मॉस्को: रूस ऐसा देश बन गया है जो स्कूली छात्राओं को बच्चे पैदा करने के बदले में पैसे देने की पेशकश कर रहा है। मध्य रूस के ओर्योल क्षेत्र इसकी शुरुआत करने वाला पहला क्षेत्र बना है। यह इलाका रूस के उन 40 क्षेत्रों में है, जो महिला विश्वविद्यालय की …
एएफसी बीच सॉकर एशियन कप: भारत ने लेबनान के खिलाफ 1-6 से करारी हार के साथ जीत रहित अभियान समाप्त किया
पटाया, 24 मार्च भारत ने सोमवार को पटाया के जोमटियन बीच एरिना में अपने अंतिम ग्रुप ए मुकाबले में लेबनान से 1-6 से हारकर एएफसी बीच सॉकर एशियन कप थाईलैंड 2025 में अपना अभियान बिना किसी जीत के साथ समाप्त किया. यह चार टीमों के समूह में भारत की तीसरी हार थी. वे इससे पहले ... Read more
काहिरा, 24 मार्च . मिस्र ने गाजा युद्ध विराम समझौते को बहाल करने के उद्देश्य से इजरायल और हमास के समक्ष एक नया प्रस्ताव रखा है. मिस्र के दो सुरक्षा सूत्रों ने सोमवार को यह जानकारी दी. समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक नाम न बताने की शर्त पर सूत्रों ने कहा, “मिस्र ने रविवार रात ... Read more
इस्तांबुल मेयर की गिरफ्तारी से तुर्की में उबाल, कई शहरों में प्रदर्शन, हिरासत में 1,000 से अधिक लोग
अंकारा, 24 मार्च . इस्तांबुल के मेयर एक्रेम इमामोग्लू की गिरफ्तारी के विरोध में देश भर में बड़े विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है. सरकार के मुताबिक 1,000 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आंतरिक मंत्री अली येरलिकाया ने सोमवार को कहा कि इमामोग्लू की हिरासत के खिलाफ ... Read more
इमामोग्लु को मेयर पद से हटाया गया, तुर्की में भारी प्रदर्शन
तुर्की की एक अदालत ने विपक्षी नेता इमामोग्लु को न्यायिक हिरासत में भेज दिया। इमामोग्लु के समर्थन में देशभर में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हो रहे हैं। इस बीच इमामोग्लु को इस्तांबुल के मेयर पद से निलंबित कर दिया गया है। तुर्की में विपक्षी नेता एकरम ...
‘भाजपा वालों का तकिया कलाम हो गया है कि मुसलमानों में बाबर का डीएनए है… तो फिर हिंदुओं में किसका डीएनए है? बाबर को कौन लाया? बाबर को भारत में इब्राहीम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा लाया था। मुसलमान बाबर की औलाद हैं, तो तुम (हिंदू) गद्दार राणा सांगा की औलाद हो। यह हिंदुस्तान में तय हो जाना चाहिए। बाबर की आलोचना करते हैं, राणा सांगा की नहीं।’ राज्यसभा में सपा सांसद रामजी लाल सुमन के इस बयान के बाद यूपी में राजनीति गरमा गई है। आगरा में सपा सांसद के खिलाफ अखिल भारतीय हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। उनका पुतला फूंका। हिंदू महासभा की महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष मीरा राठौर ने रामजी लाल सुमन की जीभ काटकर लाने पर 1 लाख का इनाम देने की घोषणा कर दी। क्या वाकई राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था? राणा सांगा कौन थे? उनके और बाबर के संबंधों की पूरी कहानी भास्कर एक्सप्लेनर में पढ़िए… सवाल 1- संग्राम सिंह उर्फ राणा सांगा कौन थे? जवाब- मेवाड़ के शासक महाराणा रायमल के 3 बेटे थे। कुंवर पृथ्वीराज, जयमल और संग्राम सिंह उर्फ राणा सांगा। पिता के जीवित रहते तीनों में उत्तराधिकारी के लिए युद्ध हुआ। इसी में राणा सांगा की एक आंख फूट गई। बाद में पिता रायमल ने खुद राणा सांगा को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। 1508 ईस्वी में राणा सांगा मेवाड़ के शासक बने। उस समय उनकी उम्र 27 साल थी। इसी के साथ मेवाड़ ने अपनी चली आ रही उस परंपरा को भी तोड़ दिया, जहां किसी दिव्यांग व्यक्ति को राजा नहीं बनाया जा सकता था। राणा सांगा ने कई युद्ध लड़े। उनके शरीर पर 80 घाव हो गए थे। वह महाराणा प्रताप के दादा थे। सवाल 2- भारत आने से पहले बाबर कहां और क्या था? जवाब- इतिहासकार हरिश्चंद्र वर्मा अपनी किताब मध्यकालीन भारत में बताते हैं- जियाउद्दीन मुहम्मद बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 में हुआ था। उसके पिता उमर शेख मिर्जा और मां का नाम कुतलुक निगार था। 12 साल की उम्र में उसके पिता की मौत हो गई। इतिहासकार सतीश चंद्र अपनी किताब मध्यकालीन भारत में बताते हैं- 1494 में सिर्फ 12 साल की छोटी-सी उम्र में ही बाबर आक्सस-पार के एक छोटे से राज्य फरगना का राजा बना। फरगना आज के उज्बेकिस्तान में पड़ता है। बाबर ने साम्राज्य बढ़ाने के लिए उसने समरकंद 2 बार जीत भी लिया, लेकिन जल्द ही समरकंद उसके हाथ से निकल गया। समरकंद के राजा ने तब बाबर को बाहर निकालने के लिए उजबेक सरदार शैबानी खान को बुलाया। बाद में शैबानी खान ने बाबर के राज्य फरगना पर भी धावा बोलकर उसके ज्यादातर हिस्सों पर कब्जा कर लिया। इससे बाबर के पास काबुल की तरफ बढ़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। बाबर ने 1504 में काबुल को जीत लिया। सवाल 3- बाबर ने भारत पर क्यों आक्रमण किया? जवाब- इस सवाल का जवाब बाबर की समरकंद पाने की ख्वाहिश में मिलती है। बाबर ने भले ही काबुल पर कब्जा कर लिया था, लेकिन उसकी नजर समरकंद पर थी। बाबर ने अपने संस्मरणों में लिखा कि 11 साल का होने के बाद उसने कभी रमजान का त्योहार एक ही जगह पर दो बार नहीं मनाया। दरअसल, दूसरी बार समरकंद पर कब्जा करने गए बाबर के काबुल में भी विद्रोह हो गया था। दूसरी तरफ, सिर्फ 100 दिन बाद समरकंद से भी उसका निकाला हो गया। इसे लेकर उस समय के लेखक फरिश्ता लिखते हैं- किस्मत के हाथ गेंद बना वह शतरंज के बादशाह जैसा एक से दूसरी जगह भागता था। समुद्र के किनारे पड़े कंकड़ के समान टक्करें खाता रहा। 1507 ईस्वी में बाबर ने दोबारा काबुल पर कब्जा किया। समरकंद के सपने को लेकर एक बार फिर उसने योजना बनाई। 1510 में उसने फारस के शासक शाह इस्माइल से हाथ मिलाया। लेकिन, यहां से उसे एक शर्त पर मदद मिली। शर्त थी, अगर वह समरकंद का शासक बनता है तो शाह इस्माइल के नाम का खुतबा पढ़वाएगा। उनके नाम पर सिक्के जारी करेगा और शियावाद का प्रचार करेगा। इतिहासकार हरिश्चंद्र वर्मा अपनी किताब मध्यकालीन भारत में लिखते हैं- जीतने के बाद बाबर ने इन वादों को पूरा नहीं किया। ऐसे में फारसियों से उसका अलगाव हो गया। तब बाबर को एक बार फिर समरकंद छोड़कर भागना पड़ा। इसके बाद वह समरकंद पर कब्जे का सपना भले ही देखता रहा, लेकिन कभी फिर आक्रमण नहीं कर पाया। मध्य एशिया में नाकाम रहने के बाद ही उसका ध्यान भारत की ओर आकर्षित हुआ। मध्यकालीन इतिहासकार सतीश चंद्र ने लिखा है- मध्य एशिया के पहले के कई हमलावरों की तरह बाबर भी भारत की बेपनाह दौलत के कारण उसकी ओर आकर्षित हुआ था। मुगल दरबार के इतिहासकार अबुल फजल ने इसे लेकर कहा है कि बाबर का शासन बदख्शां, कंदहार (कंधार) और काबुल पर था। इनसे फौज की जरूरतों के लिए पर्याप्त आय नहीं मिलती थी। उसे काबुल पर उजबेक हमले की भी आशंका थी। वह भारत को शरण के लिए अच्छा स्थान और उजबेकों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उपयुक्त आधार मानता था। सवाल 4- बाबर ने भारत पर कितनी बार हमले किए? जवाब- इसको लेकर काफी मतभेद है। इतिहासकार अबुल फजल 5 हमलों की बात लिखते हैं। वह 1505 और 1507 के बाबर के नाकाम हमलों को पहला और दूसरा मानते हैं। जनवरी 1519 में भीड़ा के किले पर जीत को तीसरा बताते हैं। अबुल फजल चौथे हमले के बारे में कोई जानकारी नहीं देते। फिर पानीपत की लड़ाई को 5वां हमला बताते हैं। सवाल 5- क्या राणा सांगा के बुलावे पर बाबर ने भारत पर आक्रमण किया था? जवाब- इतिहासकार रवि भट्ट कहते हैं- बाबर को भारत किसने बुलाया था, इसे लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। राणा सांगा के बुलावे का जिक्र बाबर ने सिर्फ अपने बाबरनामा में किया है। बाकी कहीं इसकी पुष्टि नहीं होती। कुछ इतिहासकार बाबरनामा का हवाला देते हुए कहते हैं कि राणा सांगा के आमंत्रण पर बाबर भारत आया। वहीं, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि बाबर ने राणा सांगा से संपर्क साधा था। इतिहासकार सतीश चंद्र के मुताबिक, 1520-21 में पंजाब के सूबेदार अफगान सरदार दौलत खान लोदी ने एक प्रतिनिधिमंडल बाबर से मिलने भेजा था। वह अफगान सरदार इब्राहिम लोदी की सत्ता से खुद को स्वतंत्र करना चाहता था। इस प्रतिनिधिमंडल ने बाबर को भारत आने का निमंत्रण दिया। साथ ही सुझाया कि वह निरंकुश इब्राहिम लोदी को सत्ता से हटाए। सतीश चंद्र अपनी किताब में कहते हैं- लगता है कि इसी समय राणा सांगा का एक संदेशवाहक भी बाबर को भारत पर आक्रमण का निमंत्रण देने पहुंचा। इन प्रतिनिधिमंडलों ने बाबर को विश्वास दिला दिया कि स्वयं भारत न सही, पूरे पंजाब की विजय का अवसर आ चुका है। इतिहासकार हरिश्चंद्र वर्मा अपनी किताब मध्यकालीन भारत में लिखते हैं- बाबर 1524 में पंजाब के उमरावों के बुलावे पर फिर भारत आया। वे अफगान उमराव, इब्राहिम के शासन से त्रस्त थे। इस बात को बाबर ने भांप लिया कि अफगानों के बीच एकता नहीं है। राणा सांगा को लेकर वह लिखते हैं कि तारीख के बारे में निश्चयपूर्वक भले ही न कहा जा सके, लेकिन यही वह समय था, जब बाबर को राणा सांगा से भी आमंत्रण मिला। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं होती। बाबरनामा के अनुसार, राणा ने इस योजना के बारे में बात करने और अपनी शुभकामनाओं का यकीन दिलाने के लिए एक दूत भेजा था। कहा था कि उस तरफ से हुजूर बादशाह दिल्ली के करीब आ जाएं। इस तरफ से मैं आगरा की ओर बढ़ जाऊंगा। उसी साल 1524 में बाबर पंजाब आया। उसके बाद लाहौर और फिर 12 अप्रैल, 1526 में वह पानीपत पहुंचा। यहीं इब्राहिम लोदी और बाबर की सेनाओं का आमना-सामना हुआ। इसे ही पानीपत की लड़ाई कहा गया। इतिहासकार यदुनाथ सरकार अपनी किताब मिलिट्री हिस्ट्री ऑफ इंडिया में कहते हैं- इब्राहिम की सेनाओं के पैर उखड़ गए और वे भागने लगीं। बाबर की सेना ने लगातार पीछा किया और दिल्ली के फाटक तक जा पहुंची। इसके अलावा गौरीशंकर हीराचंद्र ओझा और गोवर्धन राय शर्मा जैसे इतिहासकार कहते हैं कि पहले बाबर ने राणा सांगा से संपर्क साधा ताकि वह इब्राहिम लोदी के खिलाफ अभियान में उसकी सहायता करें। हालांकि, राणा सांगा इसके लिए शुरू में तैयार हुए। लेकिन, बाद में शायद मेवाड़ दरबार में सलाहकारों की तरफ से इसका विरोध होने पर अपने कदम पीछे खींच लिए। सवाल–6: क्या बाबर और राणा सांगा में युद्ध हुआ था? जवाब: इब्राहिम लोदी के साथ लोदी साम्राज्य का खात्मा कर बाबर ने ऐलान कर दिया कि वह भारत में ही रहेगा और साम्राज्य स्थापित करेगा। बाबरनामा में बाबर लिखता है- नहीं, हमारे लिए काबुल की गरीबी फिर नहीं। इस तरह उसने भारत में ठहरने के अपने पक्के इरादे का ऐलान कर दिया। इस ऐलान के साथ ही बाबर और उत्तर भारत में तब मेवाड़ साम्राज्य के शासक राणा सांगा के बीच संघर्ष की जमीन तैयार कर दी। इतिहासकार सतीश चंद्र लिखते हैं- राणा का प्रभाव धीरे-धीरे आगरा के पड़ोस की एक छोटी-सी नदी पीलिया खार तक बढ़ चुका था। सिंधु-गंगा वादी में बाबर के साम्राज्य की स्थापना राणा सांगा के लिए चुनौती थी। इसलिए सांगा ने बाबर को निकाल बाहर करने या कम से कम पंजाब तक सीमित कर देने की तैयारी शुरू कर दी। बाबर ने राणा सांगा पर समझौता तोड़ने का आरोप लगाया। सतीश चंद्र अपनी किताब में आगे लिखते हैं- इब्राहिम लोदी के छोटे भाई महमूद लोदी समेत अनेक अफगानों ने राणा सांगा का साथ इस आशा में दिया कि यदि सांगा जीत जाता है तो उन्हें दिल्ली का तख्त वापस मिल जाएगा। मेवात के शासक हमन खान मेवाती ने भी सांगा के साथ अपना भाग्य जोड़ दिया। लगभग सभी प्रमुख राजपूत शासकों ने राणा सांगा के लिए अपने दस्ते भेजे। राणा सांगा की प्रतिष्ठा और बयाना जैसी कुछ बाहरी मुगल चौकियों के खिलाफ उनकी शुरुआती सफलता ने बाबर के सैनिकों को निराश कर दिया। ऐसे में उन्हें तैयार करने के लिए बाबर ने सांगा विरोधी जंग को जिहाद करार दिया। युद्ध से ठीक पहले उसने शराब की तमाम बोतलों और घड़ों को यह दिखाने के लिए तोड़ दिया कि वह कितना पक्का मुसलमान था। उसने अपनी पूरी सल्तनत में शराब की खरीद-बिक्री पर रोक लगा दी। मुसलमानों पर सीमा शुल्क समाप्त कर दिया। बाबर ने आगरा से 40 किमी दूर खानवा को अपना ठिकाना बनाया। 1527 में यहीं बाबर और राणा सांगा के बीच पहली बार खानवा की लड़ाई में आमना-सामना हुआ। यह लड़ाई भयानक रही। सांगा की फौजें घिर गईं और भयंकर मारकाट के बाद पराजित हो गईं। इतिहासकार जदुनाथ सरकार अपनी किताब मिलिट्री हिस्ट्री ऑफ इंडिया में कहते हैं- बाबर के पास एक ऐसा हथियार था, जो उत्तर भारत में अनजान था। बाबर के पास गोला और बारूद का जखीरा था। इसी का इस्तेमाल कर बाबर ने पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराया था। युद्ध जीतने के बाद बाबर सांगा के कैंप में कुछ किलोमीटर आगे गया, लेकिन उसने मेवाड़ पर आक्रमण करने का विचार त्याग दिया। मार्च महीने में उत्तर भारत की गर्मी की वजह से उसने ऐसा फैसला लिया। ----------------------- ये खबर भी पढ़ें... सपा सांसद बोले-हिंदू गद्दार राणा सांगा की औलाद, आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों की गुलामी की, भाजपा बोली- ये सपा के संस्कार सपा के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन ने कहा- भाजपा वालों का तकिया कलाम हो गया कि मुसलमानों में बाबर का डीएनए है तो फिर हिंदुओं में किसका डीएनए है? बाबर को कौन लाया? बाबर को भारत में इब्राहीम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा लाया था। पढ़ें पूरी खबर
तुर्की : इस्तांबुल के मेयर एक्रेम इमामोग्लू भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार
इस्तांबुल, 23 मार्च . इस्तांबुल के मेयर एक्रेम इमामोग्लू को 23 मार्च को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. तुर्की की सरकारी समाचार एजेंसी अनादोलु के अनुसार, उन पर रिश्वत लेने, भ्रष्टाचार करने, धोखाधड़ी, निजी डेटा चुराने और निविदाओं में गड़बड़ी करने जैसे गंभीर आरोप हैं. इमामोग्लू को बुधवार से पुलिस हिरासत में ... Read more
मुझे लगता है कि वह शांति चाहते हैं... यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच ट्रंप के दूत ने कही बड़ी बात
Steve Witkoff: रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है, इसे खत्म करने के लिए अमेरिका लगातार पहल कर रहा है. इसी बीच डोनाल्ड ट्रंप के दूत स्टीव विटकॉफ ने कहा कि पुतिन शांति चाहते हैं.
‘वसंत में चीन’वैश्विक वार्तालाप पर कतर में विशेष कार्यक्रम का आयोजन
बीजिंग, 23 मार्च . चाइना मीडिया ग्रुप ने हाल ही में कतर के दोहा शहर में “वसंत में चीन” वैश्विक वार्तालाप पर एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया. सीएमजी अध्यक्ष शन हाईश्योंग ने इस कार्यक्रम में एक वीडियो भाषण दिया. दोनों देशों के राजनीति, व्यापार, शोध और मीडिया जगत के करीब एक सौ प्रतिनिधियों ने इसमें ... Read more
Rana Sanga Controversy: औरंगजेब विवाद के बीच राणा सांगा पर छिड़ा युद्ध, SP सांसद ने बताया गद्दार
Rana Sanga Controversy News : औरंगजेब कब्र विवाद थमा नहीं कि इसमें राणा सांगा की इंट्री हो गई है। मामला समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन का है, जिन्होंने महान योद्धा महाराणा सांगा पर दिए गए अपने बयान से विवाद खड़ा कर दिया है। उनके इस बयान पर ...
गाजा और लेबनान में इजरायली हमले: हमास नेता समेत 19 की मौत, हूती विद्रोहियों ने दागी मिसाइल
दक्षिणी गाजा पट्टी में रविवार को हुए इजरायली हमलों में हमास के एक वरिष्ठ नेता समेत कम से कम 19 फलस्तीनी मारे गए। गाजा के स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, इन हमलों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। इस बीच, यमन में ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों ने इजराइल पर एक और मिसाइल दागी, जिससे देश …
ओटावा/वॉशिंगटन: डोनाल्ड ट्रंप अपनी सनक भरी विदेश नीति से पूरी दुनिया को हांकने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन कनाडा उन्हें उन्हीं की भाषा में जवाब देने के मूड में आ गया है। कनाडा पहले ही एफ-35 स्टील्थ फाइटर जेट सौदे को रद्द करने की संकेत दे चुका है और …
Rajasthan Politics: सपा सांसद रामजीलाल सुमन की राणा सांगा पर विवादित टिप्पणी से राजसमंद में हंगामा मच गया. मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार और नाथद्वारा विधायक विश्वराज सिंह ने कड़ी कार्रवाई की मांग की, वहीं अब सीएम भजनलाल शर्मा और दिया कुमारी ने भी सपा नेता को लताड़ा है.
कतर में हिरासत में रखे गए अपने नागरिक की मदद करेगा भारत
नई दिल्ली, 23 मार्च . भारत गुजरात के वडोदरा के भारतीय नागरिक अमित गुप्ता को हर संभव सहायता प्रदान कर रहा है, जिन्हें कतर में डेटा चोरी के आरोप में गलत तरीके से हिरासत में लिया गया है. मामले से परिचित लोगों ने यह जानकारी दी. आईटी फर्म टेक महिंद्रा के वरिष्ठ कर्मचारी गुप्ता को ... Read more
युद्ध में रूस के साथ हमेशा खड़ा रहेगा 'उत्तर कोरिया', किम जोंग-उन ने क्यों कही ये बात?
Kim Jong un: रूस- यूक्रेन युद्ध थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. अमेरिका लगातार शांति की पहल कर रहा है लेकिन फिर भी विराम नहीं लग पा रहा है. इसी बीच उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन ने कहा है कि युद्ध में उनका समर्थन हमेशा रूस को रहेगा.
संभल कांग्रेस के जिलाध्यक्ष और शहर अध्यक्ष की घोषणा पार्टी ने कर दी है। भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष एवं मंडल अध्यक्ष घोषणा के बाद अब कांग्रेस के भी उत्तर प्रदेश में बड़ा बदलाव किया है। संभल कांग्रेस जिलाध्यक्ष की कमान मौहम्मद आरिफ तुर्की को सौंपी गई है, इस जिम्मेदारी से पहले उनके पास कांग्रेस पार्टी में जिला उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी थी और उन्होंने बहुजन समाज पार्टी छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा था। वहीं संभल शहर अध्यक्ष शिव किशोर गौतम को बनाया गया है। इससे पहले वह कांग्रेस अनुसूचित जाति विभाग के जिलाध्यक्ष थे। कांग्रेस पार्टी ने जनपद संभल में संभल शहर को साधने के लिए मुस्लिम-दलित कार्ड खेला है। संभल शहर में जिलाध्यक्ष आरिफ तुर्की को बनाया है तो वहीं दलित बोर्ड अधिक देखते हुए शहर अध्यक्ष इस बार दलित शिव किशोर गौतम को बनाया है। आपको बता दें कि नए जिला अध्यक्ष एवं शहर अध्यक्ष की सूची आने से पहले विजय कुमार शर्मा जिलाध्यक्ष और तौकीर अहमद शहर अध्यक्ष थे। नए जिलाध्यक्ष और शहर अध्यक्ष की घोषणा होने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों में जश्न का माहौल है।
पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने कहा है कि मुख्यमंत्री और मंत्री नए बने हैं, हमारी पार्टी विधायक दल ने तय किया था कि इनको मौका देना चाहिए। पहली बार विधायक बने मुख्यमंत्री बने हैं, इनको मौका देना चाहिए और इसलिए कांग्रेस ने साल भर से कोई आंदोलन खड़ा नहीं किया। गहलोत ने कहा- हमने मीडिया के माध्यम से अपनी बात कही। इनको समझ जाना चाहिए हम जो कहना चाहते हैं ,वह उनके हित में है। सरकार अगर अच्छी चलेगी अच्छी गवर्नेंस होगी तो फायदा किसको मिलेगा, जनता को मिलेगा। हमारा ध्येय है कि जनता को फायदा मिले, इसमें कोई समझौता नहीं हो। पक्ष और विपक्ष मिलकर ऐसा काम करें जिससे आम जनता को लाभ मिले विकास हो। अभी इन पर निर्भर करता है विपक्ष कितना साथ लेकर चलते हैं । डोटासरा के मामले में सभी नहीं था बर्ताव गहलोत ने कहा-डोटासरा के मामले में आपने देख लिया इन्होंने 6 लोगों को सस्पैंड किया और जिस तरह का बर्ताव किया । धरना तक देना पड़ा , इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि मुख्य विपक्षी दल के विधायकों को धरना देना पड़े। जो व्यवहार रहा वह तारीफ के काबिल नहीं है हमारे वक्त भी निष्कासन हुए हैं , एक-दो दिन कोशिश की बुलाकर बात करें और निष्कासन समाप्त किया। डोटासरा के मामले में एकतरफा बहस करवा दी गहलोत ने कहा- बिना विपक्ष के सदन कैसे चल सकता है। बिना विपक्ष के पक्ष क्या होता है। इन्होंने बिना विपक्ष के हाउस चला दिया। डोटासरा को टारगेट बनाकर बहस शुरू करवा दी । अगर इनमें नैतिक साहस होता तो विपक्ष को बुलाते, निलंबन समाप्त करते और उसके बाद में स्पीकर साहब को तकलीफ हुई थी वह बहस करने के बाद करते। इन्होंने बिना निलंबन खत्म किए एकतरफा बहस करवा दी। यह अनुभव की कमी है , इनको गाइड करने वाला कोई है नहीं है। उनके सलाहकार भी ऐसे ही लोग हैं इस कारण ऐसी नौबत बनी है। अभी हम कहना चाहेंगे विपक्ष रचनात्मक सहयोग करेगा । बीजेपी की पीआर एजेंसी पावरफुल, चुनाव के बाद इनकी पोल खुल गई गहलोत ने कहा- कांग्रेस का विधायक दल एकजुट है और मजबूती से मुकाबला कर रहा है । जितनी भी हमारी योजनाएं थी उनके ऊपर हम फोकस कर रहे हैं कि वह किसी कीमत पर कमजोर नहीं हो और वह लागू हो। हम सरकार को जनता से किए वादे याद दिलाते रहेंगे। ये झूठ बोलकर सत्ता में आए। चुनाव प्रचार में उन्होंने क्या-क्या नहीं कहा था । उनके पास पैसे की कमी नहीं है। बीजेपी की पीआर एजेंसी इतनी पावरफुल है कि पूरे देश में चुनाव में ऐसे माहौल बना देते हैं जैसे वो सब ठीक कह रहे हो। गहलोत ने कहा- प्रधानमंत्री मोदी और और उनके नेता जो बोल रहे हैं उनकी चुनाव के बाद पोल खुल गई है। कोई गवर्नेंस ही नहीं है । लोग कहते हैं हम किनके पास जाएं । कोई सुनवाई करने वाला ही नहीं है। जब से सरकार बनी है गांव गांव में चर्चाएं, हालात गंभीर गहलोत ने कहा- जब से यह सरकार बनी है तब से गांव-गांव में क्या चर्चाएं हो रही है इससे आप भी अनभिज्ञ नहीं है। हालत बड़ी गंभीर है। लोगों के काम हो नहीं रहे हैं। जनता से जो वादे किए थे उनकी वादा खिलाफी हो रही है। हमारे वक्त की जो स्कीम में थी उनको या तो कमजोर कर दिया या बंद कर दिया। कांग्रेस विधायक दल एकजुट ,इसका जनता में मैसेज गहलोत ने कहा- हमें गर्व है कि नेता प्रतिपक्ष जूली के नेतृत्व में हमारा विधायक दल लगातार संघर्ष कर रहा है, आवाज बुलंद कर रहा है । इसक जनता में मैसेज गया है कि विपक्ष अपना धर्म कर्तव्य निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। लोकतंत्र में यही होता है। गहलोत ने कहा- हमारी स्कीम्स इतनी शानदार थी कि उनकी चर्चा आज भी राजस्थान के बाहर हो रही है। चिरंजीवी योजना से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी की शानदार योजनाएं हमने दी थी, उनको बंद कर दिया।
राजस्थान विधानसभा में पिछले सप्ताह नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने एक बयान देकर महाराणा प्रताप और अकबर से जुड़े पुराने विवाद को एक बार फिर हवा दे दी है। हालांकि पिछली बार की तरह यह नया विवाद इस बात को लेकर नहीं था हल्दीघाटी का युद्ध किसने जीता? बल्कि टीकाराम जूली ने दावा किया कि राणा प्रताप और अकबर के बीच युद्ध की वजह धर्म नहीं, बल्कि सल्तनत थी! भास्कर ने उनके इस दावे की जांच के लिए विभिन्न ऐतिहासिक दस्तावेजों और किताबों को खंगालने के साथ नामचीन इतिहासकारों से भी चर्चा की, जिसमें कई दिलचस्प तथ्य सामने आए जब प्रताप राणा बने और पहले से मंडराता संकट साल था 1572। फागुन का महीना और ठीक होली का दिन। तारीख थी 28 फरवरी। उदयपुर से कोई 20 मील दूर गोगुन्दा में राणा उदय सिंह का अंतिम संस्कार हो रहा था। सभी- सामंत, ठाकुर, और सबसे बड़े कुंवर प्रताप सिंह सिसोदिया-मौजूद थे। लेकिन उदय सिंह के छोटे बेटे और प्रताप के सौतेले भाई कुंवर जगमाल नदारद थे। खटका होना लाजमी था। क्योंकि रिवाज़ था कि सिर्फ नया उत्तराधिकारी ही ऐसे अहम मौके से गैरमौजूद रह सकता था। पूछने पर पता चला कि ‘राणा उदयसिंह स्वर्गवासी होने से पहले जगमाल को एकलिंग जी का दीवान नियुक्त कर गए हैं।’ कहने की जरूरत नहीं कि सिसोदिया राजपूत भगवान एकलिंग भगवान को मेवाड़ का शासक मानते हैं और राणाओं को उनका दीवान। इतिहास मोड़ लेने जा ही रहा था कि प्रताप के नाना चुंडा अक्षयराज सोनगरा ने यह कहते हुए हस्तक्षेप कर दिया कि सामंतों की इच्छा तो कुंवर प्रताप हैं। और चली भी सामंतों की ही। जगमाल को दोनों हाथ पकड़कर राजसिंहासन से उठा दिया गया और प्रताप मेवाड़ के नए राणा बने। लेकिन प्रताप के लिए जितना चुनौतीभरा राज्याभिषेक था, उससे भी कई गुना बड़ी दुश्वारी का सामना उन्हें आने वाले दिनों में करना था। दरअसल उनके पिता उदयसिंह के समय से ही एक ऐसा दुश्मन मेवाड़ को जीतने पर अमादा था, जिसके आगे बंगाल से काबुल तक की तमाम रियासतों ने घुटने टेक दिए थे। वो दुश्मन था मुग़ल शहंशाह अकबर। राजपूत का राजपूत के सामने सुलह प्रस्ताव इतिहासकार मानते हैं कि जितना मान मनौव्वल अकबर ने प्रताप का किया, बादशाह से वैसा बर्ताव हिंदुस्तान के किसी राजा को हासिल नहीं हुआ। राणा उदयसिंह को भी नहीं। अकबर ने प्रताप के लिए सबसे पहले जलाल खान कोरची के हाथों दोस्ती का पैगाम पंहुचाया। राणा नहीं माने तो अकबर ने जयपुर के कुंवर और अपने खास मनसबदार मान सिंह को भेजा। तब राणा ने मानसिंह के लिए उदय सागर के पास भोज की व्यवस्था की, लेकिन खुद उसमें शामिल नहीं हुए। मान सिंह ने पूछा तो पता चला कि हुकम का हाज़मा ख़राब है। इतिहासकार गौरशंकर हीराचंद ओझा इस संबंध में लिखते हैं- मानसिंह ने कहा, ‘इस पेट दर्द की दवा मैं खूब जानता हूं।’ इस राणा ने तंज में कहलवाया, ‘मानसिंह अपने सैन्य सहित आएंगे तो मालपुरा (आमेर रियासत का कस्बा) तक आपका स्वागत करेंगे, अगर अपने फूफा (अकबर) के बल पर आए तो जहां मौका पड़ेगा वहीं, खातिर करेंगे।’ कछवाहा कुंवर का राजपूती खून प्रताप तंज से तिलमिला उठा और वे नाराज होकर चले आए। यहां ज़िक्र ज़रूरी है कि मुग़लों से पहले आमेर, मेवाड़ के ही अधीन था। हालांकि इसके बावजूद अकबर ने सुलह के रास्ते बंद नहीं किए। उन्होंने मान सिंह के पिता राजा भगवंत दास को भेजा। पर बात अब भी नहीं बनी। आख़िरी बार उन्होंने राजा टोडरमल को सुलह का जिम्मा सौंपा। अकबर की मांग सिर्फ इतनी भर ही था कि प्रताप अकबर की सरपरस्ती में आ जाएँ। अपने छोटे बेटे अमर सिंह को आगरा दरबार में भेज दें, तो आराम से उदयपुर के राजा बने रहें। लेकिन प्रताप नहीं माने और शेष इतिहास है। राजपूतों की तरफ से पठान और मुग़लों की तरफ से राजपूत लड़े मुग़ल-मेवाड़ के रिश्तों को हिंदू-मुसलमान के नजरिए से देखने वालों के लिए हल्दीघाटी का युद्ध बड़ा जवाब हो सकता है। हिंदुस्तान की तारीख़ में दर्ज़ सबसे ज़्यादा ख़ूनी जंगों में से एक इस मायने में दिलचस्प थी कि प्रताप की सेना की कमान एक पठान, हाकिम खां सूरी के हाथ में थी और एक मुग़लिया सेना कुंवर मानसिंह की सरपरस्ती में थी। हालांकि मानसिंह के अलावा और भी कई सिपह-सालार इस युद्ध में मुग़ल सल्तनत की तरफ से जंग में उतरे थे। लेकिन इतिहास ने सबसे ज़्यादा तवज्जो मानसिंह को दी। हालांकि यह पहला रण नहीं था जब राजपूताने में कोई मुसलमान राजपूत की तरफ से मुसलमान से लड़ा। या कोई राजपूत मुसलमान की तरफ से राजपूत से ही लड़ता हुआ खेत रहा। यहां आपको यह जानना दिलचस्प लग सकता है कि खुद अकबर ने भी राजस्थान में पहला आक्रमण मुस्लिम शासक के ही खिलाफ किया था। ना कि किसी राजपूत के। जिस मुसलमान से उदयसिंह हारे, उसे हराने अकबर आया 1556 में राजपुताना एक दिलचस्प युद्ध का गवाह बना। अजमेर और नागौर में शेरशाह के सरदार हाजीखान पठान का राज था। वह पहले मेवात का शासक था। लेकिन अकबर गद्दीनशीन होने के बाद उसने मेवात छोड़कर अजमेर और नागौर के कई हिस्सों पर कब्ज़ा कर लिया। यह देखकर जोधपुर राव मालदेव हाजी खान पर चढ़ आए। लेकिन तब राणा उदय हाजी के मददगार बनकर सामने आ गए और मालदेव को समर टालना पड़ा। लेकिन इसके बाद इतिहास जिस घटना का गवाह बना, वो बेहद नाटकीय और दिलचस्प थी। उदयसिंह ने हाजीखान से मदद की एवज़ में धन-संपदा के साथ उसके हरम की सबसे सुंदर महिला रंगराय को भी मांग लिया। हाजीखान भड़क गया और उदयसिंह को सबक सिखाने की ठान ली। सियासत के रंग देखिए! इस बार हाजीखान का साथ देते हुए मालदेव उदयसिंह पर चढ़ आए और मेवाड़ को शिकस्त का सामना करना पड़ा। इसके बाद अजमेर और नागौर में हाजीखान की पकड़ और मजबूत हो गई। लेकिन हाजी का बढ़ता रुआब अकबर को नागवार गुजरा और अप्रैल 1557 में अकबर खुद हाजीखान के वर्चस्व को मिटाने लिए सेना लेकर चढ़ आया। यह अभियान करीब एक वर्ष चला। हाजीखान को मुंह की खानी पड़ी और वह गुजरात चला गया। ‘मेवाड़ के महाराणा और शहंशाह अकबर’ में इतिहासकार भट्ट राजेंद्र शंकर ने लिखा है, ‘जो लोग अकबर के प्रयासों में सांप्रदायिकता सूंघते हैं, उन्हें समझना चाहिए कि अकबर का राजस्थान में पहला आक्रमण एक मुस्लिम शक्ति के खिलाफ था।’ इस लड़ाई के करीब एक दशक बाद ही अकबर ने चित्तौड़ का रुख किया था। चित्तौड़ इतना जरूरी क्यों था? लेकिन मूल सवाल अब भी जस का तस है कि चित्तौड़ इतना जरूरी क्यों था? अकबर पहला शासक नहीं था, जो चित्तौड़ फतेह करना चाहता था। अल्लाउद्दीन खिलजी से लेकर बाबर और शेरशाह तक दिल्ली के हर सुल्तान की आंखों में चित्तौड़ हमेशा खटकता रहा। लेकिन इसके कारण धार्मिक की बजाय व्यापारिक, भौगोलिक, सामरिक, रणनीतिक और साम्राज्यवादी ज्यादा नजर आते हैं। 1. सूरत का बंदरगाह और यूरोप से व्यापार 1519 में बाबर के आने से पहले ही वास्को दी गामा ने हिंदुस्तान को समुद्र के ज़रिये दुनिया से जोड़ दिया था। हिन्दुस्तानी सामान की यूरोप और खाड़ी के देशों में मांग इतनी ज़बरदस्त थी कि हमारे व्यापारी माल के बदले रकम को सोने और चांदी में वसूलते। अंग्रेज राजनयिक थॉमस रो ने लिखा है, ‘हिंदुस्तान यूरोप का खून चूस लेता है।’ मशहूर लेखक गुरचरण दास ने भी अपनी किताब ‘उन्मुक्त भारत’ में लिखा है- वैश्विक व्यापार में मध्यकालीन भारत की बड़ी हिस्सेदारी थी। पहले शेर शाह सूरी और बाद में अकबर ने भी एक जैसा व्यापारिक मॉडल अपनाया और विदेशी व्यापरियों को काफी सहूलियतें दीं। अकबर के राज में हिन्दुस्तान आधी दुनिया के लिए सूती कपड़ों का निर्यातक बन गया। लेकिन जिन बंदरगाहों से माल की आवाजाही होने लगी उनमें सूरत प्रमुख था और वहां से आगरा या दिल्ली का रास्ता मेवाड़ होकर ही जाता था। 2. हज का रास्ता भी यहीं से गुजरता था हिंदुस्तान से शाही खर्चे पर हज की यात्रा शुरू करने वाले अकबर पहले शासक थे। तब जमीन के रास्ते मुश्किलें ज़्यादा थीं। लिहाज़ा, अकीदतमंद हज जाने के लिए दरिया को तवज्जो देते थे। हालांकि यहां भी समुद्री डाकुओं का खतरा था। पुर्तगालियों से अहम समझौता कर अकबर ने इस चुनौती से पार पाल ली और सूरत को बाब-अल-मक्का (मक्का जाने का दरवाजा) कहा जाने लगा था। लेकिन दरिया तक पहुंचने का रास्ता भी मेवाड़ से ही गुजरता था। और सिसोदियाओं के होते हुए यह रास्ता निष्कंटक नहीं था। 3. चांदी की खदानें, अफीम की मांग और राजपूतों का खटका बीएन यूनिवर्सिटी, उदयपुर में इतिहास विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर और इतिहासकार डॉ भानु कपिल इस बारे में कहते हैं कि मेवाड़ में तब चांदी की खदानों पर हर शासक की नज़र थी। इसके अलावा यहां बहुतायात में अफीम की भी पैदावार थी, जो किसी भी सत्ता को लुभाने के लिए काफी थी। कपिल कहते हैं, ‘सूरत के अलावा मालवा, नर्मदा घाटी और दक्षिण को आगरा या दिल्ली से जो रास्ता जोड़ता था, मेवाड़ उसकी कुंजी था। दिल्ली के शहंशाह भी ये बात जानते थे और मेवाड़ के राणा भी।’ इसके अलावा भी चित्तौड़ के बिना राजपुताने पर संपूर्ण अधिकार संभव नहीं था। शेरशाह के जीवनी लेखक डॉ कलिका रंजन कानूनगो का मानना है कि राजपुताने में मोर्चाबंदी चार महत्वपूर्ण किलों को जीते बिना अधूरी थी। इनमें आबू, अजमेर, जोधपुर के अलावा चित्तौड़ प्रमुखता से शामिल था। 4. मेवाड़ की मुग़लों से तीन पीढ़ी पुरानी की दुश्मनी 1567 तक सिर्फ जयपुर ने ही अकबर की अधीनता स्वीकार की थी। जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर के शासकों ने ऐसा नहीं किया था। इसके अलावा अकबर यह भी नहीं भूला होगा कि उसके पितामह बाबर के विजय अभियान को जिस रियासत ने एकबारगी घुटनों पर ला दिया , वह मेवाड़ ही थी। टॉड के मुताबिक सांगा बाबर को युद्ध में दो बार हरा चुके थे। ऐसे में अकबर का आंकलन था कि मेवाड़ जैसी ताकतवर रियासत पर कब्जा करने से अन्य राजपूत रियासतें स्वत; ही डरकर उसके अधीन हो जाएंगी। बाद में ऐसा ही हुआ भी। 5. मुग़लों के बागियों की पनाहगाह मेवाड़ मेवाड़ को युद्ध और विनाश से बचाने के लिए बार-बार अपने स्वाभिमान से समझौते करने के लिए इतिहास ने भले ही राणा उदयसिंह को वह सम्मान ना बख्शा ना हो। लेकिन मुग़लों से बगावत करने वाले शरणागतों को आश्रय देने से वे पीछे नहीं हटते थे। यह भी एक प्रमुख वजह थी कि मेवाड़ अकबर को खटकने लगा था। इस प्रकार मेवाड़ मुग़लों के विरुद्ध कार्रवाई का प्रमुख स्थल बन गया। लेकिन यह रवैया भी एकतरफा नहीं था। शहंशाह अकबर ने भी उदयसिंह के एक कुंवर शक्तिसिंह और सिंहासन छिनने के बाद जगमाल को ना सिर्फ शरण दी, बल्कि जागीर और पूंजी से भी नवाज़ा। हिंदू-मुसलमान नज़रिया यहां भी खारिज होता है यह भी जानना दिलचस्प हो सकता है कि उदयसिंह के समर्थन में बनवीर का विरोध सबसे पहले जिस सामन्त ने किया था उसका नाम रावत खान था। वह था तो राजपूत। लेकिन किसी फकीर की दुआ से पैदा होने की वजह से उसे यह नाम मिला था। वीर विनोद के हवाले से भट्ट राजेंद्र शंकर ने लिखा है कि उदयसिंह के एक बेटे का नाम साहिब खान और प्रतापसिंह के एक बेटे का नाम शेखा था। राजपूत राजाओं द्वारा अपने बच्चों के मुस्लिम नाम रखना भी यह इंगित करता है कि इस्लाम को लेकर उस तरह की घृणा का भाव शायद ना रहा हो। दूसरी तरफ 1562 में अकबर ने भी एक आदेश निकाला था जिसके मुताबिक युद्ध में भाग ना लेने वालों या वीरगति पाने वालों की स्त्रियों व बच्चों को गुलाम बनाने और इस्लाम में दीक्षित करना वर्जित कर दिया था। 1562 में ही मुग़ल दरबार में गैर मुसलमानों के लिए राजकीय सेवाओं के द्वार खोल दिए गए थे और 1564 में राजकोष में घाटे के बावजूद गैर मुस्लिमों से जजिया कर हटा दिया था। इसी दौरान अकबर ने आमेर के कछवाहा नरेश भगवंतदास और टोडरमल जैसे हिंदुओं को दरबार में महत्वपूर्ण स्थान देना शुरू कर दिया था। ‘इकबालनामे-जहांगीरी’ के लेखक मौतमिद खां ने शाही दरबार में मानसिंह के लिए ‘फर्जंद’ यानी बेटा के खिताब से सम्मानित होना बताया है। हिंदुआं सूरज भी और हिंदुआ सुल्तान भी! यहां यह जिक्र भी जरूरी है कि मेवाड़ के राणाओं को ‘हिंदुआ सूरज’ कहा जाता था। कालांतर में इस उपाधि का आशय उन्हें हिंदुओं का गौरव बताकर निकाला गया। लेकिन कई जगह जिक्र यह भी मिलता है कि मुग़लों के बागी या भारतीय मुसलमान मेवाड़ के राणाओं को हिंदुआ सुल्तान कहते थे। ऐसे में कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यहां हिंदुआ से हिंदू नहीं बल्कि हिंदुस्तान का बोध मिलता था। दोनों पक्षों की तरफ से दोनों धर्मालंबियों के प्रति उदारता हल्दीघाटी युद्ध के बाद भी दिखाई जाती रही। जिन तमाम घटनाओं की बदौलत तारीख ने राणा प्रताप का नाम सबसे सुनहरी स्याही से लिखा है, उनमें से एक 1582 के आस-पास घटी थी। जिक्र मिलता है कि तब कुंवर अमरसिंह ने अजमेर के गवर्नर ख़ान-ए-ख़ाना के कुनबे की महिलाओं और बच्चों को बंदी बना लिया। जब प्रताप को मामले की भनक पड़ी तो वे कुंवर पर बिगड़ गए। और सभी बंदियों को ससम्मान उनके मुकाम पर छोड़ दिया गया। ये ख़ान-ए-ख़ाना कोई और नहीं, अपने दौर के मशहूर कवि रहीमदास जी थी, जिन्होंने बाद में राणा की शान में क़सीदे और दोहे पढ़े। ‘सिर किसी भी तरफ के राजपूत का कटे, मरेगा काफिर ही’ कितना सच, कितना फ़साना? हल्दीघाटी के युद्ध को फिरका-वारी साबित करने के लिए जिन तथ्यों का हवाला दिया जाता है, उनमें अकबर के दरबारी कवि अल बदायूनी का एक विवादित कथन शामिल है। जंग में शामिल होने की वजह से उसने इसका आंखों देखा हाल लिखा था, जिसके मुताबिक- दोनों तरफ केसरिया साफा बांधे सैनिकों को देखकर बदायूनी ने मुग़ल सेना के एक महत्वपूर्ण कमांडर आसफ खां से पूछा कि दोनों तरफ राजपूत हैं, हम अपने और दुश्मन सिपाहियों की पहचान कैसे करेंगे? इस पर आसफ खां ने उससे कहा कि- तुम तो तीर चलाये जाओ, केसरिया (राजपूत) किसी तरफ का गिरे, इस्लाम को फायदा ही होगा। लेकिन इस कथन को इतिहासकार चुनौती देते हैं। चर्चित किताब 'महाराणा प्रताप: द इनविंसिबल वॉरियर' की लेखिका जQयपुर में महाराजा सवाई मानसिंह II संग्राहलय की भूतपूर्व निदेशक रीमा हूजा इस विषय में कहती हैं कि ‘बदायूनी अकबर की धर्म निरपेक्ष नीतियों से नाखुश रहता था और उसने अपनी किताब ‘मुंतख़ब-उत-तवारीख़’ में अकबर की खुलकर आलोचनाएं की हैं। ऐसे में यह संभव है कि अकबर के निधन के बाद उसने अपने इस्लामिक भावनाओं की तुष्टि के लिए किताब में ऐसी कोई अतिश्योक्ति जोड़ दी हों।’ वहीं भानु कपिल इस बारे में कहते हैं कि बदायूनी की लेखनी की ऐतिहासिक नजरिए से पुष्टि नहीं की जा सकती है। वे कहते हैं, ‘अकबर की अनुशासनप्रियता से परिचित कोई भी व्यक्ति ऐसे महत्वपूर्ण युद्ध में ऐसी असंवेदनशील बयानबाजी करने की जुर्रत ही नहीं कर सकता। क्योंकि अगर ऐसी किसी भी मंशा या बातों की जरा भी भनक मुग़ल सेना के राजपूतों को पड़ती तो युद्ध का अंजाम कुछ और ही होता।’ युद्ध में लगाए गए धार्मिक नारों को लेकर कपिल कहते हैं, ‘चाहे हर-हर महादेव हो या अल्लाह-ओ-अकबर, ये नारे सेनाओं को उन्मादी और उत्तेजित करने के लिए लगाए जाते हैं। ना कि धार्मिक दृष्टि से। राजपूत-राजपूत और मुसलमान-मुसलमान एक दूसरे खिलाफ लड़ते समय भी उन्हीं नारों को लगाया करते थे।’ ‘प्रताप नहीं रहे’ सुनकर अकबर रोए थे! किवदंति है कि मुग़ल दरबार में मौजूद राजस्थानी कवि दुरसा आढ़ा ने जब बादशाह को राणा के निधन की खबर सुनाई तो, उनका दिल बैठ गया था। आढ़ा ने दोहा गाया- अस लेगो अण दाग, पाग लेगो अण नामी। गो आड़ा गवड़ाय, जिको बहतो धुर बामी। नवरोजे नह गयो, न गो आतशा नवल्ली। न गो झरोखा हेठ, जेथ दुनियाण दहल्ली। गहलोत राण जीतो गयो, दसण मूँद रसना डसी। नीसास मूक भरिया नयण, तो मृत शाह प्रतापसी । (‘राणा ने अपने घोडों पर मुग़लिया दाग नही लगने दिया, उसकी पगड़ी किसी के सामने झुकी नही, जो स्वाधीनता की गाड़ी की धुरी को संभाले हुए था, वो अपनी जीत के गीत गवा के चला गया। तुम न तो कभी नोरोजे और न ही बादशाह के डेरों में गए। हे! प्रतापसी तुम्हारी मृत्यु पर बादशाह ने आंखें बंद कर जबान को दांतों तले दबा लिया। उसकी उसकी आंखों में पानी भर आया और उसने ठंडी सांस लेकर कहा गहलोत राणा जीत गया।) चलते-चलते: अकबर की शान पर धब्बा चित्तौड़ पर पहला आक्रमण अकबर ने अपने जीवनकाल में ऐसे कई काम किए जिनसे उसे महान कहा जाने लगा। धर्मनिरपेक्षता को लेकर भी उसका रुख अप्रतिम था। लेकिन 1567 में चित्तौड़ आक्रमण के दौरान उसने राणा उदयसिंह के गढ़ से निकल जाने के बावूजद जिस तरह का क़त्लेआम मचाया, उसने अकबर की शान को बड़ा नुकसान पहुंचाया। हालांकि दलील दी जाती है कि दुर्ग में घुसते ही वहां मौजूद कुछ नागरिकों ने मुग़ल सेना के ख़िलाफ़ हथियार उठा लिए थे। इसके चलते उन पर बदले की कार्यवाही की गई। लेकिन यह तर्क अकबर के दाग को धोने के लिए काफी नहीं। हालांकि यह भी दीगर है कि अपनी शुरुआती मुहीमों को लेकर अकबर को हमेशा पछतावा रहा। ‘आईने अकबरी’ में अकबर की तरफ से उन मुहीमों पर शर्मिंदगी भी जताई गई। लेकिन इसके बावजूद अकबर को चाहने वाले इतिहासकार भी चित्तौड़ में क़त्लेआम के लिए उसे माफ़ नहीं कर पाते हैं। किस्सा बड़ा है, इसलिए फिर कभी…
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Kalki 2898 AD के ट्रेलर को देखें तो, फिल्म कल्कि 2898 एडी के मेकर्स ने विश्वास दिलाया है कि ये फिल्म लोगों को बांधने में कामयाब होगी. टफ सीक्वेंस, क्लियर एडिटिंग और बैकग्राउंड स्कोर आपका ध्यान खींचते हैं. वीएफएक्स पर भी अच्छा काम किया गया है.
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आशुतोष ने कहा कि ऐसी बातों में खुद को डिफेंड करने का कोई फायदा नहीं है. उन्होंने कहा कि जो लोग आपको जानते हैं वो सवाल करेंगे ही नहीं. और जो नहीं जानते, उन्हें किसी रिस्पॉन्स से फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि वो दिमाग में आपकी एक छवि बना चुके होते हैं.
रानीति बालाकोट एंड बियॉन्ड: जिमी शेरगिल की नई सीरीज भारत की आधुनिक युद्ध की ऐतिहासिक कहानी को प्रदर्शित करेगी। जिमी शेरगिल दो मिनट के ट्रेलर की शुरुआत पुलवामा हमले की झलक से होती है। एनएसए प्रमुख की भूमिका निभाने वाले आशीष कहते हैं, ये एक नया रण है या इसे जीतने के लिए एक नई रणनीति की जरूरत है। इसे भी पढ़ें: नक्सलियों के खिलाफ 'ऑपरेशन प्रहार', कमांडर शंकर राव समेत अब तक 79 हुए ढेर, हिट लिस्ट में और भी कई नाम शामिल आगामी वेब शो आधुनिक युद्ध को डिकोड करता है जो केवल भौतिक सीमाओं पर नहीं लड़ा जाता है बल्कि सोशल मीडिया, डिजिटल रणनीति और गुप्त राजनीतिक चालों के क्षेत्र से परे है जो भू-राजनीति को नया आकार देने की शक्ति रखता है। वेब श्रृंखला उन वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है जिन्होंने 2019 में देश को हिलाकर रख दिया था। शो में कुछ हवाई दृश्य, शानदार प्रदर्शन और एक शक्तिशाली कथा है जो युद्ध के मैदान के अंदर और बाहर हर पहलू को चतुराई से पकड़ती है। इसे भी पढ़ें: Biden को सोचना पड़ेगा फिर एक बार, Iran पर प्रहार तो रूस करेगा पलटवार, रक्षा मंत्रायल ने चिट्ठी लिखकर जता दी मंशा आगामी वेब श्रृंखला के बारे में बात करते हुए, जिमी ने कहा: यह मेरे द्वारा अतीत में की गई किसी भी भूमिका से भिन्न है। कम से कम यह कहना चुनौतीपूर्ण रहा है, लेकिन भारत की पहली वॉर-रूम केंद्रित वेब-श्रृंखला का हिस्सा बनना बेहद संतोषजनक भी है। वास्तविक जीवन की घटनाओं से प्रेरित जिसने देश को हिलाकर रख दिया। एनएसए प्रमुख के रूप में अपनी भूमिका के बारे में बात करते हुए, आशीष ने कहा, एनएसए प्रमुख की भूमिका निभाना चुनौतीपूर्ण रहा है, लेकिन रक्षा बलों के कुछ सदस्यों के साथ बैठकों ने मुझे अपने चरित्र की बारीकियों को समझने में मदद की। तैयारी कार्य और कार्यशालाएं मुझे वापस ले गईं मेरे एनएसडी के दिनों में। संतोष सिंह द्वारा निर्देशित, श्रृंखला का निर्माण स्फीयरओरिजिन्स मल्टीविजन प्राइवेट लिमिटेड के सुंजॉय वाधवा और कॉमल सुंजय डब्ल्यू द्वारा किया गया है। इसमें प्रसन्ना भी हैं। शो का प्रीमियर 25 अप्रैल को JioCinema पर होगा।
दर्शक काफी समय से रैपर बादशाह और हनी सिंह के बीच जुबानी जंग देख रहे हैं। दोनों का रिश्ता सालों से विवादों से भरा रहा है। हालांकि करियर के शुरुआती दिनों में बादशाह और हनी सिंह के बीच अच्छी दोस्ती हुआ करती थी। हालाँकि, ऐसा लगता है कि सफलता और पैसे ने धीरे-धीरे इस दोस्ती को पूरी तरह से खत्म कर दिया। अब दोनों अक्सर एक दूसरे पर तंज कसते नजर आते हैं। हाल ही में हनी सिंह एक होली पार्टी में शामिल हुए, जहां उन्होंने बादशाह के 'पापा कमबैक' वाले कमेंट का करारा जवाब दिया। रैपर का ये वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। इसे भी पढ़ें: Punjab Kings के खिलाफ जीत के बाद इंटरनेट पर Virat Kohli का Anushka Sharma के साथ वीडियो कॉल, FLY KISS देते नजर आये खिलाड़ी हनी सिंह ने बादशाह पर किया पलटवार बादशाह कुछ दिनों पहले हनी सिंह पर अपनी टिप्पणी को लेकर चर्चा में थे, जिसमें उन्होंने हनी सिंह की वापसी पर कटाक्ष किया था। अब सिंगर और रैपर हनी सिंह ने एक कमेंट के जरिए बादशाह को करारा जवाब दिया है और कहा है कि उन्हें बादशाह को जवाब देने के लिए मुंह खोलने की जरूरत नहीं है। उनके फैन ही काफी हैं जो हर चीज पर बात कर सकते हैं। उन्होंने अपने गाली वाले अंदाज में अपने फैंस से बात करते हुए बादशाह का जवाब दिया। हनी सिंह को सोमवार को मुंबई में एक होली पार्टी में परफॉर्म करते देखा गया और यहीं उन्होंने बादशाह पर कटाक्ष किया। बिना किसी का नाम लिए उन्होंने कहा, हर कोई कहता है, रिप्लाई करो, रिप्लाई करो... मैं क्या रिप्लाई करूं... आप लोग तो उनके सारे कमेंट्स का बहुत अच्छे से रिप्लाई कर चुके हैं। मुझे मुंह खोलने की जरूरत है। ऐसा नहीं होता है। जैसे ही भीड़ ने उनके लिए तालियां बजाईं, गायक ने कहा, मुझे बोलने की जरूरत नहीं है। आप लोग खुद पागल हैं। हनी सिंह पागल हैं और उनके प्रशंसक भी पागल हैं। इसे भी पढ़ें: Taapsee Pannu के पति Mathias Boe आखिर कौन है? जब सफल भी नहीं थी एक्ट्रेस तब से उन्हें प्यार करते थे बैडमिंटन खिलाड़ी रैपर बादशाह ने क्या कहा? आपको बता दें कि हाल ही में बादशाह ने हनी सिंह पर कमेंट करते हुए कहा था, ''मुझे एक पेन और कागज दो। मैं तुम्हारे लिए एक गिफ्ट लाया हूं। मैं कुछ गाने लिखूंगा और तुम्हें दूंगा। पापा की वापसी तुम्हारे साथ होगी।'' Kalesh Controversy B/w Honey Singh and Badshah (Honey Singh Replied to Badshah) pic.twitter.com/o74t423bgS — Ghar Ke Kalesh (@gharkekalesh) March 25, 2024 Kalesh Between Badshah & Honey Singh Fans on Stage during Live Concert pic.twitter.com/M4VqSqLSc3 — Ghar Ke Kalesh (@gharkekalesh) March 19, 2024
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'सावरकर' रिव्यू: खोखली, एकतरफा फिल्म में एकमात्र अच्छी चीज है रणदीप हुड्डा का काम
आज के दौर में 'गुमनाम' हो चुके एक स्वतंत्रता नायक की कहानी कहने निकली ये फिल्म, एक अनजान कहानी बताने से ज्यादा अपने हीरो विनायक दामोदर सावरकर को बाकियों के मुकाबले अधिक 'वीर' बताने पर फोकस करने लगती है.