Sheikh Hasina Death Sentence:अमेरिका में रहने वाले सजीब ने हमारे सहयोगी चैनल WION के संवाददाता सिद्धांत सिब्बल से बातचीत में कहा कि संसदीय अनुमोदन के बिना कानूनों में संशोधन किए जाने के बाद 100 दिनों से भी कम समय में मुकदमा जल्दबाजी में शुरू कर दिया गया.
मैरिज एनिवर्सरी पर शेख हसीना को मिली सजा-ए-मौत...क्या जानबूझकर चुनी गई 17 नवंबर की तारीख?
Sheikh Hasina:सोशल मीडिया पर अब जमकर बहस चल रही है. यूजर्स का एक धड़ा यह आरोप लगा रहा है कि हसीना को मौत की सजा सुनाने के लिए जानबूझकर 17 नवंबर की तारीख तय की गई. सुनवाई 23 अक्टूबर को खत्म हो गई थी और सजा असल में 14 नवंबर को सुनाई जानी थी.
Girl students kidnapped: बदमाशों के पास अत्याधुनिक हथियार थे और उन्होंने स्कूल में 4 बजे घुसते ही गोलीबारी शुरू कर दी. हालांकि, स्कूल में तैनात पुलिस के जवानों ने उनसे मुठभेड़ की लेकिन बदमाश उससे पहले ही स्कूल की बिल्डिंग के अंदर घुस चुके थे.
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल (आईटीसी) के फैसले पर पहली प्रतिक्रिया सामने आई है
ट्रंप के किस कदम से भारतीय किसानों को हो सकता है फायदा
डॉनल्ड ट्रंप ने 200 से ज्यादा खाद्य पदार्थों को टैरिफ से छूट दी है. इसका फायदा भारतीय किसानों को भी मिलने की उम्मीद है
और कठिन हुई शेख हसीना की बांग्लादेश वापसी की राह
बीते साल के आंदोलन और उसे दबाने के लिए हिंसा के दौरान कम से कम 1400 लोगों की मौत और 25 हजार के घायल होने का अनुमान है
सऊदी अरब में दर्दनाक हादसे का शिकार हुए 44 हज यात्री, परिजनों ने भारत सरकार से लगाई शव लाने की गुहार
Hyderabad Haj pilgrims: पीड़ित परिजनों ने भारत सरकार से मृतकों के शव हैदराबाद लाने की बात कही है और अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो मदीना में ही उनको दफन करने की व्यवस्था की जाए. हैदराबाद की अल मक्का टूर्स एंड ट्रैवल्स के जरिए 20 और फ्लाई जोन टूर्स एंड ट्रैवल्स के जरिए 24 लोग 9 नवंबर को जहाज से मक्का के लिए रवाना हुए थे.
Sheikh Hasina Verdict: बांग्लादेश की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (ICT) ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को जुलाई 2024 के छात्र विद्रोह के दौरान हुई हिंसा और नरसंहार का दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई है. अदालत ने इस दौरान हुई पुलिस फायरिंग में 1400 लोगों की मौत की जिम्मेदारी सीधे हसीना पर डाली है.
Sheikh Hasina Verdict: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के भारत से जुड़ाव की कहानी दशकों पुरानी है. 1975 में उनके परिवार पर हुए हमले और तख्तापलट के बाद उन्होंने भारत में शरण ली, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें सुरक्षा और आश्रय प्रदान किया था. आइए जानते है कि शेख हसीना के दोनों बच्चों का भारत से क्या कनेक्शन है...
ऑस्ट्रेलिया की राजधानी में मिला जानलेवा एस्बेस्टस, सरकार ने 70 से ज्यादा स्कूलों को किया बंद
Fibre asbestos: पिछले हफ्ते ऑस्ट्रेलियन कम्पटीशन एंड कंज्यूमर कमीशन ने इस रंगीन सजावटी रेत को वापस मंगाने का आदेश दिया था. क्योंकि, टेस्टिंग के दौरान उसमें क्राइसोटाइल एस्बेस्टस पाया गया था. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एस्बेस्टस एक ऐसा खनिज रेशा है, जिसका पहले खुब उपयोग होता था. पहले स्कूल की छत बनाने में इस्तेमाल सीमेंट में एस्बेस्टस का प्रयोग किया जाता था.
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ का दोषी पाया गया है। सोमवार को बांग्लादेश की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल यानी ICT ने हसीना को फांसी की सजा सुनाई। वह पिछले साल ढाका छोड़कर भारत आई थीं और पिछले 15 महीनों से दिल्ली के एक सेफ हाउस में रह रही हैं। क्या अब भारत शेख हसीना को वापस बांग्लादेश को सौंप देगा, अगर नहीं दिया तो क्या होगा, शेख हसीना के पास क्या रास्ते हैं; भास्कर एक्सप्लेनर में 6 जरूरी सवालों के जवाब… सवाल-1: क्या भारत को बांग्लादेशी ट्रिब्यूनल का फैसला मानना कानूनी मजबूरी है? जवाब: भारत और बांग्लादेश के बीच 2013 में एक्स्ट्रडिशन ट्रीटी साइन हुई थी, जिसमें दोनों देशों के बीच अपराधियों के एक्सचेंज की शर्तें हैं। इसके तहत किसी अपराधी को प्रत्यार्पित तभी किया जाएगा, जब… इसी आधार पर भारत ने 2020 में शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के दो दोषियों को बांग्लादेश भेजा था। हालांकि इस ट्रीटी के बावजूद शेख हसीना को वापस ना लौट के दो रास्ते हैं... 1. मुकदमा राजनीति से प्रेरित है ट्रीटी के आर्टिकल 6 के मुताबिक अगर अपराध राजनीतिक माना जाए, तो भारत प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है। हालांकि हत्या, नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध इस क्लॉज से बाहर रखे गए हैं। ICT में हसीना पर इन्हीं गंभीर आरोपों में अपराध तय हुए हैं। इसलिए भारत यह नहीं कह सकता कि पूरा मामला राजनीतिक है। 2. मुकदमा ईमानदारी से नहीं चला ट्रीटी के आर्टिकल 8 के तहत अगर आरोपी की जान को खतरा हो, उसे निष्पक्ष ट्रायल नहीं मिला हो या ट्रिब्यूनल का उद्देश्य न्याय नहीं, बल्कि राजनीतिक हो भारत प्रत्यर्पण से मना कर सकता है। भारत यह सब आसानी से दिखा सकता है, क्योंकि… भारत के पूर्व डिप्लोमैट अजय बिसारिया के मुताबिक, ‘भारत किसी भी हाल में शेख हसीना को बांग्लादेश को नहीं लौटाएगा। भारत ने उन्हें राजनीतिक शरण दी है। एशिया में हसीना के लिए सबसे सुरक्षित भारत ही है। अगर वो हसीना को वापस भेजता है तो बांग्लादेश में अस्थिरता बढ़ जाएगी जो ज्यादा खतरनाक होगी।’ सवाल-2: अगर भारत शेख हसीना को लौटाने से मना कर देता है, तो क्या होगा? जवाब: इस स्थिति में दो सिनेरियो बन सकते हैं… 1. बांग्लादेश से रिश्ते खराब होंगे, कूटनीतिक दबाव रहेगा ढाका लगातार कह सकता है कि भारत हमारे न्यायिक फैसले का सम्मान नहीं कर रहा। कूटनीतिक बयानबाजी बढ़ेगी, लेकिन रिश्ते टूटना मुश्किल है, क्योंकि व्यापार, ऊर्जा सप्लाई जैसी कई चीजों पर बांग्लादेश अब भी भारत पर निर्भर है। 2. तनाव बढ़कर ‘स्ट्रैटजिक शिफ्ट’ की तरफ जा सकता है यह भारत के लिए सबसे खतरनाक स्थिति होगी। अगर ढाका चीन-पाकिस्तान से और नजदीकी बढ़ाता है। पहले ही पाकिस्तान का युद्धपोत बांग्लादेश पहुंच चुका है। यूनुस ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ मैप हाथ में लेकर खड़े दिखे और भारत-बांग्लादेश ट्रेड वॉर जैसे हालात बन गए थे। यह भारत को पूर्वोत्तर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक असुरक्षित बना देगा। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि भारत के लिए सबसे सुरक्षित विकल्प शेख हसीना को किसी तीसरे देश भेजना है। इससे हसीना सुरक्षित रहेंगी और भारत-ढाका का सीधा टकराव नहीं होगा। UAE, UK, कनाडा, नीदरलैंड्स जैसे कुछ संभावित देश हैं। हालांकि एक सवाल ये भी है कि क्या इस वक्त ये देश शेख हसीना को पनाह देंगे? सवाल-3: बांग्लादेश लौटने के सवाल पर शेख हसीना क्या संकेत दे रही हैं? जवाब: शेख हसीना अगस्त 2024 में बांग्लादेश छोड़कर भारत आई थीं। उनका कहना था कि हिंसक भीड़ पीएम आवास में घुस गई थी और उन्हें जान का खतरा था। हाल के इंटरव्यू से उनके तीन अलग-अलग टोन दिखाई देते हैं… 1. ICT का ट्रायल झूठा तमाशा 2. ICC में केस चलाना है तो चलाओ, मैं तैयार हूं 3. 'लौटूंगी, पर तभी जब लोकतंत्र लौटे' सवाल-4: हसीना को आखिर किन आरोपों में सजा मिली? जवाब: शेख हसीना पर 5 आरोप लगाए गए थे... आरोप-1: हत्या, हत्या की कोशिश, यातना देना। चार्जशीट के मुताबिक हसीना ने पुलिस और अवामी लीग को आम नागरिकों पर हमला करने के लिए उकसाया और हिंसा रोकने में नाकाम रहीं। आरोप-2: हसीना ने छात्र प्रदर्शनकारियों को दबाने के लिए घातक हथियार, हेलिकॉप्टर और ड्रोन इस्तेमाल करने का आदेश दिया। आरोप-3: ये आरोप 16 जुलाई को बेगम रौकेया यूनिवर्सिटी के छात्र अबू सैयद की हत्या से जुड़ा है। इसमें कहा गया है कि हसीना और अन्य ने इस हत्या के आदेश दिए, इसके लिए साजिश रची और अपराध में शामिल रहे। आरोप-4: 5 अगस्त को ढाका के चांखारपुल में छह निहत्थे प्रदर्शनकारियों की हत्या कर दी गई। यह भी कहा गया है कि यह हत्या हसीना के सीधे आदेश, उकसावे, मदद, साजिश की वजह से हुई। आरोप-5: इस आरोप में 5 प्रदर्शनकारियों को गोली मारकर हत्या करने और एक को घायल करने की बात है। आरोप है कि उन 5 मारे गए लोगों की लाशें जला दी गईं, और एक प्रदर्शनकारी को जिंदा जला दिया गया। इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने 5 में से दो मामले (हत्या के लिए उकसाने और हत्या का आदेश देने के लिए) मौत की सजा दी। वहीं, बाकी मामलों में उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई। ट्रिब्यूनल ने दूसरे आरोपी पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान को भी 12 लोगों की हत्या का दोषी माना और फांसी की सजा सुनाई। वहीं, तीसरे आरोपी पूर्व IGP अब्दुल्ला अल-ममून को 5 साल के जेल की सजा सुनाई। ममून सरकारी गवाह बन चुके हैं। कोर्ट ने हसीना और असदुज्जमान कमाल की प्रॉपर्टी जब्त करने का आदेश दिया है। सजा का ऐलान होते ही कोर्ट रूम में मौजूद लोगों ने तालियां बजाईं। सवाल 5: अब शेख हसीना के पास क्या विकल्प मौजूद हैं? जवाब: बांग्लादेश ICT से सजा के बाद शेख हसीना के पास अभी भी कई कानूनी और राजनीतिक रास्ते मौजूद हैं.. कानूनी ऑप्शन: शेख हसीना ट्रिब्यूनल के फैसले को बांग्लादेश की ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकती हैं। वे सबूतों की दोबारा जांच और अनफेयर ट्रायल का हवाला देकर रिव्यू करने की मांग कर सकती हैं। हसीना निष्पक्ष ट्रायल न होने को लेकर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों या कानूनी संस्थाओं में शिकायत कर सकती हैं। ये संस्थाएं सीधे किसी देश की अदालत के फैसले को रद्द नहीं कर सकतीं, लेकिन फेयर ट्रायल के लिए दबाव जरूर बना सकती हैं। पॉलिटिकल ऑप्शन: हसीना भारत या किसी और देश में ‘उनके जान को खतरा है’ का हवाला देकर शरण या सुरक्षा मांग सकती हैं। उनकी पार्टी अवामी लीग और अंतरराष्ट्रीय समर्थक दूसरे देशों पर दबाव बना सकते हैं ताकि बांग्लादेश पर ट्रायल को लेकर सवाल उठाए जाएं या सजा को रोकने की मांग की जाए। अवामी लीग देश में जन समर्थन जुटाकर यूनुस सरकार पर सजा में नरमी बरतने या कोई समझौता करने का दबाव बना सकती है। सवाल-6: क्या UN या ICC इस मामले में भूमिका निभा सकते हैं? जवाब: संयुक्त राष्ट्र और ICC का इस मामले में रोल सीमित है। UN सीधे किसी कोर्ट का फैसला रद्द नहीं कर सकता, लेकिन वो मानवाधिकार उल्लंघन की जांच कर सकता है। फेयर ट्रायल पर सवाल उठा सकता है या फिर केस ICC को रेफर कर सकता है। हसीना खुद भी ICC में केस के लिए तैयार हैं। अगर ICC को ट्रायल में गड़बड़ियां दिखती हैं तो भारत उस फैसले को आधार बनाकर हसीना को वापस लौटाने से मना कर सकता है। **** रिसर्च: आकाश कुमार -------- ये खबर भी पढ़िए... क्या नीतीश की ‘बीमारी’ भी एक स्ट्रैटेजी थी:कभी राजनीति छोड़ने का मन बना चुके नीतीश 10वीं बार CM बनने के करीब; उनके पलटकर आने के रोचक किस्से कॉलेज के दिनों में लालू प्रसाद यादव के लिए पोस्टर चिपकाने वाले इंजीनियर 'मुन्ना', जेपी आंदोलन में पुलिस की गोली से बाल-बाल बचे एक जिद्दी आंदोलनकारी और अब तक 10वीं बार मुख्यमंत्री बनने के करीब एक राजनेता। कभी बिहार में मोदी की एंट्री रोक दी, तो कभी उन्हीं के सामने झुक कर कहा- अब कहीं नहीं जाऊंगा। पूरी खबर पढ़िए...
जिस कानून पर पिता ने लगाई थी मुहर, उसी का 'शिकार' हो गईं शेख हसीना, मिली सजा-ए-मौत
Sheikh Hasina: शेख हसीना कोइंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल ने सजा-ए-मौत सुना दी है. 2024 में भड़के दंगों को लेकर उन पर कई संगीन आरोप लगे और अदालत ने आरोप सिद्ध करने के बाद उन्हें दोषी पाया और अब फांसी की सजा सुना दी.
Sheikh Hasina Verdict Sentenced To Death:बांग्लादेश में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को फांसी की सजा सुनाई गई है. हसीना के साथ दो अन्य आरोपियों में एक को मौत की सजा और एक को फांसी से बचा दिया गया है. जानें पूरी कहानी.
शेख हसीना को फांसी की सजा, मानवता के खिलाफ अपराध मामले में आईसीटी ने ठहराया दोषी
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के मामले में फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने हसीना को मानवता के खिलाफ अपराध के मामले का दोषी ठहराया और कहा कि हसीना सबसे कठोर सजा की हकदार हैं। कोर्ट ने फांसी की सजा का ऐलान किया है
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ दर्ज मामलों में इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल बांग्लादेश (आईसीटीबीडी) आज फैसला सुनाने वाली है। हसीना के खिलाफ कई आरोप हैं, जिसे लेकर आईसीटीबीडी में सुनवाई शुरू हो गई है
शेख हसीना को फांसी की सजा सुनाएगी कोर्ट? अवामी लीग के बंद के दूसरे दिन शूट एट साइट का ऑर्डर
Verdict on Sheikh Hasina: बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के केंद्रीय समिति सदस्य काज़ी मोनिरुज्जमां ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ दर्ज मामले में फैसले से पहले कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर चिंता जताई है.
अपहरण, मर्डर और...क्या है शेख हसीना पर लगे वो गंभीर आरोप? जिसपर हो रही मौत की सजा की मांग
बांग्लादेश में हुए तख्तापलट को आज तक कोई भूला नहीं है. शेख हसीना के खिलाफ भीषण प्रदर्शन हुआ और इसका ये नतीजा निकला की उनकी सरकार गिर गई है और उन्हें बांग्लादेश छोड़कर भागना पड़ा, आंदोलनकारियों ने कई जगह पर आगजनी और तोड़फोड़ भी की थी.
PM Sanae Takaichi revealed sleeps 2 hours night:जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री साने ताकाइची ने जबसे जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री के तौर पर कुर्सी संभाली है, दुनिया को अपना जलवा दिखाना शुरू कर दिया है. पहले ट्रंप से मुलाकात की, फिर चीन को खुलेआम ताइवान के मामले में जंग की धमकी दी. अब उन्होंने ऐसा खुलासा किया है, जिससे पूरे देश में हल्ला मचा हुआ है. जानें पूरी कहानी.
सऊदी अरब में दर्दनाक सड़क हादसा, उमराह के लिए गए 42 भारतीयों की मौत, मक्का से मदीना जा रही थी बस
Saudi Arabia Bus Accident:सऊदी अरब में हुए एक भीषण हादसे में 42 भारतीय तीर्थयात्रियों की मौत हो गई. हादसे का शिकार हुई बस मक्का से मदीना जा रही थी.
नंगे हाथों से शेर का करते हैं शिकार! पलक झपकते ही क्यों खूंखार हो जाती है ये रहस्यमयी जनजाति?
Maasai Tribe: इस दुनिया में ऐसी कई जनजातियां हैं जो अपनी अलौकिकता के लिए फेमस हैं. ऐसे ही हम बात करने चल रहे हैं उस जनजाति के बारे में जो अपने हाथों से शेर का शिकार करती है.
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के मामले में आज इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल बांग्लादेश (आईसीटीबीडी) फैसला सुनाएगा। इस फैसले को लेकर बांग्लादेश में स्थिति तनावपूर्ण है, जिसको देखते हुए बांग्लादेश में शूट एट साइट का ऑर्डर दिया गया है
पुरुष, महिला और बच्चों के अलग-अलग रेट... मनोरंजन के लिए आम नागरिकों के शिकार की कहानी
क्या मनोरंजन के लिए किसी इंसान की जिंदगी ली जा सतकी है? वैसे तो यह सवाल ही नहीं होना चाहिए था लेकिन इटली की एक खबर ने सभी को हैरान कर दिया है. कहा जा रहा है कि यहां पैसे देकर आम नागरिकों पर गोलियां चलाई गई हैं.
चिली में फंस गया चुनाव! पहले दौर में लेफ्ट या राइट किसी को बहुमत नहीं; अब कैसे मिलेगा नया राष्ट्रपति
Chile's presidential polls: चिली में राष्ट्रपति पद की रेस में आठ कैंडिडेट थे. पहले चरण में कोई भी कैंडिडेट 50 फीसदी से अधिक वोट पाते हुए नहीं दिख रहा है. ऐसे में टॉप पर मौजूद इन दो उम्मीदवारों वामपंथी जारा और दक्षिणपंथी कास्ट के बीच अब 14 दिसंबर को दूसरे दौर का मुकाबला होने की उम्मीद है.
Sant Singh Chatwal: पद्म भूषण से सम्मानित फेमस भारतीय-अमेरिकी कारोबारी संत सिंह चटवाल ने ‘लेट्स शेयर अ मील’ के कोऑर्डिनेटर ओंकार सिंह और सैकड़ों वालंटियर्स के साथ मिलकर न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर में हजारों लोगों को ‘लंगर’ (मुफ्त खाना) परोसा.
Japan Sakurajima volcano Video:जापान सकुराजिमा ज्वालामुखी में जोरदार धमाका हुआ है. विस्फोट इतना भयानक था जिसकी आग, राख और धुएं का गुब्बार आसमान में 4400 मीटर ऊंचा उठा. देखें वीडियो, जानें नुकसान.
Congo mine bridge collapse:दक्षिण-पूर्वी कांगो के कालांडो कोबाल्ट खदान में पुल ढह गया. अवैध खनिकों की भीड़, सैनिकों की गोली से भगदड़, बारिश की चेतावनी न मानने से 32 से अधिक लोगों की मौ हो गई. आप भी देखें खौफनाक वीडियो.
Maulana Diesel: बांग्लादेश बीते 15 महीनों से राजनीतिक अस्थिरता की आग में जल रहा है और वहां की अंतरिम सरकार के आका मोहम्मद यूनुस लगभग उतने ही समय से कान में रुई डालकर नीरो की तरह बांसुरी बजा रहे है.
आईपीएल 2026 के लिए आरसीबी ने यश को रीटेन किया और इधर करोड़ों फैंस नाराज हो गए, इस नाराजगी की वजह क्या है, आरसीबी के यश को रीटेन करने की क्या वजह हो सकती है, पूरी जानकारी के लिए ऊपर दी गई इमेज पर क्लिक कर देखें वीडियो
बिहार में NDA की प्रचंड जीत के बाद 14 नवंबर की शाम बीजेपी मुख्यालय पहुंचे पीएम मोदी ने कहा, 'गंगा जी बिहार से बहते हुए ही बंगाल तक जाती हैं। मैं पश्चिम बंगाल के लोगों को आश्वस्त करता हूं कि बीजेपी वहां से भी जंगलराज को उखाड़ फेकेंगी।' पश्चिम बंगाल चुनाव में अभी 5-6 महीने का वक्त है, लेकिन बीजेपी एक इलेक्शन मशीन की तरह अपने अगले मिशन पर शिफ्ट हो गई है। आखिर बीजेपी चुनाव कैसे जीतती है, मंडे मेगा स्टोरी में 8 फैक्टर में जानेंगे पूरी कहानी… **** ग्राफिक्स: अजीत सिंह और अंकुर बंसल ------ ये स्टोरी भी पढ़िए... बीजेपी मोलभाव कर सकेगी, लेकिन अब भी सहयोगियों पर निर्भर:महिलाओं की कैश स्कीम्स जीत की चाबी, राहुल का क्या; बिहार चुनाव के 7 नेशनल इम्पैक्ट बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी 90% स्ट्राइक रेट के साथ 92 सीटें जीत रही है, लेकिन जेडीयू भी सभी को चौंकाते हुए 80% स्ट्राइक रेट से 82 सीटों पर आगे चल रही है। नतीजों के बाद बीजेपी की बारगेनिंग पावर जरूर बढ़ेगी, लेकिन नेशनल पॉलिटिक्स में वो अब भी सहयोगियों के भरोसे रहेगी। पूरी खबर पढ़िए...
बांग्लादेश: डेंगू से पांच लोगों की मौत, मृतकों की संख्या 330 के पार
बांग्लादेश में रविवार तक पिछले 24 घंटों में डेंगू से पांच लोगों की मौत हो गई। इसके साथ ही, 2025 में इस बीमारी से मरने वालों की कुल संख्या 336 हो गई है
फिलीपींस के बाद चीन ने जापान पर तानी 'बंदूक'! अचानक मिसाइल ड्रिल का किया ऐलान, बिगड़ रहे हैं हालात
China Japan News in Hindi: दक्षिण चीन सागर में बमवर्षक विमान भेजकर फिलीपींस को डराने के बाद चीन ने अब जापान पर अपनी बंदूक ताननी शुरू कर दी है. ताइवान का सपोर्ट करने पर चीन ने अचानक यलो सी में लाइव फायर मिसाइल ड्रिल करने का ऐलान किया है.
नेपाल में बीमा नियामक ने आतंकवादी संगठनों की संपत्तियां फ्रीज करने का आदेश दिया
नेपाल के बीमा नियामक ने देश में संचालित सभी बीमा कंपनियों को निर्देश दिया कि वे आतंकवाद से जुड़े संगठनों और व्यक्तियों की संपत्तियों को फ्रीज करें
Bullet Train Interesting Facts: बुलेट ट्रेनों की स्पीड 300 किमी प्रति घंटा के आसपास होती है. इतनी जबरदस्त स्पीड में दौड़ने के बावजूद उसमें रखी चीजें गिरती क्यों नहीं हैं. क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है.
नेपाल का ऐतिहासिक फैसला, भारत में आतंक फैलाने वाले संगठनों की संपत्ति होगी फ्रीज
Nepal orders insurance companies: नेपाल की बीमा कंपनियों को यूएनएससी की तरफ से बताए गए आतंकवादी संगठनों और व्यक्तियों के नाम की संपत्तियों को तत्काल फ्रीज करके और उन्हें किसी भी प्रकार का बीमा देने से रोकने का आदेश दिया है. यूएनएससी की तरफ से जारी सूची में लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हरकत-उल-जिहाद इस्लामी जैसे संगठनों के नाम शामिल किए गए हैं. इन पर भारत में आतंकवादी हमले करने के आरोप हैं.
Crime News in Hindi: अपराधियों का एक गिरोह तूफान की तरह ज्वेलरी शॉप पर पहुंचे और महज 7 मिनट में 10 करोड़ रुपये के जेवर लूटकर भूत की तरह गायब हो गए. पुलिस अब बदमाशों की तलाश में अपना माथा पीट रही है.
अपने उद्देश्यों में विफल होने के बाद वेस्ट, ईरान से करना चाहता है बात : अराघची
ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराघची ने दावा किया कि पश्चिमी देश उनसे परमाणु कार्यक्रम को लेकर बात करना चाहते हैं
अमेरिका में कोहराम, तेजी से खत्म हो रहीं नौकरियां, कंपनियों के बुरे हाल, आखिर वजह क्या है?
America job Crisis: ट्रंप सरकार की तरफ से लगाए गए 43 दिनों के सरकारी शटडाउन के कारण अमेरिका में महत्वपूर्ण आर्थिक आंकड़े भी जारी नहीं हो पाए, जिसके चलते लेबर विभाग डेढ़ महीने की देरी सेअब सितंबर महीने में रोजगार और बेरोजगारी के आंकड़ों की रिपोर्ट अगले गुरुवार को जारी करेगा.
DRC में आतंकियों ने खेला खूनी खेल, IS से जुड़े विद्रोहियों ने 20 लोगों की हत्या कर घरों में लगाई आग
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) के पूर्वी हिस्से में एलाइड डेमोक्रेटिक फोर्सेज (ADF) के विद्रोहियों ने 20 लोगों को मार डाला. विद्रोहियों ने शुक्रवार से शनिवार की रात आतंक मचाया. स्थानीय सूत्रों ने सिन्हुआ को ये जानकारी दी.
पाकिस्तान ने पार की नीचता की हद, 1 लाख शरणार्थियों को कैद कर ले रहा अफगानिस्तान से बदला
Afghani refugees: हालांकि पहले भी 2024 में लगभग 9000 और 2023 में 26000 अफगानों को पकड़ा गया था. यूएनएचसीआर की तरफ से हिरासत में लिए गए लोगों के बारे में जानकारी साझा करते हुए बताया गया कि इनमें से 76 प्रतिशत शरणार्थी या तो बिना दस्तावेज वाले प्रवासी थे या उनके पास सिर्फ अफगान नागरिक कार्ड था.
इजरायल में 7 अक्टूबर 2023 के बाद एक ऐसी प्रक्रिया तेजी से बढ़ी है, जो सुनने में भावनात्मक भी है और वैज्ञानिक रूप से बेहद जटिल भी! पोस्ट ह्यूमस स्पर्म रिट्रीवल (पीएसआर) यानी किसी पुरुष की मृत्यु के बाद उसका स्पर्म निकालकर संरक्षित करने की प्रक्रिया तेजी से विकसित हुई है
अमेरिका इमिग्रेशन नीति में बदलाव करने की पूरी तैयारी में है। इसे लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तेवर सख्त होते नजर आ रहे हैं। अमेरिकी मीडिया के अनुसार, यहां की नई आव्रजन नीति तैयार की जा रही है
आसिम मुनीर कैसे बने पाकिस्तान में सबसे ताकतवर
पाकिस्तान की संसद ने सेना प्रमुख आसिम मुनीर की शक्तियों को बढ़ाने वाले 27वें संशोधन को मंजूरी दे दी है. इस संशोधन के साथ ही अब आसिम मुनीर देश के सबसे ताकतवर पदाधिकारी बन गए हैं
अब इस देश में सड़कों पर उतरे हजारों GEN Z; राष्ट्रपति के खिलाफ खोला मोर्चा, क्या है विवाद?
Mexico Zen G Protest: मेक्सिको में राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबाम की सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया जा रहा है. इसको लेकर कई सारे प्रदर्शकारी सड़कों पर उतरे हैं.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने शनिवार को फोन पर बातचीत की। मॉस्को और यरूशलम ने आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि की है। पुतिन की पहल पर दोनों नेताओं की बातचीत हुई
लंबे समय तक टैरिफ वॉर में फंसे देशों को अब अमेरिका ने राहत देना शुरू कर दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फल, बीफ, कॉफी समेत 200 चीजों पर टैरिफ हटाने का ऐलान किया है। उनके इस फैसले की ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वोंग ने स्वागत किया है
Michelle Obama For 2028 Presidential Run: अमेरिका की पूर्व फर्स्ट लेडी मिशेल ओबामा ने हाल ही में अपने साल 2028 के राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की संभावनाओं के बारे में बात की.
मस्क के बाद अब इस करीबी ने छोड़ा ट्रंप का साथ... राष्ट्रपति पर लगाया जान से मारने की धमकी का आरोप
Marjorie Taylor Greene VS Trump: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उनकी सहयोगी और जॉर्जिया हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की सदस्य मार्जोरी टेलर ग्रीन के साथ मतभेद बढ़ गए हैं.
150 फिलिस्तीनीयों को लेकर साउथ अफ्रीका कैसे पहुंचा रहस्यमयी जहाज? अबतक नहीं सुलझी गुत्थी!
Flight With Palestinians Reached South Africa: साउथ अफ्रीका में एक अजीब घटना देखने को मिली है. यहां के एक एयरपोर्ट में बिना दस्तावेज के फिलिस्तीनी नागरिक विमान में सवार होकर पहुंचे.
ट्रंप को साइड कर क्या खिचड़ी पका रहे हैं नेतन्याहू और पुतिन! 2 महीने में दूसरी बार फोन पर हुई बात
Putin And Netanyahu Phone Call: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू के बीच हाल ही में फोन पर बातचीत हुई, जिसमें दोनों देशों के नेताओं ने कई मुद्दों पर चर्चा की.
मेरा नाम उर्मिला है। मैं मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के एक गांव में पैदा हुई। एक दलाल ने मुझे शादी के बहाने धोखा दिया। उसने हरियाणा के जींद के रहने वाले कुबूल लाठर के हाथों बेच दिया। हरियाणा में इस तरह खरीदकर लाई जाने वाली दुल्हनों को ‘पारो’ या ‘मोलकी’ कहा जाता है। इन्हें बहू नहीं माना जाता, बल्कि एक तरह की नौकरानी की तरह रखा जाता है। इन्हें 20 हजार से लेकर दो लाख रुपए तक में खरीदा जाता है। शादी के बाद मेरे पति कुबूल लाठर मुझे अपने गांव लेकर नहीं आए। वह मुझे मेरे मायके में ही एक किराए के घर में रखा। जब मेरे माता-पिता ने दबाव बनाया, तब वह मुझे हरियाणा के अपने गांव करसौला लेकर आए थे। यहां आई तो, उनके माता-पिता ने मुझे घर में घुसने नहीं दिया। वह मुझे बहू मानने को तैयार नहीं थे। इसके बाद मेरे पति ने गांव में ही एक किराए का कमरा ले लिया और मैं वहीं रहने लगी। इस दौरान मैं उनके माता-पिता के खेत में मजदूरी करती थी, जिसके बदले वे थोड़ा अनाज देते थे। जब मेरे आदमी की कैंसर से मौत हुई तो उनके मां-बाप ने मुझे दोबारा बेचने की कोशिश की। मैंने साफ मना कर दिया। उनकी नजर मेरी बेटी पर थी। दरअसल, हम चार भाई-बहन थे और घर में बहुत गरीबी थी। कई बार खाने तक को कुछ नहीं होता था। पिताजी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे मेरी शादी करवा सकें। मैं उस समय सिर्फ 16 साल की थी। तभी एक बिचौलिया मेरे माता-पिता से मिला। उसने कहा कि वह मेरी शादी हरियाणा के एक ट्रक ड्राइवर से करवा देगा- जिसका नाम कुबूल लाठर था। कुबूल अक्सर ट्रक लेकर हमारे गांव आता-जाता था। बिचौलिए ने मेरे माता-पिता से कहा कि कुबूल अच्छी कमाई करता है और मुझे अच्छे से रखेगा, और शादी में कोई पैसे नहीं लेगा। उसने मुझसे भी कहा कि मुझे कोई तकलीफ नहीं होगी और सब सुविधा मिलेगी। गरीबी के कारण माता-पिता उसकी बातों में आ गए। बाद में पता चला कि बिचौलिए ने कुबूल से पैसे लिए थे- यानी उसने वास्तव में मुझे बेच दिया था। कितना पैसा लिया था, आज तक पता नहीं चला। 2010 में मेरी शादी एक मंदिर में करा दी गई। शादी के बाद मेरे पति मुझे अपने गांव नहीं लाए। उन्होंने मेरे मायके में ही किराए पर एक कमरा लिया और उसमें मुझे ढाई साल से ज्यादा समय तक रखा। मैं छोटी थी, ज्यादा समझ नहीं थी। वे दो-तीन महीने में एक बार आते, एक-दो दिन रहते और फिर चले जाते। इस बीच घर वालों को पता चला कि बिचौलिए ने मुझे बेच दिया था। 2013 की बात है। उस दिन मेरे पति आए हुए थे। मेरी मां उनसे मिलने पहुंचीं और उन्होंने कहा- 'अगर आप मेरी बेटी को अपने साथ नहीं ले जाएंगे तो हम इसकी कहीं और शादी कर देंगे।' इस दबाव के बाद मेरे पति मुझे हरियाणा के जींद जिले के अपने गांव करसौला लेकर आए। लेकिन वहां पहुंचते ही सास-ससुर ने साफ कह दिया- 'तू बाहर से बहू लाया है, इसे घर में घुसने नहीं देंगे।' तभी मुझे समझ आया कि मेरे पति मुझे इतने सालों तक अपने गांव क्यों नहीं लाए थे। मजबूरी में उन्होंने गांव में किराए का कमरा लिया और मैं वहां रहने लगी। आखिर, मायके में तीन साल किराए पर रहने के बाद अब अपने पति के गांव में भी आकर किराए पर रहने लगी। इसी दौरान मेरी एक बेटी हुई। मैं उसकी देखभाल में लगी रहती थी। एक दिन मेरे ससुर आए और बोले- 'खेत में गेहूं की फसल तैयार है, तुम्हें काटनी पड़ेगी। तुम्हें खरीदकर लाया हूं, सारा पैसा वसूल करूंगा।' मैंने मना कर दिया, तो वे लौट गए। कुछ दिन बाद मेरे पति आए, तब उनके पिता फिर आए और कहा- 'पारो को खेत में भेजो, फसल तैयार है।' उस दिन मेरे पति ने मुझे बहुत समझाया। कहा- अपने घर का काम है, कर लो। पति के कहने पर मैं तैयार हुई और रोज सुबह से शाम तक गेहूं की कटाई करने लगी। कई बार बिना खाए-पिए ही। इसके बदले मुझे थोड़ा-बहुत गेहूं मिलता था। इस तरह मैं अपने ही ससुराल में मजदूरी करने लगी। फिर एक दिन मेरे ससुर जी ने कहा- 'काम करके कमरे पर मत आया करो, घर आ जाया करो। घर का भी काम करना है।' इसके बाद मैं उनके घर भी जाने लगी- झाड़ू, पोंछा, बर्तन, कपड़े धोना, गोबर उठाना- सब काम करती, लेकिन रसोई में जाने की इजाजत नहीं थी। चूल्हा-चौका छूने नहीं देती थीं, क्योंकि वे मुझे अछूत मानते थे। जब ससुराल वालों को मालूम हुआ कि मेरे माता-पिता भी गरीब हैं, तो उन्होंने उन्हें भी सिवनी से बुला लिया और उनसे भी मजदूरी करवाने लगे। मैं तो पहले ही नौकरानी की तरह थी, अब मेरे माता-पिता भी मजदूर बन गए। जब ससुराल वालों के रिश्तेदारों के यहां शादी-ब्याह होता तो वहां भी मुझे लेकर जाते। वहां भी सारा काम करती। एक रिश्तेदार के यहां शादी थी। वहां गई तो पता चला कि मेरे पति ने पहले से ही दो शादियां कर रखी हैं। उस दिन मैं बहुत परेशान हो गई। जब उनसे पूछा तो कहने लगे- रहता तो मैं तेरे ही साथ हूं न, तुझे क्या दिक्कत है। तुझे किस चीज की कमी है। वह मुझे डांटने लगे। मैंने आखिर दिल पर पत्थर रख लिया। उस बारे में फिर दोबारा बात नहीं की। 2019 में मेरे पति के गले में कैंसर का पता चला। उन्होंने ड्राइविंग छोड़ दी और घर पर रहने लगे। घर चलाने के लिए मैंने गांव में मजदूरी करनी शुरू की। बेटी छोटी थी, उसे भी साथ ले जाना पड़ता था। कुछ समय बाद उनकी हालत बहुत खराब हो गई। इलाज के पैसे नहीं थे। मैंने सास-ससुर से मदद मांगी तो उन्होंने कहा- हमारे पास पैसे नहीं हैं, लेकिन तुम हमारे घर में आकर रह सकती हो, ताकि तुम्हारे कमरे का किराया बचे। मजबूरी में मैं ससुराल में रहने लगी। मैंने गांव से चंदा इकट्ठा करके पति को अस्पताल में भर्ती कराया। हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी। एक दिन उनके भाई ने मुझसे कहा- 'घर जा, तुम्हें यहां रहने की जरूरत नहीं है।' वह नहीं चाहते थे कि आखिरी समय में मैं अपने पति के साथ रहूं। मैं रोते हुए घर लौट आई। अगले दिन जेठ आए और बताया कि कुबूल की मौत हो गई है। अभी पति की मौत को एक दिन भी नहीं हुआ था कि ससुराल वाले बोलने लगे- 'हमारे दूसरे बेटे से शादी कर लो।' वे नहीं चाहते थे कि ‘फ्री में मिली नौकरानी’ कहीं चली जाए। मैंने साफ मना कर दिया और कहा- मुझे अपना हिस्सा चाहिए, ताकि मैं अपनी बेटी को पाल सकूं। वे हिस्सा देने को तैयार नहीं थे। बोले- 'या तो हमारे दूसरे बेटे से शादी करो, नहीं तो हम तुम्हारी कहीं और शादी कर देंगे। तुम्हें एक लाख रुपए और अंगूठी भी देंगे।' यानी वे मुझे दोबारा बेचने की तैयारी में थे। लेकिन मैंने दूसरी शादी से इनकार कर दिया। मुझे लगा था कि वे मुझे जान से न मार देंगे। मदद के लिए पुलिस थाने पहुंची। वहां पुलिस वाले कहने लगे- आखिर जब तुम्हारी दूसरी शादी की जा रही है, तो क्यों नहीं कर लेती! इस तरह पुलिस ने मदद नहीं की। फिर थाने से वापस घर लौट आई। मुझे बेटी की चिंता सताती थी- अगर मुझे कुछ हो गया तो उसका क्या होगा? कहीं उसे भी नौकरानी न बना दें या आगे चलकर बेच न दें। यह 2021 की बात है। तभी पता चला कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर हमारे इलाके में आने वाले हैं। मैंने ठान लिया कि उनसे मिलूंगी। जिस रास्ते से उनका काफिला गुजरना था, मैं वहीं बैठ गई और रास्ता रोककर मदद की गुहार लगाई। कहा- 'मेरे पति की मौत हो चुकी है। मेरे पास न घर है, न खाने को कुछ। मेरी एक बेटी है। कृपया मदद कीजिए।' सीएम ने डीसी को निर्देश दिए। वे मेरे साथ आए और दबाव डालकर ससुराल वालों से एक कमरा दिलवाया। उसमें न शौचालय था, न बाथरूम, लेकिन किसी तरह रहने लगी। अब मेरे ससुराल के लोग न मुझसे बात करना एकदम से बंद कर दिया। मेरी बेटी से भी बात नहीं करते। अब मेरी बेटी स्कूल जाने लगी है, लेकिन वहां उसके साथ भेदभाव होता है। बच्चे उसे पारो की बेटी कहकर चिढ़ाते है। एक दिन मैंने स्कूल में जाकर शिकायत की, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। अब मैं इसी कमरे में बेटी के साथ रहती हूं। मुझे आज तक बहू का दर्जा नहीं मिला। मैं बीमार हूं, डॉक्टरों ने बताया है कि मेरे दिल में छेद है, लेकिन इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। इस बीच, सीएम खट्टर का रास्ता रोकने वाला मेरा वीडियो वायरल हो गया था। वीडियो देखकर दिल्ली की एक संस्था ने मेरी मदद की। कुछ वकील भी आए, जो हरियाणा में पारो महिलाओं की सहायता करते हैं। उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया और बाकी पारो महिलाओं के लिए काम करने को कहा। मैंने ‘सखी संघ’ के रूप में एक समूह बनाकर काम शुरू कर दिया है। इस संघ के जरिए हम जींद जिले में पारो महिलाओं को उनके अधिकारों के लिए जागरूक करते हैं। इस जागरूकता के दौरान एक दिन मेरी मुलाकात एक पारो से हुई। उसको बच्चा हुआ था। उसके आदमी के घर वालों ने उसका बच्चा छीन लिया था और उसे घर से निकाल दिया था। बाद में पता चला कि उसे दूसरी जगह बेच दिया गया। इस तरह हरियाणा में गरीबी और बेबसी के कारण पारो महिलाओं को बार-बार बेचा जाता है। कुछ आदमियों ने तो शराब के पैसे के लिए पारो दुल्हन को बेच दिया। कुछ पारो को मार दिया गया, जिनकी आज तक लाश नहीं मिली। कुछ महीने पहले ही एक पारो ने फांसी लगाई थी। कई बार तो मैंने भी जहर खाने की सोचा। इस तरह हमारी जिंदगी जानवरों से भी बदतर है। अंत में कहूंगी कि- हमारे पति की मौत के बाद हमें घर में रहने दिया जाए। हमें बहू का दर्जा मिले। उनकी जायदाद में हिस्सा दिया जाए। पारो को दोबारा बेचने की परंपरा पर रोक लगे। यही नहीं, हम यह भी चाहते हैं कि हमें पारो कहकर अपमानित करना बंद किया जाए। इन सबके लिए हम सभी पारो बहनों ने एक मांग पत्र भी तैयार किया है। ------------------------------------------ (उर्मिला ने अपने ये जज्बात भास्कर रिपोर्टर मनीषा भल्ला से साझा किए हैं।) 1-संडे जज्बात-मैं मुर्दा बनकर अर्थी पर भीतर-ही-भीतर मुस्कुरा रहा था:लोग ‘राम नाम सत्य है’ बोले तो सोचा- सत्य तो मैं ही हूं, थोड़ी देर में उठकर साबित करूंगा मेरा नाम मोहनलाल है। बिहार के गयाजी के गांव पोची का रहने वाला हूं। विश्व में शायद अकेला ऐसा इंसान हूं, जिसने जिंदा रहते अपनी शव यात्रा देखी। यह बात चंद करीबी लोगों को ही पता थी। मरने का यह सारा नाटक किसी खास वजह से किया गया था। पूरी स्टोरी यहां पढ़ें 2- संडे जज्बात-फौजी विधवा की 8 साल के देवर से शादी:मैं मेजर जनरल थी, उसकी बात सुनकर कांप गई; मन करता है कैसे भी उससे मिल लूं अस्पताल में इलाज के दौरान एक युवा सिपाही की मौत हो गई। वह शादीशुदा था और उसकी विधवा पत्नी की उम्र लगभग 22 साल थी। सिपाही की मौत के बाद एक दिन उसकी पत्नी रोते हुए मेरे पास आई। कहने लगी कि मुझे बचा लीजिए। मेरे ससुराल वाले और मायके के लोग मेरी शादी देवर से कराने जा रहे हैं। पूरी स्टोरी यहां पढ़ें
'दिल्ली की हस्ती मुनासिर कई हंगामों पर हैकिला, चांदनी चौक, हर रोज मजमा जामा मस्जिदहर हफ्ते सैर जमुना के पुल कीऔर दिल्ली में हर साल मेला फूलवालों काये पांच बातें अब नहीं, फिर दिल्ली कहां’ दिल्ली के बारे में ये बात मशहूर शायर मिर्जा गालिब ने कही थी। बात 1857 के गदर से पहले की है। दिल्ली बेरौनक हो रही थी, इसलिए गालिब मायूस थे। अब किला है, चांदनी चौक है, जामा मस्जिद पर मजमा है, जमुना का पुल है, बस इस साल मेला फूलवालों का नहीं है। गालिब ने जिसे मेला फूलवालों का कहा, वो दिल्लीवालों के लिए फूलवालों की सैर नाम का उत्सव है, जो महरौली में मनाया जाता है। 213 साल पहले 1812 में शुरू हुए उत्सव को इस साल परमिशन नहीं मिली। इसके लिए 2 नवंबर से 8 नवंबर की तारीख तय थी। आयोजकों का कहना है कि दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी यानी DDA ने कहा कि फॉरेस्ट वालों से परमिशन लीजिए। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने जवाब दिया कि यह हमारे दायरे में आता ही नहीं है, तो परमिशन कैसे दें। ये मेला इतना मशहूर हुआ कि जवाहर लाल नेहरू हर साल यहां आते थे। इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई भी आते रहे। इस मसले पर हमने महरौली के लोगों, आयोजकों, DDA और वन विभाग के अफसरों से बात की। लोग बोले- सरकार जो चाहे करे, हम क्या कर सकते हैंमहरौली में एक से दो किमी के दायरे में कुतुब मीनार, राजाओं की बावली, जहाज महल, 1230 में बना हौज-ए-शम्सी तालाब, कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह और योगमाया मंदिर है। फूलवालों की सैर का इतिहास क़ुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह और योगमाया मंदिर को जोड़ता है। सबसे पहले हम जहाज महल पहुंचे। ये जगह हौज-ए-शम्सी तालाब से सटी है। फूल वालों की सैर के दौरान इस जगह कव्वाली होती है। यहां 80 साल के नंदलाल मिले। नंदलाल भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद दिल्ली आकर बसे थे। 63 साल से फूलवालों की सैर में शामिल होते रहे। इस बार मायूस हैं क्योंकि ये उत्सव नहीं हो पाया। नंदलाल कहते हैं, ‘इस बार त्योहार की परमिशन ही नहीं मिली। सरकार जो चाहे करे, अब उसके आगे हम क्या कर सकते हैं।’ ‘त्योहार कई साल से मन रहा, DDA को अब फॉरेस्ट लैंड दिखा’महरौली के रहने वाले महेश कुमार DDA से परमिशन न मिलने पर सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं, ‘ये त्योहार कई साल से DDA के पार्क में हो रहा है। DDA को अब वहां फॉरेस्ट लैंड दिख रहा है। पहले तो कभी नहीं दिखा।’ महेश आगे कहते हैं, ‘ये फेस्टिवल बहुत जरूरी है। यह भाईचारे की जगह है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सब इसमें शामिल होते हैं। मेरे जन्म से पहले ये परंपरा चल रही है।’ 37 साल के सिराज शेख महरौली में ऑटो चलाते हैं। वे हमें महरौली के आम बाग में मिले। फूल वालों की सैर का मेला यहीं लगता है। सिराज कहते हैं, ‘मेले के दौरान हम मंदिर और मस्जिद दोनों जगह जाते थे। पिछली बार भी मेला नहीं लगा था, सिर्फ कव्वाली हुई थी। ये त्योहार हर धर्म और जाति के लोगों को जोड़ता है।’ महरौली के स्थानीय पत्रकार अजीज अहमद बताते हैं, ‘मेरी जिंदगी यहीं बीती है। इस फेस्टिवल में अलग-अलग राज्यों से पंखे आते हैं। उनमें आधे दरगाह और आधे योगमाया मंदिर में जाते हैं। ये फेस्टिवल हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है।' 'आजादी के बाद ये दोबारा शुरू हुआ, तब जवाहर लाल नेहरू हर साल यहां आए। इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, बाद में दूसरे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी आते रहे। दिल्ली के उपराज्यपाल तो हर साल आते हैं।’ सूफी संत की दरगाह, भगवान कृष्ण की बहन का मंदिरमेले के दौरान दिल्ली के उपराज्यपाल हजरत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह पर पंखा और फूलों की चादर चढ़ाते हैं। फिर योगमाया मंदिर में फूलों के पंखे पेश किए जाते हैं। इसके लिए यात्रा निकाली जाती है। किर्गिस्तान से भारत आए कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी एक सूफी संत थे। यहां चिश्ती सूफी परंपरा के संस्थापक ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य बन गए। बाद में मुइनुद्दीन चिश्ती ने बख्तियार काकी को अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी बना दिया। बख्तियार काकी ने पूरी जिंदगी दिल्ली में ही बिताई। 1235 में इंतकाल के बाद उन्हें महरौली में दफनाया गया। विभाजन के बाद दंगाइयों ने बख्तियार काकी की दरगाह को नुकसान पहुंचाया था। हत्या से तीन दिन पहले महात्मा गांधी यहां आए थे। उन्होंने अपील की थी कि दरगाह की मरम्मत कर मुसलमानों को सौंप दिया जाए। इसी तरह योगमाया मंदिर भी काफी पुराना है। मंदिर परिसर में लगे बोर्ड पर मंदिर का इतिहास लिखा है। इसके मुताबिक योगमाया भगवान कृष्ण की बहन थीं। मथुरा के राजा कंस ने योगमाया को कृष्ण समझकर मारने की कोशिश की थी। तब योगमाया का सिर इसी जगह गिरा था। इस मंदिर में योगमाया का शीश पिंडी रूप में है। इसी की पूजा होती है। आयोजक बोले- बार-बार परमिशन मांगी, आखिरी वक्त तक नहीं मिली1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजों ने इस मेले पर रोक लगा दी थी। पद्मश्री से सम्मानित सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज योगेश्वर दयाल ने 1961 में फूल वालों की सैर दोबारा शुरू करने की पहल की। इसके बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1962 में इसे दोबारा शुरू करवाया। तभी से यह त्योहार हर साल मन रहा था। इसका आयोजन अंजुमन सैर-ए-गुल फरोशां नाम की संस्था कराती है। पूर्व जज योगेश्वर दयाल की बेटी ऊषा दयाल इसकी जनरल सेक्रेटरी हैं। वे कहती हैं, ‘पिछले साल भी आखिरी वक्त में मौखिक अनुमति दी गई थी। कोई लेटर नहीं दिया गया। हमने इस साल मार्च से ही DDA से अनुमति लेने के लिए संपर्क करना शुरू कर दिया था। तब उन्होंने कहा कि फॉरेस्ट डिपार्टमेंट से नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लाना होगा। हमने फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को लेटर लिखा। कई बार रिमाइंडर के बावजूद जवाब नहीं मिला।’ जुलाई में हमने उपराज्यपाल को लेटर लिखा। वहां से भी जवाब नहीं आया। सितंबर में DDA से फिर परमिशन मांगी। हमें कोई जवाब नहीं मिला। ऊषा बताती हैं, ‘मंत्री कपिल मिश्रा ने भी DDA वालों से पूछा कि 2023 तक परमिशन मिल रही थी, तो अभी क्या दिक्कत है। DDA ने कोई जवाब नहीं दिया। हमने फैसला लिया कि इस साल आयोजन नहीं करेंगे। आम बाग में साफ लिखा है कि ये DDA पार्क है। इसके बावजूद पिछले साल से वे अड़चन लगा रहे हैं।’ हम महरौली में अंजुमन सैर-ए-गुल फरोशां के उपाध्यक्ष विनोद शर्मा से भी मिले। वे 50 साल से ज्यादा वक्त से इससे जुड़े हैं। विनोद कहते हैं, ‘देश में अभी जैसा माहौल है, उसमें ऐसे फेस्टिवल की और ज्यादा जरूरत है।’ वे कहते हैं, ‘शुरुआत में मेला एक दिन का होता था। फिर तीन दिन का होने लगा। अब एक हफ्ते तक लगता है। दरगाह में चादर चढ़ाई जाती है, तो हिंदू भी जाते हैं। मंदिर में पंखे रखे जाते हैं, तब मुस्लिम आते हैं। शुरू में तो ये दिल्ली का फेस्टिवल था, लेकिन अब पूरे हिंदुस्तान का हो चुका है। हर जगह से पंखे आते हैं। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश से लोग आते हैं।’ विनोद कहते हैं कि DDA की तरफ से इस बार भी टाल-मटोल होता रहा। इसलिए संस्था ने फैसला लिया कि जब तक अनुमति नहीं मिलती, मेले का आयोजन नहीं किया जाएगा। 22 अक्टूबर को 'अंजुमन सैर-ए-गुल फरोशां' के लेटर का DDA ने जवाब दिया था। इसमें बताया गया कि कार्यक्रम के लिए जिस पार्क की अनुमति मांगी जा रही है, वो रिजर्व फॉरेस्ट एरिया है। वहां कोई नॉन-फॉरेस्ट एक्टिविटी की इजाजत नहीं दी जा सकती। इसके लिए DDA ने फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के आदेश का हवाला दिया और कहा कि आवेदन को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि एलजी ने अधिकारियों को परमिशन देने के लिए कहा था। हमने इस पर DDA के बुकिंग डिपार्टमेंट के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर कनव महाजन से बात की। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम के लिए सशर्त अनुमति दे दी गई है। हालांकि उन्होंने परमिशन लेटर शेयर करने से इनकार कर दिया। वहीं, आयोजक बताते हैं कि उन्हें कोई ऑफिशियल लेटर नहीं मिला है। अब ये कार्यक्रम अगले साल मार्च में करेंगे, क्योंकि एक महीने पहले से तैयारी करनी पड़ती है। हमने इस मुद्दे पर दिल्ली के संस्कृति मंत्री कपिल मिश्रा से बात करने की कोशिश की। उनका जवाब नहीं मिला। दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना को भी ईमेल भेजा है। जवाब आने पर खबर अपडेट करेंगे। मुगल बादशाह ने शुरू कराई फूलवालों की सैरइतिहासकारों के मुताबिक इस त्योहार की शुरुआत मुगल बादशाह अकबर शाह द्वितीय के राज में हुई थी। तब अंग्रेज मजबूत हो रहे थे। राजकाज में अंग्रेज सरकार के प्रतिनिधि आरकिबाल्ड स्टेन का दबदबा था। अकबर शाह द्वितीय बड़े बेटे अबू जफर के बदले छोटे बेटे मिर्जा जहांगीर को गद्दी सौंपना चाहते थे। ये बात स्टेन को नामंजूर थी। एक दिन जहांगीर ने स्टेन का मजाक उड़ाया। स्टेन ने जहांगीर को दिल्ली से इलाहाबाद भेजकर नजरबंद करवा दिया। इतिहासकार राणा सफवी बताती हैं, ‘ये फेस्टिवल 1812-13 के आसपास शुरू हुआ था। अकबर शाह द्वितीय की बेगम मुमताज महल ने मन्नत मांगी थी कि अगर बेटा सही-सलामत वापस आ जाएगा, तो हजरत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह पर चादर चढ़ाऊंगी। जहांगीर लौटे तो मुमताज महल चादर चढ़ाने नंगे पैर दरगाह तक गईं। मिर्जा फरहतुल्लाह बेग अपनी किताब 'बहादुर शाह जफर और फूल वालों की सैर' में लिखते हैं कि नंगे पैर जाती हुई मुमताज बेगम के लिए फूल वालों ने रास्ते में फूल बिछा दिए थे। तब अकबर शाह ने कहा कि हम यहां चादर चढ़ाएंगे, तो योगमाया मंदिर पर भी छत्र चढ़ाएंगे। दिल्ली वालों की मांग पर बादशाह अकबर शाह ने कहा कि अब ये सैर हर साल भादो के महीने में होगी। इसके बाद ये हर साल त्योहार की तरह मनाया जाने लगा। राणा सफवी एक और किस्सा बताती हैं। 1857 में आजादी की लड़ाई चल रही थी। तब भी बहादुर शाह (द्वितीय) वहां चादर और छत्र चढ़ाने गए थे। एक साल ऐसा हुआ था कि बहादुर शाह मंदिर में छत्र नहीं चढ़ा पाए थे, फिर वे दरगाह भी नहीं गए। उन्होंने कहा था कि हिंदू-मुसलमान सब मेरे बच्चे हैं। अगर मैंने एक जगह चढ़ाई और दूसरी जगह नहीं चढ़ाई तो लोगों को बुरा लगेगा। राणा आगे कहती हैं कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों ने इसे बंद कर दिया था। आजादी के बाद फिर जवाहर लाल नेहरू ने इसे शुरू किया था।
बिहार चुनाव में NDA ने जंगलराज को नैरेटिव बनाने की भरपूर कोशिश की। प्रधानमंत्री मोदी ने हर रैली में जंगलराज और रंगदारी का जिक्र किया। नीतीश ने भी जंगलराज को मुद्दा बनाया। BJP ने सोशल मीडिया पर नरसंहारों का खूब जिक्र किया। विपक्ष इसकी काट नहीं निकाल पाया। आखिर नरसंहारों के दौर वाला बिहार कैसा था। आज कहानी 1977 के बेलछी नरसंहार की... देश से आपातकाल हटे ठीक 64 दिन हुए थे। साल था 1977 और तारीख 24 मई। केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी और मोरारजी देसाई पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री। बिहार में राष्ट्रपति शासन था, लेकिन चुनाव की तारीखें तय हो चुकी थीं। पटना से 90 किलोमीटर दूर एक गांव है बेलछी। 6 बजे थे सुबह के। गांव का दबंग महावीर महतो सिर पर गमछा बांधते हुए बोला- ‘मंगरू सुन रहे हो… जा सिंघवा को बुला लाओ।’ मंगरू- ‘हां काका, अभी जाते हैं।’ महावीर ने 30-35 साथियों को बुला लिया। बोला- ‘देखो आज सिंघवा बचना नहीं चाहिए। मंगरू गया है उसे बुलाने। लाठी-डंडे लेकर सब गली में खड़े हो जाओ। मैंने बंदूक-गोली मंगा ली है। आते ही उस पर टूट पड़ना है।’ कुछ ही देर में मंगरू, सिंघवा के घर पहुंच गया। खटिया पर बैठा सिंघवा दातुन कर रहा था। मंगरू बोला- ‘महावीर काका बुलाए हैं। अभी के अभी घर चलिए।’ सिंघवा की पत्नी बोल पड़ी- ‘उसके घर से तो दुश्मनी है। कल तो उसके लोग मारने आए थे। उसके घर जाना ठीक नहीं है।’ ‘अरे चुप रहो, कुछ नहीं होगा’… कहते हुए सिंघवा, मंगरू के साथ चल पड़ा। पीछे-पीछे उसके ससुर जानकी पासवान भी साथ हो लिए। सिंघवा जैसे ही महावीर के घर में घुसा, पीछे से एक आदमी ने उसके सिर पर लाठी मार दी। वह पलटकर भागना चाहा, लेकिन 4-5 लोगों ने दबोच लिया। लाठी-डंडे से पीटने लगे। यह देखकर जानकी पासवान भागते-भागते दलित बस्ती पहुंचे। कहने लगे- ‘सब चलो, जल्दी चलो… महावीर %^*$% सिंघवा को मार रहा है।’ 10-15 लड़के लाठी-डंडे लेकर चल पड़े। इधर, महावीर के आदमी घात लगाए थे। उन लोगों ने इन्हें देखते ही फायरिंग शुरू कर दी। ज्यादातर लड़के गोली लगते ही गिर पड़े। इसी बीच दोनाली बंदूक ताने खुद महावीर महतो आ गया। बोला- ‘हाथ-पैर बांधकर सबको मेरे सामने ले आओ।’ सिंघवा सहित कुल 11 लोगों के हाथ-पैर बांधकर महावीर के सामने खड़ा कर दिया। अब महावीर बोला- ‘का रे सिंघवा… तू बड़का नेता बन रहा है न। खेत जोतेगा हमारा। चलो आज खेत जोतवाते हैं।’ तभी बंदूक लिए परशुराम धानुक नाम का एक आदमी हांफते हुए आया। बोला- ‘भैया सबको खेत ले चलो। वहां इनके स्वर्ग का इंतजाम कर दिए हैं।’ गांव के बाहर एक खेत में मक्के की फसल लगी थी। उसके बीचों-बीच चिता सजाकर रखी थी। परशुराम ने केरोसिन डालकर आग लगा दिया। कुछ ही मिनटों में ऊंची-ऊंची लपटें उठने लगीं। महावीर बोला- ‘सब *^%$ को लाइन में खड़ा करो।’ महावीर के आदमियों ने सिंघवा और उसके साथियों को घसीटते हुए ले जाकर लाइन में खड़ा कर दिया। अब महावीर और परशुराम ने बंदूक उठाई...धांय धांय की गूंज से गांव दहल गया। किसी के सिर में गोली लगी, तो किसी का सीना पार कर गई। सब जमीन पर गिर पड़े। महावीर बोला- ‘अब इन हरा@#$% को उठाकर आग में झोंक दो।’ महावीर के आदमियों ने सबको आग में डाल दिया। 12 साल का एक लड़का गोली लगने के बाद भी बच गया था। वह बार-बार चिता से उठ जा रहा था। महावीर के आदमी बार-बार पकड़कर उसे आग में फेंक दे रहे थे। गुस्से में महावीर ने गड़ासा उठाया और उसकी गर्दन पर दे मारा। उसकी गर्दन कटकर लटक गई। फिर दो लड़कों ने उठाकर उसे आग में झोंक दिया। कुछ देर बाद परशुराम बोला- ‘आग कम पड़ रही है, कंडे-लकड़ी लाओ।’ चार-पांच औरतें दौड़-दौड़कर कंडे और लकड़ियां लाने लगीं। दो घंटे बाद महावीर के आदमियों ने लाठी-डंडे से उलट-पलटकर देखा सब जल गए थे। फिर हमलावर चलते बने। दोपहर 2.30 बजे गणेश पासवान नाम का चौकीदार भागते-भागते 17 किलोमीटर दूर बाढ़ पुलिस स्टेशन पहुंचा। थाना प्रभारी से बोला- ‘साहब… बेलछी में 11 लोगों को मारकर जला दिया है।’ थाना प्रभारी अवधेश मिश्रा ने आवाज लगाई- ‘अरे जीप निकालो।’ 10-12 पुलिस वालों को लेकर थाना प्रभारी बेलछी के लिए निकल पड़े, लेकिन रास्ते में उनकी गाड़ी का ब्रेक फेल हो गया। कुछ ही दूर पर एक दूसरा थाना था सकसोहरा। थाना प्रभारी ने मदद मांगी, तो सकसोहरा थाना के इंचार्ज बोले- ‘बेलछी हमारे इलाके में नहीं आता। हम मदद नहीं कर सकते।’ किसी तरह देर शाम बाढ़ पुलिस बेलछी पहुंची। मक्के के खेत में अभी भी आग जल रही थी। भीड़ जुटी थी। मृतकों के घर वाले बदहवास बिलख रहे थे। थाना प्रभारी ने गांव वालों से पूछा- ‘ये कत्ल किसने किया, किसी ने देखा क्या?’ गमछा बनियान पहने 40 साल के जानकी पासवान बोले- ‘साहब...गांव के ही महावीर महतो, परशुराम महतो और उसके 30-35 लोग थे। मैंने अपनी आंखों से देखा है सबको मारते हुए। मेरे दामाद सिंघवा को भी मार दिया।’ कैसे मारा, पूरी बात बताओ? ‘साहब… पहले महावीर समझौते के लिए सिंघवा को बुलाया। फिर उसे और उसके साथियों को दबोच लिया। हाथ-पैर बांधकर सबको खेत ले गया। मैं एक छत पर बैठकर दीवार के पीछे से देख रहा था। महावीर और परशुराम ने सबको गोली मारी, फिर आग में झोंक दिया।’ क्यों मारा? जानकी पासवान- ‘साहब… गांव के कुर्मी बहुत दबंग हैं। सब जमीन पर उन्हीं लोगों का कब्जा है। वो लोग काम करवा के भी मजदूरी नहीं देता है। सिंघवा ने लड़कर कई मजदूरों को पैसा दिलवाया था। इसलिए वे लोग इसके पीछे पड़े थे।’ पुलिस ने इसे गैंगवार बताया, लेकिन वामपंथी दल और दलित नेता इसे जातीय नरसंहार बता रहे थे। ये बिहार का पहला जातीय नरसंहार था-'बेलछी नरसंहार। 11 लोगों को मारकर जला दिया। इनमें 8 दलित और 3 सुनार थे... इसी नरसंहार के बाद इंदिरा गांधी के आंसुओं ने सत्ता पलटकर रख दिया... एक हफ्ते के भीतर पुलिस ने महावीर सहित 20-22 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। पटना पुलिस के डिप्टी कमिश्नर के.एन अर्धनारीश्वर ने जांच संभाली। उन्होंने महावीर महतो की कॉलर पकड़ते हुए पूछा- ‘बता, क्यों मारा सबको?’ ठसक भरी आवाज में महावीर बोला- ‘मैंने कुछ नहीं किया। वो उनकी आपसी लड़ाई थी।’ डिप्टी कमिश्नर- ‘ये ऐसे मानेगा नहीं। हाथ-पैर बांधकर इसे उल्टा लटका दो।’ तीन-चार सिपाहियों ने महावीर के हाथ-पैर बांध दिए। डिप्टी कमिश्नर ने जैसे ही हंटर उठाया, महावीर कांपने लगा। बोल पड़ा- ‘साहब मारो मत, सब बताता हूं।’ ‘साहब... 2-3 दिन पहले हमारा एक आदमी सिंघवा के खेत से 5 मन धान चुरा लिया था। सिंघवा उसे पीटते हुए थाने ले जा रहा था। मैंने 5 मन धान देकर उसे छुड़ा लिया। फिर घर पर अपने लोगों को बुलाया और कहा कि धान चुराने से कुछ नहीं होगा। हमें सिंघवा को ही खत्म करना होगा। अगले दिन हमने सिंघवा पर हमला कर दिया।’ बेलछी के जानकी पासवान की गवाही पर पुलिस ने महावीर महतो, परशुराम धानुक सहित 31 लोगों पर हत्या, अपहरण, आगजनी जैसी धाराओं में केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी। जून 1977 में बिहार विधानसभा चुनाव हुए। 5 साल पहले कुल 324 में से 167 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 57 सीटों पर सिमट गई। वहीं, नई नवेली जनता पार्टी ने 214 सीटें जीत लीं। यानी दो तिहाई सीटें। 24 जून 1977 को जनता पार्टी के कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने भी बेलछी कांड को जातीय नरसंहार नहीं माना। जनता पार्टी की लहर के बावजूद एक युवा नेता हार गया। नेता थे नीतीश कुमार। दरअसल, नीतीश नालंदा जिले की हरनौत से चुनावी डेब्यू कर रहे थे। हरनौत, बेलछी से 10-12 किलोमीटर ही दूर है। नीतीश उसी कुर्मी समुदाय से हैं, जिस पर नरसंहार का आरोप लगा था। हरनौत में कुर्मियों का दबदबा भी था। भोला सिंह, जो कभी नीतीश के साथी रहे, चुनाव में उनके खिलाफ उतर गए। भोला अपनी रैलियों में आरोपियों को बेगुनाह बताने लगे। जबकि नीतीश ने पीड़ितों का साथ दिया। इससे नाराज कुर्मी समुदाय भोला के लिए लामबंद हो गया। नीतीश 6 हजार वोट से हार गए। जब राम विलास पासवान ने लोकसभा में बेलछी नरसंहार की अधजली हड्डियां दिखाईं बेलछी का मुद्दा लोकसभा में भी गरमाया हुआ था। गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह ने सदन में कहा- 'ये दो गैंग के बीच वर्चस्व का मामला है। इसमें कास्ट एंगल नहीं है।' इस पर उनकी पार्टी के दलित सांसदों ने ही हंगामा कर दिया। विवाद बढ़ा तो जनता पार्टी के दलित नेता रामधन की अगुआई में फैक्ट फाइंडिंग टीम बेलछी भेजी गई। इसमें पहली बार सांसद बने रामविलास पासवान भी थे। 13 जुलाई 1977...रामविलास लोकसभा में बोलने के लिए खड़े हुए। शुरुआती कुछ मिनट उन्होंने आपातकाल और कांग्रेस के खिलाफ बोला। फिर अचानक सदन के पटल पर एक पोटली खोल दी। उसमें इंसानी अधजली हड्डियां थीं। सब हैरान रह गए कि ये किसकी हड्डियां हैं… रामविलास बोले- ‘ये अस्थियां बेलछी नरसंहार में मारे गए लोगों की हैं। हमारे गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह बहुत सीधे-सादे व्यक्ति हैं। वे अनुभवी हैं, लेकिन उन्होंने नौकरशाहों के तैयार किए गए बयान को आंख मूंदकर पेश कर दिया। अगर ये नरसंहार आपसी रंजिश था, तो मृतकों के खिलाफ एक भी आपराधिक मामला पहले से क्यों नहीं दर्ज था? क्या सिंघवा कभी जेल गए? किसी अदालत ने उन्हें सजा सुनाई? नहीं। ये नरसंहार इसलिए हुआ क्योंकि दलित भूमिहीन थे और उन्होंने लड़ाई लड़ने का फैसला किया था। याद रखिए जब भी कोई दलित अपनी आवाज उठाने की कोशिश करेगा, तो एक नहीं बल्कि कई बेलछी होंगे।’ दरअसल, 2 जुलाई 1977 को जनता दल के सांसदों के साथ रामविलास बेलछी गए थे। तब मारे गए लोगों की अस्थियां और राख बांध लाए थे। रामविलास के भाषण के बाद गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह को बयान बदलना पड़ा। इधर, इमरजेंसी के बाद मिली हार से कांग्रेस सदमे में थी। इंदिरा अपनी सीट भी गंवा चुकी थीं। लोकसभा में बिहार से कांग्रेस का एक भी सांसद नहीं था। चर्चा होने लगी थी कि इंदिरा के दिन लद गए। लेकिन कांग्रेस नेता सीताराम केसरी को बेलछी की आग में अब भी धुआं उठता दिख रहा था। उन्होंने इंदिरा को सलाह दी- ‘मैडम आपको बेलछी जाना चाहिए।' 11 अगस्त 1977, शाम का वक्त। पटना के सदाकत आश्रम में फोन बजा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष केदार पांडे ने फोन उठाया। उधर से इंदिरा की आवाज आई- ‘मैं पटना आ रही हूं। बेलछी जाना है। तैयारी कर लो।’ 13 अगस्त 1977 की सुबह इंदिरा पटना पहुंचीं। तेज बारिश हो रही थी। बाढ़ जैसे हालात थे। इंदिरा, पटना से बिहारशरीफ के रास्ते बेलछी के लिए निकलीं। इंदिरा को देखने के लिए लोग छतों और पेड़ों पर चढ़ गए। जयकारे लग रहे थे। दूसरी तरफ कुछ लोग इंदिरा का विरोध भी कर रहे थे। वजह थी इमरजेंसी और नसबंदी का फैसला। कार, जीप, ट्रैक्टर कीचड़ में फंस गए, तो हाथी पर बैठकर बेलछी पहुंचीं इंदिरा रास्ते में इंदिरा की कार कीचड़ में फंस गई, तो जीप बुलाई गई, लेकिन आधे रास्ते में जीप भी कीचड़ में फंस गई। बेलछी अब भी करीब 15 किलोमीटर दूर था। कांग्रेस नेताओं ने कहा- ‘मैडम हम गांव जा नहीं पाएंगे। पटना लौट चलिए।’ इंदिरा बोलीं- ‘कुछ तो होगा गांव जाने के लिए। व्यवस्था करिए।’ पास के एक गांव से ट्रैक्टर लाया गया। इंदिरा ट्रैक्टर पर बैठकर चल पड़ीं, लेकिन कुछ देर बाद ट्रैक्टर भी दलदल में फंस गया। लेखक श्रीरूपा रॉय अपनी किताब ‘द पॉलिटिकल आउटसाइडर’ में लिखती हैं- ‘इंदिरा को सलाह दी गई कि वो पटना लौट जाएं, पर वो अड़ गईं। बोलीं- ‘हम पैदल चलकर जाएंगे। भले ही वहां पहुंचने में रात क्यों ना हो जाए।’ उन्होंने साड़ी ऊपर कर लीं और पैदल चलने लगीं।’ जोवियर मोरो अपनी किताब ‘द रेड साड़ी’ में लिखते हैं- इंदिरा ने बेलछी से लौटकर सोनिया को पूरा किस्सा सुनाया। वो कहती हैं- ‘काफी देर पैदल चलने के बाद एक नदी मिली। कोई नाव भी नहीं थी। हमें देखकर कुछ लोग झोपड़ियों से बाहर आ गए। मैंने पूछा कि हम नदी कैसे पार कर सकते हैं? कोई गधा या खच्चर मिल सकता है क्या? उन लोगों ने बताया कि गांव के मंदिर में एक हाथी है, उस पर चढ़कर नदी पार कर सकते हैं। गांव वाले हाथी लेकर आए। मोती नाम था उसका। पहले मैं बैठी और फिर मेरे पीछे प्रतिभा पाटिल। हाथी झूमकर चल रहा था और उसके पेट तक पानी आ रहा था। प्रतिभा ने मेरी साड़ी ऐसे पकड़ रखी थी, जैसे कोई बच्चा डर के मारे मां की साड़ी पकड़ लेता है। लग रहा था कि वह रो ही देगी। हम बेलछी पहुंचे तो दिन ढल चुका था। गांव वालों ने मुझे घेर लिया। वे मुझे उस जगह पर ले गए, जहां नरसंहार हुआ था। लोगों ने बताया कि कैसे उनके अधमरे परिवार वालों को आग में फेंका गया। उनकी बातें सुनकर मेरा दिल दहल गया।’ बेलछी के जानकी पासवान याद करते हैं- ‘इंदिरा हाथी पर बैठे-बैठे ही लोगों से बात करती रहीं। उन्होंने अपनी साड़ी का आंचल फैला दिया था। लोग कागज पर अपनी-अपनी मांगें लिखकर उसमें डालते जा रहे थे।’ 13 अगस्त 1977 की रात इंदिरा बेलछी से पटना के लिए निकलीं। रास्ते में लोग लालटेन लेकर इंदिरा का इंतजार कर रहे थे। हरनौत में इतनी भीड़ जमा हो गई कि इंदिरा को हाथी से उतरकर लोगों से मिलना पड़ा। उन्होंने कहा- 'मैं कोई भाषण देने नहीं आई हूं। आप लोगों का दुख बांटने आई हूं।' फिर वो पटना लौट गईं। अगले दिन अखबारों में इंदिरा गांधी की फोटो छपी। हाथी पर बैठीं इंदिरा की तस्वीर ने सियासी गलियारों में खलबली मचा दी। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में फिर से जान आ गई। अगड़ों की पार्टी माने जाने वाली कांग्रेस को दलितों और पिछड़ों का भी समर्थन मिलने लगा। बिहार में नारा गूंजने लगा- ‘इंदिरा तेरे अभाव में हरिजन मारे जाते हैं।’ भूखी रोटी खाएंगे, इंदिरा को लाएंगे। 14 अगस्त की सुबह इंदिरा की कार पटना के कदमकुआं के लिए निकली। कुछ देर बाद उनकी कार एक घर के सामने रुकी। इंदिरा गाड़ी से उतरीं और अंदर चली गईं। ये घर जय प्रकाश नारायण यानी जेपी का था, जिनके आंदोलन की वजह से इंदिरा ने इमरजेंसी लगाई थी। जेपी पलंग से उतरकर खड़े हो गए। उन्होंने इंदिरा के लिए कुर्सी मंगवाई। आधे घंटे तक इंदिरा वहां रुकीं। फिर हाथ जोड़कर आशीर्वाद लिया और दिल्ली के लिए निकल गईं। इंदिरा के बेलछी दौरे के बाद कर्पूरी ठाकुर ने आरक्षण लागू किया, पर सरकार गिर गई इंदिरा के इस सियासी रुख से जनता पार्टी सरकार पर दबाव बढ़ने लगा। ऐसे में सीएम कर्पूरी ठाकुर ने एक दांव चला और अप्रैल 1978 में 26% आरक्षण लागू कर दिया। इसके तहत पिछड़ों को 8%, अति पिछड़ों को 12%, गरीब सवर्णों और महिलाओं के लिए 3-3% आरक्षण दिया। ओबीसी आरक्षण लागू करने वाला बिहार पहला राज्य था। इस फैसले से जनता पार्टी के सवर्ण नेता नाराज हो गए। आखिरकार 21 अप्रैल 1979 को कर्पूरी ठाकुर को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद दलित समुदाय से आने वाले रामसुंदर दास मुख्यमंत्री बने। इधर, केंद्र में भी जनता पार्टी के भीतर वर्चस्व की लड़ाई छिड़ी थी। 15 जुलाई 1978 को चौधरी चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। 19 जुलाई को प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस के समर्थन से चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने, लेकिन अगले ही महीने कांग्रेस ने समर्थन वापस लेकर उनकी सरकार गिरा दी। जनवरी 1980 में लोकसभा चुनाव हुए। कांग्रेस के पक्ष में एक तरफा लहर चली। कुल 542 में से 353 सीटें कांग्रेस ने जीत लीं। बिहार में 54 में से 30 सीट कांग्रेस को मिली। जनता पार्टी 8 सीटों पर सिमट गई। इंदिरा फिर से प्रधानमंत्री बनीं। अब बिहार में जनता पार्टी के भीतर उथल-पुथल मच गई। फरवरी 1980 में रामसुंदर दास को इस्तीफा देना पड़ा। राष्ट्रपति शासन लग गया। फांसी पर एकमत नहीं थे हाईकोर्ट के जज, सजा से पहले दोषियों ने खाई दही और मिठाई कर्पूरी ठाकुर के सीएम रहते बेलछी नरसंहार मामले में चार्जशीट दाखिल हो गई थी, लेकिन तीन साल तक सुनवाई नहीं हो सकी थी। इंदिरा के पीएम बनते ही केस की सुनवाई शुरू हो गई। 19 मई 1980 को पटना ट्रायल कोर्ट ने महावीर महतो और परशुराम धानुक को फांसी की सजा और 15 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। आरोपियों ने पटना हाईकोर्ट में अपील की। अदालत ने आरोपियों को दोषी तो माना, लेकिन महावीर और परशुराम के फांसी के मुद्दे पर दो जजों की राय एकमत नहीं थी। जस्टिस हरिलाल अग्रवाल फांसी के फेवर में थे और जस्टिस मनोरंजन प्रसाद विरोध में। अब इस केस को एक तीसरे जज उदय सिन्हा के पास भेजा गया। जस्टिस सिन्हा बेलछी गए। लोगों से मिले। गवाहों के बयानों को वेरिफाई किया। 11 जुलाई 1982 को जस्टिस सिन्हा ने फैसला सुनाया-‘यह मामला रेयर ऑफ रेयरेस्ट है। इस क्रूरतम अपराध के लिए फांसी से कम सजा हो ही नहीं सकती।’ इसके बाद महावीर और परशुराम ने देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई, पर राहत नहीं मिली। उनकी फांसी के लिए 25 मई 1983 की तारीख मुकर्रर हुई और जगह भागलपुर सेंट्रल जेल। मई 1983, सुप्रीम कोर्ट में गर्मी की छुट्टियां चल रही थीं। आरोपियों ने टेलिग्राम भेजकर फांसी पर रोक लगाने की याचिका दायर कर दी। तब वेकेशन जज थे ए. वरदराजन। उन्होंने याचिका स्वीकार कर ली और 23 मई को फांसी पर रोक लगा दी। यानी फांसी की तय तारीख से 2 दिन पहले। तमिलनाडु से ताल्लुक रखने वाले वरदराजन सुप्रीम कोर्ट के पहले हरिजन जज थे। गर्मी की छुट्टियों के बाद सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की बेंच ने फिर से सुनवाई की और फांसी की सजा बरकरार रखी। आखिरकार नवंबर 1983 में दोनों को फांसी दे दी गई। कहा जाता है कि फांसी से ठीक पहले दोनों ने दही और मिठाई खाने की इच्छा जाहिर की थी। बेलछी नरसंहार के चलते लगातार दूसरी बार हार गए नीतीश जून 1980 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए। यहां के दलित नारा लगा रहे थे- ‘आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को लाएंगे।’ वोटों की गिनती हुई तो कांग्रेस ने 324 में से 169 सीटें जीत लीं। जनता पार्टी 42 सीटें ही जीत पाई। पहली बार चुनाव लड़ रही बीजेपी ने 21 सीटें जीत लीं। पर, नीतीश के लिए बेलछी नरसंहार इस बार भी भारी पड़ा। नीतीश 5 हजार वोट से हार गए। लगातार दो हार से नीतीश को इतना धक्का लगा कि वे राजनीति छोड़ने का मन बना चुके थे। सीनियर जर्नलिस्ट संकर्षण ठाकुर अपनी किताब ‘अकेला आदमी, कहानी नीतीश कुमार की’ में लिखते हैं- ‘लगातार दूसरी हार से नीतीश बुरी तरह टूट गए थे। उन्हें तकलीफ थी कि अपने लोगों ने ही उनका साथ नहीं दिया। उन्होंने राजनीति छोड़ने का भी ऐलान कर दिया था, लेकिन समाजवादी नेता चंद्रशेखर के कहने पर 1985 में नीतीश ने फिर जोर लगाया। इस बार नीतीश के पास चुनाव लड़ने के पैसे नहीं थे। उनकी पत्नी ने 20 हजार रुपए दिए। इस बार नीतीश 22 हजार वोट से जीत गए।’ बेलछी नरसंहार के बाद कांग्रेस ने केंद्र और बिहार में जोरदार वापसी की, लेकिन वो इसे बरकरार नहीं रख पाई। सीनियर जर्नलिस्ट अमरनाथ तिवारी बताते हैं- ‘बेलछी नरसंहार के बाद बिहार में लोअर कास्ट पॉलिटिक्स हावी होती गई। लगातार जातीय नरसंहार होते रहे। राम मंदिर आंदोलन और लालू का साथ देने के चलते सवर्ण कांग्रेस से छिटककर बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो गए और पिछड़ा तबका लालू का वोटर बन गया।’ कल दूसरे एपिसोड में पढ़िए कहानी दलेलचक बघौरा नरसंहार की, जहां 54 राजपूतों की हत्या कर दी गई.. नोट : (यह सच्ची कहानी पुलिस चार्जशीट, कोर्ट जजमेंट, गांव वालों के बयान, अलग-अलग किताबें और इंटरनेशनल रिपोर्ट्स पर आधारित है। क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल करते हुए इसे कहानी के रूप में लिखा गया है।) रेफरेंस :
Bangladesh Crisis: एक दिन पहले मुख्य सलाहकार ने देश के नाम एक संबोधन जारी किया था. अपने संबोधन में यूनुस ने ऐलान किया कि फरवरी 2026 के शुरुआती 15 दिनों के अंदर राष्ट्रीय चुनाव और जनमत संग्रह एक साथ आयोजित किए जाएंगे.
पाकिस्तान में 27वें संविधान संशोधन का अदालत में विरोध, अब तक कई जजों ने दिया इस्तीफा
पाकिस्तान के संविधान में 27वें संशोधन का वकील से लेकर जजों तक अदालत में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं
इंडोनेशिया के मध्य जावा में भूस्खलन से तबाही: 11 की मौत, बचाव दल बोला '12 अब भी लापता'
इंडोनेशिया की आपदा प्रबंधन एजेंसी ने बताया कि मध्य जावा में भारी बारिश के बाद हुए भूस्खलन में 11 लोगों की मौत हो गई है। बचाव दल लापता लोगों की तलाश में जुटा है
Internet Freedom Index: भारत, श्रीलंका के साथ-साथ बांग्लादेश में नागरिकों को इंटरनेट चलाने को लेकर काफी आजादी मिली हुई है. भारत इंटरनेट फ्रीडम इंडेक्स में 51वें नंबर है तो श्रीलंका 53 और बांग्लादेश 45वें स्थान पर है. इंटरनेट फ्रीडम इंडेक्स में चीन और म्यांमार 9वें स्थान पर मौजूद है और ईरान 13वें के अलावा रूस 17वें स्थान पर मौजूद है.
बिना वॉरहेड के भी खतरनाक! US ने किया इस 'नासूर' परमाणु बम का टेस्ट; दुश्मनों के लिए मौत का पैगाम
US Nuclear Bomb News in Hindi: रूस-चीन की ओर से परमाणु बमों का जखीरा बढ़ाए जाने की खबरों के बीच यूएस ने अपने सबसे संहारक न्यूक्लियर बम का बिना वारहेड लगाए परीक्षण किया है. इसे दुश्मनों के लिए यूएस का पैगाम कहा जा रहा है.
नाटो समर्थित देश जर्मनी के सांसदों के बीच बुंडेस्टाग में तब कैमरे के सामने संसद में झड़प हो गई, जब वहां की एक और सियासी पार्टी एएफडी के सांसदों ने शरणार्थियों को मिलने वाली सुविधाओं को लाभ अधिनियम के तहत एनालॉग को खत्म करने के प्रस्ताव को संसद में आगे बढ़ाया था.
H1B वीजा का विरोध करना रिपब्लिकन सांसद को पड़ा महंगा, ट्रंप ने चिल्लाते हुए वापस लिया समर्थन
H1B visa: मार्जोरी की तरफ से एच 1बी वीजा को खत्म करने के लिए विधेयक पेश करने के बयान पर ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ट्रूथ पर लिखा ' मार्जोरी को बस शिकायत, शिकायत करते हुए देखता हूं'. ट्रंप ने आगे कहा कि कुछ रूढ़िवादी लोग मार्जोरी को जॉर्जिया जिले में प्राथमिक चुनाव लड़ाने की सोच रहे है.
जापान की नई महिला पीएम ने चीन को ऐसा क्या कह दिया? भड़क उठा 'ड्रैगन'
China Japan Tension:हालांकि जापान और चीन के बीच आपसी बातचीत के दरवाजे पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं. इंटरनेशनल कम्युनिटी खासकर अमेरिका और आसियान देशों, ने दोनों से संयम बरतने की अपील की है. उधर ये भी तय है कि ताइवान का मसला फिर से पूर्वी एशिया की राजनीति के केंद्र में आ गया है.
India-Pakistan Conflict: भारत ने पाकिस्तान की एक बार फिर आलोचना की है. अस बार मुद्दा तालिबान के खिलाफ लगाई गई प्रतिबंधों पर परिषद की समिति का नेतृत्व है.
माफी मांगने के बावजूद नहीं माने ट्रंप... BBC पर ठोकेंगे 1 अरब डॉलर का मुकदमा
Trump To Sue BBC: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 'BBC' के खिलाफ मुकदमा करने वाले हैं. दरअसल ब्रिटिश ब्रॉडकास्टर ने उनके एक भाषण को एडिट करके ब्रॉडकास्ट किया था, जिसके बाद हिंसा बढ़ी थी.
भारतीयों के खिलाफ हिंसा का गढ़ बन रहा यूरोप... लगातार हमले को लेकर आयरलैंड में हुई पहली गिरफ्तारी
First Arrest On Indian Citizen Attack In Ireland: आयरलैंड में भारतीय नागरिक पर हुए हमले को लेकर पहली गिरफ्तारी हुई है. इसपर भारतीय समुदाय ने खुशी जाहिर की है.
भारत-दक्षिण अफ्रीका टेस्ट में बुमराह की एलबीडब्ल्यू अपील के दौरान स्टंप माइक पर टेम्बा को “बौना” कहने की बात सामने आई, जिसके बाद सोशल मीडिया पर विवाद बढ़ा. क्या इस शब्द पर कार्रवाई हो सकती है, जानने के लिए ऊपर दी गई इमेज पर क्लिक कर वीडियो देखें.
खुद की पार्टी को लगा झटका, तो ट्रंप ने इन चीजों से हटा दिया टैरिफ, बढ़ती महंगाई ने किया मजबूर
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने देश के कंज्यूमर्स को राहत देते हुए कई जरूरी चीजों पर टैरिफ हटा दिए हैं. इससे उनके देश में इन चीजों की कीमतें घट जाएंगी.
10 नवंबर 2025…दिल्ली में लाल किला के पास आतंकी डॉ उमर ने हमले की साजिश को अंजाम दिया। कार में हुए ब्लास्ट में 13 लोगों की मौत हुई, जबकि 20 लोग घायल हुए। इस हमले के कनेक्शन में अब तक डॉ. मुजम्मिल, डॉ. आदिल और डॉ. शाहीन समेत 8 लोग गिरफ्तार किए गए हैं। हमले के 5 दिन बाद भी अब सवाल ये है कि आतंकी उमर कार में विस्फोटक लेकर कब और कैसे दिल्ली पहुंचा? दिल्ली में वो कहां-कहां गया? कार में इतना विस्फोटक होने के बाद क्या रास्ते में ब्लास्ट होने का खतरा नहीं था? आखिर उसने डेटोनेटर और फ्यूज को कब और कैसे कनेक्ट किया? आतंकी उमर के सीसीटीवी फुटेज की पड़ताल करने पर पता चला कि वो कार में विस्फोटक लेकर नूंह-मेवात रूट से हरियाणा से दिल्ली पहुंचा। फिर बदरपुर से होते हुए तुर्कमान गेट के पास आसफ अली रोड पर मौजूद दरगाह पहुंचा। यहां उसने नमाज पढ़ी और और लाल किला के पास सुनहरी बाग पार्किंग में 3 घंटे इंतजार किया। फिर ब्लास्ट की साजिश को अंजाम दिया। सोर्स के मुताबिक, सुनहरी बाग पार्किंग में इंतजार करने के दौरान ही उसने ब्लास्ट देने के लिए डेटोनेटर और फ्यूज को विस्फोटक से कनेक्ट किया था। इस आतंकी हमले का पैटर्न कोई नया नहीं है। इससे पहले 2000 में दीनदार अंजुमन ग्रुप ने भी इसी पैटर्न पर सीरियल ब्लास्ट कराए थे। दैनिक भास्कर ने आतंकी उमर के सीसीटीवी फुटेज खंगाले और आपस में इनके लिंक जोड़े। एक्सपर्ट और सोर्स से बात करके हमने ये भी समझने की कोशिश की कि उमर ने पूरे हमले को कैसे अंजाम दिया। साथ ही इसमें डॉक्टर मॉड्यूल के इस्तेमाल की वजह भी समझी। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… सीसीटीवी में कब-कहां नजर आया आतंकी उमरदिल्ली हमले को लेकर अब तक कई सीसीटीवी फुटेज सामने आए हैं। इसमें धमाके से 17 घंटे पहले के एक सीसीटीवी में रात करीब डेढ़ बजे आतंकी डॉ उमर और उसकी कार नूंह-मेवात रूट पर देखी गई। उस वक्त कार की रफ्तार तेज थी। इसके बाद आतंकी उमर 10 नवंबर की सुबह करीब 8 बजे के दिल्ली बदरपुर बॉर्डर के सीसीटीवी फुटेज में नजर आया। ये फुटेज काफी साफ है। इसमें कार की पिछली सीट पर काले और सफेद रंग का एक बैग दिख रहा है। उमर ने खुद भी काले रंग का मास्क लगा रखा है। ये फुटेज देखने के बाद जांच टीम के सोर्सेज ने बताया कि तब तक कार में मौजूद विस्फोटक को डेटोनेटर और फ्यूज से कनेक्ट नहीं किया था। इसीलिए कार की रफ्तार तेज थी। इसके बाद दोपहर में उमर तुर्कमान गेट के पास आसफ अली रोड पर मौजूद दरगाह पहुंचा था। यहां उसने नमाज पढ़ी। फिर दोपहर करीब 3.19 बजे वो कार लेकर लाल किला के पास सुनहरी बाग पार्किंग पहुंचा था। फिर शाम करीब 6:48 बजे तक यानी करीब साढ़े तीन घंटे यहीं रुका रहा। सोर्स के मुताबिक, इसी दौरान आतंकी उमर ने कार में ही विस्फोटक को डेटोनेटर और फ्यूज से जोड़ा। इसमें महज 3-4 मिनट ही लगते हैं। यानी उसने घटना को अंजाम देने के लिए जानबूझकर शाम होने का इंतजार किया। पोटेशियम क्लोरेट और अमोनियम नाइट्रेट केमिकल से ब्लास्टआखिर डेटोनेटर और फ्यूज को कैसे कनेक्ट किया। क्या ये विस्फोटक अमोनियम नाइट्रेट था या कुछ और था। इसे समझने के लिए हमने फोरेंसिक जांच से जुड़े कुछ सीनियर अफसरों से बात की। इसमें हमें घटनास्थल से पोटेशियम क्लोरेट जैसा केमिकल मिलने की बात कंफर्म हुई है। पूरा मामला समझने के लिए हमने दिल्ली में 2008 में हुए सीरियल ब्लास्ट की जांच से जुड़े दिल्ली के रिटायर्ड पुलिस अफसर कर्नल सिंह से बात की। उन्होंने बताया, पोटेशियम क्लोरेट और अमोनियम नाइट्रेट को मिलाकर काफी पावरफुल विस्फोटक तैयार होता है। इससे पहले 2005 में दिल्ली के सरोजनी नगर में हुए ब्लास्ट में भी आतंकियों ने इसी तरह के विस्फोटक का इस्तेमाल किया था। हमने सवाल किया कि आतंकी उमर विस्फोटक कार में लेकर नूंह और फरीदाबाद से दिल्ली के लाल किला तक गया। क्या इस दौरान रास्ते में ब्लास्ट होने का खतरा नहीं था। इस पर रिटायर्ड अधिकारी कहते हैं, ‘उसने डेटोनेटर और फ्यूज को विस्फोटक से कनेक्ट नहीं किया होगा इसलिए कोई खतरा नहीं हुआ। इस घटना में वैसे भी लिक्विड डेटोनेटर के इस्तेमाल की आशंका है। ये सब कुछ अलग-अलग से रेडीमेड मिल जाते हैं। फिर विस्फोटक को डेटोनेटर और फ्यूज के जरिए बैटरी पावर सप्लाई से कनेक्ट करने में महज 3-4 मिनट ही लगते हैं।‘ ‘इसलिए अब तक यही आशंका जताई जा रहा है कि आतंकी उमर जब सुनहरी बाग पार्किंग में था, तभी उसने कार में विस्फोटक को लिक्विड डेटोनेटर और फ्यूज से कनेक्ट किया होगा।‘ इसे विस्फोट कैसे किया गया होगा? इसके जवाब में कर्नल सिंह कहते हैं कि विस्फोट के लिए रिमोट और मैनुअल दोनों तरीके होते हैं। इस केस में मैनुअल ही कराने का आशंका ज्यादा है या फिर हड़बड़ी में भी ये अचानक ब्लास्ट हो सकता है। हालांकि एक बात साफ है कि आतंकी उमर बहुत बड़े धमाके की साजिश में था। इसीलिए इस ब्लास्ट की इंटेंसिटी इतनी ज्यादा थी। कार की बैटरी से कनेक्ट किया गया विस्फोटकअब तक की जांच और सीसीटीवी फुटेज से साफ हुआ है कि 10 नवंबर की शाम करीब 6:48 बजे जब सुनहरी बाग पार्किंग से कार निकली तो उसका बोनट रस्सी से बंधा हुआ था। इसलिए आशंका ये भी है कि कार की बैटरी से ही डेटोनेटर और फ्यूज को कनेक्ट किया गया। सोर्स के मुताबिक, असल में विस्फोटक को एक्टिवेट करने के लिए भी पावर सप्लाई की जरूरत होती है, जिससे विस्फोटक में आग लगाई जा सके। इसलिए कार की बैटरी से ही डेटोनेटर और फ्यूज से विस्फोटक को कनेक्ट किया गया। इसे तार के जरिए कनेक्ट करने की वजह से बोनट दो से ढाई इंच तक खुला रह गया था। इसे ही कवर करने के लिए आतंकी उमर ने बोनट को रस्सी से बांध दिया था। केमिकल को पेट्रोल या CNG से मिलाकर बनाया हाई एक्सप्लोसिव बमदेश में कई बम धमाकों की जांच से जुड़े रहे एक अन्य सीनियर पुलिस अफसर ने बताया कि धमाके के बाद जिस तरह लोगों के चीथड़े उड़े। घटना के तीन दिन बाद मौके से करीब 300-400 मीटर दूर एक छत से लाश के टुकड़े मिले हैं। धमाके में कई लोगों की शॉक वेव की वजह से सुनने की क्षमता चली गई या बॉडी में इंटर्नल इंजरी हुई। उससे एक बात साफ है कि बम की इंटेंसिटी बहुत ज्यादा थी। सीसीटीवी में विस्फोटक कार की पिछली सीट पर दिख रहा था। कार भी पेट्रोल या CNG वाली थी। सोर्स के मुताबिक, अगर 5 किलो अमोनियम नाइट्रेट और पोटेशियम क्लोरेट के मिक्सर को बैटरी के जरिए लिक्विड डेटोनेटर और फ्यूज से कनेक्ट करके ब्लास्ट किया जाए तो ये पेट्रोल और CNG के साथ मिलकर धमाकेदार अग्नि बम बन जाता है। यही दिल्ली वाले मामले में भी हुआ। इसलिए धमाका काफी तेज हुआ था। ऐसे धमाकों में कई बार डेटोनेटर नहीं मिलता है। क्योंकि हाई इंटेंसिटी के चलते वो घटनास्थल से काफी दूर चला जाता है। दिल्ली ब्लास्ट दीनदार अंजुमन नेटवर्क से कैसे मिलता-जुलताअसल में साल 2000 में मई और जुलाई के बीच आंध्रप्रदेश के ताडेपल्लीगुडेम, वानपर्थी और कर्नाटक के हुबली और गोवा के वास्को में बम धमाके हुए। ये सभी धमाके चर्च के आस-पास हुए लेकिन इन्हें अंजाम देने वालों का कोई खास सुराग नहीं मिला था। इसके बाद जुलाई में ही बेंगलुरु में टारगेट से पहले ही अचानक एक कार में धमाका हो गया। उस धमाके से जांच एजेंसियों को लीड मिली थी। इस बारे में दिल्ली स्पेशल सेल में सीनियर अधिकारी रह चुके कर्नल सिंह बताते हैं, '10 नवंबर को दिल्ली ब्लास्ट का पैटर्न काफी हद तक 2000 में हुए दीनदार अंजुमन नेटवर्क के सीरियल ब्लास्ट जैसा दिख रहा है। जिस तरह 3 महीने के अंदर कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और गोवा में कई ब्लास्ट हुए लेकिन सुराग नहीं मिल रहा था। फिर जुलाई में बेंगलुरु में अचानक एक्सिडेंटली एक कार में ब्लास्ट हो गया। उस ब्लास्ट में भी अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल हुआ था।' 'इसकी जांच करते हुए दीनदार अंजुमन नेटवर्क का पता चला था। इस ग्रुप को बाद में भारत सरकार ने बैन कर दिया था। अभी जिस तरह से कारों में बम प्लांट करके अलग-अलग जगहों पर धमाके करने की साजिश की खबरें आ रही हैं। उससे आशंका है कि आतंकी नेटवर्क फिर उसी पैटर्न का इस्तेमाल कर रहा था। हालांकि इसकी पुष्टि जांच रिपोर्ट से ही हो सकेगी।' पढ़े-लिखे लोगों को ब्रेनवॉश कर बना रहे ‘व्हाइट कॉलर टेररिस्ट’दिल्ली ब्लास्ट मामले में डॉक्टरों के ही ज्यादातर लिंक क्यों सामने आ रहे हैं। इसे लेकर रिटायर्ड IPS अफसर कर्नल सिंह बताते हैं, 'मैं सिर्फ डॉक्टर की बात नहीं अच्छे पढ़े-लिखे और कम पढ़े लिखे लोगों से तुलना कर बात करूंगा। असल में साल 2000 से पहले इंडियन मुजाहिद्दीन में काफी पढ़े-लिखे आतंकी थे। इनमें से कई दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी से पास आउट थे।‘ ‘जब पहले जिहादी नेटवर्क ब्रेनवॉश करके युवाओं को आतंकी बनाते थे तो उसमें लंबा वक्त लगता था। पहले उन्हें किसी धार्मिक जगह जैसे मदरसे पर बुलाया जाता है। फिर बातचीत के दौरान उनका ब्रेनवॉश किया जाता है। हालांकि ये तरीके 2004 से पहले ज्यादा अपनाए जाते थे।‘ हमने पूछा कि आखिर वो क्या तरीके हैं, जिससे पढ़े-लिखे डॉक्टर जैसे लोग भी ब्रेनवॉश के बाद फिदायीन हमले के लिए तैयार हो जाते हैं। इसे समझाते हुए रिटायर्ड अधिकारी कहते हैं कि मैंने आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन के ब्रेनवॉश करने वाले एक आतंकी से पूछताछ की थी। उसने जो पूरा प्रॉसेस बताया, उसे हम तीन स्टेप में समझ सकते हैं। ‘पहले ये लोग ऐसे लोगों से संपर्क करते हैं, जो पढ़-लिखकर बड़े पदों पर तो पहुंच जाते हैं लेकिन धार्मिक कार्यों में थोड़ा पीछे हो जाते हैं। पहले उनसे धार्मिक एंगल पर सामान्य बातचीत की जाती है कि जैसे- क्या आपको नमाज पढ़नी आती है। क्या आप वजू कर लेते हैं। अगर वे इस पर ध्यान देते हैं और नमाज या धार्मिक कामकाज में रुचि दिखाने लगते हैं तो इससे तय हो जाता है कि वो कट्टरपंथियों की बातें गंभीरता से ले रहे हैं।‘ इसके बाद उसे दूसरा टास्क दिया जाता है। इसमें उसे धर्म से जुड़े फोटो और वीडियो दिखाए जाते हैं। इनमें ज्यादातर फोटो और वीडियो फेक होते हैं, जिसमें उसे धर्म खतरे में बताकर भड़काया जाता है। ‘तीसरे स्टेप में उन्हें जिहाद के बारे में बताया जाता है और इसके फायदे गिनाए जाते हैं, जैसे- जिहाद करना हज करने से भी ज्यादा बड़ा है, मौत के बाद जन्नत नसीब होगी, पावर मिलेगी। इस तरह उनका ब्रेनवॉश क किया जाता है।‘ वे आगे बताते हैं, ‘जब वो मेंटली दूसरे के कंट्रोल में आ जाता है। तब उसे आखिरी ट्रेनिंग दी जाती है। कई बार ये ट्रेनिंग ऑनलाइन या फिर फिजिकली किसी दूसरे देश में बुलाकर दी जाती है। इसके बाद उसे टेरर एक्टिविटीज से जोड़ दिया जाता है।‘ डॉक्टरों का दुबई और लंदन नेटवर्क, जांच में जुटी एजेंसियां फरीदाबाद डॉक्टर टेरर मॉड्यूल में सबसे पहले गिरफ्तार हुए डॉ. आदिल के भाई के दुबई में होने की आशंका है। इससे पहले मुंबई में हुए 26/11 हमले के आरोपी डेविड हेडली के भी लंदन और दुबई में रुककर साजिश रचने के सबूत मिल चुके हैं। ऐसे में जांच एजेंसियों को शक है कि भारत में आतंकियों के नेटवर्क को विदेश से मदद मिल रही है। बीच-बीच में फंडिंग और ट्रेनिंग के लिए दूसरे देशों का इस्तेमाल किया जा रहा है। दैनिक भास्कर को सूत्रों के जरिए डॉ. शाहीन की एक फोटो मिली है। ये फोटो पुलिस ने 3 नवंबर को फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी में वीजा वेरिफिकेशन के लिए ली थी। आशंका जताई जा रही है कि जब पकड़े जाने का शक हुआ तो डॉ. शाहीन विदेश भागने की फिराक में थी। ये भी पता चला है कि डॉ. शाहीन दुबई या लंदन भागने की तैयारी में थी। कश्मीर में पहले भी डॉक्टर और सरकारी कर्मियों के आतंकियों से लिंक मिलेफरीदाबाद डॉक्टर टेरर मॉड्यूल में ज्यादातर कश्मीर से आए संदिग्ध आतंकी डॉक्टर ही शामिल हैं। इसे लेकर हमने जम्मू कश्मीर के पूर्व DGP के. राजेंद्र कुमार से बात की। वे कहते हैं, ‘ऐसा नहीं है कि पहली बार किसी टेरर अटैक में डॉक्टरों की भूमिका सामने आई हैं। जम्मू कश्मीर में पिछले कुछ सालों में कई सरकारी कर्मचारी टेरर लिंक में बर्खास्त किए जा चुके हैं।‘ ‘इस केस में अब तक शोपियां के मौलवी इरफान के कट्टरपंथी बनाने की बात आई है। इसलिए धर्म के आधार पर इन्हें कट्टरपंथ से जोड़कर आतंक की राह पर ले जाया रहा है।‘ वो आगे कहते हैं कि पहले भी कुछ लोकल फिदायीन अटैक में शामिल रहे हैं। अब अगर दिल्ली तक देश के ही फिदायीन अटैक की साजिश रच रहे हैं, तो ये बेहद खतरनाक हो सकता है। इसके लिए जांच एजेंसियों को ज्यादा अलर्ट रहने की जरूरत है।‘.................... ये खबर भी पढ़ें... दिल्ली ब्लास्ट-कौन है डॉक्टरों का ब्रेनवॉश करने वाला मौलवी इरफान दिल्ली में लाल किले के पास कार में हुए ब्लास्ट के तार पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर तक पहुंच रहे हैं। भारत में आतंकी हमलों के लिए 3-4 महीनों से साजिश रची जा रही थी। इसके पीछे आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा शामिल थे। खुफिया एजेंसियों को इसके संकेत PoK में आतंकियों के इंटरसेप्ट कम्युनिकेशन से मिले हैं। पढ़िए पूरी खबर...
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