How to acquire property in Oman: क्या आपका भी गल्फ कंट्री में प्रॉपर्टी खरीदकर वहां बसने का सपना है. अगर ऐसा है तो आपके लिए शानदार मौका है. ओमान ने विदेशियों के लिए संपत्ति खरीदने के नियम बहुत आसान कर दिए हैं.
How to acquire property in Oman: क्या आपका भी गल्फ कंट्री में प्रॉपर्टी खरीदकर वहां बसने का सपना है. अगर ऐसा है तो आपके लिए शानदार मौका है. ओमान ने विदेशियों के लिए संपत्ति खरीदने के नियम बहुत आसान कर दिए हैं.
TikTok विवाद को लेकर अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा चीन के साथ हुई मीटिंग के दौरान उन्होंने एक विशेष कंपनी को लेकर समझौता भी किया है. वहीं, उन्होंने एक और ऐलान किया है.
चैटजीपीटी की मदद से गाजा से भागा फिलिस्तीनी एक साल तक भागता रहा, जानें आगे क्या हुआ
Gaza Man Flee to Europe: गाजा के हालात काफी खराब हैं. हमास आतंकियों का खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है. ऐसे में एक नौजवान ने गाजा से भागकर नई जिंदगी शुरू करने की कोशिश की. चीन, लीबिया, मिस्र, इटली से होता हुआ वह समंदर के रास्ते करीब एक साल तक यूं ही भागता रहा. जाने आखिर में क्या हुआ?
Dubai Porta-Potty Parties: दुबई के एक हाई-प्रोफाइल सेक्स रिंग का पर्दाफाश हुआ है. लंदन के एक पूर्व बस ड्राइवर चार्ल्स म्वेसिग्वा ने एक रिपोर्टर को 'सेक्स पार्टी के लिए महिलाओं' की पेशकश की. उसने रिपोर्टर को बताया कि महिलाएं ग्राहकों की 'लगभग हर इच्छा' पूरी करेंगी. इस दौरान इस ड्राइवर ने चमकती दुबई की 'काली सच्चाई' बताई, जो बेहद ही खौफनाक है.
Viral News: अमेरिका में डॉक्टरों ने 58 साल के मरीज को सूअर का दिल ट्रांसप्लांट कर नई जिंदगी दी. जेनेटिक रूप से बदले सूअर के अंगों से जेनो ट्रांसप्लांट संभव हो रहा है. पहले भी प्रयास हुआ था, लेकिन इस बार मरीज स्वस्थ है. यह विज्ञान की बड़ी सफलता मानी जा रही है.
कई रिपोर्टों और स्थानीय मीडिया के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के कर्मचारियों ने सेवाएं जारी रखने के लिए नेपाल की शीर्ष अदालत के परिसर में टेंट लगा दिए हैं. हालांकि, सुनवाई फिर से शुरू नहीं हुई है.
Bangladesh Political Upheaval Shifting Alliances:बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार गिराने में बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी का बड़ा हाथ है, लेकिन अब इन दोनों पार्टियों के बीच जमकर टकराव शुरू हो गया है. जिसके बाद बांग्लादेश में एक बार फिर बदलाव की आहट सुनाई देने लगी है. क्या बांग्लादेश में यूनुस की चली जाएगी सत्ता? जानें पूरी बात.
Nepal Goverment: नेपाल में नए मंत्रिमंडल का विस्तार, सुशीला कैबिनेट में किन मंत्रियों को मिली जगह?
Nepal Goverment: नेपाल में केपी शर्मा ओली की सत्ता बेदखल होने के बाद आज सोमवार को नए कैबिनेट का विस्तार हो चुका है. आज 3 प्रमुख मंत्रियों को शपथ दिलाई गई है.
Corruption Protest In Philippines: फिलीपींस में भ्रष्टाचार को लेकर लोग सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने लगे हैं. इसको लेकर राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर ने जनता से कुछ आग्रह किया है.
Pope Leo XIV 70 Birthday:पेरू की राष्ट्रपति डिना बोलुआर्टे ने पोप लियो XIV के 70वें जन्मदिन पर लंबायेक में स्टेज पर 'हैप्पी बर्थडे' गाना गाकर सबको चौंका दिया. सफेद शर्ट और काली पैंट में लंबायेक और लिमा में स्टेज पर जिस अंदाज में 'हैप्पी बर्थडे' पोप लियो XIV के लिए गाया गया. वह वायरल हो रहा है.पोप लियो, जो मूल रूप से अमेरिकी लेकिन पेरू के ही नागरिक हैं.
अब NATO और EU को दबाने की कोशिश में ट्रंप, प्रतिबंधों के जरिए रूस से बढ़ाना चाहते है इनकी दूरिया
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि मैं रूस पर बड़े प्रतिबंध लगाने के लिए तैयार हूं लेकिन जब सभी नाटो देश और यूरोप भी अपने प्रतिबंधों को रूस पर बढ़ाए. इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने यूरोप की आलोचना करते हुए कहा कि यूरोप रूस पर जो प्रतिबंध लगा रहे हैं, वे पर्याप्त कड़े नहीं हैं. मैं रूस पर और प्रतिबंध लगाने को तैयार हूं लेकिन यूरोप को मेरे कहने के अनुरूप अपने प्रतिबंधों को और कड़ा करना होगा.
Sikh Woman Detained In US: अमेरिका में पिछले 30 सालों से भी ज्यादा समय से रह रही एक सिख महिला को डिटेन कर दिया गया है. महिला के पास जरूरी दस्तावेज नहीं थे.
Lindsey Graham statement: पोलैंड के हवाई क्षेत्र में रूसी ड्रोन घुसने की घटना पर अमेरिका के एक सीनियर पॉलिटिशियन, लिंडसे ग्राहम का बयान सामने आया है. वह यूक्रेन-रूस वॉर खत्म करने के लिए भारत और चीन पर टैरिफ के जरिए दवाब डालने की बात कर रहे हैं.
Charlie Kirk memorial in Arizona:कंजर्वेटिव एक्टिविस्ट चार्ली किर्क की हत्या के बाद अमेरिका में कोहराम मचा हुआ है. अपने जिगरी दोस्त को खोने के बाद ट्रंप को बहुत दुख है. तभी तो उन्होंने अपने दोस्त की हत्या परवामपंथियों और लिबरल्स को ‘नीच’ और ‘उकसावेबाज’ बता दिया.किर्क और ट्रंप का रिश्ता कितना गहरा था इस बात से लगाया जा सकता है किट्रंप 21 सितंबर को एरिजोना में किर्क की स्मृति सभा में भी जाएंगे. जानें ट्रंपवामपंथियों और लिबरल्स पर क्यों भड़क गए?
Tiktok ban trump china deadline:अमेरिका में टिकटॉक के भविष्य पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नेचुप्पी तोड़ी है. उन्होंने कहा कि टिकटॉक को बचाने या बंद करने का फैसला अब चीन पर निर्भर है. 17 सितंबर की डेडलाइन नजदीक है. ट्रंप ने बहुत साफ शब्दों में कह दिया है कि टिकटॉक मर भी सकता है और बचाया भी जा सकता है. जानें अंदर की बात.
Tyler Robinson: अमेरिकन एक्टिविस्ट चार्ली किर्क की हत्या मामले में कस्टडी में लिए गए टायलर रॉबिंसन से पूछताछ की जा रही है. इसको लेकर यूटा के गवर्नर सस्पेंसर कॉक्स का कहना है कि रॉबिंसन जांच में सहयोग नहीं कर रहा है.
चार्ली किर्क की हत्या को लेकर FBI निदेशक काश पटेल पर फिर उठे सवाल, सीनेट के सामने होंगे पेश
चार्ली किर्क की हत्या के बाद FBI निदेशक काश पटेल का जल्दबाजी में उठाया कदम उनको भारी पड़ सकता है. जानकारी के अनुसार, मंगलवार और बुधवार को काश पटेल को कांग्रेस के सामने निगरानी सुनवाई के लिए पेश होना है जहां उनसे कड़े सवाल पूछे जा सकते हैं.
टैरिफ की टेंशन देने के बाद डोनाल्ड ट्रंप के बदल रहे सुर, कंपनियों से कही ये बात
बीते 90 दिनों से दुनिया को अमेरिकी टैरिफ (US Tariff) की धौंस दिखा रहे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के सुर कुछ बदले नजर आ रहे हैं. माना जा रहा है कि भारत-रूस-चीन तीनों से एक साथ संबंध खराब करने के बाद उनके रुख में ये बदलाव दिखा है.
डोनाल्ड ट्रंप को आखिरकार सता रहा किस चीज का डर? दुनियाभर के लोगों से कर रहे चिरौरी
बीते 90 दिनों से दुनिया को अमेरिकी टैरिफ (US Tariff) की धौंस दिखा रहे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के सुर कुछ बदले नजर आ रहे हैं. माना जा रहा है कि भारत-रूस-चीन तीनों से एक साथ संबंध खराब करने के बाद उनके रुख में ये बदलाव दिखा है.
स्पॉटलाइट:जेन-Z ने गेमर्स के ऐप पर वोटिंग से चुनी PM:कैसे हुआ चुनाव, इसी ऐप से पलटी थी नेपाली सरकार
एक तरफ जहां दुनियाभर में EVM और बैलेट पेपर जैसे तरीको से वोटिंग की जाती है. वहीं, नेपाल में जनरेशन z ने अपनी पहली महिला प्रधानमंत्री गेमर्स के लिए बने ऐप पर चुनी है. नेपाल में सोशल मीडिया बैन होने के बाद प्रदर्शनकारियों की भीड़ भी यहीं से जुटी है. लेकिन किस ऐप पर ये सब मुमकिन हुआ. आखिर एक एप प्रदर्शन से लेकर चुनावों तक का हिस्सा कैसे बना. पूरी जानकारी के लिए ऊपर दी गई इमेज पर क्लिक कर देखें वीडियो....
दैनिक भास्कर की इलेक्शन सीरीज 'नरसंहार' के चौथे एपिसोड में आज कहानी बथानी टोला नरसंहार की... बिहार की राजधानी पटना से करीब 90 किलोमीटर दूर भोजपुर जिले का बथानी टोला गांव। साल था 1996 और तारीख 11 जुलाई। दोपहर के 2 बज रहे थे। लुंगी बनियान पहने 60-70 लोग तेज कदमों से गांव की तरफ आ रहे थे। हाथों में बंदूक, कट्टा, तलवार, गड़ासा, केरोसिन तेल के डिब्बे और लाठी-डंडे थे। वे बार-बार एक नारा लगा रहे थे। नारा क्या था...आगे बताएंगे। कुछ देर में भीड़ गांव पहुंच गई। 50 साल का एक शख्स चीखते हुए बोला- ‘हड़बड़ी मत करो। पहले दो-चार लोग गांव में घूमकर आओ। टोह लो कि वे लोग कर क्या रहे हैं।’ तीन नौजवान दबे पांव गांव में घुसे। कुछ देर बाद लौटकर बोले- ‘सारे मर्द खेतों में काम करने गए हैं। महिलाएं-बच्चे हैं बस। कुछ देर रुकना पड़ेगा, तब तक मर्द आ जाएंगे।’ 30-35 साल का एक शख्स बोल पड़ा- ‘औरत-मर्द से मतलब नहीं है। सब @#$%#$ नक्सली है। चलो…जो मिले उसे खत्म कर दो। गड़ासे से काट दो। और सुनो… जो भागेगा उस #$%@$% को गोली मार देना।’ अब हमलावर गांव में घुसे। 4-5 महिलाएं चूड़ी बेचकर लौट रही थीं। घरों के बाहर बच्चे खेल रहे थे। हथियारबंद लोगों को देखकर महिलाएं चिल्लाने लगीं- ‘भागो सब भागो। गांव पे हमला हो गया है।’ जो जहां था, भागने लगा। कोई अनाज की कोठी में छिप गया, तो कोई दीवार फांदकर भाग गया। कुछ लड़के पेड़ पर चढ़कर गए। इधर, हमलावर 10-15 लोगों का गुट बनाकर अलग-अलग घरों में तबाही मचाने लगे। एक घर के बरामदे में तीन मासूम खेल रहे थे। हमलावरों को देखकर वे डर गए। चीखने लगे। हमलावर बोल पड़ा- ‘इन बच्चों से दुश्मनी नहीं है। इन्होंने क्या ही बिगाड़ा है हमारा। छोड़ दो इन्हें।’ दूसरा बोला- ‘ना ना किसी छोड़ना नहीं। ये जिंदा बच गए तो नक्सली बनेंगे। कल को हमारे बच्चों को मारेंगे।’ उसने तलवार उठाई और एक-एक करके तीनों मासूमों की गर्दन उतार दी। बरामदे में खून से रंग गया। घर के एक कोने में एक महिला 1 साल के बच्चे को गोद में लेकर छिपी थी। दूसरे कोने में 18-19 साल की लड़की छिपकर बैठी थी। हमलावरों को देखकर दोनों कांपने लगे। हाथ जोड़ लिया, लेकिन हमलावर ने महिला की पीठ पर तलवार मार दी। ‘ओह… अनर्थ हो गया। ये तो पेट से है।’ यह कहते हुए वह तलवार छोड़कर भाग खड़ा हुआ। तभी दूसरा बोल पड़ा- ‘%$#@ बहुत मर्दानगी दिखा रहे हो। इसका बच्चा बड़ा होकर तुम्हारे बेटे को मारेगा।’ उसने तलवार उठाई और महिला के पेट में घोंप दी। मांस का लोथड़ा कटकर लटक गया। महिला तड़प-तड़पकर शांत हो गई। उसका एक साल का बेटा चीख उठा- 'मां… मां'…। पसीना पोंछते हुए हमलावर बोला- ‘चल तुझे मां के पास पहुंचा देता हूं।’ उसने बच्चे का पैर पकड़ा और हवा में ऊपर उछाल दिया। फिर हवा में ही तलवार से उसके दो टुकड़े कर दिए। मिट्टी की दीवारों पर खून के धब्बे जम गए। अब हमलावर लड़की की ओर बढ़ा और बाल खींचकर उसे जमीन पर पटक दिया। तब तक चार-पांच और हमलावर आ गए। सबने मिलकर लड़की के साथ गैंगरेप किया। फिर उसकी छाती और गर्दन पर तलवार मारकर आगे बढ़ गए। चीख पुकार सुन कई लोग घर से भाग गए थे। हमलावरों को 4-5 घरों में कोई नहीं मिला, तो वे चिढ़ गए। एक अधेड़ बोला- ‘#$%@% सब पता नहीं कहां भाग गए। केरोसिन डालकर आग लगा दो। जो भी छिपा होगा जलकर राख हो जाएगा।’ हमलावर ने वैसा ही किया। गांव में घूम-घूमकर घरों में आग लगाने लगे। कुछ ही देर में चीखने-बिलखने की आवाज गूंजने लगीं- ‘बचाओ, बचाओ।’ पर बचाने कोई आए भी तो कैसे... हमलावरों ने पूरे गांव को घेर रखा था। एक घंटे के भीतर 12-15 घर जल गए। हमलावर आगे बढ़े। गांव में पक्के का इकलौता मकान मारवाड़ी चौधरी का था। हमलावरों ने कई बार दरवाजे पर लात मारी, पर कोई असर नहीं हुआ। गोलियां भी चला दी दरवाजे पर, फिर भी कोई असर नहीं हुआ। तभी एक हमलावर बोला- ‘गोली बर्बाद मत करो, दीवार फांदकर अंदर घूसो।’ 10-15 हमलावर पीछे की दीवार से छत पर चढ़े और फिर आंगन में उतर गए। अलग-अलग कमरों में 10-15 महिलाएं-बच्चे छिपे थे। हमलावर उन्हें घसीटते हुए आंगन में ले आए। लाठी-डंडे से पीटने लगे। पूरा आंगन महिलाओं-बच्चों की चीख से गूंज उठा। कुछ महिलाएं बच्चों के साथ एक के ऊपर एक लेट गईं। उन्हें लगा शायद कोई बच जाए। तभी दो-तीन हमलावर तलवार लेकर आ गए। दनादन वार करने लगे। कुछ ही मिनटों में आंगन में 14 लाशें बिछ गईं। आंगन खून से लाल हो गया। हमलावरों के कपड़े भी खून से भीग गए। इसी बीच एक नौजवान आया और अंधाधुंध फायरिंग करने लगा। बोला- 'कोई बच गया होगा तो वो भी मारा जाएगा।' लंबे कद काठी का अधेड़ बोला- ‘सब के सब मर गए। कहां ही कोई बचा होगा। एक काम करो, केरोसिन डालकर आग लगा दो।’ हमलावरों ने मारवाड़ी के घर में आग लगा दी। कुछ देर बाद उन्हें यकीन हो गया कि सब मर गए। फिर वे जयकारा लगाते हुए गांव से चल दिए। आधे घंटे बाद मारवाड़ी चौधरी घर पहुंचे। देखा घर जल चुका था। दरवाजा टूट चुका था। अंदर घुसते ही वो सीने पर हाथ रखकर बैठ गए। सोचने लगे- 'अब कहां ही कोई बचा होगा।' फिर भी हिम्मत करके आगे बढ़े, लेकिन आंगन में पैर रखते ही चक्कर खाकर गिर पड़े। कुछ देर बाद होश आया तो देखा अंगन में लाशें बिखरी पड़ी हैं। महिलाओं की, मासूमों की। तीन लाशें तो उनके अपने परिवार की थीं। बेटा, बहू और पोता। सब खत्म। एक-एक करके उन्होंने लाशें हटानी शुरू की। पता चला कि एक महिला जिंदा है। उसकी छाती से खून बह रहा था। हाथ की उंगलियां कट चुकी थीं। मारवाड़ी महिला को जैसे-तैसे उठाकर बाहर लाए। अब तक गांव में चीख पुकार मच चुकी थी। खेतों में काम कर रहे पुरुष गांव की तरफ भागे। गोलियों की आवाज सुनकर वामपंथी पार्टियों के लोग भी गांव आ गए। पूरा गांव दहल गया था। हर जगह लाशें, खून और घरों से उठ रहे धुएं। ये मंजर जो देखा सिहर गया। कुल 18 लाशें मिलीं। कटी-फटी और अधजली लाशें। तीन लोग जख्मी थे। इलाज के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। ये बथानी टोला नरसंहार था, कुल 21 लोग मारे गए। 15 दलित और 6 मुस्लिम। इनमें 11 महिलाएं, 9 बच्चे और 1 पुरुष थे। कहा गया कि ये 1992 में हुए बारा नरसंहार का बदला था, जिसमें 35 भूमिहारों की हत्या कर दी गई थी। नरसंहार के करीब 2 घंटे बाद, शाम करीब 4 बजे का वक्त। पास के सहर थाने को खबर मिली- 'बथानी टोला में नरसंहार हो गया है।' SI उमेश कुमार सिंह ने आवाज लगाई- 'जीप निकालो। जल्दी बथानी टोला चलो।' कुछ ही देर में वे 8-10 पुलिस वालों को लेकर गांव पहुंच गए। सन्नाटा पसरा था। लोग इधर-उधर छिपे हुए थे। 12 घर पूरी तरह जल चुके थे। घरों के बाहर, आंगन में और गलियों में कटी-फटी लाशें पड़ी थीं। गलियां खून से ऐसे सनी थी, जैसे कोई अभी-अभी चटक लाल रंग से होली खेल गया हो। SI उमेश कुमार समझ गए कि बड़ा नरसंहार हो गया है। शाम 6.30 बजे सहर थाने के ऑफिस इन चार्ज भी गांव पहुंच गए। देर शाम तक जोनल आईजी, भोजपुर के डीएम और दूसरे अधिकारी भी पहुंच गए। SI उमेश कुमार ने आवाज लगाई- ‘कोई जिंदा बचा है क्या? कोई बाहर क्यों नहीं निकल रहा, पुलिस आई है पुलिस।’ थोड़ी देर बाद एक शख्स बाहर निकला। उसके हाथ-पैर कांप रहे थे। SI उमेश चौधरी- क्या नाम है? साहब… किशुन चौधरी SI उमेश- किशुन डरो मत, पूरी बात बताओ कि हुआ क्या, कौन किया है ये सब? किशुन बिलखते हुए कहने लगा- ‘साहब रणवीर सेना वालों ने पूरे गांव को मार डाला। हर घर में लाश पड़ी है। मेरे परिवार के तीन लोग मार दिए। पत्नी और दो बेटियों को उन लोगों ने तलवार से काट दिया।’ तुमने हमलावरों को देखा था? ‘हां साहब… वो रणवीर बाबा की जय के नारे लगा रहे थे। उनके हाथों में हथियार थे। लुंगी बनियान पहने हुए थे। कुछ लोगों ने मुंह भी बांध रखे थे। मैं एक पेड़ पर चढ़ गया था। इसलिए बच गया।’ इस बीच गांव के कुछ लोग और भी वहां आ गए। 40 साल का एक शख्स कहने लगा- 'साहब मेरे परिवार में कोई जिंदा नहीं बचा है। रणवीर सेना वालों ने 6 लोगों को मार दिया है।' SI उमेश - क्या नाम है तुम्हारा? साहब… नईमुद्दीन अंसारी SI उमेश - क्या देखा तुमने, पूरी बात बताओ? 'साहब…मैं बरगद पेड़ के नीचे बैठकर खैनी बना रहा था। चार-पांच लोग भी साथ बैठे थे। हम बातें कर रहे थे। अचानक ‘रणवीर बाबा की जय’ के नारे सुनाई पड़ने लगे। एक ऊंची जगह पर खड़े होकर देखा तो 50-60 लोग बंदूक, तलवार लेकर गांव की तरफ आ रहे थे। हम लोग उठकर घर की तरफ भागे। मैंने जल्दी से महिलाओं और बच्चों को मारवाड़ी चौधरी के घर पहुंचा दिया और खुद भाग गया। मुझे लगा कि रणवीर सेना वाले मर्दों को मारने आए हैं। औरतों और बच्चों को छोड़ देंगे।’ फिर क्या हुआ? नईमुद्दीन ने रोते हुए कहा- ‘मैं दूर से देख रहा था। उन लोगों ने तीन तरफ से गांव को घेर लिया था। ताकि कोई भाग नहीं पाए। फिर केरोसिन तेल डालकर घरों में आग लगाने लगे। कुछ ही मिनटों में गांव में गोलियों की आवाज गूंजने लगीं। एक घंटे तक घर जलते रहे। जब वो लोग नारा लगाते हुए गांव से चले गए, तब मैं घर लौटा।’ SI उमेश - पहले से कोई रंजिश थी क्या? मारवाड़ी चौधरी नाम का शख्स बोल पड़ा- ‘साहब… जमींदारों और मजदूरों के बीच मजदूरी बढ़ाने के लिए विवाद चल रहा था। हम लोग एक दिन की मजदूरी 25 रुपए मांग रहे थे और वे सिर्फ 12 रुपए देने के लिए तैयार थे। इस वजह से 2 साल से दोनों तरफ से लड़ाई चल रही थी। सीपीआई माले वाले हमारी मदद कर रहे थे। जमींदारों को ये बात चुभती थी। वे लोग खून खराबे की धमकी दे रहे थे।’ सो उन्होंने खून कर ही दिया।' घटना के दिन ही पुलिस ने 8 लोगों के बयान लिए, लेकिन FIR दर्ज हुई अगले दिन यानी 12 जुलाई की सुबह 4.30 बजे। उसी दिन पुलिस ने FIR सीजेएम कोर्ट भिजवा दी, लेकिन रिपोर्ट पहुंचने में दो दिन लग गए। करीब 12 घंटे तक लाशें गांव में ही पड़ी रहीं। अगले दिन यानी 12 जुलाई को पोस्टमार्टम करने वाली टीम गांव पहुंची। जैसे ही डॉक्टरों ने पोस्टमार्टम करना शुरू किया, तभी सीपीआई माले के लोगों ने बवाल कर दिया। कुर्ता-पजामा पहने 40 साल का एक शख्स कहने लगा- ‘देखिए प्रशासन की मनमानी नहीं चलेगी। आदमी मर गया इसका मतलब ये नहीं कि उसकी इज्जत नहीं है। पोस्टमार्टम कायदे से होना चाहिए। एक भी लाश का पोस्टमार्टम सड़क पर नहीं होगा।’ एक घंटे तक दोनों तरफ से तकरार होती रही। इसके बाद पुलिस किसी अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए राजी हुई। तीन-चार ट्रैक्टर बुलाए गए। सभी लाशें ट्रैक्टरों में लादी गईं। फिर आरा के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम किया गया। मानवाधिकारों की वकील बेला भाटिया एक आर्टिकल में लिखती हैं- 'अस्पताल के बाहर कीचड़ वाली जगह में लाशें रखी थीं। किसी भी लाश के ऊपर कपड़ा नहीं डाला गया था। महिलाओं की लाशें भी कवर नहीं की गई थीं। वहां खड़ा एक आदमी तो बोल पड़ा- 'मरनी के बाद भी गरीबों को इज्जत नहीं मिल रही। किसी को कोई मतलब ही नहीं है।’ CM लालू गांव पहुंचे तो नारा लगा- 'मुख्यमंत्री इस्तीफा दो, वापस जाओ' बथानी टोला नरसंहार का आरोप रणवीर सेना पर लगा। ये अगड़ी जाति के एक गुट की प्राइवेट आर्मी थी। इसमें ज्यादातर भूमिहार थे। कुछेक राजपूत भी। इसकी शुरुआत की भी कहानी है। दरअसल, 70 के दशक से ही बिहार में सवर्ण जमींदारों और मजदूरों के बीच संघर्ष चल रहा था। बाद में मजदूरों को नक्सली संगठनों का साथ मिल गया। जमींदार मारे जाने लगे। उनकी जमीनों की नाकेबंदी होने लगी। बदले की आग में जल रहे अगड़ी जातियों ने कई निजी सेनाएं बना लीं। इनमें बड़ा नाम रणवीर सेना का है। 1994 में भोजपुर जिले के बेलाउर गांव में रणवीर सेना की नींव रखी गई। रिटायर्ड फौजियों ने गांव के किसानों और लड़कों को बंदूक चलाने की ट्रेनिंग दी। इसके बाद तो दोनों तरफ से जातीय नरसंहार शुरू हो गए। जुलाई 1995 में सरकार ने भले ही रणवीर सेना पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन ये संगठन बंद नहीं हुआ। तब बिहार में जनता पार्टी की सरकार थी और लालू यादव मुख्यमंत्री। नरसंहार के 2 दिन बाद यानी 13 जुलाई को लालू बथानी टोला पहुंचे। उनके साथ बिहार के डीजीपी भी थे। गांव वालों को पता चला कि मुख्यमंत्री आए हैं, तो भीड़ ने उन्हें घेर लिया। ‘मुख्यमंत्री इस्तीफा दो, मुख्यमंत्री वापस जाओ’ नारे लगने लगे। मजबूरन लालू को पटना लौटना पड़ा। उसी शाम बिहार सरकार ने मृतकों के परिजनों को एक-एक लाख रुपए मुआवजा और गांव वालों को घर बनाने के लिए 20-20 हजार रुपए देने का ऐलान कर दिया। 14 जुलाई को लापरवाही के आरोप में 9 पुलिसवाले सस्पेंड कर दिए गए। दरअसल, बथानी टोला से महज एक किलोमीटर की दूरी पर ही पुलिस चौकी थी। आरोप लगा कि फायरिंग और चीख पुकार की गूंज सुनने के बाद भी पुलिस वालों ने हमलावरों को नहीं रोका। हालांकि, इससे सरकार पर दबाव कम नहीं हुआ। BJP और लेफ्ट लगातार प्रोटेस्ट करते रहे। 17 जुलाई 1996 को केंद्रीय गृहमंत्री इंद्रजीत गुप्ता भी बथानी टोला पहुंच गए। उन्होंने नरसंहार के लिए बिहार पुलिस को जिम्मेदार ठहरा दिया। तब लालू सरकार की और भी किरकिरी हुई, क्योंकि जनता दल, केंद्र सरकार का भी हिस्सा था। बथानी टोला नरसंहार की जांच अभी चल ही रही थी कि मुख्यमंत्री लालू यादव चारा घोटाले में फंस गए। उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी। केंद्र सरकार की तरफ से इस्तीफे का दबाव बढ़ने लगा। 5 जुलाई 1997 को लालू ने जनता दल से अलग होकर RJD नाम से नई पार्टी बना ली। 25 जुलाई को लालू ने अपनी गिरफ्तारी से पहले पत्नी राबड़ी देवी CM बनवा दिया। ब्रह्मेश्वर मुखिया जेल में बंद थे, लेकिन पुलिस रिकॉर्ड में फरार 16 जनवरी 1998, 18 महीने की जांच के बाद पुलिस ने 62 लोगों के खिलाफ अपहरण, हत्या, आगजनी, एट्रोसिटी एक्ट सहित कई संगीन धाराओं में चार्जशीट दायर की। 24 जनवरी 1998 को सीजेएम कोर्ट ने इस केस को भोजपुर जिला अदालत भेज दिया। नवंबर 2000 से जनवरी 2009 तक यानी करीब 8 साल तक सरकारी गवाहों की जांच होती रही। कुल 53 आरोपियों का ट्रायल किया गया। बाकी आरोपी या तो मर गए या फरार घोषित कर दिए गए। इन फरार आरोपियों में रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया भी शामिल थे। हालांकि, वे 2002 से 2011 तक जेल में बंद थे। कुल 16 गवाह बनाए गए। 13 सरकार की तरफ से और 3 आरोपियों की तरफ से। आरोपियों की तरफ से बड़की खड़ांव गांव के थाना प्रभारी और दो चौकीदारों ने भी जिला अदालत में गवाही दी। ये वहीं थाना प्रभारी थे, जिसे नरसंहार के बाद लापरवाही के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया था। इसी दौरान पहली बार गवाहों के सामने आरोपियों की परेड कराई गई। 38 साल की राधिका को सबकुछ जस का तस याद है। उस नरसंहार में उनकी छाती पर गोली लगी थी, लेकिन वो बच गई थीं। कहती हैं- ‘कोर्ट में मैंने आरोपियों को पहचान लिया था। गुस्से में कई आरोपियों की कमीज फाड़ दी, बाल खींच लिया। मैंने तो उन्हें मारने के लिए चप्पल भी उठा ली थी, लेकिन पुलिस ने रोक दिया।’ नरसंहार के करीब 14 साल बाद 1 अप्रैल 2010 से 20 अप्रैल 2010 तक भोजपुर जिला अदालत में सुनवाई हुई। 5 मई 2010 को भोजपुर जिला अदालत के जज एके श्रीवास्तव ने फैसला सुनाया। 53 आरोपियों में से 23 दोषी करार दिए गए। 3 को फांसी की सजा सुनाई गई और 20 को उम्रकैद। सबूतों की कमी के चलते 30 आरोपी बरी कर दिए गए। 23 दोषियों में से 4 नाबालिग थे। जिन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई, वे थे- अजय सिंह, मनोज सिंह और नरेंद्र सिंह। नरसंहार के 14 साल बाद लोअर कोर्ट से 3 को फांसी, 20 को उम्रकैद, लेकिन हाईकोर्ट से सभी बरी लोअर कोर्ट के फैसले को दोषियों ने पटना हाईकोर्ट में चैलेंज किया। अप्रैल 2012 में सुनवाई शुरू हुई... बचाव पक्ष के वकील ने दलील दी- ‘माय लॉर्ड… मेरे मुवक्किल को जानबूझकर फंसाया गया है। पुलिस ने दबाव में आकर बिना जांच-परख के लोगों को गिरफ्तार किया। जैसे कबूतरों को बैठाकर झूंड में गिरफ्तार कर लिया गया हो। जानबूझकर FIR 12 घंटे बाद दर्ज की। ताकि उसे आरोप लगाने और प्लानिंग करने का वक्त मिल सके।’ 16 अप्रैल 2012, पटना हाईकोर्ट में फैसले का दिन। जस्टिस नवनीत प्रसाद सिंह और जस्टिस अश्वनी कुमार सिंह की डिवीजन बेंच ने कहा- ‘पुलिस की जांच रिपोर्ट और चार्जशीट में काफी लूप होल है। चश्मदीदों के पुलिस को दिए बयान और कोर्ट में दिए गए बयान मेल नहीं खा रहे।पुलिस के पास कोई साइंटिफिक एविडेंस नहीं है। कोर्ट सबूतों की कमी के चलते उन 23 लोगों को बरी करता है, जिन्हें निचली अदालत ने सजा सुनाई थी।’ इस फैसले से बथानी टोला के लोगों को सदमा सा लगा। नईमुद्दीन रो पड़े। मीडिया वालों से कहने लगे- 'मेरे परिवार के 5 लोग मारे गए। तब मेरी दिमागी हालत ठीक नहीं थी। मैंने तीन बयान दिए। दो मौखिक और एक लिखित। बाद में मैंने बयान में कुछ जुड़वाया भी। लोअर कोर्ट ने बयान को सही माना, लेकिन हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। ये कहकर कि बयान बदले गए हैं। अन्याय हुआ हमारे साथ।' बिहार सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन 13 साल बीत जाने के बाद भी अब तक कोई फैसला नहीं आ सका है। बिहार सरकार ने अपील की थी कि जब तक फैसला नहीं आ जाता, तब तक आरोपियों को बेल नहीं दी जाए, पर कोर्ट नहीं माना। RJD की सीटें घटती गईं, जंगल राज का टैग लगा फरवरी 1998 में लोकसभा चुनाव हुए। तब बिहार में कुल 54 सीटें थीं। इनमें से 20 सीटें BJP को और 17 सीटें RJD को मिलीं। 1999 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए। अब तक बथानी टोला नरसंहार के साथ-साथ लक्ष्मणपुर बाथे, शंकर बिगहा और सेनारी जैसे बड़े नरसंहार हो चुके थे। 200 से ज्यादा दलित और सवर्ण मारे जा चुके थे। इसी दौरान पटना हाईकोर्ट ने 'जंगल राज' शब्द का इस्तेमाल किया था। BJP और जदयू ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया। इसका असर चुनाव में भी दिखा। RJD महज 7 सीटों पर सिमट गई। जबकि 23 सीटों के साथ BJP सबसे बड़ी पार्टी बन गई। मार्च 2000 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए। तब बिहार में 324 सीटें थीं। RJD को 124 सीटें मिलीं। यानी बहुमत से 38 कम। आखिरकार कांग्रेस और लेफ्ट के समर्थन से राबड़ी देवी तीसरी बार CM बनीं। लेकिन उसके बाद के चुनावों में RJD कभी अपना CM नहीं बना पाई। कल 5वें एपिसोड में पढ़िए कहानी लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार की, जहां 58 दलितों की हत्या कर दी गई.. नोट : (यह सच्ची कहानी पुलिस चार्जशीट, कोर्ट जजमेंट, गांव वालों के बयान, अलग-अलग किताबें, अखबार और इंटरनेशल रिपोर्ट्स पर आधारित है। क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल करते हुए इसे कहानी के रूप में लिखा गया है।) रेफरेंस :
‘ये कोई 2-4 दिन का आंदोलन नहीं था। हमने कई महीनों की प्लानिंग और रिसर्च के बाद इसे खड़ा किया। हम पिछले दो साल से लगातार मेहनत कर रहे थे और एक-एक कर युवाओं को जुटाया।‘ नेपाल में अपने आंदोलन से सरकार गिरा देने वाले GenZ लीडर्स में शामिल अर्जुन शाही और टंका धामी इस बदलाव से खुश हैं। वे कहते हैं अब देश में नई व्यवस्था बनाने की बारी है। GenZ लीडर्स इस जिम्मेदारी को उठाने की तैयारी में जुट गए हैं। 26 साल के अर्जुन शाही और 27 साल के टंका धामी का जेनजी रेवोल्यूशन नेपाल नाम का संगठन है, जो सरकार के खिलाफ प्रोटेस्ट का हिस्सा रहा। आने वाले दिनों में ये लीडर्स नेपाल की सरकार में मंत्री और एडवाइजर भी बनेंगे। वे भारत से रोटी-बेटी का संबंध बताते हैं। वहीं, महात्मा गांधी और भगत सिंह को अपना आदर्श बताते हैं। दैनिक भास्कर ने GenZ प्रोटेस्ट का नेतृत्व करने वाले इन लीडर्स से बात की और समझने की कोशिश की कि आखिर GenZ ने इतना बड़ा आंदोलन कैसे खड़ा किया? सोशल मीडिया की उसमें क्या भूमिका रही और वे आगे कैसा नेपाल बनाना चाहते हैं? देखिए और पढ़िए पूरा इंटरव्यू… सवाल: GenZ को सरकार के खिलाफ लामबंद करना और आंदोलन खड़ा करना, ये सब कैसे हुआ?जवाब: नेपाल में GenZ क्रांति की शुरुआत करप्शन से हुई। कई युवा सरकारी करप्शन से परेशान हो चुके थे। ये सिर्फ सरकार में ही नहीं बल्कि अफसरों से लेकर मंत्री-सांसद, विधायक बल्कि पूरा पॉलिटिकल सिस्टम ही भ्रष्ट हो चुका था। युवाओं में बेरोजगारी की वजह से भी नाराजगी बढ़ रही थी। यहां से दूसरे देशों में लोगों का पलायन भी युवाओं को परेशान कर रहा था। हालांकि 8 सितंबर को हमारे आंदोलन के बाद जो कुछ हुआ, उसके बाद सब कुछ पलट गया। हमने शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने की योजना बनाई थी, लेकिन सरकार ने जो किया, उसके बाद हालात बेकाबू होते चले गए। सरकार में बैठे नेताओं के इशारे पर हमारे युवा साथियों की हत्या की गई। हमने अपने दम पर सरकार को झुका दिया और संसद पर कब्जा कर लिया। सवाल: GenZ युवाओं को कैसे जुटाया गया?जवाब: GenZ हमारे साथ इसलिए आए क्योंकि सभी को लगता था कि करप्शन बहुत बढ़ गया है। केपी ओली सरकार में करप्शन संस्थागत हो चुका था। राजनीतिक रूप से हमारा देश अस्थिर हो गया था। कोई किसी के भी साथ मिलकर सरकार बना रहा था। सरकार का करप्शन पकड़ने के लिए हमने कई GenZ टीमें बनाईं और डीप रिसर्च की। जब हम आंदोलन खड़ा कर रहे थे, तब हमने कई लीडर्स से भी बात की थी। हालांकि उनका यही कहना था कि हम सब अभी बच्चे हैं। हमें पढ़ाई करके विदेश जाना चाहिए। हम सब इस नतीजे पर पहुंचे थे कि अगर हमने आज कुछ नहीं किया तो हमारे बाद आने वाली पीढ़ी हमें कोसेगी। किसी न किसी को तो लीड करना ही होगा, जैसे- कभी राम और कृष्ण ने किया था। नेपाल में सब कुछ अच्छा है, पहाड़ हैं, नदियां हैं, मेहनती लोग हैं। हमारे रिश्ते भी सभी देशों से अच्छे हैं, लेकिन हम अफ्रीकी देशों से भी गरीब होते जा रहे थे। अब जब नेपाल में रामराज्य आएगा तो पूरी दुनिया के हिंदू यहां आएंगे। हम ऐसा ही नेपाल बनाना चाहते थे। सवाल: प्रोटेस्ट में नेपो किड्स (राजनेताओं के बच्चे) की लग्जरी लाइफस्टाइल कैसे मुद्दा बन गई?जवाब: इसे मुद्दा बनाने के लिए हमने यूनिवर्सिटी लेवल से शुरुआत की। कई सारे सोशल मीडिया अकाउंट तैयार किए और GenZ को इस काम में लगा दिया। हमने इस सरकार की ताकत और कमजोरी दोनों पर गहन रिसर्च की। हमने इसके लिए कई ब्यूरोक्रेट्स, रिटायर्ड पुलिस अफसरों और आर्मी अफसरों से भी बात की थी। फिर हमने पता किया कि इस सरकार की कमजोर कड़ी कौन सी है। हमें वो ट्रिगर पॉइंट ढूंढना था, जिसे दबाने से ये सत्ता गिर जाए? सवाल: इस सरकार का वो ट्रिगर पॉइंट क्या था और उसे दबाने के लिए क्या तैयारी की?जवाब: सबसे बड़ा ट्रिगर पॉइंट था कि नेपाल के आम लोग दिन-ब-दिन गरीब क्यों होते जा रहे हैं। हमने इसकी पूरी इकोनॉमिक स्टडी की। हमारे देश में जब इतने सारे संसाधन हैं, फिर भी हम गरीब क्यों हैं। हमारा पासपोर्ट इतना कमजोर है। हमने GenZ तक मैसेज पहुंचाया कि ये सब सिर्फ नेपाल के करप्ट लीडर्स की वजह से हो रहा है। पूरी दुनिया को लगता है कि हम गरीब हैं, लेकिन हम दुनिया को बताना चाहते हैं कि हम उतने गरीब नहीं हैं जितना आप सोचते हो। हम जिस तरह की लाइफस्टाइल जीते हैं, वो बहुत अच्छी है। खराब जिंदगी जीने के लिए हमारी सरकार ने लोगों को मजबूर कर दिया है। लोग टैक्स भरते हैं, लेकिन सरकारें उसका सही इस्तेमाल नहीं करतीं। जो प्रोजेक्ट एक साल में पूरा हो सकता है, उसे पूरा होने में 5 साल लग रहे हैं। ये सब नेताओं के करप्शन की वजह से हो रहा है। सवाल: क्या आप लोग केपी ओली और प्रचंड जैसे करप्ट लीडर्स के खिलाफ केस चलाएंगे और उन्हें जेल भेजा जाएगा?जवाब: ये सिर्फ केपी ओली और प्रचंड तक सीमित नहीं रहने वाला। देश में जो भी करप्शन में शामिल होगा, उसकी जांच होगी और उसे जेल की सलाखों के पीछे भेजा जाएगा। इस बदलाव के लिए जिन साथियों ने जिंदगी कुर्बान की है, वो हमें प्रेरित करती है कि हम उन भ्रष्ट लोगों की जांच करें और उन्हें जेल भेजें। इतने युवाओं की मौत हो जाना कोई आम बात नहीं है, उनकी जान की कीमत इतनी कम नहीं है। सवाल: आखिर 73 साल की सुशीला कार्की को GenZ ने PM क्यों चुना, प्रक्रिया क्या थी?जवाब: हमारे पास PM पद के लिए पांच विकल्प थे, जिनकी चर्चा हर कोई कर रहा था। हमने हर किसी का बैकग्राउंड देखा और उनका इतिहास पता करने के लिए पूरी टीम लगाई। मौजूदा हालात में सुशीला कार्की ही हम लोगों को सबसे बेहतर लगीं। हमने PM पद के लिए ऑनलाइन वोटिंग भी करवाई। हालांकि कोई भी फैसला लेने में हमने उन्हें फुल पावर नहीं दी है। हमने कई GenZ ग्रुप के नेता बनाए थे और उनकी राय भी ली। सुशीला कार्की का बैकग्राउंड देखने के बाद ज्यादातर GenZ लीडर उनके नाम पर सहमत थे। हमने इस प्रोटेस्ट के साथ ये इतिहास भी रच दिया कि देश को पहली महिला प्रधानमंत्री दे दी। अभी तक नेपाल में महिलाओं को घर तक सीमित रखने की सोच है, इससे ये सोच भी बदलेगी। सवाल: क्या आप या GenZ लीडर्स भी मंत्री और एडवाइजर बनेंगे?जवाब: अगर जरूरत पड़ी तो हम मंत्री बनेंगे और अगर नहीं पड़ी तो नहीं बनेंगे। हमने PM चुन लिया है। अब हम एक नया सिस्टम भी बना रहे हैं। हालांकि अब तक ये तय नहीं किया है कि इस सरकार का स्वरूप क्या होगा। मंत्री कौन बनेगा, एडवाइजर कौन बनेगा, सरकार किसके फैसले पर चलेगी और सिस्टम कैसे काम करेगा। हम इस पर चर्चा कर रहे हैं और जल्द ही एक पुख्ता ड्राफ्ट के साथ लोगों के सामने आएंगे। सवाल: PM मोदी ने कहा है कि नेपाल के युवाओं से एक नए नेपाल का उदय हो रहा है। इसे कैसे देखते हैं?जवाब: नेपाल के GenZ और यहां के सभी लोग मोदी जी को धन्यवाद कहना चाहते हैं। वो महान लीडर हैं और उन्होंने भारत को बदल कर रख दिया है। उन्होंने पूरी दुनिया में भारत का परचम लहराया है। उन्होंने दुनिया को मैसेज दिया है कि एशियाई देश इतना भी कमजोर नहीं हैं जैसा पश्चिम की दुनिया सोचती है। भारत के पास फार्मा इंडस्ट्री है, मैन्युफैक्चरिंग है। हम भारत सरकार, PM मोदी और भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों को भी धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने हमेशा नेपाल का समर्थन किया। जब हम कहते हैं कि रोटी-बेटी का संबंध है, हमारा रिश्ता बाकी देशों से भी बहुत पुराना है। हमारा सनातन का रिश्ता है, धर्म से लेकर समाज और भाषा से लेकर संस्कृति का रिश्ता है। सवाल: आपका भारत और दुनिया के लिए क्या मैसेज है?जवाब: क्रांति करना है तो जबरदस्त कीजिए। क्रांतिकारी की भाषा ही दूसरी होती है। मैं भारत के लोगों से कहना चाहता हूं कि नेपाल में जो हुआ वो सिर्फ नेपाल तक सीमित नहीं रहने वाला है, इसका असर दुनिया में होगा। सवाल: नेपाल में प्रोटेस्ट के साथ हुई हिंसा ने देश को कई साल पीछे धकेल दिया है, आपको नहीं लगता ज्यादा नुकसान हो गया?जवाब: जब भी अन्याय बहुत ज्यादा हो जाता है तो एक वक्त के बाद प्रलय आती है। नेपाल में अत्याचार और अन्याय चरम पर था, लोगों के साथ बहुत गलत किया गया। आपने जो देखा वो इसी का नतीजा है। मैं युवाओं से कहता हूं कि अब भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़िए, सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए लड़िए। सवाल: नेपाल का भविष्य कैसा होगा, उसके लिए आप लोग क्या फैसले लेने वाले हैं?जवाब: सबसे पहले हम उन्हें मरहम लगा रहे हैं, जिनका प्रोटेस्ट के दौरान नुकसान हुआ, जो लोग घायल हुए और जिनके अपनों ने जान गंवाई। साथ ही प्रदर्शन की वजह से ट्रैफिक बूथ, पुलिस स्टेशन कुछ भी नहीं बचा है। पूरा देश बिना पुलिस के चल रहा है, हम उसे फिर से बनाएंगे। हम कैबिनेट और सिस्टम बनाने के लिए मीटिंग कर रहे हैं। उससे पहले अभी हम उन लोगों के प्रति संवेदना ज्ञापित कर रहे हैं। जिन्होंने नेपाल में बदलाव के लिए शहादत दी है, उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। नेपाल के इतिहास में इन शहीदों की सबसे खास जगह होगी। इन्होंने नया नेपाल बनाने के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी। सवाल: GenZ प्रोटेस्ट में ‘केपी चोर देश छोड़’ नारा सबसे ज्यादा सुना, आपका पसंदीदा नारा कौन सा था?जवाब: मेरा पूरी दुनिया को एक ही नारा है- ‘अन्याय और अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़िए।’ साथ ही मैं नेपाल के लोगों को कहूंगा ‘हम कल भी लड़ रहे थे, आज भी लड़ रहे हैं और कल भी लड़ेंगे।’ सवाल: आप आंदोलन और संघर्ष की प्रेरणा कहां से लेते हैं?जवाब: हर लड़ाई आत्मबल से लड़ी जाती है। जब अन्याय एक हद से बढ़ जाता है तो व्यक्ति अपने आप लड़ने के लिए खड़ा हो जाता है। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और क्रांतिकारी भगत सिंह हमारे लिए भी प्रेरणा हैं। मैं यही कहूंगा कि नई शुरुआत करने के लिए कभी देरी नहीं होती, रोम एक दिन में बनकर तैयार नहीं हुआ था। ..................... नेपाल से ये ग्राउंड रिपोर्ट भी पढ़िए... पूर्व PM-वित्त मंत्री को पीटा, संसद-सुप्रीम कोर्ट जलाए, लोग बोले- हमारी सरकार करप्ट गैंग नेपाल की संसद, सुप्रीम कोर्ट, पॉलिटिकल पार्टियों के ऑफिस, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री-मंत्रियों के घर और सबसे खास काठमांडू का सिंह दरबार, सब एक दिन में जल गया। पूरे काठमांडू के आसमान में काला धुआं दिख रहा है। पूर्व PM झालानाथ खनाल की पत्नी को जिंदा जला दिया गया। 20 से 25 साल के लड़के-लड़कियां सरकार के खिलाफ सड़कों पर हैं। इनका कहना है कि हमारी सरकार करप्ट है। पढ़िए पूरी खबर...
यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की को 'घातक तोहफा', रूस के सीक्रेट हथियार से NATO चौंका! यूरोप में टेंशन
Russia Ukraine war: दावा है कि नाटो लड़ाकू विमानों ने सीमापार यूक्रेन जाकर उड़ान भरी. इस एक्शन को रूस ने उकसावे वाली कार्रवाई बताते हुए कहा नाटो रेड लाइन पार कर रहा है. रूसी फौज यूक्रेन में तबाही मचाती जा रही है, उससे यूरोप टेंशन में है. इस बीच फ्रांस ने नाटो सैन्य अभ्यास के दौरान पोलैंड के ऊपर राफेल तैनात किए है.
पंजाबी दादी ने अमेरिकंस को 'रुलाया', ट्रंप प्रशासन पर उठे सवाल; लोग बोले- वापस लाओ-वापस लाओ!
Harjit Kaur news:पंजाबी दादी अम्मा हरजीत कौर बीते करीब 35 सालों नॉर्थ कैलिफोर्निया के ईस्ट बे में रह रही थीं. उन्हें हाल ही में रुटीन जांच के दौरान इमीग्रेशन और सीमा शुल्क प्रवर्तन (आईसीई) अधिकारियों ने हिरासत में लिया. जिसके बाद सरकारी कार्रवाई पर लोगों का आक्रोश देखने को मिल रहा है.
India Russia News in Hindi: भारतीय सिनेमा के गाने दुनिया में देश की बड़ी सॉफ्ट पावर बने हुए हैं. इसका नजारा इस साल रूस की विक्ट्री डे परेड में दिखा. जब वहां पर राष्ट्रपति पुतिन के आवास पर मेरा जूता है जापानी गीत बजाया गया.
चंद मिनटों में उजड़ गई दुनिया, सड़क पर घायल को बचाने रुकी थी नर्स, चेहरा देखते ही उड़ गए होश
Thailand News: थाईलैंड में एक नर्स काम करके वापस लौट रही थी. तभी उसने देखा कि एक कार हादसे का शिकार हुई है. जैसे ही वह घायल को बचाने के लिए वहां पहुंची तो उसके होश उड़ गए.
Ukraine War Latest Updates: अपने से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली रूस को जंग के मैदान में झुकाने के लिए यूक्रेन ने अब अपनी रणनीति बदल दी है. वह चुन-चुनकर उसके ईंधन और हथियार उत्पादन केंद्रों को अपना निशाना बना रहा है.
स्थानीय निकाय चुनावों में धुर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी को मिलेगी सफलता?
जर्मन राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया (एनआरडब्ल्यू) में रविवार को हो रहे स्थानीय निकाय के चुनाव से पहले आए पोल बता रहे हैं कि इस साल एएफडी एक मजबूत ताकत के रूप में उभर सकती है
लंदन में धुर दक्षिणपंथियों की विशाल रैली
लंदन के वेस्टमिंस्टर के पास शनिवार को धुर दक्षिणपंथी नेता टॉमी रॉबिन्सन के नेतृत्व में एक बड़ा आप्रवासन विरोधी प्रदर्शन हुआ. इसमें कम से कम 1,10,00 लोगों ने हिस्सा लिया. इस दौरान पुलिस अधिकारियों पर भी हमला किया गया
नेपाल की अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने रविवार को औपचारिक रूप से पदभार ग्रहण किया। पदभार संभालते ही उन्होंने जेन-जी आंदोलन के दौरान मारे गए लोगों को 'शहीद' का दर्जा और उनके आश्रितों को 10-10 लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा की
कतर पर इजरायली हमले के बाद खौफ में ये मुस्लिम देश, कभी कंधे से कंधा मिलाकर चलते थे दोनों यार
हमास अधिकारी नियमित रूप से तुर्की का दौरा करते हैं और कुछ पहले से वहां रहते हैं. इजरायल ने पहले तुर्की पर हमास को अपने क्षेत्र से हमलों की योजना बनाने की अनुमति देने का आरोप लगाया था और साथ ही आतंकियों की भर्ती और फंडिंग का आरोप भी लगाया था.
कुर्सी संभालते ही बोलीं सुशीला- सत्ता का स्वाद चखने नहीं आई; हिंसा मारे गए लोग कहलाएंगे शहीद
Sushila Karki: नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता के बाद अब पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है. उनको लेकर लोगों में उम्मीद की किरण जगी है.
'लड़ो या मरो' कोई दूसरा रास्ता नहीं... एलन मस्क क्यों लंदन में भड़के विरोध को दे रहे हवा?
लंदन में भड़के विरोध पर अब एलन मस्क का बयान सामने आया है. जानकारी के मुताबिक, मस्क ने कहा कि मुझे लगता है कि अब कीर स्टार्मर की अगुआई वाली लेबर सरकार को गिराने की जरूरत है.
Life After Death: मौत एक दरवाजा है इस दुनिया से दूसरी दुनिया में जाने का. इस अनुभव ने डॉ. राजीव की पूरी जिंदगी बदल दी. जिसके बाद आंख खुलते ही उन्होंने उन सभी भौतिक चीजों को छोड़ दिया, जिसे पाना लोगों का अल्टीमेट गोल होता है.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को सभी 'नाटो' देशों और विश्व को एक ओपन लेटर भेजा है, जिसमें उन्होंने रूस के खिलाफ बड़े पैमाने पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की अपनी तैयारी बताई है
ये देश मात्र ₹2.50 लाख में दे रहा है परमानेंट रेजीडेंसी का मौका, बस ये है शर्तें
स्पेन, यूरोप में स्थित एक आकर्षक देश है जो अब भारतीयों को भी स्पेन में परमानेंट रेजीडेंसी का मौका दे रहा है. परमानेंट रेजीडेंसी के तहत आप स्पेन में रह सकते हैं, काम कर सकते हैं और पढ़ाई कर सकते हैं.
ब्रिटिश एक्टिविस्ट टॉमी रॉबिन्सन के नेतृत्व में लंदन में आयोजित एक विशाल दक्षिणपंथी मार्च उस समय हिंसक हो गया, जब प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा अधिकारियों के बीच झड़पें हुईं
ना युद्ध की साजिश और ना ही मैदान में उतरने का इरादा... 100% टैरिफ पर चीन का ट्रंप को करारा जवाब
चीन और अमेरिका के बीच जारी टैरिफ वॉर को लेकर अब चाइना भी खुलकर सामने आया है. जानकारी के अनुसार, स्लोवेनिया की राजकीय यात्रा के दौरान चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने अमेरिका पर निशाना साधते हुए कहा कि युद्ध से समस्याएं हल नहीं हो सकतीं तथा प्रतिबंध केवल उन्हें और जटिल बनाते हैं.
London Protest: टॉमी रॉबिन्सन के नेतृत्व में एक लाख से भी अधिक प्रदर्शकारियों ने एंटी-इमिग्रेशन के खिलाफ मार्च निकाला. इस दौरान वहां तैनात कुछ पुलिसकर्मियों ने जब इस आंदोलन को रोकना चाहा तो प्रदर्शनकारियों से उनकी झड़प हो गई. इस दौरान कई पुलिस अधिकारियों पर प्रदर्शनकारियों ने हमला कर दिया जिसमें कई पुलिस अधिकारी घायल हो गए.
मैं रागिनी, मध्य प्रदेश के जबलपुर की रहने वाली हूं। अपने गांव की आशा वर्कर हूं। मेरा बचपन गरीबी में और जवानी जलालत में गुजरी। पांच साल की थी, तभी मेरे पिता की मौत हो गई। पांचवीं के बाद मेरी पढ़ाई छुड़वा दी गई और 15 साल की उम्र में मां ने मेरी शादी कर दी। पति मुझे एक ही साल में छोड़कर दूसरी लड़की के साथ भाग गया। उसके बाद एक लड़के से प्यार हुआ। प्रेग्नेंट हुई तो वो शादी से मुकर गया। पंचायत बैठी, लेकिन उसने मेरे साथ न्याय नहीं किया। सभी ने मुझसे दूरी बना ली। फिर मैंने बच्चा पैदा करने का फैसला किया। सोचा कि वो तो मुझे अपना मानेगा। बेटा पैदा हुआ। पूरा गांव उसे देखने आया। सबको यही जानने को पड़ी थी कि किसका बच्चा है! मामला लोकल कोर्ट में गया। वकील ने मुझसे पूछा- जिस लड़के से प्रेग्नेंट हुई हो, उसके प्राइवेट पार्ट पर क्या निशान है! ऐसी बेहूदी बातों के साथ कोर्ट ने प्रेमी को केस जिता दिया। उसके बाद मैंने और मां ने बेटे को पाला। आज वो 22 साल का है। अपनी कहानी शुरू करती हूं बचपन की गरीबी से। पिता जी के जाने के बाद मैं, मेरा भाई और मां तीन लोग बचे थे। उस समय हमारे पास न तो पैसा था और न जमीन। मां को मजदूरी करनी पड़ती। वो एक स्कूल में मिड-डे-मील का खाना भी बनाती थीं। वहां महीने का 150 रुपए पातीं। सोच सकते हैं 150 रुपए में जिंदगी कैसे चलती रही होगी। उन्होंने बड़ी मुश्किल से हमें पाला। 15 साल हुई तो मां ने एक लड़का ढूंढा और मेरी शादी कर दी। अपनी हैसियत के हिसाब से शादी में जो कुछ दे सकती थीं, दिया। ससुराल पहुंची तो रोज 20-22 लोगों का खाना बनाना पड़ता। बचा हुआ बासी खाना सुबह मुझे ही खाना पड़ता। जिस दिन कम पड़ जाता, उस दिन कोई नहीं पूछता कि मैंने खाया या नहीं। अगर रात को घर के मर्द देर से आते, तो उठकर उनके लिए खाना बनाने की जिम्मेदारी भी मेरी ही थी। सास के खाने से पहले खा नहीं सकती थी। अगर खा लेती, तो वो जीना मुहाल कर देती थीं। हमेशा ताने देतीं - 'तू ठीक नहीं दिखती, बाल नहीं संवार पाती।' इतनी मेहनत के बावजूद मार पड़ती। एक बार तो लोहे की रॉड से इतनी पिटाई हुई कि रॉड टेढ़ी हो गई। शादी को एक साल भी नहीं हुआ था कि पति मुझे मायके छोड़कर चले गए। बोले - 'जल्द वापस आऊंगा।' लेकिन वे नहीं लौटे। किसी दूसरी लड़की से उनका चक्कर था और वे उसके साथ फरार हो गए। 16 साल की उम्र में बिना पति के हो गई। मायके में, मां के काम पर जाने के बाद घर में अकेलापन खलता। उस समय गांव का एक रिश्तेदार लड़का मेरे घर आता-जाता था। धीरे-धीरे उसने मुझसे नजदीकी बढ़ाई। उसने कहा कि वो मुझसे प्यार करता है। मैं भी उससे जुड़ने लगी। मुझे भी उससे प्यार हो गया। दो-तीन साल तक इसी तरह वो मेरे घर आता रहा। एक बार पीरियड्स नहीं आए तो घबरा गई। जब उसे बताया, तो उसने साफ मना कर दिया - 'ये बच्चा मेरा नहीं है'। पूछा- मिलने तुम आते थे, तो बच्चा किसका होगा? लेकिन वो एक न माना। घर आना बंद कर दिया। कुछ लोगों के कहने पर एक दिन उसके घर पहुंच गई। उसकी बहन घर से बाहर आई और पूछा- यहां क्यों आई हूं? कहा- अपने भाई से पूछो। उसे सारी बात पता थी। वो गुस्सा हो गई। कहा- 'रां$% मेरे भाई को फंसाना चाहती हो'। इतना कहते हुए मेरा बाल पकड़ लिया। खींचकर-खींचकर मुझे पीटने लगी। पूरा गांव इकट्ठा हो गया, सभी बस तमाशा देखते रहे। उनमें कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्हें सारी सच्चाई पता थी, लेकिन कोई सामने नहीं आया। इस बीच वो लड़का घर पर आता दिखा। दौड़कर मैंने उसका कॉलर पकड़ लिया, पूछा अब तो सच बोल दो। लेकिन उसने कहा- 'तेरे पेट में मेरा बच्चा नहीं है। तू मुझे फंसाना चाहती है'। आखिर थक-हार कर रोते हुए अपने घर लौट आई। घर लौटी तो मां बहुत गुस्से में थीं। वो मेरे पास आईं और कई थप्पड़ जड़ दिए। वो गुस्से में जरूर थीं, लेकिन बाद में उन्होंने ही मेरा साथ दिया। पंचायत बुलाई गई। पंचायत में उस लड़के को भी बुलाया गया। पंचायत में रो-रो कर कहती रही कि मेरी कोख में इसी लड़के का बच्चा है, लेकिन उसने कहा- 'तुम्हारी कोख में मेरा बच्चा नहीं है।' वो साफ-साफ मुकर गया और पंचायत ने उसे कुछ नहीं कहा गया। पंचायत ने मुझे ही जलील किया और दोषी ठहराया। मजबूरी में मां के साथ थाने जाकर एफआईआर दर्ज कराई। पुलिस मेरे घर आई और बयान दर्ज किया। फिर लड़के के घर जाकर उसका भी बयान लिया। बयान लेते हुए इंस्पेक्टर ने मुझे समझाया - 'बेटा, परेशान मत हो। बहुत-सी औरतें ऐसे दर्द से गुजरी हैं। बस अपने बच्चे के लिए मजबूत रहना अपनी जान से कोई खिलवाड़ मत करना। मजदूरी करके अपनी जिंदगी बिता लेना।' उनकी बातों से हौसला मिला। उसके बाद जब मेरा पेट निकलने लगा। जिधर भी जाती, लोग रास्ता बदल लेते। पूरा गांव जानता था कि सच क्या है, बावजूद सबने दूरी बना ली। रिश्तेदारों ने भी नाता तोड़ लिया। बस मेरी मां थीं, जो मेरे साथ थीं। मां ने एक बार भी नहीं कहा कि बच्चा गिरा दो। मैंने तय किया - बच्चे को जरूर जन्म दूंगी। सोचा मां के बाद कोई तो होगा जो मुझे अपना होगा। नौ महीने जिस बच्चे को अपनी कोख में रखूंगी। उसका दर्द सहूंगी, वो किसी और का भला कैसे हो सकता है? जब आठवां महीने आया। उस वक्त बहुत कमजोर हो गई थी। इतनी कि मेरे हाथ-पैर पतले हो गए थे। लोग कहने लगे- ये बचेगी नहीं, मर जाएगी। डिलीवरी के दिन दर्द में थी। कोई अस्पताल ले जाने वाला नहीं था। मां किसी तरह ले गईं। बेटा पैदा हुआ। उसे गोद में लेकर लगा - यह मेरी सबसे अनमोल चीज है। यह ‘मेरा’ है। उसके बाद घर आई। उस दिन पंचायत चुनाव हो रहे थे। वोट डालने के बाद लोग मेरे घर आते। यह देखने कि वो कैसा है, किस पर गया है। सबको यही जानना था कि किसका बच्चा है! जैसे-जैसे बेटा बड़ा हुआ, साफ दिखने लगा कि वह उसी प्रेमी पर गया है। लोग कहने लगे - 'तेरे साथ नाइंसाफी हुई है। अब तो बच्चा ही सबूत है। अब से हम सब तुम्हारे साथ हैं।' कोर्ट में केस चला। जब बेटा छह महीने का था, मेरी गवाही हुई। वकील ने बेहूदा सवाल पूछे - 'प्रेमी के प्राइवेट पार्ट पर कौन-सा निशान है? संबंध कैसे बने?' उन सवालों ने मुझे तोड़ दिया। आप ही बताइए कोई किसी के शरीर का निशान देखकर उससे प्यार करता है? फिलहाल, सुनवाई हुई। उसके बाद वकीलों ने कहा- हम आपको आठ-दस दिन बाद फिर बुलाएंगे। बाद में अखबार में पढ़ा- बिना बहस के प्रेमी केस जीत गया। लगा, न्याय भी बिक चुका है! बेटे के पालने के लिए नौकरी चाहिए थी। पंचायत दफ्तर गई। आशा वर्कर की नौकरी मिली। एक अधिकारी ने कहा - 'आपसे बेहतर ये जिम्मेदारी कोई नहीं निभा सकता। दूसरी महिला शायद नौकरी करेगी, लेकिन आप पूरी जिम्मेदारी निभाएंगी।' सच भी है। आज अपने गांव वालों की बहुत सेवा करती हूं। उनके हर सुख-दुख में साथ रहती हूं। बेटा बड़ा हुआ। एक दिन पूछा- 'मम्मी, मेरे पापा कौन हैं?' मैंने कहा - 'वो अब नहीं रहे।' अब वो 22 साल का हो गया है। उसे सारा सच बता चुकी हूं। जल्द ही उसकी शादी करूंगी। हां, एक गलती हुई - कागजों में पिता के रूप में उसी प्रेमी का नाम लिखवा दिया। अब सोचती हूं, सिंगल मदर रहना चाहिए था। जिंदगी अब अच्छी है, लेकिन ताने अभी भी मिलते हैं। एक पड़ोसन ने पैसे लौटाने से मना किया और कहा - 'नाजायज बच्चा पैदा करने वाली!' उस दिन गुस्से में बोली- 'नौ महीने अपनी कोख में रखा, अपने खून से सींचा, नाजायज कैसे? कागजों में उसके बाप का नाम है हिम्मत है तो कटवाकर दिखाओ'। 'उस दिन पंचायत ने मेरा साथ दिया। उस औरत को फटकार लगाई और मुझे बेटी कहा। वही पंचायत, जिसने 22 साल पहले मेरे साथ अन्याय किया था।' (रागिनी ने अपने ये जज्बात भास्कर रिपोर्टर मनीषा भल्ला से साझा किए हैं।) ------------------------------------------- 1-संडे जज्बात-पति को मनोरोगी महिला से गलत काम करते पकड़ा:सड़क पर लावारिसों के दाढ़ी, बाल बनाती हूं, नहलाती हूं- पापा पहली मोहब्बत, लगता है वो देख रहे मेरा नाम नाजनीन शेख है। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले की रहने वाली हूं। बीते आठ साल से सड़क पर पड़े मानसिक रूप से बीमार और लावारिस लोगों के दाढ़ी-बाल बनाती हूं, उन्हें नहलाती हूं और उनका इलाज कराती हूं। साथ ही ब्यूटी प्रोडक्ट्स का बिजनेस भी करती हूं। इस तरह गैर मर्दों को छूना इस्लाम में हराम कहा जाता है, लेकिन मुझे इसकी फिक्र नहीं। ऐसा करके मुझे सुकून मिलता है। लगता है मेरे पापा ये सब देख रहे हैं। पापा आज भी मेरी पहली मोहब्बत हैं। मैं हर रोज उनकी कब्र पर जाकर अपने दिल का हाल बताती हूं। एक बार पति को एक मानसिक रूप से बीमार महिला के साथ गलत हरकत करते पकड़ा था, जिस पर उन्होंने मुझे बहुत पीटा था। 14 की उम्र में मेरी उनसे शादी हुई थी, वो मुझसे 17 साल बड़े थे। मेरे भाई की शादी में चिकन-बिरयानी नहीं बनी तो पति ने हंगामा किया और मम्मी-पापा की बेइज्जती की, उस दिन कमरे में फंदे से लटक रही थी तो पापा ने बचाया था। पति का एक लड़की से चक्कर भी था, उसको गिफ्ट देने को लेकर जब मैंने उन्हें टोका, तो उन्होंने मुझे तलाक दे दिया और मेरे बच्चे भी छीन लिए। आज मैंने दो बच्चों को गोद लिया है और दूसरी शादी की है। मेरे नए पति इस काम में मेरी खूब मदद करते हैं। पूरी खबर यहां पढ़ें 2- संडे जज्बात-पति ने मेरे चेहरे पर एसिड डालकर सुसाइड किया:सुंदर होने से लोग मुझे देखते थे; ब्लाउज, साड़ी फेंक पेटीकोट में भागते हुए तमाशा बनी मेरा नाम मीना सोनी है। लखनऊ के गोसाईंगंज में मायका है। कई सालों से यहीं रहती हूं। ऐसी अभागी हूं कि मेरी कोख से पैदा बच्चे मेरे ही चेहरा देखकर रोने लगते हैं। उनकी भी क्या गलती! मेरा चेहरा है ही इतना डरावना। तेजाब से पूरी तरह झुलसा हुआ। न आंखें दिखती हैं, न होंठ और न नाक। खाल भी जगह-जगह से चिपकी हुई है। मेरा यह हाल किसी और नहीं, पति ने किया है। बहुत सुंदर थी मैं और पति शकी। जब भी बाहर निकलती तो उन्हें लगता कि लोग मुझे देखते हैं। एक दिन दोपहर में सो रही थी, वो आए और मेरे चेहरे पर तेजाब उड़ेल दिया। चेहरे की खाल उधड़ गई। ब्लाउज जल गया। छाती भी झुलस गई। मैंने अधजला ब्लाउज और साड़ी को उतार फेंका। जान बचाने के लिए सिर्फ पेटीकोट में सड़क पर दौड़ रही थी। लोग तमाशा देख रहे थे। कोई बचाने नहीं आया। नंगे तन को ढंकने के लिए एक आदमी से गमछा मांगा, लेकिन उसने देने से इनकार कर दिया। भागते हुए एक प्राइवेट अस्पताल पहुंची तो वहां डॉक्टर ने एडमिट करने से मना कर दिया। फिर वहां से भागकर सरकारी अस्पताल पहुंची थी। पूरी खबर यहां पढ़ें
‘नेपाल में करप्शन बहुत ज्यादा बढ़ गया है। मंत्री जमकर घोटाला कर रहे हैं। सड़कों की हालत खराब है। हर कोई पैसा खा रहा है। मैं नेपाली नहीं हूं तो क्या हुआ, रहता तो यहीं हूं। अब यही मेरा घर है। नेपाली GenZ जो भी कर रहे थे, मैं उनके साथ खड़ा रहा। गोली लगने तक लड़ता रहा।’ काठमांडू के ट्रॉमा सेंटर में इलाज करा रहे दानिश आलम बिहार के मोतिहारी के रहने वाले हैं। 9 सितंबर को सरकार के विरोध में प्रोटेस्ट शुरू हुआ, तो दानिश भी उसमें शामिल हो गए। उनके बाएं हाथ में गोली लगी है। 2 दिन चला प्रोटेस्ट शांत हो गया। प्रधानमंत्री केपी ओली को इस्तीफा देना पड़ा। पूर्व जस्टिस सुशीला कार्की अंतरिम प्रधानमंत्री बन चुकी हैं। इससे अलग पुलिस की गोलियों से घायल दानिश जैसे कई युवा हॉस्पिटल में इलाज करा रहे हैं। दानिश को खुशी है कि वे नेपाल के लिए जो चाहते थे, वो मिल गया। दानिश आलमउम्र 20 साल, काठमांडूप्रोटेस्ट में दोस्तों के साथ गए, पुलिसवालों ने गोलियां बरसा दीं दानिश काठमांडू के बलखू में रहते हैं। 12वीं पास कर चुके हैं और मैनेजमैंट की पढ़ाई के लिए कॉलेज में एडमिशन लेने वाले हैं। 10 साल पहले उनके माता-पिता बिहार से नेपाल आ गए थे। पिता काठमांडू में ही दुकान चलाते हैं। दानिश बताते हैं, ‘9 सितंबर की सुबह करीब 10 बजे घर के बाहर शोर होने लगा। मैंने देखा कि मेरे स्कूल के दोस्त प्रोटेस्ट में जा रहे हैं। मैं भी उनके साथ चल दिया। धीरे-धीरे लोग जुड़ते गए और हम संसद भवन की ओर जा रही रैली में शामिल हो गए। इस तरह सभी GenZ प्रोटेस्ट का हिस्सा बन गए।’ ‘बलखू से थोड़ा आगे कालीमाटी पुलिस स्टेशन है। रैली यहां पहुंची तो पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश की। प्रदर्शनकारियों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी। जवाब में पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे। भीड़ काबू के बाहर होने लगी, तब पुलिस ऊपरी मंजिल पर चली गई। पुलिसवाले बिल्डिंग की छत से गोलियां चलाने लगे।’ दानिश उस मंजर को याद करते हुए अब भी सिहर उठते हैं। वे कहते हैं, ‘मैंने खुद पुलिस को छत से फायरिंग करते देखा। वो रबर बुलेट नहीं, असली गोली चला रहे थे। मैं भीड़ में था। अचानक मेरे हाथ में दर्द सा उठा। मैंने दर्द वाली जगह पर हाथ लगाया, तो खून रिस रहा था। मेरे दोस्त मुझे लेकर हॉस्पिटल आए। टेस्ट के बाद डॉक्टरों ने बताया कि बाजू पर गोली लगी है। गोली मेरी बाजू के आर-पार निकल गई थी। ‘बालेन शाह का फैन हूं, आर्मी पर यकीन है’दानिश प्रदर्शन में शामिल होने गए थे, तो उन्हें लगा कि वे 2-3 घंटे में घर लौट आएंगे। ऐसा हुआ नहीं। उस दिन को याद करते हुए वे कहते हैं, ‘उस दिन मेरे साथियों में अलग ही जोश था। लग रहा था कि लड़के मिलकर कुछ भी तोड़ देंगे। कहीं भी चले जाएंगे। सब जला देंगे। हुआ भी ठीक वैसा ही।’ क्या सोचा था कि सरकार गिर जाएगी? दानिश जवाब देते हैं, ‘इतनी जल्दी सरकार गिर जाएगी, ऐसा तो नहीं लगा था। 8 सितंबर को पुलिस ने मेरे कुछ दोस्तों को गोलियों से मार दिया। इसके बाद सिर्फ युवा ही नहीं, हर कोई गुस्से से भर गया था। मुझे लग ही रहा था कि दूसरे दिन कुछ होगा।’दानिश आलम काठमांडू के मेयर बालेन शाह से बहुत प्रभावित हैं। कहते हैं, बालेन शाह ईमानदार हैं, इसलिए मुझे पसंद हैं। मैं उनका फैन हूं। उन्हें प्रधानमंत्री बनना चाहिए। प्रोटेस्ट खत्म होने के बाद काठमांडू में हर जगह आर्मी तैनात है। अंतरिम प्रधानमंत्री चुनने की प्रोसेस में भी आर्मी का दखल रहा। इस बारे में दानिश कहते हैं, ‘हमें नेपाली आर्मी पर यकीन है। इसलिए सब उनकी बात मान रहे हैं।’ विजय अधिकारीउम्र 22 साल, काठमांडूफेसबुक पर प्रोटेस्ट का पता चला, गए तो पैर में 6 गोलियां लगीं विजय अधिकारी के बाएं पैर पर 6 गोलियां लगीं हैं। कुछ गोलियां ऑपरेशन करके निकाल दी गई हैं। कुछ अब भी पैर में धंसी हुई हैं। विजय जापानी भाषा की पढ़ाई करते हैं और अभी सेकेंड ईयर में हैं। विजय को 8 सितंबर को गोलियां लगी थीं। उसी दिन प्रोटेस्ट में 19 युवाओं की मौत हुई थी। विजय को फेसबुक से पता चला कि जेनजी प्रोटेस्ट होने वाला है। उन्होंने दोस्तों से इस बारे में बात की। सबने मिलकर प्रोटेस्ट में जाने का प्लान बनाया। सुबह 9 बजे ही विजय घर से निकल गए। विजय बताते हैं, ‘हम सुबह प्रदर्शन में जा रहे थे। मेरे साथ कई दोस्त आगे चल रहे थे। आगे पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया। अचानक से भगदड़ मच गई। पूरी भीड़ तितर-बितर हो गई। तभी पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागने शुरू कर दिया।' 'तभी हमने देखा कि पुलिसवालों ने अपनी राइफल निकाल ली। लोड करके फायरिंग पोजीशन ले ली। मेरे आगे खड़े दोस्त को गोली लगी। मैं उसे बचाने के लिए गया, तभी मेरे पैर पर गोलियां लगीं। पैर से खून निकलने लगा और मैं वहीं गिर गया। मेरे दोस्त मुझे हॉस्पिटल ले गए।’ ‘हम बालेन शाह दाई (भाई) के मैसेज पर प्रदर्शन में शामिल होने गए थे। उन्होंने सोशल मीडिया पर ये मैसेज दिया था। केपी ओली ने हमें मारने का ऑर्डर दिया। 22 साल के स्टूडेंट के पैर में कोई 6 गोली कैसे मार सकता है। ऐसा तो नेपाल में राजशाही के समय भी नहीं हुआ। हम प्रदर्शन करने गए थे। उसका सबसे बड़ा कारण सरकारी भ्रष्टाचार और नेपो किड्स थे। सोशल मीडिया सिर्फ छोटा सा कारण था’ विजय अधिकारी आगे कहते हैं, ‘भारत में भ्रष्टाचार कम है, इसलिए वहां बहुत डेपवलपमेंट हुआ है। नेपाल में जितना भ्रष्टाचार हुआ है, उतना कहीं नहीं हुआ। हमने इसके खिलाफ आवाज उठाई तो पैर में गोलियां मारी गईं। सीने पर गोलियां मारी गईं। अगर केपी ओली से बदला लेने के लिए मुझे जान भी देनी पड़ती, तो मैं तैयार था।’ राजू तमांगउम्र: 24 सालनेपो किड्स की वजह से गुस्सा पनप रहा था राजू कई दिनों से सोशल मीडिया पर नेताओं के बेटे-बेटियों के वीडियो देख रहे थे। इनमें कोई स्विटजरलैंड घूम रहा था, आलीशान लाइफ जी रहे थे। राजू इसे लेकर बहुत परेशान थे और अंदर ही अंदर गुस्सा भी पनप रहा था। राजू कहते हैं, ‘प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। बहुत लोगों को मार दिया। मां-बाप ने बच्चों को पाल-पोसकर बड़ा किया, लेकिन केपी ओली की गोली ने एक झटके में उनकी जान ले ली। ऐसे में कोई भी चुप कैसे रहेगा।’ राजू तमांग आगे कहते हैं कि हम न राजा का शासन चाहते हैं, न मौजूदा राजनीतिक पार्टियों में से किसी नेता को चाहते हैं। हां, काठमांडू के मेयर बालेन शाह पर मुझे यकीन है। इसके पहले जितने भी लोग और पार्टियों ने नेपाल पर राज किया, सबने धोखा ही दिया।’ नवीन तमांगउम्र 22 सालसाउथ कोरिया जाने का ख्वाब, अब हॉस्पिटल में इलाज करा रहे नवीन ने सोचा है कि साउथ कोरिया का वीजा मिल गया तो वहां कोई छोटा-मोटा काम कर लेंगे। नेपाल के मुकाबले वहां 10 गुना सैलरी मिलती है। नेपाल में न तो नौकरी है, न लाइफ। हालांकि वे अभी हॉस्पिटल में एडमिट हैं। नवीन अकेले नहीं है। नेपाल में लाखों लोग हैं, जिनकी इतनी हसरत है कि किसी देश का वीजा लें और वहां काम करने के लिए चले जाएं। GenZ प्रोटेस्ट में नेपाल से पलायन भी बड़ा मुद्दा बना। नवीन प्रोटेस्ट का हिस्सा रहे हैं। उनके पैर में चोट आई है। वे हॉस्पिटल के बेड पर लेटे हुए हैं। नवीन कहते हैं, ‘ये लड़ाई GenZ ने लड़ी और उन्हीं ने जीती है। इसलिए अब राजनीति भी युवाओं को ही करनी चाहिए। केपी शर्मा ओली को नेपाल से निकाल देना चाहिए।’ प्रोटेस्ट में 51 लोगों की मौत, इनमें एक भारतीयनेपाल पुलिस के प्रवक्ता रमेश थापा के मुताबिक, प्रदर्शन में कुल 51 लोगों की मौत हुई है। इसमें 3 पुलिसवाले हैं। एक भारतीय नागरिक भी है। स्वास्थ्य एवं जनसंख्या मंत्रालय ने पुष्टि की है कि 8 सितंबर से हुए प्रदर्शनों में 30 लोगों की मौत गोली लगने से हुई, जबकि 21 लोग जलने, घायल होने और दूसरी चोटों से मारे गए। नई सरकार बनने के बाद भारत-नेपाल सीमा पर हालात सामान्यनेपाल में नई सरकार बनने के साथ ही भारत-नेपाल सीमा पर हालात सामान्य होने लगे हैं। यूपी के बहराइच में रुपईडीहा बॉर्डर पर कारों, बाइक, पैदल यात्रियों और ट्रकों का आना-जाना फिर से शुरू हो गया। हालांकि आम लोगों की आवाजाही अभी कम ही है। सशस्त्र सीमा बल की 42वीं बटालियन के कमांडेंट गंगा सिंह उदावत ने बताया कि हालात सामान्य होने की वजह से हमने आज किसी को नहीं रोका। आमतौर पर करीब 50 लोग लोग हर दिन रुपईडीहा सीमा पार करते हैं। 13 सितंबर को करीब 20 हजार लोगों ने ही बॉर्डर पार किया। पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली पर FIRनेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के खिलाफ राजधानी काठमांडू में FIR दर्ज की गई है। ओली पर आरोप है कि 8 सितंबर को आंदोलन शुरू हुआ, तब उन्होंने पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर हमले और ज्यादती का आदेश दिया था। ओली ने भारी दबाव के बीच 9 सितंबर को पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से ही वे आर्मी की सुरक्षा में हैं। घायलों से मिलने पहुंची सुशीला कार्कीनेपाल की अंतरिम पीएम सुशीला कार्की घायल आंदोलनकारियों से मिलने काठमांडू के हॉस्पिटल पहुंची। उन्हें 5 मार्च, 2026 तक संसदीय चुनाव कराने की जिम्मेदारी दी गई है। उधर, 6 दिनों की हिंसा के बाद काठमांडू के कई इलाकों से कर्फ्यू हटा दिया गया है। 6 जगहों पर अब भी कर्फ्यू जारी है। यहां 5 से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने, भूख हड़ताल, धरना, घेराव, जुलूस और सभा करने पर रोक लगा दी गई है। नोटिस में कहा गया है कि यह आदेश दो महीने तक लागू रहेगा। ..................... नेपाल से ये ग्राउंड रिपोर्ट भी पढ़िए... पूर्व PM-वित्त मंत्री को पीटा, संसद-सुप्रीम कोर्ट जलाए, लोग बोले- हमारी सरकार करप्ट गैंग नेपाल की संसद, सुप्रीम कोर्ट, पॉलिटिकल पार्टियों के ऑफिस, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री-मंत्रियों के घर और सबसे खास काठमांडू का सिंह दरबार, सब एक दिन में जल गया। पूरे काठमांडू के आसमान में काला धुआं दिख रहा है। पूर्व PM झालानाथ खनाल की पत्नी को जिंदा जला दिया गया। 20 से 25 साल के लड़के-लड़कियां सरकार के खिलाफ सड़कों पर हैं। इनका कहना है कि हमारी सरकार करप्ट है। पढ़िए पूरी खबर...
लालू यादव को पहली बार मुख्यमंत्री बने ठीक 1 साल 11 महीने 2 दिन हुए थे। 12 फरवरी की तारीख थी और 1992 का साल। बिहार के गया जिले का बारा गांव। करीब 300 लोगों की आबादी वाले इस गांव में 50 घर थे। सबसे ज्यादा 40 घर भूमिहारों के। ज्यादातर जमीनें भी उन्हीं की थीं। रात 9.30 बजे का वक्त। ज्यादातर लोग खा-पीकर सो गए थे। अचानक धमाके हुआ। गाय-भैंस भागने लगीं। फिर दूसरा, तीसरा, चौथा... लगातार दर्जनों धमाके हुए। कुछ लोगों ने दरवाजा खोलकर देखा- तकरीबन 500 लोगों की भीड़ 'MCC जिंदाबाद, लाल सलाम जिंदाबाद', नारा लगाते हुए गांव की तरफ आ रही थी। MCC यानी माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर। ये माओवादियों का प्रतिबंधित संगठन है। लोग कुछ समझ पाते भीड़ गांव को घेर चुकी थी। हमलावरों के हाथों में बंदूक, कुल्हाड़ी, गड़ासा और केरोसिन तेल के डिब्बे थे। कुछ हमलावर पुलिस की वर्दी में भी थे। 40-45 साल का एक हट्टा-कट्टा शख्स इस भीड़ का कमांडर था। नाम किरानी यादव। सिर पर गमछा बांधते हुए किरानी बोला- ‘केवल मर्दों को मारना है। महिलाओं और बच्चों को नहीं। और हां अपनी जाति के लोगों को हाथ नहीं लगाना।’ भीड़ से आवाज आई- ‘पर अपने लोगों को पहचानेंगे कैसे?’ किरानी बोला- ‘सबको एक जगह ले जाकर मारना है, जाति पूछ-पूछकर। चलो अब शुरू हो जाओ।’ 'जो हमसे टकराएगा, चूर-चूर हो जाएगा' नारा लगाते हुए भीड़ गांव वालों पर टूट पड़ी। दरवाजे तोड़ने लगीं। हमलावर चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे- ‘दरवाजे नहीं टूट रहे तो बम से उड़ा दो। डाइनामाइट लगाकर दीवारें तोड़ दो। सब कुछ धुआं-धुआं कर दो।’ हमलावरों ने वैसा ही किया। कुछ ही देर में गांव धमाके से गूंज उठा। इसी बीच एक हमलावर भागते हुए आया। कहने लगा- ‘किरानी काका… %$#@#$ सब पता नहीं कहां (ढूक) छिप गया है। कोई मिलिए नहीं रहा है। फायरिंग चालू कर दें क्या।’ किरानी बोला- ‘अरे नहीं, ऐसा नहीं करना। अपने लोग भी मारे जाएंगे। कितनी बार कहूं कि चुन-चुनकर मारना है।' फिर थोड़ा रुककर बोला- 'एक काम करो आग लगा दो, @#$%@ खुद ही भागने लगेंगे।’ हमलावरों ने केरोसिन तेल छिड़कर घरों में आग लगा दी। जो लोग अंदर छिपे थे, निकलकर भागने लगे। पुरुष, महिलाएं, बच्चे सब। एक हमलावर चिल्लाया- ‘अरे भागो मत, वर्ना गोली मार देंगे। हम तुम्हें मारने नहीं आए हैं। बस एक आदमी का पता बता दो।’ किरानी यादव ने घूम-घूमकर मेगा फोन में बोलना शुरू किया- ‘हमें सिर्फ रामाधार सिंह और हरिद्वार सिंह से मतलब है। सुन लो, गांव वालों… दोनों को हमारे हवाले कर दो। हम किसी को मारेंगे नहीं।’ रामाधार सिंह, भूमिहारों की निजी सेना ‘सवर्ण लिबरेशन फ्रंट’ यानी SLF का कमांडर था। इलाके में 'डायमंड' नाम से मशहूर था। हरिद्वार उसका सबसे करीबी साथी था। गांव वाले कहने लगे- ‘काका हमें नहीं पता रामाधार कहां है। वो तो बहुत दिन से गांव भी नहीं आया।’ हवा में फायरिंग करते हुए एक हमलावर बोला- ‘%$#@#$ सब झूठ बोल रहे हैं। तुम लोग रामाधार को छुपाकर रखे हो।’ पुलिस की वर्दी पहना एक नौजवान बोला- ‘अरे रस्सी लाओ, हाथ बांध दो हर@#$ के। ले चलो नहर के पास।’ हमलावरों ने करीब 100 लोगों के हाथ बांध दिए। फिर गांव के बाहर नहर के पास ले गए। पीछे-पीछे महिलाएं भी दौड़ पड़ीं। कहने लगीं- ‘हमारे बेटे को छोड़ दो, भइया को छोड़ दो, पति को छोड़ दो।’ गुस्से में हमलावर बोला- ‘हमें सिर्फ रामाधार और हरिद्वार से मतलब है। हम उनकी पहचान करके बाकी लोगों को छोड़ देंगे। तुम सब भागो यहां से।’ 20-25 हमलावरों ने धक्के मारते हुए महिलाओं को भगा दिया। कुछ ने महिलाओं की इज्जत लूटने की भी कोशिश की। कपड़े फाड़ डाले। अब हमलावरों ने सारे मर्दों को लाइन में खड़ा किया। सबके हाथ बंधे थे। किरानी यादव एक-एक करके सबके पास गया। टॉर्च जलाकर चेहरा देखा। फिर जोर से चिल्लाया- ‘सच, सच बता दो रामाधार कहां है, वर्ना सबको उड़ा दूंगा।’ गांव के लोगों ने एक सुर में बोला- ‘हम नहीं जानते काका।’ चीखते हुए किरानी बोला- ‘तुम लोगों में से कौन-कौन भूमिहार नहीं है?’ बुधन सिंह, सतीष सिंह और बुंदा सिंह नाम के तीन लोग बोले- ‘हम ब्राह्मण हैं।’ हमलावरों ने उन्हें छोड़ दिया। असल में ये तीनों भूमिहार थे। एक और आदमी ब्राह्मण था, उसे भी हमलावरों छोड़ दिया। दो दलित थे, वे भी बच गए। सुरेश सिंह नाम का एक शख्स बोला- ‘काका…मैं भूमिहार हूं, लेकिन MCC से जुड़ा हूं। कामरेड हूं। आप लोगों वाली ही विचारधारा मेरी भी है। मुझे तो जाने दो।’ ठहाके लगाते हुए हमलावर बोला- ‘भूमिहार और MCC… पागल समझे हो क्या हमें। इसे बांधकर रखो, छोड़ना नहीं।’ अब रात के 10.30 बज चुके थे। गहरी सांस लेते हुए किरानी बोला- ‘एक चिलम जलाकर ला तो। शरीर में गर्मी नहीं आ रही।’ एक लड़के ने उसे चिलम जलाकर दे दी। लंबा कश लेते हुए किरानी बोला- ‘सुनो…सब %$#@# का गला काट दो। कोई तो रामाधार होगा। और नहीं भी होगा तो कोई बात नहीं। भूमिहार बचने नहीं चाहिए।’ 30-40 हमलावरों ने कुल्हाडी़ और गड़ासा लेकर लाइन से लोगों का गला रेतना शुरू किया। एक की गर्दन कटी तो दूसरा कांप गया, दूसरे की कटी तो तीसरा चीख उठा। बेटे के सामने पिता और पिता के सामने बेटे का गला काट डाला। जिनका गला नहीं कटा, उन्हें गोली मार दी। पूरा गांव चीखों से दहल गया। महिलाएं-बच्चे बिलखने लगे। इसी बीच अंधेरे का फायदा उठाकर कुछ लोगों ने खेतों की तरफ भागने की कोशिश की। हमलावरों ने उन पर गोलियां चला दीं। 15-20 लोग तो जैसे-तैसे भाग निकले, लेकिन चार लोगों को गोली लग गई। किरानी उन चारों के नजदीक गया और छाती में बंदूक सटाकर गोली मार दी। फिर गड़ासा उठाकर उनका गला रेत दिया। इसी बीच लाइन में खड़ा एक आदमी चीख उठा- ‘काका मैं तो यादव हूं। आपके ही जाति का। मुझे तो जाने दो। दही लेकर आया था इनके घर।’ एक हमलावर ने बंदूक की बट से उसकी गर्दन पर जोर से वार किया। वह गिर पड़ा। उसका कुर्ता फाड़ा और देखा कि उसने जनेऊ पहना है या नहीं। जब जनेऊ नहीं दिखा, तो उसे उठाया और गाली देते हुए बोला- ‘जल्द भाग जा #@$%%$#। फिर कभी इन भूमिहारों यहां नहीं आना।’ वह उठा और सरपट गांव की तरफ भाग गया, लेकिन ये आदमी यादव नहीं था। वो इसी गांव का भूमिहार था। आधे घंटे के भीतर हमलावरों ने दर्जनों लोगों का गला रेत दिया। फिर हमलावरों ने एक-एक लाश को उलट पलटकर देखा। जिस लाश में जरा भी हरकत दिखी, उसे पहले गोली मारी और फिर कुल्हाड़ी से काट डाला। अब तक रात के 11.30 बज चुके थे। तीन-चार किलोमीटर की दूरी पर कुछ पुलिस वाले पेट्रोलिंग कर रहे थे। उन लोगों ने देखा कि पास के एक गांव में आग लगी है। ऊंची-ऊंची लपटें दिख रही। पुलिस फौरन उस तरफ चल पड़ी, लेकिन कुछ दूर बाद ही पता चला कि रास्ता ब्लॉक है। गड्ढे खोद दिए गए हैं। माओवादियों ने राह में पेड़ काटकर गिरा दिया था। रास्ते में कई जगह रुक रुक कर धमाके भी हो रहे थे। पुलिस आगे नहीं बढ़ पाई। इसी बीच गया के एसपी को वायरलेस पर मैसेज मिला- ‘साहब… टेकारी प्रखंड के बारा गांव में नक्सली हमला हो गया है। घरों आग लगा दी है। नक्सली फायरिंग कर रहे हैं। फौरन पुलिस भेजिए।’ एसपी सुनील कुमार फौरन 20-25 पुलिस वालों को लेकर बारा गांव के लिए निकल गए। थोड़ी देर बाद गांव के मुहाने पर ही उनकी नक्सलियों से झड़प हो गई। दोनों तरफ से कुछ देर तक लगातार फायरिंग होती रही। चार-पांच पुलिस वालों को गोली भी लग गई। अल सुबह 3 बजे पुलिस गांव में पहुंची। गांव में कोहराम मचा हुआ था। लोग बदहवास थे। घर के घर जल रहे थे। पुलिस थोड़ा आगे बढ़ी। टॉर्च जलाकर देखा तो नहर के पास कई अधकटी लाशें बिखरी पड़ी थीं। खेतों में हर जगह खून ही खून दिख रहा था। पुलिस को वहां लाल-पीले कई पर्चे मिले। जिस पर लिखा था- ‘MCC जिंदाबाद। अगर जमींदारों ने हमारे कैडर के लोगों के खिलाफ अत्याचार बंद नहीं किया, तो यही अंजाम होगा। और ज्यादा हमले होंगे। लाल सलाम जिंदाबाद।’ पुलिस ने एक-एक करके लाशों को हटाना शुरू किया। 10-12 लोग जिंदा मिले। गर्दन और शरीर के बाकी हिस्सों में जख्म के बाद भी उनकी सांसें चल रही थीं। एसपी सुनील कुमार ने पुलिस वालों से कहा- ‘फौरन थाने से गाड़ी बुलाओ। इन्हें अस्पताल ले जाओ।’ अब तक सुबह के 5 बज गए थे। अंधेरा छंट चुका था। गया के साथ-साथ औरंगाबाद और जहानाबाद से भी पुलिस की टीम गांव पहुंच चुकी थी। एसपी के साथ-साथ मगध रेंज के डीआईजी भी पहुंच गए थे। जब लाशें गिनी गईं, तो कुल 35 लोग मारे गए थे। जवान से लेकर बुजुर्ग तक सभी के सभी भूमिहार थे। भूमिहार यानी सवर्ण। आरोप लगा माओवादी संगठन MCC पर। ये 23 दिसंबर 1991 को गया जिले के बरसिम्हा गांव में हुई 11 दलितों की हत्या का बदला था। कहा जाता है कि दलितों की हत्या सवर्ण लिब्रेशन फ्रंट यानी SLF के लोगों ने की थी। बारा नरसंहार के वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री। बिहार में जनता दल की सरकार थी और मुख्यमंत्री लालू यादव। लालू को सत्ता संभाले अभी दो साल भी नहीं गुजरे थे। तब तक बिहार में जाति के नाम पर सेनाएं बन चुकी थीं। भूमिहारों की ब्रह्मर्षि सेना, राजपूतों की कुंवर सेना, कुर्मियों की भूमि सेना और यादवों की लोरी सेना। राज्य में जातीय नरसंहार का दौर शुरू हो चुका था। लालू को देखकर भीड़ पत्थर मारने लगी, सीएम बोले- मैं भी सेफ नहीं, चोट लगी है मुझे सुबह होते-होते बारा गांव पुलिस छावनी में बदल गया था। एयरलिफ्ट करके दिल्ली से पैरामिलिट्री के जवान बुलाए जा रहे थे। दोपहर में मुख्यमंत्री लालू यादव बारा पहुंचे। उनके साथ डीजीपी एके चौधरी भी थे। अब भी कई घरों में आग जल रही थी। सीएम ने फौरन फायर ब्रिगेड की गाड़ियां बुलाने को कहा। लालू आगे बढ़े, नरसंहार वाली जगह जाना चाहते थे कि भीड़ हिंसक हो गई। मुर्दाबाद, वापस जाओ के नारे लगाने लगी। महिलाओं ने तो लालू को मारने के लिए लाठी-डंडे उठा लिए। लोग पत्थर फेंकने लगे। बड़ी मुश्किल से उनके बॉडीगार्ड्स ने संभाला। काफी देर तक लालू और पुलिस अधिकारी गांव वालों को समझाते रहे, लेकिन भीड़ उन्हें सुनने को तैयार ही नहीं थी। गांव वालों को लगता था कि लालू अपनी जाति के लोगों को बचा रहे हैं। लालू ने गांव के बाहर जाकर एलान किया- ‘जो लोग मारे गए हैं, उनके परिवार को 1-1 लाख रुपए और एक शख्स को सरकारी नौकरी दी जाएगी।’ इसके बाद लालू पटना लौट गए। पटना पहुंचते ही लालू ने पत्रकारों से कहा- ‘मैं भी सेफ नहीं हूं। गांव के लोग मुझे पत्थर मार रहे थे। मुझे चोट भी लगी है।’ नरसंहार को लेकर BJP और कांग्रेस के कई नेता लालू का इस्तीफा मांग रहे थे। जगन्नाथ मिश्रा और पूर्व सीएम भागवत झा आजाद ने सरकार और प्रशासन पर आरोप लगाया- ‘नरसंहार से दो दिन पहले पुलिस गांव जाकर सभी लाइसेंसी और देसी हथियार जब्त कर ली थी। गांव के नजदीक ही पुलिस चौकी थी, उसे भी नरसंहार के पहले हटा दिया। यह सब कुछ साजिश के तहत किया गया।’ हालांकि, प्रशासन इन आरोपों को खारिज करते रहा। पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा ने तो अपनी ही पार्टी के नेता सीताराम केसरी को भी लपेट दिया। उन्होंने कहा कि केसरी ने बरसिम्हा में भाषण देकर लोगों को उकसाया था। नरसंहार के 8 दिन बाद यानी 20 फरवरी को केंद्रीय गृहमंत्री एसबी चह्वाण और कांग्रेस नेता सीताराम केसरी बारा गांव पहुंचे। गांव के बाहर ही भीड़ ने उन्हें घेर लिया। नारा लगाने लगे- ‘सीताराम केसरी लालू से मिला हुआ है। सीताराम केसरी वापस जाओ। लालू को बर्खास्त करो।’ गृहमंत्री ने समझाने की कोशिश की, पर गांव वाले कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। आखिरकार दोनों को लौटना पड़ा। उसी दिन लालू ने पीएम पीवी नरसिम्हा राव से सीबीआई जांच की मांग कर दी, लेकिन केंद्र सरकार ने इजाजत नहीं दी। माओवादी संगठन ने भूमिहारों को ही चुन चुनकर क्यों मारा… इसकी बुनियाद में एक और नरसंहार की कहानी है… सीनियर जर्नलिस्ट कृष्णा चैतन्य इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में लिखते हैं- ‘जमींदारों और मजदूरों के बीच संघर्ष बढ़ता जा रहा था। 80 और 90 के दशक की शुरुआत में मंदिर आंदोलन और जातिगत आरक्षण का मुद्दा भी गरमाया हुआ था। बिहार में पिछड़े तबके के लालू यादव सीएम बने थे। सवर्णों को लगने लगा कि जल्द ही सत्ता से वे बेदखल कर दिए जाएंगे। तब महेंद्र प्रसाद सिंह राज्यसभा सांसद थे। भूमिहार जाति से थे। दबंग छवि थी। लोग उन्हें किंग महेंद्र कहते थे। उन्होंने भूमिहारों की निजी सेना सवर्ण लिब्रेशन फ्रंट यानी SLF को सपोर्ट करना शुरू कर दिया। बहुत जल्द SLF के पास अच्छी खासी रकम जमा हो गई। गया और जहानाबाद रीजन में उसका दबदबा हो गया। रामाधीर सिंह SLF का कमांडर था। वह खुले तौर पर कहता था कि उसने 100 नक्सलियों की हत्या की है। वह अपने समर्थकों से कहता था- ‘मेरा इतिहास मजदूरों की चिता पर लिखा जाएगा।’ सितंबर 1991 की बात है। जहानाबाद जिले के सावनबिगहा में 6 दलित मजदूरों की हत्या कर दी गई। आरोप रामाधार सिंह पर लगा। पुलिस की चार्जशीट में भी रामाधार सिंह का नाम था, लेकिन वह गिरफ्तार नहीं हुआ। इसको लेकर लेफ्ट संगठनों ने बवाल कर दिया। जहानाबाद में जगह-जगह प्रोटेस्ट हुए। इसके बाद SLF ने जहानाबाद के बजाय गया में फोकस करना शुरू कर दिया। अक्टूबर 1991 MCC के 9 लोग मारे गए। बदले में MCC ने भी रामाधार सिंह के 3 लोगों की हत्या कर दी। तब रामाधार सिंह ने नारा दिया- ‘एक के बदले 3 को मारेंगे।’ ठीक दो महीने बाद। बारा के पास ही बरसिम्हा में 11 दलितों की हत्या कर दी गई। आरोप भूमिहारों के संगठन SLF पर लगा। 8 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई, लेकिन पुलिस ने किसी को गिरफ्तार नहीं किया। 15 जनवरी 1992, MCC के लोग गया में प्रदर्शन कर रहे थे। इसी बीच रामाधार सिंह के एक आदमी हरिद्वार सिंह ने उन पर फायरिंग कर दी। इससे दोनों पक्षों में झड़प हो गई। MCC वालों की संख्या ज्यादा थी। उन्हें लगा कि वे SLF के लोगों को मार देंगे। पर अचानक हरिद्वार सिंह की तरफ से सैकड़ों लोग आग ए। MCC वालों को भागना पड़ा। MCC वालों ने इसके लिए बारा गांव के भूमिहारों को जिम्मेदार माना। सुरेंद्र यादव तब बेलागंज से जनता दल के विधायक थे। गया में उनका दबदबा था। लोग डरते थे। गया के डीएम, एसपी सुनील कुमार और मगध रेंज के डीआईजी बलबीर चंद लगातार सुरेंद्र यादव पर दबाव बना रहे थे। सुरेंद्र परेशान थे। वे कैसे भी करके इन अधिकारियों का तबादला करवाना चाहते थे। CM लालू यादव का फरमान था कि जिस एरिया में नरसंहार होगा, वहां के डीएम और एसपी हटा दिए जाएंगे। सुरेंद्र यादव ने इसका फायदा उठाने की कोशिश की। उसे लगा कि यहां नरसंहार हो गया, तो उसे इन अधिकारियों से छुटकारा मिल जाएगा। एससीसी में सुरेंद्र यादव की अच्छी खासी पैठ थी। उसने बारा गांव के पास के ही एक गांव में बैठक की। और बोला- ‘भूमिहारों ने हमारे गरीब मजदूरों की महिलाओं को अपने खेतों में काम पर लगा रखा है। जब तक हम अपने खेतों में उनके घरों की महिलाओं को काम पर नहीं लगाते, बदला पूरा नहीं होगा।’ इसकी रिकॉर्डिंग का ऑडियो टेप करके बरसिम्हा और आसपास के गांवों में सुनाया गया। सुरेंद्र, MCC के लोगों को समझा रहा था- ‘जब तक यहां के अधिकारी नहीं बदलेंगे, तब तक बरसिम्हा नरसंहार के दोषियों को सजा नहीं मिलेगी। इन अधिकारियों को हटाने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा।’ 12 फरवरी 1992, MCC वालों को खबर मिली कि रामाधार सिंह और हरिद्वार सिंह बारा गांव में रुके हुए हैं। इसीलिए हमले के लिए उन लोगों ने 12 तारीख की रात चुनी। जबकि रामाधार 9 फरवरी से ही पटना में था। FIR में 136 से ज्यादा आरोपी, 4 दोषियों की फांसी को राष्ट्रपति ने उम्रकैद में बदला बारा नरसंहार मामले में टिकारी थाने में 36 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की गई। बाद में इसमें 100 से ज्यादा लोगों के नाम जोड़े गए। हालांकि ट्रायल सिर्फ 13 लोगों का हुआ। इनमें 9 दलित थे। बाकी आरोपियों को पुलिस पकड़ नहीं पाई। 8 जून 2001, गया की स्पेशल TADA अदालत ने 9 लोगों को दोषी करार दिया। 4 को फांसी और 5 को उम्रकैद की सजा सुनाई। अगले साल यानी 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने भी चारों दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखा। 2009 में कोर्ट ने 3 और दोषियों को फांसी की सजा सुनाई, लेकिन 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन की फांसी को आजीवन कारावास में बदल दिया। अब कुल चार दोषियों को ही फांसी की सजा रह गई थी। 2017 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन चारों दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। 2015 में नरसंहार का मुख्य आरोपी रामचंद्र यादव यानी किरानी यादव पकड़ा गया, जो 1992 से ही फरार चल रहा था। 2023 में गया की विशेष अदालत ने उसे दोषी करार दिया और उम्रकैद की सजा सुनाई। साथ ही 3 लाख रुपए का जुर्माना लगाया। कहा गया कि किरानी यादव ने अकेले 12 लोगों की हत्या की थी। बदले की आग में रणवीर सेना बनी, कांग्रेस के सवर्ण वोटर BJP में, दलित लालू की तरफ शिफ्ट हुए बारा नरसंहार के पहले 1987 में औरंगाबाद जिले में दलेलचक बघौरा नरसंहार हो चुका था। इसमें 54 राजपूतों की हत्या हुई थी। दोनों बड़े नरसंहारों को अंजाम MCC ने दिया था। MCC में ज्यादातर दलित और पिछड़ी जातियों के लोग थे। बदले की आग में जल रहे सवर्णों ने भी कई निजी सेनाएं बना लीं। बारा नरसंहार के बाद भूमिहारों और अगड़ी जाति के सवर्णों ने सितंबर 1994 में रणवीर सेना बनाई। भोजपुर के बेलाऊर गांव में इसकी नींव रखी गई। एक रिपोर्ट के मुताबिक दूसरे शहरों से नौकरी छोड़-छोड़कर सवर्ण लड़कों ने रणवीर सेना जॉइन कर ली। उनकी जाति के रिटायर्ड फौजियों ने ट्रेनिंग दी। इसके बाद बिहार में दोनों तरफ से जातीय नरसंहार का सिलसिला शुरू हो गया। बैकवर्ड बनाम फॉरवर्ड की पॉलिटिक्स, कांग्रेस के वोटर्स कम होते गए इन नरसंहारों के बाद बिहार की राजनीति में फॉरवर्ड बनाम बैकवर्ड में बदल गई। राम मंदिर आंदोलन और बाद में लालू का साथ देने की वजह से दशकों तक कांग्रेस के सपोर्टर रहे सवर्णों का एक बड़ा तबका BJP की तरफ शिफ्ट हो गया। बेलछी के बाद कांग्रेस को जो दलितों का समर्थन मिला था, वो भी लेफ्ट और लालू में बंट गया। लालू, नीतीश और रामविलास पासवान अपनी-अपनी पिछड़ी जातियों के नेता बन गए। चूंकि लालू ने BJP नेता लालकृष्ण आडवाणी को रथयात्रा के दौरान गिरफ्तार कर लिया था। इस वजह से मुस्लिमों का झुकाव भी कांग्रेस से हटकर लालू की तरफ शिफ्ट हो गया। इसका असर चुनावों में भी दिखा। 1996 के लोकसभा में जनता दल को 22 सीटें मिलीं और BJP ने 18 सीटें जीत ली। जबकि 1991 में BJP के पास सिर्फ 5 सांसद थे। 1998 में BJP के 20 सांसद हो गए और 1999 के चुनाव में 23 सांसद। जबकि कांग्रेस 4 सीटें ही जीत पाई। इसके बाद बिहार में कांग्रेस लगातार कमजोर पड़ती गई। 1990 के बाद कांग्रेस बिहार में कभी मुख्य विपक्षी पार्टी भी नहीं बन पाई। नोट : (यह सच्ची कहानी पुलिस चार्जशीट, कोर्ट जजमेंट, गांव वालों के बयान, अलग-अलग किताबें, अखबार और इंटरनेशल रिपोर्ट्स पर आधारित है। क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल करते हुए इसे कहानी के रूप में लिखा गया है।) अगले एपिसोड में पढ़िए कैसे रणवीर सेना ने बारा नरसंहार का बदला लिया… रेफरेंस :
UK Protest: कौन हैं टॉमी रॉबिंसन? उठाई ऐसी मांग, एक आवाज पर थम गया लंदन!
Tommy Robinson Rally in London:लंदन में टॉमी रॉबिन्सन की 'यूनाइट द किंगडम' रैली में 1,50,000 से ज्यादा लोग शामिल हुए. ये आयोजन ब्रिटेन के सबसे बड़े दक्षिणपंथी विरोध प्रदर्शनों में से एक बन गया, जिसमें पुलिस ने झड़पों, हमलों और जवाबी प्रदर्शनों की सूचना दी.
DNA : मदीना में 'धमाका'... मुस्लिम वर्ल्ड में महायुद्ध? अरब का एक धमाका 'खलीफा' का खेल बदल गया!
DNA:अब हम मुसलमानों के लिए दूसरे सबसे पवित्र स्थान मदीना में धमाके की खबर और इससे इस्लामिक वर्ल्ड की यूनिटी यानी मुस्लिम देशों की एकजुटता पर पड़ने वाले असर का विश्लेषण करेंगे.
Nepal Political crisis:नेपाल की राजधानी काठमांडू में सेना की ओर से लगाया गया कर्फ्यू ज्यादातर हिस्सों से हटा लिया गया है. लेकिन नेपाल की नवनियुक्त प्रधानमंत्री सुशीला कार्की का विरोध शुरू हो गया है. विरोध करने वाले गैर-सांसद को प्रधानमंत्री बनाने और संसद भंग करने के फैसले से नाराज हैं. इस बीच नेपाल के पूर्व उप प्रधानमंत्री रबी लामिछाने जेल चले गए.
DNA on Donald Trump and George Soros: भारत विरोधी जॉर्ज सोरोस पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बिगड़ गए हैं. सोरोस की कुछ बातें ट्रंप को बहुत चुभ गई हैं, जिसके बाद उन्होंने सोरोस की जांच का आदेश दे दिया है.
बंकर में भी भारत का क्रिकेट मैच देखते थे तालिबानी, हक्कानी बोले- इंडिया से भी जीत जाते अगर रोहित...
Anas Haqqani: दुनियाभर में क्रिकेट के दीवाने करोड़ों लोग हैं. इसमें तालिबान लीडर अनस हक्कानी भी है, जिन्हें लोग बंदूक और गोलियों के लिए जानते हैं लेकिन क्रिकेट में उनकी काफी ज्यादा दिलचस्पी है, आलम ऐसा है कि एक जमाने में वो बंकर में छिपकर क्रिकेट देखते थे.
चीन : राष्ट्रीय उद्यान कानून सहित कई कानून पारित, शी चिनफिंग ने किए हस्ताक्षर
14वीं चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा (एनपीसी) की स्थायी समिति का 17वां सत्र 12 सितंबर की दोपहर को पेइचिंग स्थित जन बृहद भवन में सम्पन्न हुआ
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के बाद अब चीन पर भड़क गए हैं. उन्होंने कहा कि यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए सभी नाटो देशों को रूस से तेल खरीद तुरंत बंद कर देना चाहिए.
नेपाल को मिली पहली महिला प्रधानमंत्री
सुशीला कार्की ने नेपाल में प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली है. जेनजी कार्यकर्ताओं ने एक ऐप का इस्तेमाल कर उनके नाम पर सहमति बनाई
इस्राएल-फलस्तीनी विवाद: दो राष्ट्रों वाले समाधान के हक में यूएन
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक ऐसे प्रस्ताव का समर्थन किया है, जिसमें इस्राएल और फलस्तीन के बीच दो राष्ट्रों वाले समाधान की फिर से बात की गई है, लेकिन इसमें हमास की किसी भूमिका से इनकार किया गया है.
क्या जमाना आ गया! टीवी रिमोट लेने पर शख्स ने बूढ़ी मां को उतारा मौत के घाट, कोर्ट ने दी कड़ी सजा
Man killled Old Mother: 39 साल के सुरजीत सिंह ने टीवी रिमोट को लेकर हुए झगड़े के बाद अपनी 76 साल की मां की हत्या कर दी. इस अपराध के लिए कोर्ट ने सुरजीत को कड़ी सजा सुनाई है. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला...
अब पोलैंड बनेगा जंग का मैदान, रूस के खिलाफ लड़ाकू विमान भेजने लगे NATO देश
Russia News: रूस और यूक्रेन से जंग के बीच अब एक और देश युद्ध के मैदान में आने वाला है. उस देश को बचाने के लिए NATO के देश एक हो गए हैं और लड़ाकू विमान पोलैंड भेजने लगे हैं.
ट्रंप ने सोरोस के खिलाफ कार्रवाई के दिए संकेत, 'दंगों की फंडिंग' का लगाया आरोप
ट्रंप ने एक बार फिर अमेरिकी कारोबारी जॉर्ज सोरोस की गतिविधियों को संदेहास्पद माना है। दावा किया है कि यूएस में हो रहे विरोध प्रदर्शन को वो फंड मुहैया कराते हैं
'भूल गए क्या...'? लादेन तुम्हारी ही धरती पर मारा गया, UN में इजरायल ने पाकिस्तान को धोया
Israel on Pakistan: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में इजराइल ने पाकिस्तान पर एक बड़ा आरोप लगाया है. इजरायल ने कहा पाकिस्तान यह सच्चाई नहीं बदल सकता है कि अलकायदा सरगना ओसामा-बिन लादेन को उसकी जमीन पर पनाह मिली और वहीं पर उसका अंत हुआ.
नेपाल में अगले आम चुनावों की तारीख तय, सुशीला कार्की ने किया ऐलान
नेपाल की अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने पहली मंत्रिमंडल बैठक में संसद को भंग करने की सिफारिश की है। प्रधानमंत्री ने आगामी संसदीय चुनाव के लिए तारीख भी 05 मार्च 2026 तय कर दी है
'आपके योगदान ने देश के भविष्य को बदला...', नेपाली युवाओं के हीरो बालेन शाह का Gen Z को भावुक संदेश
Nepal Gen Z Protest: नेपाल में हिंसक प्रदर्शन के बाद अब नए प्रधानमंत्री की घोषणा हो चुकी है. पूर्व जस्टिस सुशीला कार्की ने अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली है. इस बीच काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने युवाओं को एक संदेश दिया है.
पाकिस्तान: इमरान खान का बड़ा आरोप, आसिम मुनीर उनके परिवार की महिलाओं को बना रहे निशाना
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने आरोप लगाया है कि सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर उनके परिवार की महिलाओं को निशाना बना रहे हैं। इसके साथ ही पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के संस्थापक और उनकी पत्नी बुशरा बीबी की कानूनी टीम ने संयुक्त राष्ट्र के स्पेशल रैपोर्टेयर ऑन टॉर्चर डॉ. ऐलिस जे. एडवर्ड्स से अपील की है कि इस दंपति के साथ हो रहे कथित दुर्व्यवहार को रोका जाए
2023 में मणिपुर हिंसा शुरू होने के बाद 865 दिन बाद पीएम मोदी मणिपुर जा रहे हैं। वह चुराचांदपुर में 8,500 करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन करेंगे। विपक्ष सवाल उठाता रहा है कि पीएम मोदी इतने लंबे समय तक चुप्पी क्यों साधे रहे और मणिपुर का दौरा क्यों नहीं किया। 10 तस्वीरों में देखिए मणिपुर के बदलते हालात और उनसे उठने वाले सवालों की पूरी कहानी… बैकग्राउंडरः हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद भड़की हिंसा मैतेई ट्राइब यूनियन पिछले एक दशक से मैतेई को आदिवासी दर्जा देने की मांग भी कर रही थी। इसी सिलसिले में उन्होंने मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 19 अप्रैल 2023 को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था। इस सिफारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है। इसके अलावा मणिपुर सरकार फॉरेस्ट लैंड सर्वे कर रही थी, जिसमें अवैध रूप से कब्जा जमाए लोगों को हटाया जा रहा था। 27 अप्रैल 2023: सीएम जिस जिम का उद्घाटन करने वाले थे, वहां आग लगाई 3 मई 2023: हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ मार्च, हिंसा की शुरुआत 04 से 14 मई 2023: शूट-एट-साइट के ऑर्डर, एक हफ्ते में 23,000 लोगों का पलायन 29 मई - 1 जून 2023: अमित शाह ने 4 दिन का मणिपुर दौरा किया 19 जुलाई 2023: कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने की घटना 10 अगस्त 2023: सदन में अविश्वास प्रस्ताव जनवरी 2024: मणिपुर में फिर भड़की हिंसा, राहुल गांधी ने दौरा किया नवंबर 2024: सुरक्षाबलों ने उग्रवादियों को मारा, महिलाओं-बच्चों की किडनैपिंग के बाद हत्या 31 दिसंबर 2024: बीरेन सिंह ने हिंसा के लिए माफी मांगी 9 फरवरी 2025: मणिपुर के सीएम ने इस्तीफा दिया 4 सितंबर 2025: केंद्र सरकार और कुकी संगठन में समझौता विधानसभा चुनाव से पहले मणिपुर गए थे मोदी फरवरी-मार्च 2022 मे मणिपुर में विधानसभा चुनाव हुए थे। इससे पहले 4 जनवरी को पीएम मोदी ने मणिपुर का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने 1,850 करोड़ रुपए की 13 विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और 2,950 करोड़ की 9 योजनाओं का शिलान्यास किया था। मोदी ने मणिपुर में कहा था: दिल्ली में पिछली सरकारों को चलाने वालों ने मणिपुर की उपेक्षा। एक समय था जब मणिपुर को अपने हाल पर छोड़ दिया गया था। मैं आपके दिलों का दर्द समझता था। इसलिए 2014 के बाद मैं पूरी भारत सरकार को आपके दरवाजे पर ले आया। फरवरी में मोदी फिर एक बार मणिपुर गए। उन्होंने इंफाल में चुनावी रेली की और कहा BJP की डबल इंजन सरकार ने मणिपुर में 25 सालों के लिए नींव रखी है। **** रिसर्च सहयोग: उत्कर्ष डेहरिया --------------- पीएम मोदी के मणिपुर दौरे से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए... मणिपुर में सरकार-कुकी के बीच समझौते से कौन खुश:मैतेई बोले- ये एकतरफा, PM मोदी आए तो क्या बदलेगा ‘कुकी के साथ SoO एग्रीमेंट साइन करने की वजह से घाटी में मैतेई लोगों के बीच बहुत नाराजगी है। मणिपुर हिंसा को करीब 2 साल 4 महीने बीत गए हैं, लेकिन PM मोदी ने अब जाकर आने का फैसला किया, जब सब कुछ बर्बाद हो गया।‘ पूरी खबर पढ़िए...
अपने देश वापस जाओ... ब्रिटेन में 2 लोगों ने किया सिख महिला के साथ दुष्कर्म, लोगों में रोष
ब्रिटेन के ओल्डबरी से नस्लीय भेदभाव की एक हैरान करने वाली घटना सामने आई है. जानकारी के मुताबिक, ओल्डबरी शहर में 2 लोगों ने मिलकर सिख महिला का रेप किया और मौके से फरार हो गए. आरोपियों ने दुष्कर्म के दौरान युवती पर नस्लीय टिप्पणी भी की और उसे अपने देश वापस जाने की धमकी दी.
बांग्लादेश की अवामी लीग ने यूनुस सरकार पर पार्टी नेताओं को जेलों में प्रताड़ित करने का गंभीर आरोप लगाया है। पार्टी ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, मानवाधिकार संगठनों और न्याय के सभी रक्षकों से पीड़ित परिवारों के साथ खड़े होने और पूरे बांग्लादेश में हिरासत में हुई इन मौतों की स्वतंत्र जांच की मांग की
न्यूयॉर्क : कतर के प्रधानमंत्री से मिलेंगे ट्रंप, इजरायली हमलों के कुछ ही दिनों बाद हो रही मुलाकात
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप न्यूयॉर्क में कतर के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल थानी से मिलेंगे। यह मुलाकात दोहा में इजरायली हवाई हमले के कुछ ही दिनों बाद हो रही है, जिसमें हमास के नेताओं को निशाना बनाया गया था। स्थानीय मीडिया ने इसकी जानकारी दी है
इराक : डोरा में इमाम शेख अब्दुल सत्तार की मस्जिद में की हत्या
इराक की राजदानी बगदाद के दक्षिणी डोरा जिले में स्थित एक मस्जिद के इमाम शेख अब्दुल सत्तार अल-कुरघुली की शुक्रवार को मस्जिद के अंदर हत्या कर दी गई
रूस : कामचटका में आया भीषण भूकंप, 7.4 रही तीव्रता, सुनामी की चेतावनी जारी
रूस के कामचटका क्षेत्र के पूर्वी तट के पास शनिवार को 7.4 तीव्रता का भीषण भूकंप आया, जिसके बाद सुनामी की चेतावनी जारी की गई
South Africa Court On Changing Surname: साउथ अफ्रीका के एक कोर्ट ने एतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि अब महिलाओं की तरह पुरुष भी शादी के बाद अपना सरनेम बदल सकते हैं.
नेपाल की पहली महिला अंतरिम प्रधानमंत्री बनीं सुशीला कार्की, पीएम मोदी ने दी शुभकामनाएं
नेपाल में 'जेन-जी' विरोध के कारण हुए तख्तापलट के बाद सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार की प्रधानमंत्री बनाया गया है
Earthquake: भूकंप आते ही चारो ओर अफरा-तफरी का माहौल हो गया. वहीं समुद्र में उठने वाली तेज लहरों को देखकर इस बात की भी आशंका जताई जा रही है कि कहीं भूकंप के बाद सुनामी का खतरा न हो. विशेषज्ञों के अनुसार, रिक्टर पैमाने पर 7 से अधिक तीव्रता का भूकंप इतना शक्तिशाली होता है कि इससे इमारतें ढह सकती हैं और बड़े पैमाने पर जन-धन की हानि हो सकती है.शनिवार (13 सितंबर) को रूस के कामचटका प्रायद्वीप के तट से एक शक्तिशाली 7.4 तीव्रता का भूकंप आया. इस भूकंप ने पूरे इलाके को झकझोर कर रख दिया. अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (यूएसजीएस) ने बताया, 'भूकंप का केंद्र क्षेत्रीय राजधानी पेट्रोपावलोवस्क-कामचत्स्की के पूर्व में 111 किमी दूर 39.5 किमी की गहराई पर था. यूएसजीएस ने शुरू में इसकी तीव्रता 7.5 मापी थी, बाद में इसे 7.4 कर दिया.'‘खतरनाक’ सुनामी की लहरें बनीं चिंता की वजहपैसिफिक सी के सेंटर में सुनामी की चेतावनी में कहा गया कि महाकेंद्र से 300 किमी के दायरे में रूस के तटवर्ती क्षेत्रों पर जाना बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है. अपनी वेबसाइट पर जारी अलर्ट में इसने कहा, 'भूकंप के निकट स्थित प्रशांत के कुछ हिस्सों के लिए सुनामी का खतरा मौजूद है. हालांकि... सभी उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर...हवाई के लिए कोई सुनामी खतरा नहीं है.' सोशल मीडिया के एक्स प्लेटफॉर्म पर अमेरिकी सुनामी चेतावनी प्रणाली ने कहा कि किसी भी अमेरिकी या कनाडाई तटवर्ती क्षेत्र के लिए सुनामी का कोई खतरा नहीं है. हालांकि,भूकंप के निकट रूसी तट पर सुनामी अगले एक घंटे के भीतर पहुंच सकती है.'दो महीने पहले भी आया था 8.8 तीव्रता का भूकंपरूस के सुदूर पूर्व में स्थित कामचटका, पैसिफिक 'रिंग ऑफ फायर' पर स्थित है और दुनिया के सबसे ज्यादा भूकंप आने वाले सक्रिय क्षेत्रों में से एक है. अभी महज दो महीने पहले ही जुलाई में भी कामचटका के तट से एक 8.8 रिक्टर स्केल की तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप आया था. इस भूकंप की वजह से प्रशांत महासागर में चार मीटर ऊंची सुनामी की लहरें उठने लगीं थीं. इन लहरों की वजह से जापान तक बड़े पैमाने पर लोगों के फंसे होने की जानकारी सामने आई जिन्हें बड़े पैमाने पर निकासी की समस्या आई. ये भूकंप साल 2011 में जापान के तट से आए उस खतरनाक भूकंप के बाद सबसे शक्तिशाली भूकंप था जिसमें लगभग 1500 लोगों की मौत हो गई थी.यह भी पढ़ेंःअब दूसरों को भी उकसा रहा अमेरिका! G7 और यूरोपीय यूनियन से कहा- भारत-चीन पर टैरिफ...
अब दूसरों को भी उकसा रहा अमेरिका! G7 और यूरोपीय यूनियन से कहा- भारत-चीन पर टैरिफ लगाओ
G7 और यूरोपीय यूनियन के देशों पर इस बात का दबाव अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारतीय आयातों पर अतिरिक्त 25% टैरिफ बढ़ाने के आदेश के बाद आया है. अब भारत पर कुल टैरिफ 50 प्रतिशत हो चुका है. नई दिल्ली पर रूस का सस्ता कच्चा तेल खरीदे जाने को लेकर दबाव बनाने के लिए अमेरिका अब एक के बाद एक करके नए प्रयास कर रहा है.
जिनेवा प्रदर्शनी में पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर जारी उत्पीड़न पर प्रकाश डाला गया
ग्लोबल ह्यूमन राइट्स डिफेंस (जीएचआरडी) द्वारा जिनेवा में ब्रोकन चेयर स्मारक के बगल में प्रतिष्ठित प्लेस डेस नेशंस में आयोजित एक प्रदर्शनी ने पाकिस्तान और बांग्लादेश में कमजोर अल्पसंख्यकों द्वारा सामना किए जा रहे उत्पीड़न और मानवाधिकारों के उल्लंघन पर प्रकाश डाला
दैनिक भास्कर की इलेक्शन सीरीज 'नरसंहार' के दूसरे एपिसोड में आज कहानी दलेलचक बघौरा नरसंहार की, जिसके बाद 40 साल बिहार में राज करने वाली कांग्रेस फिर कभी अपना सीएम नहीं बना सकी... 29 मई 1987 की एक रात। जगह- बिहार का औरंगाबाद जिला। वहीं औरंगाबाद जहां देश का इकलौता पश्चिम मुखी सूर्य मंदिर है। करीब 500 लोगों की भीड़ ‘एमसीसी जिंदाबाद’ नारा लगाते हुए बढ़ रही थी। हाथों में बंदूक, कुल्हाड़ी, गड़ासा और केरोसिन तेल के डिब्बे थे। थोड़ी देर बाद सभी एक जगह रुके। कुछ बात की। फिर आधे बघौरा गांव की तरफ चल पड़े और आधे दलेलचक की ओर। दोनों गांव एक किलोमीटर की दूरी पर हैं। यहां राजपूतों का दबदबा था। बघौरा के गया सिंह वन विभाग में हेड क्लर्क थे। गांव में इकलौता पक्का मकान उन्हीं का था। शौक से बनवाए थे। सिंहद्वार पर दूर से ही आंखें ठहर जाती थीं। रात करीब 8 बजे अचानक कुछ शोर सुनाई पड़ा। उन्होंने दरवाजा खोलकर देखा, तो सामने 200-300 लोगों की भीड़ खड़ी थी। गया सिंह ने हड़बड़ाकर दरवाजा बंद कर लिया। वे दो कदम भी नहीं बढ़े थे कि भीड़ ने धक्का देकर दरवाजा तोड़ दिया। सबसे पहले घर के मर्दों को घसीटकर बाहर निकाला और लाइन में खड़ा कर दिया। इस बीच दो लड़कों ने नजर बचाकर भागना चाहा, लेकिन हमलावरों ने गोली चला दी। दोनों वहीं गिर पड़े। हमलावर उनके नजदीक गया। सांसें अभी पूरी तरह टूटी नहीं थीं। उसने गड़ासा गर्दन पर दे मारी। फिर पसीना पोंछते हुए बोला- ‘अरे देख क्या रहे हो… जाओ इनकी औरतों को उठा लाओ।’ 20-25 हमलावर अंदर घुसे और महिलाओं-बच्चों को उठा-उठाकर बाहर पटकने लगे। सब चीख रहे थे- ‘हमें मत मारो। छोड़ दो। हम तुम्हारे पैर पड़ते हैं।’ एक हमलावर बोल पड़ा- ‘##$% बहुत गर्मी दिखाते हैं ये लोग। हमारी औरतों से मजदूरी कराते हैं। इनके सामने ही औरतों की इज्जत उतारो। तभी बदला पूरा होगा।’ हमलावर, महिलाओं और लड़कियों पर टूट पड़े। उनके कपड़े फाड़ दिए। बलात्कार करने लगे। कुछ देर बाद एक अधेड़ बोल पड़ा- ‘बहुत हो गया। अब सबको काट डालो।’ हमलावर, महिलाओं को घसीटते हुए बरामदे में ले गए। उनकी गर्दन तखत पर रखकर जोर से दबा दी। एक हमलावर ने कुल्हाड़ी उठाई और एक-एक करके पांच महिलाओं की गर्दन उतार दी। पूरे बरामदे में खून फैल गया। हमलावर बोला- ‘ठिकाने लगा दो सबको।’ 8-10 लोग फावड़ा लेकर घर के सामने ही गड्ढा खोदने लगे। कुछ ही देर में गड्ढा तैयार हो गया। हमलावरों ने महिलाओं की लाश गड्ढे में डालकर ऊपर से मिट्टी भर दिया। ‘अब इन #@$%* को बांधकर ले चलो बरगद के पास। गांव वालै भी तो देखें कि हमसे टकराने का अंजाम क्या होता है।’ ये सुनते ही हमलावरों ने गया सिंह और उनके परिवार के लोगों के हाथ-पैर बांध दिए। घसीटते हुए बरगद के पेड़ के पास ले गए। गांव की शुरुआत में ही बड़ा सा बरगद का पेड़ था। अब तक गांव में चीख-पुकार मच चुकी थी। हमलावर राजपूत परिवारों से चुन-चुनकर महिला, पुरुष और बच्चों को घसीटते हुए बरगद पेड़ के पास ला रहे थे। कई लोग छत से कूदकर खेतों की तरफ भाग रहे थे। हमलावर लगातार फायरिंग कर रहे थे। कुछ लोग तो मौके पर ही मारे गए। 40 साल का एक शख्स ट्रैक्टर लेकर घर लौट रहा था। हमलावरों को देखते ही चीख पड़ा- ‘अरे काका हम राजपूत नहीं हैं। हम तो इनके घर काम करते हैं। हम हरिजन हैं हरिजन।’ #$%@#$ झूठ बोल रहा… कहते हुए एक अधेड़ ने उसकी पीठ पर कुल्हाड़ी मार दी। दो हमलावरों ने उसे ट्रैक्टर की सीट से बांध दिया। फिर केरोसिन तेल का डिब्बा ट्रैक्टर पर उड़ेला और आग लगा दी। कुछ ही मिनटों में ड्राइवर तड़प-तड़प कर मर गया। इधर, बगल के गांव दलेलचक में कमला कुंवर कुछ घंटे पहले ही ससुराल से लौटी थीं। पिता भोज की तैयारी कर रहे थे। मेहमान आ चुके थे। अचानक कुत्ते भौंकने लगे। कमला अपनी बहन ललिता से बोली- ‘जाओ देखो तो बाहर कौन है?’ ललिता ने झांककर देखा सैकड़ों हथियारबंद गांव की तरफ बढ़ रहे थे। वो चीख उठी- ‘पापा, मम्मी सब भागो, नक्सली आ गए हैं।’ दोनों बहनें, उनके मम्मी-पापा और बाकी रिश्तेदार खेतों की तरफ भागने लगे। तभी बगल के लोगों ने रोक लिया। कहने लगे- ‘आप लोगों को कोई खतरा नहीं है। घर में ही छिप जाओ।’ कुछ ही मिनटों में भीड़ ने गांव में धावा बोल दिया। राजपूतों के घरों में घुस गए। मारकाट मचाने लगे। कमला और ललिता घर के पीछे भूसे के ढेर में छिप गईं। बाकी परिवार और रिश्तेदार पकड़े गए। दो साल का बच्चा पलंग पर सो रहा था। वो भीड़ देखकर रोने लगा। हमलावर ने चीखते हुए कहा- ‘इस कमीने को सबसे पहले मारो।’ इतना सुनते ही एक अधेड़ ने बच्चे को उठाकर चौखट पर पटक दिया। उसका सिर फट गया। हमलावर ने बाल पकड़कर बच्चे को उठा लिया। दूसरे ने बच्चे की गर्दन पर कुल्हाड़ी दे मारी। बच्चे का सिर हमलावर के हाथ में रह गया और बॉडी नीचे गिर गई। एक ने औरतों की तरफ इशारा करते हुए बोला- ‘इनकी इज्जत लूट लो और काम तमाम कर दो।’ हमलावरों ने वैसा ही किया। बलात्कार करके महिलाओं और लड़कियों की गर्दन उतार दी। कमला के पिता से यह देखा नहीं गया। वे गाली देते हुए हमलावरों पर झपटे, पर उन लोगों ने दबोच लिया। दो हमलावरों ने उनका पैर पकड़ा और दो ने हाथ। 20 साल के एक लड़के ने उनके पेट में कुल्हाड़ी मार दी। वो चीख उठे। तभी हमलावर ने उनके मुंह में बंदूक का बट ठूंस दिया। चंद मिनटों में वे तड़प-तड़पकर शांत हो गए। अब एक हमलावर बोला- ‘टाइम खराब मत करो। सारे मर्दों को बांध दो और ले चलो बरगद के पेड़ के पास।’ हमलावरों ने रस्सी से सभी मर्दों के हाथ पैर बांध दिए और घसीटते हुए उसी बरगद के पेड़ के पास ले जाने लगे। दलेलचक के बाकी घरों में भी ऐसे ही कोहराम मचा था। हमलावरों ने महिलाएं और लड़कियों को बलात्कार के बाद घर में ही मार दिया। जबकि मर्दों के हाथ-पैर बांधकर बरगद के पेड़ के पास बैठा दिया। दलेलचक और बघौरा दोनों गांव से करीब 40-50 लोगों को पकड़कर हमलावरों ने यहां रखा था। कुछ ही देर में हमलावरों ने सबको बरगद के पेड़ से बांध दिया। ये लोग जोर जोर से चीख रहे थे- बचाओ, बचाओ। पर कोई सुनने वाला नहीं था। गांव के गैर राजपूतों ने अपने-अपने दरवाजे बंद कर लिए थे। अब तक रात के 9 बज चुके थे। हमलावरों के मुखिया ने कहा- ‘इन @#$%$#@ के टुकड़े-टुकड़े कर दो।’ भीड़ कुल्हाड़ी और गड़ासा लेकर टूट पड़ी। कुछ ही मिनटों में बरगद के पेड़ से दर्जनों अधकटी लाशें लटक गईं। तभी हवा में फायरिंग करते हुए एक हमलावर बोला- ‘जाओ इनके घरों में आग लगा दो। जो छुपे होंगे वो भी जल मरेंगे।’ भीड़ ने चुन-चुनकर दोनों गांवों के राजपूतों के घरों में आग लगा दी। फिर ‘एमसीसी जिंदाबाद। छेछानी का बदला ले लिया। बदला पूरा हुआ।’ का नारा लगाते हुए हमलावर निकल गए। गांव से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर मदनपुर थाना है। भीड़ की धमक, लोगों की चीखें और गोलियों की गूंज थाने तक पहुंच चुकी थीं, पर पुलिस निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। करीब 2 घंटे बाद पांच पुलिस वाले गांव के लिए निकले। बगल के दूसरे थाने से पुलिस की एक और टीम दलेलचक पहुंची। कुछ ही देर में औरंगाबाद के एसपी सतीष झा भी पहुंच गए। दोनों गांवों में घरों से अब भी आग की ऊंची-ऊंची लपटें दिख रही थीं। एसपी सतीश झा और बाकी पुलिस वाले आग बुझाने में जुट गए। वे घर-घर जाकर पानी मांग रहे थे, लेकिन किसी ने दरवाजा नहीं खोला। इसी बीच एसपी को कुछ लोगों के कराहने की आवाज सुनाई पड़ी। पुलिस वालों को लेकर वे उस तरफ दौड़े। टॉर्च जलाई। देखा 4 साल का एक बच्चा बिस्तर लपेटे एक कोने में सिसक रहा था। थोड़ी दूर पर 20-25 साल का एक लड़का भूसे के ढेर में छिपा हुआ था। उन्होंने दोनों को बाहर निकाला। इधर, पटना तक नरसंहार की खबर पहुंच गई थी। रात में ही डीजीपी शशिभूषण सहाय और आईजी ललित विजय सिंह, दलेचचक बघौरा के लिए निकल गए, पर गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क नहीं थी। उन्हें पहुंचने में काफी देर हो गई। इधर, पूरी रात पुलिस आग बुझाने में जुटी रही, पर आग बुझने का नाम नहीं ले रही थी। अब सुबह के 5 बज गए थे। एक-एक करके लाशें गिनी जाने लगीं। बरगद के पेड़ के पास 29 कटी फटी लाशें मिलीं। सिर जमीन पर बिखरे पड़े थे और बाकी हिस्सा बरगद के पेड़ से बंधा हुआ था। पूरी जमीन खून से सन गई थी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई बूचड़खाना हो। पुलिस ने दोनों गांवों में एक-एक घर की तलाशी ली। 26 लाशें मिलीं। इनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे। कुल 55 लोग मारे गए थे। 54 राजपूत और एक हरिजन। 7 परिवार ऐसे थे, जिनके घरों में कोई जिंदा नहीं बचा था। आजादी के बाद ये बिहार का सबसे बड़ा जातीय नरसंहार था। आरोप माओवादी संगठन माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर यानी एमसीसी पर लगा। तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री। बिहार में भी सरकार कांग्रेस की थी और बिंदेश्वरी दुबे मुख्यमंत्री। एक ही चिता पर 80 साल के बुजुर्ग और 6 महीने के बच्चे का अंतिम संस्कार अगले दिन यानी 30 मई को सरकार ने नरसंहार में मारे गए लोगों का सामूहिक अंतिम संस्कार करवाया। कई लाशों की पहचान नहीं हो सकी थी। कई मृतकों के घर से कोई आया नहीं। शायद उनके परिवार में कोई बचा ही नहीं था। एक-एक चिता पर 5-7 लाशें रखी गई थीं। एक ही चिता पर 80 साल के बुजुर्ग और 6 महीने के बच्चे का अंतिम संस्कार किया गया। ये सीन देखकर वहां मौजूद लोग और पुलिस वालों की आंखें भर आई थीं। लोग जलती चिताओं से राख उठाकर तिलक लगा रहे थे। शायद ये तिलक बदले का संकेत था। पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को धक्का मारने लगी भीड़, पत्रकार ने बचाया 31 मई की सुबह पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर दिल्ली से सीधे दलेलचक बघौरा पहुंचे। किताब ‘द जननायक कर्पूरी ठाकुर’ में उपसभापति हरिवंश नारायण उस किस्से को याद करते हैं- ‘मैं एक मैगजीन रिपोर्टर था। गया से औरंगाबाद होते हुए सुबह 6 बजे नरसंहार वाली जगह पहुंचा। मैंने देखा कि एक कोने में कर्पूरी ठाकुर चुपचाप खड़े थे।’ उसी किताब में पटना के वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार कहते हैं- ‘जब भीड़ कर्पूरी को धकियाने लगी तो मुझे लगा कि उन्हें अपमानित किया जा सकता है। हमारी आंखें मिलीं और वे मेरी स्कूटर पर पीछे बैठ गए। मैं उन्हें औरंगाबाद मेन रोड तक ले गया। वहां से वे अपनी गाड़ी में बैठकर पटना चले गए।’ जलते घर, वीरान गांव, नरसंहार का मंजर देख रो पड़े मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे 31 मई को ही मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे भी दलेलचक बघौरा पहुंचे। अब भी कई घरों में आग बुझी नहीं थी। फायर ब्रिगेड की गाड़ियां मंगाई गईं। फिर आग बुझाई गई। मुख्यमंत्री घर-घर जाकर देख रहे थे, पर गांव के ज्यादातर लोग भाग चुके थे। अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक एक बुजुर्ग, मुख्यमंत्री को देखकर बिलखने लगा। उसकी गोद में दो छोटे-छोटे बच्चे थे। कहने लगा- ‘साहब ये दोनों मेरे पोते-पोती हैं। इनके मां-बाप को मार डाला है। परिवार में बस ये ही बचे हैं। मैं अकेला इनकी देखभाल कैसे करूंगा।’ यह देखकर मुख्यमंत्री भी रोने लगे। कुछ देर बाद वे पटना लौटे और अगले दिन ऐलान किया कि एमसीसी पर बैन लगाया जाएगा। इस नरसंहार में विधायक रामलखन सिंह यादव पर भी आरोप लगा था। कहा गया कि 30 अप्रैल को वे औरंगाबाद के ही एक गांव छोटकी छेछानी में यादव महासभा के लिए गए थे। विपक्ष का दावा था कि मुख्यमंत्री भी यादव महासभा में शामिल हुए थे। एमसीसी ने इस नरसंहार को छोटकी छेछानी का ही बदला बताया था। इसलिए विपक्ष सरकार पर और ज्यादा हमलावर था। 5 जून को जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर, राम विलास पासवान और लोकदल के अजित सिंह गांव पहुंच गए। इन सब घटनाओं से सीएम पर लगातार इस्तीफे का दबाव बढ़ रहा था। जनता पार्टी और बाकी विपक्षी दल सरकार बर्खास्त करने की मांग कर रहे थे। आखिर छोटकी छेछानी में क्या हुआ था, जिसका बदला माओवादियों ने दलेलचक बघौरा में लिया… दरअसल, बघौरा गांव के बगल से कोयल नहर निकलने वाली थीं। इससे वहां की जमीनों की कीमतें अचानक बढ़ गई थीं। इन जमीनों पर राजपूतों का दावा था। जबकि यादव अपना कब्जा चाहते थे। नक्सली संगठन एमसीसी यादवों की मदद कर रहा था। दलेलचक गांव में बोध गया के महंत की सैकड़ों एकड़ जमीनें थीं। एमसीसी वालों ने उनकी कुछ जमीनों पर कब्जा कर लिया था और बटाईदारों के जरिए खेती करवा रहे थे। गांव के ही एक दबंग राजपूत रामनरेश सिंह ने महंत से 46 एकड़ जमीनें खरीद लीं और बटाईदारों को भगा दिया। कहा जाता है कि रामनरेश केंद्रीय मंत्री और बाद में पीएम बने चंद्रशेखर का करीबी था। कुछ ही दिनों बाद रामनरेश के सहयोगी कृष्णा कहार का मर्डर हो गया। सितंबर 1986 में राम नरेश के एक और सहयोगी की हत्या हो गई। आरोप एमसीसी पर लगा। 10 दिनों के भीतर ही जमींदारों ने 5-6 एमसीसी कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी। यहां से बदले की आग और धधकती गई। 20 दिन बाद पास के ही दरमिया गांव में 11 राजपूतों की हत्या हो गई। फिर से आरोप लगा एमसीसी पर। इसके बाद सरकार ने स्पेशल ऑपरेशन चलाया। पुलिस बढ़ा दी गई। सेंट्रल फोर्सेज की तैनाती की कर दी गई। कुछ महीने मामला काबू में रहा। फिर प्रशानस ने ढील दे दी। सेंट्रल फोर्सेज को पंजाब भेज दिया गया। एसपी और टास्क फोर्स वालों को भी पटना बुला लिया गया। दरअसल, उन दिनों पंजाब उग्रवाद के दौर से गुजर रहा था। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इंदिरा गांधी की हत्या हो चुकी थी। 19 अप्रैल 1987 को राजपूत जमींदार केदार सिंह की हत्या हो गई। इस हत्या के दो घंटे बाद ही मुसाफिर यादव और राधे यादव परिवार के सात लोगों का कत्ल हो गया। मुसाफिर और राधे यादव एमसीसी के सपोर्टर माने जाते थे। कुछ रोज बाद मदनपुर बाजार में नक्सलियों ने पर्चा बंटवाया। जिसमें लिखा था- ‘सात का बदला सत्तर से लेंगे।’ और अगले ही महीने दलेलचक बघौरा में नरसंहार हो गया। दो साल में 3 मुख्यमंत्रियों का इस्तीफा, फिर कभी कांग्रेस का सीएम नहीं बना इस नरसंहार को लेकर विपक्ष तो हमलावर था ही, सरकार के अंदर भी अलग-अलग खेमे बंट गए थे। पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा तो अपने ही सीएम पर लापरवाही का ठीकरा फोड़ रहे थे। आनन-फानन में सरकार ने डीजीपी एसबी सहाय को हटा दिया। आईजीपी लॉ एंड ऑर्डर का भी तबादला हो गया। औरंगाबाद के एसपी भी बदल गए। पर सरकार में सबकुछ ठीक नहीं रहा। इसके बाद सीएम को दिल्ली बुलाया गया। सियासी गलियारों में कयास लगने लगे कि मुख्यमंत्री बदले जाएंगे। आखिरकार 13 फरवरी 1988 को मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे ने इस्तीफा दे दिया। भागवत झा आजाद मुख्यमंत्री बने, लेकिन एक साल बाद उन्हें भी हटा दिया गया। इसके बाद सत्येंद्र नारायण सिंह सीएम बने। पर 7 महीने बाद दिसंबर 1989 में उनका भी इस्तीफा हो गया। अगले चुनाव में दो-तीन महीने ही बचे थे। ऐसे में राज्य की कमान एक बार फिर से जगन्नाथ मिश्रा को मिली। 1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 324 सीटों में से महज 71 सीटें मिलीं। पिछले चुनाव से 125 कम। मगध संभाग, जहां ये नरसंहार हुआ था, वहां की 26 सीटों में से सिर्फ 10 सीटें ही कांग्रेस बचा सकी। जबकि पिछले चुनाव में उसे 19 सीटें मिली थीं। यानी आधी सीटें कांग्रेस ने गंवा दी। 122 सीटें जीतकर जनता दल ने लेफ्ट और निर्दलीयों की मदद से सरकार बनाई और लालू यादव मुख्यमंत्री बने। 1990 के अगस्त में मंडल कमिशन की सिफारिशें लागू करने का एलान हुआ और दो महीने बाद ही बीजेपी ने राम रथ यात्रा निकाल दी। इसी दौरान लालू ने बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया। यहां से लालू को पिछड़ों के साथ ही मुस्लिमों का साथ भी मिलने लगा। दूसरी तरफ आरक्षण और सवर्णों के नरसंहारों की वजह कांग्रेस के कोर वोटर्स बीजेपी की तरफ शिफ्ट होते गए। 1995 के चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 29 सीटों ही जीत सकी। इसके बाद साल दर साल कांग्रेस कमजोर पड़ती गई। 40 साल तक बिहार में राज करने वाली कांग्रेस, राजद का छोटा भाई बनने पर मजबूर हो गई। तब से उसका सीएम तो नहीं ही बना, वह मुख्य विपक्षी पार्टी भी नहीं बन पाई। हमलावर 500, आरोपी 177, 8 उम्रकैद काटकर जेल से छूट गए दलेलचक बघौरा गांव में 500 लोगों की भीड़ ने हमला किया था। इनमें से कुल 177 आरोपी बनाए गए। दिसंबर 1992 में औरंगाबाद सेशन कोर्ट ने 8 को फांसी की सजा सुनाई गई और बाकी सबूतों के अभाव में बरी हो गए। 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। इसी साल आठों आरोपी अपनी-अपनी सजा काटकर जेल से छूट गए। नरसंहार के बाद ज्यादातर राजपूत गांव छोड़कर चले गए थे। दोनों गांवों को भूतहा गांव कहा जाने लगा था। आज भी इन गांवों में राजपूतों के गिने-चुने ही घर हैं। कई परिवार तो नरसंहार के बाद लौटे ही नहीं। कल तीसरे एपिसोड में पढ़िए कहानी बारा नरसंहार की, जहां 35 भूमिहारों की हत्या कर दी गई.. नोट : (यह सच्ची कहानी पुलिस चार्जशीट, कोर्ट जजमेंट, गांव वालों के बयान, अलग-अलग किताबें, अखबार और इंटरनेशल रिपोर्ट्स पर आधारित है। क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल करते हुए इसे कहानी के रूप में लिखा गया है।) रेफरेंस :
भारत में अमूमन 10 में से 9 बच्चे 16 साल की उम्र में 10वीं या 11वीं क्लास में पढ़ रहे होते है. और करियर बनाने के लिए अपने असल इंटरेस्ट तलाश रहे होते हैं. वहीं, 16 साल के राउल जॉन अजू हैं, जो अपने ही पिता को नौकरी देने की वजह से सुर्खियों में हैं. लेकिन राउल भारत के सबसे युवा एआई विशेषज्ञों में से एक कैसे बने? आखिर क्या है इस बच्चे की पूरी कहानी? पूरी जानकारी के लिए ऊपर दी गई इमेज पर क्लिक कर देखें वीडियो...
GenZ आंदोलन, हिंसा, आगजनी और तख्तापलट। नेपाल ने 5 दिन में वो सब कुछ देख लिया जो इतिहास में पहले कभी नहीं देखा। सोशल मीडिया बैन और करप्शन को लेकर GenZ ने 8 सितंबर को प्रोटेस्ट शुरू किया। अगले दिन देश में माहौल हिंसक हो गया। संसद, सुप्रीम कोर्ट, पॉलिटिकल पार्टियों के ऑफिस, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री-मंत्रियों के घर और काठमांडू के सिंह दरबार समेत सब जला दिया गया। केपी शर्मा ओली को प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ा। अब 5 दिन के अंदर देश में एक नई व्यवस्था बनी। 12 सितंबर को देश की संसद भंग कर दी गई। पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने राष्ट्रपति भवन शीतल निवास में उन्हें शपथ दिलाई। Gen-Z नेता सरकार में शामिल नहीं हुए। वे बाहर से ही सरकार का कामकाज देखेंगे। सुशीला कार्की का नाम 10 सितंबर को ही बढ़ाया गया था। GenZ प्रोटेस्ट का समर्थन करने वाले मेयर बालेन शाह ने उनका समर्थन भी किया था लेकिन GenZ लीडर्स में सहमति नहीं बनी। फिर दो दिन के अंदर ऐसा क्या हुआ कि 73 साल की सुशीला कार्की के नाम पर GenZ एकमत हो गए। उन्होंने किन शर्तों पर अंतरिम सरकार बनने की सहमति दी और इसमें बालेन शाह की क्या भूमिका रही। इन सवालों के जवाब जानने के लिए दैनिक भास्कर ने GenZ लीडर्स की कोर कमेटी, आर्मी के साथ बातचीत का हिस्सा रहे डेलिगेशन और सुशीला कार्की के करीबी सोर्सेज से बात की। वहीं हमने नेपाल के जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट से भी बात की। GenZ के साथ 3 दौर की बातचीत कैसे पटरी पर आई नेपाल में 9 सितंबर को तख्तापलट हुआ। दूसरे दिन आर्मी ने देश की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था अपने हाथ में ले ली। आर्मी चीफ जनरल अशोक राज सिगडेल ने GenZ प्रदर्शनकारियों को बातचीत का न्योता दिया। इसके बाद आर्मी की निगरानी में ही नेपाल के अगले नेतृत्व और व्यवस्था को लेकर बातचीत शुरू हुई। पहले दौर की बातचीत 10 सितंबर को आर्मी हेडक्वार्टर्स में हुई। देश के मुखिया के लिए सुशीला कार्की का नाम बढ़ाया गया। फिर 11 सितंबर को सेना और GenZ प्रदर्शनकारियों के बीच दूसरे दौर की बातचीत भी आर्मी हेडक्वार्टर्स में रखी गई, लेकिन यहां GenZ के अलग-अलग गुट आपस में भिड़ गए। सुशीला कार्की के नाम पर सहमति नहीं बन सकी। नेपाल के जर्नलिस्ट खगेंद्र भंडारी बताते हैं, ‘GenZ प्रदर्शनकारियों का कोई लीडर न होने की वजह से बातचीत पटरी पर नहीं आ पा रही थी। इसके बाद एक 16 सदस्यीय GenZ डेलिगेशन बनाया गया। इस डेलिगेशन के मेंबर काठमांडू के 16 अलग-अलग इलाकों से चुने गए। तब GenZ के साथ बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा। 12 सितंबर को आखिरी दौर की बातचीत राष्ट्रपति भवन में हुई।‘ GenZ किन शर्तों के साथ सुशीला के नाम पर राजी हुएसभी GenZ शुरू में सिर्फ बालेन शाह को बतौर PM देखना चाहते थे, लेकिन वो अंतरिम सरकार में PM बनने को राजी नहीं थे। लिहाजा उन्होंने बालेन शाह की पसंद सुशीला कार्की के साथ जाने पर सहमति जताई। GenZ डेलिगेशन से जुड़े एक लीडर बताते हैं, 'सुशीला कार्की के नाम पर सहमति के लिए कुछ शर्तें भी रखी गई थीं। इसके तहत कोई भी पॉलिटिकल पार्टी का लीडर सरकार का हिस्सा नहीं होगा। इसलिए कार्की के अलावा किसी और ने मंत्री पद की शपथ नहीं ली। सारे विभाग PM सुशीला कार्की के पास ही होंगे।' GenZ डेलिगेशन ने मांग रखी थी कि सरकार के अलग-अलग विभागों से जुड़े फैसले लेने के लिए एक GenZ एडवाइजरी ग्रुप बनेगा। ये एडवाइजरी ग्रुप एक तरह से मंत्रिपरिषद यानी कैबिनेट की तरह काम करेगा। इस तरह सरकार सुशीला कार्की के नाम की होगी, लेकिन पीछे से GenZ का एडवाइजरी ग्रुप फैसले लेने में अहम भूमिका निभाएगा। सुशीला को बालेन के एकतरफा समर्थन के पीछे क्या वजहसोर्स के मुताबिक, GenZ के लिए PM पद का सबसे चहेता चेहरा काठमांडू के मेयर बालेन शाह थे। वो नेपाल के मौजूदा हालात में कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे। लिहाजा उन्होंने शुरू से ही साफ कर दिया था कि वो अंतरिम सरकार का जिम्मा नहीं संभालेंगे। बालेन 6 महीने बाद चुनाव के जरिए जनमत हासिल करके प्रधानमंत्री पद संभालना चाहते हैं। बालेन को भी ऐसे चेहरे की तलाश थी, जो उनकी बात मानें और जिन्हें GenZ भी पसंद स्वीकार कर लें। सोर्स के मुताबिक, सुशीला कार्की, बालेन की पहली पसंद बनकर उभरीं। सबसे पहले बालेन ने ही उनके नाम का समर्थन किया और इसी वजह से GenZ प्रदर्शनकारियों ने भी उनके नाम पर भरोसा जताया। हालांकि, GenZ सुशीला के नाम पर भी एकदम से सहमत नहीं हुए। नेपाल में भारत विरोध की राजनीति मशहूर है। सुशीला कार्की ने मीडिया को दिए कुछ इंटरव्यू में भारत और PM मोदी के बारे में तारीफ भरे लहजे में बात की। इसकी वजह से GenZ प्रदर्शनकारियों का एक गुट उनके विरोध में उतर आया लेकिन ये विरोध जल्द ही दबा दिया गया और सुशीला को GenZ नेताओं को समर्थन हासिल हो गया। वहीं, अगले 6 महीनों में बालेन शाह जरूरत पड़ने पर PM सुशीला कार्की और GenZ एडवाइजरी ग्रुप को सलाह देंगे। बालेन का मकसद पर्दे के पीछे से अंतरिम सरकार चलाना और अगले 6 महीने तक चुनाव के लिए तैयारी करना है। वो 6 महीने बाद चुनाव लड़ेंगे और फिर मजबूत दावेदारी पेश करके PM बनने की कोशिश करेंगे। PM बनने के लिए कई दावेदार कतार में रहे बालेन और सुशीला के अलावा PM बनने के लिए दूसरे दावेदार भी दावेदारी पेश करने से पीछे नहीं हटे। इंजीनियर सुदन गुरंग, इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के पूर्व प्रमुख कुलमान घिसिंग और धरान के मेयर हर्क सामपांग भी कतार में थे। ये सभी अपने GenZ समर्थकों के जरिए PM बनने के लिए जोर आजमाइश करते रहे। कई बार आर्मी हेडक्वार्टर और राष्ट्रपति भवन के बाहर इनके समर्थकों में झड़पें भी हुईं लेकिन बात नहीं बन सकी। अब सरकार बनाने में नेपाली आर्मी की भूमिका समझिएअंतरिम सरकार बनाने में आर्मी ने मजबूत मध्यस्थ की भूमिका निभाई है। दरअसल बालेन शाह आर्मी चीफ जनरल अशोक राज सिगडेल के करीबी रहे हैं। जब वो पहली बार काठमांडू के मेयर बने थे, तो सबसे पहले आर्मी चीफ से मिलने पहुंचे थे। इससे जाहिर है कि उनके आर्मी के साथ कितने करीबी संबंध हैं। वहीं आर्मी की पसंद भी बालेन शाह रहे हैं। सोर्स बताते हैं कि तख्तापलट के साथ ही बालेन शाह आर्मी के संपर्क में थे। उन्होंने आर्मी को भरोसे में लिया और सरकार बनाने की कवायद शुरू करने के लिए कहा। आर्मी के पास दो जिम्मेदारियां थीं। पहली, शांति और सुरक्षा कायम करना। दूसरी, अंतरिम सरकार के लिए पहल करना। दोनों ही काम आर्मी ने पूरी जिम्मेदारी के साथ किए। एक्सपर्ट बोले- GenZ आंदोलन नहीं अब नई सरकार का काम देखेंगेसुशीला कार्की के शपथ ग्रहण और नई सरकार के स्वरूप को लेकर हमने नेपाल के पॉलिटिकल एनालिस्ट संजीन हुमागेन से बात की। वे कहते हैं, 'अभी तो देश में अस्थिरता का ही माहौल रहना ही है। अब सबसे अहम बात ये है कि नई सरकार अगले चुनाव को लेकर कितनी संजीदा है और इसके कराने में कितनी जल्दी दिखाती है। अभी यही सबसे बड़ा एजेंडा होगा।' GenZ नई सरकार के फैसले को क्या ज्यादा समय तक स्वीकार कर पाएंगे या फिर आंदोलन की राह पर उतरेंगे? इसके जवाब में संजीन कहते हैं, 'मुझे नहीं लगता कि GenZ अभी इतनी जल्दी रिएक्ट करेंगे। वो देखना चाहेंगे कि नई सरकार किस तरह काम कर रही है। वो ट्रैक पर है या नहीं। इसलिए इतनी जल्दी दोबारा आंदोलन का तो सवाल ही नहीं उठता है। हां उनकी नजर बाकी सियासी दलों और सिविल सोसाइटीज के काम पर जरूर रहेगी।' नई सरकार को लेकर बाकी पॉलिटिकल पार्टियों का क्या रुख है? इस पर वे बताते हैं, ज्यादातर पॉलिटिकल पार्टियां इस फैसले को संविधान के खिलाफ बता रही हैं। अब बस उन्हें अगले इलेक्शन का इंतजार है। उनकी तैयारी अगले चुनाव को लेकर ही रहने वाली है। हालांकि संजीन इस सियासी उठापटक के बीच सेना की भूमिका का सराहना करते हैं। आर्टिकल- 61 के तहत PM बनीं सुशीलानेपाल में नया संविधान के लागू होने के बाद सभी सरकारें आर्टिकल- 76 के तहत बनाई जाती थीं, लेकिन सुशीला कार्की को आर्टिकल- 61 के अनुसार प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। इसमें सीधे प्रधानमंत्री के पद या शक्तियों का कोई जिक्र नहीं है। इसमें मुख्य रूप से राष्ट्रपति का काम और जिम्मेदारियां बताई गई हैं। आर्टिकल- 61 के मुताबिक, राष्ट्रपति संविधान की रक्षा का काम करते हैं। इसलिए इसी के तहत PM की नियुक्ति की गई है। केपी ओली की पार्टी ने संसद भंग करने का विरोध कियानेपाल में संसद भंग करने के फैसले का सियासी पार्टियों ने विरोध किया है। पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के महासचिव शंकर पोखरेल ने इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। पोखरेल ने देशवासियों से सतर्क रहने की अपील की। उन्होंने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों से इस फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतरने की अपील की है। सिंह दरबार में नया पीएम ऑफिस तैयारनेपाल के सिंह दरबार में नया पीएम ऑफिस तैयार कर दिया गया है। ये ऑफिस होम मिनिस्ट्री के लिए बनाई गई बिल्डिंग में तैयार किया गया। दो दिन पहले प्रदर्शनकारियों ने सिंह दरबार कॉम्पलेक्स की मुख्य बिल्डिंग में आग लगा दी थी, इस वजह से होम मिनिस्ट्री की बिल्डिंग में नया ऑफिस बनाया गया है। ....................... नेपाल से ये ग्राउंड रिपोर्ट भी पढ़िए... पूर्व PM-वित्त मंत्री को पीटा, संसद-सुप्रीम कोर्ट जलाए, लोग बोले- हमारी सरकार करप्ट गैंग नेपाल की संसद, सुप्रीम कोर्ट, पॉलिटिकल पार्टियों के ऑफिस, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री-मंत्रियों के घर और सबसे खास काठमांडू का सिंह दरबार, सब एक दिन में जल गया। पूरे काठमांडू के आसमान में काला धुआं दिख रहा है। पूर्व PM झालानाथ खनाल की पत्नी को जिंदा जला दिया गया। 20 से 25 साल के लड़के-लड़कियां सरकार के खिलाफ सड़कों पर हैं। इनका कहना है कि हमारी सरकार करप्ट है। पढ़िए पूरी खबर...
India In UNGA: संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन को लेकर चल रही थी वोटिंग, भारत ने उठाया बड़ा कदम
India In UNGA:
डोनाल्ड ट्रंप के 'चार्ली' की हत्या के पाकिस्तान में मना 'जश्न', जांच की सुई इस तरफ घूम रही
Charlie Kirk murder: गोली चार्ली की गर्दन पर लगी, मगर जानते हैं एक तरफ इस हमले से अमेरिका में मातम पसर गया वहीं दावा ये भी किया गया कि मुनीर के मुल्क में जश्न मनाया गया और कट्टर पाकिस्तानी खुशी से झूमने लगे आखिर क्यों, खुद जान लीजिए.
हूथी के लड़ाकों ने बनाया मदीना को निशाना? चौकाने वाले दावे से अरब वर्ल्ड में हड़कंप
Saudi Arab News:अगस्त 2012 में हूती आतंकियों ने सऊदी अरब की एक बड़ी तेल रिफाइनरी पर हमला किया था. जिसके बाद सऊदी अरब ने हूती विरोधी गुट को सैन्य मदद बढ़ा दी थी. माना जा रहा है हालिया मिसाइल अटैक दोनों पक्षों के बीच पुरानी रंजिश का नतीजा हो सकता है.
DNA Analysis: नेपाल की प्रधानमंत्री के तौर पर सुशीला कार्की के सामने कौन कौन सी चुनौतियां होंगी. तो सुशील कार्की के सामने सबसे बड़ी चुनौती नेपाल में निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव करवाना है क्योंकि नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता और चुनावी धांधली की समस्याएं काफी पुरानी हैं.
America News: डोनाल्ड ट्रंप के सबसे करीबी चार्ली किर्क की हत्या करने वाले आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है. अब उसको लेकर FBI नेकई अहम खुलासे किए हैं. आरोपी टायलर रॉबिन्सन यूटा राज्य का रहने वाला है और चार्ली किर्क को नापसंद करता था. उसका कहना था कि वो 'नफरत फैलाता' था.
BHU से पढ़ीं सुशीला कार्की होंगी नेपाल की अंतरिम PM, आज 8.30 बजे लेंगी शपथ, संसद भंग
नेपाल में एक तरफ प्रदर्शन हो रहा है, काठमांडू की सड़कों पर काफी संख्या में लोग उतरे हुए हैं, इसी बीच एक बड़ी खबर सामने आ रही है.नेपाल में तख्तापलट के बाद अब संसद को भंग कर दिया है और सुशीला कार्की नेपाल की अंतरिम पीएम होंगी, ये भी कहा जा रहा है कि आज रात 8.30 बजे वो शपथ भी लेंगी.
अब खुलेंगे राज, चार्ली किर्क का हत्यारा गिरफ्तार, डोनाल्ड ट्रंप बोले- उनके किसी करीबी ने ही...
Charlie Kirk Murder Case Updates: जाने-माने रूढ़िवादी टिप्पणीकार और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सबसे करीबी सहयोगी चार्ली किर्क के कथित हत्यारे को गिरफ्तार कर लिया गया है और वह हिरासत में है. इसकी पुष्टि खुद प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने की है.
Fact Check: पुलिस के साथ प्रदर्शनकारियों की झड़प का यह वीडियो नेपाल का नहीं है
बूम ने जांच में पाया कि यह वीडियो इंडोनेशिया के मेडान शहर (Medan) में हुए एक विरोध प्रदर्शन से जुड़ा है.
मर्द को भी मिलेगा हक! इस देश की अदालत का बड़ा फैसला, पति भी ले सकेंगे पत्नी का सरनेम
Viral News: दक्षिण अफ्रीका की अदालत ने पति को भी पत्नी का सरनेम अपनाने का अधिकार दिया है. इसे पुराने भेदभाव वाले कानून को रद्द कर बराबरी का कदम बताया गया. अब पुरुष और महिलाएं दोनों अपनी पसंद से नाम चुन सकेंगे.
समंदर की गहराइयों में कैसे टूटी इंटरनेट केबल? सुलझ गई गुत्थी; मगर ठीक होने में लगेगा इतना वक्त
Internet Cable: लाल सागर में इंटरनेट केबल कटने से खलबली मची हुई है. इसकी वजह से कई देशों की इंटरनेट स्पीड पर प्रभाव पड़ा है. जानिए ये केबल कैसे कटी और इसे ठीक होने में कितना टाइम लगेगा.
Who was Chandra Nagamallaiah:अमेरिका में एक भारतीय की बेरहमी से हत्या करने का जो वीडियो सामने आया है. उसे देखकर आप बेहोश हो सकते हैं. चक्कर आ सकता हैं. दिल दहल सकता है. एक कर्मचारी ने मामूली बात पर एक भारतीय चंद्र नागमल्लैयाका पहले सिर धारदार हथियार से काट डाला और फिर कटे हुए सिर पर लात मारी. सिर फुटबाल की तरह लुढ़कता रहा. देखें वीडियो और जानें कौन थेचंद्र नागमल्लैया.
Chile: इस स्कूल ने TikTok-Instagram पर लगाने के लिए फोन को किया बैन, स्टूडेंट्स की बदल रही जिंदगी
Smartphone banned in Chilean's School: स्कूल में बच्चों को फोन की लत से दूर रखने के लिए एक पहल की गई जिसके बाद से छात्रों की जिदंगी में कुछ बदलाव देखे गए. आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.
नेपाल में जेन-जी के आंदोलन के बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से लेकर कई मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया। भ्रष्टाचार और कुशासन के खिलाफ युवाओं का देशव्यापी विरोध प्रदर्शन जारी है। इस बीच पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाने की तैयारी चल रही है
चार्ली किर्क हत्या मामले में एक नया वीडियो जारी, कॉलेज की छत से कूदकर भागता दिखा हमलावर
संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) ने चार्ली किर्क हत्या मामले में एक नया वीडियो जारी किया है, जिसमें रूढ़िवादी कार्यकर्ता को गोली लगने के कुछ ही देर बाद एक संदिग्ध घटनास्थल से भागता हुआ दिखाई दे रहा है
ब्राज़ील : पूर्व राष्ट्रपति को 27 साल 3 महीने जेल की सजा, सैन्य तख्तापलट की साजिश के आरोप
ब्राज़ील के पूर्व राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो (70) को सैन्य तख्तापलट की साजिश रचने का दोषी पाए जाने पर 27 साल तीन महीने जेल की सजा सुनाई गई है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के पाँच न्यायाधीशों के एक पैनल ने पूर्व राष्ट्रपति को दोषी ठहराए जाने के कुछ ही घंटों बाद यह सजा सुनाई
'देश में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है', कांग्रेस सदस्य ने चार्ली किर्क की हत्या की निंदा की
यूटा के एक विश्वविद्यालय में कार्यक्रम के दौरान रूढ़िवादी विचारक और कार्यकर्ता चार्ली किर्क की गोली मारकर हत्या के एक दिन बाद, अमेरिकी कांग्रेस सदस्य डेबोरा रॉस ने इस घटना पर दुख जताते हुए कहा कि हमारे देश में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है
WATCH: चार्ली किर्क को गोली मारने के बाद छत से कूदा था शूटर, वीडियो देखकर उड़ जाएंगे होश
ट्रंप के करीबी चार्ली कर्क की बुधवार को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. कर्क को यूटाह वैली यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम में बोलते समय सबके सामने गोली मारी गई थी. इस बीच, FBI ने चार्ली किर्क हत्या मामले में एक नया वीडियो जारी किया है, जिसमें रूढ़िवादी कार्यकर्ता को गोली लगने के कुछ ही देर बाद एक संदिग्ध घटनास्थल से भागता हुआ दिखाई दे रहा है.