रूस ने यूक्रेन पर दागे 120 मिसाइल और 90 ड्रोन, जेलेंस्की बोले- पावर प्लांट तबाह करना चाहता है मॉस्को
Russia Ukrane War: रूस और यूक्रेन के बीच रह-रहकर हमलों की खबरें आती रहती हैं. हाल ही में रूस ने यूक्रेन की राजधानी पर बड़ा हमला किया है. जेलेंस्की ने कहा है कि रूस ने पावर प्लांट तबाह करने के मकसद से 120 मिसाइलें और 90 ड्रोन से हमला किया है.
आयतुल्लाह खामेनेई ने चोर दरवाजे से चुना ईरान का नया सुप्रीम लीडर, जानिए कौन हैं मोजतबा खामेनेई?
Iran Supreme Leader: ईरान के सुप्रीम लीडर को लेकर दावा किया जा रहा है कि आयतुल्लाह खामेनेई ने अपना उत्तराधिकारी चुन लिया है. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है किकथित तौर पर खामेनेई और उनके प्रतिनिधियों के सख्त दबाव के बाद मोजतबा के उत्तराधिकार पर सर्वसम्मति से सहमति जाहिर की है.
दुनिया वालों इजरायल से बचा लो ..., गाजा बना कब्रिस्तान, शहर में हुआ हमला तो चिल्लाया फिलिस्तीन
Isreal attack on Palestine: इजराइल अपनी कसम पूरी करने के लिए गाजा में पहले कहर बरपाया, इसके बाद पड़ोसी लेबनान के हिजबुल्लाह की कमर तोड़ रहा है. इसी बीच इजरायल ने फिलिस्तीन में हमला किया तो चिल्लाने लगा. जानें पूरा मामला.
ब्राजील की फर्स्ट लेडी ने खुलेआम दी गाली तो एलन मस्क ने भी दिया जवाब, वीडियो हो गया वायरल
Elon Musk: ब्राजील की फर्स्ट लेडीजन्जा लूला दा सिल्वा ने सरे आम एलन मस्क को गाली दे दी, जिसका वीडियो तेजी के साथ वायरल हो रहा है, साथ ही लोग तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं. ऐसे में एलन मस्क ने भी इसका जवाब दिया जो वीडियो से भी ज्यादा वायरल होने लगा है.
PM मोदी को मिला 17वां इंटरनेशनल अवार्ड, नाइजीरिया ने दिया ग्रैंड कमांडर का खिताब
Grand Commander of the Order of the Niger: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन देशों के दौरे पर हैं. सबसे पहले वो नाइजीरिया पहुंचे जहां उन्हें सम्मानित किया गया. उन्हें‘ग्रैंड कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द नाइजर’ दिया गया. ये पुरस्कार अब तक सिर्फ Queen Elizabeth को ही 1959 में मिला था.
अब होगा इराक-सीरिया में मारे गए हर ईरानी की मौत का हिसाब, कोर्ट ने US पर लगाया अरबों का मुआवजा
Irani Court Penalty to America: ईरान अब इराक-सीरिया में मारे गए अपने हर नागरिक की मौत का हिसाब लेने के मूड में आ गया है. इसी कड़ी में ईरानी कोर्ट ने अमेरिका को मृतकों के परिजनों को भारी-भरकम मुआवजा देने का ऑर्डर दिया है.
जवान दिखने के लिए बेटे का खून चढ़वाया, चेहरे पर फैट इंजेक्ट कराया, अब Photo देखकर हिल जाएंगे
Bryan Johnson Anti Aging treatment: करोड़पति टेक गुरु ब्रायन जॉनसन ने खुद को जवान दिखने के चक्कर में ऐसे-ऐसे एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट ले लिए हैं, कि उन्हें पहचानना मुश्किल हो रहा है. देखिए सोशल मीडिया पर उनके द्वारा जारी की गईं तस्वीरें.
Flight Emergency Landing: जब विमान एक झटके में 8000 फीट नीचे आ जाए तो अंदर यात्रियों की कैसी हालत होती है, इसका वीडियो रोंगटे खड़े करने वाला है. ऐसा टर्बुलेंस में फंसे एक फ्लाइट में हुआ.
बैग में छिपाकर ले जा रही थी 161 करोड़ का 'खजाना', पकड़ाने पर बोली- ये चीज़ है...!
Drugs in Airport: एयरपोर्ट पर सिक्योरिटी चैकिंग में स्मगलिंग के केस मिलना आम बात है, लेकिन हाल ही में शिकागो एयरपोर्ट पर एक महिला ने तो इस मामले में हदें पार कर दीं.
खत्म हो गई थीं मिसाइलें, फिर भी मार गिराए ईरान के 70 ड्रोन, अमेरिकी पायलट ने सुनाया खौफनाक अनुभव
US forces in Iran Israel War: अमेरिकी पायलट ने 13 अप्रैल की रात का वो खौफनाक अनुभव बयान किया है, जब मिसाइलें खत्म हो गई थीं और उसके बाद भी उन्होंने ईरान के 70 ड्रोन मार गिराए थे.
ट्रंप की जीत से नाखुश लोगों के लिए ट्रैवल कंपनी का जबरा प्लान, 4 साल तक घुमाएगी US से बाहर
4 year Cruise trip: अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की राष्ट्रपति चुनावों में जीत से नाखुश लोगों की कमी नहीं है. ऐसे लोगों के लिए फ्लोरिडा की एक ट्रैवल कंपनी ने गजब का प्लान ऑफर किया है. जिसमें इन लोगों को 4 साल तक अमेरिका में रहने की ही जरूरत नहीं होगी.
हिजाब ना पहनने वाली महिलाओं का होगा मानसिक इलाज! ऐसा क्यों कर रहा ये देश?
Iran Hijab law: हिजाब ना पहनने वाली महिलाओं का मनोरोगियों की तरह इलाज किया जाएगा. हिजाब पहनने का विरोध करने वाली महिलाओं के मनसूबे तोड़ने और उनके विरोध को कुचलने के लिए मुस्लिम देश अजीब सिस्टम शुरू करने जा रहा है.
बुरी तरह हारे पर नहीं छोड़ेंगे राजनीति, महिंदा राजपक्षे ने चुनाव के बाद ये क्या कह दिया?
Sri Lanka Parliamentary polls 2024: श्रीलंका के संसदीय चुनाव संपन्न हो गए हैं और सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) ने एकतरफा जीत हासिल की है. श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने चुनाव में हार के बाद बड़ा बयान दिया है.
उत्तरी इजरायली शहर कैसरिया में इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के घर की ओर दोफ्लेयर बम दागे गए. जो बगीचे में गिर गए. इसकी जानकारी पुलिस ने शनिवरा को दी. एक बयान में कहा गया, न तो पीएम नेतन्याहू और न ही उनका परिवार हमले के वक्त मौजूद था और किसी नुकसान की खबर नहीं है. ऐसा दूसरी बार हुआ है जब प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के घर पर हमला किया गया है.תיעוד: פצצות התאורה בחצר בית רהמ בקיסריה | צפואורלי אלקלעי pic.twitter.com/pFdIQyHQNY— כאן חדשות (@kann_news) November 16, 2024इजरायली पीएम नेतन्याहू के घर के आंगन में फ्लेयर बम से हमला, जानें क्या है हालत खबर अपडेट हो रही है.
16 नवंबर 2024 की सुबह। उत्तर प्रदेश का शहर झांसी। मेडिकल कॉलेज जाने वाली सड़क की सफाई चल रही है और दोनों तरफ चूना डाला जा रहा है। यहां कोई प्रभात फेरी नहीं होने वाली, बल्कि डिप्टी सीएम बृजेश पाठक आ रहे हैं। उस अस्पताल, जहां कुछ घंटे पहले 10 नवजात बच्चे जिंदा जल गए। जिनके मां-बाप की चीखें सुनकर किसी का भी कलेजा कांप जाए। 16 नवंबर की सबसे बड़ी खबर झांसी अग्निकांड पर है 'आज का एक्सप्लेनर'। सरकार ने पुलिस, स्वास्थ्य विभाग और मजिस्ट्रेट को जांच सौंपी है, लेकिन हमारी अब तक की रिसर्च में उंगलियां प्रशासन की तरफ ही उठ रही हैं… सवाल 1: आग कैसे लगी और इसका जिम्मेदार कौन?जवाब: झांसी मेडिकल कॉलेज के शिशु वार्ड के स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट (SNCU) में आग लगने को लेकर दो वर्जन हैं… एक है ऑफिशियल वर्जन कि घटना शॉर्ट सर्किट की वजह से हुई। झांसी के DM अविनाश कुमार का कहना है कि SNCU में आग शॉर्ट सर्किट की वजह से लगी। वहीं, झांसी के चीफ मेडिकल सुपरिंटेंडेंट सचिन महोर ने बताया कि ये घटना ऑक्सीजन कंसंट्रेटर में आग लगने से हुई। दूसरा वर्जन अग्निकांड के चश्मदीद भगवान दास का है। भगवान दास के मुताबिक, एक नर्स SNCU में दाखिल हुई। उसने ऑक्सीजन सिलेंडर के निकले हुए पाइप को जोड़ने के लिए माचिस की तीली जलाई। जिससे आग फैल गई। इस वर्जन में पूरी तरह से नर्स की लापरवाही थी। दोनों ही वर्जन में जिम्मेदारी अस्पताल प्रशासन की है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक ऑक्सीजन कंसंट्रेटर में स्पार्किंग, मेंटेनेंस न होने या ज्यादा लोड की वजह से हुई होगी। अगर लापरवाही नर्स की है तो उसकी ट्रेनिंग पर सवाल खड़े होते हैं। भारत सरकार ने आग की दुर्घटनाओं से बचने के लिए 1987 में भारतीय संविधान में राष्ट्रीय भवन संहिता (NBC) एक्ट लागू किया। इसमें 4 बार (1987, 1997, 2005 और 2016) संशोधन भी हुआ। NBC एक्ट में 12 सेक्शन हैं, जिसमें 4 नम्बर का सेक्शन ‘फायर एंड लाइफ सेफ्टी’ का है। इसमें ग्रुप C कैटेगरी में इंस्टीट्यूशनल बिल्डिंग को रखा गया है। जिनमें हॉस्पिटल, हॉस्टल्स और मेंटल केयर इंस्टीट्यूशन्स शामिल हैं। इस एक्ट के तहत घर, स्कूल, कॉलेज, ऑर्गनाइजेशंस, विधानसभा, बिजनेस ऑफिस, कॉमर्शियल ऑफिस, अस्पताल समेत सभी इमारतों में फायर एक्सटिंग्विशर यानी अग्निशामक यंत्र लगा होना चाहिए। इसकी समय-समय पर जांच होनी चाहिए। सवाल 2: आग कैसे फैली और इसका जिम्मेदार कौन?जवाब: डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने बताया कि फरवरी में अग्नि सुरक्षा ऑडिट किया गया था। जून में मॉक ड्रिल भी की गई थी। आग लगने के बाद वार्ड बॉय ने फायर फाइटिंग के सिलेंडरों को खोलकर चलाया, लेकिन आग ऑक्सीजन की वजह से लगी थी, इसलिए तेजी से भड़क गई। हॉस्पिटल में फायर अलार्म सिस्टम लगे थे। हालांकि चश्मदीद बता रहे हैं कि सेफ्टी अलार्म नहीं बजा। वहां लगे फायर एक्सटिंग्विशर 4 साल पहले ही एक्सपायर हो चुके हैं। ऐसे में फायर सेफ्टी ऑडिट पर सवाल उठते हैं। यहां नेशनल बिल्डिंग कोड 2016 के प्रावधानों का खुला उल्लंघन हुआ है। नेशनल फायर प्रोटेक्शन एसोसिएशन के मुताबिक 10 बेड से ज्यादा के अस्पताल के रजिस्ट्रेशन और उसके रेनोवेशन के समय उससे नक्शा और इंतजामों के बारे में लिखकर लिया जाता है। अग्निशमन इंतजामों की फोटो ली जाती है। इसके लिए अग्निशमन विभाग से NOC की जरूरत होती है। इसकी जांच करने का जिम्मा स्वास्थ्य विभाग का होता है। इन अग्नि सुरक्षा नियमों का पालन करके भारतीय अस्पताल अपने मरीजों और कर्मचारियों की सुरक्षा कर सके हैं। वे आग लगने की स्थिति में होने वाले जोखिम और नुकसान को भी कम कर सकते हैं। भारतीय अस्पतालों के लिए अग्नि सुरक्षा विनियम सवाल 3: नवजात सुरक्षित निकाले क्यों नहीं जा सके, इसका जिम्मेदार कौन?जवाब: कमिश्नर विमल दुबे के मुताबिक SNCU के दो हिस्से थे। जिस वक्त आग लगी अस्पताल के कर्मचारी और बच्चों के परिजन वार्ड की तरफ भागे। हालांकि आग की लपटों और धुएं की वजह से पीछे के वार्ड में कोई अंदर नहीं जा सका। एंट्री और एग्जिट पॉइंट भी लिमिटेड थे। महोबा के रहने वाले परिजनों के मुताबिक, अस्पताल के डॉक्टर्स भाग गए थे। अगर डॉक्टर भागे नहीं होते तो वे लोग भी झुलस गए होते। यहां भी अस्पताल प्रबंधन और फायर ब्रिगेड दोनों की गलती सामने आती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक अस्पताल में इमरजेंसी एग्जिट पर ताला लगा हुआ था। फायर ब्रिगेड को पहुंचने में करीब 20 मिनट लगे, तब तक काफी देर हो चुकी थी। अगर समय रहते आग पर काबू पा लिया जाता, तो बच्चों को बचाया जा सकता था। सवाल 4: आग पर काबू कैसे पाया गया?जवाब: भीषण आग लगने की सूचना पर 20 मिनट बाद फायर ब्रिगेड की 6 गाड़ियां पहुंचीं। फायर फाइटर्स ने खिड़की तोड़कर पानी की बौछारें मारीं। फिर भी आग काबू में नहीं आ रही थी। इसके बाद सेना को बुलाया गया। रात 11:20 बजे सेना भी पहुंच गई। फायर ब्रिगेड और सेना ने मिलकर 11:50 तक आग पर काबू किया। 12 बजे 10 बच्चों की मौत की पुष्टि हुई। रात 2 बजे कमिश्नर और DIG ने निरीक्षण किया। सुबह 5 बजे डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक पहुंचे। सवाल 5: डिप्टी सीएम के स्वागत में सड़क पर चूना डालने का जिम्मेदार कौन?जवाब: एक तरफ सिसकियां और मातम था तो दूसरी ओर डिप्टी सीएम के स्वागत की तैयारियां होने लगीं। इस दौरान अस्पताल के बाहर की सड़कों की सफाई होने लगी और सड़क किनारे चूना डाला जाने लगा। शनिवार की सुबह 5 बजे डिप्टी सीएम बृजेश पाठक अस्पताल पहुंचे थे। डिप्टी सीएम ने एक वीडियो जारी कर कार्रवाई करने की बात कही। उन्होंने DM को निर्देश दिए कि चूना डलवाने वाले व्यक्ति की पहचान करें और उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें। सवाल 6: भारत में हादसों से सबक क्यों नहीं लेते?जवाब: इस तरह के आग के हादसे का ये पहला मामला नहीं है। आगजनी के हादसों की लिस्ट बहुत लंबी है… 1. टीआरपी गेम जोन आगजनी26 जुलाई 2024 को गुजरात के राजकोट में टीआरपी गेम जोन में आग लगने से 28 लोगों की मौत हो गई थी। यहां भी आग लगने की वजह इलेक्ट्रिक शॉक बताए गए। जांच में पता चला था कि गेम जोन के लिए RMC के अग्निशमन विभाग से NOC नहीं लिया गया था। 2. बेबी केयर सेंटर आगजनी26 मई 2024 को पूर्वी दिल्ली के विवेक विहार में एक बेबी केयर सेंटर में आग लग गई थी। इसमें 7 बच्चों की मौत हुई थी। आग की वजह शॉर्ट सर्किट को ही माना गया था। सेंटर में रखे ऑक्सीजन सिलेंडरों में भी धमाके होने लगे थे। आस-पास के मकानों को भी आग ने अपनी चपेट में ले लिया था। 3. अंडरग्राउंड कोचिंग सेंटर आगजनी24 मई 2019 को गुजरात के सूरत में एक अंडरग्राउंड कोचिंग सेंटर में आग लगी थी। इसमें 22 छात्रों की मौत हुई थी। यहां आग लगने की वजह एयर कंडीशनर में शॉर्ट सर्किट थी। आग इतनी तेजी से फैली थी कि कुछ ही मिनटों में पूरी बिल्डिंग जलने लगी। आसपास की 2 दुकानें और नीचे खड़ी गाड़ियां भी आग की चपेट में आ गई थीं। उत्तर प्रदेश से जुड़ी भास्कर एक्सप्लेनर की अन्य खबरें पढ़ें भास्कर एक्सप्लेनर- चलते रहेंगे यूपी के 16 हजार मदरसे:आलिम-फाजिल की डिग्री पर रोक; सुप्रीम कोर्ट ने क्यों पलटा हाईकोर्ट का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए UP मदरसा एजुकेशन एक्ट को बरकरार रखा है। इसका मतलब है कि मदरसे चलते रहेंगे। इससे पहले हाईकोर्ट ने UP के मदरसों में पढ़ रहे सभी बच्चों का दाखिला सामान्य स्कूलों में कराने का आदेश दिया था। इससे UP के करीब 25 हजार मदरसों पर तलवार लटक रही थी। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मदरसों को बड़ी राहत मिली है। पूरी खबर पढ़ें...
सबसे पहले 2 दावे पहला दावा JMM लीडर हेमंत सोरेन का'ये आपके भाई हेमंत का वादा है। BJP की साजिशों का अंत करके, बिना रुके राज्य के लोगों के लिए काम करेंगे। अब संथाल और उत्तरी छोटा नागपुर की वीर भूमि से BJP की साजिशों के ताबूत पर अंतिम कील ठोकनी है।' दूसरा दावा BJP लीडर बाबूलाल मरांडी का'राज्य सरकार से त्रस्त महिला शक्ति, हमारी बहनों ने गुंडे बदमाशों की संरक्षक बनी JMM सरकार को हटाने के लिए वोट किया। झारखंड की जनता बदलाव की अगुआई कर रही है।' झारखंड चुनाव अब अपने क्लाईमैक्स पर पहुंच गया है। NDA राज्य में उलटफेर का दावा कर रहा है। वहीं, INDIA ब्लॉक पुराने स्टैंड पर कायम है- ‘एक ही नारा, हेमंत दोबारा’। झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में से 38 पर 20 नवंबर को वोटिंग होगी। इसमें 18 सीटों वाले संथाल-परगना में भी चुनाव होंगे। वैसे तो ये इलाका JMM का गढ़ रहा है, लेकिन BJP आदिवासी नेताओं के बलबूते सोरेन परिवार के किले को भेदने में जुटी है। झारखंड में सेकेंड फेज की वोटिंग से पहले कौन सी पार्टी मजबूत लग रही है, वोटर्स पर किस नेता का असर है, चुनाव के आखिरी आखिरी पड़ाव में कौन गेमचेंजर होगा, ये जानने दैनिक भास्कर की टीम ग्राउंड पर पहुंची। पढ़िए क्या है सेकेंड फेज में हवा का रुख। 4 पॉइंट्स में समझिए चुनाव से सियासी समीकरण1. सेंकेंड फेज में 38 सीटों पर वोटिंग होनी है। इनमें 18-18 सीटों वाले संथाल परगना और उत्तरी छोटानागपुर पर BJP का सबसे ज्यादा फोकस है। 2019 में पार्टी यहां सिर्फ 12 सीट जीत पाई थी। इस बार 15-18 सीटें जीतने के आसार दिख रहे हैं। 2. दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल की 2 सीटों खिजरी और सिल्ली में एक सीट NDA ने जीती थी। इस बार दोनों सीटें मिल सकती हैं। 3. संथाल के गोड्डा, देवघर, दुमका, जामताड़ा, साहिबगंज और पाकुड़ विधानसभाओं में BJP बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठा रही है। हालांकि आदिवासियों के बीच घुसपैठ का मुद्दा कम प्रभावी दिख रहा है, लेकिन इस मुद्दे से BJP हिंदू वोटरों को एकजुट करने में कामयाब होती दिख रही है। 4. 2019 के चुनाव के सेकेंड फेज में JMM ने 13 और कांग्रेस ने 8 सीटें जीती थीं। इस बार JMM 10-15 सीटें जीत सकती है। हालांकि कांग्रेस की सीटें घटकर 5 हो सकती हैं। उसके दो सांसदों पर भ्रष्टाचार के आरोप का निगेटिव असर नजर आ रहा है। सेकेंड फेज में 257 निर्दलीय, लेकिन टक्कर NDA और INDIA में दूसरे फेज में 257 निर्दलीय उम्मीदवार भी हैं, लेकिन फाइट NDA और INDIA ब्लॉक के बीच ही है। 4 सीटों पर जयराम महतो की पार्टी JLKM कड़ी टक्कर दे रही है। धनबाद सीट पर कांग्रेस और JMM के बीच फ्रेंडली फाइट है। बड़े चेहरे, जिनकी साख दांव पर… पार्टी: JMMलीडर: हेमंत सोरेन हेमंत झारखंड के मौजूदा CM हैं। विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें लैंड स्कैम केस में 140 दिन जेल में रहना पड़ा। जमानत मिलने के बाद फिर CM बने। चुनाव का ऐलान होते ही हेमंत सोरेन ‘जेल का बदला जीत से’ का नारा दे रहे हैं। हेमंत खुद संथाल जनजाति से हैं। जेल जाने के बाद उन्होंने अपनी दाढ़ी ऐसे बढ़ाई कि वे कुछ हद तक पिता शिबू सोरेन की तरह दिखने लगे। ऐसे में संथाल-परगना के जो लोग शिबू सोरेन को आज भी पूजते हैं, वो सीधे तौर पर हेमंत से कनेक्ट हो रहे हैं। पार्टी: JMMलीडर: कल्पना सोरेन कल्पना सोरेन गिरिडीह जिले के गांडेय सीट से चुनाव लड़ रही हैं। जून, 2024 में हुए उपचुनाव में उन्होंने इसी सीट से BJP के दिलीप वर्मा को 27 हजार वोट से हराया था। इस बार कल्पना 'मइयां सम्मान योजना' को लेकर महिला वोटर्स के बीच जा रही हैं। वे हर दिन 3 से 4 जनसभा कर रही हैं। उन्होंने अब तक 70 से ज्यादा जनसभाएं की। कल्पना आदिवासियों के लिए अलग सरना धर्म कोड बनाने की गारंटी दे रही हैं, जो ट्राइबल वोटर्स पर बड़ा असर डाल रहा है। इसका सीधा फायदा JMM को मिलता दिख रहा है। पार्टी: BJPलीडर: बाबूलाल मरांडी BJP के प्रदेश अध्यक्ष और झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी गिरिडीह जिले के धनवार सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। वे 2019 में भी यहीं से जीते थे। तब वे अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के सिंबल पर मैदान में थे। बाद में उन्होंने पार्टी का BJP में विलय कर दिया। बाबूलाल मरांडी की लीडरशिप में BJP ने JMM के खिलाफ मजबूत घेराबंदी की है। पहले पार्टी ने चंपाई सोरेन को तोड़ा। फिर गठबंधन में आजसू के साथ JDU और LJP (रामविलास) को जोड़ लिया। BJP ने झारखंड के 4 पूर्व CM के रिश्तेदारों को टिकट देकर ट्राइबल सीटों पर ताकत बढ़ाई है। पार्टी: JLKMलीडर: जयराम महतोझारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा यानी JLKM के अध्यक्ष जयराम महतो बेरमो डुमरी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। राज्य में 15% से ज्यादा कुर्मी वोटर्स हैं, जो आदिवासी समुदाय के बाद सबसे बड़ा वोट बैंक हैं। जयराम महतो कुर्मी समुदाय से आते हैं। वे गिरिडीह, धनबाद और बोकारो सीटों पर BJP और JMM के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। जयराम महतो पेपर लीक, रोजगार और कॉम्पिटिटिव एग्जाम में लोकल भाषाओं के इस्तेमाल जैसे मुद्दे उठा रहे हैं। संथाल की 18 सीटें तय करेंगी सत्ता का रास्तासेकेंड फेज में JMM और BJP के नेता सबसे ज्यादा संथाल-परगना की 18 सीटों पर सभाएं कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ही दिन में यहां दो सभाएं कीं। अमित शाह, जेपी नड्डा सहित कई केंद्रीय मंत्री वोटिंग से पहले संथाल में कैंप कर रहे हैं। संथाल परगना की 18 सीटों में से 8 सीटें रिजर्व हैं। बरहेट, दुमका, जामा, शिकारीपाड़ा, महेशपुर, बोरिया और लिट्टीपाड़ा ST के लिए और देवघर SC के लिए आरक्षित है। बाकी 10 सीटें सामान्य हैं। BJP ने 2019 में संथाल की गोड्डा, राजमहल, देवघर और सारठ सीटें जीती थीं। इस बार पार्टी अच्छे कैंडिडेट सिलेक्शन और मौजूदा विधायकों के खिलाफ बनी एंटी इनकम्बेंसी की वजह से 6 से 8 सीटों पर मजबूत दिख रही है। हालांकि JMM को मुस्लिम और आदिवासी वोटर्स पर भरोसा है। उत्तरी छोटानागपुर से BJP को उम्मीदें, JMM के लिए कल्पना गेमचेंजरपॉलिटिकल एनालिस्ट और जर्नलिस्ट आनंद कुमार बताते हैं, ‘उत्तरी छोटानागपुर का इलाका BJP के लिए पहले से ही मजबूत रहा है। इस बार भी BJP अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। हालांकि निरसा, गोमिया, चंदनकियारी जैसी सीटों पर BJP कमजोर हो रही है।‘ ‘संथाल परगना में 2019 में सिर्फ 4 सीटें मिलीं थी। इस बार पार्टी 6 सीटें जीत सकती है। राजमहल, गोड्डा, सारठ में कड़ा मुकाबला है, तो बोरियो, नाला, जरमुंडी और मधुपुर में BJP जीतने की स्थिति में है।‘ सरना धर्म कोड के मुद्दे से बढ़ी JMM की सियासी ताकत झारखंड में न्यूज नेटवर्क TV-45 के एडिटर अरुण वरनवाल कहते हैं, ‘कुछ सीटों को छोड़ दें तो राज्य की ज्यादातर सीटों पर कड़ा मुकाबला है। कोई पार्टी सीधे तौर पर दावा नहीं कर सकती कि वो सरकार बना रही है।‘ ‘दूसरे फेज की वोटिंग में संथाल अहम फैक्टर है। इन इलाकों में JMM का कब्जा रहा है। BJP इसमें सेंधमारी की कोशिश में जुटी हुई है। इसके बाद भी संथाल में आधी से ज्यादा सीटें INDIA ब्लॉक के पास जाएंगी।‘ ‘उत्तरी छोटानागरपुर में बाहर से आकर बसने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है। इसका फायदा BJP को मिलता रहा है। मौजूदा स्थिति को देखें तो सेकेंड फेज में NDA को 15-17 सीटें और INDIA ब्लॉक को 21-23 सीटें मिलती दिख रही हैं।‘ चुनावी मुद्दे और योजनाओं पर अरुण कहते हैं, ‘JMM सरना धर्म कोड को मुद्दा बना रही है। ये संथाल के आदिवासी वोटर्स पर असर कर रहा है। BJP राज्य में डेमोग्राफी चेंज और घुसपैठ के मुद्दे के साथ मैदान में है। JMM चुनाव से पहले मास्टर स्ट्रोक के रूप में मंइयां योजना लेकर आई है। इसके अलावा बिजली बिल माफ करके भी लुभाने में लगी है।‘ BJP के घुसपैठ वाले एजेंडे के कारण INDIA ब्लॉक के साथ आए मुसलमान पॉलिटिकल एनालिस्ट मो. परवेज आलम कहते हैं, ‘चुनाव से पहले JMM सरकार को लेकर मुस्लिमों में बड़ी नाराजगी थी। 5 साल में मुसलमानों के लिए कोई बड़ी योजना नहीं लाई गई। उर्दू को द्वितीय राज्यभाषा की मान्यता देकर नौकरियां नहीं दी गईं।‘ 'BJP ने बंटोगे तो कटोगे का नारा देकर मुसलमानों में चुनाव से पहले डर पैदा किया। इसका असर मुस्लिम वोटर्स पर पड़ा और वे JMM की तरफ एकजुट हो गए।‘ ‘संथाल में विधानसभा की 18 सीटें हैं। यहां JMM हमेशा आगे रही है। BJP की पूरी कोशिश इसे तोड़ने की है। यही वजह है कि उसने परिवर्तन यात्रा की शुरुआत भी इसी इलाके से की। BJP अब घुसपैठ, डेमोग्राफी चेंज और जमीन पर कब्जे जैसा मुद्दा उठाकर नैरेटिव गढ़ने की कोशिश कर रही है।‘ परवेज आलम कहते हैं, 'कांग्रेस INDIA गठबंधन की कमजोर कड़ी है। पिछली बार कांग्रेस ने 31 सीटों पर चुनाव लड़कर 16 सीटें जीती थीं। सेकेंड फेज में पार्टी 3-4 सीटें जीतती दिख रही है। कांग्रेस की परफॉर्मेंस से ही तय होगा कि INDIA ब्लॉक सरकार बनाता है या नहीं।‘ पॉलिटिकल पार्टियां क्या कह रहीं…JMM: BJP के पास कोई मुद्दा नहीं, चुनाव आते ही जांच एजेंसियां एक्टिव कर दींJMM के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं, ‘BJP के पास चुनाव लड़ने के लिए कोई मुद्दा नहीं है। 5 साल के कार्यकाल में मुश्किलों के बावजूद हम आगे बढ़ते गए। पहले 2 साल कोरोना से लड़ते रहे, फिर 3 साल तक ED-CBI से लड़ते रहे। अब चुनाव आए हैं, तो जांच एजेंसियों को फिर से एक्टिव कर दिया गया है।‘ ‘जनता ये जानती है कि JMM ने उनकी जमीनें बचाई हैं। BJP ने झारखंड बनने से पहले ही उसकी पहचान के साथ समझौता किया। राज्य का नाम ही बदलकर वनांचल रख दिया। 23 तारीख को रिजल्ट आएगा, तो BJP दहाई का आंकड़ा नहीं छू पाएगी।‘ BJP: दो तिहाई बहुमत से सरकार बनाएंगे, NRC लागू करेंगेगोड्डा सीट से BJP सासंद निशिकांत दुबे कहते हैं, ‘चुनाव जीतकर सबसे पहले NRC लागू करेंगे। जो फेक वोटर कार्ड, आधार कार्ड और पैन कार्ड बनाकर रह रहे हैं, ये सब बाहर कर दिए जाएंगे। यहां रहने वाली मुस्लिम पॉपुलेशन का 60% घुसपैठिए हैं।‘ ‘जिन आदिवासी लड़कियों ने मुसलमानों से शादी की है, उनके बच्चों को आदिवासियों का दर्जा नहीं देंगे। शादी के बाद जिन लोगों की जमीनें कब्जाई गईं, हम उन्हें वापस लौटाएंगे।‘ कांग्रेस: INDIA ब्लॉक 61 सीटें जीतेगा झारखंड कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और सीनियर लीडर राजेश ठाकुर कहते हैं, ‘कांग्रेस पार्टी जीत के लिए कॉन्फिडेंट है। पिछली बार BJP ने 65 पार का नारा दिया था, लेकिन वो 25 पर अटक गई। इस बार वो 51 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं यानी अब की बार उनकी सीटें 20 हो जाएंगी। इसका सीधा मतलब है कि INDIA ब्लॉक इस बार 61 सीटें जीत रहा है। ये हमारा नहीं बल्कि खुद BJP का गणित बता रहा है।‘ अब वोटर्स की बात…मंइयां योजना का सबसे ज्यादा असर, किसान JMM से नाराजझारखंड में पाकुड़ रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करने वाले बिट्टू राम JMM सरकार के काम से खुश हैं। वे कहते हैं, ‘सरकार की मंइयां योजना में हमें हर महीने 1000 रुपए मिल रहा है। इससे कम से कम साग सब्जी का पैसा आ जाता है। थोड़ी राहत मिली है।‘ दुमका बाजार में रेडीमेड कपड़ों का बिजनेस करने वाले कमल शर्मा कहते हैं, ‘चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा बांग्लादेशी घुसपैठ का है। दुमका में बंगाल से बहुत ज्यादा लोग माइग्रेट करके आ गया है। ये लोग बंगाल में भी वोट देते हैं और यहां भी।‘ कल्पना सोरेन के विधानसभा क्षेत्र गांडेय के रहने वाले किसान नरेश सिंह कहते हैं, ‘किसानों को JMM सरकार ने कुछ नहीं दिया है। सिंचाई तक की व्यवस्था नहीं है। झारखंड का किसान इस बार बदलाव चाहता है।’ .................................................. झारखंड इलेक्शन से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें... 1. चंपाई सोरेन बोले- गांवों पर कब्जा कर रहे बांग्लादेशी, झारखंड में धर्मांतरण बढ़ा झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ को सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं। 30 साल झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहे चंपाई सोरेन इस बार पहली दफा BJP के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। इलेक्शन कैंपेन के दौरान दैनिक भास्कर ने चंपाई सोरेन से बात की। उनसे पार्टी बदलने, बांग्लादेशी घुसपैठ, लव-जिहाद और आदिवासियों की स्थिति पर सवाल पूछे। पढ़िए और देखिए पूरा इंटरव्यू... 2. 34% आदिवासी वोटर्स वाली सरायकेला सीट पर JMM का किला ढहाएंगे चंपाई 81 सीटों वाले झारखंड में 13 नवंबर को पहले फेज की वोटिंग होनी है। इस फेज में सरायकेला विधानसभा हॉट सीट बनी हुई है। BJP ने यहां 'कोल्हान टाइगर' कहे जाने वाले चंपाई सोरेन को टिकट दिया है। उनके खिलाफ JMM ने BJP के पुराने नेता गणेश महली को उतारा है। यहां सीधा मुकाबला दो बागियों के बीच है। सरायकेला में कौन मजबूत? पढ़िए पूरी रिपोर्ट...
मैंने एक दोस्त का फर्ज निभाया है। प्रॉपर्टी तो अपने पिता की नहीं ली तो शबनम की जमीन-जायदाद क्या लूंगा। उसने अपने पूरे परिवार की हत्या कर दी। कोर्ट ने सजा दी है, वो काट रही है। उसके बेटे को गोद लिया तो लोग कहते हैं- खून खींचता है। शायद वे कहना चाहते हैं कि उसका बेटा भी अपने परिवार वालों को मार डालेगा। लोग ये नहीं कह पाते कि मुझे ही मारेगा तो कह देते हैं खून खींचता है। 14 अप्रैल 2008, उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के बावनखेड़ी गांव का शबनम कांड देश भर में चर्चा में रहा। शबनम ने बॉयफ्रेंड सलीम के साथ मिलकर अपने पिता-मां, दो भाई, एक भाभी और एक दस महीने के भतीजे की हत्या कर दी थी। शबनम और सलीम को हाईकोर्ट ने मौत की सजा दी। सुप्रीम कोर्ट ने सजा बरकरार रखी। आज नहीं तो कल उसे फांसी होनी है। लेकिन, इसी सब के बीच एक बात पता चली कि शबनम ने जब हत्या की तब उसके पेट में ढाई माह का बच्चा था। नमस्कार, मेरा नाम उस्मान सैफी हैं। शबनम का दोस्त हूं। बीए करने के दौरान तीन साल हम दोनों साथ कॉलेज आए-गए। बस में रोज आने-जाने से लेकर जरूरत पर मदद करने तक, हमारी दोस्ती बहुत दमदार थी। अमरोहा से बीए किया। कॉलेज जाने के लिए दो बार बस बदलना पड़ती थी। दूसरी बार में शबनम बस में चढ़ती थी और फिर कॉलेज तक साथ-साथ जाते। शबनम ने मेरी मदद ही की है। पहली मुलाकात याद करता हूं तो, बस भरी हुई थी। सीट नहीं मिली और हाथ में किताबें थीं। कुछ देर के बाद शबनम ने कहा, ये किताबें मुझे दे दो। तुम आराम से खड़े हो जाओ। किताबें उसे दे दीं और फिर दोस्ती हो गई। ये साल 2003-04 की बात होगी। बीए के दूसरे साल में कम नंबर आए तो तय किया कि पढ़ाई छोड़ दूंगा। सबसे पहले शबनम को बताया। उसने कहा, तुम्हारे नोट्स बनवा दूंगी। तुम दोबारा इम्तेहान दे लो। कभी-कभी सोचता हूं कि क्या ये वही शबनम है जिससे बस में मिलता था। एक्टर बनना चाहता था इसलिए दिल्ली आ गया। किसी की सलाह पर मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई कर ली। तकरीबन तीन साल बाद बुलंदशहर में एक अखबार में रिपोर्टर बन कर आया। जब यहां आया तो पता चला कि लोकल स्तर पर शबनम कांड की खबर अक्सर छपती रहती है। मैं एजुकेशन बीट देखता था, मगर क्राइम की खबरों में इंट्रेस्ट लेता। एक दिन क्राइम रिपोर्टर को खबर लिखते देखा। खबर शबनम के बच्चे की थी। मुंह से निकल गया, अरे इसे जानता हूं। ये मेरी दोस्त थी। क्राइम रिपोर्टर ने सते हुए कहा कि हर फेमस आदमी को लोग जानना ही चाहते हैं। चाहें हत्या ही क्यों न कर दी हो। ये बात मुझे चुभ गई। उस दिन महसूस हुआ कि शबनम से पांच साल पहले मिला था। इन पांच सालों में एक बार ये जानने की कोशिश नहीं कि वो कहां और कैसी है। क्या करता? घर पर पांच भाइयों में सबसे नकारा मैं ही था। एक्टर बनने की इच्छा थी जो कभी पूरी नहीं हुई। किसी की सलाह पर पत्रकार बनने निकला था, लेकिन शबनम के बच्चे ने दिशा ही बदल दी। रह-रह कर क्राइम रिपोर्टर की बातें याद आती थीं। एक दिन मुझे ख्याल आया, क्यों न शबनम पर किताब लिखी जाए। तय किया कि उससे मिलूंगा। उससे मिलने में पांच साल लग गए। जेल में पहली अर्जी डाली तो पता चला कि बीते चार साल में शबनम से मिलने कोई आया ही नहीं है। वो अर्जी जेल के कर्मचारियों ने ऊपर जाने ही नहीं दी। हर महीने में दो बार मिलने की अर्जी डाल आता था। दिमाग से क्राइम रिपोर्टर की बात नहीं उतरती थी। एक दिन जेल के ही एक गार्ड ने बताया कि आज चाइल्ड वेलफेयर कमेटी वाले शबनम से मिलने आए हैं। वो तुम्हें मिलवा देंगे। वे शबनम के बच्चे को जेल से बाहर किसी को गोद दिलाने की कोशिश में लगे थे। वहीं ख्याल आया कि क्यों न शबनम के बच्चे को गोद ही ले लिया जाए। वैसे भी उससे मिल नहीं पा रहा हूं। इसी बहाने बात भी होगी और एक अच्छा काम भी होगा। मुझे लगा था कि ये एक साहस भरा कदम है और लोग मेरी मिसाल दें न दें, मेरी तारीफ जरूर करेंगे। चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के लोगों से मुलाकात की और बच्चा गोद लेने को कहा। पता चला कि शादीशुदा लोग ही बच्चा गोद ले सकते हैं। तय किया कि अब शादी करूंगा। उस समय कई जगह मेरी शादी की बात भी चल रही थी। सब ने शबनम के बच्चे का नाम सुनते ही मना कर दिया। तब तक वंदना से ऐसी दोस्ती थी कि घर तक आना-जाना था। अपने सारे राज उन्हें बता देता था। वो अपनी सब बातें मुझसे कह लेती थीं। वंदना को फोन लगाया और वो मान गईं। यहां से कुछ देर वंदना की कहानी मैं संविदा शिक्षक थी । उस्मान रिपोर्टर थे और शिक्षक दिवस पर स्टोरी करने स्कूल आए थे। वे मेरी क्लास में ही आकर बैठ गए। क्लास में सब कुछ अप टू डेट था तो मुझे सैल्यूट करते हुए चले गए। मेरे दिमाग में उनका सैल्यूट रह गया। एक-दो बार हमारी मैसेज से बात हुई। बीच में उस्मान स्कूल भी आए तो मिलना हुआ। धीरे-धीरे हम अच्छे दोस्त बन गए। मेरे घर में बहुत खुला माहौल था। परिवार ने कभी दबाव नहीं बनाया। मां-पिता हमेशा से सपोर्ट करते रहे। मन में शुरू से था कि शादी नहीं करूंगी और एक बच्चा गोद ले लूंगी। बहनों की शादी भी हो गई मगर मैं रुकी रही। मां ने कहा- बीएड कर लो, टीचर बन जाओ। उनके कहने पर बीएड किया और संयोग से टीचर भी बन गई। उस्मान के लिए मेरे मन में सॉफ्ट कॉर्नर जरूर था लेकिन शादी का नहीं सोचा था। इन्होंने जब फोन पर कहा कि बिना शादी के बच्चा गोद लिया ही नहीं जा सकता। काफी सोचा और उस्मान के सामने शर्त रखी कि जीवन में अपना बच्चा कभी नहीं करूंगी। उस्मान इसके लिए तैयार हो गए। हमारी शादी हो गई। मुझे शबनम की कहानी नहीं पता थी। उस्मान ने उसके बारे में बताया था और कहते थे, कैसे भी एक डायरी अंदर भेजना है जिस पर वो अपनी बातें लिख दे। बाकी कहानी जानता हूं। लेकिन, शबनम मिलने को तैयार नहीं थी। हमने शबनम का बच्चा गोद लिया तो खबर अखबार में छपी। सब ने तारीफ की और कानाफूंसी भी हुई। आगे की कहानी उस्मान के हवाले से शबनम का बेटा गोद लेने की परमिशन मिलते ही उससे मिलने का रस्ता खुल गया। पहली बार शबनम से मिला तो धड़कन बढ़ी हुई थीं। जेल के भीतर 100 से भी अधिक महिला कैदी थीं। शबनम आई। साथ में एक कॉन्सेटबल थी। शबनम ने अपना चेहरा बांध रखा था। सिर्फ आंखें दिख रही थीं। मैंने कहा, तुम चेहरा तो दिखाओ। उसने कुछ देर ठहर कर चेहरा खोला और फिर थोड़ी ही देर बाद ढंक लिया। मैंने कॉलेज के दौर की बातें कहीं। वो हर बार बात खत्म होने के बाद मुझे देखती थी और फिर बिना रिएक्ट किए नीचे देखने लगती। तकरीबन दस मिनट बाद न जाने क्यों पूछ लिया, एक बात बताओ, तुमने सात लोगों को मारा क्यों? शबनम ने मेरी तरफ नजर उठाई और तेजी से चली गई। लगा कि कुछ गलत पूछ लिया है। मुझे बहुत दुख हुआ। इसी बीच उसके बच्चे को गोद लेने का समय आ गया। अब वो मुझे देने को तैयार नहीं थी। मुझे लग कि वो इस सवाल से नाराज हो गई है। सीधे जेलर के पास चला गया। अपने मन की सारी बातें कह दीं। उन्होंने उस कॉन्स्टेबल को बुलाया जो शबनम के साथ थी। कॉन्स्टेबल की भी एक बेटी थी जो शबनम के बेटे के साथ खेला करती थी। इसी के चलते शबनम की भी दोस्ती उससे हो गई। जेलर ने शबनम को तैयार करने की जिम्मेदारी दी। बाद में जब शबनम से दोबारा मिला तो उसने कहा, समझती थी कि तुम अभी भी सीधे-साधे ही हो। तुम मेरे बच्चे की परवरिश कर ही नहीं पाओगे। तुमने भी वही बात कर दी जो हर इंसान मुझसे करता है। उससे सॉरी कहाऔर बच्चे के लिए शुक्रिया भी। ढाई साल की मशक्कत के बाद वो बच्चा हमारी गोद में था। वो हमारी जिंदगी का सबसे बड़ा दिन था। उसने तो ख्वाहिशें जाहिर कीं। पहली आइसक्रीम खाने की। दूसरी ऑफिस जैसे कपड़े सिलवाने की और तीसरी, सलमान खान से मिलने की। हमने उसे आइसक्रीम खिलाई। ऑफिस के कपड़ों की बात हमारी समझ में बाद में आई। दरअसल, वो किसी अधिकारी की तरह कोट-पैंट पहनना चाहता था। उसके जीवन में बाहर की दुनिया उतनी ही थी जितना शबनम उसे तारीख पर लेकर जाती थी हमने उसे कपड़े सिलवाकर दिए, लेकिन सलमान खान से हम उसे नहीं मिलवा सके हैं। वो बच्चा बाहर आया तो उसे दुनिया का अंदाजा भी नहीं था। उसे जानवरों के बारे में नहीं पता था। वो गाय को नहीं पहचान पाता था। दुर्गंध आने पर रोने लगता था। बाद में भी शबनम से मिलने जाने पर उसके कपड़े की गंध से गुमसुम हो जाता था। मेरी पत्नी को शादीयों में- समारोहों में लोग सामने से आकर बोल जाते हैं, वो गोद लिया हुआ बच्चा साथ नहीं आया? मेरी पत्नी जवाब दे देती हैं- इसी सब कारणों से नहीं ले आ सकी। जीवन में सब कुछ मिला। यूट्यूब पर वीडियो बनाता हूं। तीन मिलियन सब्सक्राइबर होने को हैं, पैसे आते हैं। लेकिन जब लोग आकर ये कह जाते हैं कि मैंने ये सबकुछ शबनम की जमीन के लिए किया है, तो रोना आ जाता है। सोचा था कि लोग तारीफ करेंगे। कम से कम ये तो कहेंगे ही कि अच्छा काम किया। पूरे 16 करोड़ के प्रदेश में मात्र 17 आवेदन आए। तीन फाइनल हुए। एक कोई मदरसा था और दूसरा कोई एनजीओ। मदरसे का विरोध हो गया और एनजीओ ऐन वक्त पर इंकार कर दिया। मैं अकेला था जिसका फॉर्म वहां पर एक्सेप्ट हुआ। मेरे आलावा कोई भी आ सकता था। संपत्ति का लालच नहीं था। लेकिन लोगों की बातें इतना ट्रिगर करती थीं कि अपने पिता की संपत्ति लेने से भी इंकार कर दिया। ताकि जब कोई पूछे तो कह सकूं कि पिता की नहीं ली तो शबनम की संपत्ति का क्या करूंगा। लेकिन,लोग बाज नहीं आते हैं। लोग मुझसे मिलते हैं तो कह देते हैं, वो बच्चा आजकल कैसा है । लोग ये भी तो कह सकते हैं कि आपका बेटा कैसा है? मगर पता नहीं ऐसी बातें कहने में क्या सुख मिलता है। कुछ लोग ये तक कह जाते हैं कि 18 साल का होगा तो चला जाएगा। सोचता हूं कि कोई इसे अच्छी बातें क्यों नहीं कहता? जब मुझसे कहने में बाज नहीं आते हैं तो इससे भी कह ही देते होंगे। ये सब उस बच्चे के लिए कितना बुरा है। वो जेल में बड़ा हो रहा था, बाहर है। पढ़ाई कर रहा है। 18 साल का होगा तो वैसे भी बाहर जाएगा। किसके बच्चे पढ़ने के लिए घर छोड़ कर नहीं जाते हैं? लेकिन लोग मुझसे खासतौर पर कहते हैं कि ये बड़ा होकर बाहर न चला जाए, ध्यान रखिएगा। मेरी समझ से इन बातों के लिए मेरे पास कोई जवाब नहीं होता। मैं सुन लेता हूं। अब दुख कम होता है। - ये सारी बातें उस्मान और वंदना ने भास्कर रिपोर्टर शाश्वत से शेयर की… ***** संडे जज्बात सीरीज की ये स्टोरीज भी पढ़िए... 1.इलाज के दौरान सुसाइड कर लेते हैं मरीज:लोग कहते थे इतना पढ़ने के बाद तुम पागलों का डॉक्टर क्यों बनना चाहते हो? मैं डॉ. राजीव मेहता दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल में मनोचिकित्सक हूं। आपने बिल्कुल सही समझा, पागलों का डॉक्टर हूं। सामने भले नहीं, लेकिन पीठ पीछे लोग यही कहते हैं। जिन लोगों को हमारी सोसाइटी पागल कहती है, उनका इलाज करना ही मेरा पेशा है। पूरी खबर पढ़िए... 2- 56 साल बाद पिता की डेड बॉडी आई:15 की उम्र में मां विधवा हो गई, पापा का चेहरा भी नहीं देख पाईं मैं जयवीर सिंह विष्ट,उत्तराखंड के चमोली का रहने वाला हूं। पिछले महीने की 3 अक्टूबर को 56 साल बाद जिस पूर्व सैनिक नारायण सिंह विष्ट की पार्थिव देह अंतिम संस्कार के लिए लाई गई। मैं उनका सौतेला बेटा कहे या बेटा या भतीजा हूं... पूरी खबर पढ़िए...
तारीख- 2 अक्टूबर 2021 जगह- मुंबई पोर्ट सात मंजिला कॉर्डेलिया क्रूज लंगर डाले खड़ा है। 11 मंजिल, 796 केबिन, बार, लाउंज, स्पा, कैसीनो, थिएटर, लाइव बैंड और नॉन-स्टॉप एंटरटेनमेंट जैसी लग्जरी सर्विसेज से लैस ये क्रूज किसी सेवन स्टार होटल से कम नहीं है। इसे गोवा जाना है। रात में क्रूज पर फैशन टीवी इंडिया का Cray’Ark नाम का एक बड़ा इवेंट होना है। इसके लिए बॉलीवुड स्टार्स के बच्चों को खासतौर पर बुलाया गया है। दोपहर 12 बजे से ही क्रूज पर गोवा जाने वालों का आना शुरू हो जाता है। क्रूज पर सवार होने के लिए दो अलग-अलग एंट्री हैं। एक सिर्फ VVIP के लिए और दूसरा आम टूरिस्टों के लिए। VVIP में किसकी एंट्री हुई, ये सिर्फ फैशन टीवी इंडिया के सीईओ काशिफ खान को पता है। मोबाइल पर बोर्डिंग पास दिखाते ही उन्हें वेलकम ड्रिंक के साथ लग्जरी केबिन की चाबी दी जाती है। दोपहर 2 बजे के आसपास क्रूज मुंबई पोर्ट से गोवा के लिए निकल पड़ता है। रात करीब 8 बजे सभी लोगों को इवेंट में पहुंचने का मैसेज मिलता है। थोड़ी देर में लोगों का डेक पर आना शुरू हुआ। सभी को वेलकम ड्रिंक सर्व की जाती है। रंग-बिरंगी लाइट और 1 लाख वॉट के म्यूजिक पर सभी डांस करने लगते हैं। रात करीब 11 बजे इवेंट पूरे शबाब पर था, अचानक भगदड़ मच गई। तभी अनाउंसमेंट होता है- सभी लोग अपनी जगह खड़े रहे। एनसीबी यानी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो का छापा पड़ा है। मुझे याद है। शनिवार देर रात तक काम करने के बाद मैं मोबाइल वाइब्रेट मोड पर करके सो गई। गहरी नींद में थी, तभी मेरा फोन वाइब्रेट होने लगा। मोबाइल पर एनसीबी से मेरे सोर्स का मैसेज था- 'मुंबई से गोवा जा रहे कार्डेलिया क्रूज पर रेव पार्टी हो रही थी। जहां एनसीबी ने फिल्म स्टार शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान और उसके दोस्त अरबाज मर्चेंट, मॉडल मुनमुन धमीजा समेत 8 लोगों को अरेस्ट किया है।' मैं सुबह 6:30 बजे एनसीबी दफ्तर के पास मुंबई इंटरनेशनल पोर्ट पहुंच गई। आधे घंटे बाद तो यहां मीडिया का जमावड़ा लग गया। सब कार्डेलिया को ढूंढ रहे थे। एनसीबी दफ्तर से कुछ दूर जाकर देखा तो समुद्र में कार्डेलिया खड़ा नजर आ रहा था। ‘महाराष्ट्र के महाकांड’ सीरीज के चौथे एपिसोड में शाहरुख खान के बेटे ‘आर्यन खान ड्रग केस की कहानी’ जानने मैं मुंबई पहुंची... आर्यन ड्रग केस की शुरुआत में मीडिया ने एनसीबी के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े को खूब तवज्जो दी। इसकी वजह भी थी। समीर वानखेड़े इससे पहले कस्टम में थे। जहां उन्होंने उम्दा काम किया था। एनसीबी दफ्तर से हर दिन नई-नई जानकारी बाहर आने लगी। एनसीबी ने दावा किया कि आर्यन खान न केवल ड्रग्स लेता है बल्कि सप्लाई भी करवाता है। कुछ देर में आर्यन खान के फोटो सभी न्यूज चैनल में छा गए। रेड टी-शर्ट पहने एक व्यक्ति आर्यन खान को क्रूज से एनसीबी दफ्तर ले जा रहा था। शाहरुख खान के घर मन्नत के बाहर भी मीडिया जुट गई। हालांकि इस केस को लेकर शाहरुख या उनके पूरे परिवार में से किसी ने बात नहीं की। कुछ घंटों बाद ही के में राजनीति शुरू हो गई जब एनसीपी नेता और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री रहे नवाब मलिक कूद पड़े। दरअसल, उनके दामाद समीर खान को नशीली दवाओं से संबंधित मामले में आठ महीने की जेल हुई थी। मलिक का मानना था कि उनके दामाद को फंसाया गया है।। वह हर दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस करने लगे। मलिक, समीर वानखेड़े की जाति, धर्म, शादी और लग्जरी को लेकर सारे सबूत मीडिया में उछालने लगे। समीर वानखेड़े के पिता ने मुंबई के ओशिवारा पुलिस थाने में नवाब मलिक की शिकायत की। कोई इसे राजनीतिक साजिश बताने लगा तो कोई वसूली का तरीका। कोई बॉलीवुड को धमकाने का जरिया। मीडिया का पूरा फोकस आर्यन खाने से हटकर नवाब मलिक और समीर वानखेड़े पर चला गया। उधर, गिरफ्तार आरोपियों के परिजन उनकी जमानत के लिए अदालत के चक्कर काट रहे थे। एनसीबी दफ्तर से लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट तक मीडिया नजर आने लगी। बॉलीवुड के कई बड़े स्टार शाहरुख खान के घर पहुंच रहे थे। बेटे की जमानत के लिए शाहरुख देश के बड़े-बड़े वकीलों के साथ लगातार मीटिंग कर रहे थे। मामले में नया मोड़ तब आया जब आर्यन खान की एनसीबी दफ्तर से एक सेल्फी वायरल हुई। इस सेल्फी में जो व्यक्ति नजर आ रहा था, ये वही था जो रेड टी-शर्ट में आर्यन को एनसीबी दफ्तर ले जाता हुआ दिखा था। इसका नाम था किरण गोसावी। ये वही था जिसे एनसीबी ने गवाह बनाया था। इसकी कार में आर्यन को बैठाकर एनसीबी दफ्तर लाया गया था। किरण गोसावी नाम के शख्स को लेकर भी नवाब मलिक ने सवाल उठाए। बाद में जब एनसीबी की जांच में सवाल उठे तो उसमें गोसावी के साथ सेल्फी भी एक अहम मुद्दा बनी। जब गोसावी से एनसीबी की जांच टीम (एसआईटी) ने पूछताछ की तो उसने बताया कि दोस्तों को दिखाने के लिए आर्यन खान के साथ सेल्फी ली थी। इस पूरे मामले में क्राइम रिपोर्टर और डॉक्यूमेंट्री मेकर विवेक अग्रवाल कहते हैं, ‘आर्यन खान केस ड्रग केस न होकर एक तरह से पॉलिटिकल ट्रायल था। इसके पीछे जो वजह है वो भी साफ है। मामले को हवा देने वाले नेता थे, शुरुआत करने वाले भी नेता थे और इसकी सुनवाई की धीमी रफ्तार के लिए भी नेता ही जिम्मेदार हैं। ये केस न तो ड्रग्स से रिलेटेड था और न ही किसी और चीज से। आर्यन के जरिए शाहरुख को घुटनों पर लाने की कोशिश थी। एनसीबी ने तो खुफिया जानकारी पर कार्रवाई की थी। बेशक बड़े-बड़े लोगों से सबूतों के आधार पर पूछताछ हुई, लेकिन किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।' विवेक अग्रवाल का दावा है कि, 'एक बड़े नेता के कहने पर ये साजिश रची गई। इनके कहने पर ही आर्यन और उसके दोस्तों को लाखों के पास फ्री में दिए गए। उनके इशारों पर ही एनसीबी को टिप दी गई देकर मामले को सुलगाया गया। उन्हें पता था कि स्टार के पास अफीम, चरस जैसे नार्कोटिक्स होंगे ही।' विवेक से बात करने के बाद मैं साउथ मुंबई में एनसीबी दफ्तर पहुंची। दफ्तर के बाहर सख्त पहरा है। अंदर घुसने से पहले ही गार्ड ने रोक दिया। मैंने बताया आर्यन केस के बार में जानकारी लेनी है। इशारे से अंदर आने मना कर दिया। उसने वहीं से किसी को फोन लगाकर मेरे बारे में बाताया। कई बार पूछने पर भी उसने फिर कोई जवाब नहीं दिया। दरअसल, उस समय जब मुंबई एनसीबी की जांच पर सवाल खड़े हुए तो दिल्ली एनसीबी टीम को बुलाया गया था। एनसीबी अफसर समीर वानखेड़े पर 25 करोड़ रुपए की रिश्वत की साजिश रचने के आरोप लगे। आरोप यह भी लगा कि शाहरुख खान एनसीबी को 50 लाख रुपए दे चुके हैं। शाहरुख खान और समीर वानखेड़े की कथित वॉट्सऐप चैट लीक हो गई, मामले में अनन्या पांडे, दीपिका पादुकोण, सारा अली खान, श्रद्धा कपूर, रकुलप्रीत, अर्जुन रामपाल, कॉमेडियन भारती सिंह, फिल्म प्रोड्यूसर करण जौहर समेत फिल्म इंडस्ट्री के कई बड़े नाम सामने आने लगे। कुछ दिन बाद करण जौहर के घर में पार्टी का एक वीडियो भी लीक हुआ। आज जिस ऑफिस के बाहर खड़ी हूं इसी में दीपिका पादुकोण और सारा अली खान से घंटों की पूछताछ हुई थी। मामले में सीबीआई और ईडी के इन्वॉल्व होने के बाद समीर वानखेड़े को केस से हटा दिया गया। अब मैं मॉडल मुनमुन धमीजा के वकील अली काशिफ देशमुख से मिलने मलाड पहुंची। अली काशिफ ने बताया, 'मामला कोर्ट में है। जान बूझकर बहुत रेंग-रेंग कर चलाया जा रहा है। 100 से ज्यादा गवाह हैं। आखिरी सुनवाई जुलाई में हुई थी। तीन जजों का तो तबादला हो गया। अब तक आरोप तय नहीं हुए हैं क्योंकि एप्लिकेशन पेंडिंग हैं।' काशिफ कहते हैं, ‘पूरे मामले में खामियां ही खामियां नजर आती हैं। कई बार कोर्ट में इस बात को उठा चुका हूं। एक अहम गवाह है अधीश दुग्गल। उस पर आर्यन खान को ड्रग्स देने का आरोप है। चार्जशीट में 1839 नंबर पन्ना आर्यन खान से संबंधित है, 1840 अधीश दुग्गल से। लेकिन 1841वां पन्ना गायब है।' अधीश की गिरफ्तारी पर काशिफ कहते हैं, ‘इसका सीधा सा कारण है कि अगर उसे गिरफ्तार किया गया, तो केस से जुड़े सभी आरोपी गिरफ्तार होंगे। 20 आरोपियों में से छह को एनसीबी ने क्लीन चिट दे दी है। आर्यन खान समेत पांच लोगों को जिस आधार पर क्लीन चिट दी गई, बाकियों को भी उसी आधार पर मिलनी चाहिए। एनसीबी ने खुद ही आरोपी बनाया फिर खुद ही क्लीन चिट दे दी। जिस दिन चार्ज फ्रेम होगा बवाल हो जाएगा। क्योंकि कहीं न कहीं तो कोई दबाव है। इसलिए ही सब कुछ धीमा चल रहा है।' इसके बाद मैं वरिष्ठ पत्रकार सुधाकर कश्यप से मिलने मराठी प्रेस क्लब पहुंची। सुधाकर कहते हैं कि, 'केस में जिस तरह की धाराएं लगी थीं, उसके हिसाब से आर्यन खान को छह महीने से पहले जमानत नहीं मिल सकती थी। इस केस में वसूली, रिश्वत और फिल्म इंडस्ट्री को डराने धमकाने के भी आरोप लगे जिसके पीछे नेताओं का ही हाथ था।' यहीं मेरी मुलाकात हुई महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार संदीप सोनवलकर से। ड्रग्स केस को लेकर सोनवलकर कहते हैं, ‘मुंबई तो है ही। पुणे में जिस तरह से ड्रग्स को लेकर हर दिन हादसे हो रहे हैं, आने वाले दिनों में यह राजनीति का एक बड़ा मुद्दा बन जाएगा। हाल ही में महाराष्ट्र में 3000 किलो ड्रग्स पकड़ी गई है।' अब मैं इस मामले को राजनीतिक रंग देने वाले एनसीपी नेता नवाब मलिक से मिलने पहुंची। इस बार मुंबई के मानखुर्द शिवाजी नगर विधानसभा क्षेत्र से एनसीपी कैंडिडेट हैं। उनका मुकाबला समाजवादी पार्टी के अबू आसिम आजमी से है। जिनपर नवाब मलिक ने आरोप लगाया है कि 15 साल से सत्ता में हैं लेकिन उनके दफ्तर में ही दम मारो दम कर रहे हैं। मलिक का कहना है कि यहां ड्रग्स का सम्राज्य है। आर्यन केस को लेकर नवाब मलिक कहते हैं, ‘ये मामला शाहरुख के बेटे आर्यन खान से जुड़ा है, इससे मुझे कोई मतलब नहीं है। मुझे केवल समीर वानखेड़े से मतलब है। उसने मेरे दामाद को जेल भेजा। हमारे खानदान को बदनाम किया। दामाद और बेटी ने आत्महत्या करने की कोशिश की।' समीर वानखेड़े को लेकर नवाब मलिक कहते हैं, ‘वो बॉलीवुड को डरा रहा था। रोज फिल्म एक्टर्स की परेड करा रहा था। मैंने उसके बारे में पता लगाने में सारी ताकत लगा दी थी। मेरे सभी लोग समीर वानखेड़े का कच्चा चिट्ठा तलाशने में लग गए। उस समय जो भी खुलासे किए वे सब सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में लिखे हैं। समीर वानखेड़े तो क्या कोई जांच अधिकारी भी उसे झुठला नहीं सकता। इसी वजह से वो साइड लाइन है।’ कुछ समय पहले ऐसी खबरें थीं कि समीर वानखेड़े शिवसेना शिंदे की टिकट पर मुंबई की धारावी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। फिर खबरें आईं कि समीर ने चुनाव जीतने की स्थिति को लेकर सर्वे कराया था। रिपोर्ट में उन्हें कांग्रेस कैंडिडेट गायकवाड़ के मुकाबले कमजोर बताया गया। इसके बाद समीर के चुनाव लड़ने का कहीं कोई जिक्र तक नहीं हुआ। क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल कहते हैं कि, ‘आर्यन खान केस के बाद ड्रग पूरे महाराष्ट्र तो नहीं, लेकिन मुंबई के कुछ इलाकों में जरूर मुद्दा बना है। जैसे डोंगरी, लोखंडवाला, गोवंडी, मानखुर्द शिवाजी नगर और मुंबरा’ आर्यन खान कस भले ही एक हाई प्रोफाइल केस रहा हो लेकिन इसके बाद महाराष्ट्र चुनाव में ड्रग्स का मुद्दा नेताओं के भाषण का हिस्सा बनने लगा। 5 अक्टूबर को महाराष्ट्र के वाशिम में पीएम मोदी ने अपनी रैली के दौरान ड्रग्स को लेकर कांग्रेस पर जमकर हमला बोला। दिल्ली में 5 हजार करोड़ की ड्रग्स पकड़े जाने को लेकर पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस युवाओं को नशे की लत में धकेलकर उनके पैसे से चुनाव लड़ना चाहती है। अक्टूबर में मुंबई में पकड़ी गई 300 करोड़ रुपए की ड्रग्स को लेकर शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस पर ड्रग माफिया को बचाने का आरोप लगाया था। ड्रग माफिया ललित पाटिल को लेकर भी विपक्ष ने उद्धव सरकार पर जमकर निशाना साधा था। अक्टूबर 2020 में पिंपरी-चिंचवड़ पुलिस ने ललित पाटिल को नासिक में करोड़ों की ड्रग फैक्ट्री चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया था। 2 अक्टूबर 2024 को इलाज के दौरान ललित पुणे के एक अस्पताल से भाग गया था। जिसे 17 अक्टूबर को पुलिस ने चेन्नई से गिरफ्तार किया। जिसे लेकर सत्तारूढ़ शिवसेना ने पूर्व उद्धव ठाकरे सरकार पर माफिया की मदद करने का आरोप लगाया। महाराष्ट्र के महाकांड सीरीज के अन्य एपिसोड भी पढ़िए... 1-बाबरी विध्वंस का बदला, मुंबई में 12 ब्लास्ट:जानबूझकर चुना था नमाज का वक्त, 257 लोग मारे गए; यहीं से हिंदुत्व ने जोर पकड़ा 12 मार्च 1993, उस रोज शुक्रवार को 12 बम धमाके हुए थे। इसमें 257 लोग मारे गए थे। ये अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने का बदला था। दुबई के एक आलीशान होटल में ISI अधिकारियों और दाऊद की पहली मीटिंग हुई। उसके बाद दाऊद इस काम के लिए राजी हो गया। पूरी खबर पढ़िए...2- दलित महारों के सामने टिक न सकी पेशवा की सेना:कोरेगांव हिंसा के बाद दलित वोट बंटे; BJP नेता बोले- पुराना जख्म मत कुरेदो 2018 से पहले सब कुछ ठीक था। 1 जनवरी 2018 को एल्गार परिषद की तरफ से भीमा कोरेगांव में सभा हुई। एल्गार परिषद एक तरह की सभा है, जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता, पूर्व जज, IPS अधिकारी और कई दलित चिंतक जुड़ते हैं। वे दलितों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ अपनी बात मजबूत करने के संगठित होते हैं। पूरी खबर पढ़िए...
भारत में पैक्ड पानी के बाजार पर 55 साल से राज कर रही बिसलेरी की कमान अब 44 साल की जयंती चौहान के हाथ में है। भारत के 32 फीसदी मिनरल वाटर मार्केट पर बिसलेरी इंटरनेशनल का कब्जा है। देशभर में 122 प्लांट और 4500 से ज्यादा डिस्ट्रीब्यूटर्स हैं। कंपनी का बिजनेस दुबई और अबु धाबी में भी है। कंपनी की ब्रांड वैल्यू 7000 करोड़ रुपए से अधिक है। 2022-23 में बिसलेरी इंटरनेशनल का रेवेन्यू 2300 करोड़ रुपए से अधिक रहा है। मेगा एंपायर में आज कहानी बिसलेरी और उसकी वाइस चेयरमैन जयंती चौहान की… जयंती चौहान बोतल बंद पानी के क्षेत्र में टॉप ब्रांड बिसलेरी को लीड कर रही हैं। उन्होंने बिसलेरी के साथ ही अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए कई प्रीमियम सेगमेंट में वेदिका जैसे नए प्रोडक्ट भी लॉन्च किए हैं। जयंती ने बिसलेरी की कमान उस वक्त संभाली, जब कंपनी बिकने के कगार पर पहुंच गई थी। जयंती जब 24 साल की थीं तभी से अपने पिता के साथ बराबरी से कंपनी का काम देख रही हैं। बिसलेरी के पॉपुलर होने और उसे शिखर तक पहुंचाने में जयंती का अहम रोल है। उन्हीं की वजह से इस कंपनी का ऑफिस मुंबई में खुला और आज ये कंपनी पानी के अलावा फिजी फ्रूट ड्रिंक्स जैसे प्रोडक्ट्स बनाती है। करीब चार साल पहले जयंती का बिजनेस में इंटरेस्ट कम होने लगा। तब जयंती के पिता रमेश चौहान ने इसे टाटा ग्रुप को बेचने का फैसला किया। डील 7000 करोड़ रुपए में होनी थी। हालांकि आखिरी दौर की बातचीत से पहले डील कैंसिल हो गई। 24 साल की उम्र में पिता के बिजनेस में हाथ बंटाना शुरू किया जयंती ने 24 साल की उम्र में अपने पिता के साथ बिसलेरी के दिल्ली ऑफिस में कामकाज करना शुरू किया था। अपने शुरुआती महीनों में जयंती ने बिसलेरी प्लांट के रेनोवेशन और ऑटोमेशन प्रोसेस पर फोकस किया। उन्होंने कंपनी के HR के अलावा सेल्स और मार्केटिंग टीम में भी कई बदलाव किए। साल 2011 में जयंती दिल्ली से मुंबई शिफ्ट हो गईं थीं। मुंबई, दिल्ली और न्यूयॉर्क में बीता जयंती का बचपन जयंती का जन्म 1985 में दिल्ली में हुआ। वे अपने पिता की इकलौती बेटी हैं। पिता रमेश चौहान के पिता का नाम भी जयंती था। उन्होंने यही नाम अपनी बेटी का रखा। जयंती चौहान ने अपना बचपन दिल्ली, मुंबई और न्यूयॉर्क जैसे शहरों में बिताया। हाईस्कूल करने के बाद उन्होंने लॉस एंजिलिस के फैशन इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन एंड मर्चेंडाइजिंग (FIDM) से प्रोडक्ट डेवलपमेंट की पढ़ाई की। जयंती ने लंदन कॉलेज ऑफ फैशन से फैशन स्टाइलिंग और फोटोग्राफी की भी पढ़ाई की है। उन्होंने कई प्रमुख फैशन हाउस में इंटर्न के तौर पर काम भी किया है। लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (SOAS) से अरबी भी सीखी है। इटली का नाम भारत की पहचान बिसलेरी की स्थापना इटली के साइनॉर फेलिस बिसलेरी ने की थी। सन 1966 में इटली के नोसेरा उम्ब्रा में उनके नाम से जन्मा ब्रांडेड पानी बेचने का फॉर्मूला भी हमारे देश में सबसे पहले फेलिस बिसलेरी ही लाए थे। इधर, भारत में साल 1961 में चार चौहान भाइयों के पारले समूह का बंटवारा हुआ। चार भाइयों में एक, जयंतीलाल चौहान के हिस्से में आया पारिवारिक समूह का सॉफ्ट ड्रिंक कारोबार। इस समय पारले ग्रुप रिमझिम, किस्मत और पारले कोला ब्रांड नाम से सॉफ्ट ड्रिंक भी बना रहा था। सॉफ्ट ड्रिंक के इस कारोबार को चलाना एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि यह वह दौर था जब देशवासियों के पास दो वक्त का खाना भी नहीं था। जयंतीलाल के तीन बेटे मधुकर, रमेश और प्रकाश में से रमेश चौहान ने अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग व बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई की थी। पुश्तैनी कारोबार से जुड़ते ही रमेश चौहान ने निर्णय लिया कि उन्हें सॉफ्ट ड्रिंक में ज्यादा वैराइटी के साथ सोडा भी लॉन्च करना चाहिए। संयोग से उस समय देश में इटली की कंपनी बिसलेरी लिमिटेड सम्पन्न वर्ग के लिए कांच की बोतल में मिनरल वाटर बेच रही थी। मिला युवा कंधों का मजबूत सहारा 1969 में रमेश चौहान ने बिसलेरी को इटली के एक बिजनेसमैन से इस मकसद से 4 लाख रुपए में खरीद लिया कि इस ब्रांड को वे सोडा ब्रांड में तब्दील करेंगे। बिसलेरी के तब देशभर में मात्र 5 स्टोर थे, एक कोलकाता में और 4 मुंबई में। रमेश चौहान ने बिसलेरी सोडा लॉन्च किया, पर बिसलेरी के बोतलबंद पानी वाले दो ब्रांड ‘बबली’ और ‘स्टिल’ को बंद नहीं किया। पारले समूह ने कई साल तक सोडा और पानी दोनों बिसलेरी ब्रांड के नाम से बेचा। इसके अलावा रमेश चौहान ने लिम्का, थम्स अप, माजा, गोल्ड स्पॉट जैसे सॉफ्ट ड्रिंक भी लॉन्च किए। 1985 के दौरान पीईटी/पेट यानी प्लास्टिक मटेरियल ने इस उद्योग को बदल डाला। यह हल्का, मजबूत और रीसाइकल किया जा सकने वाला ऐसा पैकेजिंग मटीरियल था, जिसे किसी भी आकार में ढाला जा सकता था। पैकेजिंग की समस्या हल हुई तो दाम कम हुए। इसी दौरान आर्थिक उदारीकरण का दौर आया और देश के बाजार दुनिया के लिए खुल गए। आर्थिक सुधार बना शुभ संयोग भारत में आर्थिक सुधार के बाद बाजार का विकास और अच्छा मुनाफा देखते हुए अमूमन उन दिनों हर तीसरे महीने एक नया ब्रांड लॉन्च होने लगा तो एक बड़े रणनीतिक फैसले के तहत रमेश चौहान ने सॉफ्ट ड्रिंक कारोबार अमेरिका की दिग्गज कंपनी कोका-कोला को बेच कर अपना ध्यान पानी बेचने पर लगा दिया। उन्होंने बिसलेरी ब्रांड का प्रमोशन इतनी चतुराई से किया कि यह शुद्ध जल का पर्याय बन गया। इसी दौर में बिसलेरी की सफलता से प्रेरित कई नए ब्रांड शुद्ध पानी के दावे के साथ बाजार में कूदे तो नब्बे के दशक में बिसलेरी को भी ‘प्योर एंड सेफ’ सूत्र वाक्य का सहारा लेना पड़ा। बोतलबंद पानी के नाम पर ब्रांड युद्ध साल 2000 की शुरुआत में पेप्सी, कोका कोला और नेस्ले जैसी कंपनियों ने बिसलेरी के एकाधिकार में सेंध लगाई। इसके साथ बोतलबंद पानी का बाजार भी प्रीमियम, पॉपुलर और बल्क सेग्मेंट्स में बंट गया। जहां पॉपुलर सेग्मेंट में बिसलेरी, बेली, एक्वाफीना और किनले, तो प्रीमियम सेग्मेंट पर डैनॉन इवियन, नेस्ले पेरियर और सान पेलाग्रिनो काबिज हुए। इसी प्रकार पांच, दस और बीस लीटर के पैक वाले बल्क सेग्मेंट में बिसलेरी, एक्वाफिना और किनले अगुआ ब्रांड बने। रंग लाई पैकेजिंग रणनीति दूसरे ब्रांड्स से मिल रही टक्कर को देखते हुए बिसलेरी ने कई साइज के आकर्षक पैक बाजार में उतारे। भीड़ भरे आयोजनों को केन्द्र में रखकर तीन सौ मिली का कप पेश किया। इसके साथ ही नई पैकेजिंग के साथ ‘प्योर एंड सेफ’ विज्ञापन अभियान को बंद कर ‘प्ले सेफ’ विज्ञापन शुरू किया। ऐसा करके बिसलेरी ब्रांड ने युवाओं और एंटरटेनमेंट को जोड़ने के लिए ‘फन एलिमेंट’ भी अपने प्रमोशन अभियान में शामिल कर लिया। अब आते हैं बिसलेरी की कहानी पर बिसलेरी की विदेशी से भारतीय कंपनी बनने की कहानी काफी दिलचस्प है। बिसलेरी कंपनी को इटली में साइनॉर फेलिस बिसलेरी ने शुरू किया। तब कंपनी को अल्कोहल रेमिडी बनाने के इरादे से डेवलप किया गया। फेलिस के फैमिली डॉक्टर सेसरी रॉसी उनके करीबी दोस्त थे। फेलिस की 1921 में मौत के बाद रॉसी बिसलेरी के मालिक बने। पेशे से डॉक्टर रॉसी इटली से बाहर कुछ अलग करना चाहते थे। उन्होंने भारत में मिनरल वाटर ब्रांड शुरू करने का सोचा। इसके लिए उन्होंने अपने भारतीय दोस्त और वकील खुशरू सुंतुक से बात की और वे तैयार हो गए। इसके बाद वे भारत आ गए और 1965 में मुंबई के ठाणे में बिसलेरी का पहला प्लांट शुरू हुआ। पानी बेचने पर पागल कहा गया बिसलेरी ने शुरुआत में पानी की बोतल की कीमत 1 रुपए रखी। चैलेंज ये था कि उस समय आम लोगों को मामूली जरूरतों को पूरा करने में दिक्कत आ रही थी। ऐसे में 1 रुपए की पानी की बोतल बेचना आज साफ हवा को पैकेट में भरकर बेचने जैसा था। पानी बेचने के इस आइडिया पर कंपनी के मालिकों को पागल कहा जाने लगा। डिमांड सिर्फ 5 स्टार होटल तक रही शुरुआत के बाद लगभग 4 साल डिमांड सिर्फ अमीर तबके के लोगों और कुछ 5 स्टार होटल्स में ही रही। 1969 में बिसलेरी को पारले के रमेश जयंतीलाल चौहान ने 4 लाख रुपए में खरीद लिया। रमेश चौहान ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वे पढ़ाई कर वापस लौटे तो उनकी पहली जिम्मेदारी बिसलेरी ही बनी। उन्होंने टैलेंटेड लोग ढूंढे चाहे वो उनके सलाहकार हो या ऐडवर्टाइजमेंट एजेंसी के लोग। इस फैसले से कंपनी आगे बढ़ती गई। वापस सॉफ्ट ड्रिंक मार्केट में कदम रखा फरवरी 2016 में 'बिसलेरी पॉप' के लॉन्च के साथ सॉफ्ट ड्रिंक मार्केट में फिर कदम रखा। लिमोनाटा, पिना कोलाडा, फोंजो और स्पाइसी वैरिएंट शुरू किए गए। हालांकि मार्केट में ज्यादा कॉम्पिटिशन के कारण ये फेल हो गए। सॉफ्ट ड्रिंक्स मार्केट में उतरने का मौका मिला तो उतरे भी। लोग मार्केट में वैराइटी की डिमांड कर रहे हैं। हम मार्केट हिलाने के लिए मार्केट बनाने में विश्वास करते हैं। पर्यावरण सुधार के लिए कदम उठाए बिसलेरी ग्रीनर प्रॉमिस जैसी कई पहल चलाई जा रही हैं। यह क्लाइमेट चेंज और पानी के नेचुरल सोर्सेस को बचाने का काम कर रही हैं। 283 से ज्यादा चेक डैम बनाए गए और जगह-जगह रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट लगाए जा रहे हैं। अभी तक 26.35 बिलियन लीटर पानी बचाया गया है। इससे पहले 4 अक्टूबर 2015 में गिनीज वर्ल्ड बुक रिकॉर्ड बना, जिसमें 8 घंटे में 23,53,890 किलो वजन की बोतल रिसाइकल की गई है। रीसाइक्लिंग के बाद जूते, टी-शर्ट और बैग जैसे प्रोडक्ट बनाए जाते हैं। इस साल 31 जनवरी को बिसलेरी ने तमिलनाडु के कोयंबटूर में 12 घंटे में 79 टन प्लास्टिक बोतल रिसाइकल कर गिनीज बुक वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराया है। बिसलेरी पहले विदेशी कंपनी थी, जिसे बाद में भारत में शुरू किया गया। रिसर्च-अनमोल शर्मा ***** अन्य मेगा एंपायर भी पढ़िए... 1- 14 साल में बनाई 47 हजार करोड़ की कंपनी:पीयूष बंसल ने माइक्रोसॉफ्ट छोड़कर शुरुआत की; 3 बातें बनाती हैं सबसे अलग लेंसकार्ट को मजबूत रेवेन्यू ग्रोथ और कम समय में बड़ा ब्रांड बनने पर स्टार्टअप ऑफ द ईयर का अवॉर्ड मिला है। इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार लेंसकार्ट का मार्केट कैप 47 हजार करोड़ से अधिक का है। पूरी खबर पढ़िए... 2. इसरो से पहले सुपर कंप्यूटर खरीदा, एक फैसले से बनी देश की नंबर 1 कंपनी भारत के 50 प्रतिशत पेंट बाजार पर एशियन पेंट्स का कब्जा है। 15 देशों में 27 मैन्युफैक्चरिंग प्लांट हैं। व्यापार 60 देशों में फैला है। कंपनी का मार्केट कैप करीब 3 लाख करोड़ है। एशियन पेंट्स की शुरुआत से अब तक की कहानी बेहद दिलचस्प है। पूरी खबर पढ़िए...
बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ बढ़ती नफरत, क्या अस्तित्व खत्म करने की चल रही साजिश?
Bangladesh News: बांग्लादेश में हिंदुओं को निशाना बनाने का उद्देश्य एक बड़े ईको सिस्टम का हिस्सा बन गया है, जिसमें कट्टरपंथियों के साथ-साथ बांग्लादेश सरकार और प्रशासन भी शामिल हैं.
दिल्ली से US सिर्फ 30 मिनट में... एलन मस्क की स्पेसएक्स ने बनाया Earth प्लान, ऐसी हैं खूबियां
दुनिया के सबसे अमीर आदमी और स्पेसएक्स, टेस्ला जैसी कंपनियों के संस्थापक एलन मस्क ने एक बार फिर सभी को हैरान कर दिया है. उन्होंने दिल्ली से अमेरिका जाने के लिए सिर्फ 30 मिनट का समय लगने की बात कही है. इस संबंध उनकी कंपनी स्पेस एक्स ने काम भी शुरू कर दिया है.
मिट्टी में मिल गई ईरान की सारी प्लानिंग, इजरायल की एयरस्ट्राइक में नहीं बची सीक्रेट न्यूक्लियर लैब
Iran's Secret Nuclear Lab: दावा किया जा रहा है ईरान जिस लैब में एक लंबे समय से खुफिया तरीके से परमाणु हथियारों की दिशा में काम कर रहा था, उसे तबाह कर दिया गया है. इजरायली अधिकारी ने दावा किया है कि इस प्रयोगशाला के तबाह हो जाने के बाद ईरान कई वर्षों तक नहीं उठ पाएगा.
Elon Musk meets Iran UN envoy: अमेरिका में जबसे ट्रंप ने जीत हासिल की है, तबसे सभी की नजरें ईरान पर टिकीं हैं. इसी बीच एक मीडिया रिपोर्ट ने तो और भी हलचल मचा दी है. बताया जा रहा है कि एलन मस्क और ईरानी राजदूत की मुलाकात हुई है. जानें पूरी कहानी.
TTP: पाकिस्तान में लगातार हो रही आतंकी घटनाओं से सेना परेशान है. हद तो तब हो गई, जब आतंकवाद को पनाह देने वाला पाकिस्तान खुद आतंकवाद से बचने की बात कर रहा है. जानें कौन है टीटीपी जिसने पाकिस्तान में मचा रखा है कोहराम.
Vivek Ramaswamy and Elon Musk plan major job cuts: अमेरिका में ट्रंप अभी राष्ट्रपति पद की शपथ लिए ही नहीं है, लेकिन इसके पहले सरकारी जॉब को लेकर एक चेतावनी आ गई है. आने वाले दिनों में अमेरिका में सरकारी नौकरियों में बड़े पैमाने पर कटौती के संकेत हैं.
Explained: ब्रिटेन के विश्वविद्धालयों से भारतीय छात्रों का मोह क्यों भंग हो रहा है?
Indian students from studying in UK:आज भारत के तमाम आर्थिक रूप से सक्षम पैरेंट्स अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा यानी हायर एजुकेशन के लिए विदेश में भेजना पसंद करते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन में बीते कुछ सालों में आए अंदरूनी मुल्क के बदलावों के कारण भारतीय छात्रों के आंकड़े में 21 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है.
who is Karoline Leavitt: डोनाल्ड ट्रंप ने इस बार ऐतिहासिक जीत ही नहीं हासिल की है, बल्कि कई सारे रिकॉर्ड भी बनाते जा रहे हैं. ट्रंप की कैबिनेट में कई सारे नाम चौंकाने वाले हैं, और एक बार फिर ट्रंप ने सभी को चौंका दिया जब 27 साल की महिला कोव्हाइट हाउस की सबसे युवा प्रेस सचिव बना दिया. जानें कौन हैंकैरोलिन लेविट?
ChinaMan cycles 4,400km over 100 days:चीन में एक पति ने अपनी पत्नी से सुलह करने के लिए ऐसी शर्त पूरी की, जो अब चर्चा का विषय बन गया है. आप सोचकर दंग रह जाएंगे, चीन के झोउ ने़100 दिन में 4400 KM साइकिल चलाया है. जानें पूरी कहानी.
‘मनोज जरांगे पाटिल मराठाओं के लिए OBC के हिस्से से आरक्षण मांग रहे हैं। इसने दोनों कम्युनिटी के बीच दूरी बढ़ा दी है। अब OBC दुकानदार से मराठा सामान नहीं खरीद रहे, मराठाओं की दुकानों में OBC नहीं आते। लोगों ने अपने रास्ते बदल लिए हैं। ये पूरे महाराष्ट्र हो रहा है।’ अनुज चेपटे मराठावाड़ा के राम गवहान बुदरुक गांव के उपसरपंच हैं। ये गांव महाराष्ट्र के जालना जिले में है। गांव में 880 वोटर हैं, जिनमें आधे OBC कैटेगरी से है। अनुज भी OBC हैं। उनका गांव मराठा आंदोलन का सेंटर बन चुके अंतरवाली सराटी से सटा है। 2500 वोटर वाले अंतरवाली सराटी में करीब 1000 मराठा वोटर हैं। दोनों गांव घनसावंगी विधानसभा सीट में आते हैं, जहां से शरद पवार की पार्टी NCP (SP) के राजेश टोपे लगातार तीन बार से चुनाव जीत रहे हैं। इस बार उनका मुकाबला शिवसेना शिंदे गुट के हिकमत उधान से है। मनोज जरांगे पाटिल ने अंतरवाली सराटी से आंदोलन शुरू किया तो राम गवहान बुदरुक के OBC भी साथ थे। वे पूरे महाराष्ट्र से आने वाले मराठाओं के लिए इंतजाम करते थे। बाहर से आईं गाड़ियां खड़ी करने के लिए गांव में 6 एकड़ में पार्किंग बना दी। मनोज जरांगे पाटिल ने मराठाओं के लिए OBC कोटे से आरक्षण मांग लिया, तब दोनों समुदायों में दूरियां बढ़ने लगीं। हालत ऐसी है कि OBC समुदाय के कई लोगों ने कसम खा ली है कि मराठा दुकानदार से सामान नहीं लेंगे। ऐसा ही फैसला मराठाओं ने किया है। महाराष्ट्र की 288 सीटों पर 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। इससे पहले मराठा Vs ओबीसी का मुद्दा गहरा गया है। अब तक मराठवाड़ा में सूखा सबसे बड़ा मुद्दा होता था, अब इसकी जगह मराठा Vs ओबीसी ने ले ली है। विवाद की जड़ में OBC कोटे से आरक्षण की मांगमनोज जरांगे पाटिल के नेतृत्व में मराठा समुदाय अपने लिए कुनबी जाति का प्रमाणपत्र मांग रहा है। मराठों को कुनबी का दर्जा देने की मांग इसलिए की गई क्योंकि ये जाति OBC में आती है। सरकार ने भी मराठाओं की मांग मान ली। इसी बात से OBC समुदाय में गुस्सा फैल गया। इस गुस्से का असर राम गवहान गांव की अदिति सचिन कालुशे बताती हैं। कॉलेज में पढ़ने वालीं अदिति कहती हैं, ‘मेरे बहुत से मराठा दोस्त हैं। बचपन से हम साथ पढ़े-लिखे, खेले, स्कूल गए, लेकिन कभी किसी को मराठा या OBC के नजरिए से नहीं देखा।’ अदिति, मनोज जरांगे पाटिल को पसंद नहीं करतीं। उनका मानना है कि मराठा आरक्षण आंदोलन की वजह से जातिवाद को हवा मिली है। वे कहती हैं, ‘कॉलेज में मेरे मराठा दोस्त मनोज जरांगे पाटिल का स्टेटस लगाते हैं। आरक्षण की बात करते हैं। मैं OBC समुदाय से हूं और हमारे नेता लक्ष्मण हाके का सपोर्ट करती हूं। उनके बारे में सोशल मीडिया पर लिखती हूं।’ 46 साल के लक्ष्मण हाके पुणे के फेर फर्ग्यूसन कॉलेज में प्रोफेसर थे। वे मराठा समुदाय को OBC कोटे से आरक्षण देने का विरोध कर रहे हैं। लक्ष्मण हाके धनगर समुदाय से आते हैं और सोलापुर के जुजारपुर गांव के रहने वाले हैं। मराठवाड़ा में पानी और फसल के कम दाम से बड़ा मुद्दा जातिवादपुणे-बारामती से निकलकर हम महाराष्ट्र के बीड जिले में पहुंचे। यहीं से मराठवाड़ा शुरू होता है। यहां सोयाबीन की फसल कट चुकी है। कपास की फसल पक रही है। इस इलाके का सबसे बड़ा पेशा किसानी ही है। यहां 75% आबादी खेती करती है। किसान बरसों से दो मुश्किलें झेलते आए हैं। पहली पानी की किल्लत और दूसरी फसल का वाजिब दाम न मिलना। पानी तो ऐसी समस्या है, जिसका कभी समाधान ही नहीं हो सका। किसान बताते हैं इस साल सोयाबीन का भी कम भाव मिल रहा है। सरकार ने सोयाबीन की MSP 4,892 रुपए क्विंटल तय की है, लेकिन किसानों को 4 हजार रुपए से कम में सोयाबीन बेचना पड़ रहा है। BJP ने सोयाबीन की MSP बढ़ाकर 6 हजार रुपए करने का वादा किया है। वहीं महाविकास अघाड़ी ने कहा है कि उसकी सरकार किसानों को बोनस देकर 7 हजार रुपए क्विंटल का भाव देगी। फिर भी इस चुनाव में मराठवाड़ा में न तो पानी मुद्दा है और न किसानी। इस बार मुद्दा जाति का है। बीते डेढ़ साल में मराठा आरक्षण आंदोलन ने जोर पकड़ा है। बीड, जालना, लातूर, नांदेड़, हिंगोली, परभणी से लेकर मराठवाड़ा के सबसे बड़े शहर छत्रपति संभाजी नगर (औरंगाबाद) तक इस आंदोलन का असर दिखा। बीड में तो हिंसा भी हुई, जिसमें मराठाओं पर OBC समुदाय के लोगों के घर जलाने के आरोप लगे। आरक्षण आंदोलन के बाद कैसे बढ़ा जातिवादगांव: राम गवहान बुदरुक‘शुगर फैक्ट्रियों में मराठाओं को अच्छी नौकरियां, हमें मजदूरी वाले काम’OBC आबादी वाले रामगवहान बुदरुक गांव के ऋषिकेश चेपटे वंजारा समुदाय से हैं। ये समुदाय OBC में आता है। ऋषिकेश कहते हैं, ‘गांव में सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी हैं। पास में शुगर की एक फैक्ट्री है। उसमें अच्छी नौकरियां मराठाओं को मिलती हैं। गन्ने उठाने, गंदगी साफ करने के लिए हम लोगों को रखते हैं।’ राम गवहान बुदरुक के उपसरपंच अनुज चेपटे कहते हैं, ‘मराठा आरक्षण आंदोलन शुरू हुआ था, तब आसपास के गांवों में रहने वाले OBC कैटेगरी के लोगों ने मनोज जरांगे पाटिल का सपोर्ट किया था। वे मराठवाड़ा के मराठाओं के लिए आरक्षण मांग रहे थे। हमने अपनी जमीन आंदोलन के लिए दी है।' 'मैंने मनोज जरांगे पाटील के साथ आंदोलन के शुरुआती दौर में काम किया। उन्होंने अनशन शुरू किया, वहां जुटने वाली भीड़ की व्यवस्था की देखरेख हम ही कर रहे थे।’ अनुज कहते हैं, ‘पहले गांव में OBC और मराठा एक-दूसरे की जरूरतों में साथ खड़े होते थे। अब एक-दूसरे के यहां आते-जाते भी नहीं है। कटेंगे तो बटेंगे का नारा लगता है कि OBC के लिए है। अगर हम बंटेंगे, तो OBC का नुकसान होगा।’ पड़ोसी गांव में मनोज जरांगे ने आंदोलन तेज किया तो वहीं मराठा आंदोलन के विरोध में एक प्रोटेस्ट हुआ। जरांगे के प्रोटेस्ट वाली जगह के पास ही लक्ष्मण हाके ने OBC के समर्थन में अनशन शुरू कर दिया। इस प्रोटेस्ट ने OBC बनाम मराठा के मुद्दे को और ज्यादा हवा दे दी। उपसरपंच अनुज भी प्रदर्शन के दौरान OBC नेता लक्ष्मण हाके के साथ काम कर रहे थे। वे बताते हैं कि लक्ष्मण हाके ने कहा था कि हम चुनाव में OBC कैंडिडेट खड़े करेंगे। गनसांगवी, गेवरा, जालना में हमारे कैंडिडेट खड़े हुए हैं। पूरे महाराष्ट्र में हम OBC कैंडिडेट को वोट देंगे। मराठा कैंडिडेट को वोट नहीं देंगे।’ गांव के ही अनिल डोमाले मराठा समुदाय से आते हैं। शाम के वक्त वे हमें गांव के बीच लगी चौपाल के पास मिल गए। हमने उनसे पूछा कि मराठा आंदोलन के बारे में क्या सोचते हैं? अनिल जवाब देते हैं, ‘आंदोलन अभी चल रहा है। हमारे OBC भाइयों के साथ जो रिश्ता पहले था, आज भी वही है।’ हमने कहा कि OBC समुदाय के लोग आपके आसपास हैं, क्या इसलिए ऐसा कह रहे हैं? अनिल बोले- ‘मनोज जरांगे पाटिल हमारे नेता हैं, जो उन्हें नेता नहीं मानता, उनके बारे में मैं क्या बोलूं।’ राम गवहान बुदरुक में ही मिले अशोक साहेबराव गाड़े दलित समुदाय से हैं। वे कहते हैं, ‘आरक्षण आंदोलन राजनीति का खेल है। इसके लिए किसी को दोष देने का फायदा नहीं है। अब हर कोई आरक्षण की बात करने लगेगा तो कैसे आरक्षण मिलेगा।’ ‘हमारे गांव में अलग-अलग जाति के लोग हैं। ज्यादातर खेती करते हैं। सभी का एक-दूसरे से काम पड़ता रहता है। आरक्षण आंदोलन के बाद मराठा और दूसरी पिछड़ी जातियों के बीच असहजता जरूर आई है।’ वहीं, विट्ठल भागोजी चपटे अलग ही बात बताते हैं। कहते हैं, ‘मैं OBC हूं, लेकिन मराठा कैंडिडेट राजेश टोपे का सपोर्ट कर रहा हूं। इसकी वजह है कि वे हमारा साथ देते हैं। गांव में सड़क की दिक्कत थी। हमने उनसे मांग की, उन्होंने सड़क बनवा दी।’ ‘मराठा समुदाय के लोग आंदोलन करते रहते हैं। हमारा उससे कोई लेना-देना नहीं है। हमारा आरक्षण मत छीनो, आपको दूसरा जो आरक्षण चाहिए, ले लो। मनोज जरांगे पाटिल का आंदोलन चल रहा था, तब उन्होंने हमारे यहां पानी पिया था। हमने भी उनके आंदोलन का समर्थन किया था। हमारा कहना बस ये है कि आप सरकार से आरक्षण मांगो, OBC का हक मत मारिए।’ गांव: अंतरवाली सराटीराम गवहान बुदरुक गांव के बाद हम अंतरवाली सराटी गांव पहुंचे। गांव के मुख्य मंदिर के पास मनोज जरांगे पाटिल कई बार अनशन कर चुके हैं। गांव की आबादी करीब 5 हजार है, जिनमें करीब 1500 मराठा हैं। मराठाओं के अलावा गांव में OBC, दलित और मुस्लिम रहते हैं। गांव की बेंच पर हमें दो लोग बैठे मिले। मधुकर तारक मराठा समुदाय से हैं और अशोक रोड़े OBC कैटेगरी से हैं। शुरुआत में दोनों ने कहा कि आंदोलन से हमारे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ा। अशोक रोड़े से हमने पूछा कि आप मनोज जरांगे पाटिल का सपोर्ट करते हैं? उन्होंने हां में जवाब दिया। मधुकर ने जब कहा कि हम OBC नेता लक्ष्मण हाके का समर्थन नहीं करते, तो अशोक भी कहने लगे कि मैं भी जरांगे का सपोर्ट नहीं करता। इसके बाद मधुकर और अशोक दोनों कहते हैं कि मराठा आंदोलन के बाद लोगों के व्यवहार में फर्क आया है। आपको हमारे गांव और जालना जिले में तो ये कम है। मराठवाड़ा के दूसरे जिलों खासतौर पर बीड में मराठा और OBC का द्वेष ज्यादा दिख रहा है। एक्सपर्ट बोले- OBC को रिझाने के लिए BJP माधव फॉर्मूला लाईमराठवाड़ा की राजनीति को समझने वाले प्रोफेसर जयदेव डोले कहते हैं, ‘1989 में मंडल कमीशन की शुरुआत हुई। तब BJP ने OBC का सपोर्ट नहीं किया था। महाराष्ट्र के समीकरणों की वजह से उन्होंने OBC को रिझाने के लिए माधव यानी माली, धनगर और वंजारी का फॉर्मूला निकाला। BJP के गोपीनाथ मुंडे वंजारी समुदाय के बड़े लीडर बने। BJP तब तक ब्राह्मणों की पार्टी कही जाती थी। मराठा शरद पवार के ज्यादा करीब थे। मनोज जरांगे पाटिल की वजह से मराठा फिर एकजुट हुए हैं। मराठा प्रभावशाली समुदाय है। कभी भी महाराष्ट्र में मराठा और OBC के बीच द्वेष या संघर्ष खुलकर सामने नहीं आया।’ वहीं, सीनियर जर्नलिस्ट संदीप सोनवलकर कहते हैं, ‘मराठा बनाम OBC का असर मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र में भी दिखता है। हालांकि पूरे प्रदेश पर इसका असर कम है। मराठवाड़ा में बड़े समुदाय धनगर, वंजारा, माली और कुनबी कांग्रेस की तरफ जाते दिख रहे हैं।' 'BJP के साथ कोई मराठा समुदाय का बड़ा हिस्सा जुड़ता नजर नहीं आता। अगर वोटिंग का ट्रेंड लोकसभा की तरह रहता है, तो जातियों के वोटिंग पैटर्न में बड़ा बदलाव नहीं दिख रहा।’ .......................................... महाराष्ट्र इलेक्शन से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें 1. आदित्य ठाकरे Vs मिलिंद देवड़ा, वर्ली का किंग कौन, राज ठाकरे बिगाड़ेंगे भतीजे का खेल ऊंची इमारतों के बीच चॉल और झुग्गियों वाली साउथ मुंबई की हाई प्रोफाइल वर्ली सीट। 2024 का विधानसभा चुनाव यहां मुंबई के दो बड़े सियासी घरानों के वारिस आदित्य ठाकरे और मिलिंद देवड़ा के बीच है। ये सीट बालासाहेब ठाकरे वाली शिवसेना का गढ़ रही है। इस बार राज ठाकरे की MNS ने भी अपना कैंडिडेट उतारा है। पढ़िए पूरी खबर... 2. मस्तान से गवली तक, कैसे पॉलिटिक्स में घुसे गैंगस्टर, डॉन ने जिसे भाई कहा उसकी जीत तय महाराष्ट्र में 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव की वोटिंग होनी है। एक वक्त था, जब मुंबई में अंडरवर्ल्ड का सिक्का चलता था। चुनाव जीतने के लिए बड़े-बड़े नेता अंडरवर्ल्ड डॉन से मदद मांगते थे। ये दौर 1993 में मुंबई दंगों तक चला। हाजी मस्तान और अरुण गवली तो खुद भी पॉलिटिक्स में उतरे। अरुण गवली तो चुनाव जीतकर विधायक भी बना। पढ़िए पूरी खबर...
18 दिसंबर 2005 को सुबह करीब 11 बजे मुंबई का शिवाजी पार्क देशभक्ति के मराठी गीतों से गूंज रहा था। उस रोज अक्सर गरजने वाले बालासाहेब के भतीजे राज ठाकरे की आवाज लरज रही थी। जुबान लड़खड़ा रही थी। राज अपने कुर्ते की जेब से रुमाल निकालते और पसीना पोंछते। रुमाल जेब में रखने से पहले होठों पर बार-बार आ रही लार भी साफ कर लेते। जिमखाना की छत पर बनाए गए मंच से राज कहते हैं, ‘अपने सबसे बड़े दुश्मन के लिए भी आज जैसा दिन नहीं चाहूंगा। मैंने सिर्फ सम्मान मांगा था, मुझे सिर्फ अपमान मिला।’ इसी के साथ रूंधी सी आवाज में राज ठाकरे शिवसेना छोड़ने का ऐलान करते हैं। उनकी आवाज इतनी कांप रही थी कि मंच के पास ही खड़े मीडिया वाले उनसे पूछते हैं- राज भाऊ-राज भाऊ काय सांगला, यानी क्या कहा? राज फिर से माइक पकड़ते हुए कहते हैं, ‘मी शिवसेनेचा राजनामी दिला आहे’ मतलब मैंने शिवसेना से इस्तीफा दे दिया है।’ शिवाजी पार्क वही ऐतिहासिक जगह है, जहां 19 जून 1966 को बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना की नींव रखी थी। करीब 4 दशक बाद उनके ही चहेते भतीजे राज ठाकरे ने शिवसेना और परिवार से बगावत कर दी। शिवसेना से इस्तीफा देने के कुछ समय बाद राज ठाकरे ने ‘महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना’ यानी मनसे बनाई। मनसे को बने 18 साल से ज्यादा हो गए, लेकिन अब तक राज ठाकरे ने खुद एक भी चुनाव नहीं लड़ा। इस बार राज ठाकरे का बेटा अमित ठाकरे मुंबई की माहिम सीट से मैदान में है। ‘महाराष्ट्र के महाकांड’ सीरीज के तीसरे एपिसोड में राज ठाकरे की शिवसेना से बगावत और अलग पार्टी बनाने की कहानी जानने मैं मुंबई पहुंची… ठाकरे परिवार के अंदर फूट कैसे पड़ी, ये जानने के लिए मुझे किसी ऐसे शख्स की तलाश थी, जो ठाकरे परिवार का बहुत नजदीकी हो। ऐसे शख्स मुझे मिल भी गए। उनसे मिलने मैं उसी शिवाजी पार्क पहुंची जो शिवसेना के बनने से लेकर टूटने तक का गवाह रहा है। यहां से थोड़ी ही दूरी पर बालासाहेब ठाकरे का बंगला ‘मातोश्री’ और राज ठाकरे का घर भी है। मैं जिनसे मिलीं, उन्होंने कहा, ‘सब बताऊंगा, लेकिन कैमरे के सामने नहीं। मेरा नाम भी कहीं नहीं आना चाहिए। राज ठाकरे मेरे भाऊ हैं। अपने घर-परिवार का हर काम मैं उनसे सलाह लेकर ही करता हूं’। उन्होंने किस्सा शुरू किया, ‘1989 में राज ठाकरे 21 साल की उम्र में शिवसेना की स्टूडेंट विंग, भारतीय विद्यार्थी परिषद के अध्यक्ष थे। राज इतने सक्रिय थे कि 1989 से लेकर 1995 तक 6 साल के भीतर उन्होंने महाराष्ट्र के कोने-कोने के अनगिनत दौरे कर डाले। 1993 तक उन्होंने लाखों की तादाद में युवा अपने और शिवसेना के साथ जोड़ लिए। इसका नतीजा ये हुआ कि पूरे राज्य में शिवसेना का तगड़ा जमीनी नेटवर्क खड़ा हो गया। 25 साल के राज ठाकरे की संगठन में ऐसी पकड़ देखकर उस वक्त कांग्रेस सरकार के सीएम शरद पवार भी हैरान थे। 1995 में महाराष्ट्र से कांग्रेस की विदाई हो गई। पहली बार शिवसेना और भाजपा सत्ता में आए। शिवसेना के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने। अब बालासाहेब ठाकरे को लगने लगा कि मैंने जो सपना देखा था वह पूरा हो गया। लोगों के बीच बात होने लगी कि राज ही बालासाहेब के वारिस बनेंगे। इसी दौरान बालासाहेब की पत्नी मीना ठाकरे की मौत हो गई। कुछ साल बाद जवान बेटे बिंदू माधव की एक्सीडेंट में मौत हो गई। परिवार में हुई दो मौत से बालासाहेब टूट से गए। इसका असर उनकी सेहत पर भी पड़ा। वे शिवसेना की गतिविधियों से दूर रहने लगे। इसी दौरान पुणे में हुए एक मर्डर केस में राज का नाम आ गया। 23 जुलाई 1996 को पुणे की अलका टॉकीज में पुलिस को एक शव मिला। यह शव मुंबई के माटुंगा निवासी रमेश किनी का था। अगली सुबह यानी 24 जुलाई को 'सामना' अखबार के फ्रंट पेज पर खबर छपी। हेडलाइन थी 'दादर के एक छोटे व्यापारी की पुणे में हत्या'। सामना शिवसेना का मुखपत्र है। उसी दिन विपक्ष के नेता छगन भुजबल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई, जिसमें मृतक रमेश किनी की पत्नी शीला भी शामिल हुईं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में शीला ने आरोप लगाया कि राज ठाकरे के इशारे पर उनके पति को अगवा कर हत्या कर दी गई। रमेश किनी हत्याकांड में राज ठाकरे का नाम आने से हलचल बढ़ गई। यहीं से चाचा-भतीजे यानी बालासाहेब और राज ठाकरे के रिश्तों में खटास आ गई। इस केस की जांच CBI को सौंप दी गई। हालांकि CBI ने राज ठाकरे को क्लीन चिट दे दी, लेकिन अब पारिवारिक रिश्ते पहले जैसे नहीं रहे। बालासाहेब के कहने पर 2002 में उद्धव ठाकरे पहली बार शिवसेना के राजनीतिक कार्यक्रम में शामिल हुए। सुनियोजित तरीके से बालासाहेब ने उद्धव को इस साल होने वाले मुंबई महानगर पालिका के चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी। उद्धव पिता के इशारे को समझ चुके थे। इस चुनाव में उद्धव ने राज के कई करीबी नेताओं के टिकट काट दिए। राज ठाकरे इस बात से नाराज जरूर थे, लेकिन कुछ कर नहीं पाए। एक इंटरव्यू में राज ने ये तक कह दिया कि ‘हां! मैं दुखी हूं’। हालांकि इस चुनाव के परिणाम ने शिवसेना में उद्धव की पकड़ को मजबूत बना दिया। शिवसेना और बीजेपी गठबंधन ने 133 सीटें जीतकर सत्ता कायम रखी। 2003 में महाबलेश्वर में पार्टी का अधिवेशन हुआ। बालासाहेब ठाकरे ने राज से कहा- 'उद्धव को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाओ।' राज ने पूछा, ‘मेरा और मेरे लोगों का क्या होगा।’ बालासाहेब बोले, ‘तुम उद्धव का नाम अनाउंस करो, बाकी सब मैं देख लूंगा, तुम चिंता मत करो।’ राज ठाकरे ने बेमन से उद्धव ठाकरे को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष अनाउंस कर दिया। साल 2004 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके नारायण राणे ने शिवसेना छोड़ दी। राणे ने राज से भी शिवसेना छोड़ने के लिए कहा, लेकिन राज ने मना कर दिया। राज्य सरकार में मंत्री रहे नारायण राणे को बाल ठाकरे ने 1999 में महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया था। उद्धव ठाकरे, सुभाष देसाई और मनोहर जोशी- तीनों नारायण राणे को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में नहीं थे। इन तीनों के विरोध का सामना कर रहे राणे ने आखिरकार इस्तीफा दे दिया। साल 2005 की बात है जब राज ठाकरे, बालासाहेब ठाकरे से मिल भी नहीं पा रहे थे क्योंकि उद्धव ने रोक लगा दी थी। एक साल तक राज ठाकरे को न तो पार्टी का कोई काम दिया गया और न ही पार्टी के कार्यकर्ताओं से मिलने दिया गया। अब तक शिवसेना में उद्धव ठाकरे हावी होने लगे थे। पार्टी के हर फैसले में उनका असर दिखने लगा था। 10 दिसंबर 2005 को शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए बालासाहेब ठाकरे ने एक कॉलम में लिखा, ‘क्या शिवसेना पार्टी दो हिस्सों में बंट जाएगी? यह बंटवारा किस तरह से होगा? इन सवालों पर चिंता करना आप लोग बंद करें। आप सभी महाराष्ट्र और अपने बारे में चिंता करें। हम अपने किले की रक्षा करने में सक्षम हैं। मैं मीडिया को बताना चाहता हूं कि जो कुछ भी आपके मन में है वह नहीं होने वाला है। शिवसेना अजेय और अविनाशी है।’ वरिष्ठ पत्रकार धवल कुलकर्णी की किताब ‘द कजिन्स ठाकरे’ के मुताबिक, ‘2005 में तब हंगामा मच गया जब राज ठाकरे ने पत्र लिखकर बालासाहेब ठाकरे से कहा कि चापलूसों की चौकड़ी आपको गुमराह कर रही है। इस बीच पार्टी की हार का जिम्मेदार भी राज ने इस चौकड़ी को ठहराया। राज इस चौकड़ी में उद्धव, मिलिंद नार्वेकर और सुभाष देसाई की बात कर रहे थे।’ इस पत्र से ही राज ठाकरे की शिवसेना से बगावत की शुरुआत हुई। दिसंबर 2005 में राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ने का फैसला कर लिया। उन्होंने अपने चाचा को इस्तीफा फैक्स कर दिया। ‘द कजिन्स ठाकरे’ के मुताबिक 27 नवंबर 2005 को राज ठाकरे के घर के बाहर हजारों समर्थकों की भीड़ इकट्ठा हुई। यहां राज ने समर्थकों से कहा, 'मेरा झगड़ा मेरे विट्ठल (भगवान विठोबा) के साथ नहीं है, बल्कि उसके आसपास के पुजारियों के साथ है। कुछ लोग हैं, जो राजनीति की ABC को नहीं समझते हैं। इसलिए मैं शिवसेना के नेता के पद से इस्तीफा दे रहा हूं। बालासाहेब ठाकरे मेरे भगवान थे, हैं और रहेंगे।' ‘राज शिवसेना से इस्तीफा देने के बाद इमोशनली टूट गए थे। एक बंद कमरे की बैठक में राज रो पड़े थे। यह भी कहा जाता है कि राज का इस्तीफा पत्र संजय राउत ने तैयार किया था। पत्र के लहजे में ठहराव था और इसमें राज के पार्टी छोड़ने की वजह को बखूबी लिखा गया था। बालासाहेब, राज का इस्तीफा देखते ही समझ गए कि संजय राउत ने लिखा है। 9 मार्च 2006 को शिवाजी पार्क में राज ठाकरे ने अपनी पार्टी ‘महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना’ यानी मनसे का ऐलान कर दिया। राज ने मनसे को ‘मराठी मानुस की पार्टी’ बताया और कहा- यही पार्टी महाराष्ट्र पर राज करेगी। उत्तर भारतीयों के खिलाफ शुरू किया आंदोलन2008 में राज ठाकरे ने उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसक आंदोलन करना शुरू कर दिया। ठाकरे की मांग थी कि महाराष्ट्र में हिंदी की जगह मराठी को तवज्जो दी जाए। मनसे कार्यकर्ताओं ने अंग्रेजी और हिंदी साइनबोर्डों को काला करना शुरू कर दिया। 3 मई 2008, राज ने शिवाजी पार्क में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा- 'महाराष्ट्र में पंजाबी, सिंधी, पारसी और हर तरह के लोग रहते हैं। हम उनसे खतरा महसूस क्यों नहीं करते? लेकिन ये उत्तर भारतीय छठ पूजा जैसे कार्यक्रमों के जरिए अपनी ताकत दिखा रहे हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि मुंबई में असामाजिक तत्व उत्तर भारत से आए थे। अक्टूबर 2008 में मनसे कार्यकर्ताओं ने रेलवे बोर्ड परीक्षा केंद्रों के बाहर मंडली लगा ली थी। वे मुंबई में होने वाली परीक्षाओं के लिए आने वाले उत्तर भारतीय उम्मीदवारों पर हमला करने की फिराक में थे। जैसे ही उत्तर भारतीय छात्रों का आना शुरू हुआ, मनसे कार्यकर्ता टूट पड़े। कई छात्र घायल हुए। इस घटना की वजह से राज ठाकरे को कोंकण के रत्नागिरी से गिरफ्तार किया गया। राज की गिरफ्तारी के बाद पूरी मुंबई में हिंसा की घटनाएं भी हुईं। वरिष्ठ पत्रकार और लेखिका राही भिड़े कहती हैं- 'राज ठाकरे ने बहुत सारी योजनाएं बनाईं। आंदोलन किए और फिर बीच में छोड़ दिए। पहले उन्होंने टोल माफिया के खिलाफ आंदोलन किया, दूसरे दिन बंद हो गया। बंद क्यों हुआ, ये किसी को समझ नहीं आया। 2009 में राज ठाकरे की पार्टी मनसे ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा। उम्मीदवारों को वोट तो मिले, लेकिन सीट एक भी नहीं जीत पाए। इसके ठीक छह महीने बाद विधानसभा चुनाव में पार्टी के 13 विधायक चुने गए। 2012 में बालासाहेब की मौत के बाद राज ठाकरे की पार्टी पिछड़ने लगी। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में शिवसेना को हमदर्दी मिली। पार्टी 20 में से 18 सीटें जीत गई। 10 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली मनसे सारी सीटें हार गई और सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। बालासाहेब की तरह ही राज ठाकरे पार्टी के संस्थापक के रूप में काम करते रहे। कभी चुनाव नहीं लड़े। इस बार मनसे राज्य में अकेले चुनाव लड़ रही है। राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे जिस माहिम सीट से मैदान में हैं, वहां उनका मुकाबला मौजूदा विधायक एकनाथ शिंदे की शिवसेना के सदा सरवणकर और चाचा उद्धव की पार्टी के महेश सावंत से है। इस बार मनसे ने 132 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आलोचक रहे राज ठाकरे अब उनके प्रशंसक बन गए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था। वह कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के समर्थन में थे। इस गठबंधन के लिए की जाने वाली रैलियों में जमकर नरेंद्र मोदी और भाजपा की आलोचना करते थे। हालांकि जिन दस लोकसभा क्षेत्रों में उन्होंने रैलियां कीं, उनमें से नौ में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की हार हुई। 2024 आने से पहले ही राज ठाकरे ने अपना स्टैंड बदल लिया। अब कह रहे हैं कि शिवसेना को छोड़ कर बीजेपी ही एकमात्र पार्टी है, जिसके साथ मेरे संबंध हैं। बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस भी उन्हें दोस्त बता रहे हैं। हालांकि मनसे नेता अविनाश अभ्यंकर कहते हैं कि हम किसी पार्टी के साथ नहीं है। बीजेपी ने कुछ अच्छे काम किए हैं जिसकी हम तारीफ करते हैं। इसका ये मतलब नहीं है कि हम बीजेपी के साथ हैं।' पुणे के पत्रकार अविनाश थोरात कहते हैं- ‘2009 में राज ठाकरे ने चुनाव में उतरने का फैसला किया। इस चुनाव में उन्हें 13 सीटें मिली। तब तक जनता उन्हें गंभीरता से लेती थी। अभी लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपने प्रत्याशी खड़े नहीं किए। कह दिया कि पीएम मोदी ने अच्छा काम किया, हम उन्हें समर्थन देंगे। विधानसभा चुनाव आते-आते फिर चुनाव लड़ने लगे। इन चुनावों में उन्हें तीन या चार से ज्यादा कहीं कोई सीट आने वाली नहीं है। उनकी आक्रामकता दिशाहीन लगने लगी है।’ अविनाश कहते हैं-,‘महाराष्ट्र की जनता उद्धव ठाकरे को तो गंभीर नेता मानती है, लेकिन राज ठाकरे को नहीं। राज ठाकरे क्राउड पुलर यानी भीड़ जुटाने वाले नेता हैं। अगर ये दोनों साथ आ जाएं तो महाराष्ट्र की राजनीति बदल जाए, लेकिन यह एक सपना है।’ वरिष्ठ पत्रकार राजू पारुलेकर कहते हैं- ‘राज को लोग गंभीर नेता नहीं मानते क्योंकि वो अपनी भूमिका बदलते रहते हैं। कभी किसी के साथ गए तो कभी किसी के साथ। इस बार फिर से एंटी इस्टैब्लिशमेंट वाली भूमिका में हैं। अब वह फडणवीस, शिंदे और अजित पवार की सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं।’ मुंबई में सात विधानसभा सीटों पर राज ठाकरे ने मनसे के उम्मीदवार नहीं उतारे हैं। इसके अलावा शिवसेना के टिकट पर चुनाव लड़ रही शाइना एनसी के खिलाफ भी मनसे नहीं लड़ रही। इस चुनाव को लेकर राज ठाकरे ने दावा किया है कि महायुति की सरकार आएगी और उसे मनसे की जरूरत पड़ेगी। बीजेपी के साथ अपने संबंधों पर राज ठाकरे ने कहा, ‘भगवा पार्टी उनकी नैसर्गिक करीबी है। शिवसेना के समय से ही उनके संबंध बीजेपी के गोपीनाथ मुंडे, प्रमोद महाजन, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं से थे। बीजेपी उनका कम्फर्ट जोन है, जिनके साथ हर स्तर पर बात हो सकती है।’ राजू पारुलेकर कहते हैं- ‘इस चुनाव में बीजेपी राज ठाकरे के खिलाफ कुछ नहीं बोल रही है। राज पांच फीसदी मतदान को प्रभावित कर सकते हैं जो कि मायने रखता है। ऐसे में राज ठाकरे भाजपा के बहुत काम के हैं। दूसरी ओर माहिम विधानसभा से राज ठाकरे का बेटा अमित ठाकरे पहली बार खड़ा है। एक तरह से उसका राजनीतिक अस्तित्व दांव पर लगा है। शिंदे ने वहां से सदा सरवणकर को खड़ा किया है।’ *** महाराष्ट्र के महाकांड सीरीज के अन्य एपिसोड भी पढ़िए... 1-बाबरी विध्वंस का बदला, मुंबई में 12 ब्लास्ट:जानबूझकर चुना था नमाज का वक्त, 257 लोग मारे गए; यहीं से हिंदुत्व ने जोर पकड़ा 12 मार्च 1993, उस रोज शुक्रवार को 12 बम धमाके हुए थे। इसमें 257 लोग मारे गए थे। ये अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने का बदला था। दुबई के एक आलीशान होटल में ISI अधिकारियों और दाऊद की पहली मीटिंग हुई। उसके बाद दाऊद इस काम के लिए राजी हो गया।पूरी खबर पढ़िए...2- दलित महारों के सामने टिक न सकी पेशवा की सेना:कोरेगांव हिंसा के बाद दलित वोट बंटे; BJP नेता बोले- पुराना जख्म मत कुरेदो 2018 से पहले सब कुछ ठीक था। 1 जनवरी 2018 को एल्गार परिषद की तरफ से भीमा कोरेगांव में सभा हुई। एल्गार परिषद एक तरह की सभा है, जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता, पूर्व जज, IPS अधिकारी और कई दलित चिंतक जुड़ते हैं। वे दलितों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ अपनी बात मजबूत करने के संगठित होते हैं। पूरी खबर पढ़िए...
तारीख- 11 नवंबर, 2024 दिल्ली से सटे गुरुग्राम में 35 साल की मनीषा को क्राइम ब्रांच ने अरेस्ट कर लिया। उसे 2019 में भी गिरफ्तार किया गया था। तब मनीषा को गुरुग्राम के ट्रांसपोर्टर्स और कारोबारियों से करोड़ों की उगाही के मामले में पकड़ा गया था। ये उगाही उसके गैंगस्टर पति कौशल चौधरी के इशारे पर की गई थी। कौशल 2022 से जेल में बंद है। मनीषा कौशल की दूसरी पत्नी है। काम के सिलसिले में वो उससे जेल में मिलने जाती रहती थी। उसी के इशारे पर मनीषा विदेश में बैठे अपने भाई से फोन करवाकर रंगदारी मांगती थी। आरोप है कि 10 सितंबर को मनीषा ने एक होटल कारोबारी से 2 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगी थी। मनीषा की गिरफ्तारी के बाद पता चला कि वो कानूनी-दांव पेच समझने के लिए लॉ की पढ़ाई भी कर रही है, ताकि कौशल चौधरी गैंग को हैंडल कर सके। वो ZANGI एप के जरिए गैंगस्टर से कॉन्टैक्ट करती है। मनीषा अकेली लेडी डॉन नहीं हैं। पिछले दो महीने में दिल्ली से सटे इलाके में दो लेडी डॉन अरेस्ट हुईं। इनमें से एक काजल का पति गैंगस्टर है और जेल में बंद है। दूसरी अनु धनकड़ का बॉयफ्रेंड भी गैंगस्टर है और विदेश में है। तीनों लेडी डॉन अपने गैंगस्टर पार्टनर्स के धंधे की कमान संभाले हुए हैं। आइए जानते हैं तीनों लेडी डॉन की पूरी कहानी। सबसे पहले अनु धनकड़ की कहानी…17 की उम्र में हिमांशु भाऊ से प्यार, 19 में कराने लगी मर्डरलेडी डॉन अनु धनकड़ 24 अक्टूबर, 2024 को अरेस्ट की गई थी। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उसे भारत-नेपाल बॉर्डर पर यूपी के लखीमपुर खीरी से अरेस्ट किया था। 18 जून को उसने दिल्ली के राजौरी गार्डन के बर्गर किंग रेस्टोरेंट में अमन नाम के युवक को मिलने बुलाया। फिर उसे तीन शूटर्स से गोली मरवा दी। अनु धनकड़ महज 19 साल की है। वो पुर्तगाल और अमेरिका में रहकर दिल्ली में गैंग चला रहे हिमांशु भाऊ की गर्लफ्रेंड है। अनु कैसे गैंगस्टर हिमांशु भाऊ के कॉन्टैक्ट में आई, इसे लेकर हमने दिल्ली पुलिस में अपने सोर्स से बात की। उन्होंने बताया कि हिमांशु भाऊ और अनु धनकड़ दोनों एक-दूसरे से आज तक आमने-सामने नहीं मिले हैं। इन दोनों की कहानी दो साल पहले 2022 में शुरू हुई। उस वक्त अनु महज 17 साल की थी। वो रोहतक की रहने वाली है। उसका एक भाई पुलिस में है। अनु ने तब रोहतक के एक कॉलेज में साइकोलॉजी से ग्रेजुएशन करने के लिए एडमिशन लिया था। फर्स्ट ईयर की पढ़ाई के दौरान अनु एक मैरिज फंक्शन में गई थी। वहीं हिमांशु भाऊ भी आया था। तब हिमांशु भाऊ गैंगस्टर बन चुका था। उसे देखते ही अनु एकतरफा प्यार में फंस गई। वो ये भी नहीं जानती थी कि हिमांशु गैंगस्टर है। शादी में आए दूसरे लोगों के जरिए उसने हिमांशु के बारे में पता किया। फिर उससे सोशल मीडिया पर कॉन्टैक्ट किया। यहां से दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। अनु को हिमांशु के गैंगस्टर होने का पता चला, तब भी वो पीछे नहीं हटी। उससे शादी की जिद पर अड़ गई। फर्स्ट ईयर के बाद पढ़ाई भी छोड़ दी। तब तक हिमांशु भाऊ विदेश जा चुका था। वहीं से वो गैंग ऑपरेट करने लगा। हिमांशु के प्यार में अनु भी उसका साथ देने लगी। अनु महज 18 से 19 साल की उम्र में लेडी डॉन बन गई। वो हिमांशु भाऊ के लिए दिल्ली और हरियाणा के इलाके में क्राइम कराने लगी। अनु धनकड़ का पहला क्राइम केससोनीपत में फायरिंग कराई, फिर हनीट्रैप कर मर्डर करायादिल्ली पुलिस के मुताबिक, अनु धनकड़ का पहला रजिस्टर्ड क्राइम केस 21 जनवरी, 2024 का है। सोनीपत के गोहना में माटुराम हलवाई पर रंगदारी के लिए फायरिंग कराने के मामले में पहली बार अनु का नाम आया था। इसके बाद तुरंत वो रोहतक से दिल्ली में कहीं शिफ्ट हो गई थी। वो सोशल मीडिया और दूसरे एप के जरिए हिमांशु भाऊ के इशारे पर गैंग के लिए काम करने लगी। हिमांशु उसे ऑनलाइन पैसे भेजता था। उन्हीं पैसों से वो शूटर हायर करती थी। अनु सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती थी। इसलिए हिमांशु ने सोशल मीडिया के जरिए अनु को अमन से मिलने का प्लान दिया। फिर बर्गर किंग पर बुलवाकर मर्डर करवाया। मुखबिरी के शक में बुलाया, फिर 38-40 राउंड फायरिंगजेल में बंद गैंगस्टर नीरज बवाना और अशोक प्रधान के बीच गैंगवार चल रही है। अशोक प्रधान गैंग ने अक्टूबर 2020 में नीरज बवाना के चचेरे भाई शक्ति सिंह की हत्या कर दी थी। अमन पर शक्ति की हत्या के लिए मुखबिरी करने का शक था। इसलिए विदेश में बैठे हिमांशु भाऊ ने अनु के सहारे अमन को हनीट्रैप में फंसाया। इसके बाद मिलने के बहाने 18 जून की रात उसे राजौरी गार्डन के बर्गर किंग में बुलवाया। रात करीब साढ़े 9 बजे के आसपास अनु और अमन दोनों एक टेबल पर बैठकर बात कर रहे थे। उसी वक्त अनु के इशारे पर तीन शूटर आए। इनमें से दो अंदर पहुंचे और मौका मिलने का इंतजार करते रहे। मौका मिलते ही दोनों ने 38 से 40 राउंड फायरिंग कर अमन की हत्या की और फरार हो गए। मर्डर के बाद अनु, मुखर्जी नगर में अपने पीजी में लौटी। फिर बैग लेकर तुरंत पंजाब होते हुए जम्मू के कटरा पहुंच गई। वो फरारी काटती रही। फिर यूपी में लखनऊ होते हुए लखीमपुर खीरी के रास्ते नेपाल जाकर फ्लाइट से लंदन भागने वाली थी, लेकिन उससे पहले ही दिल्ली पुलिस ने अरेस्ट कर लिया। हिमांशु भाऊ ने नेपाल से फ्लाइट का टिकट बुक कराया था। पुलिस को अनु के पास वो टिकट भी मिला। लेडी डॉन काजल खत्री की कहानी…जिम में गैंगस्टर से मुलाकात, सोशल मीडिया पर बात, नोएडा में मर्डरनोएडा में 19 जनवरी, 2024 को सूरज मान का मर्डर कर दिया गया। लॉरेंस गैंग के लिए काम करने वाले शूटर ने ये मर्डर किया था। इसके लिए जेल में बंद गैंगस्टर कपिल मान ने कहा था, लेकिन इसे अंजाम तक पहुंचाने का काम लेडी डॉन काजल खत्री ने किया। काजल भी पढ़ाई में अव्वल रही है। नोएडा पुलिस के एक सीनियर अधिकारी ने दैनिक भास्कर को बताया कि काजल ने दिल्ली में रहकर नामी स्कूल से 12वीं तक पढ़ाई की है। इसके बाद दिल्ली के हंसराज कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रही थी। उसी दौरान 2016 में जिम में उसकी मुलाकात गैंगस्टर कपिल मान से हुई। कपिल ने खुद को स्पोर्ट्समैन बताया था। एक साल तक वो कपिल मान को स्पोर्ट्समैन ही समझती रही। इसके बाद उसके गैंगस्टर होने का पता चला, लेकिन तब तक दोनों इतना करीब आ गए थे कि बात शादी तक पहुंच गई। घरवाले शादी को तैयार नहीं थे, इसलिए 2019 में दोनों ने मंदिर में शादी कर ली। शादी के कुछ समय बाद ही 2019 में कपिल जेल चला गया। कपिल मान की पत्नी होने की वजह से काजल आसानी से उससे जेल में मिलती रही और क्राइम के टिप्स लेती रही। फिर वो सिग्नल एप और सोशल मीडिया पर चैट के जरिए गैंग के शूटर को निर्देश देती थी। गैंगस्टर कपिल मान का रुतबा पसंद आया, इसलिए शादी कीकपिल मान के कॉन्टैक्ट में आने के बाद काजल पढ़ाई में पिछड़ने लगी। वो ग्रेजुएशन का फाइनल ईयर पास नहीं कर पाई। उसने मुखर्जी नगर में SSC की तैयारी के लिए कोचिंग भी जॉइन की। नर्सिंग का कोर्स भी किया था, लेकिन अब उसका पूरा ध्यान क्राइम पर था। नोएडा के ACP रैंक के पुलिस अधिकारी ने बताया कि रिमांड के दौरान काजल से पूछा गया कि पढ़ाई में अच्छी होने के बावजूद उसने जुर्म की दुनिया क्यों चुनी? इस पर काजल ने जवाब दिया, ‘मैं कपिल मान को स्पोर्ट्समैन समझकर प्यार करने लगी। उसका रुतबा मुझे पसंद आया, लेकिन जब मुझे उसके गैंगस्टर होने का पता चला और उसके साथी मुझे भी गैंग लीडर की तरह मानने लगे। तब गैंगस्टर होने का जलवा पता चला। इसलिए शादी करने का फैसला कर लिया।‘ 6 साल से काजल ही चला रही थी गैंग2019 में कपिल मान के जेल जाने के बाद काजल ही गैंग चला रही थी। जेल से मिले कपिल मान के निर्देश पर वो बाहर प्लानिंग करती थी। सोर्स बताते हैं कि कपिल मान लॉरेंस गैंग से जुड़ा है। उसका कट्टर विरोधी प्रवेश मान बंबीहा गैंग के नीरज बवाना से जुड़ा है। प्रवेश के भाई सूरज मान की हत्या की साजिश काजल ने ही रची थी। सूरज मान की लोकेशन रोजाना सुबह जिम में मिलती थी। इसलिए उसे जिम के बाहर ही मारने के लिए काजल ने तीन शूटर हायर किए। इनमें एक शूटर लॉरेंस गैंग से भी था। इन लोगों ने सूरज को सरेआम गोली मारी थी। इस वारदात के बाद दो शूटर पकड़े गए थे। शूटर्स से पूछताछ करने के बाद ही काजल खत्री का नाम आया। उस पर यूपी पुलिस ने 25 हजार का इनाम भी रखा था। दिल्ली पुलिस ने सितंबर 2024 में काजल को अरेस्ट कर लिया। वो पिछले कुछ महीने से लगातार लॉरेंस गैंग और गोगी गैंग के बीच कोऑर्डिनेशन का काम कर रही थी। तीसरी लेडी डॉन मनीषा की कहानी…गैंगस्टर पति के लिए कर रही लॉ की पढ़ाई, ZANGI APP से मैनेज करती है गैंग लेडी डॉन मनीषा दूसरी महिला गैंगस्टर से अलग है। गुरुग्राम क्राइम ब्रांच में हमारे सोर्सेज ने बताया कि मनीषा बेहद शातिर है। वो अभी लॉ की पढ़ाई कर कानून की बारीकी सीख रही है। वो अपने गैंग मेंबर्स से बात करने के लिए भी ऐसे मोबाइल ऐप का इस्तेमाल करती है, जिसके लिए सिमकार्ड और फोन नंबर की जरूरत नहीं पड़ती। उसके मोबाइल फोन में ZANGI APP डाउनलोड मिला था। ये सिग्नल एप की तरह होता है। इसकी चैट डिटेल और कॉल्स को ट्रेस करना मुश्किल है। इस एप में खास बात ये है कि बिना किसी मोबाइल नंबर के ही इसमें एक वर्चुअल नंबर क्रिएट हो जाता है। फिर वो नंबर गैंग मेंबर्स को शेयर कर उसी के जरिए चैट और कॉल करती थी। 2019 में कौशल चौधरी की गिरफ्तारी के बाद एक्टिव हुई मनीषा2019 में गैंगस्टर कौशल चौधरी की गिरफ्तारी हुई। उससे पहले ही कौशल ने मनीषा से दूसरी शादी कर ली थी। कौशल की पहली पत्नी का नाम रोशनी है। मनीषा जल्द ही कौशल का सारा कामकाज देखने लगी। मनीषा से पूछताछ करने वाले क्राइम ब्रांच के एक सीनियर अधिकारी ने बताया... मनीषा ने कभी कौशल चौधरी को पानी टैंकर ले जाते देखा था। उसकी कद-काठी और रुतबा देखकर मनीषा उससे प्यार करने लगी। उसके कॉन्टैक्ट में आई और शादी के लिए राजी हो गई। कौशल के जेल जाने के बाद 2019 में ही गुरुग्राम की मंडी से वसूली और एक बुकी विजय का मर्डर कराने की साजिश में मनीषा का नाम आया था। इसके बाद उसे अरेस्ट किया गया था। कुछ ही महीने बाद मनीषा जमानत पर बाहर आ गई। फिर नए तरीके से गैंग चलाने लगी। राजस्थान के नीमराना में रंगदारी के लिए एक होटल पर फायरिंग कराने में भी मनीषा का ही हाथ था। 23 सितंबर 2022 को वो इस मामले में गिरफ्तार भी हुई थी। दूसरी गिरफ्तारी के बाद फरवरी 2023 में वो फिर जमानत पर बाहर आ गई। अब तक उस पर 25 से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं। रंगदारी के लिए विदेश में बैठे अपने भाई सौरभ से कराती फोनमनीषा दो बार जेल जाने के बाद जब बाहर आई, तब अपने भाई गैंगस्टर सौरभ गाडौली के जरिए गैंग और कई काम विदेश से ऑपरेट कराने लगी। अब विदेश में रह रहे सौरभ गाडौली से वो सोशल मीडिया के जरिए संपर्क करती थी। इस केस की जांच से जुड़े अधिकारी बताते हैं कि अभी होटल संचालक से 2 करोड़ की रंगदारी मांगने के लिए भी मनीषा ने अपने भाई सौरभ से ही फोन कराया था। इसी की जांच करते हुए पुलिस ने उसे अरेस्ट कर लिया। ...................................... गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई से जुड़ी ये खबरें भी पढ़िए... 1. ड्रग्स, हथियार, फिरौती की कमाई से चल रहा लॉरेंस गैंग, दिल्ली पुलिस के सामने लॉरेंस का कबूलनामा सलमान खान के घर पर फायरिंग हो या फिर 12 अक्टूबर को मुंबई में NCP नेता बाबा सिद्दीकी का मर्डर, पुलिस को लॉरेंस गैंग पर ही शक है। सवाल है कि आखिर लॉरेंस का नेटवर्क कैसे ऑपरेट हो रहा है, गैंग चलाने के लिए उसके पास पैसा कहां से आता है। इसे लेकर दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट में लॉरेंस बिश्नोई का पूरा कबूलनामा है। पढ़िए पूरी रिपोर्ट... 2. क्या मुंबई में दाऊद की जगह ले रहा लॉरेंस, बाबा सिद्दीकी के मर्डर से बॉलीवुड-बिल्डरों पर धाक जमाने की कोशिश एक्सपर्ट मानते हैं कि बाबा सिद्दीकी के मर्डर से लॉरेंस बॉलीवुड और बिल्डर लॉबी में धाक जमाने की कोशिश कर रहा है। सलमान खान और सलीम खान को धमकी देना, फिर सलमान के घर पर फायरिंग करवाना इसी कोशिश का हिस्सा है। उसके काम करने का तरीका दाऊद इब्राहिम की तरह है। पढ़िए पूरी खबर...
Britain News: ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने 15 दिन बीत जाने के बाद अपनी एक गलती के लिए आखिरकार माफी मांग ली है. दीपावली के मौके पर अपने घर में हुई एक पार्टी में नॉनवेज और शराब परोसे जाने के विरोध में बढ़ती आवाज के बाद केअर स्टार्मर ने सॉरी बोला है.
WFH Tech Glitch: इस बड़ी गड़बड़ी का असर इतना भयानक था कि कई दिनों तक फ्लाइट्स में व्यवधान बना रहा. एयरलाइनों को यात्रियों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए लगभग 1000 करोड़ रुपये का मुआवजा देना पड़ा.
इस देश में हर साल AIDS से मर जाते हैं 15 हजार लोग, 2023 में हुईं 45,000 मौत
Nigeria 15,000 AIDS-related deaths annually: पिछले कुछ सालों में कई देशों मेंAIDS से जुड़ीं मौतें कम हुईं हैं. लेकिन दुनिया में एक देश ऐसा भी है, जहां हर साल15 हजार लोगों की मौत हो रही है. जानें पूरा मामला.
श्रीलंका में राष्ट्रपति की पार्टी NPP को प्रचंड बहुमत, जानिए जीत की इनसाइड स्टोरी
Sri Lanka Parliamentary Election:देश में अगस्त 2025 में आम चुनाव होने थे, लेकिन सितंबर में हुए राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके (Anura Kumara Dissanayake) ने संसद भंग कर मध्यावधि चुनाव कराने के आदेश दे दिए, उनके इस फैसले को एक अहम रणनीति माना जा रहा था.
Hana Rawhiti Maipi Clarke Haka Dance Video:न्यूजीलैंड की सबसे युवा सांसद हाना रावहिती मैपी क्लार्क एक बार फिर चर्चा में हैं. उनका संसद के अंदर का एक वीडियो सोशल मीडिया में जमकर वायरल हो रहा है. हाना का डाका डांस का रौद्र रूप देखा सब हैरान रह गए. आप भी देखें वीडियो.
US: फर्स्ट लेडी के बाथरूम में प्रेमिका के साथ सेक्स करना चाहता था सीक्रेट एजेंट; चौंकाने वाला खुलासा
US News: अमेरिका में एक पूर्व खुफिया अफसर को बर्खास्त कर दिया. मामला पुराना लेकिन बेहद गंभीर था. अमेरिकी जासूस, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति की 'हवाई-हवेली' में प्रेमिका को लेकर उसके साथ सेक्स करने के इरादे से गया था. स्पाई ने ऐसा करके न सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था खतरे में डालने हुए फर्स्ट लेडी के प्राइवेट बाथरूम को डी ग्रेड का होटल का कमरा समझ लिया था.
माले to मुंबई! साये की तरह करता रहा निगहबानी, अब 'दोस्त' का जहाज फ्री में ठीक करेगा भारत
India Maldives Ship: एक साल पहले भारत ने मालदीव को गिफ्ट में शिप दिया था. अब उसे अपग्रेड और मरम्मत करने की जरूरत पड़ी तो भारत ने दोस्ती निभाई है. पड़ोसी प्रथम की नीति पर चलते हुए भारत ने अपना एक पोत माले भेजा और हुरवी शिप को एस्कॉर्ट करके मुंबई लाया गया.
तारीख, 1 जनवरी 1818 जगह- भीमा नदी के किनारे बसा कोरेगांव 20 हजार घुड़सवार, 8 हजार पैदल जवान और तोपखाने के साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय की सेना कोरेगांव के पास पड़ाव डाले हुए है। नदी के दूसरी तरफ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के करीब 800 फौज डटी है। बाजीराव दो हजार सैनिकों की टुकड़ी को ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज पर हमला करने का हुक्म देते हैं। मराठा सेना ने आक्रमण के लिए तोपों के साथ मोर्चा संभाल लेती है। इसी बीच अंग्रेजों की फौज के एक अफसर ने बड़ी चाल चली। उसने अपनी फौज के महार जाति के 500 से ज्यादा दलित सैनिकों को बाजीराव की सेना से युद्ध का हुक्म दे दिया। महार कोरेगांव के इस इलाके से वाकिफ थे। कैप्टन फ्रांसिस स्टॉन्टन की अगुवाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की इस टुकड़ी ने करीब 12 घंटे जंग किया। पेशवा की सेना भाग खड़ी हुई। उन्हें डर था कि जंग लंबा चला तो जनरल जोसफ स्मिथ की अगुवाई में एक और ब्रिटिश टुकड़ी यहां आ जाएगी। इस जंग में कंपनी के 834 फौजी मारे गए। इनमें 275 महार थे। वहीं, मराठा सेना के करीब 600 सैनिक मारे गए। इस जीत पर दलित हर साल 1 जनवरी को जश्न मनाते हैं। 1 जनवरी 2018 को ऐसा ही जश्न मनाने के लिए लोग भीमा कोरेगांव में जमा हुए, लेकिन तभी हिंसा भड़क गई। एक शख्स मारा गया। इस हिंसा का महाराष्ट्र की राजनीति में गहरा असर हुआ। ‘महाराष्ट्र के महाकांड’ सीरीज के दूसरे एपिसोड में ‘भीमा कोरेगांव हिंसा’ की कहानी जानने मैं पुणे से करीब 30 किलोमीटर दूर भीमा कोरेगांव पहुंची हूं... दूर से ही मुझे आसमान छू रहा जयस्तंभ दिखाई दे रहा है। ये वही जयस्तंभ है, जो 1818 की जंग की याद में बनाया गया है। बाहर पुलिस चौकी है, जहां एक पुलिस वाला खड़ा है। मैं मोबाइल से शूट करती हुई आगे निकल गई। एक छोटा सा गेट है। सामने लिखा है-'आप सीसीटीवी की नजर में हैं।' गेट के अंदर ही जयस्तंभ है। चारों ओर पक्की सीमेंट की दीवार है। अंदर भी एक तंबू में दो पुलिस वाले बैठे हैं। उन्होंने पूछा- 'आप कौन हैं, कहां से आई हैं और क्या कर रही हैं?' जवाब देने के बाद जैसे ही मैंने कैमरा जयस्तंभ की तरफ किया, पीछे से कोई मराठी में बहुत तेज चिल्लाया। पलटकर देखा तो 70-80 पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स के जवान जयस्तंभ कैंपस में दाखिल होते दिखे। एक पुलिसवाले ने कहा, ‘मैडम, अपना सामान लेकर यहां से जाइए। यहां फोटो-वीडियो लेने की इजाजत नहीं है।’ ठीक उसी समय कई पुलिसवाले पास ही केले खाते हुए सेल्फी ले रहे थे, लेकिन मुझे कैमरा बंद करना पड़ा। मुझे बाहर निकलना पड़ा। कुछ देर बाद ज्यादातर पुलिसवाले चले गए। सोचा एक बार फिर से कोशिश करनी चाहिए। जैसे ही मैंने कैमरा चालू किया एक पुलिसवाला फिर पहुंच गया। बोला- 'देखो मैडम आप एसएसपी ऑफिस में दिखाई दे रही हैं, आपका मोबाइल जब्त हो जाएगा।' मुझे फिर बाहर निकलना पड़ा। इस कैंपस में दिन में दो बार पैरामिलिट्री फोर्स आती है। पुलिस के टेंट लगे हुए हैं। हर जगह सीसीटीवी लगे हैं। अधिकारी 24 घंटे निगरानी करते हैं। यहीं मेरे मन में सवाल उठा कि आखिर यहां ऐसा क्या खतरा है कि इतनी ज्यादा सिक्योरिटी है? इसका जवाब दिया 2018 में हुए भीमा कोरेगांव हिंसा केस में सरकारी वकील रहे शिशिर हिरे ने। शिशिर बताते हैं, ‘इंटेलिजेंस के पास खबर है कि एक समुदाय जयस्तंभ को गिराना चाहता है। 1818 में जहां जंग लड़ी गई, उस जगह पर 1822 में काले पत्थर से यह स्तंभ बनाया गया। नाम जयस्तंभ रखा। इस स्तंभ पर महारों के साथ 1965 और कारगिल में हुए शहीदों के नाम भी लिखे हैं। महार चाहते हैं कि यहां सिर्फ उनका ही नाम रहे। इसका इतिहास महारों के आत्मसम्मान से जुड़ा हुआ है। महार दलित समुदाय से आते हैं। उन्होंने बाजीराव द्वितीय को अपनी सेवाएं देने की पेशकश की थी। पेशवा ने उनकी जाति का अपमान किया। अपनी पहचान और आत्मसम्मान के लिए महारों ने ब्रिटिश सेना में शामिल होकर ये लड़ाई लड़ी। जंग में शहीद हुए महारों की याद में हर नए साल की पहली तारीख को जनवरी श्रद्धांजलि सभा होती है। इसमें देशभर से दलित जुटते हैं।' वे कहते हैं- '2018 से पहले सब कुछ ठीक था। 1 जनवरी 2018 को एल्गार परिषद की तरफ से भीमा कोरेगांव में सभा हुई। एल्गार परिषद एक तरह की सभा है, जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता, पूर्व जज, आईपीएस अधिकारी और कई दलित चिंतक जुड़ते हैं। वे दलितों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ अपनी बात मजबूत करने के संगठित होते हैं। उस रोज सभा में हजारों लोग मौजूद थे। दोपहर में हिंसा भड़क गई। दुकानों में आग लगा दी गई। इसमें एक युवक की जान चली गई। इस हिंसा के बाद देशभर से 16 लोगों को गिरफ्तार किया था।। इन पर जातीय हिंसा भड़काने का आरोप था। NIA ने इन पर नक्सलियों से संबंध होने का आरोप लगाया था। महाराष्ट्र के चुनावी दफ्तरों में भीमा कोरेगांव एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर नेता चर्चा नहीं करना चाहते। भाजपा प्रवक्ता संदीप खर्डेकर कहते हैं, ‘जिन जख्मों को वक्त ने भर दिया है, उन्हें फिर से क्यों कुरेदना। यह बात पुरानी हो गई है, न्यायिक जांच हो रही है, केस चल रहे हैं। इसे हवा देना ठीक नहीं है।’ महाराष्ट्र के कांग्रेस प्रवक्ता गोपाल आरोप लगाते हैं कि बेशक भीमा कोरेगांव को राजनीतिक तौर पर याद किया जाएगा। दलित, बुद्धिजीवी जानते हैं कि इसमें भाजपा ने कई लोगों को फंसाने की कोशिश की। कुछ साबित नहीं कर पाए। सजा तक नहीं दे पाए। सारी जांच पहले से नियोजित थी। दूसरी तरफ महाराष्ट्र के पत्रकार अविनाश थोरात बताते हैं, ‘ कोरेगांव में हिंसा के बाद 2019 में महाराष्ट्र में चुनाव हुए। हिंसा के बाद भीमराव अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। यानी वंचित बहुजन अगाड़ी और एआईएमआईएम पार्टी साथ मिलकर लड़ीं। उन्हें लगता था कि दलित और मुस्लिम मिलकर एक बड़ी राजनीतिक ताकत बनेंगे, लेकिन 2019 से 2020 के बीच महाराष्ट्र के दलित वोट खिसक कर महाविकास अगाड़ी में चले गए। इस घटना के बाद महाराष्ट्र के दलित कई पार्टियों में बंट गए। कुछ शरद पवार और भाजपा के साथ हो लिए। एक बड़ा वर्ग टूट कर अन्य दलों के खेमे में चला गया।' अविनाश बताते हैं ‘बीते चार साल में कांग्रेस और शिवसेना ने यह साबित कर दिया है कि प्रकाश अंबेडकर भाजपा की बी टीम हैं। प्रकाश अंबेडकर, महाविकास अगाड़ी के साथ भी गए। महाविकास अगाड़ी उन्हें 6 सीट दे रही थी, लेकिन वो ज्यादा सीट चाहते थे। अब दलित समाज को लगता है कि प्रकाश अंबेडकर यानी भाजपा।’ वे कहते हैं कि ‘अब राजनीतिक पार्टियों ने भीमा कोरेगांव मुद्दा दबा दिया है। यह एक सोची समझी चाल है। महाराष्ट्र का दलित इस मुद्दे को बखूबी जानता है। एक बात तय है कि भीमा कोरेगांव में जिस तरह से पुलिस तैनात है, उससे कहा जा सकता है कि जरा सी नजरअंदाजी या सरकार ने ढील बरती उस दिन यह मुद्दा फिर से हवा ले लेगा।’ भीमा कोरेगांव की हिंसा ने महाराष्ट्र की राजनीति को कैसे बदल दिया... महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार राजू पारुलकर बताते हैं- 'एक पक्ष मानता है कि 2018 में दलितों पर अन्याय हुआ था। उन्हें तड़पा-तड़पाकर मारा गया। जेलों में बंद कर दिया गया। हिंसा के बाद एडवोकेट सुधा भारद्वाज को जेल में डाल दिया। डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा बीमार थे। उनकी मां गुजर गईं, लेकिन उन्हें बेल नहीं मिली। इसी साल मार्च में उन्हें बेल मिली और पिछले महीने उनकी मौत हो गई। इसी तरह आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वाले स्टेन स्वामी के साथ भी हुआ। इससे महाराष्ट्र के दलित नाराज हैं। वह जानते हैं कि यह मनु स्मृति और संविधान की लड़ाई है।' इतिहासकार प्रो. रुषिकेश काम्बले भीमा कोरेगांव का दूसरा पक्ष भी बताते हैं। उनका दावा है कि महारों ने मराठों को नहीं बल्कि ब्राह्मणों को हराया था। ब्राह्मणों ने छुआछूत जबरन दलितों पर थोप दिया था और वो इससे नाराज थे। जब महारो ने ब्राह्मणों से इसे खत्म करने को कहा तो वे नहीं माने और इसी वजह से वो ब्रिटिश फौज में शामिल हो गए। ब्रिटिश फौज ने महारों को ट्रेनिंग दी और पेशवा के खिलाफ लड़ने तैयार किया। मराठा शक्ति के नाम पर जो ब्राह्मणों की पेशवाई थी, ये लड़ाई उनके खिलाफ थी और महारों ने उन्हें हराया। कोरेगांव में हुए इस युद्ध को दलित अपने इतिहास की एक बड़ी घटना मानते हैं।' ब्रिटिश लेखक जेम्स ग्रांट डफ ने अपनी किताब 'ए हिस्टरी ऑफ द मराठाज' में इस लड़ाई का जिक्र किया है। इसमें लिखा है कि महार रातभर चलने के बाद नए साल की सुबह दस बजे भीमा नदी के किनारे पहुंचे जहां उन्होंने करीब 28 हजार मराठों को रोके रखा। वो नदी की तरफ मार्च करते रहे और पेशवा के सैनिकों को लगा कि वो पार करना चाहते हैं लेकिन जैसे ही उन्होंने गांव के आसपास का हिस्सा कब्जाया, उसे पोस्ट में तब्दील कर दिया।' हेनरी टी प्रिंसेप की किताब 'हिस्टरी ऑफ द पॉलिटिकल एंड मिलिट्री ट्रांजैक्शंस इन इंडिया' में इस लड़ाई में महार दलितों से सजी अंग्रेज टुकड़ी के साहस का जिक्र है। इस किताब में लिखा है कि कप्तान स्टॉन्टन की अगुवाई में जब ये टुकड़ी पूना जा रही थी, तो उस पर हमला होने की आशंका थी। खुली जगह पर फंसने के डर से बचने के लिए इस टुकड़ी ने कोरेगांव में पहुंचकर उसे अपना किला बनाने का फैसला किया। अगर ये टुकड़ी खुले में फंस जाती तो मराठों के हाथों बुरे हालात में फंस सकती थी। भीमा-कोरेगांव दलित अस्मिता का केंद्र कैसे बना? भीमराव अम्बेडकर के पिता रामजी मालोजी सकपाल ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सूबेदार थे। मई 1892 ब्रिटिश शासन में महार रेजिमेंट में नई भर्ती बंद कर दी गई। पहले विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य को सैनिकों की जरूरत पड़ी। इस समय महार रेजिमेंट को फिर से शुरू किया गया, लेकिन 1918 में युद्ध बंद होने के बाद महार रेजिमेंट को फिर से बंद कर दिया गया। 1941 में अपने एक भाषण में अम्बेडकर ने भीमा-कोरेगांव का जिक्र करते हुए कहा कि इस जगह महारों ने पेशवा को हराया था। ये अम्बेडकर थे, जिनकी वजह से भीमा-कोरेगांव दलित अस्मिता का केंद्र बन गया।
15 नवंबर 1949 की सुबह। अंबाला सेंट्रल जेल परिसर। जेलकर्मी नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को सेल से निकालकर फांसी के तख्त की तरफ ले जाने लगे। गोडसे ने कांपती आवाज में बोला 'अखंड भारत', आप्टे ने थोड़ी मजबूत आवाज में 'अमर रहे' कहकर स्लोगन पूरा किया। इसके बाद दोनों खामोश रहे। फांसी के दो तख्त बनाए गए थे, जिनमें गोडसे और आप्टे को एक साथ फांसी दी गई। आप्टे की फौरन मौत हो गई, जबकि गोडसे थोड़ी देर तड़पते रहे। दोनों की मौत के फौरन बाद जेल परिसर में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। प्रशासन ने बड़ी सावधानी से अस्थियों को घग्घर नदी में बहा दिया। इस घटना को आज ठीक 75 साल पूरे हो चुके हैं। महात्मा गांधी की हत्या में 9 आरोपी बनाए गए थे। उन पर 8 महीने तक लाल किले में बनी ट्रायल कोर्ट में सुनवाई हुई। इसी मामले में दोषी पाए जाने पर गोडसे और आप्टे को फांसी हुई थी। सिर्फ एक शख्स को दोषमुक्त किया गया। उनका नाम था विनायक दामोदर सावरकर। भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि गांधी हत्याकांड में सावरकर ने क्या दलीलें दीं और खिलाफ में गवाही होने के बाद भी बरी कैसे हो गए… बात 30 जनवरी 1948 की है। भारत को आजादी मिले 6 महीने हुए थे। शाम हो चुकी थी और घड़ी में बज रहे थे सवा पांच। महात्मा गांधी दिल्ली स्थित बिड़ला हाउस के प्रार्थना सभा की ओर जा रहे थे। उनके साथ एक शख्स थे गुरबचन सिंह, जिन्होंने गांधी जी से कहा था कि बापू आज आपको थोड़ी देर हो गई है। गांधी जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि जो लोग देर करते हैं, उन्हें सजा मिलती है। इस बात को कुछ मिनट ही हुए थे कि एक शख्स सामने आया और एक-एक कर तीन गोलियां महात्मा गांधी के सीने में उतार दीं। महात्मा गांधी की हत्या करने वाला शख्स था नाथूराम गोडसे। गोली मारने के बाद गोडसे ने भागने की कोशिश की, लेकिन वहां मौजूद लोगों ने पकड़ लिया। इसके बाद इस हत्या की साजिश में शामिल नारायण आप्टे और विष्णु करकरे भी गिरफ्तार कर लिए गए। गांधी की हत्या के 6 दिन बाद मुंबई पुलिस सावरकर के शिवाजी पार्क स्थित घर पहुंची। सावरकर ने पूछा- क्या आप मुझे गांधी की हत्या के मामले में गिरफ्तार करने आए हैं। पुलिस ने हां कहा और उन्हें पकड़कर ले गई। मई में उन्हें दिल्ली ले जाया गया। स्पेशल जज आत्माराम लाल किले में लगी कोर्ट में केस की सुनवाई कर रहे थे। गांधी की हत्या के आरोपियों में से एक दिगंबर बड़गे सरकारी गवाह बन गया। उसकी गवाही पर ही विनायक सावरकर पर केस चलाया गया। डोमिनिक लैपियर और लैरी कोलिंस की किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ के मुताबिक बड़गे ने सावरकर के खिलाफ गवाही में ये 4 अहम बातें बताईं… सरकारी गवाह बड़गे के इन आरोपों पर सावरकर ने खुद अपना पक्ष रखा। उन्होंने ऐसी दलीलें दीं, जिससे कोर्ट को सरकारी गवाह की बात साबित करने के लिए और गवाहों और सबूतों की जरूरत पड़ गई। सावरकर पर आरोप और बचाव में दलीलें… आरोपः गांधी की हत्या से 15 दिन पहले गोडसे और आप्टे ने सावरकर से मुलाकात की थी। सावरकर की दलीलः मेरी कोई मुलाकात गोडसे या आप्टे से हुई है, इसे एस्टैब्लिश ही नहीं किया जा सकता। बड़गे भले ही गोड़से और आप्टे के साथ आया हो, लेकिन उसे बाहर इंतजार करने के लिए कहा गया था, जबकि बाकी दोनों अंदर चले गए थे। सावरकर ने कोर्ट को तर्क दिया कि सावरकर सदन में आने का ये मतलब कतई नहीं है कि कोई मुझसे ही मिलने आया हो। मेरे घर में दामले, भिंडे और कासर भी हमेशा पाए जाते थे और ये आप्टे और गोडसे के दोस्त थे। हो सकता है दोनों हिंदू महासभा के अपने दोस्तों या सहकर्मियों से मिलने आए हों। गोडसे और आप्टे खुद भी इनकार कर चुके हैं कि वे कभी हथियारों के साथ मुझसे मिले थे। आरोप: सावरकर ने तय कर लिया था कि गांधी की हत्या करना है और ये काम आप्टे और गोडसे को सौंपा गया है। सावरकर की दलीलः ये कैसे मान लिया जाए कि बड़गे सच कह रहा है। उससे बड़ा सवाल ये है कि आप्टे ने जो बड़गे को बताया है उसमें कितना सच है। यह साबित करने के लिए कोई गवाह या सबूत नहीं है कि मैंने आप्टे से कहा था कि गांधी, नेहरू या सुहरावर्दी की हत्या करना है। हो सकता है आप्टे ने अपने हिंदू संगठनवादियों पर धाक जमाने के लिए मेरे प्रभाव का फायदा उठाने के लिए झूठ बोला हो। हो सकता हो प्रॉसीक्यूशन ने एक चाल के तहत ये आरोप रचा हो। आरोप: 17 जनवरी को सावरकर ने आप्टे और गोडसे से कहा था कि यशस्वी होउं या यानी सफल होकर लौटना। सावरकर की दलीलः 17 जनवरी 1948 अथवा उससे पहले या बाद में मेरी मुलाकात तो दूर की बात मैंने दोनों को देखा भी नहीं। ऐसे में सवाल ही नहीं उठता कि मैंने उनसे कहा हाे कि सफल होकर लौटना। दूसरी बात बड़गे खुद ये कह चुका है कि वो मेरे घर के नीचे था और गोडसे और आप्टे ऊपर अकेले गए थे तो उन्हें कैसे पता चला कि मैंने ये कहा भी है या नहीं। हो सकता हो ये दोनों मेरे मकान में रहने वाले किसी किराएदार से मिलकर लौट आए हों जो पहली मंजिल पर रहता हो। बड़गे ने मुझे दोनों से मिलते हुए नहीं देखा था। चलिए मान भी लिया जाए कि बड़गे ने मुझे, आप्टे और गोडसे को देखा था और दोनों ने मुझसे बातचीत भी की तो भी इन्हें कैसे पता चला कि हम ये ही बात कर रहे हैं। बड़गे खुद मान चुका है कि वो नीचे बैठा था तो नीचे बैठा हुआ आदमी पहली मंजिल की बातचीत कैसे सुन सकता है। ये अपने आप में बेतुका है। इसके बाद भी ये मान लिया जाए कि मैंने कहा था कि सफल होकर लौटना तो ये कैसे माना जाए कि मैंने किस मामले पर ये कहा होगा। हो सकता है मैंने दोनों काे हमारे डेली न्यूज पेपर अग्रणी या हिंदू राष्ट्र प्रकाशन लिमिटेड के शेयर बेचने के लिए कहा हो, चूंकि बड़गे हमारे साथ ऊपर थे ही नहीं इसलिए वे ये नहीं कह सकते कि मैंने किस मामले में ये कहा था कि सफल होकर लौटना। स्वतंत्र गवाहों के अभाव में दोषमुक्त हो गए थे सावरकर गांधी हत्या केस में दिगंबर बड़गे के बयान के बावजूद सावरकर इसलिए मुक्त कर दिए गए कि इन षड्यंत्रों को साबित करने के लिए कोई 'स्वतंत्र साक्ष्य' नहीं था। कानून के मुताबिक अगर किसी साजिश को अदालत में साबित करना हो तो इसकी पुष्टि इंडिपेंडेंट गवाहों के जरिए की जानी चाहिए। गवाहों के बयान में विसंगति नहीं होनी चाहिए। चूंकि अदालत में बड़गे के अलावा कोई और स्वतंत्र गवाह पेश नहीं किए गए। लिहाजा गांधी की हत्या मामले में सावरकर बरी हो गए। हालांकि, यह बात आज भी सस्पेंस है कि अगर निचली अदालत ने सावरकर को दोषमुक्त किया था तो इस फैसले के खिलाफ सरकार ने हाईकोर्ट में अपील क्यों नहीं की। इस मामले पर रॉबर्ट पायने अपनी बुक ‘द लाइफ एंड डेथ ऑफ महात्मा गांधी’ में लिखते हैं कि सावरकर कभी षड्यंत्रकारियों से नहीं मिले थे। यदि वो मिले भी तो उस बैठक का गांधी की हत्या की साजिश से कोई लेना-देना नहीं था। गोडसे तरस रहा था और सावरकर ने एक नजर भी नहीं देखा डॉ. दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे के वकील पीएल इनामदार ने अपने संस्मरण ‘द स्टोरी ऑफ द रेड फोर्ड ट्रायल 1948-49’ में लिखा है कि नाथूराम गोडसे ये उम्मीद कर रहा था कि उसने जाे काम किया है उसकी तात्याराव तारीफ करें, लेकिन सावरकर ने प्रशंसा करना तो दूर एक नजर भरकर भी गोडसे की तरफ नहीं देखा। सावरकर को हिंदू महासभा के लोग तात्याराव कहकर संबोधित करते थे। इनामदार लिखते हैं कि मेरी नाथूराम से आखिरी मुलाकात शिमला हाईकोर्ट में हुई थी इस संबंध में उसने अपनी आहत भावनाओं का जिक्र किया था। पूरे केस के दौरान सावरकर ने एक बार भी कभी गोडसे की ओर सिर घुमाकर नहीं देखा, जबकि वे सभी एक साथ बैठते थे। बाकी आरोपी एक-दूसरे से बात करते थे। मजाक करते थे, लेकिन सावरकर अनुशासित चुपचाप बैठते थे और दूसरों को भी चुप रहने के लिए कहते थे। इनामदार ने नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे समेत दो साजिशकर्ताओं का केस लड़ा था। ------------इतिहास से जुड़ी अन्य खबर... 1. क्या नेहरू के पूर्वज मुसलमान थे:नेहरू के जन्मदिन पर जानिए, उनके बारे में फैली 10 बातों की पूरी सच्चाई भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू मौजूदा राजनीति के पंचिंग बैग बन चुके हैं। कश्मीर समस्या से लेकर UN में भारत को स्थायी सदस्यता न मिलने तक के लिए BJP नेता नेहरू को जिम्मेदार ठहराते हैं। कभी उनके पूर्वजों के मुसलमान होने के दावे किए जाते हैं, तो कभी अय्याशी के आरोप लगते हैं। इनमें कई बातें पूरी तरह झूठ होती हैं, तो कुछ अधूरा सच। पढ़िए पूरी खबर...
साल 1942, दुनिया सेकेंड वर्ल्ड वॉर से जूझ रही थी। जंग के नए-नए तरीके ईजाद हो रहे थे। इसी समय साइंटिस्ट ओपेनहाइमर की अगुआई में अमेरिका ने एक सीक्रेट प्रोजेक्ट की शुरुआत की। नाम रखा- मैनहट्टन प्रोजेक्ट। न्यूक्लियर बम का आविष्कार इसी की देन है, जिससे पूरी दुनिया बदल गई। कट टू 2024। अमेरिका के प्रेसिडेंट इलेक्ट डोनाल्ड ट्रम्प ने इलॉन मस्क और विवेक रामास्वामी को अहम जिम्मेदारी देते हुए इसकी तुलना 'मैनहट्टन प्रोजेक्ट' से की है। ट्रम्प का दावा है कि मस्क और रामास्वामी मिलकर हर साल अमेरिकी सरकार के 2 ट्रिलियन डॉलर बचाएंगे। 14 नवंबर को टॉप पर रही इसी खबर पर है ‘आज का एक्सप्लेनर’... सवाल 1: DOGE क्या है?जवाब: डोनाल्ड ट्रम्प भले ही बतौर राष्ट्रपति 20 जनवरी 2025 से कामकाज संभालेंगे, लेकिन उन्होंने अपनी टीम बनानी शुरू कर दी है। इसी कड़ी में उन्होंने डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी यानी DOGE बनाया है। इसे केंद्र सरकार के मंत्रालय या किसी अहम एजेंसी जैसा समझिए। इस नए डिपार्टमेंट की कमान दो अरबपतियों इलॉन मस्क और विवेक रामास्वामी को सौंपी है। 12 नवंबर 2024 को ट्रम्प ने एक बयान में कहा, ‘डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी इस युग का मैनहट्टन प्रोजेक्ट होगा।’ DOGE का मकसद अमेरिकी सरकार के सालाना खर्च को एक तिहाई तक कम करना है। ट्रम्प ने DOGE को काम पूरा करने के लिए 4 जुलाई 2026 तक का समय दिया है। इस दिन अमेरिका को आजाद हुए 250 साल पूरे हो जाएंगे। ट्रम्प ने एक बयान में कहा- 'आजादी के 250 साल पूरे होने पर अमेरिका के लिए एक छोटी सरकार, ज्यादा ताकत और कम नौकरशाही के साथ देश के लिए तोहफा साबित होगी।' सवाल-2: सरकार के खर्च घटाने की जिम्मेदारी मस्क और रामास्वामी को ही क्यों सौंपी गई?जवाब: अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में ट्रम्प के लिए इलॉन मस्क ने खुलकर प्रचार किया। ट्रम्प के इलेक्शन कैंपेन में मस्क ने लगभग 200 मिलियन डॉलर यानी करीब डेढ़ हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किया। ट्रम्प ने एक रैली के दौरान कहा था कि अगर वे राष्ट्रपति बनेंगे तो मस्क को एडमिनिस्ट्रेशन में अहम जिम्मेदारी दी जाएगी। भारतीय मूल के अमेरिकी अरबपति विवेक रामास्वामी रिपब्लिक पार्टी के लीडर हैं। उन्होंने प्राइमरी चुनाव में ट्रम्प को चुनौती दी थी, लेकिन हार गए। इसके बाद वो जोर-शोर से ट्रम्प के प्रचार में लग गए। रामास्वामी ट्रम्प की लगभग हर रैली में नजर आए। ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद रामास्वामी को भी जिम्मेदारी मिलनी तय मानी जा रही थी। दोनों अमेरिकी अरबपति हैं। बजट को कहां खर्च करना है और कहां बजट में कटौती करनी है, दोनों बखूबी जानते हैं। सरकार के खर्च पर लगातार मुखर रहे हैं। खर्च में सालाना 168 लाख करोड़ रुपए कटौती के लिए दोनों सबसे उपयुक्त माने जा रहे हैं। सवाल-3: 168 लाख करोड़ बचाने के लिए मस्क और रामास्वामी क्या-क्या करेंगे?जवाब: अमेरिका का कुल सालाना बजट करीब 564 लाख करोड़ रुपए का है। DOGE के तहत मस्क और रामास्वामी हर साल 168 लाख करोड़ रुपए खर्च घटाने का दावा कर रहे हैं। ये रकम भारत के कुल सालाना बजट से भी करीब 3 गुना ज्यादा है। इसके लिए ट्रम्प ने सुझाया है कि सरकारी नौकरशाही को खत्म किया जाएगा, बेकार के सरकारी खर्चों को कम किया जाएगा, देशभर में गैर-जरूरी नियमों को खत्म किया जाएगा और सरकारी एजेंसियों को रीस्ट्रक्चर किया जाएगा। ये होगा कैसे, इसका अंदाजा मस्क और रामास्वामी के बयानों से लगाया जा सकता है… सवाल-4: क्या इतनी बड़ी कटौती का टारगेट अचीव करना संभव है?जवाब: सरकारी खर्च पर नजर रखने वाली NGO सिटीजन्स अगेंस्ट गवर्नमेंट वेस्ट के मुताबिक, DOGE को आधिकारिक विभाग के रूप में औपचारिक मान्यता नहीं मिली है, क्योंकि कांग्रेस ही ऐसी संस्थाएं बना सकती है। अमेरिका में बदलाव करने के लिए समय की जरूरत है, जो DOGE के पास बहुत कम है। DOGE को काम पूरा करने के लिए 4 जुलाई 2026 तक समय है। यह मस्क और रामास्वामी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। क्योंकि इतने बड़े टारगेट को बहुत कम समय में अचीव करना नामुमकिन लगता है। सरकार के बजट में 168 लाख करोड़ रुपए घटाना सबसे बड़ी चुनौती है। मस्क पहले से ही टेस्ला और स्पेस-एक्स समेत कई हाई-प्रोफाइल कंपनियों का मैनेजमेंट कर रहे हैं। इन जिम्मेदारियों के बीच DOGE पर काम करना बेहद मुश्किल है। ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन में गवर्नेंस स्टडीज की सीनियर फेलो एलेन कामारक के मुताबिक, यह एक असफल ऑपरेशन होने जा रहा है। यह किसी पागलपन से कम नहीं। क्योंकि 564 लाख करोड़ के सालाना बजट का एक तिहाई हिस्सा कम करना बहुत बड़ा जोखिम है। अमेरिका के कुल बजट का दो तिहाई हिस्सा सोशल सिक्योरिटी और मेडिकेयर समेत कई कार्यक्रमों को दिया जाता है। बड़ा हिस्सा बजट रक्षा पर खर्च होता है। ऐसे में 138 करोड़ रुपए कम करना देश को नुकसान में डाल सकता है। सवाल-5: क्या पहले भी सरकार के खर्च में कटौती करने की कोशिश की गई?जवाब: 1993 में तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भी सरकार में बदलाव लाने का वादा किया था। इसके बाद उप राष्ट्रपति अल गोरे ने सरकार में बदलाव के लिए नई ‘नेशनल पार्टनरशिप’ बनाई थी। गोरे का उद्देश्य भी ट्रम्प की तरह नौकरियों में कटौती करना, गैर जरूरी नियमों को खत्म करना और सरकारी कामों में ट्रांसपेरेंसी बढ़ाना था। गोरे को सरकारी कार्यक्रमों में ओवरलैप कम करने और कुछ सरकारी नौकरियों में कटौती करने में सफलता मिली थी, लेकिन ये टारगेट से बहुत कम था। सवाल-6: अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी GDP है, फिर उसे खर्च में कटौती करने की जरूरत क्या है?जवाबः दरअसल, अमेरिका और अमेरिका की सरकार दो अलग एंटिटी हैं। अमेरिका भले ही सबसे बड़ी GDP है, लेकिन अमेरिका की सरकार दुनिया की सबसे कर्जमंद सरकारों में से एक है। 2023 की विजुअल कैपिटलिस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की सालाना कुल आमदनी करीब 334 लाख करोड़ रुपए है, जबकि सालाना खर्च करीब 564 लाख करोड़ रुपए है। यानी हर साल 229 लाख करोड़ रुपए का घाटा। इस घाटे की वजह से ही हर साल अमेरिका पर कर्ज बढ़ता जा रहा है। अमेरिकी सरकार पर कर्ज लेने की सीमा 31.46 ट्रिलियन डॉलर तय है। फिलहाल भारत की इकोनॉमी 3.5 ट्रिलियन डॉलर की है। यानी भारत के लोग 10 साल में सामान बनाकर और नौकरी करके जितना कमाते हैं, उतना अमेरिका पर कर्ज है। सवाल-7: अमेरिका इतना कर्जदार कैसे हो गया?जवाब: अमेरिका में अभी जो हालात हैं, उसे समझने के लिए हमें अपने घर के बजट को समझना होगा… सोचिए, अगर आपके घर में कमाई कम और खर्च ज्यादा है? ऐसे में आप खर्च में कटौती करके बचत करने की कोशिश करते हैं, लेकिन अगर खर्च बहुत जरूरी हो, तो कर्ज लेकर उसकी भरपाई करते हैं। पिछले 50-60 सालों से अमेरिका में यही होता आया है। यानी अमेरिकी सरकार टैक्स वगैरह से होने वाली कमाई से ज्यादा खर्च करती आई है। इस खर्च को पूरा करने के लिए हर बार अमेरिकी सरकार अपने इकबाल के बूते दुनिया भर से कर्ज लेती रही है। अमेरिका में सरकारी आमदनी और खर्चों का हिसाब ट्रेजरी डिपार्टमेंट देखता है। यही ट्रेजरी डिपार्टमेंट दूसरे देशों या कंपनियों से कर्ज बॉन्ड के जरिए लेती है। ये एक तरह का दस्तावेज है। मान लीजिए किसी कंपनी ने अमेरिका से 1000 का बॉन्ड 10 साल के लिए 10% ब्याज के दर पर खरीदा। अब उस कंपनी को अमेरिका से हर साल 100 रुपए इंट्रेस्ट मिलेंगे। ये ब्याज कंपनी को अगले 10 साल के लिए मिलेंगे। 10 साल बाद आप इस बॉन्ड को 1000 में बेचकर वह कंपनी अपना पैसा वापस ले सकती है। अमेरिका पर भरोसे के चलते दुनिया भर के निवेशक अमेरिकी बॉन्ड खरीदकर उन्हें कर्ज देने से पीछे नहीं हटते। अमेरिकी सरकार को कर्ज देने के लिए चीन और जापान के इन्वेस्टर्स ने 9% बॉन्ड खरीद रखे हैं। एक दिलचस्प बात तो ये है कि खुद अमेरिका का केंद्रीय बैंक भी अमेरिकी सरकार को कर्ज देता है। इस समय सबसे ज्यादा 36% बॉन्ड तो अमेरिका ने खुद ही खरीद रखा है। हालांकि, अमेरिका के केंद्रीय बैंक में पैसा है, लेकिन कर्ज की सीमा पार होने की वजह से सरकार यहां से भी पैसा नहीं ले सकती है। ---------- अमेरिकी से जुड़ी अन्य खबरें 1. ट्रम्प को सत्ता कैसे ट्रांसफर करेंगे बाइडेन:नतीजों के बाद शपथ ग्रहण में 75 दिन, इस दौरान क्या-क्या होगा डोनाल्ड ट्रम्प फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए हैं। उन्हें 50 राज्यों की 538 में से 295 सीटें मिली हैं, बहुमत के लिए 270 सीटें जरूरी होती हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी की कैंडिडेट कमला हैरिस 226 सीटें ही जीत पाईं। पूरी खबर पढ़ें... 2. डोनाल्ड ट्रम्प पर फायरिंग बनी टर्निंग पॉइंट:मुसलमानों और ब्लैक्स को साधा; रिपब्लिकन की आंधी के पीछे 5 बड़े फैक्टर 6 नवंबर को चुनाव जीतने के बाद फ्लोरिडा के वेस्ट पाम बीच पर ट्रम्प ने पहला भाषण दिया। अमेरिका के इतिहास में रिपब्लिकन पार्टी की यह सबसे बड़ी जीत है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ट्रम्प ऐसे पहले राष्ट्रपति बन गए हैं, जिन्होंने 4 साल के अंतराल पर दोबारा जीत हासिल की है। पूरी खबर पढ़ें...
27 अक्टूबर की बात है। कानपुर के डीएम आवास कैंपस से एक कारोबारी राहुल गुप्ता की पत्नी की लाश दफन मिली। मर्डर का आरोप उसके जिम ट्रेनर पर लगा। अगले दिन 28 अक्टूबर को लखनऊ में यूपी महिला आयोग की मीटिंग हुई। इसमें प्रपोजल बना कि जिम और योग सेंटर में महिला ट्रेनर रखना होगा। वहीं, बुटीक में पुरुष टेलर महिलाओं का नाप नहीं ले सकेंगे। हालांकि, आयोग की गाइडलाइंस से बुटीक और जिम ओनर इत्तेफाक नहीं रखते। बुटीक ओनर्स का कहना है कि कस्टमर्स को मास्टर जी की सिलाई पर ज्यादा भरोसा है। बड़े ऑर्डर के लिए उन्हीं से काम करवाना चाहते हैं। वहीं जिम ओनर्स का मानना है कि महिला ट्रेनर ढूंढना आसान नहीं है। मिल भी जाए तो उन्हें रखना महंगा है। इन गाइडलाइंस पर अमल करना असल में कितना व्यावहारिक है। इसे लागू करने या कराने में किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। सैलून, बुटीक और जिम चलाने वाले आयोग के इस प्रपोजल को किस तरह देखते हैं, ये जानने के लिए दैनिक भास्कर ग्राउंड पर पहुंचा। हमने सैलून, बुटीक, और जिम चलाने वालों और आम लोगों से बात की। सबसे पहले बुटीक ओनर्स और टेलर्स की बात…बुटीक ओनर बोलीं- कस्टमर्स को 'मास्टर जी' पर ही ज्यादा भरोसाशिखा नोएडा में बुटीक चलाती हैं। वे कहती हैं, 'मैं आईटी प्रोफेशनल हूं, लेकिन 20 साल से बुटीक चला रही हूं। मेरे यहां 8 लोगों का स्टाफ है। सभी पुरुष हैं। टेलर रखते वक्त मैं उनका स्किल टेस्ट लेती हूं। अब तक के करियर में मैंने कोई महिला नहीं देखी, जो परफेक्ट कपड़े सिलकर दे सके। ये मेल-डॉमिनेटेड इंडस्ट्री है।' 'शुरू से ही समाज में भी पुरुष ही बाहर का काम करते हैं। लड़कियां घर का काम करती आ रही हैं। हो सकता है कि कहीं किसी मामले में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ हुई ह, लेकिन 99% केस में कोई टेलर महिला को गलत तरह से टच नहीं करता। उन्हें भी काम चाहिए। पैसा कमाना है। कोई भी ऐसी हरकत नहीं करेगा कि उसकी रोजी-रोटी खतरे में पड़ जाए।' शिखा कहती हैं, 'जब रानियां और महारानियां पुरुष टेलर को अपना नाप दे सकती थीं, तो आज की मॉडर्न महिला को क्या दिक्कत होगी। अगर महिला स्टाफ रखना कम्पलसरी कर दिया जाता है, तो मुझे यकीन करने में वक्त लग जाएगा कि वो कितने परफेक्शन से काम कर सकेंगी। इसका असर हमारे बजट पर भी होगा।' टेलरिंग का काम प्रैक्टिस वाला, महिलाओं के लिए कर पाना आसान नहींबिहार के रहने वाले विनोद कुमार राय 22 साल से टेलरिंग का काम कर रहे हैं। अभी नोएडा में रह रहे हैं और महीने का 25 हजार रुपए कमा लेते हैं। विनोद कहते हैं, 'टेलरिंग का काम महिलाएं उतने अच्छे से नहीं कर पातीं, जिस तरह पुरुष कर लेते हैं। ज्यादातर बुटीक महिलाएं चलाती हैं, लेकिन उन्हें कपड़े सिलना नहीं आता। हमारा काम महिला कस्टमर का नाप लेकर कपड़े बनाना है। हमें उनके शरीर से कोई मतलब नहीं।' 'महिलाएं हाई-फैशन का काम नहीं कर पातीं। टेलरिंग में सुई चलाना सीखने में ही 5-6 साल का वक्त लग जाता है। पुरुष कहीं भी रहकर और किसी से भी काम सीख लेते हैं। महिलाएं ऐसा नहीं कर सकतीं। टेलरिंग प्रैक्टिस वाला काम है। आपको रोजाना 10 से 12 घंटे देने होंगे। तब हाथ साफ होगा।' यूपी राज्य महिला आयोग के प्रस्ताव के बारे में विनोद कहते हैं, 'कितने टेलरों ने महिलाओं के साथ गलत काम किया होगा। टेलर को हटा भी दीजिए, तो दूसरे क्षेत्रों में और भी ज्यादा अपराध हैं। वहां क्या करेंगे।सबको हटा दीजिए, सिर्फ महिलाएं ही काम करेंगी।' सेल्स में लड़कियां ज्यादा, टेलरिंग के काम में महिलाएं नहीं नोएडा के ही सुमित छाबरा 10 साल से टेलरिंग के काम में हैं और दुकान चला रहे हैं। दुकान पर कम महिला स्टाफ होने के बारे में वे बताते हैं, 'मैं 1997 से इस सेक्टर में काम कर रहा हूं। मेरे पिता भी टेलर थे। मैंने कभी नहीं सुना कि किसी महिला कस्टमर ने महिला टेलर को नाप देने की बात कही हो।' 'मैं मानता हूं कि लड़कियों के होने से दुकान पर सभी कर्मचारियों के बीच अनुशासन आ जाता है, लेकिन इस प्रोफेशन में लड़कियां कम हैं। लड़कियां सेल्स या कैश काउंटर की जॉब के लिए आती हैं। वो टेलरिंग का काम नहीं करतीं। अब बात ब्यूटी पार्लर और सैलून में महिला स्टाफ की…फीमेल मेकअप-आर्टिस्ट और हेयर स्टाइलिस्ट का मिलना बहुत मुश्किल अक्षिता सिंह नोएडा में अपना सैलून चलाती हैं। वे बताती हैं, 'मेरे सैलून में 17 लोगों का स्टाफ है। इनमें सिर्फ चार लड़कियां हैं। हमेशा से ही इस इंडस्ट्री में पुरुष ही रहे हैं। महिला स्टाफ को हाइजीन का बहुत ख्याल रहता है, इसलिए वे मेल कस्टमर की शेविंग और हेयर कटिंग करना पसंद नहीं करती हैं। वो सहज भी महसूस नहीं करतीं।' 'मैंने कई बार फीमेल हेयरस्टाइलिस्ट ढूंढने की कोशिश की, लेकिन मार्केट में उनकी कमी है। मैं 7 साल से सैलून चला रही हूं। किसी महिला कस्टमर ने कभी भी बैड टच की शिकायत नहीं की है। हमेशा से मेल स्टाफ ही पेडीक्योर करते आ रहे हैं।' अक्षिता आगे कहती हैं, 'अगर कोई महिला कस्टमर रात के वक्त आती है, तो मैं काम खत्म होने तक सैलून में ही रुकती हूं। वरना कोई न कोई महिला स्टाफ सैलून में हमेशा रहती ही है।' जिम, सैलून या स्पा से लड़के हटा देंगे लेकिन सड़क पर हो रहा क्राइम कैसे रोकेंगे यूपी राज्य महिला आयोग ने इस प्रपोजल के जरिए अपराध पर लगाम लगाने की बात कही है। इस पर अक्षिता कहती हैं, 'क्राइम सिर्फ जिम, सैलून या स्पा में नहीं हो रहा है। सड़कों पर भी हो रहा है। क्या सड़क से लड़कों को उठवा देंगे या सिर्फ लड़कियां ही जा सकेंगी। बंद जगह पर अपराध को कंट्रोल किया जा सकता है। सड़क पर हो रहे अपराधों के बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत है।' 'अगर हम बिजनेस के लिहाज से देखें तो ज्यादातर सैलून यूनिसेक्स हैं। यहां महिला और पुरुष दोनों ही सर्विस लेने आते हैं। लड़कियां हर दो या तीन महीने बाद वैक्सिंग कराती हैं। पुरुष हर हफ्ते या महीने शेव और कटिंग के लिए आते हैं। मेल कस्टमर हमेशा ज्यादा होते हैं।' 'महिलाओं को रोजगार देने के और भी कई तरीके हैं। अगर महिला स्टाफ को रखना कम्पलसरी कर भी दिया, तब भी हम कितनी ही लड़कियों को काम पर रख लें। इस इंडस्ट्री में लड़कियां कम ही रहेंगी। बैड टच जेंडर आधारित नहीं होता। महिलाएं भी उतना ही अपराध कर सकती हैं, जितना पुरुष। इसे किसी जेंडर से जोड़ना सही नहीं है। सैलून में मेकअप और हेयरकटिंग के लिए ज्यादातर मेल स्टाफनोएडा में काम कर रहे हेयर स्टाइलिस्ट और मेकअप आर्टिस्ट प्रशांत झा कहते हैं, 'मैं पिछले 7 साल से महिलाओं का मेकअप कर रहा हूं। उनके बाल भी काटता हूं। सैलून में ज्यादातर मेल स्टाफ ही काम करता है। महिला कस्टमर की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी होती है। उनके और हमारे बीच एक ट्रस्ट रहता ही है।' 'हेयरकटिंग और बाल कलर करने के दौरान हम कुछ बातों का ध्यान रखते हैं। सीटें एडजस्टेबल होती हैं। उसे सही हाइट पर फिक्स करते हैं। बाल काटते समय हम ध्यान रखते हैं कि हाथ, कान या गर्दन से टच न हो। मेकअप के दौरान भी कॉन्टैक्ट कम से कम रखने की कोशिश करते हैं।' वे आगे कहते हैं, 'इस सेक्टर में महिलाओं के लिए भी जॉब के मौके हैं, जितनी भी ब्यूटी सर्विस हैं, वो महिलाएं ही करती हैं। उसमें मेल स्टाफ नहीं होता है। मेकअप और हेयर-स्टाइलिंग दोनों ही स्किल का काम है। पुरुष या महिला में से जो बेहतर करेगा, कस्टमर उसी से काम करवाएंगे।' 'हमेशा से ही सैलून में हमने मेल स्टाफ ही देखा है। हम इस इंडस्ट्री में पुरुषों को देखकर ही आते हैं। अब जमाना बदल रहा है। लड़कियां खुद इस फील्ड में कम आती हैं। आज के वक्त में हर सैलून में महिला हेयरड्रेसर और जिम में महिला ट्रेनर रहती ही हैं। इसलिए इस तरह के प्रपोजल की जरूरत नहीं है।' महिला ट्रेनर के लिए आती है रिक्वेस्ट, लेकिन उन्हें रखना महंगानोएडा में एलीट जिम के ओनर राहुल बताते हैं, 'मेरा जिम 5 साल से चल रहा है। मेरे यहां महिला और पुरुष साथ में ट्रेनिंग, जुम्बा और योग करते हैं। हमारे यहां एक महिला ट्रेनर है, जो जुम्बा सिखाती है। बाकी दो मेल ट्रेनर हैं। हमारे पास ऑनलाइन क्वेरी आती है कि वे महिला ट्रेनर से सीखना चाहती हैं।' 'महिला ट्रेनर आ जाएगी, तो वो लोग भी जिम आ जाएंगे। हालांकि जिम के रेंट के साथ एक और महिला ट्रेनर रखना महंगा है। मेरा जिम सुबह से शाम तक चलता है। आज तक कोई शिकायत नहीं आई है।' राहुल कहते हैं, 'जब हमारे यहां एक्सरसाइज होती है तो उसमें पुरुष पीछे और महिलाएं आगे खड़ी होती हैं। ट्रेनिंग के दौरान कई बार किसी महिला की शर्ट ऊपर हो जाती है। तो हम शर्ट टक-इन करने के लिए बता देते हैं, लेकिन कई बार हमें भी ये कहना असहज करता है।' अब बात आम लोगों यानी कस्टमर्स की…नाप देने में कभी दिक्कत नहीं हुई, मास्टर जी के काम पर भरोसा हैइस प्रपोजल को लेकर हमने कुछ लड़कियों और महिलाओं से भी बात की है। शिखा कहती हैं, 'मैं कपड़े सिलवाने जाती हूं तो मुझे कभी असहज महसूस नहीं हुआ। मैं महिला या पुरुष में कोई भेदभाव नहीं करूंगी। कई साल से हमारे कपड़े मास्टर जी ही बनाते आ रहे हैं। उनके साथ एक भरोसा बन चुका है। 'अगर अब मास्टर जी की जगह कोई फीमेल आ जाएगी, तो यही लगेगा कि क्या वो सही फिटिंग के साथ कपड़े सिल पाएगी। जिम की बात करें तो एक मेल ट्रेनर पांच लड़कियों को ट्रेन करता है। एक महिला ट्रेनर शायद ही पांच लड़कियों को ट्रेन कर पाएगी। जिम में हम अगर किसी एक्सरसाइज के दौरान असहज हो भी जाएं] तो हम महिला ट्रेनर को बुला लेते हैं।' वे आगे कहती हैं, 'अपराध घर के अंदर भी हो रहे हैं। हम कहां-कहां पुरुषों को रिप्लेस करके महिलाओं के रखेंगे। पुरुषों की जॉब छीनकर महिलाओं को देना भी सही नहीं है। जिम या सैलून में महिलाओं को नौकरी पर रखने के लिए पुरुषों को हटाया जाएगा। ऐसे में उनके परिवार का खर्च और जिम्मेदारी कौन लेगा। यहीं मिली सिद्धि द्विवेदी कहती हैं, 'मैं जब भी टेलर के यहां गई, मुझे कभी भी असहज महसूस नहीं हुआ। ज्यादातर महिलाएं अपने साथ किसी दोस्त या रिश्तेदार को ले जाती हैं। अगर वो अकेले भी जाएं तो भी मैंने कभी नहीं सुना उन्हें कोई दिक्कत आई हो। वहीं जिम जैसी जगहों पर CCTV लगा ही होता है।' 'महिलाओं को पुरुषों की जगह ले आने से अपराध नहीं रुक सकते। महिलाओं के साथ होने वाला अपराध के पीछे अलग वजहे हैं। हो सकता है कोई जिम से बाहर निकले और अपराध हो जाए।' कानपुर हत्याकांड के बाद महिला आयोग का आदेशयूपी राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष बबीता चौहान ने प्रपोजल को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि जनसुनवाई के दौरान जिम, ब्यूटी पार्लर और बुटीक में पुरुषों से जुड़ी घटनाएं आ रही हैं। जिम में महिलाओं के 99% ट्रेनर पुरुष हैं। वहां पर बहुत सारी ऐसी घटनाएं होती हैं। इसे महिलाएं या छोटी बच्चियां बर्दाश्त करती हैं। घर पर आकर बता नहीं पाती हैं। हाल ही में कानपुर में ऐसी ही घटना हुई, जिसमें जिम ट्रेनर ने एक महिला की हत्या कर दी। ऐसे मामले भी सामने आ रहे हैं, जिसमें तलाक तक की नौबत आ गई। जिम में महिलाओं के लिए महिला ट्रेनर होनी चाहिए। इससे महिलाओं को भी रोजगार मिलेगा। हमने जिम, बुटीक और सैलून संचालकों और लोगों के बात करने के बाद बबीता चौहान से बात करने की कोशिश की, लेकिन उनसे कॉन्टैक्ट नहीं हो सका। उनका जवाब मिलते ही स्टोरी में अपडेट किया जाएगा। ............................................... यूपी महिला आयोग के प्रपोजल से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए... यूपी में पुरुष टेलर महिलाओं का नाप नहीं ले सकेंगे, कानपुर हत्याकांड के बाद महिला आयोग का आदेश कानपुर के एकता हत्याकांड के बाद यूपी महिला आयोग ने सख्त कदम उठाया है। पुरुष टेलर महिलाओं का नाप नहीं ले सकेंगे। आयोग का कहना है- पार्लर में लड़कियों के मेकअप और ड्रेस अप के लिए भी महिला होनी चाहिए। इसके अलावा महिलाओं के लिए विशेष कपड़े बेचने वाले स्टोर्स में भी महिला कर्मचारियों को रखा जाए। आयोग की गाइडलाइंस में और क्या है? पढ़िए ये रिपोर्ट...
हजरात...हजरात...हजरात पूरे इलाके में इतना बम मारेंगे कि इलाका धुआं-धुआं हो जाएगा धनबाद शहर याद आया, वही ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ वाला। सरदार खान सवारी बिठाने के लिए आवाज लगाता है- झरिया, झरिया, झरिया...धनबाद, धनबाद, धनबाद,। वही शहर, जहां गोलियों की तड़तड़हाट से फिल्म की शुरुआत होती है। सुल्तान और उसकी गैंग फैजल खान के घर पर बम मारते हैं, AK-47 से फायरिंग करते हैं। सुल्तान कहता है कि मार दिया फैजल खान को, लेकिन फैजल मरता नहीं। आज वासेपुर की हकीकत भी यही है। असली वाले फैजल खान यानी फहीम (खान फैमिली) के घर पर 2004 में ऐसा ही हमला हुआ था, लेकिन फहीम बच गया। अभी हजारीबाग सेंट्रल जेल में बंद है। उसका बेटा इकबाल वासेपुर में रियल एस्टेट का बिजनेस संभाल रहा है। फैजल खान के दुश्मन रामाधीर सिंह असलियत में ‘सिंह मेंशन’ के मालिक और झरिया के पूर्व विधायक सूर्यदेव सिंह थे। 2009 में हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई थी। उनके दोनों बेटे राजीव और संजीव राजनीतिक विरासत नहीं संभाल पाए। अब सूर्यदेव सिंह के परिवार की दो बहुएं पूर्णिमा और रागिनी सिंह विधानसभा चुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ खड़ी हैं। पूर्णिमा कांग्रेस से और रागिनी BJP से झरिया सीट पर चुनावी मैदान में हैं। झरिया वासेपुर से करीब 7 किमी दूर अलग सीट है। झारखंड विधानसभा चुनाव के दूसरे फेज में 20 नवंबर को 38 सीटों पर वोटिंग होनी है। देश की ‘कोयला राजधानी’ कहा जाने वाला धनबाद भी इसी फेज में है। एक वक्त था, जब धनबाद में बाहुबलियों का सिक्का चलता था। कोयला कारोबारी अकूत दौलत कमाकर चुनाव लड़ने लगे। खूब खून-खराबा हुआ। बीच सड़क पर खुलेआम मर्डर होने लगे। यही वर्चस्व की लड़ाई विधानसभा चुनाव में भी हावी है। धनबाद में सियासत की कहानी वासेपुर और झरिया के बिना अधूरी है। इसमें क्राइम है, पॉलिटिक्स है, कोयला है और उससे निकलती बदले की आग है। पढ़िए पूरी रिपोर्ट। कोयले की खदानों से शुरू होती है क्राइम और पॉलिटिक्स की कहानीये कहानी 1972 से शुरू होती है। तब धनबाद में ठेके पर चल रही कोयला खदानों का इंदिरा गांधी सरकार ने नेशनलाइजेशन कर दिया। पूरे देश में 711 कोयला खदानें सरकार के कब्जे में आ गईं। इनमें 245 खदानें धनबाद में थीं। धनबाद का कोयला पूरे भारत में पहुंच रहा था और छोटे-छोटे कोयला कारोबारी भी करोड़ों में खेल रहे थे। पैसा आया तो क्राइम भी बढ़ा। कोयला व्यापारियों से उगाही की जाने लगी। तब 2 गैंगस्टर्स के नाम सामने आए। पहला- शफीक खान, दूसरा- असगर खान। दोनों के अपने-अपने गैंग थे। इनका काम यूनियनों में दखल से लेकर कोयला नीलामी तक, हर चीज में हेराफेरी, वसूली, रंगदारी और रिश्वतखोरी करना था। उस वक्त धनबाद में कोल माइनिंग की चर्चा पूरे देश में होने लगी थी, लेकिन सभी गलत वजहों से। धनबाद पर 30 से ज्यादा किताब लिख चुके रिटायर्ड IAS श्रीराम दुबे बताते हैं, ‘कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण हुआ, तो मजदूर यूनियन भी बन गईं। धनबाद की लेबर पॉलिटिक्स में इंदिरा गांधी के करीबी बीपी सिन्हा की तूती बोलती थी। कोयलांचल में कांग्रेस को जिताने में बीपी सिन्हा बड़ा रोल निभाने लगे।' 'उसी वक्त यूपी के बलिया से धनबाद आए पहलवान सूर्यदेव सिंह बीपी सिन्हा के संपर्क में आए। दोनों ने कोयला कारोबारियों से हो रही उगाही और रंगदारी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। ये बात गैंगस्टर शफीक खान और असगर को पसंद नहीं आई।’ 1977 का विधानसभा चुनाव, जब राजनीति में माफिया की एंट्री हुईबीपी सिन्हा 1965 से 1975 तक धनबाद में MLC रहे। इसके बाद उनकी जगह सूर्यदेव सिंह ने ले ली। धनबाद का बाहुबली बनने के लिए सूर्यदेव सिंह ने बिल्कुल वक्त बर्बाद नहीं किया। 1976 तक कोयला कारोबार में उनका दबदबा हो गया। 1977 में सूर्यदेव जनता पार्टी के टिकट पर झरिया विधानसभा सीट से विधायक बने। ये सीट तब अविभाजित बिहार का हिस्सा थी। सूर्यदेव की जीत को माफिया और पॉलिटिक्स का कॉकटेल माना गया। 29 मार्च, 1978 में बीपी सिन्हा की उनके घर में ही हत्या कर दी गई। मदद मांगने के बहाने आए लोगों ने 70 साल के बीपी सिन्हा पर लाइट मशीनगन से करीब 100 गोलियां बरसाई थीं। इसके बाद पूरे कोयलांचल में सूर्यदेव का सिक्का चल पड़ा। पहला चुनाव जीतने के बाद सूर्यदेव 1980 और 1985 में भी विधायक बने। धनबाद में चुनाव होते रहे, लेकिन वासेपुर में गोलियां चलनी बंद नहीं हुईं। रेलवे के स्क्रैप और कोयला कारोबारियों से उगाही में गैंगस्टर शफीक खान और असगर की आपसी रंजिश गैंगवार में बदल गई। वासेपुर में वर्चस्व की इस लड़ाई में दोनों खुद को धनबाद का सबसे बड़ा डॉन बताते थे। बादशाहत की इस जंग में शफीक खान जीत गया। 70 से 80 के दशक तक वासेपुर को शफीक खान ही कंट्रोल करता रहा। 1983 में धनबाद के बरवाअड्डा पेट्रोल पंप के पास असगर खान के गुर्गों ने उसे गोलियों से भून दिया। गैंग्स ऑफ वासेपुर में ये सीन भी दिखाया गया है। शफीक की मौत के बाद 1986 में उसके बड़े बेटे शमीम खान की भी धनबाद कोर्ट में हत्या कर दी गई। यहां से कहानी में एंट्री हुई गैंगस्टर शफीक खान के बेटे फहीम यानी फैजल खान की। बाप का...भाई का...सबका बदला लेगा रे तेरा फैजलफिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर-2’ में एक डायलॉग है- बाप का...दादा का...भाई का, सबका बदला लेगा रे तेरा फैजल। असलियत में भी फहीम खान की जिंदगी इसी डायलॉग के इर्द-गिर्द घूमती है। फहीम खान के गैंगस्टर बनने की वजह उसके वालिद शफीक खान और भाई शमीम खान की हत्या को माना जाता है। पिता और बड़े भाई की हत्या के बाद फहीम खान वासेपुर की गद्दी संभालने लगा। असगर खान और उसके राइट हैंड साबिर आलम को खत्म करना ही फहीम का मकसद बन गया। 1990 से 2000 तक फहीम खान पर कई हत्याओं के आरोप लगे। इनमें से एक सागिर की हत्या के मामले में फहीम जून, 2011 से उम्रकैद की सजा काट रहा है। फहीम के घर की पहचान बनी गोलियों के निशान वाली दीवारधनबाद रेलवे स्टेशन से करीब 3.5 किलोमीटर दूर वासेपुर है। रेलवे स्टेशन पर वासेपुर के बारे में पूछते ही लोग बोलते हैं- वहां जाना है, तो रात 8 बजे से पहले ही जाइएगा। उसके बाद जाना खतरा मोल लेना है। वासेपुर की शुरुआत कमरमखदुमी रोड से होती है। यहां जगह-जगह कांग्रेस के झंडे लगे हैं। मोहल्ले के अंदर जाते ही 10 मकान बाद पीले-मटमैले रंग की दीवार आती है। इस पर जगह-जगह गोलियों के निशान हैं। फहीम के घर पर हमारी मुलाकात उसके बेटे इकबाल से हुई। इकबाल कहते हैं, ‘हम लोग 1980 में वासेपुर आए थे। इससे पहले मेरे पुरखे यहां रहते थे। वासेपुर तब बहुत अच्छी जगह थी। अब जो चल रहा है, वो ठीक नहीं हो रहा।’ फहीम के एक इशारे पर मर्डर करने वाला भांजा अब दुश्मनफहीम खान की कहानी में एक कैरेक्टर उसका भांजा प्रिंस खान भी है। प्रिंस कभी उसका राइट हैंड था। फहीम के इशारे पर प्रिंस ने कई मर्डर किए। उस पर 50 केस दर्ज हैं, जिनमें 10 हत्या के हैं। जेल जाने के बाद फहीम ने अपनी विरासत बेटे इकबाल को सौंपी, तो प्रिंस बागी हो गया। इकबाल बताते हैं, ‘प्रिंस दुबई में छिपा है और यहां बच्चों को बिगाड़ रहा है। कम उम्र के लड़कों को गांजा देता है, नशा कराता है और उन्हें हथियार देकर हम लोगों पर गोलियां चलवाता है। अभी वासेपुर में बहुत दिक्कत है। कोई अपनी लड़की की अच्छे से शादी तक नहीं कर पा रहा।’ क्या प्रिंस फहीम खान की जगह लेना चाहता है? इकबाल जवाब देते हैं, ‘वो क्या मेरे वालिद की जगह लेगा। मेरे वालिद हमेशा सबसे मिल-जुलकर रहे। लोगों ने मिलकर उन्हें यूथ वेलफेयर सोसायटी का प्रेसिडेंट बनाया था। उनके वक्त नशा और जुआ बंद करने के लिए अभियान चला था। किसी भी गरीब को बेटी की शादी के लिए सोचना नहीं पड़ता था। प्रिंस ने सब बर्बाद कर दिया है।’ सूर्यदेव सिंह और गैंग्स ऑफ वासेपुर की अदावतसूर्यदेव सिंह और गैंग्स ऑफ वासेपुर की अदावत का किस्सा सुनाते हुए रिटायर्ड IAS श्रीराम दुबे कहते हैं, ‘बिना मौसम खून की होली खेलना वासेपुर की आदत रही है। एक बार वासेपुर के कुछ लोगों ने झरिया की बंगाली लड़की को अगवा कर लिया था। लड़की का परिवार सूर्यदेव सिंह से मदद मांगने पहुंचा। सूर्यदेव सिंह बच्ची को छुड़ाने बंदूक लेकर अकेले वासेपुर चले गए।’ ‘सूर्यदेव ने वासेपुर के लोगों को धमकाते हुए कहा- अगर शाम तक बच्ची सही-सलामत घर नहीं पहुंची, तो पूरा वासेपुर अंजाम भुगतेगा। सूर्यदेव सिंह की बात का इतना असर हुआ कि उन लोगों ने बच्ची को छोड़ दिया। इस घटना ने धनबाद में सूर्यदेव सिंह का कद और बढ़ा दिया।’ धनबाद की सियासत का सेंटर पॉइंट ‘सिंह मेंशन’सूर्यदेव सिंह ने 1977 से 1990 तक झरिया विधानसभा सीट पर कब्जा बनाए रखा। उन्होंने धनबाद शहर के बीचोबीच आलीशान बंगला ‘सिंह मेंशन’ बनवाया। सिंह मेंशन में सूर्यदेव तीनों भाइयों बच्चा सिंह, रामाधीर सिंह और राजनारायण सिंह के साथ रहते थे। एक भाई विक्रम सिंह बलिया में रहते थे। 1991 में सूर्यदेव सिंह के निधन के बाद झरिया सीट परिवार के हाथ से निकल गई। 1999 में उनके भाई बच्चा सिंह ने फिर यहां से चुनाव जीता। बच्चा सिंह की जीत के बावजूद सूर्यदेव सिंह के परिवार में फूट पड़ गई। राजनीतिक महत्वाकांक्षा और कारोबार में वर्चस्व को लेकर पारिवारिक सदस्यों में अनबन शुरू हो गई। विवाद इतना बढ़ गया कि बच्चा सिंह ने ‘सिंह मेंशन’ छोड़ दिया और अपनी अलग कोठी ‘सूर्योदय’ बनवा ली। दूसरे भाई राजनारायण सिंह भी परिवार के साथ ‘रघुकुल’ नाम के बंगले में शिफ्ट हो गए। बच्चा सिंह की हमदर्दी भाई राजनारायण सिंह के बेटे नीरज, एकलव्य और गुड्डू के लिए ज्यादा थी। ये बात सूर्यदेव सिंह की पत्नी कुंती सिंह को पसंद नहीं थी। कुंती ने बच्चा सिंह का वर्चस्व खत्म करने के लिए 2005 में झरिया से विधानसभा चुनाव लड़ा। वे 2005 से 2014 तक यहां विधायक रहीं। 2014 में सूर्यदेव सिंह और कुंती सिंह के बेटे संजीव सिंह BJP के टिकट पर झरिया से विधायक बने। झरिया जीतने के लिए ‘सिंह मेंशन’ और ‘रघुकुल’ आमने-सामने2004 से लेकर 2014 तक धनबाद की राजनीति में ‘सिंह मेंशन’ का एकछत्र राज था। दूसरी तरफ ‘रघुकुल’ शांत रहा। 2009 में राजनारायण सिंह के बेटे नीरज सिंह ने नगर निगम चुनाव के रास्ते सियासत में एंट्री की। नीरज धनबाद के डिप्टी मेयर बने, तो ‘रघुकुल’ की खोई हुई ताकत वापस आ गई। उधर, नीरज सिंह को आगे बढ़ता देख कुंती सिंह ने 2014 में अपनी जगह बेटे संजीव सिंह को झरिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़वा दिया। इस चुनाव में नीरज सिंह को करारी हार मिली। चुनाव हारने के 3 साल बाद 21 मार्च, 2017 को धनबाद के स्टील गेट के पास नीरज की गोली मारकर हत्या कर दी गई। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, हत्यारों ने नीरज की गाड़ी पर AK-47 से हमला किया था। उनकी कार पर 60 गोलियां लगीं और 25 शरीर को छेदते हुए निकल गईं। नीरज के मर्डर केस में झरिया विधायक संजीव सिंह का नाम आया। आरोप लगा कि संजीव सिंह ने ही हत्या की साजिश रची थी। 12 अप्रैल, 2017 से संजीव सिंह जेल में बंद हैं। उनकी पत्नी रागिनी सिंह झरिया सीट से BJP प्रत्याशी हैं। वे नीरज सिंह की पत्नी और कांग्रेस कैंडिडेट पूर्णिमा सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं। सिंह परिवार की राजनीतिक विरासत महिलाओं के हाथ मेंनीरज सिंह की हत्या और संजीव सिंह के जेल जाने के बाद झरिया सीट की राजनीतिक विरासत दो महिलाओं के हाथ में है। ‘सिंह मेंशन’ BJP और ‘रघुकुल’ कांग्रेस की तरफ है। 2019 विधानसभा चुनाव में भी दोनों देवरानी-जेठानी आमने-सामने थी। तब देवरानी पूर्णिमा ने जेठानी रागिनी को हराया था। इस बार दोनों के बीच कड़ा मुकाबला दिख रहा है। रागिनी सिंह, BJP कैंडिडेटरागिनी सिंह कहती हैं, ‘झरिया विधानसभा में विकास के नाम पर कुछ नहीं है। अपराध के नाम पर अनगिनत उदाहरण है। इस सरकार में किसी को नहीं छोड़ा गया है। घरों में घुसकर जानलेवा हमले किए गए हैं। यादव समाज को खासकर निशाना बनाया गया। इसलिए ये समाज समझ गया है कि कांग्रेस और JMM की सरकार रहेगी, तो कोई सुरक्षित नहीं रहेगा।’ पूर्णिमा सिंह, कांग्रेस कैंडिडेटपूर्णिमा सिंह कहती हैं, ‘मेरे पति स्वर्गीय नीरज बाबू जनता के लिए नए नहीं थे। मैं राजनीति में लोगों की सेवा करने और नीरज बाबू को न्याय दिलाने आई थी। आज तक वही कर रही हूं। मेरी लड़ाई उन लोगों के खिलाफ है, जो झरिया को सिर्फ ताकत दिखाने और धन बल बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।’ एक्सपर्ट बोले- देवरानी और जेठानी की लड़ाई में BJP फायदे मेंधनबाद शुरू से ही BJP का बेस रहा है। इस बार के चुनावी समीकरण भी उसके पक्ष में जाते दिख रहे हैं। 2017 में मेयर नीरज सिंह की हत्या के बाद उनकी पत्नी पूर्णिमा सिंह ने राजनीति में कदम रखा। 2019 विधानसभा चुनाव में उन्होंने संजीव सिंह की पत्नी और अपनी जेठानी रागिनी को 12,054 वोटों से हराया। धनबाद के न्यूज नेटवर्क TV-45 के एडिटर अरुण वरनवाल कहते हैं, ‘नीरज सिंह की हत्या के बाद संजीव सिंह को जेल जाना पड़ा, तो दोनों परिवारों के बीच तकरार बढ़ती चली गई। सिंह मेंशन और रघुकुल के बीच मनमुटाव हो गया। पिछले चुनाव में नीरज सिंह की हत्या का फायदा उनकी पत्नी पूर्णिमा सिंह को मिला था। उन्होंने संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह को हराकर चुनाव जीता और कांग्रेस को ये सीट दिला दी।’ ‘इस बार झरिया का समीकरण थोड़ा बदल गया है। लोग मौजूदा विधायक पूर्णिमा सिंह से नाराज हैं। चुनाव जीतने के बाद वे अपने क्षेत्र में बहुत कम नजर आईं। दूसरी तरफ रागिनी सिंह हारने के बावजूद झरिया के लोगों से मिलती रहीं। विधानसभा चुनाव के 2-3 महीने पहले से पूर्णिमा को लेकर लोगों में जबरदस्त क्रेज है। इससे यहां BJP स्ट्रॉन्ग लग रही है।’ आखिर में धनबाद के लोगों की बात… लोग बोले- कोयला व्यापारी रहेंगे, तब तक कोई क्राइम नहीं रोक सकताझरिया में सेंट्रल फ्यूल रिसर्च कॉलोनी में रहने वाले अदालत यादव कांग्रेस विधायक पूर्णिमा सिंह के काम से खुश हैं। वे कहते हैं, ‘हम यहां 1949 से रह रहे हैं। यहां के डायरेक्टर, कर्मचारी कार्रवाई के नाम लोगों की झोपड़ियां तोड़ रहे थे। 100 से ज्यादा लोगों की झोपड़ियां तोड़ दी गईं। पूर्णिमा सिंह ने बीच में आकर काम रुकवा दिया। उन्होंने अधिकारियों के सामने कहा कि जब तक हम रहेंगे, एक भी घर तोड़ने नहीं देंगे।’ कुसुंदा कोलफील्ड से सटे गांव के लक्ष्मण यादव कहते हैं, ‘झरिया का क्राइम तो कभी खत्म नहीं होगा। यहां कोयले के वर्चस्व की लड़ाई है। जब तक कोयला व्यापारी रहेंगे, ये ऐसे ही चलता रहेगा। मर्डर, खून खराबा यहां आम बात है। यहां पार्टी की नहीं, बल्कि देवरानी-जेठानी की लड़ाई है।’ ‘झरिया का माहौल अभी 50-50 है। यहां सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी है। किसी को काम नहीं मिला। लोगों को किसी सरकार से उम्मीद नहीं रह गई है। इस सरकार को देखा, इससे पहले BJP सरकार को भी देखा, मगर कोई फायदा नहीं हुआ।’ ................................. झारखंड इलेक्शन से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए...1. हेमंत जिस जमीन के कारण जेल गए, वहां सिर्फ घास, केयरटेकर बोली- CM यहां कभी नहीं आए रांची शहर के बीचोंबीच 31 करोड़ कीमत वाली 8.5 एकड़ जमीन है। इसी जमीन की वजह से CM हेमंत सोरेन को जेल जाना पड़ा। जांच एजेंसियों ने आरोप लगाया कि इस जमीन पर कब्जे की कोशिश की गई और मास्टरमाइंड हेमंत सोरेन हैं। क्रिकेट स्टेडियम के बराबर इस जमीन पर हर तरफ घास उगी है। एक छोर पर मकान और दूसरे छोर पर पहाड़ी है। क्या है जमीन की कहानी, पढ़िए पूरी खबर... 2. 34% आदिवासी वोटर्स वाली सरायकेला सीट पर JMM का किला ढहाएंगे चंपाई 81 सीटों वाले झारखंड में 13 नवंबर को पहले फेज की वोटिंग होनी है। इस फेज में सरायकेला विधानसभा हॉट सीट बनी हुई है। BJP ने यहां 'कोल्हान टाइगर' कहे जाने वाले चंपाई सोरेन को टिकट दिया है। उनके खिलाफ JMM ने BJP के पुराने नेता गणेश महली को उतारा है। यहां सीधा मुकाबला दो बागियों के बीच है। सरायकेला में कौन मजबूत? पढ़िए पूरी रिपोर्ट...
ट्रंप रिटर्न्स से मची खलबली, जंग के बीच आनन-फानन ईरान गए IAEA चीफ, दे दिया ये बड़ा बयान
Iran-America Relations:ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर अपने पिछले कार्यकाल के दौरान विश्व शक्तियों के साथ इस्लामिक गणराज्य के परमाणु समझौते से अमेरिका को एकतरफा रूप से हटा लिया था.
कश्मीर की आजादी पर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में डिबेट पर घमासान, ब्रिटिश हिंदुओं और भारतीयों ने लताड़ा
Oxford Union Debate:बहस की अखंडता के लिए संभावित खतरों का हवाला देते हुए सोशल मूवमेंट ने कहा कि जिन दो स्पीकर्स मुजम्मिल अय्यूब ठाकुर और जफर खान को न्योता दिया गया है, उनके आतंकियों से कनेक्शन हैं.
जलवायु परिवर्तन पर आई रिपोर्ट फिर डरा देगी.. आखिर 2030 तक कौन खर्च करेगा इतने पैसे?
Fund For Earth: अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त विशेषज्ञों के अनुसार यह धन सार्वजनिक और निजी दोनों स्रोतों से एकत्र किया जाना चाहिए. क्या ऐसा है कि अमीर देश अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए विकासशील देशों को वित्तीय सहायता देने में देरी कर रहे हैं. इसे समझना जरूरी है.
गाजा में इजरायल का तांडव, खत्म हो गया पूरा परिवार, पड़ोसी बोला- इकलौता बचा है बच्चा, पूरी तरह जल गया
Israel-Hamas War:वीडियो 12 नवंबर का है, जिसमें पड़ोसी हाथ में बच्चे को पकड़कर पिछली रात का भयावह मंजर बयान कर रहा है. दुखी हालत में उसने कहा, 'यह बच्चा अपने परिवार में अकेला बचा है. पूरा परिवार खत्म हो चुका है. यह बच्चा पूरी तरह जल चुका है. यह इकलौता बचा है.'
What isMorphing Wheel:मॉर्फिंग व्हील में चेन का एक बाहरी घेरा और हब के जरिए चलने वाले स्पोक तारों की एक सीरीज होती है. स्पोक की कठोरता की वजह से पहिया ऑटोमैटिक तौर से एक सेंसर के जरिए कंटोल्ड होती है क्योंकि यह इलाके पर रिएक्ट करता है.
पाकिस्तान की कट्टर आलोचक, हिंदुओं की पैरोकार, क्या कुछ कह चुकी हैं तुलसी गबार्ड?
DNI Tulsi Gabbard: अमेरिका के नए नवेले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पूर्व सांसद तुलसी गबार्ड को अगला राष्ट्रीय खुफिया निदेशक (DNI) नियुक्त किया है. तुलसी पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुई ज्यादतियों को लेकर खासी मुखर रही हैं.
Sri Lanka Parliamentary Election 2024: श्रीलंका के आम चुनावों में अनुरा कुमारा दिसानायके ने धमाकेदार जीत दर्ज की थी, बहुमत पाने के लिए चुनाव हो रहा है. वामपंथी राष्ट्रपति अनुरा कुमारा का गुरुवार का चुनाव अग्निपरीक्षा की तरह है.
लंदन में पाकिस्तानी रक्षा मंत्री को सरेआम लताड़ा, वायरल हो रहा बेइज्जती का Video
Pakistan Defence Minister: पाकिस्तान के रक्षा मंत्री को लंदन में सरेआम जबरदस्त बेइज्जती का सामना करना पड़ा. मेट्रो में हुई इस घटना का वीडियो भी सामने आया है.
देश में 90% मुस्लिम, संविधान में करना चाहिए संशोधन, बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल की मांग
Bangladesh’s Attorney General: बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने तर्क दिया है कि देश में 90 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है. इसलिए यहां के संविधान में कुछ संशोधन होने चाहिए.
Brazil Supreme Court Blast: ब्राजील के सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हो पाने में नाकाम रहे एक व्यक्ति ने बम विस्फोट कर आत्महत्या कर ली. राजधानी ब्रासीलिया में सनसनी फैल गई है.
पुतिन को मानता था जानी दुश्मन, छोड़ा रूस; अब बेलग्रेड के होटल में अचानक मर गया
Exile Chef Jamie Oliver dead: रूसी टीवी शेफ एलेक्सी जिमिन सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड की होटल में मृत पाए गए हैं. जिमिन ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा यूक्रेन युद्ध का विरोध किया था.