता ही रह जाता। मुझे ऐसा लगता कि मैं उनके बीच की नहीं हूं बल्कि इनसे अलग हूं। कैंसर से ज्यादा परेशान मैं लोगों के सवालों से हो जाती हूं। कभी-कभी लोगों के सवालों से बचने के लिए कह देती हूं कि मुझे टीबी है, फिर वो खुद ही मुझसे दूर भाग जाते हैं। ब्लैकबोर्ड में आज स्याह कहानी उन कैंसर पीड़ितों की जो अपने बदलते लुक्स की वजह से आत्म सम्मान खो देते हैं। शारीरिक बदलाव की वजह से लोगों के बीच असहज महसूस करते हैं… दिल्ली की रहने वाली 15 साल की मुस्कान जब हंसती हैं, तो उसकी बड़ी-बड़ी कजरारी आंखों में एक अलग ही आकर्षण होता है। शायद इसी आकर्षण से मोहित होकर उनकी मां ने मुस्कान नाम दिया होगा। माथे पर लगी छोटी सी काली बिंदी उनके सांवले रंग पर बहुत जंचती है। मुस्कान ने मास्क लगाया हुआ है, लेकिन जब वो मास्क हटाती हैं तो उनकी मुस्कान के पीछे छिपा दर्द साफ नजर आता है। मुस्कान को माउथ कैंसर है। मुस्कान कहती हैं जबसे होश संभाला तब से मुझे कैंसर है। अक्सर मेरे अम्मी-अब्बू में मुझे लेकर खूब लड़ाई हुआ करती थी। अब्बू नहीं चाहते थे कि अम्मी मेरा इलाज करवाएं। अम्मी से कहते थे कि इसका इलाज मत करवा, अगर ये चली भी जाएगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, बाकी और बच्चे भी तो हैं। उनके ये शब्द मैं कभी नहीं भूल सकती। उनकी नजरों में मैने कभी अपने लिए प्यार नहीं देखा। मुस्कान लड़खड़ाती आवाज में कहती हैं कि एक दिन वो मेरी बीमारी के चलते हमें छोड़कर गांव चले गए। वहां दूसरी शादी कर ली। मेरी अम्मी घरों में झाड़ू पोछा लगाकर हम भाई बहनों को पाल रही हैं। एक बाप छोड़कर जा सकता है पर एक मां कभी अपने बच्चे को छोड़कर नहीं जा सकती। अब वही मेरे लिए अम्मी और अब्बू दोनों हैं। मुस्कान कहती हैं, कभी-कभी अपनी मां को देखकर मुझे बहुत दुख होता है। इतना काम करने के बाद भी वो मेरा इलाज करवाने अस्पताल ले जाती हैं और घंटों लाइन में लगी रहती हैं। हर साल ईद पर मुझे बहुत बुरा लगता है, सबके पापा नए कपड़े दिलवाते हैं, घुमाने ले जाते हैं, ईदी देते हैं। मेरे पापा तो कभी फोन तक नहीं करते, पैसे भेजना तो दूर की बात है। अब तक तो हमें वो भूल भी गए होंगे। उनका अब एक अलग परिवार है। आंखों में गहरी उदासी का भाव लिए मुस्कान कहती हैं बचपन से मुझे कैंसर है, इसलिए मैं सामान्य बच्चों की तरह नहीं रह पाती। जब भी मैं पार्क में बच्चों को झूला झूलते देखती हूं तो मुझे बहुत दुख होता है। मेरा मन भी झूलने का करता है, लेकिन मैं झूल नहीं सकती। अगर चोट लग गई तो बहुत दिक्कत हो जाएगी क्योंकि मेरा इलाज चल रहा है। मुस्कान कहती हैं कि हम तीन बहनें और दो भाई हैं। मैं सबसे बड़ी हूं। अपने छोटे बहन-भाई को स्कूल जाते देख मैं अक्सर रोने लगती हूं। उनको पढ़ता देख मेरा भी मन होता है कि मैं भी पेंसिल उठाकर कुछ लिखूं। अम्मी ने 4 बार दिल्ली के अलग-अलग स्कूलों में मेरा एडमिशन करवाने की कोशिश की लेकिन स्कूल वालों ने साफ मना कर दिया। आंखों में आंसू लिए मुस्कान कहती हैं स्कूल में सिर्फ उन बच्चों का एडमिशन होता है जो बिल्कुल ठीक होते हैं। मेरे जैसे बच्चों के लिए कोई स्कूल नहीं है। अगर कभी पढ़ने का मौका मिला तो मैं फौज में जाऊंगी और अपने देश की रक्षा करुंगी। मुझे अच्छा लगता है जब मैं महिलाओं को वर्दी पहन ड्यूटी पर जाते हुए देखती हूं। उम्मीद भरी निगाहों से मुस्कान कहती है कि मैं एक दिन जब ठीक हो जाऊंगी तो खूब खेलूंगी। दूसरी लड़कियों को लिपस्टिक लगाता देख मेरा भी मन करता है। एक दिन मैंने ठान ली कि लिपस्टिक लगाना सीखकर रहूंगी लेकिन अपनी शक्ल शीशे में देखकर मैं फूट-फूटकर रोने लगी। काश मैं भी ठीक होती तो सज-संवर कर रहती। अब मुझे मन मारकर जीने की आदत हो गई है। मेरे मोहल्ले की आंटियां बोलती हैं कि तेरी शादी नहीं होगी, पहले जब हुई थी तो कितनी सुंदर थी और अब कैसी हो गई। मैं घर पर आकर रोने लगती हूं। अम्मी हमेशा मुझे समझाती हैं कि सबके लिए ऊपर वाला किसी न किसी को बनाता है। तुम्हारे लिए भी कोई होगा। अम्मी के समझाने पर मैं शांत होकर सब कुछ भूल जाती हूं लेकिन ये समाज मुझे कुछ भी भूलने नहीं देता। कैंसर जैसी बीमारी भुलाई नहीं जा सकती। ये एहसास मुझे 38 साल की सुमन से मिलकर हुआ। सुमन जब 13 साल की थी तब उनको ब्लड कैंसर हो गया था। सुमन कहती हैं की शुरू का एक साल तो बहुत मुश्किल गुजरा। मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। जब मेरी कीमोथेरेपी शुरू हुई मेरे बाल झड़ने लगे। डॉक्टर ने मुझे बाल कटवाने के लिए कहा लेकिन मैंने साफ मना कर दिया। मुझे अपने बालों से बहुत प्यार था। घर आकर मैंने बाल धोए तो पानी के साथ बाल भी निकलते चले गए। उस दिन से मुझे एहसास हो गया था कि अब बाल नहीं बचेंगे। अपने बाल देख-देख कर मैं हर दिन रोती थी। धीरे-धीरे मैंने अपने दोस्तों से मिलना बंद कर दिया। शीशा देखना बंद कर दिया। जब भी घरवालों से अपने लुक्स के बारे में बात करती तो सब यही कहते पहले ठीक हो जाओ। आखिर एक दिन मैं कैंसर से जंग जीत गई। फिर शादी हुई और मैंने बेटी को जन्म दिया। बेटी 13 साल की हुई तो बहुत बीमार रहने लगी। पता चला कि उसको ब्लड कैंसर है। ये सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई की मेरी बेटी को भी वही बीमारी हो गई जो कभी मुझे थी। धीरे-धीरे मेरी बेटी का इलाज शुरू हुआ, डॉक्टर्स ने जब फैमिली हिस्ट्री के बारे में पूछा तो मुझे बताना पड़ा कि मुझे भी कैंसर था। डॉक्टर्स ने साफ कहा कि आपकी वजह से ही बेटी को कैंसर हुआ। ये बात मेरे पति को भी पता चल गई। शादी के वक्त मेरे घरवालों ने कैंसर की बात छिपा ली थी। मेरे माता पिता को लगा कि अगर कैंसर का जिक्र करेंगे तो शायद मेरी शादी न हो। सुमन कहती हैं कि मेरे पति मुझसे नाराज रहने लगे। वो कहते थे कि तुमने मुझे धोखा दिया है और अब हमारी बेटी भुगत रही है। वक्त के साथ मेरे पति की नाराजगी कम हुई क्योंकि हमें अपनी बेटी पर भी ध्यान देना था। मेरी बेटी के इलाज के शुरुआती साल में उसकी स्थिति बहुत खराब रही। उसको 4 बार वेंटिलेटर पर रखा गया। एक बार तो डॉक्टर ने जवाब दे दिया था। उसके बाल झड़ने लगे, उसकी स्किन काली पड़ने लगी। दवाइयों के साइड इफेक्ट होने लगे। वो कभी भी बेहोश हो जाती थी। मेरी बेटी डिप्रेशन में चली गई थी। कई बार वो कहती थी कि मेरे बाल झड़ गए हैं, मुझे विग दिलवाओ। हमने विग दिलवाई भी लेकिन उसका मटेरियल गर्मियों में चुभता था। बेटी पूछती थी कि मां मुझे क्या हो गया। हम इसको मोटिवेट करते, इसके साथ खेलते थे, बाहर घुमाने ले जाते, हमने कभी इसको ये फील ही नहीं होने दिया कि ये बीमार है। हमने इसका घर पर ही ट्यूशन लगवा दिया। कभी उसके दोस्त लुक्स को लेकर कुछ कह देते तो पूरा-पूरा दिन गुमसुम बैठी रहती। शीशा देखती तो रोने लगती। उसे इस तरह परेशान देखकर मुझे अपने दिन याद आ जाते थे। धीरे-धीरे समझ गई कि उसको कैंसर है और ये सब झेलना पड़ेगा। कैंसर के मरीज अक्सर अपने बदलते लुक्स की वजह से आत्म सम्मान की कमी महसूस करते हैं। शारीरिक बदलाव जैसे बाल झड़ना, चेहरे का रंग काला पड़ जाना और शरीर का आकार बदल जाना उन्हें असुरक्षा की भावना से भर देता है। 28 साल के सागर भी इस असुरक्षा के दौर से गुजर रहे हैं। ढाई साल पहले एक दिन उन्हें अचानक चक्कर आया और वो बेहोश होकर गिर गए। तब से सागर की जिंदगी आम नहीं रही। सागर कहते हैं 27 जुलाई 2022 आम दिनों की तरह मैं फोर्टिस हॉस्पिटल में ड्यूटी कर रहा था। काम करते-करते अचानक मैं चक्कर खाकर गिर पड़ा। इलाज करवाने पर पता चला कि मुझे थर्ड स्टेज ब्रेन ट्यूमर कैंसर है। धीरे-धीरे इलाज शुरू हुआ। मेरे बाल झड़ने लगे, चेहरे का रंग काला पड़ने लगा और मेरा वजन तेजी से घटने लगा। जब दोस्तों को पता चला तो वो कहते कि तू न तो सिगरेट पीता, न दारु। कभी किसी प्रकार का नशा भी नहीं करता फिर तुझे कैंसर कैसे हो गया। हम तो सब करते हैं फिर भी हम ठीक हैं, हमें कुछ न हुआ। ये बातें सोच-सोच कर मैं डिप्रेशन में चला गया। मुझे मनोचिकित्सक की मदद लेनी पड़ी। आज भी मेरे यार दोस्त जब मिलते हैं तो बातों-बातों में मेरे लुक्स को लेकर कमेंट पास कर देते हैं। वो लोग बिना सोचे समझे मेरे मुंह पर बहुत ही आसानी से बोल देते हैं कि यार तू पहले कैसा था और अब कैसा हो गया। पहले मैं इस तरह की बातें सुनकर दुखी हो जाता था, लेकिन जब डिप्रेशन का इलाज शुरू हुआ तो खुद को संभालना शुरू किया। मुझे लगता है कि पहली लड़ाई मेरी कैंसर से है, मुझे इसको हराना है। मेरे लुक्स तो बाद में ठीक हो ही जाएंगे। अब मैं पॉजिटिव सोच के साथ खुश रहने की कोशिश करता हूं। हम जितना बीमारी से नहीं टूटते, उतना हम समाज की निगेटिव बातों से टूट जाते हैं। टेंशन लेकर हम कई और बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। कई बार दोस्त ये भी बोल देते हैं कि तू शादी कर ले अभी तक तूने शादी क्यों नहीं की। तब मैं उनको यही समझाता हूं कि भाई अभी तो मैं बहुत बड़ी समस्या से जूझ रहा हूं। मैं शादी करके किसी और की जिंदगी खराब नहीं कर सकता। सागर की मां कहती हैं कि बीमारी से पहले मेरा बेटा बहुत अच्छा दिखता था। वो 19 हजार रुपए महीना का कमाता था। हमारी जिंदगी में सबकुछ ठीक था। मेरे चार बच्चे हैं तीन लड़के और एक लड़की। 2007 में मेरे पति की एक्सीडेंट में मौत हो जाने के बाद बहुत मुश्किल से अपने बच्चे पाले। मेरा बड़ा बेटा भी ज्यादा पढ़ नहीं पाया। घर का खर्च चलाने के लिए वो ऑटो चलाने लगा। जब सागर की जॉब लगी तो हमें लगा कि शायद अब जिंदगी पटरी पर आएगी, लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। अब सागर बेरोजगार है। बमुश्किल ऑटो चलाकर मेरा बड़ा बेटा घर चला रहा है। कभी-कभी मैं ये सोचती हूं कि भगवान ने मेरे बेटे को ये दुख क्यों दे दिया, इससे अच्छा ये बीमारी मुझे हो जाती तो मैं झेल लेती। शुरुआत में जब इसके बाल झड़ते थे तो ये डॉक्टर से कहता था तो डॉक्टर अलग अलग तरह के शैंपू लिख देते थे, लेकिन उनसे कोई खास फर्क नहीं पड़ा। आज भी शीशे में देखकर कहता है कि मां जिस हिस्से में ऑपरेशन हुआ है वहां बाल ठीक से नहीं आए। जब ठीक हो जाऊंगा तब भी बाल आएंगे या नहीं। अगर नहीं आए तो कितना अजीब लगेगा। मैं उसे समझाती रहती हूं। -------------------------------------------------------- ब्लैकबोर्ड सीरीज की ये खबरें भी पढ़िए... 1. ब्लैकबोर्ड- डायन बताकर सलाखों से दागा, दांत तोड़ डाले:मर्दों ने पीटा, आंख फोड़ दी, भीलवाड़ा में डायन 'कुप्रथा' का खेल मैं छत पर नहा रही थी, उसी वक्त मेरी देवरानी ने अपने परिवार वालों को फोन करके बुलाया। उसका भाई मेरा हाथ पकड़कर मुझे बाथरूम से घसीटता हुआ बाहर ले आया। मेरे शरीर पर कपड़े नहीं थे, फिर भी देवरानी के घर के मर्दों को शर्म नहीं आई। वो लोग मुझे बुरी तरह पीट रहे थे। पूरी खबर पढ़े... 2. ब्लैकबोर्ड- प्रॉपर्टी की तरह लीज पर बिक रहीं बेटियां: कर्ज चुकाने के लिए पैसे लेकर मां-बाप कर रहे सौदा मैंने सन्नी को एक लाख रुपए के बदले एक साल के लिए बड़ी बेटी बिंदिया दे दी। उसने मेरी 10 साल की बेटी पता नहीं किसे बेच दी। मुझसे कहा था बीच-बीच में बिंदिया से मिलवाता रहेगा। उसे पढ़ाएगा-लिखाएगा। मिलवाना तो दूर उसने कभी फोन पर भी हमारी बात नहीं करवाई। पूरी खबर पढ़िए... 3.ब्लैकबोर्ड- मर्द हूं, किन्नर बनकर रहने को मजबूर:15 लाख कर्ज, बैंक वाले गाड़ी खींच ले गए; क्यों किन्नर बनकर घूम रहे मर्द 'कोई मीठा बोलता है, तो कोई छक्का या हिजड़ा। आते-जाते टच भी करते हैं। शुरुआत में बुरा लगता था। बड़ी ही मुश्किल से खुद को कंट्रोल कर पाता था, लेकिन अब धीरे-धीरे ये सब सुनने और सहने की आदत सी हो गई है। कहने को तो अपने घर में मर्द हूं, पत्नी है और बच्चे भी हैं।' पूरी खबर पढ़िए...
शुरुआत उस कहानी से, जो भारत के इतिहास का टर्निंग पॉइंट है। जब दिल्ली की गद्दी पर पहली बार मुस्लिमों ने कब्जा किया... जाने-माने इतिहासकार सतीश चंद्र अपने किताब ‘मध्यकालीन भारत’ में लिखते हैं कि चौहानों ने दिल्ली को 1151 ईस्वी में तोमरों से छीना था। चौहान वंश के सबसे चर्चित राजा पृथ्वीराज चौहान ने 1177 ईस्वी में सिंहासन संभाला और अपने राज्य के विस्तार में जुट गए। लगभग इसी दौर में अफगानिस्तान के गोर प्रांत में शहाबुद्दीन मुहम्मद उर्फ मोहम्मद गोरी भी गद्दी पर बैठा। उसने अफगानिस्तान से निकलकर लाहौर, पेशावर और सियालकोट जीता। अब उसकी नजर दिल्ली पर थी। पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी का पहला मुकाबला 1191 में तराइन के युद्ध में हुआ। ये जगह हरियाणा के करनाल के पास है। पृथ्वीराज की सेना ने मोहम्मद गोरी की सेना को तहस-नहस कर दिया। मोहम्मद गोरी सेना समेत पंजाब की तरफ भाग खड़ा हुआ। पृथ्वीराज ने गोरी को खदेड़ने की कोशिश नहीं की और उसकी जान बच गई। पृथ्वीराज की इस गलती ने भारत के इतिहास का रुख ही मोड़ दिया। मोहम्मद गोरी ने सालभर तैयारी की और 1192 ईस्वी में 1 लाख 20 हजार सैनिकों के साथ फिर हमला किया। इनमें बड़ी संख्या तुर्की घुड़सवार तीरंदाजों की थी। तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज की हार हुई और वो भारत के आखिरी इंडिपेंडेंट हिंदू सम्राट साबित हुए। तराइन की लड़ाई के बाद मोहम्मद गोरी कुतबुद्दीन ऐबक जैसे सरदारों के हवाले दिल्ली छोड़कर अफगानिस्तान स्थित गोरी लौट गया। इस तरह दिल्ली की गद्दी पर पहली बार मुस्लिमों शासन शुरू हुआ, जो करीब 500 साल तक जारी रहा। 1208 ईस्वी में मोहम्मद गोरी की मौत के बाद उसका सरदार कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली का पहला सुल्तान बना और दिल्ली सल्तनत की स्थापना की। वह गुलाम वंश (ममलुक वंश) का संस्थापक था। दिल्ली की मशहूर कुतुबमीनार को कुतुबुद्दीन ने ही बनवाना शुरू किया था और बाद में उनके उत्तराधिकारी शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने इसे पूरा किया। इतिहासकार ब्रज किशन चांदीवाला अपनी किताब 'दिल्ली की खोज' में लिखते हैं, ‘ऐबक की देखरेख में कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद का निर्माण हुआ। इसे 27 मंदिर तोड़कर उनकी सामग्री से बनाया गया था। इसमें एक पृथ्वीराज चौहान का बनाया मंदिर भी था।’ कुतुब मीनार के प्रवेश द्वार पर एक शिलालेख में लिखा भी है कि ये मस्जिद वहां बनाई गई है, जहां 27 हिंदू और जैन मंदिरों का मलबा था। इसी वजह से कई हिंदू संगठन कुतुब मीनार का नाम विष्णु स्तंभ करने की मांग करते हैं और दावा करते हैं कि इसे पृथ्वीराज चौहान ने बनवाना शुरू किया था। गयासुद्दीन तुगलक 1320 ईस्वी में गद्दी पर बैठा तो उसने कुतुब शहर से पांच किलाेमीटर दूर तुगलकाबाद बनाना शुरू किया। महल की ईंटों पर सोने की परत चढ़ी थी। एक हौज बनवाई थी, जिसमें सोना पिघलवा कर रखा था। उसके बेटे मोहम्मद बिन तुगलक ने 1330 में सोने–चांदी के सिक्कों के बराबर पीतल और तांबे के सिक्के जारी करवाए थे। आदित्य अवस्थी अपनी किताब 'दास्तान ए दिल्ली' में लिखते हैं कि एक बार सुल्तान फिरोजशाह शिकार खेलने गया था। अंबाला जिले के जगाधरी के पास टोपरा में उसे दो लाटें (मीनार) दिखें। 1356 में उसने आदेश दिया इसे दिल्ली में लगावाया जाए। एक मीनार को फिरोजाशाह कोटला की छत पर दूसरी को शिकारगाह यानी वर्तमान में डीयू के नॉर्थ कैंपस के पास लगवाया गया। ये सम्राट अशोक के समय बनवाई गई थीं। इन्हें दिल्ली लाने की रोचक कहानियां हैं। 27 टन की 42 फुट ऊंची इन मीनारों के आसपास रहने वाले लोगों को आदेश दिया गया, जो भी काम करने लायक हो आ जाएं। मीनार के नीचे खुदाई शुरू की गई। उसके आसपास मिट्टी और रुई का सेट बनाया गया। उस पर धीरे से मीनार को गिराया गया। मीनार के चारों ओर चमड़ा लपेटा गया ताकि दिल्ली तक लाने में कोई नुकसान न हो। मीनार को लाने के लिए विशेष वाहन बनाया गया, जो इतना वजन सह सके। हजारों लोगों को इस वाहन को खींचने में लगाया गया। इन्हें खींचते हुए यमुना किनारे लाया गया। एक विशेष नाव बनाई गई जाे वजन से डूबे नहीं। ये नावें इतनी बड़ी थीं कि इन्हें चलाने के लिए दो हजार लोग लगे थे। 1526 में बाबर ने पानीपत के पहले युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली सल्तनत को समाप्त किया और मुगल साम्राज्य की स्थापना की। मुगलों के 6 प्रमुख शासक हुए- बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब। ‘आईन-ए-अकबरी’ में अबुल फजल लिखते हैं कि अकबर को कभी दिल्ली रास नहीं आई। वो दिल्ली से दूर रहे, हमेशा आगरा को ही अपनी राजधानी बनाया। दरअसल, 1564 ईस्वी में दिल्ली में दिल्ली के पुराने किले के पास अकबर की तीर मारकर हत्या करने की कोशिश की गई थी। अकबर के शासनकाल में दिल्ली में हुमायूं और मुगल वंश के महत्वपूर्ण लोगों के मकबरे बनाए गए। ये मकबरे आज भी हैं। साल 1719 में मोहम्मद शाह रंगीला ने मुगल साम्राज्य की गद्दी संभाली। अपने लगभग 30 साल के राज में रंगीला ने खुद कोई लड़ाई नहीं छेड़ी। मुर्गों की लड़ाई, घुड़दौड़, संगीत, इश्क-मोहब्बत में डूबे रहते। बादशाह के बारे में कहा जाता है कि वो लड़कियों के कपड़े पहनकर नाचते थे। गिरावट के बावजूद अब भी काबुल से लेकर बंगाल तक मुगल शहंशाह का सिक्का चलता था। राजधानी दिल्ली उस समय दुनिया का सबसे बड़ा और अमीर शहर था, जिसकी आबादी लंदन और पेरिस से भी ज्यादा थी। मुगलों का अकूत पैसा देखकर पर्शिया का शासक कोली खान यानी नादिर शाह 36 हजार घोड़ों की सेना लेकर दिल्ली की तरफ बढ़ चला। इसकी खबर लेकर जब हरकारा बादशाह के पास आया, तो बादशाह ने उन्होंने चिट्ठी को दारू के प्याले में डुबो दिया और बोले- ‘आईने दफ्तार-ए-बेमाना घर्क-ए-मय नाब उला’ यानी इस बिना मतलब की चिट्ठी को खालिस शराब में डुबा देना बेहतर है। कहा जाता है कि मोहम्मद शाह को जब भी बताया जाता कि नादिर शाह की फौज आगे बढ़ रही हैं तो वो यही कहते- 'हनूज दिल्ली दूर अस्त’ यानी अभी दिल्ली बहुत दूर है। ब्रिटिश भारत में दिल्ली की प्लानिंग करने वाले इंजीनियर सर गॉर्डन रिस्ले हर्न अपनी किताब ‘द सेवन सिटीज ऑफ दिल्ली' में लिखते हैं कि 9 मार्च 1739 को नादिर शाह दिल्ली में घुसा और महल पर कब्जा कर लिया। शाम होते-होते पहाड़गंज में अनाज व्यापारियों और फारसी सैनिकों के बीच हाथापाई शुरू हो गई। ये खबर फैल गई कि नादिर शाह मारा गया है। जल्दी ही दंगा भड़क गया। जनता ने कई फारसियों को मार दिया। दरियागंज इलाके में जब नादिर शाह गया तो उस पर गोली चलाई गई। वो बच गया, लेकिन उसका खास वजीर मर गया। इससे नाराज होकर उसने दिल्ली में कत्लेआम का आदेश दिया। दिल्ली यूनिवर्सिटी में हिस्ट्री की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मनीषा चौधरी किताब 'दिल्ली: द हिस्ट्री' में लिखती हैं कि नादिर शाह ने बादशाह ही नहीं दिल्ली के हर घर की तलाशी ली गई और लूटपाट की। नादिर ने दिल्ली को 58 दिनों तक दिल्ली को लूटा। 32 करोड़ रुपए कैश, हजारों हाथियों, सौ राजमिस्त्रियों और दो सौ बढ़इयों के साथ वो लौट गया। इसमें जो सबसे बेशकीमती चीज कोहिनूर हीरा था। सबकुछ लूटकर उसने मुहम्मद शाह को फिर से गद्दी पर बैठा दिया। एम.एस. नरवने ने अपनी किताब 'बैटल्स ऑफ द ऑनरेबल ईस्ट इंडिया कंपनी: मेकिंग ऑफ द राज' में लिखते हैं मराठा मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की दिल्ली पर कब्जा करने आ रहे थे। ये वो समय था जब अंग्रेज मजबूत हाे गए थे। बादशाह ने अंग्रेजों से मदद मांगी। उन्होंने मुगल सम्राट की ओर से युद्ध लड़ा। 11 सितंबर, 1803 को पटपड़गंज में मुगल के कथित अंग्रेज सैनिकों और मराठों के बीच युद्ध हुआ। अंग्रेज सेनाओं ने 7 सितंबर 1803 को अलीगढ़ से दिल्ली की ओर कूच किया। यमुना पार मराठा अच्छी स्थिति में थे। जनरल गेरार्ड ने डरकर पीछे हटने का नाटक किया। जब मराठे ब्रेफिक्र हुए तो उन पर पूरी ताकत से हमला कर दिया। मराठा सेना को अंग्रेजों ने रणनीति में फंसाकर यमुना में फेंक दिया। मराठा सेना के 3,000 सैनिक मारे गए, जबकि ब्रिटिश कंपनी ने केवल 464 जवान मरे। युद्ध के बाद अंग्रेजों ने दिल्ली के तख्त पर कब्जा कर लिया। कहने को मुगल सम्राट बादशाह था, लेकिन असल कमान अंग्रजों के पास थी। मुगल सम्राट को हर महीने 90 हजार रुपए पेंशन मिलती थी। इसके बाद जितने भी मुगल शासक हुए सब पेंशन पर ही रहे। ------------ दिल्ली की कहानी सीरीज के अन्य एपिसोड महाभारत का इंद्रप्रस्थ कैसे बना दिल्ली:पांडवों ने नागों को भगाकर बसाया; यहीं के महल में बेइज्जत हुए दुर्योधन दिल्ली का इतिहास भारत की माइथोलॉजी यानी पौराणिक कथाओं जितना पुराना है। महाभारत के युद्ध में दिल्ली की बड़ी भूमिका थी। हालांकि तब इसे इंद्रप्रस्थ कहा जाता था। उस दौर में नाग यहां रहा करते थे। जानिए कैसे पांडवों ने उन्हें भगाया। पूरी खबर पढ़ें
अमेरिका की एक स्टूडेंट जारा डार कहना है कि वो PhD करने के साथ-साथ ओनलीफैंस पर भी कॉन्टेंट डालती थीं। इसमें इंजीनियरिंग से जुड़े सब्जेक्ट्स के लेक्चर होते थे। हालांकि उनके कपड़े मॉडल्स वाले होते थे। इससे उन्होंने 12.7 करोड़ रुपए कमाए। अब PhD छोड़ फुल टाइम कॉन्टेंट बना रहीं। ओनलीफैंस मॉडल बोनी ब्लू ने दावा किया है कि उन्होंने 12 घंटे में 1 हजार से ज्यादा पुरुषों के साथ संबंध बनाए। ओनलीफैंस प्लेटफॉर्म पर वे हर महीने करीब 6.5 करोड़ रुपए कमाती हैं। अमेरिका से भारत तक चर्चा में आया ओनलीफैंस आखिर है क्या, बाकी अडल्ट वेबसाइट्स और इसमें क्या फर्क है, बंद कमरे में कंटेंट बनाकर लोग करोड़ों कैसे कमा रहे; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में... सवाल-1: ओनलीफैंस क्या है? जवाब: इंस्टाग्राम और यूट्यूब की तरह ओनलीफैंस भी कॉन्टेंट का एक प्लेटफॉर्म है, जिसमें क्रिएटर्स फोटो, वीडियो और ऑडियो पोस्ट करते हैं। हालांकि बाकी प्लेटफॉर्म के मुकाबले इसमें 4 बड़े फर्क हैं… सवाल-2: ओनलीफैंस पर कितने क्रिएटर्स हैं और इनमें कितने भारतीय? जवाब: ओनलीफैंस पर 70% कॉन्टेंट एडल्ट कैटेगरी का है। एडल्ट मॉडल्स, सेक्स वर्कर्स और पोर्न एक्ट्रेसेस यहां अपनी तस्वीरें और वीडियोज अपलोड करते हैं। हालांकि इस पर दुनिया भर के लेखक, आर्टिस्ट, फिटनेस ट्रेनर, फैशन मॉडल, म्यूजिशियन और शेफ वगैरह के भी अकाउंट हैं। सवाल- 3: ओनलीफैंस से क्रिएटर्स कैसे कमाई करते हैं? जवाब: बाकी इंटरनेट साइट्स पर फ्री में हर तरह का कॉन्टेंट अवेलबल है, वहीं ओनलीफैंस इसके लिए पैसे चार्ज करता है। ऐसा सिर्फ एडल्ट कॉन्टेंट के लिए नहीं बल्कि, म्यूजिक और कुकिंग से जुड़े कॉन्टेंट के लिए भी है। फैंस जब पैसा खर्च करके कॉन्टेंट खरीदते हैं, तो ओनलीफैंस उस रकम का 80% सीधे क्रिएटर्स को दे देता है, जबकि 20% पैसा बतौर कमीशन खुद रखता है। ओनलीफैंस पर क्रिएटर्स सब्सक्रिप्शन के अलावा दूसरे तरीकों से भी पैसे कमाते हैं। मसलन- सवाल- 4: ओनलीफैंस पर क्रिएटर्स कितनी कमाई करते हैं, क्या ये बाकी ऑनलाइन कॉन्टेंट प्लेटफॉर्म से ज्यादा पैसा देता है? जवाब: ओनलीफैंस पर क्रिएटर्स का सब्सक्रिप्शन रेट 5 डॉलर प्रति महीने यानी करीब 400 रुपए से लेकर 50 डॉलर यानी 4000 रुपए महीने तक होता है। हालांकि ओनलीफैंस पर ज्यादातर क्रिएटर औसतन 200 डॉलर यानी करीब 17 हजार रुपए प्रति महीना ही कमाते हैं। वहीं मशहूर क्रिएटर्स की कमाई 1 लाख डॉलर यानी करीब 80 लाख रुपए या उससे ज्यादा भी हो सकती है। डिज्नी की स्टार एक्ट्रेस रहीं बेला थोर्न के मुताबिक, उन्होंने ओनलीफैंस से शुरुआती एक हफ्ते में बीस लाख डॉलर यानी करीब 17 करोड़ रुपए कमाए थे। वहीं अमेरिकन रैपर रूबी रोज ने दावा किया था कि उन्होंने सिर्फ 2 दिन में ओनलीफैंस पर अपनी फोटोज पोस्ट करके 10 लाख डॉलर यानी करीब 85 करोड़ रुपए कमाए थे। ओनलीफैंस की तुलना में बाकी ऑनलाइन कॉन्टेंट प्लेटफॉर्म्स, क्रिएटर्स के रेवेन्यू में से ज्यादा कमीशन लेते हैं। वहीं यूट्यूब जैसे लगभग सभी मशहूर प्लेटफॉर्म्स पर एडल्ट कॉन्टेंट नहीं डाला जा सकता। हालांकि यूट्यूब पर भी क्रिएटर्स सब्सक्रिप्शन मॉडल चुन सकते हैं, लेकिन वहां उनके ही जैसा कॉन्टेंट बनाने वाले ऐसे क्रिएटर्स बहुत ज्यादा हैं, जो फ्री में कॉन्टेंट दे रहे हैं। ऐसे में जो यूट्यूब चैनल सब्सक्रिप्शन खरीदने को कहते हैं, जिनका दाम कम होता। वहीं ओनलीफैंस पर सब्सक्रिप्शन रेट काफी ज्यादा हो सकता है। इसके अलावा यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म से क्रिएटर्स को पैसा तब मिलता है, जब उनका अकाउंट मोनेटाइज हो जाता है, यानी उनके अकाउंट पर ऐड आने लगते हैं। वहीं ओनलीफैंस, क्रिएटर्स को अपने फैंस से सीधे पैसा कमाने का ऑप्शन देता है। सवाल 5: ओनलीफैंस खुद पैसे कैसे कमाता है? जवाब: ओनलीफैंस की कमाई का सीधा जरिया उसके क्रिएटर्स की कमाई से मिलने वाला कमीशन है। ओनलीफैंस की ब्रांडिंग एक प्राइवेट स्पेस में इस्तेमाल की जाने वाली सब्सक्रिप्शन सर्विस की तरह की गई है। पूरी दुनिया से करोड़ों यूजर्स ओनलीफैंस का इस्तेमाल करते हैं। औसतन एक यूजर साल में ओनलीफैंस पर 4,700 रुपए खर्च करता है। शुरुआत में ही कुछ क्रिएटर्स का फ्री कॉन्टेंट देखने को मिलता है। बाद में कॉन्टेंट देखने के लिए पैसे खर्च करने पड़ते हैं। सवाल-6: ओनलीफैंस के विरोध में क्या तर्क दिए जाते हैं? जवाब: ओनलीफैंस का दावा है कि उसकी वेबसाइट का कॉन्टेंट प्राइवेट है और इसे बिना सब्सक्रिप्शन के नहीं देखा जा सकता। हालांकि यह सच नहीं है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बहुत से ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें क्रिएटर्स के कॉन्टेंट का स्क्रीनशॉट लेकर या कुछ टूल्स की मदद से उनके वीडियोज की कॉपी बनाकर या रिकॉर्ड करके दूसरे प्लेटफॉर्म्स पर पोस्ट कर दिया गया। ओनलीफैंस की वेबसाइट भी हैक कर ली गई। इंटरनेट की दुनिया में एक बार कॉन्टेंट अपलोड हो जाने के बाद उसे मिटाना अब असंभव सा हो गया है। ओनलीफैंस यह भी दावा करता है कि उसका वेरिफिकेशन प्रॉसेस बच्चों को इससे दूर रखता है। अकाउंट बनाने के लिए सेल्फी लगानी पड़ती है। हालांकि यह पर्याप्त नहीं है। बच्चे आसानी से अपने घर के बड़ों, दोस्तों या इंटरनेट से ली गई तस्वीर लगाकर ओनलीफैंस का वेरिफिकेशन प्रॉसेस पूरा कर लेते हैं। BBC की एक डाक्यूमेंट्री #Nudes4Sale में बताया गया है कि अकेले X पर अश्लील तस्वीरों के ऐड देने वाले यूजर्स में से 33% से ज्यादा की उम्र 18 साल से कम है। बाकी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी बड़ी तादाद में बच्चे पैसे और गिफ्ट्स के बदले में न्यूड तस्वीरें बेचते हैं। सवाल-7: ओनलीफैन्स पर किन देशों ने बैन लगा रखा है? जवाब: 14 देश ऐसे हैं, जिन्होंने ओनलीफैंस पर पूरी तरह से बैन लगाया हुआ है। ये देश हैं- अफगानिस्तान, बहरीन, बांग्लादेश, चीन, ईरान, कुवैत, पाकिस्तान, कतर, सउदी अरब, तुर्किए ,दुबई, रूस, बेलारूस और अंगोला। अगस्त 2021 में ओनलीफैंस ने कहा था कि उसके बैंकिंग पार्टनर्स की शर्तों के मुताबिक, वह अपने प्लेटफॉर्म से सेक्सुअल और एडल्ट कॉन्टेंट को हटाने वाला है। इसके बाद ओनलीफैंस के क्रिएटर्स, सब्स्क्राइबर्स और कुछ मीडिया संस्थानों ने इसका विरोध किया। तर्क यह था कि ओनलीफैंस ने मशहूर होने के लिए सेक्स वर्कर्स का इस्तेमाल किया और अब जब उसका धंधा बढ़ा हो गया तो सेक्स वर्कर्स से उनकी कमाई का रास्ता छीन रहा है। इसके कुछ दिन बाद ओनलीफैंस ने कहा कि ओनलीफैंस पोर्नोग्राफी को बैन नहीं करेगा। ओनलीफैंस के बयान में कहा गया, 'क्रिएटर्स को सपोर्ट करने के लिए हमने अपने पार्टनर्स से जरूरी आश्वासन ले लिए हैं और पॉलिसीज में बदलाव को रोक दिया है। ओनलीफैंस का घर सभी क्रिएटर्स के लिए खुला रहेगा।' सवाल 8: क्या ओनलीफैंस भारत में बैन है? जवाब: नहीं, भारत में ओनलीफैंस बैन नहीं है। इसकी वेबसाइट को कोई भी फोन या लैपटॉप से खोल सकता है और एक अकाउंट बनाकर इसका कॉन्टेंट देखा जा सकता है। अगर कोई ओनलीफैंस पर अकाउंट बनाकर पोर्न या सेक्सुअल कॉन्टेंट पोस्ट करता है तो इसे गैर-कानूनी माना जाएगा। क्योंकि भारत में पोर्न कॉन्टेंट बनाना और उसे बेचना गैरकानूनी है। हालांकि भारत में 'अश्लीलता' की सटीक परिभाषा और इसके दायरे पर लंबे समय से बहस जारी है। 12 अक्टूबर, 2023 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था, 'महिलाओं का उत्तेजक डांस या इशारे करना जरूरी नहीं कि अश्लील या अनैतिक हो।' सवाल 9: जारा डार ने PhD बीच में छोड़कर ओनलीफैंस क्यों जॉइन किया?जवाब: अमेरिका के टेक्सास की रहने वाली जारा डार का पूरा नाम जारा डार्सी है। उन्होंने X और यूट्यूब पर एक वीडियो में कहा है कि वह कॉर्पोरेट जॉब के बजाय अपना खुद का काम करना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने PhD छोड़ ओनलीफैंस पर फुलटाइम काम करना शुरू किया है। हालांकि उन्होंने ये भी बताया, मैंने 2022 में PhD के दौरान ही ओनलीफैंस पर कॉन्टेंट बनाना शुरू किया था। दो साल बाद अब मैं अब यहां पर फुलटाइम काम कर रही हूं। जारा, यूट्यूब और ओनलीफैंस के अलावा पोर्नहब नाम की पोर्न साइट पर भी अपना कॉन्टेंट डालती हैं। हालांकि उनका कॉन्टेंट पोर्न नहीं, बल्कि इंजीनियरिंग से जुड़े सब्जेक्ट्स (STEM यानी साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स) का रहता है। उन्होंने यह भी बताया कि एक वीडियो के यूट्यूब पर 10 लाख व्यूज होने पर उन्हें 340 डॉलर यानी करीब 29 हजार रुपए मिलते हैं, वहीं उसी वीडियो के लिए पोर्नहब से उन्हें 1000 डॉलर यानी करीब 85 हजार रुपए मिलते हैं। लिंक्डइन पर जारा के अकाउंट को ब्लॉक कर दिया गया है। लिंक्डइन ने इसकी कोई वजह नहीं बताई है। कहा जा रहा है कि ऐसा उनके पहनावे की वजह से हुआ। पोर्नहब पर ताइवान के एक मैथ्स के टीचर चांग्शू भी मैथ्स पढ़ाते हैं। वह इस तरह से सालाना करीब 3 करोड़ रुपए कमाते हैं। -------- ये एक्सप्लेनर भी पढ़ें: लड़के से लड़के की शादी या लड़की की लड़की से, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों झटका दिया; वो सबकुछ जो जानना जरूरी है सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता की मांग करने वालों के लिए बड़ा झटका है। गुरुवार यानी 9 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया। पूरी खबर पढ़ें...
साल 1954, आजाद भारत का पहला कुंभ प्रयाग में लगा। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या थी। यानी कुंभ स्नान का खास दिन। लाखों लोग स्नान के लिए संगम पहुंचे थे। बारिश की वजह से चारों तरफ कीचड़ और फिसलन थी। सुबह करीब 8-9 बजे का वक्त रहा होगा। अचानक ट्रैफिक के लिए बनाए नियम तोड़कर लोग वन वे सड़क पर दोनों तरफ से आने-जाने लगे। यानी स्नान करने के लिए संगम आने वाले और स्नान करने के बाद लौटने वाले, दोनों एक ही सड़क पर चलने लगे। इसी बीच खबर फैली कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आ रहे हैं। उन्हें देखने के लिए भीड़ टूट पड़ी। अपनी तरफ भीड़ आती देख नागा संन्यासी तलवार और त्रिशूल लेकर लोगों को मारने दौड़ पड़े। भगदड़ मच गई। जो एक बार गिरा, वो फिर उठ नहीं सका। जान बचाने के लिए लोग बिजली के खंभों से चढ़कर तारों पर लटक गए। भगदड़ में करीब एक हजार लोगों की मौत हो गई। यूपी सरकार ने कहा कि कोई हादसा नहीं हुआ, लेकिन एक फोटोग्राफर ने चुपके से तस्वीर खींच ली थी। अगले दिन अखबार में वो तस्वीर छप गई। राजनीतिक हंगामा खड़ा हो गया। संसद में नेहरू को बयान देना पड़ा। 65 साल बाद 2019 में पीएम मोदी ने उस हादसे के लिए नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था। ‘महाकुंभ के किस्से’ सीरीज के पांचवें एपिसोड में कहानी आजादी के बाद हुए पहले कुंभ और उसमें मची भगदड़ की… ये आजाद भारत का पहला कुंभ मेला था, लिहाजा सरकार तैयारियों में किसी तरह का कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। संगम के करीब ही अस्थाई रेलवे स्टेशन बनाया गया था। बड़ी संख्या में टूरिस्ट गाइड अपॉइंट किए गए थे। बुलडोजर से उबड़-खाबड़ जमीनें समतल की गई थीं। सड़कों पर बिछी रेलवे लाइनों के ऊपर पुल बनाए गए थे। पहली बार कुंभ में बिजली के खंभे लगाए गए। करीब एक हजार खंभे। 9 अस्पताल खोले गए, ताकि कोई बीमार पड़े या हादसे का शिकार हो तो उसे फौरन मेडिकल फैसिलिटी मुहैया कराई जा सके। कुंभ में 40-50 लाख लोगों के शामिल होने का अनुमान था। राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के साथ-साथ प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी कुंभ पहुंचे थे। राजेंद्र प्रसाद तो महीनेभर संगम क्षेत्र में कल्पवास किया था। गांधीवादी लेखक राजगोपाल पीवी अपनी किताब ‘मैं नेहरू का साया था’ में लिखते हैं- ‘उस रोज मौनी अमावस्या थी। लाल बहादुर शास्त्री चाहते थे कि पंडित नेहरू प्रयाग जाएं और कुंभ में स्नान करें। उन्होंने नेहरू से कहा- ‘इस प्रथा का पालन लाखों लोग करते आए हैं। आपको भी करना चाहिए।’ नेहरू ने जवाब दिया- ‘मैंने तय कर लिया है कि नहाऊंगा नहीं। पहले मैं जनेऊ पहना करता था। फिर मैंने जनेऊ उतार दिया। यह सच है कि गंगा मेरे लिए बहुत मायने रखती हैं। गंगा भारत में लाखों लोगों के जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन मैं कुंभ के दौरान इसमें स्नान नहीं करूंगा।’ राजगोपाल पीवी लिखते हैं- 'उस रोज सुबह नेहरू नाव में बैठे। उनके परिवार के लोग भी साथ थे। सभी ने संगम में डुबकी लगाई, लेकिन नेहरू ने स्नान तो दूर, खुद के ऊपर गंगा का पानी तक नहीं छिड़का।’ सीनियर फोटोजर्नलिस्ट एनएन मुखर्जी 1954 के कुंभ में मौजूद थे। 1989 में मुखर्जी की आंखों-देखी रिपोर्ट ‘छायाकृति’ नाम की हिंदी मैगजीन में छपी। मुखर्जी लिखते हैं- ‘प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद एक ही दिन स्नान के लिए संगम पहुंचे। इसलिए पुलिस और अफसर उनकी व्यवस्था में व्यस्त हो गए। मैं संगम चौकी के पास एक टावर पर खड़ा हुआ था। करीब 10.20 पर नेहरू और राजेंद्र प्रसाद की कार त्रिवेणी की तरफ से आई और किला घाट की तरफ निकल गई। स्नान करने वाले घाट पर बैरिकेड लगाकर बड़ी संख्या में लोगों को रोका गया था। नेहरू के जाने के बाद लोग बैरिकेड तोड़कर घाट की तरफ जाने लगे। उसी रोड पर दूसरे छोर से साधुओं का जुलूस निकल रहा था। भीड़ की वजह से जुलूस बिखर गया। बैरिकेड की ढलान से लोग ऐसे गिरने लगे जैसे तूफान में खड़ी फसलें गिरती हैं। जो गिरा वो गिरा ही रह गया, कोई उठ नहीं सका। चारों तरफ से मुझे बचाओ, मुझे बचाओ की चीख गूंजने लगी। कई लोग तो कुएं में गिर गए।' मुखर्जी लिखते हैं- 'मैंने देखा कि कोई तीन साल के बच्चे को कुचलते हुए जा रहा था। कोई बिजली के तारों पर झूलकर खुद को बचा रहा था। उसकी तस्वीर खींचने के चक्कर में मैं भी भगदड़ में गिरे हुए लोगों के ऊपर गिर गया। कुल मिलाकर उस हादसे में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। मेरे अखबार के साथी डरे हुए थे कि मैं भी हादसे का शिकार तो नहीं हो गया। दोपहर करीब 1 बजे मैं दफ्तर पहुंचा, तो अखबार के मालिक ने मुझे गोद में उठा लिया। वे जोश में चीख पड़े- ‘नीपू हैज कम बैक अलाइव.. नीपू जिंदा लौट आया है।’ तब मैंने उनसे कहा कि हादसे के फोटोग्राफ्स भी लेकर आया हूं। हादसे के बाद सरकार ने कहा कि एक हजार लोगों के मारे जाने की खबर झूठी है। कुछ भिखारी ही मरे हैं। हमने अधिकारियों को तस्वीरें दिखाईं, जिसमें महंगे गहने पहनी महिलाएं भी थीं। जो इस बात का तस्दीक कर रही थीं कि अच्छे बैकग्राउंड वाले भी लोग मरे हैं।’ अखबार में एक तरफ हादसा और दूसरी तरफ राजभवन में पार्टी की तस्वीर छपी प्रयाग के सीनियर जर्नलिस्ट और एनएन मुखर्जी के साथ काम कर चुके स्नेह मधुर बताते हैं- ‘अस्सी के दशक में दादा मुखर्जी ने मुझे 1954 कुंभ में मची भगदड़ का किस्सा सुनाया था। उनके मुताबिक नेहरू के आने के घंटों पहले ही मूवमेंट रोक दी गई थी। आम लोगों के साथ-साथ हजारों नागा साधु, घोड़ा गाड़ी, हाथी, ऊंट सब घंटों इंतजार करते रहे। दोनों तरफ जनसैलाब जम गया। जब नेहरू और बाकी वीवीआईपी लोगों की गाड़ी गुजर गई, तो बिना किसी योजना के भीड़ को छोड़ दिया गया। प्रशासन की तरफ से ये बड़ी चूक थी। दोनों तरफ से हजारों की संख्या में लोग एक ही सड़क पर आमने-सामने आ गए। भगदड़ मच गई। सैकड़ों लोग मारे गए। अगले दिन यानी 4 फरवरी 1954 को अमृत बाजार पत्रिका नाम के अखबार में हादसे की खबर छपी। एक तरफ भगदड़ में लोगों के मारे जाने की खबर और दूसरी तरफ राजभवन में राष्ट्रपति के स्वागत में रखी गई पार्टी की तस्वीर अखबार में छपी। सरकार ने कहा कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं, अखबार को इसका खंडन छापना चाहिए।’ फोटो जर्नलिस्ट रोते-बिलखते शवों के पास पहुंचे और चुपके से तस्वीर खींच ली स्नेह मधुर बताते हैं- ‘हादसे के दूसरे दिन प्रशासन शवों का ढेर बनाकर उसमें आग लगा रहा था। किसी भी फोटोग्राफर या पत्रकार को वहां जाने की इजाजत नहीं थी। चारों तरफ बड़ी संख्या में पुलिस मुस्तैद थी। बारिश हो रही थी। ऐसे में एनएन मुखर्जी एक गांव वाले की वेशभूषा में छाता लिए वहां पहुंचे। उनके हाथ में खादी का झोला था, जिसके भीतर उन्होंने छोटा सा कैमरा छिपाया हुआ था। झोले में एक छेद कर रखा था ताकि कैमरे का लेंस नहीं ढंके। फोटोग्राफर एनएन मुखर्जी ने पुलिस वालों से रोते हुए कहा कि मुझे आखिरी बार अपनी दादी को देखना है। वे सिपाहियों के पैर पर गिर पड़े। उनसे मिन्नतें करने लगे कि आखिरी बार मुझे दादी को देख लेने दो। एक पुलिस अधिकारी ने उन्हें इस शर्त पर जाने की छूट दी कि वे जल्द लौट आएंगे। वे तेजी से शवों की तरफ दौड़े। अपनी दादी को ढूंढने का नाटक करने लगे। इसी दौरान उन्होंने गिरते-संभलते जलती हुई लाशों की फोटो खींच ली। अगले दिन अखबार में जलती हुई लाशों की फोटो छपी। खबर पढ़कर यूपी के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत गुस्से से लाल हो गए। उन्होंने पत्रकार को गाली देते हुए कहा था- ‘कहां है वह ह.... फोटोग्राफर।’ 1989 में छपी ‘छायाकृति’ मैगजीन में भी इस किस्से का जिक्र है। सदन में नेहरू ने माना था कि वह हादसे के वक्त कुंभ में मौजूद थे कुछ लोगों का दावा है कि हादसे के दिन पंडित नेहरू कुंभ में मौजूद नहीं थे। बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट में हादसे के वक्त मौजूद रहे नरेश मिश्र ने बताया था- ’नेहरू हादसे से ठीक एक दिन पहले प्रयाग आए थे, उन्होंने संगम क्षेत्र में तैयारियों का जायजा लिया और दिल्ली लौट गए, लेकिन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद संगम क्षेत्र में ही थे और सुबह के वक्त किले के बुर्ज पर बैठकर दशनामी संन्यासियों का जुलूस देख रहे थे।’ हालांकि, कई लेखक, पत्रकार और खुद नेहरू ने भी संसद में माना था कि वे हादसे के वक्त कुंभ में मौजूद थे। 15 फरवरी 1954 को जवाहर लाल नेहरू ने संसद कहा- ‘मैं किले की बालकनी में था। वहां से खड़े होकर कुंभ देख रहा था। यह अनुमान लगाया गया था कि कुंभ में 40 लाख लोग पहुंचे थे। बहुत दुख की बात है कि जिस समारोह में इतनी बड़ी संख्या में लोग जुटे थे, वहां ऐसी घटना हो गई और कई लोगों की जान चली गई।’ ‘पिलग्रिमेज एंड पावर : द कुंभ मेला इन इलाहाबाद फ्रॉम 1776-1954’ में कामा मैकलिन ने भी हादसे के वक्त नेहरू के कुंभ में मौजूद रहने की बात लिखी है। कामा मैकलिन ऑस्ट्रेलिया की एक यूनिवर्सिटी में साउथ एशियन एंड वर्ल्ड हिस्ट्री की प्रोफेसर रह चुकी हैं। हादसे की जांच कमेटी में डॉ. अंबेडकर को शामिल करने की मांग उठी थी कामा मैकलिन लिखती हैं- ‘हादसे के बाद यूपी सरकार ने एक जांच कमेटी बनाई। इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस कमलाकांत वर्मा, यूपी सरकार के पूर्व सलाहकार डॉ. पन्नालाल और सिंचाई विभाग के चीफ इंजीनियर एसी मित्रा शामिल थे। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में हादसे के लिए सरकार को जिम्मेदार तो ठहराया, लेकिन सारा दोष मीडिया पर मढ़ दिया। कमेटी ने कहा था कि कुंभ में मुख्य स्नान के दिन वीआईपी और वीवीआईपी को नहीं जाना चाहिए। छेदनी देवी नाम की एक महिला का पूरा परिवार हादसे में खत्म हो गया था। उसने सरकार से मुआवजे की मांग की। कमेटी ने उसकी मांग खारिज कर दी। वर्मा ने कहा- ‘तीर्थ यात्री मेले में करो या मरो की भावना से शामिल हुए थे।’ कमेटी की जांच से कई लोग खुश नहीं थे। इलाहाबाद के कुछ लोगों ने हादसे की जांच के लिए खुद ही एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बना दी। इस कमेटी ने सरकार से आग्रह किया कि जांच में डॉ. अंबेडकर और फ्रीडम फाइटर एचएन कुंजरू जैसे लोगों को शामिल किया जाए, लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई।’ जब पीएम मोदी ने कहा- ‘ऐसा पाप देश के पहले प्रधानमंत्री के काल में हुआ’ 1 मई 2019, जगह यूपी का कौशांबी जिला। लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने कहा- ‘पंडित नेहरू जब प्रधानमंत्री थे, तो कुंभ के मेले में आए थे। तब अव्यवस्था के चलते कुंभ में भगदड़ मच गई। सैकड़ों लोग कुचलकर मारे गए, लेकिन सरकार की इज्जत बचाने के लिए, खबर दबा दी गई। भाइयो-बहनो… यह सिर्फ भगदड़ नहीं थी। ऐसा पाप देश के पहले प्रधानमंत्री के काल में हुआ है।’ भगदड़ पर फिल्म बनाने वाले थे विमल रॉय, शूटिंग भी शुरू हो गई थी, लेकिन… ‘प्रयागराज और कुंभ’ किताब में कुमार निर्मलेंदु लिखते हैं- ’बांग्ला के मशहूर उपन्यासकार समरेश बसु ने इस हादसे के ऊपर 'अमृत कुंभ की खोज में' नाम से एक उपन्यास लिखा था। 1955 में यह उपन्यास कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले बांग्ला अखबार 'आनन्द बाजार' में धारावाहिक रूप में पब्लिश हुआ। इस उपन्यास की शुरुआत लोगों से खचाखच भरी एक ट्रेन से होती है, जो प्रयाग स्टेशन से निकलकर इलाहाबाद की ओर रवाना हो रही है। बस कुछ मिनटों का सफर बाकी है। लोग जोश में आकर भजन गाना शुरू कर देते हैं। ट्रेन की छत पर बैठे लोग नारे लगाने लगते हैं। ट्रेन रेंगते-रेंगते इलाहाबाद दाखिल होती है और मुसाफिरों की भीड़ इस तरह बाहर निकलने के लिए बढ़ती है जैसे किसी ब्लैक होल से निकल रही हो। बलराम, जो अपना रोग छुड़ाने, सौ साल की उम्र मांगने, स्नान के लिए जा रहा था, लोगों के पैरों तले कुचलकर मारा जाता है।’ किताब के मुताबिक मशहूर फिल्मकार विमल रॉय इस उपन्यास पर एक हिन्दी फिल्म बनाना चाहते थे। गीतकार गुलजार उनके सहायक थे। गुलजार इस फिल्म की पटकथा भी लिख रहे थे। फिल्म पर टुकड़ों-टुकड़ों में काम चलता रहा। दूसरे मेलों में जाकर कुछ आउटडोर शूटिंग भी कर ली गई। 1962 की सर्दियों में फिल्म रिलीज करने की तैयारी थी, लेकिन इसी बीच विमल रॉय बीमार पड़ गए। एक दिन उन्होंने गुलजार और सीनियर कैमरामैन कमल बोस से कहा- ‘मैं इलाहाबाद नहीं जा सकूंगा। तुम लोग जाओ। मेले का शॉट्स ले आओ।’ इलाहाबाद जाने के पहले ही गुलजार को पता चला कि विमल रॉय को कैंसर हो गया है। खैर, वे लोग दुखी मन से इलाहाबाद जाकर शूटिंग करने लगे। विमल रॉय की बीमारी की बात जानने के बाद उनके सहयोगियों का मनोबल डाउन हो गया था, उनके मन में डर बैठ गया था कि कहीं फिल्म ठंडे बस्ते में न चली जाए। शूटिंग करके सभी लोग बंबई लौट आये। विमल रॉय की सेहत पहले से भी खराब हो गई थी। एक दिन उन्होंने गुलजार को बुलाकर पूछा- ‘तुम अमृत कुंभ की स्क्रिप्ट पर काम कर रहे हो कि नहीं ? और गुलजार को खामोश देखकर उनपर बिगड़ गए; और बोले ‘तुमसे कहा था कि उपन्यास में बलराम की मौत बहुत जल्दी दिखाई गई है। वो मंजर वहां से हटाके मेले में ले जाओ।' गुलजार खामोश रहे। वे फिर कहने लगे कल से रोज शाम को स्क्रिप्ट पर चर्चा होगी। हर दिन स्क्रिप्ट पर चर्चा चलती रही, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। 8 जनवरी 1965 को विमल रॉय का निधन हो गया। आखिरकार फिल्म ठंडे बस्ते में चली गई। रिफरेंस : 1. पब्लिक लाइब्रेरी, प्रयागराज 2. प्रयागराज और कुंभ : कुमार निर्मलेन्दु 3. पिलग्रिमेज एंड पावर : द कुंभ मेला इन इलाहाबाद फ्रॉम 1776-1954 ----------------------------------------------- महाकुंभ से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... महाकुंभ के किस्से-1 : अकबर का धर्म बदलने पुर्तगाल ने पादरी भेजा: जहांगीर ने अखाड़े को 700 बीघा जमीन दी; औरंगजेब बीमार होने पर गंगाजल पीते थे औरंगजेब गंगाजल को स्वर्ग का जल मानते थे। एक बार वे बीमार पड़े तो उन्होंने पीने के लिए गंगाजल मंगवाया। फ्रांसीसी इतिहासकार बर्नियर ने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा है- 'औरंगजेब कहीं भी जाता था तो अपने साथ गंगाजल रखता था। वह सुबह के नाश्ते में भी गंगाजल का इस्तेमाल करता था।' पूरी खबर पढ़ें... महाकुंभ के किस्से-2 : पहली संतान गंगा को भेंट करते थे लोग:दाढ़ी-बाल कटवाने पर टैक्स लेते थे अंग्रेज; चांदी के कलश में लंदन भेजा जाता था गंगाजल 1827 से 1833 के बीच एक अंग्रेज कस्टम अधिकारी की पत्नी फेनी पाकर्स इलाहाबाद आईं। उन्होंने अपनी किताब ‘वंडरिंग्स ऑफ ए पिलग्रिम इन सर्च ऑफ द पिक्चर्स’ में लिखा है- ‘जब मैं इलाहाबाद पहुंची, तो वहां मेला लगा हुआ था। नागा साधु और वैष्णव संतों का हुजूम स्नान के लिए जा रहा था। मैं कई विवाहित महिलाओं से मिली, जिनकी संतान नहीं थी। उन लोगों ने प्रतिज्ञा की थी कि पहली संतान होगी तो वे गंगा को भेंट कर देंगी।’ पूरी खबर पढ़ें...
‘बांग्लादेशी-रोहिंग्या हर जगह बसते जा रहे हैं। AAP अपने वोट बैंक के लिए देश को सराय बना रही है। हम आएंगे तो इन्हें सबक सिखाएंगे।’ 11 जनवरी को दिल्ली की कालकाजी सीट से BJP कैंडिडेट रमेश बिधूड़ी ने ये दावा किया। इससे पहले 10 दिसंबर, 2024 को दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना ने दिल्ली पुलिस को अवैध बांग्लादेशियों पर कार्रवाई का आदेश दिया। कार्रवाई हुई और 30 बांग्लादेशियों को डिपोर्ट करने के लिए FRRO (फॉरेन रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस) भेज दिया गया। BJP दिल्ली चुनावों में इसे बड़ा मुद्दा बना रही है। AAP इसे यूपी-बिहार से आकर बसे लोगों पर कार्रवाई की तरह पेश कर रही है। उधर, इस राजनीति से दूर 8 डिग्री वाली ठंड और शीतलहर में कालिंदी कुंज के रोहिंग्या कैंप में रहने वाली अनवरा अपना चूल्हा सुलगाने की कोशिश कर रही है। उत्तम नगर की काली बस्ती और श्रम विहार के कैंप में रहने वाले लोग भी डरे हुए हैं। आइए, स्पेशल सीरीज ‘हम भी दिल्ली’ के पहले एपिसोड में समझते हैं कि इस पूरे बवाल में जिन रोहिंग्या और बांग्लादेशियों का नाम लिया जा रहा है क्या वे इस काबिल हैं कि दिल्ली चुनावों में असर डाल सकें… कैंप 1 - कालिंदी कुंजहमने तो कभी बिजली नहीं देखी, वोट देकर किसी को क्या जिताएंगे‘मैं 12 साल से दिल्ली में हूं। घर में कभी बिजली नहीं देखी। घर में सूरज की रोशनी तक नहीं आती। मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाते हैं। कमरा धुएं से भर जाता है। कभी-कभी लगता है जेल में हूं।' अनवरा कालिंदी कुंज के रोहिंग्या कैंप की हालत बता रही होती है, तो गुस्सा और बेबसी उसके चेहरे पर साफ नजर आती है। जिन रोहिंग्या और बांग्लादेशियों पर बवाल मचा है, उन्हें ढूंढते हुए हम कालिंदी कुंज पहुंचे हैं। हम कैमरा निकालते हैं, तो अनवरा घबरा जाती है। कहती है- ये सब मत करिए, पुलिस पहले ही परेशान कर रही है। हम तो बांग्लादेशी भी नहीं। कार्ड भी है, लेकिन पुलिस बार-बार चेकिंग करने आती है। जिसे अनवरा घर कह रही है, वो बांस की बल्लियों पर टीन शेड, प्लास्टिक, छप्पर और पुराने कंबलों से बनाई हुई झोपड़ी है। बगल वाला घर जावेद (बदला हुआ नाम) का है, वे भी कैमरे पर नहीं आना चाहते। जावेद कहते हैं, ‘हम रोहिंग्या किसी को वोट नहीं दे सकते हैं। ये जो चुनाव से पहले बांग्लादेशी और रोहिंग्या का मुद्दा है, उससे हम डरे हुए हैं। डर है कि हमें डिटेंशन सेंटर भेज दिया जाएगा।’ जावेद का डर ठीक भी है। 10 दिसंबर को पुलिस ने घुसपैठियों के खिलाफ अभियान की शुरुआत यहीं से की थी। रोहिंग्या बस्ती में आधार कार्ड और दस्तावेज चेक किए। अब हालात ये हैं कि कैंप के लोग डर की वजह से मजदूरी करने नहीं जा रहे। जावेद बताते हैं, ‘अपने देश (म्यांमार) से जान बचाकर यहां आए हैं, अब यहां भी हमारे लिए वैसे ही हालात बनाए जा रहे हैं,। वहां भी राजनीति थी, यहां भी है।‘ पुलिस ने कहा है- मीडिया से बात मत करनाकालिंदी कुंज के रोहिंग्या कैंप में हमारी मुलाकात 34 साल के कबीर से हुई। वे रोहिंग्या हैं। कबीर कैमरे पर आने से डरते हैं। वे बताते हैं, 'यहां 300 परिवार रहते हैं। सब मजदूरी करते हैं, दिन के 200 से 500 रुपए कमा पाते हैं। गुजारा मुश्किल से होता है। कुछ महीने पहले लोग झुग्गी हटाने आए थे।’ कैमरे पर न आने के सवाल पर कबीर कहते हैं, ‘दिल्ली में जब से बांग्लादेशी और रोहिंग्या का मुद्दा उठा है, पुलिस ने हमें मीडिया से बात करने से मना कर दिया है।’ वे आगे कहते हैं, ‘हमारी बस्ती में न तो पानी आता है और न बिजली है। दिल्ली सरकार ने बाकी झुग्गियों में फ्री बिजली और पानी दिया, लेकिन हमारे कैंप में वो भी नहीं है। फिर भी हम भारत के शुक्रगुजार हैं, जब हमारे देश ने हमें निकाल दिया, तब भारत ने ही हमें जगह दी।' कालिंदी कुंज की हिंदू बस्ती:हम तो बांग्लादेशी नहीं, फिर भी चेकिंग करके परेशान कर रहेरोहिंग्या कैंप के ठीक सामने नाले के दूसरी तरफ हिंदू बस्ती है। इस बस्ती में हमारी मुलाकात बिहार के मुजफ्फरपुर से आकर यहां बसे नरेंद्र सैनी से हुई। वे कहते हैं, ‘20 साल से दिल्ली में हूं। हमें उनसे (रोहिंग्या) से कोई दिक्कत नहीं। वे भी हमारी तरह झुग्गी-झोपड़ी में रह रहे हैं। वो अपना कमाते-खाते हैं।' पास ही बैठे धीरज भी अपनी मुश्किलें बताने लगते हैं। कहते हैं, ‘'यहां पानी और बिजली की दिक्कत है। मैं श्मशान में सेवादारी करता हूं। महीने के 8 हजार रुपए मिलते हैं। मेरे पास वोटर आईडी कार्ड है। यहां बिजली है, लेकिन हमें उसके पैसे देने पड़ते हैं। हर महीने 1000 से 1500 रुपए इस जमीन का मालिक भी लेता है।’ 'ये सच है कि कुछ बांग्लादेशी यहां रह रहे थे। उन्हें यहां से हटाकर कालिंदी कुंज मेट्रो स्टेशन के नीचे रहने के लिए झुग्गियां दी हैं।' सरकार को ही नहीं पता देश में कितने बांग्लादेशी और रोहिंग्या झारखंड के बाद दिल्ली में BJP भले ही जोर-शोर से अवैध बांग्लादेशियों का मुद्दा उठा रही है, लेकिन देश में इनकी संख्या का ठीक-ठीक पता किसी को नहीं। इसे लेकर मोदी सरकार के मंत्रियों के सिर्फ दावे हैं। साल 2016 में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि भारत में 2 करोड़ अवैध बांग्लादेशी रह रहे हैं। इससे पहले साल 2004 में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने राज्यसभा में ये आंकड़ा 1 करोड़ 20 लाख बताया था। जवाब में असम में 50 लाख और पश्चिम बंगाल में 57 लाख बांग्लादेशी होने का दावा किया गया था। BJP ने बवाल शुरू किया तो सरकार ने जवाब वापस ले लिया था। श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा था कि ये आंकड़ा सही नहीं है और मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित था। भले ही BJP ने 2 करोड़ का आंकड़ा वापस न लिया हो, लेकिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जो जवाब दिया है, वो चौंकाने वाला है। 11 दिसंबर, 2023 को केंद्र सरकार ने एक हलफनामा दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट में ये माना है कि उनके पास देश में अवैध प्रवासियों की संख्या का कोई भी आधिकारिक डेटा मौजूद नहीं है। होम सेक्रेटरी अजय भल्ला की तरफ से ये जानकारी कोर्ट को दी गई थी। कैंप 2- शाहीन बागकेजरीवाल ने भी हमारे लिए कुछ नहीं कियाकालिंदी कुंज के बाद हम शाहीन बाग के श्रम विहार कैंप पहुंचे। यहां रोहिंग्या के साथ यूपी से आए 50 परिवार, बिहार से आए 30 परिवार और पश्चिम बंगाल से आए 35 परिवार रहते हैं। यहां भी रोहिंग्या और बांग्लादेशियों ने बात करने से मना दिया। पुलिस ने उन्हें मीडिया से बात करने से मना किया है। हालांकि, लखनऊ से आकर यहां बसे रमजान अली बताते हैं, 'हमें यहां सिर्फ जमीन मिली। झुग्गी हमने खुद बनाई है। 6 लोग एक ही झुग्गी में रहते हैं। कुछ भी फ्री नहीं है। बिजली का 12 रुपए प्रति यूनिट बिल भरते हैं। हर महीने 1000 से 1500 रुपए बिल आ जाता है। 1000 रुपए किराया भी देना पड़ता है।’ ‘पास में ही पानी का प्लांट है। वहां पैसे देकर पानी लाते है, तब घर के काम होते हैं। यहां साफ-सफाई का कोई इंतजाम नहीं। कचरा उठाने भी कोई नहीं आता।' रोहिंग्या के सवाल पर वे कहते हैं, 'हमें उनके साथ रहते हुए 13 साल हो गए। कभी कोई परेशानी नहीं हुई। हमें उनसे कोई डर नहीं है। उन्होंने कभी हमारे साथ कोई गलत काम नहीं किया। हम तो यहीं के रहने वाले हैं। अपने पिता और दादा के दस्तावेज भी दिखा देंगे।' आखिर में बात उत्तम नगर की काली बस्ती की…यहां बांग्लादेशी-रोहिंग्या मुद्दा, लोग बोले- इन्हें दिल्ली से हटाना जरूरीदिल्ली में जब बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठा, तब पुलिस ने काली बस्ती से ही 5 बांग्लादेशी नागरिकों को पकड़ा था। हम इस बस्ती में पहुंचे। सड़क के एक ओर मुसलमान, तो दूसरी तरफ हिंदू रहते हैं। यहां बांग्लादेशी-रोहिंग्या मुद्दे का असर नजर आता है। यहां हमें सुबोध पासवान मिले। वे कहते हैं, 'मुझे नहीं पता ये लोग (बांग्लादेशी) कहां से रहने आ गए। मुझे तो इनसे अब डर लगता है। सरकार और पुलिस को जांच करनी चाहिए। हमारी बस्ती में कई घुसपैठिए रहते हैं। हमने कई बार देखा है कि एक खास पहनावे के लोग बस्ती के लोगों को मदरसे में ले जाते हैं।' वे आगे कहते हैं, 'यहां हिंदुओं का गुजारा नहीं हो सकता। अब दिल्ली से केजरीवाल को जाना चाहिए। अब हमें योगी बाबा (योगी आदित्यनाथ) जैसा कोई CM चाहिए, जो इन सबकी जांच करवा सके।' सुबोध दिल्ली सरकार से नाखुश हैं। वे कहते हैं, 'केजरीवाल ने हमारे इलाके में कोई मोहल्ला क्लिनिक नहीं बनवाया। किसी के घर में टॉयलेट नहीं है। हमारे यहां मुफ्त की बिजली भी नहीं आती। हमने अभी 690 रुपए बिजली का बिल दिया है।' यहां मिले दिनेश कुमार 35 साल पहले बिहार से दिल्ली आए थे। बांग्लादेशी-रोहिंग्या मुद्दे का असर उन पर भी दिखता है। वे कहते हैं, 'पूरी दिल्ली में बांग्लादेशी भरे पड़े हैं। हमारे पीछे बस्ती में जाकर देखिए, सभी बांग्लादेशी मुसलमान हैं। उनमें कोई हिंदू नहीं है।' वहीं, मुजफ्फरनगर से यहां आकर रह रहे सुनील भी यही मानते हैं। वे कहते हैं, 'बांग्लादेशी और रोहिंग्या ने दिल्ली में आतंक मचा रखा है। छोटी-सी बात पर पथराव और चाकूबाजी शुरू हो जाती है।’ हालांकि, मुस्लिम बस्ती में रहने वाले अरुण की राय अलग है। वे कहते हैं, 'झुग्गी में हिंदू-मुसलमान मिलकर रहते हैं। केजरीवाल का काम अच्छा है और यही हकीकत है। वो हम गरीबों के लिए खड़ा है। उन्होंने पानी, बिजली और बस का सफर सब फ्री कर दिया।' वहीं रुखसाना कहती हैं, 'हमें फ्री बिजली और पानी मिल रहा है। बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने जा रहे हैं। BJP सिर्फ हिंदू और मुसलमान के बीच झगड़ा करा रही है। उन्होंने गरीबों के लिए कोई विकास नहीं किया। हमें पता है जब चुनाव आता है, तब BJP के लोग मस्जिद-मंदिर के अलावा कुछ नहीं करते। जनता विकास पर वोट देगी।' आइए अब जानते हैं पॉलिटिकल पार्टियां क्या कह रहीं…BJP: दिल्ली में वोट जिहाद नहीं होने देंगेBJP का प्रदेश मंत्री विनोद बछेती कहते हैं, ‘रोहिंग्या और बांग्लादेशी का मुद्दा शीला दीक्षित के वक्त पर नहीं था। ये पिछले 7-8 साल में सामने आया है। दिल्ली में क्राइम बढ़ गया है। ये कौन कर रहा है, ये समझने के लिए हमें इन ढाई से तीन लाख वोटरों की जांच करनी होगी।’ वे दिल्ली सरकार पर इन्हें पनाह देने का आरोप लगाते हुए कहते हैं, 'ओखला विधानसभा से अमानतुल्लाह खान AAP विधायक हैं। वहां इन लोगों को राशन कार्ड से लेकर महीने के 10 हजार रुपए, DTC बस, मोहल्ला क्लिनिक समेत दिल्ली सरकार की सभी योजनाओं का फायदा मिल रहा है। दिल्ली में वोट जिहाद पर लगाम लगानी होगी।' AAP: रोहिंग्या बताकर पूर्वांचल के लोगों का वोट काट रहेबुराड़ी सीट से AAP के उम्मीदवार और पार्टी प्रवक्ता संजीव झा कहते हैं, 'BJP के सभी नेता रोहिंग्या और बांग्लादेशी के वोट हटाने की बात कह रहे हैं। हमने उन सभी का सर्वे कराया, जिनके नाम वोटर लिस्ट से काटे गए थे। वे सभी पूर्वांचल के लोग थे। हमारे सांसद संजय सिंह ने यही बात राज्यसभा में उठाई।' 'BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा है कि चाहे रोहिंग्या हों, घुसपैठिए हों या पूर्वांचली, सबके वोट काटे जाएंगे। वे दिल्ली का अहम हिस्सा हैं।' कांग्रेस: इंटेलिजेंस और गृह मंत्री का फेलियरकांग्रेस प्रवक्ता अजय वर्मा कहते हैं, 'घुसपैठिए मोदी जी के लाडले हैं। 2014 में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि एक-एक घुसपैठिए को निकाला जाएगा। BJP 2014 से उनकी लिस्ट जारी करे, जिन्हें अब तक देश से निकाल दिया गया हो।' बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर BJP खुद घिरीदिल्ली चुनाव में बांग्लादेशी घुसपैठ और रोहिंग्या के मुद्दे के सियासी असर को समझने के लिए हमने पॉलिटिकल एक्सपर्ट सायंतन घोष से भी बात की। वे कहते हैं, ‘BJP ने झारखंड के विधानसभा चुनाव में भी इसी तरह का मुद्दा उठाया था, लेकिन वो काम नहीं आया। आम आदमी पार्टी भी वही कर रही है, जो BJP हर चुनाव में करती है।‘ ‘यहां दो बातें दिख रही हैं। पहली ये कि AAP अवैध घुसपैठ के मुद्दे के खिलाफ नहीं है। दूसरा, उन्हें मुसलमान का वोट चाहिए, लेकिन वो BJP के हिंदू वोट बैंक को भी टारगेट कर रही है। लोकसभा चुनाव में 15% हिंदू वोटर BJP के पास चला गया था। इसलिए AAP इस तरह की रणनीति लेकर आई। AAP के पास BJP के हर सवाल का जवाब है।‘ .............................. स्टोरी में सहयोग: अदिति ओझा, भास्कर फेलो..............................दिल्ली चुनाव को लेकर AAP और BJP की स्ट्रैटजी भी पढ़ें... 1. BJP ने 30 SC बहुल सीटों पर लगाए 45000 कार्यकर्ता, अंबेडकर-संविधान पर जोर BJP का दलित वोटर्स वाली सीटों पर ज्यादा फोकस है। दलितों के हिसाब से मुद्दों की लिस्ट बनाई जा रही है। बूथ लेवल पर 45 हजार से ज्यादा कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। दिल्ली में 70 सीटों पर 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव होने हैं। दिल्ली में करीब 18% यानी 44 लाख दलित वोटर्स है। BJP की इन्हें साधने की कवायद का बहुत असर नहीं दिख रहा। पढ़िए पूरी खबर... 2. केजरीवाल ने 1000 वोटर्स पर लगाए 12 कार्यकर्ता, बस्तियों में फ्री बिजली-इलाज का वादा दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता हर रोज दो टीमें बनाकर निकलते हैं। एक टीम ऐसे इलाके में जाती है, जहां जरूरतमंद लोग रह रहे हों। उनके बीच जाकर कार्यकर्ता सरकारी स्कीम जैसे फ्री बिजली-पानी और इलाज की बातें करते हैं। दूसरी टीम ऐसे इलाकों में जाती है, जहां अमीर लोग रहते हैं। ये विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी की स्ट्रैटजी है। पढ़िए पूरी खबर...
अमेरिका से सौदा करेगा तालिबान? US की जेल में बंद अपने आतंकियों को छुड़ाने के लिए बनाया गजब का प्लान
Afghanistan: अफगानिस्तान में तालिबान प्रशासन ने अपने देश में बंद 3 अमेरिकी नागरिकों को रिहा करने का मन बना लिया है, हालांकि उनकी शर्त है कि अमेरिका को इसके बदले डिटेंशन कैंप में बंद अपने 2 आतंकवादियों को रिहा करना होगा.
रूस ने हमला किया तो यूक्रेन ने अपने ही देश में काट दी बिजली.. आखिर इसका क्या फायदा हुआ?
Ukraine power cut: बिजली कटौती का मुख्य उद्देश्य हमलों के प्रभाव को सीमित करना और ऊर्जा प्रणाली को गंभीर नुकसान से बचाना था. यूक्रेन की वायु सेना ने कई रूसी क्रूज मिसाइलों का पता लगाया और नागरिकों से आश्रय स्थलों में रहने की अपील की.
Russia Ukraine War: हाल ही में रूस के साथ युद्ध के बाद यूक्रेनी सैनिक कुर्स्क इलाके के बर्फीले क्षेत्रों में शवों की खोज कर रहे थे. इस दौरान उन्हें हजारों उत्तर कोरियाई सैनिकों के शव मिले. इनमें से एक सैनिक जिंदा था और उसने यूक्रेनी सैनिकों को देखते ही खुद को विस्फोट से उड़ा लिया.
America: अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन हाल ही में एक इजरायल-हमास सीजफायर डील को लेकर स्पीच दे रहे थे. इस दौरान कुछ फिलिस्तीनी समर्थकों ने उन्हें बीच में टोकते हुए तरह-तरह के नामों से पुकारना शुरू कर दिया. यहां तक कि उन्हें राक्षस भी कहा गया.
भारत ये समझता है, लेकिन अमेरिका QUAD को.... रूस ने USA को सुना दी खरी खरी
Russsi News: रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने क्वाड की आलोचना करते हुए अमेरिका पर इसे सैन्य-राजनीतिक आयाम देने का आरोप लगाया. उन्होंने भारत का जिक्र करते हुए कहा कि इसके बारे में हमारे भारतीय मित्र अच्छी तरह से वाकिफ हैं.
Brazil: ब्राजील में रहने वाले पॉलो अल्बर्टो दा सिल्वा कोस्टा नाम के एक व्यक्ति को उनकी फेसबुक पोस्ट के चलते अरेस्ट कर लिया गया. हैरानी की बात ये है कि अल्बर्टो की कोई क्राइम हिस्ट्री नहीं थी और न ही उन्होंने कोई गलत काम किया था.
सेक्स के दौरान हुई लड़की मौत... गुस्साए परिवार ने कर दी कानून में बदलाव की मांग
मैनचेस्टर में एक लड़की की सेक्स के दौरान हुई मौत का मामला बढ़ता जा रहा है. नाराज और गुस्साए परिवार ने महिला के नाम पर कानून में बदलाव करने की मांग कर डाली है. इस मुहिम के तहत उन्होंने याचिका पर 1700 से ज्यादा लोगों के हस्ताक्षर भी करा लिए हैं.
1 फरवरी 1888, प्रयाग में कुंभ चल रहा था। इसी बीच ब्रिटेन के अखबार ‘मख्जान-ए-मसीही’ में कुंभ को लेकर एक खबर छपी। खबर में लिखा था- ‘कुंभ में 400 वस्त्रहीन साधुओं ने जुलूस निकाला। लोग इनके दर्शन के लिए दोनों तरफ खड़े थे। कुछ लोग इनकी पूजा भी कर रहे थे। इनमें पुरुषों के साथ महिलाएं भी थीं। एक अंग्रेज अफसर इनके लिए रास्ता बनवा रहा था। ब्रिटेन में सरकार न्यूडिटी पर सजा देती है, लेकिन इंडिया में तो वस्त्रहीन साधुओं के जुलूस में जॉइंट मजिस्ट्रेट रैंक का अफसर भेजा जा रहा। ये दुखद है।’ इसके बाद ईसाइयों की सबसे बड़ी संस्था ‘क्रिश्चियन ब्रदरहुड' के अध्यक्ष आर्थर फोए ने ब्रिटेन के एक सांसद को चिट्ठी लिखी। फोए ने लिखा- ‘वस्त्रहीन साधुओं के जुलूस से तो शिक्षित हिंदू समाज भी शर्म से गड़ जाता है। इस काम के लिए ब्रितानी सरकार ने अंग्रेज अफसर को क्यों तैनात किया? ऐसा करना ईसाई धर्म के लिए शर्म की बात है। ऐसा लगता है कि भारतीयों ने अंग्रेजों को झुका दिया है।’ 16 अगस्त 1888 को सरकार ने फोए की चिट्ठी का जवाब देते हुए लिखा- 'इलाहाबाद और बाकी जगहों पर ये साधु परंपरागत रूप से शोभायात्रा निकालते हैं। ये हिंदू समाज में बहुत पवित्र माने जाते हैं। हमें तो इनमें कोई बुराई नहीं दिखती।’ वस्त्रहीन जुलूस निकालने वाले ये साधु ‘नागा संन्यासी’ थे। हर बार कुंभ में पहला शाही स्नान नागा संन्यासी ही करते हैं। ‘महाकुंभ के किस्से’ सीरीज के चौथे एपिसोड में आज कहानी नागा संन्यासी बनने की… नागा शब्द संस्कृत के ‘नग’ से बना है। नग मतलब पहाड़। यानी पहाड़ों या गुफाओं में रहने वाले नागा कहलाते हैं। 9वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने दशनामी संप्रदाय की शुरुआत की। ज्यादातर नागा संन्यासी इसी संप्रदाय से आते हैं। इन संन्यासियों को दीक्षा देते वक्त दस नामों से जोड़ा जाता है। ये दस नाम हैं- गिरी, पुरी, भारती, वन, अरण्य, पर्वत, सागर, तीर्थ, आश्रम और सरस्वती। इसलिए नागा साधुओं को दशनामी भी कहा जाता है। नागा संन्यासी दो तरह के होते हैं- एक शास्त्रधारी और दूसरा शस्त्रधारी। दरअसल, मुगलों के आक्रमण के बाद सैनिक शाखा शुरू करने की योजना बनी। शुरुआत में कुछ नागा साधुओं ने इसका यह कहते हुए विरोध किया कि वे आध्यात्मिक हैं, उन्हें शस्त्र की जरूरत नहीं। बाद में शृंगेरी मठ ने शस्त्र-अस्त्र वाले नागा साधुओं की फौज तैयार की। पहले इसमें सिर्फ क्षत्रिय शामिल होते थे। बाद में जातियों का बैरियर हटा दिया गया। नागा बनने की 3 स्टेज, अखाड़े वाले घर जाकर करते हैं पड़ताल आमतौर पर नागा बनने की उम्र 17 से 19 साल होती है। इसके तीन स्टेज हैं- महापुरुष, अवधूत और दिगंबर, लेकिन इससे पहले एक प्रीस्टेज यानी परख अवधि होती है। जो भी नागा साधु बनने के लिए अखाड़े में आवेदन देता है, उसे पहले लौटा दिया जाता है। फिर भी वो नहीं मानता, तब अखाड़ा उसकी पूरी पड़ताल करता है। अखाड़े वाले उम्मीदवार के घर जाते हैं। घर वालों को बताते हैं कि आपका बेटा नागा बनना चाहता है। घरवाले मान जाते हैं तो उम्मीदवार का क्रिमिनल रिकॉर्ड देखा जाता है। इसके बाद नागा बनने की चाह रखने वाले व्यक्ति को एक गुरु बनाना होता है और किसी अखाड़े में रहकर दो-तीन साल सेवा करनी होती है। वरिष्ठ संन्यासियों के लिए खाना बनाना, उनके स्थानों की सफाई करना, साधना और शास्त्रों का अध्ययन करना, इनका काम होता है। वह एक टाइम ही भोजन करता है। काम वासना, नींद और भूख पर काबू करना सीखता है। इस दौरान यह देखा जाता है कि वो मोह-माया के चक्कर में तो नहीं पड़ रहा। उसे घर-परिवार की याद तो नहीं आ रही। अगर कोई उम्मीदवार भटका हुआ पाया जाता है, तो उसे घर भेज दिया जाता है। पहली स्टेज- महापुरुष : गुरु प्रेम कटारी से शिष्य की चोटी काटते हैं जो परख अवधि में खरा उतरता है, उसे वापस संसारी दुनिया में लौटने की सलाह दी जाती है। फिर भी वह नहीं लौटता है, तो उसे संन्यास जीवन में रहने की प्रतिज्ञा दिलाई जाती है। उसे 'महापुरुष' घोषित करके पंच संस्कार किया जाता है। पंच संस्कार यानी शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश को गुरु बनाना पड़ता है। अखाड़े की तरफ से इन्हें नारियल, भगवा वस्त्र, जनेऊ, रुद्राक्ष, भभूत सहित नागाओं के प्रतीक और आभूषण दिए जाते हैं। इसके बाद गुरु अपनी प्रेम कटारी से शिष्य की शिखा यानी चोटी काट लेते हैं। इस मौके पर शीरा और धनियां बांटा जाता है। दूसरी स्टेज- अवधूत : जीते जी खुद का पिंडदान, 108 डुबकियां लगानी पड़ती हैं महापुरुष को अवधूत बनाने के लिए सुबह चार बजे उठाया जाता है। नित्य कर्म और साधना के बाद गुरु इन्हें लेकर नदी किनारे पहुंचते हैं। उसके शरीर से बाल हटाकर नवजात बच्चे जैसा कर देते हैं। नदी में स्नान कराया जाता है। वह पुरानी लंगोटी छोड़कर नई लंगोटी धारण करता है। इसके बाद गुरु जनेऊ पहनाकर दंड, कमंडल और भस्म देते हैं। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर धनंजय चोपड़ा अपनी किताब 'भारत में कुंभ' में लिखते हैं- ‘महापुरुष नागाओं को तीन दिन तक उपवास रखना होता है। फिर वह खुद का श्राद्ध करता है। उसे 17 पिंड दान करने होते हैं। 16 अपने पूर्वजों के और 17वां पिंडदान खुद का। इसके बाद वह सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है। वह नया जीवन लेकर अखाड़े में लौटता है।’ इसके बाद आधी रात में विरजा यानी विजया यज्ञ किया जाता है। गुरु एक बार फिर महापुरुष से कहते हैं कि वो चाहे तो सांसारिक जीवन में लौट सकता है। जब वह नहीं लौटता, तो यज्ञ के बाद अखाड़े के आचार्य, महामंडलेश्वर या पीठाधीश्वर महापुरुष को गुरुमंत्र देते हैं। इसके बाद उसे धर्म ध्वजा के नीचे बैठाकर ऊं नम: शिवाय का जाप कराया जाता है। अगले दिन सुबह चार बजे महापुरुष को फिर गंगा तट पर लाया जाता है। 108 डुबकियां लगवाई जाती हैं। इसके बाद दंड-कमंडल का त्याग कराया जाता है। अब वह अवधूत संन्यासी बन जाता है। इस 24 घंटे की प्रक्रिया में उसे उपवास रखना होता है। तीसरी स्टेज- दिगंबर : जननांग की नस खींची जाती, कुंभ में शाही स्नान के बाद बनते हैं नागा 'भारत में महाकुंभ' किताब के मुताबिक अवधूत बनने के बाद दिगंबर की दीक्षा लेनी होती है। ये दीक्षा शाही स्नान से एक दिन पहले होती है। ये बेहद कठिन संस्कार होता है। इस दौरान गिने-चुने बड़े साधु ही मौजूद रहते हैं। इसमें अखाड़े की धर्म ध्वजा के नीचे उसे 24 घंटे बिना कुछ खाए-पिए व्रत करना होता है। इसके बाद तंगतोड़ संस्कार किया जाता है। इसमें सुबह तीन बजे अखाड़े के भाले के सामने आग जलाकर अवधूत के सिर पर जल छिड़का जाता है। उसके जननांग की एक नस खींची जाती है। साधक नपुंसक बन जाता है। इसके बाद सभी शाही स्नान के लिए जाते हैं। डुबकी लगाते ही ये नागा साधु बन जाते हैं। चार जगह लगने वाले कुंभ में जगह के हिसाब से इन नागा साधुओं को अलग-अलग नाम दिए जाते हैं। प्रयाग के कुंभ में नागा साधु बनने वाले को नागा, उज्जैन में खूनी नागा, हरिद्वार में बर्फानी नागा और नासिक में खिचड़िया नागा कहा जाता है। महिलाओं को ब्रह्मचर्य की परीक्षा पास करने में 10-12 साल लग जाते हैं महिलाएं भी नागा साधु बनती हैं। महिला नागा साधु को नागिन, अवधूतनी या माई कहा जाता है। ये वस्त्रधारण करती हैं। हालांकि कुछ चुनिंदा महिला नागा वस्त्र त्यागकर भभूत को ही वस्त्र बना लेती हैं। जूना अखाड़ा देश का सबसे बड़ा और पुराना अखाड़ा है। ज्यादातर महिला नागा इसी से जुड़ी हैं। 2013 में पहली बार इससे महिला नागा जुड़ीं थीं। सबसे ज्यादा महिला नागा इसी अखाड़े में हैं। इसके अलावा आह्वान अखाड़ा, निरंजन अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, अटल अखाड़ा और आनंद अखाड़े में भी महिला नागा हैं। सबसे सीनियर महिला नागा संन्यासी को अखाड़े में श्रीमहंत कहा जाता है। श्रीमहंत चुनी गई माई को शाही स्नान के दिन पालकी में लाया जाता है। उन्हें अखाड़े की ध्वजा और डंका लगाने का अधिकार होता है। महिला नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया भी पुरुष नागा साधुओं जैसी ही है। अंतर बस इतना है कि ब्रह्मचर्य पालन के लिए पुरुषों का जननांग निष्क्रिय किया जाता है, जबकि महिलाओं को ब्रह्मचर्य के पालन का संकल्प लेना होता है। कई महिलाओं को ये साबित करने में 10-12 साल भी लग जाते हैं। जब अखाड़े के गुरु को उस महिला पर भरोसा हो जाता है, तो वो दीक्षा देते हैं। दीक्षा के बाद महिला संन्यासी को सांसारिक कपड़ा छोड़कर अखाड़े से मिला पीला या भगवा वस्त्र पहनना होता है। इन्हें माता की पदवी दी जाती है। आटे को भस्मी, दाल को पनियाराम कहते हैं नागा साधु नागा साधु कोडवर्ड में बातें करते हैं। इसके पीछे दो वजह हैं। पहली- कोई फर्जी नागा इनके अखाड़े में शामिल नहीं हो पाए। दूसरी- मुगलों और अंग्रेजों के वक्त अपनी सूचनाएं गुप्त रखने के लिए यह कोड वर्ड में बात करते थे। धीरे-धीरे ये कोर्ड वर्ड इनकी भाषा बन गई। नागा साधु आटे को भस्मी, दाल को पनियाराम, लहसुन को पाताल लौंग कहते हैं। इसी तरह नमक को रामरस, मिर्च को लंकाराम, प्याज को लड्डूराम, घी को पानी और रोटी को रोटीराम कहते हैं। अखाड़ों में जो बैठक होती है उसे 'चेहरा' कहा जाता है। जहां अखाड़े की कीमती चीजें रखी जाती हैं, उसे मोहरा कहते हैं। चेहरा और मोहरा आमने-सामने होते हैं। नागा और वैरागी आपस में भिड़े, अंग्रेजों ने नागाओं को पहले स्नान का अधिकार दिया यदुनाथ सरकार अपनी किताब 'द हिस्ट्री ऑफ दशनामी नागा संन्यासीज' में लिखते हैं- 'कुंभ में पहले स्नान करने को लेकर हमेशा से विवाद होते रहे हैं। नागा साधुओं और वैरागी साधुओं के बीच खूनी जंग हुई है। 1760 के हरिद्वार कुंभ के दौरान पहले स्नान को लेकर नागा और वैरागी आपस में लड़ गए। दोनों ओर से तलवारें निकल आईं। सैकड़ों वैरागी संत मारे गए। 1789 के नासिक कुंभ में भी फिर यही स्थिति बनी और वैरागियों का खून बहा। इस खूनखराबे से परेशान होकर वैरागियों के चित्रकूट खाकी अखाड़े के महंत बाबा रामदास ने पुणे के पेशवा दरबार में शिकायत की। 1801 में पेशवा कोर्ट ने नासिक कुंभ में नागा और वैरागियों के लिए अलग-अलग घाटों की व्यवस्था करने का आदेश दिया। नागाओं को त्र्यंबक में कुशावर्त-कुंड और वैष्णवों को नासिक में रामघाट दिया गया। उज्जैन कुंभ में वैरागियों को शिप्रा तट पर रामघाट और नागाओं को दत्तघाट दिया गया। इसके बाद भी हरिद्वार और प्रयाग में पहले स्नान को लेकर विवाद जारी रहा। कुंभ पर अंग्रेजों के शासन के बाद तय किया गया कि पहले शैव नागा साधु स्नान करेंगे, उसके बाद वैरागी स्नान करेंगे। इतना ही नहीं, शैव अखाड़े आपस में ना लड़ें, इसलिए अखाड़ों की सीक्वेंसिंग भी तय की गई। तब से लेकर आज तक यही परंपरा चल रही है। स्केच : संदीप पाल ----------------------------------------------- महाकुंभ के किस्से-1 : अकबर का धर्म बदलने पुर्तगाल ने पादरी भेजा: जहांगीर ने अखाड़े को 700 बीघा जमीन दी; औरंगजेब बीमार होने पर गंगाजल पीते थे औरंगजेब गंगाजल को स्वर्ग का जल मानते थे। एक बार वे बीमार पड़े तो उन्होंने पीने के लिए गंगाजल मंगवाया। फ्रांसीसी इतिहासकार बर्नियर ने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा है- 'औरंगजेब कहीं भी जाता था तो अपने साथ गंगाजल रखता था। वह सुबह के नाश्ते में भी गंगाजल का इस्तेमाल करता था।' पूरी खबर पढ़ें... महाकुंभ के किस्से-2 : पहली संतान गंगा को भेंट करते थे लोग:दाढ़ी-बाल कटवाने पर टैक्स लेते थे अंग्रेज; चांदी के कलश में लंदन भेजा जाता था गंगाजल 1827 से 1833 के बीच एक अंग्रेज कस्टम अधिकारी की पत्नी फेनी पाकर्स इलाहाबाद आईं। उन्होंने अपनी किताब ‘वंडरिंग्स ऑफ ए पिलग्रिम इन सर्च ऑफ द पिक्चर्स’ में लिखा है- ‘जब मैं इलाहाबाद पहुंची, तो वहां मेला लगा हुआ था। नागा साधु और वैष्णव संतों का हुजूम स्नान के लिए जा रहा था। मैं कई विवाहित महिलाओं से मिली, जिनकी संतान नहीं थी। उन लोगों ने प्रतिज्ञा की थी कि पहली संतान होगी तो वे गंगा को भेंट कर देंगी।’ पूरी खबर पढ़ें...
यूं तो दिल्ली का शुरुआती ऐतिहासिक दस्तावेज पहली शताब्दी ईसा पूर्व में मिलता है। जब राजा ढिल्लू ने अपने नाम पर ये शहर बसाया, लेकिन दिल्ली दुनिया के सबसे पुराने निरंतर बसे हुए शहरों में से एक है। दिल्ली का इतिहास भारत की माइथोलॉजी यानी पौराणिक कथाओं जितना पुराना है। महाभारत के युद्ध में दिल्ली की बड़ी भूमिका थी। हालांकि तब इसे इंद्रप्रस्थ कहा जाता था... गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित महाभारत के पहले खंड के अध्याय 206 ‘विदुर आगमन राज्यलंभ पर्व' के अनुसार, धृतराष्ट्र जानते थे कि कौरवों और पांडवों में नहीं बनेगी। उन्होंने दोनों को संतुष्ट रखने के लिए राज्य का बंटवारा करने का सोचा। भीष्म और द्रोणाचार्य भी इससे सहमत थे। बंटवारे की बात मामा शकुनी को रास नहीं आई। उसने धृतराष्ट्र से कहा- अगर आधा राज्य ही देना है तो हस्तिनापुर क्यों दे रहे हैं, पांडवों को खांडवप्रस्थ दे दीजिए। हस्तिनापुर राजधानी, जबकि खांडवप्रस्थ भयानक जंगल था। इतना घना कि सूर्य की रोशनी भी नहीं आती थी। शकुनी की बात मान धृतराष्ट्र ने पांडवों को खांडवप्रस्थ दे दिया। हस्तिनापुर आज के मेरठ का इलाका और खांडवप्रस्थ दिल्ली है। लेखक आदित्य अवस्थी अपनी किताब 'दास्तान ए दिल्ली' में लिखते हैं कि जो आज की दिल्ली है यहां पहले नाग रहते थे। पांडवों ने अपनी राजधानी स्थापित करने के लिए अपने मामा के बेटे कृष्ण से सहायता मांगी। महाभारत के ‘आदिपर्व' के अनुसार एक किस्सा है कि महाराज श्वैतकि ने लगातार 12 साल तक एक यज्ञ किया था। उसमें लगातार घी की आहुति दी। जब अग्नि ने ये घी की आहुति ली तो उनका पेट खराब हो गया। परेशान होकर वे ब्रह्माजी के पास पहुंचे और समस्या का निदान मांगा। ब्रह्मा ने कहा कि अगर आप खांडवप्रस्थ के वनों को जला देंगे तो पेट ठीक हो जाएगा। अग्नि देव ने कई बार खांडव वन को जलाने की कोशिश की, लेकिन इंद्र के कारण नहीं जला पाए। महाभारत के अध्याय 'खांडववदाह पर्व' में लिखा है कि अग्नि ने ब्राह्मण का रूप बनाया और अर्जुन-कृष्ण के पास आए और कहा कि क्या आप मेरा पेट भर सकते हैं। कृष्ण-अर्जुन ने वचन दिया तो ब्राह्मण असली रूप में आए और कहा- मैं अग्नि हूं, इस खांडव वन को जलाकर मेरा पेट भर जाएगा, लेकिन इंद्र ऐसा नहीं होने दे रहे। अर्जुन ने पूछा- वो ऐसा क्यों करते हैं? तब अग्नि ने बताया कि यहां इंद्र के मित्र नागराज तक्षक परिवार सहित रहते हैं। उनकी रक्षा के लिए वे ऐसा करते हैं। महाभारत के अनुसार खांडव वन जलाने के लिए अर्जुन और इंद्र में युद्ध हुआ। इस बीच तक्षक परिवार समेत भाग गया, तो इंद्र ने युद्ध रोक दिया। उधर अग्नि ने खांडव वन को खाकर अपनी भूख और पेट दोनों ठीक कर लिए। इस बीच इंद्र अर्जुन के पराक्रम से प्रभावित हुए। इंद्र ने देवों के शिल्पकार विश्वकर्मा से खांडवप्रस्थ में एक दिव्य और रमणीय नगर बनाने को कहा। दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग की प्रोफेसर डॉ उपिंदर कौर अपनी किताब 'दिल्ली: प्राचीन इतिहास' में महाभारत की घटनाओं का जिक्र करते हुए लिखती हैं कि मायासुर ने विश्वकर्मा के साथ इंद्रप्रस्थ नगर बसाया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पहले डायरेक्टर जनरल अलेक्जेंडर कनिंघम के एक लेख के अनुसार इंद्रप्रस्थ वर्तमान दिल्ली में हुमायूं के मकबरे से लेकर फिरोजशाह कोटला के बीच वाले क्षेत्र में फैला शहर था। हालांकि इसे साबित करने वाले कोई पुख्ता दस्तावेज नहीं मिलते। पुराणों और महाभारत से जुड़ी किताबों के अनुसार इंद्रप्रस्थ में सफेद पत्थर से अनेक महल बनाए गए थे। इंद्रप्रस्थ की तुलना इंद्र के नगर अमरावती से की गई है। इंद्रप्रस्थ में एक किला बनाया गया था। इसके चारों ओर एक खाई थी। बताया जाता है कि पानी से भरी ये खाई 32 फुट गहरी और 6 एकड़ में फैली थी। इस खाई में हंस, कमल और कई जानवर रहते थे। किले के दरवाजे बेहद बड़े थे। यहां की प्लांड सड़कें एक दूसरे को 90 डिग्री के कोण पर काटती थी। यानी हर सड़क एक-दूसरे से जुड़ी हुई थी। सड़कों के दोनों और बड़े-बड़े छायादार वृक्ष लगे हुए थे। शहर में कई बाग-बगीचे, तालाब और झीलें थीं। बाग-बगीचों में मोर और कई पक्षी, हिरण आदि रहते थे। सुरक्षा के लिए शहर के चारों ओर दीवार थी, जिसमें 64 दरवाजे थे। किस्सा है कि महाराज युधिष्ठिर ने इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ किया। इसमें उनके चचेरे भाई दुर्योधन भी पहुंचे। महाभारत के सभापर्व के अनुसार जब दुर्योधन महल देखने पहुंचा तो उसे कई अजूबे दिखे। जब दुर्योधन भवन में घूम रहे थे, तो उन्हें लगा सामने पानी है। दुर्योधन ने वस्त्र ऊपर कर लिए, लेकिन वहां पानी नहीं था। आगे जाने पर सामान्य फर्श दिखा, लेकिन वह एक बावड़ी थी, जिसमें दुर्योधन गिर पड़े। ये देखकर भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव जोर-जोर से हंसने लगे। वहां मौजूद सेवक भी हंसने लगे। दुर्योधन ने खुद को अपमानित महसूस किया। इसके बाद उसने शकुनी के साथ मिलकर साजिश रची और युधिष्ठिर को चौसर के खेल में उलझाकर देश निकाला दिया। यहीं से महाभारत युद्ध की नींव पड़ी। वायु पुराण और मत्स्य पुराण सहित पौराणिक ग्रंथों में महाराज निचक्षु के शासनकाल का उल्लेख मिलता है। पुराणों के अनुसार महाराज निचक्षु पांडवों की सातवीं पीढ़ी के राजा थे। ऐसा लिखा जाता है कि उस समय गंगा में बाढ़ आई जिससे हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ सब डूब गए। इसके बाद महाराज निचक्षु ने कौशांबी को नई राजधानी बनाया और वहां रहने लगे। शोभित यूनिवर्सिटी मेरठ के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रियंक भारती ने इसे लेकर रिसर्च की है। उन्होंने महाभारत काल के प्रमाण खोजने का दावा किया है। एक रिसर्च पेपर में उन्होंने एआई की मदद से इन शहरों के डूबने के चित्र भी बनाए हैं। वे बताते हैं कि महाभारत युद्ध में कौरवों के मारे जाने के बाद पांडव इंद्रप्रस्थ छोड़कर मुख्य राजधानी हस्तिनापुर में रहने लगे थे। उनके पौत्र यहां राज्य कर रहे थे। दोनों शहर कैसे उजड़े इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। पांडवों के बाद दिल्ली के राजाओं में जिनका नाम आता है वो तोमर वंश था। इस वंश ने 676 से 1081 ईसवी तक शासन किया। आदित्य अवस्थी अपनी किताब 'दास्तान ए दिल्ली' में लिखते हैं कि एक बार तोमर राजा अनंगपाल द्वितीय के दरबार में एक ब्राह्मण आया। ब्राह्मण ने राजा को बताया कि लौह स्तंभ पृथ्वी को धारण करने वाले वासुकी शेषनाग के फन पर रखा हुआ है। ये उसी लौह स्तंभ की बात हो रही है जो कुतुब मीनार परिसर में है। जब तक यह स्तंभ स्थिर रहेगा तब तक तुम्हारा शासन और राज्य अचल रहेगा। तोमर राजा को ब्राह्मण की बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने अपने कर्मचारियों को इस लौह स्तंभ को उखाड़ने का आदेश दिया ताकि ये पता चल सके कि ब्राह्मण सच बोल रहा है या नहीं। स्तंभ उखाड़ा गया तो देखा गया कि उसके अंदर के हिस्से में कोई लाल रंग की चीज लगी हुई है। हो सकता है कि जमीन में गड़ा होने के कारण जंग लग गया हो। राजा ने ये देखने के बाद तुरंत फिर से लौह स्तंभी को उसी जगह गाड़ने के आदेश दिए। तब से दिल्ली में एक कहावत प्रचलित हो गई कि 'किल्ली तो ढिल्ली भई तोमर भए मतिहीन!' चंदबरदाई रचित काव्य 'पृथ्वीराज रासो” में इस कहानी का उल्लेख है। चांदनी चौक से बहती था यमुना मथुरा, कुरुक्षेत्र आज भी, इसलिए इंद्रप्रस्थ पर जोर खुदाई में मिले करीब 3 हजार साल पुराने बर्तन ________ दिल्ली चुनाव से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें 7 साल में भाजपा का वोट 5% बढ़ा लेकिन सीटें 31 से 8 हुईं; कांग्रेस 24% से 4% पर आई
‘मेरी कंपनियों ने 2024 में 2.70 बिलियन अमेरिकी डॉलर (करीब 22,410 करोड़ रुपए) का कारोबार किया है। ये कंपनियां अमेरिका, स्पेन, ब्रिटेन, हॉन्गकॉन्ग और दुबई में हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के कानूनों के मुताबिक, टैक्स जमा करने के बाद मेरी इनकम 7,640 करोड़ रुपए है। 2012 से 2019 तक मेरे खिलाफ टैक्स रिकवरी की कार्रवाई चली। अगर समझौता हो सकता है, तो मैं सभी बकाया देने के लिए तैयार हूं।’ ठग सुकेश चंद्रशेखर ने एक लेटर के जरिए फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण से ये अपील की है। बीते साल 7,640 करोड़ रुपए कमाने वाला सुकेश 2015 से जेल में बंद है। उस पर 200 करोड़ की ठगी का आरोप है। सुकेश के कारनामों की लिस्ट लंबी है। सुकेश ने 10वीं तक पढ़ाई की, फिर ठगी के धंधे में उतर गया। 2007 में 17 साल की उम्र में पहली बार बेंगलुरु पुलिस ने पकड़ा। 19 की उम्र में जेल गया। अमेरिका और ब्रिटेन में उसकी सट्टेबाजी की कंपनियां चलती हैं। इकोनॉमिक ऑफेंस विंग की स्पेशल सेल ने सुकेश पर सप्लीमेंट्री चार्जशीट तैयार की है। इसके मुताबिक वो जेल से ही एक्सटॉर्शन रैकेट चलाता था। जेल सुपरिंटेंडेंट से लेकर अधिकारी और नीचे के स्टाफ तक उससे पैसे लेते थे। कुछ खास लोगों की बैरक के आसपास ड्यूटी लगाई जाती थी। इसमें CCTV कैमरे लगे थे, लेकिन उन्हें ढंक दिया जाता था। इस सपोर्ट के बदले सुकेश हर महीने 1.5 करोड़ रुपए देता था। सबसे ज्यादा 66 लाख रुपए जेल सुपरिंटेंडेंट को मिलते थे। 10वीं तक पढ़ाई, रबर फैक्ट्री में उंगली कटी, गैराज में भी काम कियासुकेश की चार्जशीट में उसकी ठगी की शुरुआत से लेकर जेल में रहते हुए करोड़ों की ठगी की कहानियां दर्ज हैं। 2009 में जेल जाते वक्त सुकेश ने पुलिस के सामने बयान दिया था। हमने सुकेश के बयान की कॉपी पढ़ी। इससे पता चला कि वो सिर्फ 10वीं तक पढ़ा है। कार गैराज में काम कर चुका है। फिर ठगी का मास्टरमाइंड बन गया। सुकेश का पहला कबूलनामा2 फरवरी, 2009 को बेंगलुरु के कोरामंगला पुलिस स्टेशन में फर्जीवाड़े के केस में सुकेश चंद्रशेखर का बयान दर्ज हुआ था। सुकेश के इस बयान के मुताबिक, ‘मेरा जन्म 25 मार्च, 1990 को हुआ। पापा का नाम चंद्रशेखर और मां का नाम माला है। मैं उनका इकलौता बेटा हूं।’ ‘नर्सरी से 9वीं तक की पढ़ाई बाल्डविन बॉयज हाईस्कूल से की। यहां की पढ़ाई मुझे मुश्किल लगती थी, इसलिए 10वीं तक इंदिरा नगर के कैंब्रिज स्कूल से पढ़ा। 10वीं में मुझे 73% नंबर मिले थे। मन नहीं लगा, तो पढ़ाई छोड़ दी।‘ ‘पिता की रबर के पार्ट्स बनाने की फैक्ट्री थी। 2005 में पढ़ाई छोड़ने के बाद मैं उसी में काम करने लगा। उसी साल रबर मिक्सिंग मिल में मेरा बायां हाथ फंस गया और एक उंगली कट गई।‘ ‘मुझे कार मॉडिफाई करने का शौक था। इसलिए शिवाजी नगर एरिया के गैराज में कार मॉडिफिकेशन का काम करने लगा। इसके साथ कार रेसिंग भी करता था। ज्यादा पैसे कमाने के लिए रियल एस्टेट का काम शुरू किया। खाली मकान और प्लॉट का पता लगाता, उनका सौदा करवाकर कमीशन लेने लगा।’ ‘पैसा आने लगा, तो होटल, पब, डांस बार जाने लगा। तब और पैसों की जरूरत पड़ी। मैं लोगों से अलग-अलग नाम से मिलता था। कभी रवि कुमार तो कभी राहुल, कभी रोहित और डीके बन जाता। ‘रियल एस्टेट के काम में पहली बार बड़ी डील की। एक जमीन पर विवाद था। प्लॉट पर दावा करने वाली पार्टी को बताया कि मैं CM के बेटे का दोस्त हूं। उसके जरिए प्लॉट पर कब्जा दिला दूंगा। फिर नकली डॉक्युमेंट बनवाकर दे दिए। मुझे कमीशन में 65 लाख रुपए मिले। ये पहली बड़ी कमाई थी। इससे 4 कारें और सोने की ज्वेलरी खरीदी। अगस्त, 2007 में पुलिस ने मुझे पकड़ लिया।’ एक हफ्ते बाद छूटा, दूसरी बड़ी ठगी सरकारी टेंडर सेसुकेश ने बताया, ‘पुलिस ने पहली बार पकड़ा, तब मैं 17 साल का था। मुझे बाल सुधार गृह में रखा गया। एक हफ्ते बाद जमानत पर बाहर आ गया। वो केस पेंडिंग ही रहा। इसके बाद कुछ महीने माता-पिता के साथ रहा।’ ‘एक दिन उन्हें बताए बिना घर से चला गया। एक दोस्त के घर रहने लगा। उसके कंप्यूटर पर गूगल सर्च करते हुए सरकारी टेंडर देखा। इसमें कर्नाटक के ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट ने 500 GPS के लिए टेंडर निकाला था।’ ‘टेंडर के जरिए GPS बनाने वाली कंपनियों से कॉन्टैक्ट किया। दिल्ली की एक कंपनी के MD से बात की। उसे 500 GPS खरीदने का ऑफर दिया। फर्जी डॉक्यूमेंट दे दिए। फिर टेंडर के बदले एडवांस में 5% कमीशन लिया। ये करीब 1 लाख रुपए थे। उस समय मेरा बैंक अकाउंट नहीं था। इसलिए पापा के अकाउंट में पैसे मंगाए। धीरे-धीरे सारे पैसे निकाल लिए। पापा को पता नहीं चला।’ ‘इसके बाद भी टेंडर के बदले लाखों रुपए कमीशन कमाया। सरकारी बसों के टायर, स्कूलों में कंप्यूटर लगवाने के बदले कमीशन लिया। इन्हीं पैसों से 20 हजार रुपए का लैपटॉप खरीदा। फिर दोस्त का घर छोड़कर किराए पर फ्लैट ले लिया। कुछ पुराने दोस्तों के साथ होटल और बिजनेस में भी पैसे लगाए। इससे मेरी कमाई बढ़ती गई।’ अब 2017 के बाद की कहानी अरेस्ट हुआ, जेल में 100 से ज्यादा पुलिसवालों को रिश्वत दी सुकेश चंद्रशेखर 9 साल से जेल में है। उसे 29 मई 2015 को अरेस्ट किया गया था। सुकेश ने किंग इन्वेस्टमेंट नाम से एक कंपनी बनाई और लोगों से 2 हजार करोड़ रुपए ठग लिए। 2017 में उसे दिल्ली लाया गया। स्पेशल सेल की चार्जशीट के मुताबिक, सुकेश दिल्ली की रोहिणी जेल के 100 से ज्यादा स्टाफ को हर महीने रिश्वत देता था। ये रकम महीने में 1.3 करोड़ से 1.5 करोड़ तक होती थी। सुकेश को जेल के वॉर्ड नंबर-3 की बैरक नंबर 204 में रखा गया था। जेल सुपरिंटेंडेंट को हर महीने 66 लाख रुपए मिलते थे। ये पैसे दो बार में दिए जाते थे। जेल में तीन डिप्टी सुपरिंटेंडेंट थे। इनमें दो डिप्टी सुपरिंटेंडेंट को 5-5 लाख और सुभाष बत्रा नाम के डिप्टी सुपरिंटेंडेंट को 6 लाख रुपए मिलते थे। सुभाष को ज्यादा पैसे इसलिए मिलते थे क्योंकि उसका सीधे सुकेश से लिंक था। इसी तरह 5 असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट को 2-2 लाख रुपए हर महीने मिलते थे। सुकेश के खास असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट धरम सिंह मीणा को 5 से 10 लाख रुपए तक दिए जाते थे। 35 हेड वार्डर को हर महीने 30-30 हजार और 60 वार्डर को 20-20 हजार रुपए रिश्वत दी गई। बाकी स्टाफ को 20-30 लाख रुपए दिए जाते थे। 5 बार बिना वजह बैरक से निकला, 3 घंटे तक सुपरिंटेंडेंट ऑफिस में रहासुकेश के जेल में रहते हुए सितंबर 2020 से 21 सितंबर 2021 तक करीब एक साल के रिकॉर्ड की जांच हुई। इस दौरान वो जेल सुपरिंटेंडेंट ऑफिस से लेकर अपनी बैरक के बीच कुल 10 बार CCTV कैमरों में नजर आया। सुकेश के बैरक में भी CCTV कैमरा लगा था। उसे पर्दे और पानी की बोतलों से ढंक दिया गया। CCTV फुटेज और रिकॉर्ड की जांच में पता चला कि सुकेश 16 जुलाई से 5 अगस्त 2021 के बीच 4 बार जेल सुपरिंटेंडेंट ऑफिस में गया। हर बार कम से कम एक घंटे रहा। सबसे ज्यादा 3 घंटे 5 मिनट तक रुका। वो खास मीटिंग के लिए जेल सुपरिंटेंडेंट के ऑफिस में ही जाता था। रिकॉर्ड रजिस्टर के मुताबिक, सुकेश 12 महीने में करीब 75 बार बैरक से बाहर निकला। इसमें कोर्ट जाना भी शामिल है। 5 बार ऐसा हुआ, जब रिकॉर्ड में उसके बाहर जाने की वजह नहीं लिखी गई। पैरोल पर चेन्नई गया, वहां से आईफोन खरीदा, वही जेल में यूज किया सप्लीमेंट्री चार्जशीट में लिखा है कि पुलिस सुकेश को कस्टडी पैरोल पर चेन्नई ले गई थी। वहां सुकेश ने iPhone Pro-12 खरीदा था। उसका इस्तेमाल चेन्नई में किया। फिर उसे रोहिणी जेल ले आया। उसी फोन से जेल में रहते हुए वॉट्सएप और टेलीग्राम चलाता था। ठगी के लिए इसी फोन से चैट और कॉल करता था। इसकी बैरक में लगे कैमरे की निगरानी की जिम्मेदारी जेल सुपरिंटेंडेंट से लेकर कई अधिकारियों को थी, लेकिन किसी ने फोन इस्तेमाल करने का जिक्र नहीं किया। जांच में पता चला कि आईफोन के अलावा सुकेश के पास सैमसंग का बेसिक फोन भी था। इसके जरिए वो कॉल करता था। कनाडा के एप से खरीदे 100 से ज्यादा इंटरनेशनल नंबरसप्लीमेंट्री चार्जशीट में लिखा है कि सुकेश ने ठगी के लिए कॉल और मैसेज करने के लिए ऑनलाइन इंटरनेशनल नंबर खरीदे थे। उसके पास 100 से ज्यादा इंटरनेशनल नंबर थे। ये नंबर सितंबर 2018 में कनाडा के Hushed एप्लिकेशन से खरीदे थे। इन्हें जून 2021 तक यूज किया गया। जांच रिपोर्ट में दावा है कि उसने अलग-अलग लोगों को फोन करने के लिए 102 इंटरनेशनल नंबरों का इस्तेमाल किया। इन्हीं नंबरों के जरिए वो वॉट्सएप और टेलीग्राम चलाता था। उन्हीं से चैट और कॉलिंग करता था। जेल में रहते हुए गृह मंत्रालय का अधिकारी बन ठगे 200 करोड़ जेल में रहते हुए सुकेश ने फार्मा कंपनी रेनबैक्सी के मालिक शिविंदर सिंह की पत्नी अदिति सिंह से 200 करोड़ रुपए ठग लिए। दैनिक भास्कर के पास दोनों की वॉट्सएप चैट है। एक चैट में सुकेश ने खुद के PMO में होने की बात कही और शिविंदर को जल्द जमानत दिलाने का भरोसा दिया। धीरे-धीरे करके उसने 200 करोड़ ठग लिए। सुकेश को मीडिया और अफसरों से शिविंदर सिंह के बारे में पता चला था। उसने शिविंदर सिंह की पत्नी अदिति का फोन नंबर जुटाया। जून 2020 में खुद को कानून मंत्रालय के सचिव का अंडर सेक्रेटरी अभिनव बताकर अदिति सिंह से बात शुरू की। उसने शिविंदर सिंह को जमानत पर बाहर निकलवाने में मदद करने की बात कही। इसके बाद अदिति अभिनव बने सुकेश को भाई मानने लगी। सुकेश भी उसे सिस्टर बोलता था। सुकेश ने ये भी कहा कि सरकार कोविड-19 से निपटने के लिए शिविंदर को अपने पैनल में शामिल करना चाहती है। इसलिए जल्द जमानत देने की तैयारी में है। इसके लिए पार्टी को फंड की जरूरत होगी। सुकेश ने अदिति का भरोसा जीतकर और फिर धमकी देकर कुल 200 करोड़ की ठगी की। सुकेश ने लिखा गुड मॉर्निंग सिस्टर, 5 मिनट में ऑफिस पहुंच रहाजांच एजेंसी को 21 जुलाई 2021 की वॉट्सएप चैट मिली थी। इसमें सुकेश ने सुबह 9 बजे अदिति सिंह को मैसेज किया था। जिसमें लिखा था- ‘गुड मॉर्निग सिस्टर। 5 मिनट में ऑफिस पहुंच रहा हूं।’ फिर अदिति सिंह ने कोर्ट के मैटर का एक मैसेज किया। सुकेश ने जवाब दिया कि ये सिर्फ स्टेटमेंट के लिए है। बाकी कुछ नहीं है। ये पिछले दिन ही हुआ था। 29 जुलाई की चैट में अदिति सिंह दोपहर में एक बार कॉल करने के लिए पूछती हैं। इस पर सुकेश रिप्लाई करता है कि मैं PMO में हूं। शिविंदर सिंह और उनके भाई मलविंदर सिंह धोखाधड़ी के आरोप में जेल में बंद थे। ED उनकी जांच कर रही थी। ED के जांच अधिकारी उनकी पत्नी अदिति के अकाउंट पर भी नजर रख रहे थे। अकाउंट से करोड़ों का ट्रांजैक्शन होने पर शक हुआ। तब ED ने अदिति से पूछताछ की। पता चला कि सुकेश खुद को गृह मंत्रालय का अधिकारी बताकर उनसे ठगी कर रहा है। अभी इस केस का कोर्ट में ट्रायल चल रहा है। वकील बोले- टैक्स और 220 करोड़ की डिमांड पर सेटलमेंट को तैयारसुकेश ने जेल में रहते हुए बीते 7 जनवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लेटर भेजा। ये लेटर सुकेश के वकील अनंत मलिक के जरिए भेजा गया है। अनंत मलिक ने दैनिक भास्कर को बताया, ‘इनकम टैक्स विभाग ने सुकेश से 2012 से 2019 तक 220 करोड़ रुपए की डिमांड की है। इस पर सुकेश चंद्रशेखर ने कहा है कि वो फुल एंड फाइनल सेटलमेंट करने को तैयार है। इसे लेकर संबंधित विभाग को लेटर भेजा गया है।‘ सुकेश की दो कंपनियां एलएस होल्डिंग्स इंटरनेशनल और स्पीड गेमिंग कॉर्पोरेशन अमेरिका के नेवादा और ब्रिटेन के वर्जिन आइलैंड में रजिस्टर्ड हैं। ये ऑनलाइन और ऑफलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी का बिजनेस करती हैं। .................................... ये खबरें भी पढ़ें... 1. कासगंज दंगा- चंदन के हत्यारों को पाकिस्तान से मिला फंड कासगंज दंगे में मारे गए चंदन के पिता सुशील गुप्ता को करीब 7 साल बाद राहत मिली है। मर्डर के 28 आरोपियों को 2 जनवरी को NIA की स्पेशल कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने बताया कि केस लड़ने के लिए आरोपियों को भारत के अलावा अमेरिका और ब्रिटेन से भी NGO के जरिए फंड मिल रहा था। हाईकोर्ट ने फंडिंग के मकसद पर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार से जांच की सिफारिश की है। पढ़िए पूरी खबर...2. मुरादाबाद में मॉब लिंचिंग, पुलिस बोली- सदमे से मरा शाहेदीन मुरादाबाद के असालतपुरा में रहने वाले शाहेदीन की 31 दिसंबर को मौत हो गई थी। परिवार का आरोप है कि गोकशी के आरोप में उसकी पीट-पीटकर हत्या की गई है। शाहेदीन मजदूरी करता था। जिस दिन उसे पीटा गया, वो काम के लिए मंडी गया था। वहीं कुछ लोगों ने उसे बुरी तरह पीटा। हालांकि, पुलिस का दावा है कि शाहेदीन बीमार था और उसकी मौत सदमे से हुई है। पढ़िए पूरी खबर...
दिल्ली विधानसभा चुनावों का ऐलान हो चुका है। 5 फरवरी को वोटिंग और 8 फरवरी को नतीजे आएंगे। दैनिक भास्कर के 4 रिपोर्टर्स की टीम दिल्ली के लोगों के बीच पहुंच चुकी है। उन लोगों की कहानियां सामने लाने के लिए जो दिल्ली चलाते हैं। 16 जनवरी से पढ़िए और देखिए हमारी स्पेशल सीरीज 'हम भी दिल्ली'। इसमें होगी उन लोगों की बात जो मंत्रालयों में नहीं, फुटपाथों पर बैठते हैं, लेकिन उनके बिना दिल्ली का चलना नामुमकिन है। इस सीरीज में बड़े सपने लेकर दिल्ली आए किराएदारों की बात होगी, तो राजधानी का लॉ एंड ऑर्डर संभाल रही पुलिस की कहानी भी सुनाएंगे। दिल्ली के स्लम से लेकर रिलीफ कैंप तक पहुंचेंगे और वहां रह रहे लोगों से चुनाव के मायने समझाएंगे। साथ ही सरकारी स्कूलों, कोचिंग और IAS फैक्ट्री वाली दिल्ली भी दिखाएंगे। हम बताएंगे कि कैसी है इस शहर को चलाने वाले हाउस हेल्प, ऑटो-कैब ड्राइवर, गिग वर्कर, मजदूर और छोटे व्यापारियों की जिंदगी। कैसे अपने ही कचरे के बोझ से दबी जा रही दिल्ली। सीरीज की सभी 10 स्टोरीज तीनों फॉर्मेट में, यानी खबरें पढ़ें, वीडियो देखें और पॉडकास्ट सुनें। तो पढ़ते और देखते रहिए दैनिक भास्कर एप…
कमर के ऊपर पूरे कपड़े, पैरों में जूते-मोजे, लेकिन नीचे सिर्फ एक अंडरवियर। लंदन मेट्रो का ये नजारा देख आप भी हैरान रह जाएंगे। पिछले रविवार यानी 12 जनवरी को जब लंदन में एवरेज टेंपरेचर 4 डिग्री से माइनस 3 डिग्री तक था, तब सैकड़ों लड़के, लड़कियां और बच्चों से लेकर बूढ़ों तक अंडरवियर में लंदन ट्यूब यानी मेट्रो में सफर कर रहे थे। ये सारे लोग ‘नो ट्राउजर्स ट्यूब राइड’ यानी नो पैंट्स डे मना रहे थे। हर साल मनाए जाने वाले इस इवेंट में लड़के-लड़कियां अजीबो-गरीब अंडरवियर्स में नजर आते हैं। आखिर क्या है नो पैंट्स डे और इसकी शुरुआत कैसे हुई, जानने के लिए देखिए ये वीडियो।
आज रात गिरफ्तार हो सकते हैं दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून? मिलिट्री यूनिट ने के फैसले से बढ़ी हलचल
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‘परीकथा वाला रोमांस’ बुरा सपना बन गया... भयानक मौत की कहानी अंदर तक झकझोर देगी
Torture: अपने आखिरी नोट में दुनिया को यह बताने के बाद कि मुझे इतना टॉर्चर किया गया है कि मेरी कभी भी मौत हो सकती है. मेरी हत्या के गुनहगार को सजा मिलनी चाहिए.
Bangladesh Chaos: अफवाह है कि जब जनरल वकार-उज-जमान विदेश दौरे पर थे, तब लेफ्टिनेंट जनरल फैजुर रहमान बांग्लादेशी राष्ट्रपति को हटाने की साजिश का हिस्सा थे. सूत्रों ने आरोप लगाया कि अगर आने वाले महीनों में मोहम्मद यूनुस पद छोड़कर ढाका से निकल जाते हैं तो फैजुल रहमान सेना प्रमुख को हटाने की साजिश का हिस्सा हो सकते हैं.
ट्रंप 2.0 में इवांका निभाएंगी ये बड़ी जिम्मेदारी, पॉडकास्ट में किया बड़ा खुलासा
Ivanka Trump: डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप हाल ही में लॉरेन और माइकल बॉस्टिक के पॉडकास्ट 'स्किनी कॉन्फिडेंशियल पॉडकास्ट' में नजर आईं. इस दौरान इवांका ने ट्रंप 2.0 के कार्यकाल में अपनी जिम्मेदारी को लेकर बातचीत की और व्हाइट हाउस में अपने पिछले अनुभवों के बारे में बताया.
South Korea political Crisis: महाभियोग का सामना कर रहे साउथ कोरिया के प्रेसिडेंट यून सुक योल की मुश्किलों में और इजाफा हो गया है. पार्लियामेंट्री स्पेशल कमेटी ने प्रेसिडेंट को लेकर को लेकर अहम फैसला लिया है. 18 मेंबरों वाली स्पेशल कमेटी ने यून और पूर्व रक्षा एवं आंतरिक मंत्री किम योंग-ह्यून, ली सांग-मिन समेत 75 अन्य अफसरों को गवाह के रूप में बुलाने का फैसला किया है.
इस अफ्रीकी देश में एमपॉक्स का कहर, सरकार ने घोषित कर दी हेल्थ इमरजेंसी
Mpox Outbreak in Sierra leone: अफ्रीकी देश सिएरा लियोन में एमपॉक्स के मामले देखे गए हैं. वहां की सरकार ने वायरस की पुष्टि होते ही पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दी है. इसके लेकर देशभर में टेस्टिंग की घोषणा भी कर दी गई है.
बॉर्डर फेंसिंग से क्यों टेंशन में है बांग्लादेश, क्यों बढ़ गया है तनाव? समझिए पूरा मामला
India-Bangladesh Border Fencing:भारत और बांग्लादेश के बीच लंबे वक्त से इंटरनेशनल बॉर्डर पर बाड़ लगाने की बीएसएफ की कोशिशों को लेकर लगातार विवाद जारी है. 1975 के संयुक्त भारत-बांग्लादेश दिशानिर्देशों के मताबिक, शून्य रेखा या अंतरराष्ट्रीय सीमा से 150 गज के भीतर किसी भी फरीक द्वारा कोई रक्षा संरचना का निर्माण नहीं किया जा सकता है. आइए इस लेख में समझते हैं कि आखिर क्यों दोनों देशों के बीच बाड़ को लेकर तनाव बढ़ा हुआ औरभारत-बांग्लादेश के बीच बॉर्डर को लेकर क्या है गाइडलाइंस?
टेलर स्विफ्ट का लॉस एंजिलिस की आग को 'ईश्वर की सजा' बताने वाला वीडियो डीपफेक है
बूम ने AI डिटेक्शन टूल्स की मदद से पता लगाया कि वायरल वीडियो को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक का इस्तेमाल कर बनाया गया है.
कैलिफोर्निया में आग का तांडव, बचने के लिए आधी रात को इलेक्ट्रिक व्हीलचेयर में भागा 68 साल का बुजुर्ग
California Wildfire: अमेरिका में कैलिफोर्निया की जंगलों में लगी भीषण आग से अबतक काफी तबाही मच चुकी है. लगातार फैल रही आग को देखते हुए प्रशासन ने लोगों को घर छोड़ने का आदेश दिया है. इस बीच शहर का एक लकवाग्रस्त बुजुर्ग अपनी इलेक्ट्रिक व्हीलचेयर में ही घर से भाग निकला.
चर्च में छिपा मिला ऐसा खजाना, देखकर चौंधिया गईं शोधकर्ताओं की आंखें, द्वितीय विश्व युद्ध से है संबंध
World War 2 treasure: द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण दुनिया ने बहुत कुछ झेला. उस समय कई देशों ने अपने खजाने छिपा दिए थे. ऐसा ही एक शाही खजाना अब सामने आया है, जो चर्च से बरामद हुआ है.
क्या किम जोंग उन ने बांध लिया 'सिर पर कफन'? ट्रंप के शपथ ग्रहण के पहले कर दिया धुआं-धुआं
N. Korea fires multiple short-range ballistic missiles: पूरी दुनिया में अपनी हरकतों से मशहूर किम जोंग उन ने मानो अपने सिर पर कफन ही बांध लिया हो, अमेरिकी धमकी के बाद भी किम जोंग उन का देश मान नहीं रहा है. किम को किसी का खौफ नहीं है, न अमेरिका का, न ही ट्रंप का, तभी तो उत्तर कोरिया ने बेखौफ होकर पूर्वी सागर को धुआं-धुआं कर दिया है. जानें पूरी बात.
मक्का की मस्जिद में 200 आतंकी, काबा के सामने बंधक बने नमाजी...हमले से दुनिया में मच गया था तहलका
Grand Mosque seizure 1979: दुनिया भर के मुस्लिमों की आस्था के केंद्र मक्का पर भी आतंकी हमला हुआ था. 200 आतंकी जब पाक मस्जिद अल-हरम में घुसे तो पूरी दुनिया में तहलका मच गया. इसी मस्जिद में काबा है, जहां इबादत करने के लिए पूरी दुनिया से मुसलमान आते हैं.
पास में था सोने का भंडार पर भूख से तड़प-तड़पकर मर गए 100 लोग, दहला देगा ये Video
Gold Mine Accident: दक्षिण अफ्रीका में एक दर्दनाक हादसे में 100 लोगों की मौत हो गई है, वहीं करीब 500 लोगों की जान अभी भी खतरे में है. सोने की खदान में फंसे इन मजदूरों ने भूख-प्यास से तड़पकर जान दे दी.
इतनी बड़ी गलती! वेयरहाउस में मिले सेना के गायब हुए एंटी टैंक माइंस, 4 सैनिकों पर गिरी गाज
Anti TankMines in Pland:जरा सोचिए अगर किसी वेयरहाउस में अचानक एंटी टैंक मिसाइल के बारे में पता लगे तो क्या होगा? पोलैंड में एक ऐसी ही घटना देखने को मिली है. तो चलिए फिर जानते हैं कि आगे क्या हुआ.
समंदर से अचानक निकलीं खतरनाक गेंदें, देखने वालों में पसर गया खौफ: इलाके में हड़कंप
Sydney Beaches: सिडनी के समुद्र तटों में पिछले कुछ समय से अजीब और रहस्यमयी दिखने वाले बॉल्स नजर आ रहे हैं. इन बॉल्स को लेकर सिडनी की प्रशासन ने लोगों से समुद्र तट पर न जाने का आग्रह किया है और कुछ समय तक इन तटों को बंद कर दिया है.
तेल छोड़ो...अब इस चीज के दम पर सऊदी अरब करेगा दुनिया पर राज, अमीरी में तोड़ेगा अपने ही रिकॉर्ड
Saudi Arabia Uranium: तेल की दम पर पहले ही सऊदी अरब कई ऐसे काम कर चुका है, जो कई देशों के लिए सपने की तरह है. वहीं अमीरी के लिए मशहूर सऊदी के हाथ अब एक और महाखजाना लग गया है, जिसका उपयोग वो अपनी दौलत बढ़ाने के लिए करने जा रहा है.
कड़ाके की सर्दी में पैंट उतार मेट्रो में क्यों निकल पड़े लड़के - लड़कियां? वजह जान मुस्कुरा देंगे आप
London No Trousers Day: सोशल मीडिया पर लंदन मेट्रो का वीडियो शायद आपने भी देखा हो. महिलाएं और पुरुष अंडरवियर में यात्रा कर रहे हैं. आपके मन में सवाल होगा, ऐसा क्यों? इन्होंने ठंड में पैंट क्यों नहीं पहना? इसकी वजह जानकर आप मुस्कुरा देंगे. पूरा माजरा समझिए
Anthony Blunt: हाल ही में ब्रिटेन नेशनल आर्काइव्स की ओर से खूफिया एजेंसी MI5 का एक दस्तावेज जारी किया गया, जिसमें ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितिय के आर्ट एडवाइजर एंथनी ब्लंट का रूसी जासूस होने और महारानी को लंबे समय तक इस बात को लेकर अंधरे में रखने का जिक्र किया गया है.
Donald Trump Barack Obama video: डोनाल्ड ट्रंप अपने अजीब बयानों, मजाकिया पोस्ट के लिए भी मशहूर हैं. लेकिन इस बार उन्होंने जो वीडियो पोस्ट किया है, वह गजब का है. यह वीडियो ट्रंप और ओबामा की बातचीत का है.
AI Chips: दुनिया में जिस तेजी से ऑटोमेशन बढ़ रहा है सेमीकंडक्टर चिप्स की जरूरत हर देश को है. चीन तो इस मामले में बढ़त लेकर दुनिया पर छाने का सपना देख रहा था लेकिन अमेरिका ने उसे बड़ा झटका दे दिया.
Baba Vanga Predictions:अपनी गूढ़ और सांकेतिक भविष्यवाणियों को लेकर पहचाने जाने वाले बाबा वेंगा और नास्त्रेदमस एक बार फिर सच साबित होते दिखाई दे रहे हैं. 2025 के 14 दिनों में ही उनके ज़रिए बताई गई तबाही लोगों के सामने आती दिख रही है.
आएं! ये क्या...पत्थर तो बवाल है, चट्टान नीचे रखकर सोने से प्रेग्नेंट हो जाती हैं महिलाएं, पूरी कहानी
Birthing Stone: पुर्तगाल में मदर-रॉक नाम की एक रहस्यमय चट्टान है, जिसके बारे में एक अजीब मान्यता है. इस पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन स्थानीय लोग इसे सच मानते हैं. दूर-दूर से महिलाएं इस चट्टान के पास प्रेग्नेंसी की उम्मीद लेकर आती हैं. उन्हें विश्वास है कि यह चमत्कारी चट्टान उन्हें गर्भधारण में मदद करती है.
सिक्का उछाल तय किया हत्या करनी है या नहीं..., 18 साल की लड़की को मार शव के साथ किया रेप
Polish Man Tosses Coin To Decide Kill Teen: पोलैंड से एक हैरान कर देने वाली खबर सामने आई है. जहां पर एक किलर ने सिक्का उछाल कर किसी लड़की को मारने के लिए मन बना लिया, मारने के बाद किलर ने लड़की के शव के साथ रेप भी किया. आगे जो खुलासा हुआ है, उससे सभी हैरान हैं.
आज मकर संक्रांति है। वो दिन जब नीले आसमान पर अलग-अलग साइज और डिजाइन की पतंगें अपने रंग बिखरेती हैं। लेकिन आपके मन में कभी सवाल उठा कि आखिर इन पतंगों की कहानी क्या है, इन्हें पहली बार किसने बनाया और ये हवा में कैसे उड़ती हैं; जानते हैं आज के एक्सप्लेनर में… पतंग से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें: अहमदाबाद में अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव का उद्घाटन:महोत्सव में भाग लेने के लिए देश के 11 राज्यों से 52 और 47 देशों से 143 पतंगबाज पहुंचे गुजरात की विशिष्ट पहचान अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव 11 जनवरी से अहमदाबाद में धूमधाम से शुरू हो गया है। अहमदाबाद रिवरफ्रंट पर आयोजित पतंग महोत्सव का उद्घाटन मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने पतंगबाजी में भी हाथ आजमाया। पूरी खबर पढ़ें...
साल 1858, प्रयाग में कुंभ लगा। तब देश में 1857 की क्रांति चल रही थी। साधु-संतों के वेश में क्रांतिकारी कुंभ में घूम रहे थे। अंग्रेज डर गए। संगम के आस-पास की जमीनों पर सरकार ने कब्जा कर लिया। ट्रेन-बसों की टिकटों पर रोक लगा दी। लोगों को कुंभ में आने से रोका जाने लगा। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर धनंजय चोपड़ा अपनी किताब ‘भारत में कुंभ’ में लिखते हैं- ‘रानी लक्ष्मीबाई प्रयाग में एक पंडे के यहां ठहरी थीं। अंग्रेजों को इसकी खबर लग गई। पंडे को फांसी पर लटका दिया गया।’ लक्ष्मीबाई ग्वालियर लौट गईं, लेकिन अंग्रेजों की फौज उनके पीछे लगी रही। कर्नल रेली ब्रिटिश फौज को लीड कर रहा था। अंग्रेजों और रानी के बीच मुठभेड़ हुई। इसी दौरान एक अंग्रेज सिपाही ने लक्ष्मीबाई के माथे पर तलवार से वार कर दिया। उपन्यासकार वृंदावन लाल वर्मा अपनी किताब 'लक्ष्मी बाई द रानी ऑफ झांसी' में लिखते हैं- ‘रानी की छाती के निचले हिस्से में गहरा घाव हो गया था। उन्होंने अपनी पगड़ी से बहते हुए खून को रोकना चाहा, लेकिन घाव गहरा था, खून रुक नहीं रहा था। फिर भी रानी आगे बढ़ीं और उस अंग्रेज सैनिक को मार डाला। इसी बीच दूसरे सैनिक ने उनकी छाती पर गोली दाग दी। रानी घोड़े के पीठ पर गिर गईं। रानी के वफादार सैनिक गुल मोहम्मद और रघुनाथ सिंह उन्हें लेकर पास में ही संत गंगादास की बड़ी शाला में पहुंचे। तब आश्रम को शाला कहा जाता था। वहां गंगादास और सैकड़ों नागा साधु रहते थे। रानी को देखते ही गंगादास ने पहचान लिया। रानी उन्हीं की शिष्या थीं। हालांकि तमाम कोशिशों के बावजूद रानी को बचाया नहीं जा सका। इधर, शाला परिसर में ब्रिटिश फौज आ चुकी थी। घोड़ों की पदचाप और शोर सुनाई दे रहा था। अंग्रेजों को लग रहा था कि रानी घायल हैं, जिन्हें शाला की कुटिया में छिपाकर रखा गया है। गंगादास ने आदेश दिया कि अंग्रेजों को रोका जाए, ताकि रानी का अंतिम संस्कार किया जा सके। बड़ी शाला में मौजूद नागा साधुओं ने तलवार और भाले उठा लिए। तब मठ में दो हजार नागा साधु थे। सभी शस्त्र चलाना जानते थे। तोप चलाना भी उन्हें आता था। नागा साधुओं ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए शाला में रखी दो फुट की तोप निकाली। उसे खिड़की पर लगाया और बारूद भरकर कई अंग्रेजों को मार गिराया। ये तोप अकबर ने गंगादास के गुरु परमानंद महाराज को दी थी। अंग्रेज ये देखकर हैरान रह गए कि माला फेरने वाले संन्यासी तलवार, भाला और तोप चला रहे हैं।' महाकुंभ के किस्से’ सीरीज के तीसरे एपिसोड में कहानी आजादी के आंदोलन और कुंभ कनेक्शन की… लक्ष्मीबाई के बेटे को बचाने के लिए उसका सिर मुड़वाना पड़ा संत गंगादास शाला के महंत रामसेवक दास बताते हैं- ‘रानी ने आखिरी वक्त में बेटे दामोदर राव को गंगादास के हाथों सौंप दिया था। दामोदर राव को बचाने के लिए उनकी पहचान बदल दी गई। उनका सिर मुंडवाकर गले में तुलसी माला डाल दी गई। उन्हें नागा साधु जैसा स्वरूप दिया गया। अंग्रेजों को पता चल चुका था कि लक्ष्मीबाई का अंतिम संस्कार गंगादास ने किया है। दामोदार दास को भी उन्होंने ही छिपाया है। अंग्रेज, गंगादास के पीछे पड़ गए थे। इधर गंगादास बचे हुए साधुओं को लेकर काशी चले गए। वहां सभी अखाड़ों के नागा साधु, गंगादास से मिले। गंगादास ने साधुओं से कहा- 'अगर हम ग्वालियर नहीं गए, तो हमारी द्वाराचार्य पीठ खत्म हो जाएगी।' यह पीठ रामानंदी संप्रदाय के महंत परमदास ने बनाई थी। ये वैष्णव संप्रदाय की सबसे पुरानी पीठों में से एक है।' महंत रामसेवक दास बताते हैं- 'कुछ दिन बाद जब गंगादास वापस बड़ी शाला लौटे, तो देखा कि 745 साधुओं की लाशें पड़ी हुई थीं। ये सारे साधु अंग्रेजों से लड़ते हुए मारे गए थे। साधुओं के शवों का स्वर्णरेखा नदी के किनारे अंतिम संस्कार किया गया। आज भी हर साल बाबा गंगादास की बड़ी शाला में नागा साधुओं को श्रद्धांजलि दी जाती है। उनके शस्त्रों की पूजा की जाती है। कुंभ में ही 1857 की क्रांति की रणनीति बनी, कमल के फूल और रोटियां बांटी गईं साल 1855, क्रांतिकारी एक बड़े आंदोलन की तैयारी में जुटे थे। इसी बीच हरिद्वार में कुंभ लगा। पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र धुंधु पंत, उनके भाई बाला साहब, क्रांतिकारी अजीमुल्ला खां, तात्या टोपे और बाबू कुंवर सिंह भी हरिद्वार पहुंच गए। वे चार किलोमीटर खड़ी चढ़ाई करके नील पर्वत पर चंडी देवी मंदिर पहुंचे। वहां महर्षि दयानंद पहले से डेरा जमाए हुए थे। दयानंद ने क्रांतिकारियों से कहा- ‘किसी देश पर दूसरे देश का अधिकार कैसे हो सकता है। इसे सहन करना तो महापाप है।’ ‘प्रयागराज और कुंभ’ किताब में कुमार निर्मलेंदु लिखते हैं- ‘1855 के कुंभ में ही 1857 की क्रांति की नींव रखी गई। बड़े-बड़े नगरों में गुप्तचर कमेटियां बनाई गईं। सैनिक छावनियों, शहरों और गांवों में कमल के फूल और रोटियां बांटी गईं, ताकि घर-घर तक क्रांतिकारियों के संदेश पहुंचाए जा सकें। साधु-संत कथाओं के जरिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को आंदोलन से जोड़ने की मुहिम चला रहे थे।’ प्रयाग के पंडों ने अपने झंडों पर यूनियन जैक की जलती हुई तस्वीर लगाई 1857 में मेरठ से शुरू हुआ विद्रोह जल्द ही इलाहाबाद पहुंच गया। 6 जून को मौलवी लियाकत अली ने इलाहाबाद और उसके आस-पास के इलाकों को आजाद करा लिया, लेकिन इसी बीच कर्नल नील फौज लेकर वहां पहुंच गया। उसने इलाहाबाद को भारी नुकसान पहुंचाया। साधु-संतों की छावनियां नष्ट कर दीं। संगम क्षेत्र में तोपें दागीं। जमीनें जब्त कर लीं। इतिहासकार हेरंब चतुर्वेदी बताते हैं- ‘अंग्रेजों ने 1858 के कुंभ को लगने नहीं दिया। सिर्फ परंपरा निभाई गई, लेकिन उसके अगले साल जब प्रयाग में माघ मेला लगा, तो सब कुछ बदल चुका था। प्रयाग के पंडों ने आंदोलन का मोर्चा संभाल लिया था। किले के ठीक नीचे ही पंडों ने कैंप लगाया। हर कैंप पर खास प्रतीक लग गए। ये प्रतीक आजादी से जुड़े थे। किसी झंडे पर यूनियन जैक को जलते हुए तो किसी झंडे पर यूनियन जैक को नीचे गिरते दिखाया गया था। साधु के वेश में क्रांतिकारी कुंभ में घूम रहे थे। मीडिया का भी जमघट लगा था। इस वजह से क्रांतिकारियों को आसानी से सूचनाएं मिल जाती थीं। घबराए अंग्रेजों ने कई पंडों को मृत्युदंड दिया। कई पंडे प्रयाग छोड़कर भागने पर मजबूर हो गए।' 1 नवंबर 1858, इलाहाबाद में एक दरबार लगा। वायसराय लॉर्ड कैनिंग ने महारानी की घोषणा पढ़ी। इसमें लिखा था कि 250 साल के ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन खत्म होता है। अब भारत की सत्ता सीधे रानी के हाथों में होगी। कैनिंग ने यह भी कहा कि सरकार भारतीयों के धार्मिक मामलों में दखल नहीं देगी। कहा जाता है कि 1858 के कुंभ में क्रांतिकारियों की भूमिका से अंग्रेज घबरा गए थे। इसलिए वे धार्मिक मामलों में दखल नहीं देने पर जोर दे रहे थे। पंडों ने गंगा के ऊपर बांध नहीं बनने दिया, मालवीय के सामने अंग्रेजों को झुकना पड़ा धनंजय चोपड़ा अपनी किताब ‘भारत में कुंभ’ में लिखते हैं- ‘1915 में हरिद्वार में कुंभ लगा। इसी दौरान ब्रिटिश सरकार गंगा के ऊपर बांध बनवा रही थी। हरिद्वार के पुरोहित इस बांध का लंबे समय से विरोध कर रहे थे। उस साल मदन मोहन मालवीय भी कुंभ पहुंचे और साधु-संतों के विरोध में शामिल हो गए। उन्होंने कई रियासतों के राजा-महाराजाओं को आंदोलन से जोड़ा। राजाओं ने बांध निर्माण रोकने के लिए सेनाएं भेज दीं। मजबूरन अंग्रेजों को झुकना पड़ा। बांध बनाने का काम रोक दिया गया। इसी कुंभ में मदन मोहन मालवीय ने अखिल भारतीय हिंदू सभा की नींव रखी थी।’ गांधी ने कहा- ‘कुंभ की आस्था को आजादी के आंदोलन से जोड़ने का संकल्प लेता हूं’ साल 1915, दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद महात्मा गांधी अपने राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले से मिले। गोखले ने उन्हें सलाह दी कि वे कुंभ जाएं। वहां देशभर से लाखों श्रद्धालु जुटे हैं। देश के बड़े जनमानस को समझने का मौका मिलेगा। गोखले ने गांधी को हरिद्वार में स्वामी श्रद्धानंद से मिलने की सलाह दी। श्रद्धानंद, हरिद्वार में अपने गुरुकुल में राष्ट्रभक्तों की फौज तैयार कर रहे थे। गांधी दो दिनों तक श्रद्धानंद के साथ रहे। सात दिन उन्होंने कैंप में गुजारे। तब करीब 17 लाख लोग कुंभ में शामिल हुए थे। इतनी भीड़ देखकर गांधी को लगा कि इस भीड़ की आस्था को आजादी के आंदोलन से जोड़ना चाहिए। इसके बाद गांधी, अंग्रेजों की नजर से बचकर 1918 के प्रयाग कुंभ में भी शामिल हुए। सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक अंग्रेजों की खुफिया रिपोर्ट में गांधी के प्रयाग आने, संगम में डुबकी लगाने और लोगों से मुलाकात का जिक्र है। बाद में गांधी ने भी माना था कि वे प्रयाग कुंभ में शामिल हुए थे। 10 फरवरी 1921 को फैजाबाद में गांधी ने कहा था- अयोध्या की तीर्थयात्रा में मुझे पहले ही आना था, लेकिन प्रयाग कुंभ में जाने के चलते नहीं आ पाया। गांधी ने ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ में इस किस्से का जिक्र किया है। अंग्रेजों ने रेल-बस टिकट बैन किया, कहा- 'जापान कुंभ में बम गिराने वाला है' साल 1942, दूसरा विश्व युद्ध छिड़ा हुआ था। भारत को अंग्रेजों ने जबरन युद्ध में झोंक दिया था। 20 लाख से ज्यादा भारतीय सैनिक ब्रिटेन की तरफ से लड़ रहे थे। इससे भारत के बड़े नेता नाराज थे। अंग्रेज इस नाराजगी को भांप गए थे। इसी साल प्रयाग में कुंभ लगा। ब्रिटिश सरकार ने कुंभ से ठीक पहले रेल और बसों की टिकट बिक्री पर रोक लगा दी। सरकार ने कहा- 'जापान कुंभ में बम गिरा सकता है। लाखों लोग मारे जाएंगे।' हालांकि इसके बाद भी उस कुंभ में लाखों श्रद्धालु पहुंचे थे। इससे पहले 1918 के कुंभ के वक्त भी अंग्रेजों ने रेल और बसों की टिकट बिक्री पर रोक लगा दी थी। तब भी विश्व युद्ध चल रहा था। जानकार बताते हैं कि अंग्रेज कुंभ की भीड़ से डरे हुए थे। उन्हें लगता था कि इस भीड़ को आंदोलन के लिए उकसाया जा सकता है। अगर क्रांतिकारी ऐसा करने में सफल रहे, तो सरकार इसका सामना नहीं कर पाएगी। स्केच : संदीप पाल ----------------------------------------------- महाकुंभ के किस्से-1 : अकबर का धर्म बदलने पुर्तगाल ने पादरी भेजा: जहांगीर ने अखाड़े को 700 बीघा जमीन दी; औरंगजेब बीमार होने पर गंगाजल पीते थे औरंगजेब गंगाजल को स्वर्ग का जल मानते थे। एक बार वे बीमार पड़े तो उन्होंने पीने के लिए गंगाजल मंगवाया। फ्रांसीसी इतिहासकार बर्नियर ने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा है- 'औरंगजेब कहीं भी जाता था तो अपने साथ गंगाजल रखता था। वह सुबह के नाश्ते में भी गंगाजल का इस्तेमाल करता था।' पूरी खबर पढ़ें... महाकुंभ के किस्से-2 : पहली संतान गंगा को भेंट करते थे लोग:दाढ़ी-बाल कटवाने पर टैक्स लेते थे अंग्रेज; चांदी के कलश में लंदन भेजा जाता था गंगाजल 1827 से 1833 के बीच एक अंग्रेज कस्टम अधिकारी की पत्नी फेनी पाकर्स इलाहाबाद आईं। उन्होंने अपनी किताब ‘वंडरिंग्स ऑफ ए पिलग्रिम इन सर्च ऑफ द पिक्चर्स’ में लिखा है- ‘जब मैं इलाहाबाद पहुंची, तो वहां मेला लगा हुआ था। नागा साधु और वैष्णव संतों का हुजूम स्नान के लिए जा रहा था। मैं कई विवाहित महिलाओं से मिली, जिनकी संतान नहीं थी। उन लोगों ने प्रतिज्ञा की थी कि पहली संतान होगी तो वे गंगा को भेंट कर देंगी।’ पूरी खबर पढ़ें... महाकुंभ का हर अपडेट, हर इवेंट की जानकारी और कुंभ का पूरा मैप सिर्फ एक क्लिक पर प्रयागराज के महाकुंभ में क्या चल रहा है? किस अखाड़े में क्या खास है? कौन सा घाट कहां बना है? इस बार कौन से कलाकार कुंभ में परफॉर्म करेंगे? किस संत के प्रवचन कब होंगे? महाकुंभ से जुड़े आपके हर सवाल का जवाब आपको मिलेगा दैनिक भास्कर के कुंभ मिनी एप पर।यहां अपडेट्स सेक्शन में मिलेगी कुंभ से जुड़ी हर खबरइवेंट्स सेक्शन में पता चलेगा कि कुंभ में कौन सा इवेंट कब और कहां होगाकुंभ मैप सेक्शन में मिलेगा हर महत्वपूर्ण लोकेशन तक सीधा नेविगेशनकुंभ गाइड के जरिये जानेंगे कुंभ से जुड़ी हर महत्वपूर्ण बात अभी कुंभ मिनी ऐप देखने के लिए यहां क्लिक करें
’हम अरविंद केजरीवाल की वो छवि सामने लाएंगे, जिसे मुफ्त की योजनाओं ने ढंक रखा है। सनातन विरोधी, चुनावी हिंदू और तुष्टिकरण करने वाले केजरीवाल जैसे करीब 10-11 मुद्दे हैं। ये सीधे केजरीवाल की छवि पर वार करेंगे। हम उनका असली चेहरा लोगों के बीच लाएंगे।’ हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद दिल्ली में चुनाव के लिए RSS ने काम करना शुरू कर दिया है। RSS के एक पदाधिकारी बताते हैं कि हमारा प्लान केजरीवाल की हिंदू विरोधी छवि जनता के सामने लाना है। सेवा भारती संगठन झुग्गी बस्तियों में एक्टिव हो गया है। स्वयंसेवक भी 17 जनवरी से लोगों के बीच जाना शुरू कर देंगे। दिल्ली में 70 सीटों पर 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। RSS किन-किन मुद्दों को लेकर जनता के बीच पहुंच रहा है, कौन-कौन से संगठन काम कर रहे हैं, उनका लोगों तक पहुंचने का मॉडल क्या है, इस पर दैनिक भास्कर ने RSS के प्रांत, मंडल और विभाग स्तर के कार्यकर्ताओं-पदाधिकारियों से बात की। RSS की नजर पूरी दिल्ली पर नहीं, झुग्गी-बस्तियों परदिल्ली चुनाव में RSS की क्या भूमिका होने वाली है और उसकी एंट्री कब होगी, इसका जवाब हमने ग्राउंड लेवल पर जाकर तलाश किया। RSS के मंडल स्तर के एक कार्यकर्ता बताते हैं, ‘RSS ने कभी एग्जिट किया ही नहीं तो एंट्री कैसी। आपका सवाल राजनीतिक है और RSS राजनीतिक संगठन नहीं है।’ हमने पूछा कि RSS के 36 संगठनों में से एक BJP भी है। इस पर वे कहते हैं, 'हम चुनाव में किसी पॉलिटिकल पार्टी का नाम नहीं लेते। हम सिर्फ उस सरकार को चुनने के लिए बोलते हैं, जो राष्ट्रवादी हो। अखंड भारत जिसके एजेंडे में हो। जो जातियों, समुदायों और संप्रदायों का तुष्टिकरण न करे। देश न बांटे।' फिर क्या बंटेंगे तो कटेंगे का नारा दिल्ली में भी सुनाई देगा? इस पर साथ में बैठे RSS के दूसरे कार्यकर्ता कहते हैं, 'हिंदू और सनातन विरोधी अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में तुष्टिकरण का मॉडल लागू किया है। स्कूलों में इकोनॉमिक वीकर सेक्शन कोटे से हिंदू बच्चों के मुकाबले मुस्लिमों के बच्चे भर्ती किए। दूसरी तरफ मुफ्त की योजनाओं का लालच देकर गरीब हिंदू और दलित तबके के वोट काटे जा रहे हैं।' RSS का कैडर जमीन पर कब से दिखेगा? वे जवाब देते हैं, ‘हम तो हमेशा जमीन पर ही रहते हैं। सेवा भारती संगठन झुग्गियों में काम कर रहा है। भारत विकास परिषद बुद्धिजीवियों के बीच पहुंच रहा है। उद्योग भारती छोटे व्यापारियों से बात कर रहा है।‘ वे आगे कहते हैं, आप जिस सक्रियता की बात कर रहे हैं, उसकी शुरुआत 17 जनवरी से बस्तियों और उप-बस्तियों में हो जाएगी। हालांकि हमारा जनसंपर्क पहले ही शुरू हो चुका है। साथ में बैठे दूसरे स्वयंसेवक प्लान को और क्लियर करते हुए कहते हैं, ‘झुग्गी बस्तियों में बिना बैनर-माइक के हमारी छोटी-छोटी बैठकें होंगी। इसमें 10-12 लोग और 2-3 स्वयंसेवक होंगे।' वहीं RSS की टॉप लीडरशिप में शामिल एक पदाधिकारी बताते हैं, RSS के केंद्र में पूरी दिल्ली नहीं है। वो वोटर हैं, जो झुग्गियों और बस्तियों में रहते हैं। ये आंकड़ा करीब 35 से 38% है। ये करीब 90 से 95 लाख हैं। फैमिली डिस्कशन से BJP के लिए निकलेंगे वोटRSS में हमारे सोर्स के मुताबिक, दिल्ली की घनी बस्तियों में अलग-अलग शाखाओं के स्वयंसेवक बैक टु बैक बैठकें करेंगे। ये बैठकें 10-12 लोगों के छोटे-छोटे ग्रुप्स के बीच होंगी। सोर्स बताते हैं, 'RSS बातचीत की शुरुआत किसी चुनावी मुद्दे से नहीं, बल्कि पारिवारिक मुद्दों से करेगा। जैसे- जॉइंट फैमिली की क्या अहमियत है। अगर सबका साथ रहना संभव नहीं, तो कम से कम हफ्ते में एक बार साथ खाना जरूर खाएं।’ RSS के प्लान के केंद्र में केजरीवाल की ‘हिंदू विरोधी छवि’ RSS के कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत के दौरान निकले मुद्दों में ये 5 पॉइंट अहम हैं। 1. केजरीवाल के झूठे वादे: सोर्स बताते हैं, ‘हम अरविंद केजरीवाल के सारे झूठे वादे जनता के बीच लाने की तैयारी कर रहे हैं। केजरीवाल ने कहा था कि गाड़ी, बंगला और सुरक्षा नहीं लेंगे। ईमानदार हैं, जनता से पूछकर ठेका खोलेंगे। इसकी चर्चा हम उनके शीशमहल के खर्च और गाड़ियों की कीमत के साथ करेंगे। इसमें हवाला और शराब घोटाले में बंद हुए CM, डिप्टी CM और मंत्रियों की भी चर्चा होगी। 2. केजरीवाल की हिंदू विरोधी छवि: दिल्ली के स्कूलों में इकोनॉमिक वीकर सेक्शन कोटे के तहत दलित हिंदुओं की संख्या न के बराबर है, जबकि मुसलमानों की संख्या काफी है। यूपी के दादरी में अखलाक की मौत हुई, तो अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया- मैं आ रहा हूं। वहीं, बजरंग दल के रिंकू शर्मा की हत्या पर शोक तक नहीं जताया। अयोध्या में राम मंदिर बना, तो केजरीवाल ने अस्पताल बनाने का सुझाव दिया। 3. केजरीवाल का तुष्टिकरण मॉडल: दिल्ली के द्वारका सेक्टर-22 में सरकारी खर्च पर 100 करोड़ का हज हाउस बनवाया। मौलवियों की सैलरी तय कर दी। केजरीवाल को पुजारियों और ग्रंथियों की याद 12 साल बाद चुनाव से पहले आई है। उन्होंने क्या किसी मंदिर आंदोलन में हिस्सा लिया। वो मौकों के हिसाब से कभी हनुमान चालीसा पढ़ते हैं, तो कभी कृष्ण बन जाते हैं। 4. केजरीवाल का अर्बन नक्सल कनेक्शन: सोर्स के मुताबिक, अरविंद केजरीवाल उस गैंग का हिस्सा हैं, जिसने नक्सल मूवमेंट खड़ा किया। नक्सली, जो देश विरोधी ताकतों के हाथों की कठपुतली हैं। ये भी हम जनता के सामने लाएंगे। 5. बांग्लादेशियों-घुसपैठियों को संरक्षण: सोर्स बताते हैं कि बांग्लादेशियों और घुसपैठियों के आधार कार्ड अभियान चलाकर बनवाए गए। बिना ये सोचे कि इससे देश की राजधानी के दरवाजे उन लोगों के लिए खुल सकते हैं, जो दिल्ली को असुरक्षित कर सकते हैं। हम केजरीवाल का ये सच भी सामने लाएंगे। RSS की बैठकों में चर्चा का मॉडल RSS के सोर्स के मुताबिक, स्वयंसेवकों की टोली का कॉम्बिनेशन ऐसा बनाया जाएगा, जिसमें पुरुष, महिला और युवा हों। एक परिवार में अगर एक टोली गई तो वो उस परिवार के हर वर्ग से चर्चा कर सकेंगे। 1. फैमिली गैदरिंग के जरिए देश की बातजनसंपर्क के दौरान बातचीत का शुरुआती टॉपिक ‘परिवार’ होगा। जैसे- मोबाइल और बिना किसी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट के फैमिली गैदरिंग क्यों जरूरी है। फैमिली वैल्यूज की चर्चा को आगे बढ़ाते हुए देश की चर्चा तक ले जाना होगा। इसके बाद केजरीवाल की छवि पर चर्चा होगी। 2. शराब घोटाले से महिलाओं की परेशानी का कनेक्शनसोर्स आगे बताते हैं, 'शराब के ठेकों की संख्या बढ़ाने वाले अरविंद केजरीवाल पर घोटाले का भी आरोप है। ये मुद्दा तो रहेगा ही। इसमें गरीब और लोअर मिडिल क्लास के परिवारों की महिलाओं से भी चर्चा होगी।’ ‘परिवार की महिलाओं के लिए सबसे बड़ी दुश्मन शराब है। पुरुष शराब पीकर घर की महिलाओं के साथ मारपीट करते हैं, काम-धंधा छोड़ देते हैं। घर की इकोनॉमी और शांति खतरे में पड़ जाती है। अरविंद केजरीवाल के दारूवाला अवतार की तस्वीर भी लोगों के बीच लाई जाएगी।' 3. हिंदुओं को नशे में धकेलकर बांटने की कोशिश सोर्स एक किस्से का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘ब्रिटेन भारत पर राज कर रहा था, उस वक्त अफीम के खेतों पर अंग्रेजों का कब्जा था। वे यहां अफीम की खेती कराते थे। ये अफीम चीन जाती थी। चीन की नस्लों को नशे में धकेलकर कमजोर किया गया। उस वक्त का चीन पहले से ही लैंड लॉर्ड्स में बंटा था। हुआ ये कि बंटे हुए चीन की नस्लें नशे से बर्बाद हो गई थीं।‘ ‘जापान जैसे छोटे से देश ने चीन जैसे विशाल और ताकतवर देश को रौंदकर रख दिया। वजह चीन का बंटा होना और नशे का शिकार होना था। क्या हिंदुओं को भी इस वक्त बांटा नहीं जा रहा। क्या शराब के ठेके गली-मोहल्लों तक खोलकर ऐसी ही साजिश नहीं रची जा रही है। दिल्ली में संघ के कौन-कौन से संगठन एक्टिव दिल्ली चुनाव के लिए बने RSS के प्लान में 6 संगठनों की भूमिका अहम है। 1. सेवा भारती: झुग्गियों में लगातार काम कर रही है। ये जिन बस्तियों में काम करती है, उसे सेवा बस्ती का नाम दिया जाता है। ये संगठन बस्तियों को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाने के लिए छोटे छोटे काम सिखाते हैं। जैसे- सिलाई-बुनाई सेंटर। इस चुनाव में इनकी भूमिका अहम है। सेवाभारती के पास 20 हजार बैठकें कराने का टारगेट है। 2. लघु उद्योग भारती: ये संगठन छोटे स्तर के व्यापारियों के साथ काम करेगा, जिनकी फैक्ट्रियों में गरीब तबका काम करता है। इनके साथ बैठकों के जरिए RSS मुफ्त की योजनाओं का इस्तेमाल करने वाले तबके तक पहुंचेगा। ये संगठन 15-20 हजार बैठकें कराएगा। 3. राष्ट्र सेविका समिति: इस संगठन के पास टारगेट नहीं है। बल्कि इस संगठन की महिलाएं दूसरे संगठनों के साथ जुड़कर काम करेंगी। इन्हें हर परिवार की महिलाओं के बीच RSS के चुनावी मुद्दों पर बात करनी है। 4. भारतीय मजदूर संघ: मजदूर संघ दिल्ली में उस तबके के बीच पहुंचेगा, जिस तक केजरीवाल की रेवड़ियां पहुंचती हैं। आम आदमी पार्टी सरकारी स्कीम का फायदा ले रहे लोगों तक रेवड़ी के पैकेट पहुंचा रही है। मजदूर संघ के पास उनके साथ बैठकें करने का टारगेट है। 5. विद्या भारती: ये संगठन सरकारी स्कूलों के बच्चों के पेरेंट्स तक पहुंच बनाएगा। सोर्स ने ये भी बताया कि RSS ने इस तबके तक पहुंचने के लिए हर शाखा के स्वयंसेवकों को 50 बैठकें करने का टारगेट दिया है। 6. भारत विकास परिषद: इस टोली की जिम्मेदारी बुद्धिजीवियों तक पहुंचना है। इस संगठन के लोग डॉक्टर, CA, इंजीनियर, साइंटिस्ट, वकील और प्रोफेसर्स के बीच जाकर बैठकें करेंगे। अगर CM फेस को लेकर सवाल हुआ, तो जवाब तैयार RSS के सीनियर वर्कर से हमने उन सवालों पर भी चर्चा की, जो चुनाव प्रचार के दौरान सामने आ सकते हैं, जैसे BJP का CM फेस कौन होगा। इस पर वे कहते हैं, 'CM फेस न होने पर आम आदमी पार्टी हमें लगातार घेर रही है। इन बैठकों में ये सवाल उठे या न उठे, हम जनता से पूछेंगे कि उन्हें कैसी सरकार चाहिए, क्या ऐसी जिसका CM फिक्स है।' 'जो CM आवास को ऐसे मॉडिफाई करवाता है, जैसे अब वो स्थायी CM है। जहां पार्टी का कोई दूसरा कार्यकर्ता CM हो ही नहीं सकता। या फिर ऐसी पार्टी चाहिए, जहां कुर्सी फिक्स नहीं है। PM से लेकर CM जैसे पद के लिए छोटे से छोटा कार्यकर्ता दावेदार है। ओडिशा, हरियाणा, उत्तराखंड इसके ताजा उदाहरण हैं।' वे आगे कहते हैं, 'CM ऐसा होगा, जो देश की सरकार से समन्वय बनाएगा। केंद्र से दिल्ली तक योजनाओं को लाने में सक्षम होगा। पूर्ण राज्य का दर्जा तो तब भी दिल्ली के पास नहीं होगा। तब वो केंद्र के साथ मिलकर ऐसे काम करेगा, जिसमें केंद्र शासित राज्य का दर्जा काम में आड़े नहीं आएगा।' जमीन पर एक्टिव RSS के त्रिदेव संगठन की हर विंग के पास बूथ लेवल पर 3 त्रिदेव उतारे हैं, यानी बूथ लेवल पर RSS के 3 पदाधिकारी एक्टिव हैं। इसके ऊपर अध्यक्ष, सह-अध्यक्ष, प्रांत अध्यक्ष जैसे पदाधिकारी होंगे। हर त्रिदेव अपने नीचे कम से कम 10 आम लोगों को जोड़ेगा। दिल्ली में 13,000 बूथ हैं। इस हिसाब से 39,000 त्रिदेव हैं और वे करीब 3 लाख 90 हजार लोगों को अपने साथ जोड़ेंगे। ये सभी चुनाव में RSS के लिए बैठकें करेंगे। ..............................दिल्ली चुनाव को लेकर AAP और BJP की स्ट्रैटजी भी पढ़ें... 1. BJP ने 30 SC बहुल सीटों पर लगाए 45000 कार्यकर्ता, अंबेडकर-संविधान पर जोर BJP का दलित वोटर्स वाली सीटों पर ज्यादा फोकस है। दलितों के हिसाब से मुद्दों की लिस्ट बनाई जा रही है। बूथ लेवल पर 45 हजार से ज्यादा कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। दिल्ली में 70 सीटों पर 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव होने हैं। दिल्ली में करीब 18% यानी 44 लाख दलित वोटर्स है। BJP की इन्हें साधने की कवायद का बहुत असर नहीं दिख रहा। पढ़िए पूरी खबर... 2. केजरीवाल ने 1000 वोटर्स पर लगाए 12 कार्यकर्ता, बस्तियों में फ्री बिजली-इलाज का वादा दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता हर रोज दो टीमें बनाकर निकलते हैं। एक टीम ऐसे इलाके में जाती है, जहां जरूरतमंद लोग रह रहे हों। उनके बीच जाकर कार्यकर्ता सरकारी स्कीम जैसे फ्री बिजली-पानी और इलाज की बातें करते हैं। दूसरी टीम ऐसे इलाकों में जाती है, जहां अमीर लोग रहते हैं। ये विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी की स्ट्रैटजी है। पढ़िए पूरी खबर...
दिल्ली चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही आम आदमी पार्टी (AAP) और बीजेपी के बीच पोस्टर वॉर तेज हो गया है। अगले महीने 5 फरवरी को दिल्ली की जनता अपना नेता चुनने के लिए वोट डालेगी, लेकिन फिलहाल जनता को सबसे ज्यादा मजा सोशल मीडिया पर आप पार्टी और बीजेपी के बीच चल रहे पोस्टर और वीडियो वॉर से आ रहा है। कौन-कौन से मजेदार पोस्टर्स और वीडियोज दिल्ली चुनाव के दौरान वायरल हो रहे हैं, जानने के लिए देखिए ये वीडियो।